Saturday, 17 August 2019

महाविद्या कमला मंत्र साधना


महाविद्या कमला
धन तथा समृद्धि दात्री, दिव्य तथा मनोहर स्वरूप से संपन्न, पवित्रता तथा स्वछता से सम्बंधित "देवी कमला"।
देवी कमला या कमलात्मिका, महाविद्याओं में दसवे स्थान पर अवस्थित, कमल या पद्म पुष्प के समान दिव्यता के प्रतिक। देवी कमला तांत्रिक लक्ष्मी के नाम से भी जानी जाती हैंं, देवी का सम्बन्ध सम्पन्नता, सुख, समृद्धि, सौभाग्य और वंश विस्तार से हैंं। दस महाविद्याओं की श्रेणी में देवी कमला अंतिम स्थान पर अवस्थित हैंं। देवी सत्व गुण से सम्पन्न हैंं तथा धन तथा सौभाग्य की देवी हैंं। स्वछता तथा पवित्रता देवी को अति प्रिय हैंं तथा देवी ऐसे स्थानों में ही वास करती हैंं। प्रकाश से देवी कमला का घनिष्ठ सम्बन्ध हैंं, देवी उन्हीं स्थानों को अपना निवास स्थान बनती हैं जहा अँधेरा न हो, इस के विपरीत देवी के बहन अलक्ष्मी, ज्येष्ठा, निऋति जो निर्धनता, दुर्भाग्य से सम्बंधित हैंं, अंधेरे तथा अपवित्र स्थानों को ही अपना निवास स्थान बनती हैंं। कमल के पुष्प के नाम वाली देवी, जिनका घनिष्ठ सम्बद्ध कमल के पुष्प से हैंं। देवी कमला के स्थिर निवास हेतु स्वछता तथा पवित्रता अत्यंत आवश्यक हैंं। देवी की अराधना तीनो लोको में में सभी के द्वारा की जाती हैंं, दानव या दैत्य, देवता तथा मनुष्य सभी द्वारा की जाती हैंं, क्योंकि सुख तथा समृद्धि सभी प्राप्त करना चाहते हैंं। देवी आदि काल से ही त्रि-भुवन के समस्त प्राणिओ द्वारा पूजित हैंं। देवी की कृपा के बिना, निर्धनता, दुर्भाग्य, रोग ग्रस्त, इत्यादि जातक से सदा सम्बद्ध रहती हैंं परिणामस्वरूप जातक रोग ग्रस्त, अभाव युक्त, धन हीन रहता हैंं। देवी कमला ही समस्त प्रकार के सुख, समृद्धि, वैभव इत्यादि सभी प्राणियो, देवताओ को प्रदान करती हैंं। एक बार देवता यहाँ तक ही भगवान विष्णु भी लक्ष्मी हीन हो गए थे, परिणामस्वरूप सभी दरिद्र हो गए थे।
विष्णु प्रिया, कमल प्रिय देवी कमला।
हिन्दू, बौद्ध तथा जैन धर्म के अंतर्गत कमल पुष्प को बहुत पवित्र तथा महत्त्वपूर्ण माना जाता हैंं। बहुत से देवी देवताओं की साधना, अराधना में कमल पुष्प आवश्यक हैंं तथा सभी देवताओं पर कमल पुष्प निवेदन कर सकते हैंं। कमल की उत्पत्ति मैले, गंदे स्थानों पर होती हैंं, परन्तु कमल के पुष्प पर मैल, गन्दगी का कोई प्रभाव नहीं होता हैंं, कमल अपनी दिव्या शोभा लिये, सर्वदा ही पवित्र ही रहता हैंं तथा दिव्य पवित्र को प्रदर्शित करता हैंं। देवी कमल प्रिय हैंं, कमल के आसान पर ही विराजमान रहती हैंं, कमल के माला धारण करती हैंं, कमल पुष्पों से ही घिरी हुई हैंं। देवी कमला, जगत पालन कर्ता भगवान विष्णु की पत्नी हैंं। देवताओं तथा दानवो ने मिल कर, अधिक सम्पन्न होने हेतु समुद्र का मंथन किया, समुद्र मंथन से १८ रत्न प्राप्त हुए, जिन में देवी लक्ष्मी भी थी, जिन्हें भगवान विष्णु को प्रदान किया गया तथा उन्होंने देवी का पानिग्रहण किया। देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध देवराज इन्द्र तथा कुबेर से हैंं, इन्द्र देवताओं तथा स्वर्ग के राजा हैंं तथा कुबेर देवताओं के खजाने के रक्षक के पद पर आसीन हैंं। देवी लक्ष्मी ही इंद्र तथा कुबेर को इस प्रकार का वैभव, राजसी सत्ता प्रदान करती हैंं।


देवी कमला के प्रादुर्भाव से सम्बंधित कथा।

श्रीमद भागवत के आठवें स्कन्द में देवी कमला के उद्भव की कथा प्राप्त होती हैंं। देवी कमला का प्रादुर्भाव समुद्र मंथन के समय से सम्बंधित हैंं। एक बार देवताओं तथा दानवो ने समुद्र का मंथन किया, जिनमें अमृत प्राप्त करना मुख्य था। मुनि दुर्वासा के श्राप के कारण सभी देवता 'लक्ष्मी या श्री' हीन हो गए, यहाँ तक ही भगवान विष्णु का भी लक्ष्मी जी ने त्याग कर दिया। पुनः श्री सम्पन्न होने हेतु या नाना प्रकार के रत्नों को प्राप्त कर समृद्धि हेतु, देवताओं तथा दैत्ययों ने समुद्र का मंथन किया। समुद्र मंथन से १८ रत्न प्राप्त हुए, उन १८ रत्नो में, धन की देवी 'कमला' तथा निर्धन की देवी 'निऋति' नमक दो बहनों का भी प्रादुर्भाव हुआ था। जिन में, देवी कमला भगवान विष्णु को दे दी गई और निऋति, दुसह नमक ऋषि को। देवी भगवान विष्णु से विवाह के पश्चात्, कमला लक्ष्मी नाम से जाने जानी लगी। तत्पश्चात् देवी लक्ष्मी ने विशेष स्थान पाने हेतु, 'श्री विद्या महा त्रिपुर सुंदरी' की कठोर अराधना की तथा अराधना से संतुष्ट हो देवी त्रिपुरा ने उन्हें श्री उपाधि प्रदान की तथा महाविद्याओं में स्थान भी। तब से देवी का सम्बन्ध पूर्णतः धन, समृद्धि तथा सुख से हैंं।
देवी कमला का भौतिक स्वरुप।

देवी कमला का स्वरूप अत्यंत ही मनोहर तथा मनमोहक हैंं तथा स्वर्णिम आभा लिया हुए हैंं। देवी का स्वरूप अत्यंत सुन्दर हैंं, मुख मंडल पर हलकी सी मुस्कान हैंं, कमल के सामान इनके तीन नेत्र हैंं, अपने मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण करती हैंं। देवी के चार भुजाये हैंं तथा वे अपने ऊपर की दो हाथों में कमल पुष्प धारण करती हैंं तथा निचे के दो हाथों से वर तथा अभय मुद्रा प्रदर्शित करती हैंं। देवी कमला मूल्य रत्नो तथा कौस्तुभ मणि से सुसज्जित मुकुट अपने मस्तक पर धारण करती हैंं, सुन्दर रेशमी साड़ी से शोभित हैंं तथा अमूल्य रत्नो से युक्त विभिन्न आभूषण धारण करती हैंं। देवी सागर के मध्य में, कमल पुष्पों से घिरी हुई तथा कमल के ही आसन पर बैठी हुई हैंं। हाथीयों के समूह देवी को अमृत के कलश से स्नान करा रहे हैंं।
देवी कमला से सम्बंधित अन्य तथ्य।

भगवान विष्णु से विवाह होने के परिणामस्वरूप, देवी का सम्बन्ध सत्व गुण से हैंं तथा वे वैष्णवी शक्ति की अधिष्ठात्री हैंं। भगवान विष्णु देवी कमला के भैरव हैंं। शासन, राज पाट, मूल्यवान् धातु तथा रत्न जैसे पुखराज, पन्ना, हीरा इत्यादि, सौंदर्य से सम्बंधित सामग्री, जेवरात इत्यादि देवी से सम्बंधित हैंं प्रदाता हैंं। देवी की उपस्थिति तीनो लोको को सुखमय तथा पवित्र बनती हैंं अन्यथा इन की बहन देवी धूमावती या निऋति निर्धनता तथा अभाव के स्वरूप में वास करती हैंं। व्यापारी वर्ग, शासन से सम्बंधित कार्य करने वाले देवी की विशेष तौर पर अराधना, पूजा इत्यादि करते हैंं। देवी हिन्दू धर्म के अंतर्गत सबसे प्रसिद्ध हैंं तथा समस्त वर्गों द्वारा पूजिता हैंं, तंत्र के अंतर्गत देवी की पूजा तांत्रिक लक्ष्मी रूप से की जाती हैंं। तंत्रो के अनुसार भी देवी समृद्धि, सौभाग्य और धन प्रदाता हैंं।

देवी की विशेष रूप से पूजा अराधना दीपावली के दिन की जाती हैंं देवी से सम्बंधित दीपावली एक महा पर्व हैंं जो समस्त जातिओ द्वारा मनाई जाती हैंं। भारत वर्ष के पूर्वी भाग में रहने वाले, शक्ति पूजा से सम्बंधित समाज दीपावली के दिन देवी काली के विभिन्न रूपों की पूजा करते हैंं तथा अन्य भाग जो वैष्णव संप्रदाय से सम्बंधित हैंं देवी महा लक्ष्मी की पूजा करते हैंं। वास्तव मैं ये दोनों महा देवियाँ एक आद्या शक्ति कि ही दो अलग रूप हैंं। देवी का सम्बन्ध प्रकाश से होने के कारण दीपावली के पर्व को प्रकाश का पर्व भी कहा जाता हैंं तथा सभी अपने घरों तथा अन्य स्थानों पर सूर्य अस्त पश्चात् दीपक जलाते हैंं, देवी का आगमन करते हैंं।

देवी एक रूप में सच्चिदानंद मयी लक्ष्मी हैंं; जो भगवान विष्णु से अभिन्न हैंं तथा अन्य रूप में धन तथा समस्त प्रकृति संसाधनों की अधिष्ठात्री देवी हैंं। त्रिलोक में देवता, दैत्य तथा मानव देवी के कृपा के बिना पंगु हैंं। देवी कमला की अराधना स्थिर लक्ष्मी प्राप्ति तथा संतान प्राप्ति के लिया की जाती हैंं। अश्व, रथ, हस्ती के साथ उनका सम्बन्ध राज्य वैभव का सूचक हैंं।
समुद्र मंथन कर पुनः देवी लक्ष्मी (कमला) को प्राप्त करना तथा भगवान् विष्णु को विवाह हेतु चयनित करना।

देवी कमला का प्रादुर्भाव, समुद्र मंथन से संबंधित हैं।

मद, अहंकार में चूर इंद्र को दुर्वासा ऋषि ने शाप दिया कि देवता लक्ष्मी हीन हो जाये, जिसके परिणामस्वरूप देवता निस्तेज, सुख-वैभव से वंचित, धन तथा शक्ति हीन हो गए। दैत्य गुरु शुक्राचार्य के आदर्शों पर चल कर उनका शिष्य दैत्य राज बलि ने स्वर्ग पर अपना अधिकार कर लिया। समस्त देवता, सुख, वैभव, संपत्ति, समृद्धि से वंचित हो पृथ्वी पर छुप कर रहने लगे, उनका जीवन बड़ा ही कष्ट मय हो गया था। पुनः सुख, वैभव, साम्राज्य, सम्पन्नता की प्राप्ति हेतु भगवान् विष्णु के आदेशानुसार, देवताओं ने दैत्यों से संधि की तथा समुद्र का मंथन किया। जिससे १४ प्रकार के रत्न प्राप्त हुए, जिनमें देवी कमला भी थीं।

भगवान श्री हरि की नित्य शक्ति देवी कमला के प्रकट होने पर, बिजली के समान चमकीली छठा से दिशाएँ जगमगाने लगी, उनके सौन्दर्य, औदार्य, यौवन, रूप-रंग और महिमा से सभी को अपने ओर आकर्षित किया। देवता, असुर, मनुष्य सभी देवी कमला को लेने के लिये उत्साहित हुए, स्वयं इंद्र ने देवी के बैठने के लिये अपने दिव्य आसन प्रदान किया। श्रेष्ठ नदियों ने सोने के घड़े में भर भर कर पवित्र जल से देवी का अभिषेक किया, पृथ्वी ने अभिषेक हेतु समस्त औषिधयां प्रदान की। गौओं ने पंचगव्य, वसंत ऋतु ने समस्त फूल-फल तथा ऋषियों ने विधि पूर्वक देवी का अभिषेक सम्पन्न किया। गन्धर्वों ने मंगल गान की, नर्तकियां नाच-नाच कर गाने लगी, बादल सदेह होकर मृदंग, डमरू, ढोल, नगारें, नरसिंगे, शंख, वेणु और वीणा बजाने लगे, तदनंतर देवी कमला हाथों पद्म (कमल) ले सिंहासन पर विराजमान हुई। दिग्गजों ने जल से भरे कलशों से उन्हें स्नान कराया, ब्राह्मणों ने वेद मन्त्रों का पाठ किया। समुद्र ने देवी को पीला रेशमी वस्त्र धारण करने हेतु प्रदान किया, वरुण ने वैजन्ती माला प्रदान की जिसकी मधुमय सुगंध से भौरें मतवाले हो रहे थे। विश्वकर्मा ने भांति-भांति के आभूषण, देवी सरस्वती ने मोतियों का हार, ब्रह्मा जी ने कामल और नागों ने दो कुंडल देवी कमला को प्रदान किये। इसके पश्चात् देवी कमला ने अपने हाथों से कमल की माला लेकर उसे सर्व गुणसम्पन्न, पुरुषोत्तम श्री हरि विष्णु के गले में डाल उन्हें अपना आश्रय बनाया, वर रूप में चयन किया।

लक्ष्मी जी को सभी (दानव, मनुष्य, देवता) प्राप्त करना चाहते थे, परन्तु लक्ष्मी जी ने श्री विष्णु का ही वर रूप में चयन किया, जिसके निम्न कारण थे। देवी कमला ने मन ही मन विचार किया, कोई महान तपस्वी थे परन्तु उनका क्रोध पर विजय नहीं था, कोई ज्ञानी था तो उसमें अनासक्त नहीं थीं, कोई बड़े महत्वशाली थे, परन्तु वे काम को नहीं जीत पाए थे। किसी के पास एश्वर्य बहुत हैं परन्तु, उन्हें दूसरों का सहारा लेना पड़ता हैं, कोई धर्मचारी तो हैं पर अन्य प्राणियों के प्रति प्रेम का बर्ताव नहीं हैं। किसी में त्याग तो हैं, परन्तु केवल मात्र त्याग ही मुक्ति का कारण नहीं बन सकता, कोई वीर हैं परन्तु काल के पंजे में हैं, कुछ महात्माओं में विषयासक्त नहीं हैं, परन्तु वे निरंतर अद्वैत समाधी में लीन रहते हैं। बहुत से ऋषि-मुनि ऐसे हैं, जिनकी आयु बहुत अधिक हैं परन्तु उनका शील-मंगल देवी के योग्य नहीं था, किन्हीं में दोनों ही बातें हैं, परन्तु वे अमंगल वेश मैं रहते हैं, बचे एक केवल मात्र श्री विष्णु, उन्हीं में सर्व मंगलमय गुण सर्वदा निवास करते हैं तथा स्थिर रहते हैं। इस प्रकार सोच विचार कर श्री कमला जी ने चिर अभीष्ट भगवान् को ही वर के रूप में, चयनित किया, उनमें सर्वदा सद्गुण निवास करते हैं।
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