Tuesday 16 April 2019

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॥ नवग्रह मन्त्र ॥ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ब्रह्मा मुरारिः त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमि-सुतो बुधश्च। गुरूश्च शुक्रः शनि राहु केतवेः सर्वे ग्रहाः शान्तिः करा भवन्तु॥ ॐ सुर्यः शौर्यमथेन्दुर उच्च पदवीं सं मंगलः सद् बुद्धिं च बुधो गुरूश्च गुरूतां शुक्रः सुखं शं शनिः राहुः बाहुबलं करोतु सततं केतुः कुलस्यः उन्नतिं नित्यं प्रीतिकरा भवन्तु मम ते सर्वे अनुकूला ग्रहाः॥ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॥ नवग्रहस्तोत्रम् ॥ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ जपा कुसुम संकाशं काश्यपेयं महद्युतिम्। तमोऽरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ॥१॥ दधि शंख तुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवम्। नमामि शशिनं सोमं शम्भोः मुकुट भूषणम्॥२॥ धरणी गर्भ संभूतं विद्युत्कान्ति समप्रभम्। कुमारं शक्ति हस्तं च मंगलं प्रणमाम्यहम्॥३॥ प्रियंगु कलि काश्यामं रूपेणा प्रतिमं बुधम्। सौम्यं सौम्य गुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम्॥४॥ देवानां च ऋषीणां च गुरुं काञ्चन संनिभम्। बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्॥५॥ हिम कुन्द मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम्। सर्व शास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम्॥६॥ नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छाया मार्तण्ड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥७॥ अर्ध कायं महावीर्यं चन्द्र आदित्य विमर्दनम्। सिंहिका गर्भ संभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम्॥८॥ पलाश पुष्प संकाशं तारका ग्रह मस्तकम्। रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्॥९॥ इति व्यास मुखोद् गीतं यः पठेत् सुसमाहितः। दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्न शान्तिर भविष्यति॥१०॥ नर नारी नृपाणां च भवेद् दुःस्वप्न नाशनम्। ऐश्वर्यं अतुलं तेषाम् आरोग्यं पुष्टि वर्धनम्॥११॥ गृह नक्षत्रजाः पीडाः तस्कराग्नि समुद् भवाः। ताः सर्वाः प्रशमं यान्ति व्यासो ब्रू तेन संशयः॥१२॥ ॐ ॐ ॐ ॥ इति श्रीव्यास विरचितं नवग्रहस्तोत्रं संपूर्णम् ॥ ॐ ॐ ॐ

.कमलगट्टे की माला:- धन प्राप्ति के लिए किए जाने वाले तंत्र प्रयोगों में कई वस्तु ओं का उपयोग किया जाता है, कमल गट्टा भी उन्हीं में से एक है। शत्रुजन्य कष्टों से बचाव हेतु मंत्र जप भी कमल गट्टे की माला से किया जाता है। लक्ष्मीजी के लिए मंत्रोच्चार द्वारा किये जाने वाले हवन में कमलगट्टे के बीजों से आहुति दी जाती है कमल गट्टा कमल के पौधे में से निकलते हैं व काले रंग के होते हैं। यह बाजार में आसानी से मिल जाते हैं। मंत्र जप के लिए इसकी माला भी बनती है।मंत्र जप में जप माला देव शक्ति स्वरूप व जाग्रत मानी जाती है। जिसके लिए अलग-अलग मंत्र जप माला अलग-अलग देव कृपा के लिए प्रभावी मानी गई है। लक्ष्मी जी के मंत्रों एवं धनदायक मंत्रों के जप कमलगट्टे की माला से करते हैं। ऐश्वर्य की देवी महालक्ष्मी की पूजा न केवल धनवान व समृद्ध बनाती है, बल्कि यश, प्रतिष्ठा के साथ शांति, पवित्रता, शक्ति व बुद्धि भी देने वाली मानी गई है।शुक्रवार को देवी लक्ष्मी की सुबह और शाम दोनों ही वक्त स्नान के बाद यथासंभव लाल वस्त्र पहन लाल पूजा सामग्रियों से पूजा करें। देवी की चांदी या किस भी धातु की बनी प्रतिमा को दूध, दही, घी, शकर और शहद से बने पंचामृत व पवित्र जल से स्नान कराने के बाद लाल चंदन, कुंकुम, लाल अक्षत, कमल गुलाब या गुड़हल का फूल चढ़ाकर घर में बनी दूध की खीर का भोग लगाएं। पूजा के बाद नीचे लिखे लक्ष्मी मंत्रों में किसी भी एक या दोनों का लाल आसन पर कमलगट्टे की माला से कम से कम 108 बार जप करें- ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं ॐ ह्रीं श्रीं सौं: श्रीं ह्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नम: ॐ महालक्ष्म्यै नमः - पूजा व मंत्र जप के बाद माता लक्ष्मी की आरती करें, प्रसाद ग्रहण करें व माता को चढ़ाया थोड़ा-सा कुंकुम कागज में बांध तिजोरी मे रखें। उपाय 1- यदि रोज 108 कमल के बीजों से आहुति दें और ऐसा 21 दिन तक करें तो आने वाली कई पीढिय़ां सम्पन्न बनी रहती हैं। 2- यदि दुकान में कमल गट्टे की माला बिछा कर उसके ऊपर लक्ष्मी का चित्र स्थापित किया जाए व्यापार निरंतर उन्नति की ओर अग्रसर होता है। 3- कमल गट्टे की माला लक्ष्मी के चित्र पर पहना कर किसी नदी या तालाब में विसर्जित करें तो उसके घर में निरंतर लक्ष्मी का आगमन बना रहता है। 4- जो व्यक्ति प्रत्येक बुधवार को 108 कमलगटटे के बीज लेकर घी के साथ एक-एक करके अग्नि में 108 आहुतियां देता है। उसके घर से दरिद्रता हमेशा के लिए चली जाती है। 5- जो व्यक्ति पूजा-पाठ के दौरान की माला अपने गले में धारण करता है उस पर लक्ष्मी की कृपा सदा बनी रहती है। 6- शुक्रवार, दीपावली, नवरात्रि या किसी देवी उपासना के विशेष दिन कमलगट्टे की माला से अलग-अलग रूपों में लक्ष्मी मंत्र जप देवी लक्ष्मी की कृपा से धन, ऐश्वर्य व यश पाने, कामनासिद्धि व मंत्र सिद्धि का अचूक उपाय माना गया है।

दूकान की बिक्री अधिक हो---- १॰ “श्री शुक्ले महा-शुक्ले कमल-दल निवासे श्री महालक्ष्मी नमो नमः। लक्ष्मी माई, सत्त की सवाई। आओ, चेतो, करो भलाई। ना करो, तो सात समुद्रों की दुहाई। ऋद्धि-सिद्धि खावोगी, तो नौ नाथ चौरासी सिद्धों की दुहाई।” विधि- घर से नहा-धोकर दुकान पर जाकर अगर-बत्ती जलाकर उसी से लक्ष्मी जी के चित्र की आरती करके, गद्दी पर बैठकर, १ माला उक्त मन्त्र की जपकर दुकान का लेन-देन प्रारम्भ करें। आशातीत लाभ होगा। २॰ “भँवरवीर, तू चेला मेरा। खोल दुकान कहा कर मेरा। उठे जो डण्डी बिके जो माल, भँवरवीर सोखे नहिं जाए।।” विधि- १॰ किसीशुभ रविवार से उक्त मन्त्र की १० माला प्रतिदिन के नियम से दस दिनों में १०० माला जप कर लें। केवल रविवार के ही दिन इस मन्त्र का प्रयोग किया जाता है। प्रातः स्नान करके दुकान पर जाएँ। एक हाथ में थोड़े-से काले उड़द ले लें। फिर ११ बार मन्त्र पढ़कर, उन पर फूँक मारकर दुकान में चारों ओर बिखेर दें। सोमवार को प्रातः उन उड़दों को समेट कर किसी चौराहे पर, बिना किसी के टोके, डाल आएँ। इस प्रकार चार रविवार तक लगातार, बिना नागा किए, यह प्रयोग करें। २॰ इसके साथ यन्त्र का भी निर्माण किया जाता है। इसे लाल स्याही अथवा लाल चन्दन से लिखना है। बीच में सम्बन्धित व्यक्ति का नाम लिखें। तिल्ली के तेल में बत्ती बनाकर दीपक जलाए। १०८ बार मन्त्र जपने तक यह दीपक जलता रहे। रविवार के दिन काले उड़द के दानों पर सिन्दूर लगाकर उक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित करे। फिर उन्हें दूकान में बिखेर दें।..................

सर्व-कामना-सिद्धि स्तोत्र---- श्री हिरण्य-मयी हस्ति-वाहिनी, सम्पत्ति-शक्ति-दायिनी। मोक्ष-मुक्ति-प्रदायिनी, सद्-बुद्धि-शक्ति-दात्रिणी।।१ सन्तति-सम्वृद्धि-दायिनी, शुभ-शिष्य-वृन्द-प्रदायिनी। नव-रत्ना नारायणी, भगवती भद्र-कारिणी।।२ धर्म-न्याय-नीतिदा, विद्या-कला-कौशल्यदा। प्रेम-भक्ति-वर-सेवा-प्रदा, राज-द्वार-यश-विजयदा।।३ धन-द्रव्य-अन्न-वस्त्रदा, प्रकृति पद्मा कीर्तिदा। सुख-भोग-वैभव-शान्तिदा, साहित्य-सौरभ-दायिका।।४ वंश-वेलि-वृद्धिका, कुल-कुटुम्ब-पौरुष-प्रचारिका। स्व-ज्ञाति-प्रतिष्ठा-प्रसारिका, स्व-जाति-प्रसिद्धि-प्राप्तिका।।५ भव्य-भाग्योदय-कारिका, रम्य-देशोदय-उद्भाषिका। सर्व-कार्य-सिद्धि-कारिका, भूत-प्रेत-बाधा-नाशिका। अनाथ-अधमोद्धारिका, पतित-पावन-कारिका। मन-वाञ्छित॒फल-दायिका, सर्व-नर-नारी-मोहनेच्छा-पूर्णिका।।७ साधन-ज्ञान-संरक्षिका, मुमुक्षु-भाव-समर्थिका। जिज्ञासु-जन-ज्योतिर्धरा, सुपात्र-मान-सम्वर्द्धिका।।८ अक्षर-ज्ञान-सङ्गतिका, स्वात्म-ज्ञान-सन्तुष्टिका। पुरुषार्थ-प्रताप-अर्पिता, पराक्रम-प्रभाव-समर्पिता।।९ स्वावलम्बन-वृत्ति-वृद्धिका, स्वाश्रय-प्रवृत्ति-पुष्टिका। प्रति-स्पर्द्धी-शत्रु-नाशिका, सर्व-ऐक्य-मार्ग-प्रकाशिका।।१० जाज्वल्य-जीवन-ज्योतिदा, षड्-रिपु-दल-संहारिका। भव-सिन्धु-भय-विदारिका, संसार-नाव-सुकानिका।।११ चौर-नाम-स्थान-दर्शिका, रोग-औषधी-प्रदर्शिका। इच्छित-वस्तु-प्राप्तिका, उर-अभिलाषा-पूर्णिका।।१२ श्री देवी मङ्गला, गुरु-देव-शाप-निर्मूलिका। आद्य-शक्ति इन्दिरा, ऋद्धि-सिद्धिदा रमा।।१३ सिन्धु-सुता विष्णु-प्रिया, पूर्व-जन्म-पाप-विमोचना। दुःख-सैन्य-विघ्न-विमोचना, नव-ग्रह-दोष-निवारणा।।१४ ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं श्रीसर्व-कामना-सिद्धि महा-यन्त्र-देवता-स्वरुपिणी श्रीमहा-माया महा-देवी महा-शक्ति महालक्ष्म्ये नमो नमः। ॐ ह्रीं श्रीपर-ब्रह्म परमेश्वरी। भाग्य-विधाता भाग्योदय-कर्त्ता भाग्य-लेखा भगवती भाग्येश्वरी ॐ ह्रीं। कुतूहल-दर्शक, पूर्व-जन्म-दर्शक, भूत-वर्तमान-भविष्य-दर्शक, पुनर्जन्म-दर्शक, त्रिकाल-ज्ञान-प्रदर्शक, दैवी-ज्योतिष-महा-विद्या-भाषिणी त्रिपुरेश्वरी। अद्भुत, अपुर्व, अलौकिक, अनुपम, अद्वितीय, सामुद्रिक-विज्ञान-रहस्य-रागिनी, श्री-सिद्धि-दायिनी। सर्वोपरि सर्व-कौतुकानि दर्शय-दर्शय, हृदयेच्छित सर्व-इच्छा पूरय-पूरय ॐ स्वाहा। ॐ नमो नारायणी नव-दुर्गेश्वरी। कमला, कमल-शायिनी, कर्ण-स्वर-दायिनी, कर्णेश्वरी, अगम्य-अदृश्य-अगोचर-अकल्प्य-अमोघ-अधारे, सत्य-वादिनी, आकर्षण-मुखी, अवनी-आकर्षिणी, मोहन-मुखी, महि-मोहिनी, वश्य-मुखी, विश्व-वशीकरणी, राज-मुखी, जग-जादूगरणी, सर्व-नर-नारी-मोहन-वश्य-कारिणी, मम करणे अवतर अवतर, नग्न-सत्य कथय-कथय। अतीत अनाम वर्तनम्। मातृ मम नयने दर्शन। ॐ नमो श्रीकर्णेश्वरी देवी सुरा शक्ति-दायिनी। मम सर्वेप्सित-सर्व-कार्य-सिद्धि कुरु-कुरु स्वाहा। ॐ श्रीं ऐं ह्रीं क्लीं श्रीमहा-माया महा-शक्ति महा-लक्ष्मी महा-देव्यै विच्चे-विच्चे श्रीमहा-देवी महा-लक्ष्मी महा-माया महा-शक्त्यै क्लीं ह्रीं ऐं श्रीं ॐ। ॐ श्रीपारिजात-पुष्प-गुच्छ-धरिण्यै नमः। ॐ श्री ऐरावत-हस्ति-वाहिन्यै नमः। ॐ श्री कल्प-वृक्ष-फल-भक्षिण्यै नमः। ॐ श्री काम-दुर्गा पयः-पान-कारिण्यै नमः। ॐ श्री नन्दन-वन-विलासिन्यै नमः। ॐ श्री सुर-गंगा-जल-विहारिण्यै नमः। ॐ श्री मन्दार-सुमन-हार-शोभिन्यै नमः। ॐ श्री देवराज-हंस-लालिन्यै नमः। ॐ श्री अष्ट-दल-कमल-यन्त्र-रुपिण्यै नमः। ॐ श्री वसन्त-विहारिण्यै नमः। ॐ श्री सुमन-सरोज-निवासिन्यै नमः। ॐ श्री कुसुम-कुञ्ज-भोगिन्यै नमः। ॐ श्री पुष्प-पुञ्ज-वासिन्यै नमः। ॐ श्री रति-रुप-गर्व-गञ्हनायै नमः। ॐ श्री त्रिलोक-पालिन्यै नमः। ॐ श्री स्वर्ग-मृत्यु-पाताल-भूमि-राज-कर्त्र्यै नमः। श्री लक्ष्मी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीशक्ति-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीदेवी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री रसेश्वरी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री ऋद्धि-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री सिद्धि-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री कीर्तिदा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीप्रीतिदा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीइन्दिरा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्री कमला-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीहिरण्य-वर्णा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीरत्न-गर्भा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसुवर्ण-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसुप्रभा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपङ्कनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीराधिका-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपद्म-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीरमा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीलज्जा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीजया-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपोषिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसरोजिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीहस्तिवाहिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीगरुड़-वाहिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसिंहासन-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीकमलासन-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीरुष्टिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपुष्टिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीतुष्टिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीवृद्धिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपालिनी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीतोषिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीरक्षिणी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीवैष्णवी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीमानवेष्टाभ्यो नमः। श्रीसुरेष्टाभ्यो नमः। श्रीकुबेराष्टाभ्यो नमः। श्रीत्रिलोकीष्टाभ्यो नमः। श्रीमोक्ष-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीभुक्ति-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीकल्याण-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीनवार्ण-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीअक्षस्थान-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीसुर-स्थान-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीप्रज्ञावती-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीपद्मावती-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीशंख-चक्र-गदा-पद्म-धरा-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीमहा-लक्ष्मी-यन्त्रेभ्यो नमः। श्रीलक्ष्मी-नारायण-यन्त्रेभ्यो नमः। ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं श्रीमहा-माया-महा-देवी-महा-शक्ति-महा-लक्ष्मी-स्वरुपा-श्रीसर्व-कामना-सिद्धि महा-यन्त्र-देवताभ्यो नमः। ॐ विष्णु-पत्नीं, क्षमा-देवीं, माध्वीं च माधव-प्रिया। लक्ष्मी-प्रिय-सखीं देवीं, नमाम्यच्युत-वल्लभाम्। ॐ महा-लक्ष्मी च विद्महे विष्णु-पत्नि च धीमहि, तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्। मम सर्व-कार्य-सिद्धिं कुरु-कुरु स्वाहा। विधिः- १॰ उक्त सर्व-कामना-सिद्धी स्तोत्र का नित्य पाठ करने से सभी प्रकार की कामनाएँ पूर्ण होती है। २॰ इस स्तोत्र से ‘यन्त्र-पूजा’ भी होती हैः- ‘सर्वतोभद्र-यन्त्र’ तथा ‘सर्वारिष्ट-निवारक-यन्त्र’ में से किसी भी यन्त्र पर हो सकती है। ‘श्रीहिरण्यमयी’ से लेकर ‘नव-ग्रह-दोष-निवारण’- १४ श्लोक से इष्ट का आवाहन और स्तुति है। बाद में “ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं” सर्व कामना से पुष्प समर्पित कर धऽयान करे और यह भावना रखे कि- ‘मम सर्वेप्सितं सर्व-कार्य-सिद्धिं कुरु कुरु स्वाहा।’ फिर अनुलोम-विलोम क्रम से मन्त्र का जप करे-”ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीमहा-माया-महा-शक्त्यै क्लीं ह्रीं ऐं श्रीं ॐ।” स्वेच्छानुसार जप करे। बाद में “ॐ श्रीपारिजात-पुष्प-गुच्छ-धरिण्यै नमः” आदि १६ मन्त्रों से यन्त्र में, यदि षोडश-पत्र हो, तो उनके ऊपर, अन्यथा यन्त्र में पूर्वादि-क्रम से पुष्पाञ्जलि प्रदान करे। तदनन्तर ‘श्रीलक्ष्मी-तम्त्रेभ्यो नमः’ और ‘श्री सर्व-कामना-सिद्धि-महा-यन्त्र-देवताभ्यो नमः’ से अष्टगन्ध या जो सामग्री मिले, उससे ‘यन्त्र’ में पूजा करे। अन्त में ‘लक्ष्मी-गायत्री’ पढ़करपुष्पाजलि देकर विसर्जन करे।................................

श्रीदत्तमालामंत्र अथ दत्तमाला प्रारभ्यते . श्रीगणेशाय नमः ॥ पार्वत्युवाच - मालामंत्रं मम ब्रहि प्रिया यस्मादहं तव ॥ ईश्वर उवाच - श्रृणु देवि प्रवक्ष्यामि मालामंत्रमनुत्तमम ‍ ॥ ॥ मूलपाठ ॥ ॐ नमो भगवते दत्तात्रेयाय, स्मरणमात्रसन्तुष्टाय, महाभयनिवारणाय महाज्ञानप्रदाय, चिदानन्दात्मने बालोन्मत्तपिशाचवेषाय, महायोगिने अवधूताय, अनसूयानन्दवर्धनाय अत्रिपुत्राय, सर्वकामप्रदाय ॐ भवबन्धविमोचनाय, आं असाध्यसाधनाय, ऱ्हीं सर्वविभूतिदाय, क्रौं असाध्याकर्षणाय, ऐं वाक्प्रदाय, क्लीं जगत्रयवशीकरणाय, सौः सर्वमनःक्षोभणाय, श्रीं महासंपत्प्रदाय, ग्लौं भूमंडलाधिपत्यप्रदाय, द्रां चिरंजीविने, वषट्वशीकुरु वशीकुरु, वौषट् आकर्षय आकर्षय, हुं विद्वेषय विद्वेषय, फट् उच्चाटय उच्चाटय, ठः ठः स्तंभय स्तंभय, खें खें मारय मारय, नमः संपन्नय संपन्नय, स्वाहा पोषय पोषय, परमन्त्रपरयन्त्रपरतन्त्राणि छिंधि छिंधि, ग्रहान्निवारय निवारय, व्याधीन् विनाशय विनाशय, दुःखं हर हर, दारिद्र्यं विद्रावय विद्रावय, देहं पोषय पोषय, चित्तं तोषय तोषय, सर्वमन्त्रस्वरूपाय, सर्वयन्त्रस्वरूपाय, सर्वतन्त्रस्वरूपाय, सर्वपल्लवस्वरूपाय, ॐ नमो महासिद्धाय स्वाहा || ॥ चतुःशतजपात्सिद्धिः ॥ इति श्रीवड्डोमरेश्वरविरचिता दत्तमाला समाप्ता ॥ *400 बार जाप करनेसे यह मालामंत्र सिद्ध होता है*

1 महाचमत्कारी मंत्र: टल जाती है मौत और गरीब भी हो जाते हैं मालामाल हमारे जीवन की कैसी भी परेशानी हो, कैसी भी बीमारी हो, कैसा भी कार्य हो, शास्त्रों में सभी के लिए चमत्कारी उपाय बताए गए हैं। जानिए महाचमत्कारी उपाय, जिससे मृत्यु को भी टाला जा सकता है, भयंकर बीमारी से भी निजात पाई जा सकती है, कोई दरिद्र भी मालामाल बन सकता है... शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव की इच्छा मात्र से ही इस सृष्टि का रचना हुई है। शिवपुराण में महादेव का एक ऐसा चमत्कारी मंत्र बताया गया है जिसके जपने मात्र से ही मृत्यु के करीब इंसान पुन: स्वस्थ हो सकता है। इस मंत्र से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है। इसके जप के लिए सभी नियमों और विधि-विधान का पालन किया जाना आवश्यक होता है। शिवपुराण में बताया गया है कि भगवान शिव को प्रसन्न करने का सर्वश्रेष्ठ मंत्र है महामृत्युंजय मंत्र। इस मंत्र के मात्र जप से ही सभी बीमारियों और कष्टों का निवारण हो जाता है। यदि कोई व्यक्ति मृत्यु के करीब है और इसके नाम से महामृत्युंजय मंत्र का जप कराया जाए तो वह पूर्ण स्वस्थ हो सकता है। ये है महामृत्युंजय मंत्र: ऊँ त्र्यम्बकं यहामहे सुगन्धिं पुष्टिवद्र्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मुत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। यदि कोई व्यक्ति भविष्य में होने वाली किसी विपदा से बचना चाहता है, किसी ज्योतिषीय दोष का उपचार कराना चाहता है, पैसों की तंगी का निवारण करना चाहता है, लंबी आयु जीना चाहता है तो उसे महामृत्युंजय मंत्र का जप करना चाहिए या किसी ब्राह्मण से मंत्र जप करवाना चाहिए।

महामृत्युंजय मंत्र सम्पुट युक्त बनाने के लिए इस प्रकार उच्चारण किया जाता है- ऊँ हौं जूं स: भूर्भव: स्व: ऊँ त्र्यम्बकं यहामहे सुगन्धिं पुष्टिवद्र्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मुत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। ऊँ भूर्भव: स्व स: जूं हौं ऊँ।। इस प्रकार यह मंत्र और अधिक प्रभावशाली हो जाता है।

नागकेसर नागेश्वर को प्रचलित भाषा में ‘नागकेसर’ कहते हैं। काली मिर्च के समान गोल, गेरु के रंग का यह गोल फूल घुण्डीनुमा होता है। पंसारियों की दूकान से आसानी से प्राप्त हो जाने वाली नागकेसर शीतलचीनी (कबाबचीनी) के आकार से मिलता-जुलता फूल होता है। यही यहाँ पर प्रयोजनीय माना गया है। १॰ किसी भी पूर्णिमा के दिन बुध की होरा में गोरोचन तथा नागकेसर खरीद कर ले आइए। बुध की होरा काल में ही कहीं से अशोक के वृक्ष का एक अखण्डित पत्ता तोड़कर लाइए। गोरोचन तथा नागकेसर को दही में घोलकर पत्ते पर एक स्वस्तिक चिह्न बनाएँ। जैसी भी श्रद्धाभाव से पत्ते पर बने स्वस्तिक की पूजा हो सके, करें। एक माह तक देवी-देवताओं को धूपबत्ती दिखलाने के साथ-साथ यह पत्ते को भी दिखाएँ। आगामी पूर्णिमा को बुध की होरा में यह प्रयोग पुनः दोहराएँ। अपने प्रयोग के लिये प्रत्येक पुर्णिमा को एक नया पत्ता तोड़कर लाना आवश्यक है। गोरोचन तथा नागकेसर एक बार ही बाजार से लेकर रख सकते हैं। पुराने पत्ते को प्रयोग के बाद कहीं भी घर से बाहर पवित्र स्थान में छोड़ दें। २॰ किसी शुभ-मुहूर्त्त में नागकेसर लाकर घर में पवित्र स्थान पर रखलें। सोमवार के दिन शिवजी की पूजा करें और प्रतिमा पर चन्दन-पुष्प के साथ नागकेसर भी अर्पित करें। पूजनोपरान्त किसी मिठाई का नैवेद्य शिवजी को अर्पण करने के बाद यथासम्भव मन्त्र का भी जाप करें ‘ॐ नमः शिवाय’। उपवास भी करें। इस प्रकार २१ सोमवारों तक नियमित साधना करें। वैसे नागकेसर तो शिव-प्रतिमा पर नित्य ही अर्पित करें, किन्तु सोमवार को उपवास रखते हुए विशेष रुप से साधना करें। अन्तिम अर्थात् २१वें सोमवार को पूजा के पश्चात् किसी सुहागिनी-सपुत्रा-ब्राह्मणी को निमन्त्रण देकर बुलाऐं और उसे भोजन, वस्त्र, दान-दक्षिणा देकर आदर-पूर्वक विदा करें। इक्कीस सोमवारों तक नागकेसर-तन्त्र द्वारा की गई यह शिवजी की पूजा साधक को दरिद्रता के पाश से मुक्त करके धन-सम्पन्न बना देती है। ३॰ पीत वस्त्र में नागकेसर, हल्दी, सुपारी, एक सिक्का, ताँबे का टुकड़ा, चावल पोटली बना लें। इस पोटली को शिवजी के सम्मुख रखकर, धूप-दीप से पूजन करके सिद्ध कर लें फिर आलमारी, तिजोरी, भण्डार में कहीं भी रख दें। यह धनदायक प्रयोग है। इसके अतिरिक्त “नागकेसर” को प्रत्येक प्रयोग में “ॐ नमः शिवाय” से अभिमन्त्रित करना चाहिए।

क्या आपको लगता है कि किसी ने आपके घर पर टोना-टोटका किया है जिसके कारण आपके परिवार पर इसका अशुभ प्रभाव पड़ रहा है तो घबराईए बिल्कुल मत क्योंकि यहां हम आपको बता रहे हैं टोने-टोटको से बचने के साधारण व अचूक उपाय। इन उपायों को करने से आपके घर व परिवार पर किसी टोने-टोटके का प्रभाव नहीं पड़ेगा। यह उपाय इस प्रकार हैं- उपाय---- - अपने घर के मुख्य दरवाजे पर भगवान श्रीगणेश की मूर्ति स्थापित करें और सुबह उठकर उन्हें प्रणाम करें। इसके बाद अपने द्वार, देहली व सीढ़ी आदि पर पानी का छिड़काव करें। ऐसा करने से टोने-टोटके का प्रभाव नहीं पड़ता। - नीम, बबूल या आम में से किसी पेड़ की टहनी पत्तियों सहित मुख्य दरवाजे पर लटकाएं। - शनिवार के दिन सात हरी मिर्च के बीच एक नींबू काले धागे में पिरोकर मुख्य द्वार पर लटकाएं। इससे भी बुरी नजर नहीं लगेगी। - सप्ताह के किसी एक दिन घर की साफ-सफाई करने के बाद एक बाल्टी पानी में थोड़ी शक्कर और दूध डालकर कुश से उसका छिड़काव पूरे घर में करें। आखिर में शेष पानी को दरवाजे के दोनों और थोड़ा-थोड़ा डाल दें। - अमावस के दिन एक ब्राह्मण को भोजन अवश्य कराएं। इससे आपके पितर प्रसन्न होंगे और आपके घर व परिवार को टोने-टोटको के अशुभ प्रभाव से बचाएंगे।

जानिए क्या अंतर है 'टोने' व 'टोटके' में? टोने-टोटके, यह शब्द हम कई बार सुनते हैं। सुनने में यह शब्द थोड़े अजीब जरुर लगते हैं लेकिन यह तंत्र शास्त्र के एक सिक्के के दो पहलू हैं बस इनकी क्रियाओं में थोड़ा अंतर है। साधारण भाषा में कहें तो दैनिक जीवन में किए जाने वाले छोटे-छोटे उपाय टोटका कहलाते हंै जबकि टोने विशेषत: समय पडऩे पर ही प्रयोग में लाए जाते हैं। वह किसी विशेष कार्य सिद्धि के लिए किए जाते हैं। जानते हैं इनके बीच क्या अंतर है- टोटका----- जब हम किसी यात्रा पर जा रहे हो और अचानक कोई छींक दे तो हम थोड़ी देर रुक जाते हैं। ऐसे ही जब बिल्ली रास्ता काट जाती है तो हम थोड़ी देर रुक कर चलते हैं या रास्ता बदल लेते हैं। यात्रा पर किसी विशेष कार्य पर जाने से पहले पानी पीना या दही का सेवन करना, यह सब टोटका कहलाता है। टोटके साधारण प्रभावशाली होते हैं व इनके निराकरण भी साधारण ही होते हैं। टोना----- विशेष कार्य सिद्धि के लिए हनुमान चालीसा, गायत्री मंत्र या किसी अन्य मंत्र का जप विधि-विधान से जप करना टोना कहलाता है। किसी यंत्र अथवा वस्तु को अभिमंत्रित करके अपने पास रखना भी टोना का ही एक रूप है। टोना टोटके का ही जटिल रूप है जो किसी विशेष कार्य की सफलता के लिए पूरे विधि-विधान से किया जाता है। टोना के लिए समय, मुहूर्त, स्थान आदि सब कुछ नियत होता है। जब टोटके करें तो इन बातों का भी ध्यान रखें--- तंत्र शास्त्र में कई प्रकार के टोटके किए जाते हैं। सभी का उद्देश्य अलग-अलग होता है। उद्देश्य के अनुसार ही उन टोटकों को करने के लिए शुभ तिथि व महीना निश्चित है। यदि इस दौरान वह टोटके किए जाए तो कई गुना अधिक फल देते हैं। नीचे टोटकों से संबंधित कुछ साधारण दिशा-निर्देश दिए गए हैं। टोटके करते समय इनका ध्यान रखें- दिशा-निर्देश---- - सम्मोहन सिद्धि, देव कृपा प्राप्ति अथवा अन्य शुभ एवं सात्विक कार्यों की सिद्धि के लिए पूर्व दिशा की ओर मुख करके टोटके किए जाते हैं। - मान-सम्मान, प्रतिष्ठा व लक्ष्मी प्राप्ति के लिए किए जाने वाले टोटकों के लिए पश्चिम दिशा की ओर मुख करके बैठना शुभ होता है। - उत्तर दिशा की ओर मुख करके उन टोटकों को किया जाता है जिनका उद्देश्य रोगों की चिकित्सा, मानसिक शांति एवं आरोग्य प्राप्ति होता है। - रोग मुक्ति के लिए किए जाने वाले टोटकों के लिए मंगलवार एवं श्रावण मास उत्तम समय है। - मां सरस्वती की प्रसन्नता व शिक्षा में सफलता के लिए बुधवार एवं गुरुवार तथा माघ, फाल्गुन और चैत्र मास में टोटका करना चाहिए। - संतान और वैभव पाने के लिए गुरुवार तथा आश्विन, कार्तिक एवं मार्गशीर्ष मास में टोटकों का प्रयोग करना चाहिए।

सभी चाहते हैं कि उसके जीवन में खुशहाली रहे और सुख-शांति बनी रहे पर हर व्यक्ति के साथ ऐसा नहीं होता। जीवन में सुख और शांति का बना रहना काफी मुश्किल होता है। ऐसे समय में उसे अपना जीवन नरक लगने लगता है। यदि आपके साथ भी यही समस्या है तो आप नीचे लिखे साधारण उपायों को अपनाकर अपने जीवन को खुशहाल बना सकते हैं। यह उपाय इस प्रकार हैं- - सुबह घर से काम के लिए निकलने से पहले नियमित रूप से गाय को रोटी दें। - एक पात्र में जल लेकर उसमें कुंकुम डालकर बरगद के वृक्ष पर नियमित रूप से चढ़ाएं। - सुबह घर से निकलने से पहले घर के सभी सदस्य अपने माथे पर चन्दन तिलक लगाएं। - मछलियों की आटे की गोली बनाकर खिलाएं। - चींटियों को खोपरे व शकर का बूरा मिलाकर खिलाएं। - शुद्ध कस्तूरी को चमकीले पीले कपड़े में लपेटकर अपनी तिजोरी में रखें। इन उपायों को पूर्ण श्रद्धा के साथ करने से जीवन में समृद्धी व खुशहाली आने लगती है।

सर्वविघ्नहरण मंत्र ऊँ नम: शान्ते प्रशान्ते ऊँ ह्यीं ह्रां सर्व क्रोध प्रशमनी स्वाहा। इस मंत्र को नियमपूर्वक प्रतिदिन प्रात:काल इक्कीस बार स्मरण करने के पश्चात मुख प्रक्षालन करने से तथा सायंकाल में पीपल के वृक्ष की जड़ में शर्बत चढ़ाकर धूप दीप देने से घर के सभी लोग शांतमय निर्विघ्न जीवन व्यतीत करते हैं। इसका इतना प्रभाव होता है कि पालतू जानवर भी बाधा रहित जीवन व्यतीत करता है।

हर मनुष्य की कुछ मनोकामनाएं होती है। कुछ लोग इन मनोकामनाओं को बता देते हैं तो कुछ नहीं बताते। चाहते सभी हैं कि किसी भी तरह उनकी मनोकामना पूरी हो जाए। लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। यदि आप चाहते हैं कि आपकी सोची हर मुराद पूरी हो जाए तो नीचे लिखे प्रयोग करें। इन टोटकों को करने से आपकी हर मनोकामना पूरी हो जाएगी। उपाय---- - तुलसी के पौधे को प्रतिदिन जल चढ़ाएं तथा गाय के घी का दीपक लगाएं। - रविवार को पुष्य नक्षत्र में श्वेत आक की जड़ लाकर उससे श्रीगणेश की प्रतिमा बनाएं फिर उन्हें खीर का भोग लगाएं। लाल कनेर के फूल तथा चंदन आदि के उनकी पूजा करें। तत्पश्चात गणेशजी के बीज मंत्र (ऊँ गं) के अंत में नम: शब्द जोड़कर 108 बार जप करें। - सुबह गौरी-शंकर रुद्राक्ष शिवजी के मंदिर में चढ़ाएं। - सुबह बेल पत्र (बिल्ब) पर सफेद चंदन की बिंदी लगाकर मनोरथ बोलकर शिवलिंग पर अर्पित करें। - बड़ के पत्ते पर मनोकामना लिखकर बहते जल में प्रवाहित करने से भी मनोरथ पूर्ति होती है। मनोकामना किसी भी भाषा में लिख सकते हैं। - नए सूती लाल कपड़े में जटावाला नारियल बांधकर बहते जल में प्रवाहित करने से भी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। इन प्रयोगों को करने से आपकी सभी मनोकामनाएं शीघ्र ही पूरी हो जाएंगी।

ऋण – मुक्ति - मन्त्र आज के युग में जब सभी व्यक्ति भोग – विलास और ऐश्वर्ये के पीछे भाग रहे हैं तो उस ऐश्वेर्ये के लिए पैसे चाहिए और पैसे या कर्ज बैंक दे देता है। परन्तु वह ऋण चुकाना व्यक्ति के लिए हिमालय से भी बड़ा हो जाता है और ऋण है की सुरसा के मुख की तरह बड़ता ही चला जाता है यदि आप ऋण से परेशान हैं तो यह भैरव मंत्र कीजिये और अपने ऋण से मुक्त हो जाइये। विधि :- शुक्ल पक्ष के रविवार को जब पुष्य या हस्त नक्षत्र हो उस दिन से भैरव मन्त्र का जाप प्रारभं करें और प्रतिदिन १२ माला जो १०८ मनकों की हो २१ दिन तक लगातार करें। स्मरण रहे माला जिस समय पर शुरू करें प्रतिदिन उसी समय पर करे नहीं तो फल की प्राप्ति नहीं होती है किसी भी प्रकार की अशुद्धि नहीं होनी चाहिए। प्रत्येक रविवार और मंगलवार को छोटी-२ कन्याओं को मीठा भोजन कराये। अति -शीघ्र ऋण से मुक्ति मिलेगी और व्यापार में भी वृद्धि होगी। मंत्र – ” ॐ ऐं क्लीं ह्रीं भम भैरवाय मम ऋणविमोचनाय मह्यं महाधनप्रदाय क्लीं स्वाहा ।

विदेश यात्रा में सहायक अखंड लक्ष्मी साधना --- अखंड लक्ष्मी साधना प्रयोग हर प्रकार की सफलता, उन्नति, भाग्योदय एवं विशेष रूप से विदेश यात्रा जैसी मनोकामना पूर्ति के लिए किया जाता है। यूँ तो इस साधना को नवरात्रि के आरंभ से दीपावली तक किया जाता है लेकिन प्रस्तुत प्रयोग मात्र तीन दिन का है। विधि : ---- इसे किसी भी बुधवार को प्रारंभ करें। प्रा‍त:काल स्नानादि से शुद्ध होकर पूर्व दिशा में किसी पात्र में अखंड लक्ष्मी यंत्र रख दें। यंत्र की भी जल-दूध से शुद्धि करें। उस पर केसर का तिलक करें। तत्पश्चात् स्फटिक की माला से निम्न मंत्र का जाप करें। इस मंत्र की प्रतिदिन 11 मालाएँ जपना अनिवार्य है। तीन दिन तक 11 मालाएँ फेरने से मंत्र और यंत्र दोनों सिद्ध हो जाएँगे। इस यंत्र को किसी स्वच्छ स्थान पर या तिजोरी में रखें। मंत्र : ओम् ह्रीं अष्ट लक्ष्म्यै नम:।।

निम मंत्र भी आर्थिक उन्नति के लिए अनुकूल है, परन्तु इस मंत्र में साधक को नित्य एक माला फेरनी आवश्यक है और मात्र ग्यारह दिन में ही यह मंत्र सिद्ध किया जा सकता है। शास्त्रीय गं्रथों में इस मंत्र की विशेष प्र्रशंसा की गई है और कहा गया है कि लक्ष्मी जी के जितने भी मंत्र हैं उन सबमें इस मंत्र को श्रेष्ठ और अद्भुत तथा सफलतादायक बताया गया है। इस मंत्र का जप करने से पूर्व सामने थाली में चावल के ढेरी बनाकर उस पर कनकधारा यंत्र स्थापित करना चाहिए। यह यंत्र अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है और इस यंत्र से यह यंत्र ज्यादा संबंध रखता है, अत: इस यंत्र के सामने ही मंत्र का प्रयोग करने पर सफलता मिलती है। यह कनकधारा यंत्र धातु निर्मित मंत्रसिद्ध प्राण-प्रतिष्ठा युक्त होना चाहिए और अनुष्ठान करने से पूर्व ही इसे प्राप्त कर घर में स्थापित कर लेना चाहिए, स्थापित करने के लिए किसी विशेष विधि-विधान की आवश्यकता नहीं होती। प्रयोग समाप्त होने पर माला को नदी में प्रवाहित कर दें। ओं श्रीं ह्वीं क्लीं श्रीं लक्ष्मीरागच्छागच्छ मम मन्दिरे तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा ।। यह 22 अक्षरों का मंत्र लक्ष्मी का अत्यंत प्रिय मंत्र है और लक्ष्मी ने स्वयं ब्रrार्षि वशिष्ठ को यह बताया था और कहा था, कि यह मंत्र मुझे सभी दृष्टियों से प्रिय है और जो इस मंत्र का एक बार भी उच्चाारण कर लेता है, मैं उसके घर में स्थापित हो जाती हूँ।

मंत्र जाप करने के भी कुछ नियम होते हैं। यदि आप उन नियमों का पालन करेंगे तो आपके घर में न केवल सुख-शांति आयेगी, बल्कि आपका स्वास्थ्य भी अच्छाी रहेगा। 1-वाचिक जप वाणी द्वारा सस्वर मंत्र का उच्चारण करना वाचिक जप की श्रेणी में आता है। 2- उपांशु जप- अपने इष्ट भगवान के ध्यान में मन लगाकर, जुबान और ओंठों को कुछ कम्पित करते हुए, इस प्रकार मंत्र का उच्चारण करें कि केवल स्वंय को ही सुनाई पड़े। ऐसे मंत्रोचारण को उपांशु जप कहते है। 3- मानसिक जप- इस जप में किसी भी प्रकार के नियम की बाध्यता नहीं होती है। सोते समय, चलते समय, यात्रा में एंव शौच आदि करते वक्त भी ’ मंत्र’ जप का अभ्यास किया जाता है। मानसिक जप सभी दिशाओं एंव दशाओं में करने का प्रावधान है। इन नियमों का भी पालन करें 1- शरीर की शुद्धि आवश्यक है। अतः स्नान करके ही आसन ग्रहण करना चाहिए। साधना करने के लिए सफेद कपड़ों का प्रयोग करना सर्वथा उचित रहता है। 2- साधना के लिए कुश के आसन पर बैठना चाहिए क्योंकि कुश उष्मा का सुचालक होता है। और जिससे मंत्रोचार से उत्पन्न उर्जा हमारे शरीर में समाहित होती है। 3- मेरूदण्ड हमेशा सीधा रखना चाहिए, ताकि सुषुम्ना में प्राण का प्रवाह आसानी से हो सके। 4- साधारण जप में तुलसी की माला का प्रयोग करना चाहिए। कार्य सिद्ध की कामना में चन्दन या रूद्राक्ष की माला प्रयोग हितकर रहता है। 5- ब्रह्रममुहूर्त में उठकर ही साधना करना चाहिए क्योंकि प्रातः काल का समय शुद्ध वायु से परिपूर्ण होता है। साधना नियमित और निश्चित समय पर ही की जानी चाहिए। 6- अक्षत, अंगुलियों के पर्व, पुष्प आदि से मंत्र जप की संख्या नहीं गिननी चाहिए। 7- मंत्र शक्ति का अनुभव करने के लिए कम से कम एक माला नित्य जाप करना चाहिए। 8- मंत्र का जप प्रातः काल पूर्व दिशा की ओर मुख करके करना चाहिए एंव सांयकाल में पश्चिम दिशा की ओर मुख करके जप करना श्रेष्ठ माना गया है। सीताराम जय वीर हनुमान ओं रां रामाय नम: आप अपनी जन्म कुंडली के दोष निवारण हेतू सटीक उपाय और एवं मंत्र साधनाएं संबंधित जानकारी के लिए सम्पर्क करे। श्री राम ज्योतिष सदन भारतीय वैदिक ज्योतिष एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता दैवज्ञ पंडित आशु बहुगुणा मोबाइल नंबर 97 6092 4411 यही हमारा WhatsApp नंबर भी है। हमारी वैबसाईट है। www shriramjyotishsadan.com मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश

कौन सा यन्त्र किसके लिये प्रत्येक यन्त्र व्यक्ति के लिए उपयोगी एवं लाभदायक नहीं होते हैं। 1. कुबेर यन्त्र उन व्यक्तियों को कदापि धारण नहीं करना चाहिए। जिसका जन्म धनिष्ठा, अश्लेषा, अश्विनी एवं विशाखा नक्षत्र में हुआ हो तथा जिसके दाहिने हाथ की मध्यमा उंगली में अर्ध चाप बना हो। 2. लक्ष्मी यन्त्र रेवती, मूल, चित्रा, अनुराधा एवं शतभिषा इन पांच नक्षत्र वालों के लिए ही है। जिनके दाहिने हाथ की मध्यमा ऊँगली में चक्र रेखा पड़ी हो. ज्येष्ठा, मघा, हस्त एवं उत्तराषाढ़ा नक्षत्र वालो को कदापि यह यन्त्र धारण नहीं करना चाहिए. हानि एवं कष्ट होगा। 3. शाबर यन्त्र पूर्वाषाढ़ा, उत्तरभाद्रपद, स्वाति, श्रवण एवं भरणी नक्षत्र वाले व्यक्ति तथा जिसके दाहिने हाथ की किसी भी ऊँगली में गदा का निशान हो उन्हें नहीं धारण करना चाहिए। इनके लिए वैतालिक यन्त्र ही लाभ प्रद होगा। 4. कात्यायनी यन्त्र कृतिका, रोहिणी, मृग शिरा, एवं आर्द्रा नक्षत्र वाले तथा जिनके दाहिने हाथ की किसी भी ऊँगली में चक्र का निशान पडा हो वह धारण नहीं कर सकता। उनके लिए इस यन्त्र के स्थान पर भद्र यन्त्र उपयोगी होता है। 5. विचूलिका यन्त्र केवल रोहिणी, पुनर्वसु, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरभाद्र पद एवं जिनके दाहिने हाथ की किसी भी ऊँगली में शंख का निशान पडा हो वह धारण कर सकता है। इससे उन्हें बहुत ही लाभ होता है। 6. जिस व्यक्ति के दाहिने हाथ की एक उंगली में चक्र तथा दूसरी किसी भी ऊँगली में रेखाएं कटी हो उन्हें कोई भी यन्त्र धारण नहीं करना चाहिए. विशेष रूप से आर्द्रा, विशाखा, ज्येष्ठा एवं पुष्य नक्षत्र वाले व्यक्तियों को तो बिल्कुल ही नहीं धारण करना चाहिए। सीताराम जय वीर हनुमान ओं रां रामाय नम: आप अपनी जन्म कुंडली के दोष निवारण हेतू सटीक उपाय और एवं मंत्र साधनाएं संबंधित जानकारी के लिए सम्पर्क करे। श्री राम ज्योतिष सदन भारतीय वैदिक ज्योतिष एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता दैवज्ञ पंडित आशु बहुगुणा मोबाइल नंबर 97 6092 4411 यही हमारा WhatsApp नंबर भी है। हमारी वैबसाईट है। www shriramjyotishsadan.com मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश

यदि किसी को अपने आस-पास सर्पों का भय हो, तो इस प्रयोगों में से किसी एक अथवा सभी का उपयोग कर उक्त भय से मुक्त हो सकते हैं । *** निम्न मन्त्र का पाठ करें - “नर्मदायै नमो प्रातः, नर्मदायै नमो निशि । नमोऽस्तु ते नर्मदे ! तुभ्यं, त्राहि मां विष-सर्पतः ।। सर्पाय सर्प-भद्रं ते, दूरं गच्छ महा-विषम् । जनमेजय-यज्ञान्ते, आस्तिक्यं वन्दनं स्मर ।। आस्तिक्य-वचनं स्मृत्वा, यः सर्पो न निवर्तते । भिद्यते सप्तधा मूर्घ्नि, शिंश-वृक्ष-फलं यथा ।। यो जरुत्कारुण यातो, जरुत्-कन्या महा-यशाः । तस्य सर्पश्च भद्रं ते, दूरं गच्छ महा-विषम् ।। दोहाई राजा जनमेजय ! दोहाई आस्तीक मुनि की ! दोहाई जरुत्कार की ! ।” *** नीली सरसों हाथ में लेकर सरसों पर फूँक मारकर ३ बार हथेली पर ताली बजावे । ऐसे ही क्रिया करते हुए ७ बार सरसों घर में बिखेर दें ।

योगिनी तंत्र मे वर्णन है की कलयुग मे वैदिक मंत्र विष हीन सर्प के सामान हो जाएगा। ऐसा कलयुग में शुद्ध और अशुद्ध के बीच में कोई भेद भावः न रह जाने की वजह से होगा। कलयुग में लोग वेद में बताये गए नियमो का पालन नही करेंगे। इसलिए नियम और शुद्धि रहित वैदिक मंत्र का उच्चारण करने से कोई लाभ नही होगा। जो व्यक्ति वैदिक मंत्रो का कलयुग में उच्चारण करेगा उसकी व्यथा एक ऐसे प्यासे मनुष्य के सामान होगी जो गंगा नदी के समीप प्यासे होने पर कुआँ खोद कर अपनी प्यास बुझाने की कोशिश में अपना समय और उर्जा को व्यर्थ करता है। कलयुग में वैदिक मंत्रो का प्रभाव ना के बराबर रह जाएगा। और गृहस्त लोग जो वैसे ही बहुत कम नियमो को जानते हैं उनकी पूजा का फल उन्हे पूर्णतः नही मिल पायेगा। महादेव ने बताया की वैदिक मंत्रो का पूर्ण फल सतयुग, द्वापर तथा त्रेता युग में ही मिलेगा. तब माँ पार्वती ने महादेव से पुछा की कलयुग में मनुष्य अपने पापों का नाश कैसे करेंगे? और जो फल उन्हे पूजा अर्चना से मिलता है वह उन्हे कैसे मिलेगा? इस पर शिव जी ने कहा की कलयुग में तंत्र साधना ही सतयुग की वैदिक पूजा की तरह फल देगा। तंत्र में साधक को बंधन मुक्त कर दिया जाएगा। वह अपने तरीके से इश्वर को प्राप्त करने के लिए अनेको प्रकार के विज्ञानिक प्रयोग करेगा। परन्तु ऐसा करने के लिए साधक के अन्दर इश्वर को पाने का नशा और प्रयोगों से कुछ प्राप्त करने की तीव्र इच्षा होनी चाहिए। तंत्र के प्रायोगिक क्रियाओं को करने के लिए एक तांत्रिक अथवा साधक को सही मंत्र, तंत्र और यन्त्र का ज्ञान जरुरी है।

सात्विक रू प से करें तंत्र साधना तंत्र की अधिष्ठात्री देवी मां दुर्गा तीनों रूपों में- महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती रू प में वांछित परिणाम देती हैं। तंत्र की उत्पत्ति हमारे वेदों से हुई है- ऋग्वेद से शक्ति तंत्र, सामवेद से वैष्णव तंत्र व यजुर्वेद से शैव तंत्र। इन तीनों अंगों का कालांतर में [तीन अंग- सात्विक, राजसी व तामसिक] अलग-अलग रू पों में प्रादुर्भाव हुआ। कुल 64 प्रकार के तंत्र प्रचलन में आए हैं। इनकी अधिष्ठात्री देवियों को योगिनी के नाम से जाना गया है। शक्तिपीठ का आशय है- वह स्थल जहां पर शक्ति का निवास हो। इसलिए तंत्र साधना के लिए शक्तिपीठों से अच्छी जगह कोई हो ही नहीं सकती है। तंत्र शक्ति की साधना भी मूलत: तीन प्रकार से की जा सकती है- यंत्र साधना, प्रतिमा साधना व बीजाक्षरों के माघ्यम से मंत्र साधना, परंतु इन तीनों ही प्रकार के मूल अक्षर हैं- "ऎं ह्रीं क्लीं" ये तीन अक्षर तंत्र साधना की मेरू के समान हैं। तंत्र साधना एवं तांत्रिकों के बारे में छवि अच्छी नहीं मानी जाती है। इसका प्रमुख कारण है- तंत्र का मूलधर्म। इसके अनुसार तांत्रिकों को पांच "मकारों" का पालन करना होता है, जो हैं- मदिरा, मांस, मीन, मुद्रा और मैथुन का प्रयोग। ये तांत्रिक के लिए आवश्यक है अन्यथा साधना में वह सफल नहीं हो पाता है। वास्तव में ये भ्रांतियां इनके शाब्दिक अर्थों को लेकर हैं, जबकि पांच मकार के उपयोग-निर्देश शास्त्रों द्वारा दिए गए हैं। शास्त्र कभी भी अमर्यादित आचरण की शिक्षा या निर्देश नहीं देते हैं। सात्विक तंत्र साधना के लिए इसके गूढ़ार्थ को समझना होगा जो निम्नानुसार हैं- मद्य से आशय सहस्त्रार को जाग्रत कर उससे स्त्रावित होने वाले रसायन का शरीर में संचार जिसे आम भाषा में सोमरस कहते हैं। मस्तिष्क में स्थित सहस्त्रार को सर्वप्रथम साधक को जाग्रत करना होगा। शरीर में मांस जिह्वा या जीभ को कहते हैं। वाणी पर नियंत्रण व वाणी साधना ही मांस का भक्षण है।

तंत्र शास्त्र भारत की एक प्राचीन विद्या है। तंत्र ग्रंथ भगवान शिव के मुख से आविर्भूत हुए हैं। उनको पवित्र और प्रामाणिक माना गया है। भारतीय साहित्य में 'तंत्र' की एक विशिष्ट स्थिति है, पर कुछ साधक इस शक्ति का दुरुपयोग करने लग गए, जिसके कारण यह विद्या बदनाम हो गई। कामी, क्रोधी, लालची, इनसे भक्ति न होय । भक्ति करे कोइ सूरमा, जाति वरन कुल खोय ॥ जो तंत्र से भय खाता हैं, वह मनुष्य ही नहीं हैं, वह साधक तो बन ही नहीं सकता! गुरु गोरखनाथ के समय में तंत्र अपने आप में एक सर्वोत्कृष्ट विद्या थी और समाज का प्रत्येक वर्ग उसे अपना रहा था! जीवन की जटिल समस्याओं को सुलझाने में केवल तंत्र ही सहायक हो सकता हैं! परन्तु गोरखनाथ के बाद में भयानन्द आदि जो लोग हुए उन्होंने तंत्र को एक विकृत रूप दे दिया! उन्होंने तंत्र का तात्पर्य भोग, विलास, मद्य, मांस, पंचमकार को ही मान लिया ! “मद्यं मांसं तथा मत्स्यं मुद्रा मैथुनमेव च, मकार पंचवर्गस्यात सह तंत्रः सह तान्त्रिकां” जो व्यक्ति इन पांच मकारो में लिप्त रहता हैं वही तांत्रिक हैं, भयानन्द ने ऐसा कहा! उसने कहा की उसे मांस, मछली और मदिरा तो खानी ही चाहिए, और वह नित्य स्त्री के साथ समागम करता हुआ साधना करे! ये ऐसी गलत धरना समाज में फैली की जो ढोंगी थे, जो पाखंडी थे, उन्होंने इस श्लोक को महत्वपूर्ण मान लिया और शराब पीने लगे, धनोपार्जन करने लगे, और मूल तंत्र से अलग हट गए, धूर्तता और छल मात्र रह गया! और समाज ऐसे लोगों से भय खाने लगे! और दूर हटने लगे! लोग सोचने लगे कि ऐसा कैसा तंत्र हैं, इससे समाज का क्या हित हो सकता हैं? लोगों ने इन तांत्रिकों का नाम लेना बंद कर दिया, उनका सम्मान करना बंद कर दिया, अपना दुःख तो भोगते रहे परन्तु अपनी समस्याओं को उन तांत्रिकों से कहने में कतराने लगे, क्योंकि उनके पास जाना ही कई प्रकार की समस्याओं को मोल लेना था! और ऐसा लगने लगा कि तंत्र समाज के लिए उपयोगी नहीं हैं! परन्तु दोष तंत्र का नहीं, उन पथभ्रष्ट लोगों का रहा, जिनकी वजह से तंत्र भी बदनाम हो गया! सही अर्थों में देखा जायें तो तंत्र का तात्पर्य तो जीवन को सभी दृष्टियों से पूर्णता देना हैं! जब हम मंत्र के माध्यम से देवता को अनुकूल बना सकते हैं, तो फिर तंत्र की हमारे जीवन में कहाँ अनुकूलता रह जाती हैं? मंत्र का तात्पर्य हैं, देवता की प्रार्थना करना, हाथ जोड़ना, निवेदन करना, भोग लगाना, आरती करना, धुप अगरबत्ती करना, पर यह आवश्यक नहीं कि लक्ष्मी प्रसन्ना हो ही और हमारा घर अक्षय धन से भर दे! तब दुसरे तरीके से यदि आपमें हिम्मत हैं, साहस हैं, हौसला हैं, तो क्षमता के साथ लक्ष्मी की आँख में आँख डालकर आप खड़े हो जाते हैं और कहते हैं कि मैं यह तंत्र साधना कर रहा हूँ, मैं तुम्हें तंत्र में आबद्ध कर रहा हूँ और तुम्हें हर हालत में सम्पन्नता देनी हैं, और देनी ही पड़ेगी! पहले प्रकार से स्तुति या प्रार्थना करने से देवता प्रसन्ना न भी हो परन्तु तंत्र से तो देवता बाध्य होते ही हैं, उन्हें वरदान देना ही पड़ता हैं! मंत्र और तंत्र दोनों ही पद्धतियों में साधना विधि, पूजा का प्रकार, न्यास सभी कुछ लगभग एक जैसा ही होता हैं, बस अंतर होता हैं, तो दोनों के मंत्र विन्यास में, तांत्रोक्त मंत्र अधिक तीक्ष्ण होता हैं! जीवन की किसी भी विपरीत स्थिति में तंत्र अचूक और अनिवार्य विधा हैं. आज के युग में हमारे पास इतना समय नहीं हैं, कि हम बार-बार हाथ जोड़े, बार-बार घी के दिए जलाएं, बार-बार भोग लगायें, लक्ष्मी की आरती उतारते रहे और बीसों साल दरिद्री बने रहे, इसलिए तंत्र ज्यादा महत्वपूर्ण हैं, कि लक्ष्मी बाध्य हो ही जायें और कम से कम समय में सफलता मिले! बड़े ही व्यवस्थित तरीके से मंत्र और साधना करने की क्रिया तंत्र हैं! किस ढंग से मंत्र का प्रयोग किया जायें, साधना को पूर्णता दी जायें, उस क्रिया का नाम तंत्र हैं! और तंत्र साधना में यदि कोई न्यूनता रह जायें, तो यह तो हो सकता हैं, कि सफलता नहीं मिले परन्तु कोई विपरीत परिणाम नहीं मिलता! तंत्र के माध्यम से कोई भी गृहस्थ वह सब कुछ हस्तगत कर सकता हैं, जो उसके जीवन का लक्ष्य हैं! तंत्र तो अपने आप में अत्यंत सौम्य साधना का प्रकार हैं, पंचमकार तो उसमें आवश्यक हैं ही नहीं! बल्कि इससे परे हटकर जो पूर्ण पवित्रमय सात्विक तरीके, हर प्रकार के व्यसनों से दूर रहता हुआ साधना करता हैं तो वह तंत्र साधना हैं! जनसाधारण में इसका व्यापक प्रचार न होने का एक कारण यह भी था कि तंत्रों के कुछ अंश समझने में इतने कठिन हैं कि गुरु के बिना समझे नहीं जा सकते । अतः ज्ञान का अभाव ही शंकाओं का कारण बना। तंत्र शास्त्र वेदों के समय से हमारे धर्म का अभिन्न अंग रहा है। वैसे तो सभी साधनाओं में मंत्र, तंत्र एक-दूसरे से इतने मिले हुए हैं कि उनको अलग-अलग नहीं किया जा सकता, पर जिन साधनों में तंत्र की प्रधानता होती है, उन्हें हम 'तंत्र साधना' मान लेते हैं। 'यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे' की उक्ति के अनुसार हमारे शरीर की रचना भी उसी आधार पर हुई है जिस पर पूर्ण ब्रह्माण्ड की। तांत्रिक साधना का मूल उद्देश्य सिद्धि से साक्षात्कार करना है। इसके लिए अन्तर्मुखी होकर साधनाएँ की जाती हैं। तांत्रिक साधना को साधारणतया तीन मार्ग : वाम मार्ग, दक्षिण मार्ग व मधयम मार्ग कहा गया है। श्मशान में साधना करने वाले का निडर होना आवश्यक है। जो निडर नहीं हैं, वे दुस्साहस न करें। तांत्रिकों का यह अटूट विश्वास है, जब रात के समय सारा संसार सोता है तब केवल योगी जागते हैं। तांत्रिक साधना का मूल उद्देश्य सिद्धि से साक्षात्कार करना है। यह एक अत्यंत ही रहस्यमय शास्त्र है । चूँकि इस शास्त्र की वैधता विवादित है अतः हमारे द्वारा दी जा रही सामग्री के आधार पर किसी भी प्रकार के प्रयोग करने से पूर्व किसी योग्य तांत्रिक गुरु की सलाह अवश्य लें। अन्यथा किसी भी प्रकार के लाभ-हानि की जिम्मेदारी आपकी होगी। परस्पर आश्रित या आपस में संक्रिया करने वाली चीजों का समूह, जो मिलकर सम्पूर्ण बनती हैं, निकाय, तंत्र, प्रणाली या सिस्टम (System) कहलातीं हैं। कार है और चलाने का मन्त्र भी आता है, यानी शुद्ध आधुनिक भाषा मे ड्राइविन्ग भी आती है, रास्ते मे जाकर कार किसी आन्तरिक खराबी के कारण खराब होकर खडी हो जाती है, अब उसके अन्दर का तन्त्र नही आता है, यानी कि किस कारण से वह खराब हुई है और क्या खराब हुआ है, तो यन्त्र यानी कार और मन्त्र यानी ड्राइविन्ग दोनो ही बेकार हो गये, किसी भी वस्तु, व्यक्ति, स्थान, और समय का अन्दरूनी ज्ञान रखने वाले को तान्त्रिक कहा जाता है, तो तन्त्र का पूरा अर्थ इन्जीनियर या मैकेनिक से लिया जा सकता है जो कि भौतिक वस्तुओं का और उनके अन्दर की जानकारी रखता है, शरीर और शरीर के अन्दर की जानकारी रखने वाले को डाक्टर कहा जाता है, और जो पराशक्तियों की अन्दर की और बाहर की जानकारी रखता है, वह ज्योतिषी या ब्रह्मज्ञानी कहलाता है, जिस प्रकार से बिजली का जानकार लाख कोशिश करने पर भी तार के अन्दर की बिजली को नही दिखा सकता, केवल अपने विषेष यन्त्रों की सहायता से उसकी नाप या प्रयोग की विधि दे सकता है, उसी तरह से ब्रह्मज्ञान की जानकारी केवल महसूस करवाकर ही दी जा सकती है, जो वस्तु जितने कम समय के प्रति अपनी जीवन क्रिया को रखती है वह उतनी ही अच्छी तरह से दिखाई देती है और अपना प्रभाव जरूर कम समय के लिये देती है मगर लोग कहने लगते है, कि वे उसे जानते है, जैसे कम वोल्टेज पर वल्व धीमी रोशनी देगा, मगर अधिक समय तक चलेगा, और जो वल्व अधिक रोशनी अधिक वोल्टेज की वजह से देगा तो उसका चलने का समय भी कम होगा, उसी तरह से जो क्रिया दिन और रात के गुजरने के बाद चौबीस घंटे में मिलती है वह साक्षात समझ मे आती है कि कल ठंड थी और आज गर्मी है, मगर मनुष्य की औसत उम्र अगर साठ साल की है तो जो जीवन का दिन और रात होगी वह उसी अनुपात में लम्बी होगी, और उसी क्रिया से समझ में आयेगा.जितना लम्बा समय होगा उतना लम्बा ही कारण होगा, अधिकतर जीवन के खेल बहुत लोग समझ नही पाते, मगर जो रोजाना विभिन्न कारणों के प्रति अपनी जानकारी रखते है वे तुरत फ़ुरत में अपनी सटीक राय दे देते है.यही तन्त्र और और तान्त्रिक का रूप कहलाता है.

क्या है तंत्र, मंत्र, यन्त्र,तांत्रिक, और तंत्र साधना... यह पोस्ट मैं उन सभी लोगों के लिए लिख रहा हूँ जो तंत्र साधना ,तांत्रिक तथा वाम मार्गी के बारे में जानना चाहते है। यह पोस्ट उन लोगों के लिए भी है जिनके मन में तंत्र से जुडे कुछ संदेह हैं। तथा यह उन लोगों के लिए भी हैं जो हमारे हिंदू संस्कृति की सही खोज में लगे हैं। यहाँ मैं बहुत ही सरल रूप में तंत्र, मंत्र, यन्त्र, तांत्रिक, तांत्रिक साधना,तांत्रिक क्रिया अथवा पञ्च मकार के बारे में संचिप्त में वर्णन करूँगा। तंत्र एक विज्ञानं है जो प्रयोग में विश्वास रखता है। इसे विस्तार में जानने के लिए एक सिद्ध गुरु की आवश्यकता है। अतः मैं यहाँ सिर्फ़ उसके सूक्ष्म रूप को ही दर्शा रहा हूँ। पार्वतीजी ने महादेव शिव से प्रश्न किया की हे महादेव, कलयुग मे धर्म या मोक्ष प्राप्ति का क्या मार्ग होगा? उनके इस प्रश्न के उत्तर मे महादेव शिव ने उन्हे समझते हुए जो भी व्यक्त किया तंत्र उसी को कहते हैं। योगिनी तंत्र मे वर्णन है की कलयुग मे वैदिक मंत्र विष हीन सर्प के सामान हो जाएगा। ऐसा कलयुग में शुद्ध और अशुद्ध के बीच में कोई भेद भावः न रह जाने की वजह से होगा। कलयुग में लोग वेद में बताये गए नियमो का पालन नही करेंगे। इसलिए नियम और शुद्धि रहित वैदिक मंत्र का उच्चारण करने से कोई लाभ नही होगा। जो व्यक्ति वैदिक मंत्रो का कलयुग में उच्चारण करेगा उसकी व्यथा एक ऐसे प्यासे मनुष्य के सामान होगी जो गंगा नदी के समीप प्यासे होने पर कुआँ खोद कर अपनी प्यास बुझाने की कोशिश में अपना समय और उर्जा को व्यर्थ करता है। कलयुग में वैदिक मंत्रो का प्रभाव ना के बराबर रह जाएगा। और गृहस्त लोग जो वैसे ही बहुत कम नियमो को जानते हैं उनकी पूजा का फल उन्हे पूर्णतः नही मिल पायेगा। महादेव ने बताया की वैदिक मंत्रो का पूर्ण फल सतयुग, द्वापर तथा त्रेता युग में ही मिलेगा. तब माँ पार्वती ने महादेव से पुछा की कलयुग में मनुष्य अपने पापों का नाश कैसे करेंगे? और जो फल उन्हे पूजा अर्चना से मिलता है वह उन्हे कैसे मिलेगा? इस पर शिव जी ने कहा की कलयुग में तंत्र साधना ही सतयुग की वैदिक पूजा की तरह फल देगा। तंत्र में साधक को बंधन मुक्त कर दिया जाएगा। वह अपने तरीके से इश्वर को प्राप्त करने के लिए अनेको प्रकार के विज्ञानिक प्रयोग करेगा। परन्तु ऐसा करने के लिए साधक के अन्दर इश्वर को पाने का नशा और प्रयोगों से कुछ प्राप्त करने की तीव्र इच्षा होनी चाहिए। तंत्र के प्रायोगिक क्रियाओं को करने के लिए एक तांत्रिक अथवा साधक को सही मंत्र, तंत्र और यन्त्र का ज्ञान जरुरी है। मंत्र: मंत्र एक सिद्धांत को कहते हैं। किसी भी आविष्कार को सफल बनाने के लिए एक सही मार्ग और सही नियमों की आवश्यकता होती है। मंत्र वही सिद्धांत है जो एक प्रयोग को सफल बनाने में तांत्रिक को मदद करता है। मंत्र द्वारा ही यह पता चलता है की कौन से तंत्र को किस यन्त्र में समिलित कर के लक्ष्य तक पंहुचा जा सकता है। मंत्र के सिद्ध होने पर ही पूरा प्रयोग सफल होता है। जैसे क्रिंग ह्रंग स्वाहा एक सिद्ध मंत्र है। मंत्र मन तथा त्र शब्दों से मिल कर बना है। मंत्र में मन का अर्थ है मनन करना अथवा ध्यानस्त होना तथा त्र का अर्थ है रक्षा। इस प्रकार मंत्र का अर्थ है ऐसा मनन करना जो मनन करने वाले की रक्षा कर सके। अर्थात मन्त्र के उच्चारण या मनन से मनुष्य की रक्षा होती है। तंत्र: श्रृष्टि में इश्वर ने हरेक समस्या का समाधान स्वयम दिया हुआ है। ऐसी कोई बीमारी या परेशानी नही जिसका समाधान इश्वर ने इस धरती पर किसी न किसी रूप में न दिया हो। तंत्र श्रृष्टि में पाए गए रासायनिक या प्राकृतिक वस्तुओं के सही समाहार की कला को कहते हैं। इस समाहार से बनने वाली उस औषधि या वस्तु से प्राणियों का कल्याण होता है। तंत्र तन तथा त्र शब्दों से मिल कर बना है। जो वस्तु इस तन की रक्षा करे उसे ही तंत्र कहते हैं। यन्त्र: मंत्र और तंत्र को यदि सही से प्रयोग किया जाए तो वह प्राणियों के कष्ट दूर करने में सफल है। पर तंत्र के रसायनों को एक उचित पात्र को आवश्यकता होती है। ताकि साधारण मनुष्य उस पात्र को आसानी से अपने पास रख सके या उसका प्रयोग कर सके। इस पात्र या साधन को ही यन्त्र कहते हैं। एक ऐसा पात्र जो तंत्र और मन्त्र को अपने में समिलित कर के आसानी से प्राणियों के कष्ट दूर करे वही यन्त्र है। हवन कुंड को सबसे श्रेष्ठ यन्त्र मन गया है। आसन, तलिस्मान, ताबीज इत्यादि भी यंत्र माने जाते है। कई प्रकार को आकृति को भी यन्त्र मन गया है। जैसे श्री यन्त्र, काली यन्त्र, महा मृतुन्जय यन्त्र इत्यादि। यन्त्र शब्द यं तथा त्र के मिलाप से बना है। यं को पुर्व में यम यानी काल कहा जाता था। इसलिए जो यम से हमारी रक्षा करे उसे ही यन्त्र कहा जाता है। इसलिए एक सफल तांत्रिक साधक को मंत्र, तंत्र और यन्त्र का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए। विज्ञानं के प्रयोगों जैसे ही यदि तीनो में से किसी की भी मात्रा या प्रकार ग़लत हुई तो सफलता नही मिलेगी।

माँ दुर्गा का महामंत्र :- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा यह महामंत्र देवताओं को भी दुर्लभ नहीं है , इस मंत्र का नित्य पाठ करने से माँ भगवती जगदम्बा की कृपा बनी रहती है जाप विधि- नवरात्रि के दिनों में संकल्प लेकर प्रातः स्नान करके दुर्गा की मूर्ति के आगे या किसी मंदिर में पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुह कर के इन मन्त्रों का जाप करे माँ की कृपा जरुर प्राप्त होगी ।

अथ मूर्तिरहस्यम् ऋषिरुवाच ॐ नन्दा भगवती नाम या भविष्यति नन्दजा। स्तुता सा पूजिता भक्त्या वशीकुर्याज्जगत्त्रयम्॥1॥ कनकोत्तमकान्ति: सा सुकान्तिकनकाम्बरा। देवी कनकवर्णाभा कनकोत्तमभूषणा॥2॥ कमलाङ्कुशपाशाब्जैरलंकृतचतुर्भुजा। इन्दिरा कमला लक्ष्मी: सा श्री रुक्माम्बुजासना॥3॥ या रक्त दन्तिका नाम देवी प्रोक्ता मयानघ। तस्या: स्वरूपं वक्ष्यामि शृणु सर्वभयापहम्॥4॥ रक्ताम्बरा रक्त वर्णा रक्तसर्वाङ्गभूषणा। रक्तायुधा रक्त नेत्रा रक्त केशातिभीषणा॥5॥ रक्त तीक्ष्णनखा रक्त दशना रक्त दन्तिका। पतिं नारीवानुरक्ता देवी भक्तं भजेज्जनम्॥6॥ वसुधेव विशाला सा सुमेरुयुगलस्तनी। दीर्घौ लम्बावतिस्थूलौ तावतीव मनोहरौ॥7॥ कर्कशावतिकान्तौ तौ सर्वानन्दपयोनिधी। भक्तान् सम्पाययेद्देवी सर्वकामदुघौ स्तनौ॥8॥ खड्गं पात्रं च मुसलं लाङ्गलं च बिभर्ति सा। आख्याता रक्त चामुण्डा देवी योगेश्वरीति च॥9॥ अनया व्याप्तमखिलं जगत्स्थावरजङ्गमम्। इमां य: पूजयेद्भक्त्या स व्यापनेति चराचरम्॥10॥ (भुक्त्वा भोगान् यथाकामं देवीसायुज्यमापनुयात्।) अधीते य इमं नित्यं रक्त दन्त्या वपु:स्तवम्। तं सा परिचरेद्देवी पतिं प्रियमिवाङ्गना॥11॥ शाकम्भरी नीलवर्णा नीलोत्पलविलोचना। गम्भीरनाभिस्त्रिवलीविभूषिततनूदरी॥12॥ सुकर्कशसमोत्तुङ्गवृत्तपीनघनस्तनी। मुष्टिं शिलीमुखापूर्णं कमलं कमलालया॥13॥ पुष्पपल्लवमूलादिफलाढयं शाकसञ्चयम्। काम्यानन्तरसैर्युक्तं क्षुत्तृण्मृत्युभयापहम्॥14॥ कार्मुकं च स्फुरत्कान्ति बिभ्रती परमेश्वरी। शाकम्भरी शताक्षी सा सैव दुर्गा प्रकीर्तिता॥15॥ विशोका दुष्टदमनी शमनी दुरितापदाम्। उमा गौरी सती चण्डी कालिका सा च पार्वती॥16॥ शाकम्भरीं स्तुवन् ध्यायञ्जपन् सम्पूजयन्नमन्। अक्षय्यमश्रुते शीघ्रमन्नपानामृतं फलम्॥17॥ भीमापि नीलवर्णा सा दंष्ट्रादशनभासुरा। विशाललोचना नारी वृत्तपीनपयोधरा॥18॥ चन्द्रहासं च डमरुं शिर: पात्रं च बिभ्रती। एकावीरा कालरात्रि: सैवोक्ता कामदा स्तुता॥19॥ तजोमण्डलुदुर्धर्षा भ्रामरी चित्रकान्तिभृत्। चित्रानुलेपना देवी चित्राभरणभूषिता॥20॥ चित्रभ्रमरपाणि: सा महामारीति गीयते। इत्येता मूर्तयो देव्या या: ख्याता वसुधाधिप॥21॥ जगन्मातुश्चण्डिकाया: कीर्तिता: कामधेनव:। इदं रहस्यं परमं न वाच्यं कस्यचित्त्‍‌वया॥22॥ व्याख्यानं दिव्यमूर्तीनामभीष्टफलदायकम्। तस्मात् सर्वप्रयत्‍‌नेन देवीं जप निरन्तरम्॥23॥ सप्तजन्मार्जितैर्घोरै‌र्ब्रह्महत्यासमैरपि। पाठमात्रेण मन्त्राणां मुच्यते सर्वकिल्बिषै:॥24॥ देव्या ध्यानं मया ख्यातं गुह्याद् गुह्यतरं महत्। तस्मात् सर्वप्रयत्‍‌नेन सर्वकामफलप्रदम्॥25॥ (एतस्यास्त्वं प्रसादेन सर्वमान्यो भविष्यसि। सर्वरूपमयी देवी सर्व देवीमयं जगत्। अतोऽहं विश्वरूपां तां नमामि परमेश्वरीम्।)

अथ वैकृतिकं रहस्यम् ॐ त्रिगुणा तामसी देवी सात्त्विकी या त्रिधोदिता। सा शर्वा चण्डिका दुर्गा भद्रा भगवतीर्यते॥1॥ योगनिद्रा हरेरुक्ता महाकाली तमोगुणा। मधुकैटभनाशार्थ यां तुष्टावाम्बुजासन:॥2॥ दशवक्त्रा दशभुजा दशपादाञ्जनप्रभा। विशालया राजमाना त्रिंशल्लोचनमालया॥3॥ स्फुरद्दशनदंष्ट्रा सा भीमरूपापि भूमिप। रूपसौभाग्यकान्तीनां सा प्रतिष्ठा महाश्रिय:॥4॥ खड्गबाणगदाशूलचक्रशङ्खभुशुण्डिभृत्। परिघं कार्मुकं शीर्ष निश्च्योतद्रुधिरं दधौ॥5॥ एषा सा वैष्णवी माया महाकाली दुरत्यया। आराधिता वशीकुर्यात् पूजाकर्तुश्चराचरम्॥6॥ सर्वदेवशरीरेभ्यो याऽऽविर्भूतामितप्रभा। त्रिगुणा सा महालक्ष्मी: साक्षान्महिषमर्दिनी॥7॥ श्वेतानना नीलभुजा सुश्वेतस्तनमण्डला। रक्त मध्या रक्त पादा नीलजङ्घोरुरुन्मदा॥8॥ सुचित्रजघना चित्रमाल्याम्बरविभूषणा। चित्रानुलेपना कान्तिरूपसौभाग्यशालिनी॥9॥ अष्टादशभुजा पूज्या सा सहस्त्रभुजा सती। आयुधान्यत्र वक्ष्यन्ते दक्षिणाध:करक्रमात्॥10॥ अक्षमाला च कमलं बाणोऽसि: कुलिशं गदा। चक्रं त्रिशूलं परशु: शङ्खो घण्टा च पाशक:॥11॥ शक्तिर्दण्डश्चर्म चापं पानपात्रं कमण्डलु:। अलंकृतभुजामेभिरायुधै: कमलासनाम्॥12॥ सर्वदेवमयीमीशां महालक्ष्मीमियां नृप। पूजयेत्सर्वलोकानां स देवानां प्रभुर्भवेत्॥13॥ गौरीदेहात्समुद्भूता या सत्त्‍‌वैकगुणाश्रया। साक्षात्सरस्वती प्रोक्ता शुम्भासुरनिबर्हिणी॥14॥ दधौ चाष्टभुजा बाणमुसले शूलचक्रभृत्। शङ्खं घण्टां लाङ्गलं च कार्मुकं वसुधाधिप॥15॥ एषा सम्पूजिता भक्त्या सर्वज्ञत्वं प्रयच्छति। निशुम्भमथिनी देवी शुम्भासुरनिबर्हिणी॥16॥ इत्युक्तानि स्वरूपाणि मूर्तीनां तव पार्थिव। उपासनं जगन्मातु: पृथगासां निशामय॥17॥ महालक्ष्मीर्यदा पूज्या महाकाली सरस्वती। दक्षिणोत्तरयो: पूज्ये पृष्ठतो मिथुनत्रयम्॥18॥ विरञ्चि: स्वरया मध्ये रुद्रो गौर्या च दक्षिणे। वामे लक्ष्म्या हृषीकेश: पुरतो देवतात्रयम्॥19॥ अष्टादशभुजा मध्ये वामे चास्या दशानना। दक्षिणेऽष्टभुजा लक्ष्मीर्महतीति समर्चयेत्॥20॥ अष्टादशभुजा चैषा यदा पूज्या नराधिप। दशानना चाष्टभुजा दक्षिणोत्तरयोस्तदा॥21॥ कालमृत्यू च सम्पूज्यौ सर्वारिष्टप्रशान्तये। यदा चाष्टभुजा पूज्या शुम्भासुरनिबर्हिणी॥22॥ नवास्या: शक्त य: पूज्यास्तदा रुद्रविनायकौ। नमो देव्या इति स्तोत्रैर्महालक्ष्मीं समर्चयेत्॥23॥ अवतारत्रयार्चायां स्तोत्रमन्त्रास्तदाश्रया:। अष्टादशभुजा सैव पूज्या महिषमर्दिनी॥24॥ महालक्ष्मीर्महाकाली सैव प्रोक्ता सरस्वती। ईश्वरी पुण्यपापानां सर्वलोकमहेश्वरी॥25॥ महिषान्तकरी येन पूजिता स जगत्प्रभु:। पूजयेज्जगतां धात्रीं चण्डिकां भक्त वत्सलाम्॥26॥ अघ्र्यादिभिरलंकारैर्गन्धपुष्पैस्तथाक्षतै:। धू पैर्दीपैश्च नैवेद्यैर्नानाभक्ष्यसमन्वितै:॥27॥ रुधिराक्ते न बलिना मांसेन सुरया नृप। (बलिमांसादिपूजेयं विप्रवज्र्या मयेरिता॥ तेषां किल सुरामांसैर्नोक्ता पूजा नृप क्वचित्।) प्रणामाचमनीयेन चन्दनेन सुगन्धिना॥28॥ सकर्पूरैश्च ताम्बूलैर्भक्ति भावसमन्वितै:। वामभागेऽग्रतो देव्याश्छिन्नशीर्ष महासुरम्॥29॥ पूजयेन्महिषं येन प्राप्तं सायुज्यमीशया। दक्षिणे पुरत: सिंहं समग्रं धर्ममीश्वरम्॥30॥ वाहनं पूजयेद्देव्या धृतं येन चराचरम्। कुर्याच्च स्तवनं धीमांस्तस्या एकाग्रमानस:॥31॥ तत: कृताञ्जलिर्भूत्वा स्तुवीत चरितैरिमै:। एकेन वा मध्यमेन नैकेनेतरयोरिह॥32॥ चरितार्ध तु न जपेज्जपञिछद्रमवापनुयात्। प्रदक्षिणानमस्कारान् कृत्वा मूर्ध्नि कृताञ्जलि:॥33॥ क्षमापयेज्जगद्धात्रीं मुहुर्मुहुरतन्द्रित:। प्रतिश्लोकं च जुहुयात्पायसं तिलसर्पिषा॥34॥ जुहुयात्स्तोत्रमन्त्रैर्वा चण्डिकायै शुभं हवि:। भूयो नामपदैर्देवीं पूजयेत्सुसमाहित:॥35॥ प्रयत: प्राञ्जलि: प्रह्व: प्रणम्यारोप्य चात्मनि। सुचिरं भावयेदीशां चण्डिकां तन्मयो भवेत्॥36॥ एवं य: पूजयेद्भक्त्या प्रत्यहं परमेश्वरीम्। भुक्त्वा भोगान् यथाकामं देवीसायुज्यमापनुयात्॥37॥ यो न पूजयते नित्यं चण्डिकां भक्त वत्सलाम्। भस्मीकृत्यास्य पुण्यानि निर्दहेत्परमेश्वरी॥38॥ तस्मात्पूजय भूपाल सर्वलोकमहेश्वरीम्। यथोक्ते न विधानेन चण्डिकां सुखमाप्स्यसि॥38॥

सरल तंत्र साधना .. आपकेलिए ही .. मंत्रो का एक अपना ही संसार हैं ऐसे ऐसे मंत्र आपको प्राप्त हो सकते हैं .. की आप को विश्वास भी नहीं होगा की यह भी संभव है या इन कार्यों के लिए भी मन्त्र दिए हुए हैं . मंत्र पर विश्वास अविश्वास की बात नहीं .. बल्कि उन्हें परखने का भाव होना चहिये और फिर अगर कुछ कमी पाई जाती हैं उनके परिणाम की ...... तो उन कारणों पर विचार किसी योग्य से करे ...... न की पूरे मंत्र या साधना क्षेत्र को ही एक आप अपना प्रमाण पत्र जारी कर दे .. सूर्य की तेजस्विता से कोन नहीं वाकिफ होगा . प्रत्यक्ष देव जो हमारे सामने हैं उनकी प्रखरता को किसी के प्रमाण की जरुरत नहीं हैं .अगर वह प्रखरता आपके व्यक्तिव्य में आ जाये तो ... फिर क्या बात हैं.. जब भी किसी से बात चित करने जाना हो तो इस मंत्र का १०८ बार उच्चारण करके जाए . अप पाएंगे सामने वाला आपकी बातों के प्रति अब और ज्यादा सहयोगी रुख अपनाएगा .. और आप कहीं ज्यादा सफलता का अनुभव करेंगे ..बस कोई और विधान नहीं हैं. मंत्र जप ही पर्याप्त हैं .. मंत्र : ॐ धं काली काली स्वाहा

श्री बटुक भैरव अपराध क्षमा पन स्तोत्र ॐ गुरोः सेवा व्याकत्वा गुरुबचन शकतोपि न भवे भवत्पुजा – ध्यानाज्ज्प हवन –यागा दिरहित : ! त्व्दर्चा- निर्माणे क्वचिदपि न यत्नं च कृतवान , जग ज्जाल-ग्रस्तों झटितिकुरु हादर मायि विभो !! 1 !! प्रभु दुर्गा सुनो ! तव शरणतां सोयधिगतवान , कृपालों ! दुखार्त: कमपि भवदन्नयं प्रकथये ! सुहृत ! सम्पतेयहं सरल –विरल साधक जन , स्तवदन्य: क्स्त्राता भव-दहन –दाहं शमयति !!2!! वदान्यों मन्यसत्वं विविध जनपालों वभसि वै , दयालुर्दी नर्तान भवजलधिपारम गमयसि ! अतस्त्वतो याचे नति- नियमतोयकिञ्च्नधन , सदा भूयात भावः पदनलिनयोस्ते तिमिरहा !!3!! अजापूर्वो विप्रो मिलपदपरो योयतिपतितो , महामूर्खों दुष्टो वृजननिरत: पामरनृप: ! असत्पाना सक्त्तो यवन युवती व्रातरमण, प्रभा वातत्वन्नान्म: परमपदवी सोप्याधिगत !!4!! द्यां दीर्घाम दीने बटुक ! कुरु विश्वम्भर मयी, न चन्यस्संत्राता परम शिव मां पलाया विभो ! महाशचर्याम प्राप्तस्त्व सरलदृष्टच्या विरहित: , कृपापूर्णेनेत्रे: कजदल निर्भेमा खचयतात !!5!! सहस्ये किं हंसो नहि तपति दीनं जनचयम, घनान्ते किं चंर्दोंयसमकर- निपातो भुवितले! कृपादृष्टे स्तेहं भयहर भिवों किं विरहितों, जले वा हमर्ये वा घनरस- निपातो न विषम!!6!! त्रिमूर्तित्वं गीतों हरिहर- विधात्मकगुणो ! निराकारा: शुद्ध: परतरपर: सोयप्यविषय: , द्या रूपं शान्तम मुनिगननुतं भक्तदायितं !!7!! तपोयोगं संख्यम यम-नियम –चेत: प्रयजनं, न कौलाचर्चा-चक्रम हरिहरविधिनां प्रियतरम! न जाने ते भक्तिम परममुनिमार्गाम मधु विधि, तथाप्येषा वाणी परिरटति नित्यं तव यश :!!8!! न मे कांक्षा धर्मे न वसुनिच्ये राज्य निवहे: , न मे स्त्रीणा भोगे सखि-सुत-कटुम्बेषु न च मे! यदा यद्द्द भाव्यं भवतु भगवन पूर्वसकृतान , ममैत्तू प्रथर्यम तव विमल- भक्ति: प्रभवतात!!9!! कियांस्तेस्मदभार: पतित पतिता स्तारयासि भो, मद्न्य: क: पापी ययन बिमुख पाठ रहित :! दृढ़ो मे विश्वासस्तव नियति रुद्धार विषय:, सदा स्याद विश्र्म्भ: कवचिदपि मृषा माँ च भवतात!!10!! भवदभावादभिन्नो व्यसन- निरत: को मदपरो , मदान्ध: पाप आत्मा बटुक !शिव ! ते नाम रहित ! उदरात्मन बन्धो नहि तवकतुल्य: कालुपहा , पुनः संचिन्त्यैवं कुरु हृदि यथेच्छसि तथा !!11!! जपान्ते स्नानांते हमुषसि च निशिथे जपति यो , महा सौख्यं देवी वितरति नु तस्मै प्रमुदित:! अहोरात्रम पाशर्वे परिवसति भकतानु गमनों , वयोन्ते संहृष्ट: परिनियति भकतानस्व भुवनम !!12!!

सप्तसती रहस्य के सन्दर्भ में कुछ बाते .......... आज भी भारतीयमानस में कुछ ग्रन्थ ऐसे हैं जो घर घर में उपस्थित हैं और वे धार्मिक तो हैं पर अपने आप में एक पूरी परंपरा को भी हमारे सामने रखते हैं की कैसे थे हमारे पूर्वज .. या हमारा समाज किन किन उच्च आदर्शो से भरा रहा हैं. और इन ग्रंथो में राम चरितमानस और महाभारत और बाल्मीकि कृत रामायण का स्थान अपने आप में बहुत उच्च हैं. और यह तो उस काल की गाथा हमारे सामने रखते हैं , पर इनके साथ एक साधनात्मक ग्रन्थ भी ऐसा हैं जो घर घर में प्रशंशित हैं यह अलग बात हैं की वह घर घर में न हो . पर उसकी उच्चता को लेकर शायद ही कोई संदेह हो उस ग्रन्थ का नाम हैं “दुर्गा सप्तसती” या जिसे चंडी पाठ के नाम से भी संबोधित किया जाता हैं. आज भी यह ग्रन्थ अपने लगभग मूल स्वरुप में ही उपलब्ध हैं , और लाखो लोग रोजाना इसका पाठ करते हैं , पर क्या यह सिर्फ पाठ करने का ग्रन्थ हैं .. इसका उत्तर हाँ भी हैं और नहीं भी . इसमें कोई दो तर्क नहीं हं की इस ग्रन्थ का निर्माण हजारो तान्त्रिको उच्च मनस्वियो और प्रकांड तंत्र ज्ञाताओ का परिणाम हैं क्योंकि जितनी उच्च रहस्यमयता . उच्च ज्ञान इसमें समाहित हैं वह भला इतना आसान तो नहीं . और इस ग्रन्थ के सभी ७०० श्लोक अपने आप में अद्भुत हैं , एक और जहाँ भगवद गीता में ७०० श्लोक हैं वहीँ इस ग्रन्थ में ७०० श्लोको का होना कुछ एक अद्भुत साम्य का प्रतीक हैं . महाकाली , कुछ तंत्र ग्रंथो के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण की बहिन मानी जाती हैं . और क्या इस तरह से इसे नहीं देखा जा सकता की एक भाई के उच्च ज्ञान का प्रतीक हैं तो दूसरा बहिन की उच्च ज्ञान से सम्बंधित ग्रन्थ हैं . अब चूँकि इसके सभी श्लोक अपनेआप में मंत्रमय हैं तो कोई भी श्लोक जो आप अपनी क्षमतानुसार चुनते हैं वह आपको लाभ देगा ही??? . इस प्रशन पर भी थोडा सा विचार कर ले . ऐसा सही तो लगता हैं पर हैं नहीं ... मंत्रो का मनमाना उपयोग कभी कभी भयंकर समस्याए ला सकता हैं और अनेको ऐसे उदहारण भी हैं . तंत्र साहित्य इस बात के लिए बारम्बार सचेत करता हैं की आपने आप कोई भी मंत्र का चुनाव न करे . क्योंकि साधक जब तंत्र ग्रंथो का अध्ययन करता हैं तो पाता हैं की वहां तो मंत्रो का वर्गीकरण भी आया हैं जैसे की सिद्ध मंत्र , अरि मंत्र (शत्रु मंत्र ) असिद्ध मन्त्र , इस तरह के अनेको वर्गीकरण पर

श्री बटुक-बलि-मन्त्रः- घर के बाहर दरवाजे के बायीं ओर दो लौंग तथा गुड़ की डली रखें । निम्न तीनों में से किसी एक मन्त्र का उच्चारण करें - १॰ “ॐ ॐ ॐ एह्येहि देवी-पुत्र, श्री मदापद्धुद्धारण-बटुक-भैरव-नाथ, सर्व-विघ्नान् नाशय नाशय, इमं स्तोत्र-पाठ-पूजनं सफलं कुरु कुरु सर्वोपचार-सहितं बलि मिमं गृह्ण गृह्ण स्वाहा, एष बलिर्वं बटुक-भैरवाय नमः।” २॰ “ॐ ह्रीं वं एह्येहि देवी-पुत्र, श्री मदापद्धुद्धारक-बटुक-भैरव-नाथ कपिल-जटा-भारभासुर ज्वलत्पिंगल-नेत्र सर्व-कार्य-साधक मद्-दत्तमिमं यथोपनीतं बलिं गृह्ण् मम् कर्माणि साधय साधय सर्वमनोरथान् पूरय पूरय सर्वशत्रून् संहारय ते नमः वं ह्रीं ॐ ।।” ३॰ “ॐ बलि-दानेन सन्तुष्टो, बटुकः सर्व-सिद्धिदः। रक्षां करोतु मे नित्यं, भूत-वेताल-सेवितः।।

रोग बाधा निवारण साधना.(पाताल क्रिया) यह साधना पाताल क्रिया से सम्बंधित है,इस साधना कि कई अनुभूतिया है,और साधना भि एक दिन कि है.कई येसे रोग या बीमारिया है जिनका निवारण नहीं हो पाता ,और दवाईया भि काम नहीं करती ,येसे समय मे यह प्रयोग अति आवश्यक है.यह प्रयोग आज तक अपनी कसौटी पर हमेशा से ही खरा उतरा है . प्रयोग सामग्री :- एक मट्टी कि कुल्हड़ (मटका) छोटासा,सरसों का तेल ,काले तिल,सिंदूर,काला कपडा . प्रयोग विधि :- शनिवार के दिन श्याम को ४ या ४:३० बजे स्नान करके साधना मे प्रयुक्त हो जाये,सामने गुरुचित्र हो ,गुरुपूजन संपन्न कीजिये और गुरुमंत्र कि कम से कम ५ माला अनिवार्य है.गुरूजी के समक्ष अपनी रोग बाधा कि मुक्ति कि लिए प्रार्थना कीजिये.मट्टी कि कुल्हड़ मे सरसों कि तेल को भर दीजिये,उसी तेल मे ८ काले तिल डाल दीजिये.और काले कपडे से कुल्हड़ कि मुह को बंद कर दीजिये.अब ३६ अक्षर वाली बगलामुखी मंत्र कि १ माला जाप कीजिये.और कुल्हड़ के उप्पर थोडा सा सिंदूर डाल दीजिये.और माँ बगलामुखी से भि रोग बाधा मुक्ति कि प्रार्थना कीजिये.और एक माला बगलामुखी रोग बाधा मुक्ति मंत्र कीजिये. मंत्र :- || ओम ह्लीम् श्रीं ह्लीम् रोग बाधा नाशय नाशय फट || मंत्र जाप समाप्ति के बाद कुल्हड़ को जमींन गाड दीजिये,गड्डा प्रयोग से पहिले ही खोद के रख दीजिये.और ये प्रयोग किसी और के लिए कर रहे है तो उस बीमार व्यक्ति से कुल्हड़ को स्पर्श करवाते हुये कुल्हड़ को जमींन मे गाड दीजिये.और प्रार्थना भि बीमार व्यक्ति के लिए ही करनी है.चाहे व्यक्ति कोमा मे भि क्यों न हो ७ घंटे के अंदर ही उसे राहत मिलनी शुरू हो जाती है.कुछ परिस्थितियों मे एक शनिवार मे अनुभूतिया कम हो तो यह प्रयोग आगे भि किसी शनिवार कर सकते है

नाथ सम्प्रदाय के बारह पंथ :- नाथ सम्प्रदाय के अनुयायी मुख्यतः बारह शाखाओं में विभक्त हैं, जिसे बारह पंथ कहते हैं । इन बारह पंथों के कारण नाथ सम्प्रदाय को ‘बारह-पंथी’ योगी भी कहा जाता है । प्रत्येक पंथ का एक-एक विशेष स्थान है, जिसे नाथ लोग अपना पुण्य क्षेत्र मानते हैं । प्रत्येक पंथ एक पौराणिक देवता अथवा सिद्ध योगी को अपना आदि प्रवर्तक मानता है । नाथ सम्प्रदाय के बारह पंथों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है - १॰ सत्यनाथ पंथ - इनकी संख्या 31 बतलायी गयी है । इसके मूल प्रवर्तक सत्यनाथ (भगवान् ब्रह्माजी) थे । इसीलिये सत्यनाथी पंथ के अनुयाययियों को “ब्रह्मा के योगी” भी कहते हैं । इस पंथ का प्रधान पीठ उड़ीसा प्रदेश का पाताल भुवनेश्वर स्थान है । २॰ धर्मनाथ पंथ – इनकी संख्या २५ है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक धर्मराज युधिष्ठिर माने जाते हैं । धर्मनाथ पंथ का मुख्य पीठ नेपाल राष्ट्र का दुल्लुदेलक स्थान है । भारत में इसका पीठ कच्छ प्रदेश धिनोधर स्थान पर हैं । ३॰ राम पंथ - इनकी संख्या ६१ है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक भगवान् श्रीरामचन्द्र माने गये हैं । इनका प्रधान पीठ उत्तर-प्रदेश का गोरखपुर स्थान है । ४॰ नाटेश्वरी पंथ अथवा लक्ष्मणनाथ पंथ – इनकी संख्या ४३ है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक लक्ष्मणजी माने जाते हैं । इस पंथ का मुख्य पीठ पंजाब प्रांत का गोरखटिल्ला (झेलम) स्थान है । इस पंथ का सम्बन्ध दरियानाथ व तुलनाथ पंथ से भी बताया जाता है । ५॰ कंथड़ पंथ - इनकी संख्या १० है । कंथड़ पंथ के मूल प्रवर्तक गणेशजी कहे गये हैं । इसका प्रधान पीठ कच्छ प्रदेश का मानफरा स्थान है । ६॰ कपिलानी पंथ - इनकी संख्या २६ है । इस पंथ को गढ़वाल के राजा अजयपाल ने चलाया । इस पंथ के प्रधान प्रवर्तक कपिल मुनिजी बताये गये हैं । कपिलानी पंथ का प्रधान पीठ बंगाल प्रदेश का गंगासागर स्थान है । कलकत्ते (कोलकाता) के पास दमदम गोरखवंशी भी इनका एक मुख्य पीठ है । ७॰ वैराग्य पंथ - इनकी संख्या १२४ है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक भर्तृहरिजी हैं । वैराग्य पंथ का प्रधान पीठ राजस्थान प्रदेश के नागौर में राताढुंढा स्थान है ।इस पंथ का सम्बन्ध भोतंगनाथी पंथ से बताया जाता है । ८॰ माननाथ पंथ - इनकी संख्या १० है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक राजा गोपीचन्द्रजी माने गये हैं । इस समय माननाथ पंथ का पीठ राजस्थान प्रदेश का जोधपुर महा- मन्दिर नामक स्थान बताया गया है । ९॰ आई पंथ - इनकी संख्या १० है । इस पंथ की मूल प्रवर्तिका गुरु गोरखनाथ की शिष्या भगवती विमला देवी हैं । आई पंथ का मुख्य पीठ बंगाल प्रदेश के दिनाजपुर जिले में जोगी गुफा या गोरखकुई नामक स्थान हैं । इनका एक पीठ हरिद्वार में भी बताया जाता है । इस पंथ का सम्बन्ध घोड़ा चौली से भी समझा जाता है । १०॰ पागल पंथ – इनकी संख्या ४ है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक श्री चौरंगीनाथ थे । जो पूरन भगत के नाम से भी प्रसिद्ध हैं । इसका मुख्य पीठ पंजाब- हरियाणा का अबोहर स्थान है । ११॰ ध्वजनाथ पंथ - इनकी संख्या ३ है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक हनुमानजी माने जाते हैं । वर्तमान में इसका मुख्य पीठ सम्भवतः अम्बाला में है । १२॰ गंगानाथ पंथ - इनकी संख्या ६ है । इस पंथ के मूल प्रवर्तक श्री भीष्म पितामह माने जाते हैं । इसका मुख्य पीठ पंजाब में गुरुदासपुर जिले का जखबार स्थान है । कालान्तर में नाथ सम्प्रदाय के इन बारह पंथों में छह पंथ और जुड़े - १॰ रावल (संख्या-७१), २॰ पंक (पंख), ३॰ वन, ४॰ कंठर पंथी, ५॰ गोपाल पंथ तथा ६॰ हेठ नाथी । इस प्रकार कुल बारह-अठारह पंथ कहलाते हैं । बाद में अनेक पंथ जुड़ते गये, ये सभी बारह-अठारह पंथों की उपशाखायें अथवा उप-पंथ है । कुछ के नाम इस प्रकार हैं - अर्द्धनारी, अमरनाथ, अमापंथी। उदयनाथी, कायिकनाथी, काममज, काषाय, गैनीनाथ, चर्पटनाथी, तारकनाथी, निरंजन नाथी, नायरी, पायलनाथी, पाव पंथ, फिल नाथी, भृंगनाथ आदि

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺सीताराम जय वीर हनुमान 1.सुंदर कांड पाठ : सुंदर कांड पाठ तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस से लिया गया है इस पाठ से हनुमान जी को प्रसन्न किया जाता है विशेषतः शनी के प्रकोप को शांत करणे के लिये सुंदरकांड का पाठ लाभदायक होता है , वैसे कम से कम १०८ पाठ ब्राह्मण के द्वारा करवाया जाता है | 2: हनुमान चालीसा : हनुमान चालीसा कलियुग मे मनुष्य के जीवन का आधार है इसका पाठ प्रायः प्रतिदिन किया जाता है | परंतु विशेष रूप से ४१ दिन मे प्रतिदिन १०० पाठ कराने से कोई भी महत्वपूर्ण कार्य के लिए किये गया सभी अनुष्ठान पूर्ण होता है | 3 : बजरंग बाण : बजरंग बाण के पाठ से मनुष्य स्वयं सुरक्षित रहता है | बजरंग बाण के पाठ से मनुष्य सुरक्षित राहता है इसका कम से कम ५२ पाठ करके हवन करने पर विशेष लाभ प्राप्त होता है | श्रीराम ज्योतिष सदन पंडित आशु बहुगुणा मोबाइल नं -9760924411 शुभप्रभात:---- 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

“ॐ ऐं ह्रीं श्रीं नमो भगवते हनुमते मम कार्येषु ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल असाध्यं साधय साधय मां रक्ष रक्ष सर्वदुष्टेभ्यो हुं फट् स्वाहा।” विधिः-मंगलवार से प्रारम्भ करके इस मन्त्र का प्रतिदिन १०८ बार जप करता रहे और कम-से-कम सात मंगलवार तक तो अवश्य करे। इससे इसके फलस्वरुप घर का पारस्परिक विग्रह मिटता है, दुष्टों का निवारण होता है और बड़ा कठिन कार्य भी आसानी से सफल हो जाता है। ४॰ “हनुमन् सर्वधर्मज्ञ सर्वकार्यविधायक। अकस्मादागतोत्पातं नाशयाशु नमोऽस्तु ते।।” या “हनूमन्नञ्जनीसूनो वायुपुत्र महाबल। अकस्मादागतोत्पातं नाशयाशु नमोऽस्तु ते।।” विधिः- प्रतिदिन तीन हजार के हिसाब से ११ दिनों में ३३ हजार जप जो, फिर ३३०० दशांश हवन या जप करके ३३ ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाये। इससे अकस्मात् आयी हुई विपत्ति सहज ही टल जाती है..............................

श्री हनुमान सिद्धि के लिए मन्त्रः- “ॐ नमो देव लोक कामाख्या देवी, जहाँ बसे इस्माईल योगी । छप्पन भैरों, हनुमन्त वीर, भूत-प्रेत दैत्य को मार, भगावें । पराई माया ल्यावें । लाडू पेड़ा बरफी सेव सिंघाड़ा पाक बताशा मिश्री घेवर बालूसाई लोंग डोडा इलायची दाना तेल देवी काली के ऊपर । हनुमन्त गाजै ।। एती वस्तु मैं चाहि लाव, न लावे तो तैंतीस कोट देवता लावें । मिरची जावित्री जायफल हरड़े जंगी-हरड़े बादाम छुहारा मुखरें । रामवीर तो बतावैं बस्ती । लक्ष्मण वीर पकड़ावे हाथ । भूत-प्रेत के चलावें हाथ । हनुमन्त वीर को सब कोउ गावै । सौ कोसां का बस्ता लावे, न लावें तो एक लाख अस्सी हजार पीर-पैगम्बर लावें । शब्द सांचा, फुरे मन्त्र ईश्वरो वाचा ।” विधिः- इस मन्त्र का जप किसी निर्जन स्थान में, कोई अन्धा कुंआ के ऊपर बैठकर करें, सर्व-प्रथम वहां से शुद्ध मिट्टी लेकर उसमें लाल रंग या सिंदूर मिला कर हनुमान जी की प्रतिमा बनावें, फिर उस पर सिन्दूर का चोला चढ़ा कर मन्त्र में कही सामग्री उस प्रतिमा के समक्ष रख कर इस मन्त्र का २१ दिन तक प्रतिदिन रात्रि में २ माला जप करें, तो हनुमान जी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष किसी भी रुप में दर्शन देकर उसकी समस्त अभिलाषाएं पूर्ण करते हैं ।..

Sunday 27 January 2019

कार्य सिद्धि प्रयोग

रूके हुए कार्यों की सिद्धि के लिए:व्यापार, विवाह या किसी

- सफेद पलाश के फूल, चांदी की गणेश प्रतिमा,

- बिल्ली की आंवल, सियार सिंगी, हथ्था जोड़ी और कामाख्या का वस्त्र इन तीनों को एक साथ सिंदूर में रखें। उपरोक्त सामग्री में से किसी को भी तिजोरी में

किसी के प्रत्येक शुभ का

- रूके हुए कार्यों की सिद्धि के लिए यह प्रयोग बहुत ही लाभदायक है। गणेश चतुर्थी को गणेश जी का ऐसा चित्र घर या दुकान पर लगाएं,

- सरकारी या निजी रोजगार क्षेत्र में परिश्रम के उपरांत भी सफलता नहीं मिल रही हो, तो नियमपूर्वक किये गये विष्णु यज्ञ की विभूति ले कर, अपने पितरों की क्वकुशां की मूर्ति बना कर, गंगाजल से स्नान करायें तथा यज्ञ विभूति लगा कर, कुछ भोग लगा दें और उनसे कार्य की सफलता हेतु कृपा करने की प्रार्थना करें। किसी धार्मिक ग्रंथ का एक अध्याय पढ़ कर, उस कुशा की मूर्ति को पवित्र नदी या सरोवर में प्रवाहित कर दें। सफलता अवश्य मिलेगी। सफलता के बाद किसी शुभ कार्य में दान दें।जिसमें उनकी सूंड दायीं ओर मुड़ी हुई हो। इसकी आराधना करें। इसके आगे लौंग तथा सुपारी रखें। जब भी कहीं काम पर जाना हो, तो एक लौंग तथा सुपारी को साथ ले कर जाएं, तो काम सिद्ध होगा। लौंग को चूसें तथा सुपारी को वापस ला कर गणेश जी के आगे रख दें तथा जाते हुए कहें श्री गणेश काटो कलेशं।र्य में बाधा आती हो या विलम्ब होता हो तो रविवार को भैरों जी के मंदिर में सिंदूर का चोला चढ़ा कर बटुक भैरव स्तोत्रं का एक पाठ कर के गाय, कौओं और काले कुत्तों को उनकी रूचि का पदार्थ खिलाना चाहिए। ऐसा वर्ष में 4-5 बार करने से कार्य बाधाएं नष्ट हो जाएंगी।रखने से पहले

इन टोटकों से बनने लगेंगे आपके सारे काम अगर आपका कोई भी काम आसानी से नहीं होता है हर काम चाहे वह नौकरी से जुड़ा हो, शादी से या अन्य किसी क्षेत्र से रूकावटें और असफलताएं आपका रास्ता रोक लेती हैं तो इसके लिए ये टोटके आपके लिए लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं। किसी विशेष मुर्हूत में ।।ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुंण्डाये विच्चे।। इस मंत्र के जप के साथ अभिमंत्रित करें। व चांदी में

- घर के मुख्य दरवाजे

- सुबह शुभ मुहूर्त में एकाक्षी नारियल का कामिया सिन्दूर कुमकुम व चावल से पूजन करें धन लाभ होने लगेगा। पर कुमकुम से स्वास्तिक बनाएं और बासमती चावल की ढेरी पर एक सुपारी में कलावा बांध कर रख दें। धन का आगमन होने लगेगा। मड़ा हुए एकाक्षी नारियल को अभिमंत्रिमत कर तिजोरी में रखें।भी कार्य के करने में बार-बार असफलता:शनिदोष मिटाएगें

- एकाक्षी नारियल को लाल कपड़े में बांधकर तिजोरी में रखें।

श्री हनुमान चालीसा के चमत्कार

हनुमान चालीसा की चौपाई से चमत्कार

वैसे तो हनुमान चालीसा की हर चौपाइ और दोहे चमत्कारी हैं लेकिन कुछ ऐसी चौपाइयां हैं जो बहुत जल्द असर दिखाती हैं। ये चौपाइयां सर्वाधिक प्रचलित भी हैं समय-समय में काफी लोग इनका जप करते हैं।

1) रामदूत अतुलित बलधामा।
अंजनिपुत्र पवनसुत नामा।

यदि कोई व्यक्ति इस चौपाई का जप करता है तो उसे शारीरिक कमजोरियों से मुक्ति मिलती है। इस पंक्ति का अर्थ यह है कि हनुमानजी श्रीराम के दूत हैं और अतुलित बल के धाम हैं। यानि हनुमानजी परम शक्तिशाली हैं। इनकी माता का नाम अंजनी है इसी वजह से इन्हें अंजनी पुत्र कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार हनुमानजी को पवन देव का पुत्र माना जाता है इसी वजह से इन्हें पवनसुत भी कहते हैं।

2) महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।

यदि कोई व्यक्ति हनुमान चालीसा की केवल इस पंक्ति का जप करता है तो उसे सुबुद्धि की प्राप्ति होती है। इस पंक्ति का जप करने वाले लोगों के कुविचार नष्ट होते हैं और सुविचार बनने लगते हैं। बुराई से ध्यान हटता है और अच्छाई की ओर मन लगता है।

इस पंक्ति का अर्थ यही है कि बजरंगबली महावीर हैं और हनुमानजी कुमति को निवारते हैं यानि कुमति को दूर करते हैं और सुमति यानि अच्छे विचारों को बढ़ाते हैं।

3) बिद्यबान गुनी अति चातुर।
रामकाज करीबे को आतुर।।

यदि किसी व्यक्ति को विद्या धन चाहिए तो उसे इस पंक्ति का जप करना चाहिए। इस पंक्ति के जप से हमें विद्या और चतुराई प्राप्त होती है। इसके साथ ही हमारे हृदय में श्रीराम की भक्ति भी बढ़ती है।

इस चौपाई का अर्थ है कि हनुमानजी विद्यावान हैं और गुणवान हैं। हनुमानजी चतुर भी हैं। वे सदैव ही श्रीराम के काम को करने के लिए तत्पर रहते हैं। जो भी व्यक्ति इस चौपाई का जप करता है उसे हनुमानजी की ही तरह विद्या, गुण, चतुराई के साथ ही श्रीराम की भक्ति प्राप्त होती है।

4) भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्रजी के काज संवारे।।

जब आप शत्रुओं से परेशान हो जाएं और कोई रास्ता दिखाई न दे तो हनुमान चालीसा का जप करें। यदि एकाग्रता और भक्ति के साथ हनुमान चालीसा की सिर्फ इस पंक्ति का भी जप किया जाए तो शत्रुओं पर विजय प्राप्ति होती है। श्रीराम की कृपा प्राप्त होती है।

इस पंक्ति का अर्थ यह है कि श्रीराम और रावण के बीच हुए युद्ध में हनुमानजी ने भीम रूप यानि विशाल रूप धारण करके असुरों-राक्षसों का संहार किया। श्रीराम के काम पूर्ण करने में हनुमानजी ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। जिससे श्रीराम के सभी काम संवर गए।

5) लाय संजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।

इस पंक्ति का जप करने से भयंकर बीमारियों से भी मुक्ति मिल सकती है। यदि कोई व्यक्ति किसी गंभीर बीमारी से पीडि़त है और दवाओं का भी असर नहीं हो रहा है तो उसे भक्ति के साथ हनुमान चालीसा या इस पंक्ति का जप करना चाहिए। दवाओं का असर होना शुरू हो जाएगा, बीमारी धीरे-धीरे ठीक होने लगेगी।

इस चौपाई का अर्थ यह है कि रावण के पुत्र मेघनाद ने लक्ष्मण को मुर्छित कर दिया था। तब सभी औषधियों के प्रभाव से भी लक्ष्मण की चेतना लौट नहीं रही थी। तब हनुमानजी संजीवनी औषधि लेकर आए और लक्ष्मण के प्राण बचाए। हनुमानजी के इस चमत्कार से श्रीराम अतिप्रसन्न हुए।

श्रीराम के परम भक्त हनुमानजी सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवताओं में से एक हैं। शास्त्रों के अनुसार माता सीता के वरदान के प्रभाव से बजरंग बली को अमर बताया गया है। ऐसा माना जाता है आज भी जहां रामचरित मानस या रामायण या सुंदरकांड का पाठ पूरी श्रद्धा एवं भक्ति से किया जाता है वहां हनुमानजी अवश्य प्रकट होते हैं। इन्हें प्रसन्न करने के लिए बड़ी संख्या श्रद्धालु हनुमान चालीसा का पाठ भी करते हैं।

यदि कोई व्यक्ति पूरी हनुमान चालीसा का पाठ करने में असमर्थ रहता है तो वह अपनी मनोकामना के अनुसार केवल कुछ पंक्तियों का भी जप कर सकता है।

शिव पंचाक्षर स्तोत्र

शिव को प्रसन्न करने की चाह तथा उनकी शरणागत पाने के लिए भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र बहुत महत्व रखता है. इस व्रत के साथ ही शिव भगवान का व्रत तथा पूजन अवश्य करना चाहिए. शिव व्रत करने वाले व्यक्ति सांसारिक भोगों को भोगने के पश्चात अंत में शिवलोक में जाते है. चतुर्दशी तिथि को इस पंचाक्षरी मंत्र का जाप अवश्य ही किया जाना चाहिए ऎसा करने से मनुष्य सभी तीर्थों के स्नान का फल प्राप्त करता है. जो व्यक्ति शिव की भक्ति से अछूते रहते हैं वह हमेशा जन्म-मरण के चक्र में घूमते रहते हैं.

भगवान शिव का पूजन कर भक्तगण उनका आशीर्वाद प्राप्त कर अपनी समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने का वर माँगते हैं. शिवलिंग पर बेल वृक्ष के पत्ते चढा़ने चाहिए. धतूरे के पुष्पों से शिवलिंग पर पूजन करना चाहिए. भगवान शिव को बिल्वपत्र तथा धतूरे के फूल बहुत प्रिय हैं. इसलिए शिव पूजन में इनका प्रयोग करना चाहिए. इस दिन "ऊँ नम: शिवाय" का जाप 108 बार करना चाहिए. महामृत्युंजय मंत्र का जाप शिव भगवान को प्रसन्न करने का तथा सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करने का महामंत्र है.

भगवान शिव पर जिस पर कृपा करते हैं उनका उद्धार हो जाता है. भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कई स्तुतियों की रचना प्राप्त होती है इन सभी के मध्य में शिव पंचाक्षर स्त्रोत एक महत्वपूर्ण मंत्र साधना है. इसका प्रतिदिन जाप करने से भगवान शंकर शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं तथ औनका आशिर्वाद एवं सानिध्य प्राप्त होता है.
शिव पंचाक्षर स्त्रोत |

नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय

नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे न काराय नम: शिवाय:॥

मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय

मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे म काराय नम: शिवाय:॥

शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय

श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नम: शिवाय:॥

वषिष्ठ कुभोदव गौतमाय मुनींद्र देवार्चित शेखराय

चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै व काराय नम: शिवाय:॥

यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय

दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै य काराय नम: शिवाय:॥

पंचाक्षरमिदं पुण्यं य: पठेत शिव सन्निधौ

शिवलोकं वाप्नोति शिवेन सह मोदते॥

नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय|
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे "न" काराय नमः शिवायः॥

इस मंत्र के अर्थ में हम इस बात को समक्ष सकते हैं जो इस प्रकार है कि हे प्रभु महेश्वर आप नागराज को गले हार रूप में धारण करते हैं आप तीन नेत्रों वाले भस्म को अलंकार के रुप में धारण करके अनादि एवं अनंत शुद्ध हैं. आप आकाश को वस्त्र सामान धारण करने वाले हैं. मै आपके ‘न’स्वरूप को नमस्कार करता हूँ आप चन्दन से लिप्त गंगा को अपने सर पर धारण करके नन्दी एवं अन्य गणों के स्वामी महेश्वर हैं आप सदा मन्दार एवं अन्य पुष्पों द्वारा पुजित हैं. हे भगवन मैं आपके ‘म्’ स्वरूप को नमस्कार करता हूं.

धर्म ध्वज को धारण करने वाले नीलकण्ठ प्रभु तथा ‘शि’ अक्षर वाले महाप्रभु, आपने ही दक्ष के अंहकार स्वरुप यज्ञ का नाश किया था. माता गौरी को सूर्य सामान तेज प्रदान करने वाले प्रभु शिव को मै नमन करता हूँ.

देवगणो एवं वषिष्ठ, अगस्त्य, गौतम आदि मुनियों द्वारा पूज्य महादेव जिनके लिए सूर्य, चन्द्रमा एवं अग्नि त्रिनेत्र सामन हैं. हे प्रभु मेरा आपके ‘व्’ अक्षर वाले स्वरूप को नमस्कार है. हे यज्ञस्वरूप, जटाधारी शिव आप आदि, मध्य एवं अंत से रहित हैं आप सनातन हैं, हे प्रभु आप दिव्य अम्बर धारी शिव हैं मैं आपके ‘शि’ स्वरुप को मैं नमस्कार करता हूं

इस प्रकार जो कोई भी शिव के इस पंचाक्षर मंत्र का नित्य चिंतन-मनन ध्यान करता है वह शिव लोक को प्राप्त करता है|

श्री नरसिंह विजय रक्षा कवच

त्रैलोक्य-विजय श्रीनृसिंह कवच
।। पूर्व-पीठिका : श्री नारद उवाच ।।
इन्द्रादि-देव-वृन्देश ! ईश्वर, जगत्-पते ! महा-विष्णोर्नृसिंहस्य, कवचं ब्रूहि मे प्रभो !
यस्य प्रपठनाद् विद्वांस्त्रैलोक्य-विजयी भवेत् ।।१
।। श्री प्रजापतिरुवाच ।।
श्रृणु नारद ! वक्ष्यामि, पुत्र-श्रेष्ठ, तपोधन ! कवचं नृसिंहस्य तु, त्रैलोक्य-विजयाभिधम् ।।
यस्य पठनाद् वाग्मी, त्रैलोक्य-विजयी भवेत् । स्रष्टाऽहं जगतां वत्स ! पठनाद् धारणाद् यतः ।।
लक्ष्मीर्जगत्-त्रयं पाति, संहर्ता च महेश्वरः । पठनाद् धारणाद् देवाः बभूवुश्च दिगीश्वराः ।।
ब्रह्म-मन्त्र-मयं वक्ष्ये, भ्रान्त्यादि-विनिवारकं । यस्य प्रसादाद् दुर्वासास्त्रैलोक्य-विजयी भवेत् ।।
पठनाद् धारणाद् यस्य, शास्ता च क्रोध-भैरवः ।।
त्रैलोक्य-विजयस्यास्य, कवचस्य प्रजापतिः । ऋषिश्छन्दश्च गायत्री, नृसिंहो देवता विभुः ।
क्ष्रौं वीजं, हुं शक्तिः, फट् कीलकं, ममाभीष्ट-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।।
।। मूल-पाठ ।।
विनियोगः- ॐ अस्य त्रैलोक्य-विजय-नाम श्रीनृसिंह-कवचस्य श्रीप्रजापतिः ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्रीनृसिंहः देवता, क्ष्रौं वीजं, हुं शक्तिः, फट् कीलकं ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यासः- श्रीप्रजापति-ऋषये नमः शिरसि, गायत्री-छन्दसे नमः मुखे, श्रीनृसिंह-देवतायै नमः हृदि, क्ष्रौं वीजाय नमः गुह्ये, हुं शक्तये नमः नाभौ, फट् कीलकाय नमः पादयोः ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।
ॐ उग्र-वीरं महा-विष्णुं, ज्वलन्तं सर्वतोमुखम् । नृसिंहं भीषणं भद्रं, मृत्यु-मृत्युं नमाम्यहम् ।।१
क्ष्रौं वीजं मे शिरः पातु, चन्द्र-वर्णो महा-मनुः । कण्ठं पातु ध्रुवं क्ष्रौं हृद्, भगवते चक्षुषी मे ।
नरसिंहाय च ज्वाला-मालिने पातु कर्णकम् ।।२
दीप्त-दंष्ट्राय च तथाऽग्नि-नेत्राय च नासिकां । सर्व-रक्षोघ्नाय तथा, सर्व-भूत-हिताय च ।।३
सर्व-ज्वर-विनाशाय, दह-दह पद-द्वयम् । रक्ष-रक्ष वर्म-मन्त्रः, स्वाहा पातु मुखं मम ।।४
ॐ रामचन्द्राय नमः, पातु च हृदयं मम । क्लीं पायात् पार्श्व-युग्मं च, तारो नमः पदं ततः ।।५
नारायणाय नाभिं च, आं ह्रीं क्रों क्ष्रौं चैव हुं फट् । षडक्षरः कटिं पातु, ॐ नमो भगवतेऽयम् ।।६
वासुदेवाय च पृष्ठं, क्लीं कृष्णाय ऊरु-द्वयं । क्लीं कृष्णाय सदा पातु, जानुनी च मनूत्तमः ।।७
क्लीं ग्लौं क्लीं श्यामलाङ्गाय नमः पायात् पद-द्वयं । क्ष्रौं नृसिंहाय क्ष्रौं चैव, सर्वाङ्गे मे सदाऽवतु ।।८
।। फल-श्रुति ।।
इति ते कथितं वत्स ! सर्व-मन्त्रौघ-विग्रहं । तव स्नेहान्मया ख्यातं, प्रवक्तव्यं न कस्यचित् ।।
गुरु-पूजां विधायाथ, गृह्णीयात् कवचं ततः । सर्व-पुण्य-युतो भूत्वा, सर्व-सिद्धि-युतो भवेत् ।।
शतमष्टोत्तरं चास्य, पुरश्चर्या-विधिः स्मृता । हवनादीन् दशांशेन, कृत्वा साधक-सत्तमः ।।
ततस्तु सिद्ध-कवचः, पुण्यात्मा मदनोपमः । स्पर्द्धामूद्धूय भवने, लक्ष्मीर्वाणि वसेत ततः ।।
पुष्पाञ्जल्यष्टकं दत्त्वा, मूलेनैव पठेत् सकृत् । अपि वर्ष-सहस्राणां, पूजायां फलमाप्नुयात् ।।
भूर्जे विलिख्य गुटिकां, स्वर्णस्थां धारयेद् यदि । कण्ठे वा दक्षिणे बाहौ, नरसिंहो भवेत् स्वयम् ।।
योषिद्-वाम-भुजे चैव, पुरुषो दक्षिणे-करे । बिभृयात् कवचं पुण्यं, सर्व-सिद्धि-युतो भवेत् ।।
काक-वन्ध्या च या नारी, मृत-वत्सा च या भवेत् । जन्म-वन्ध्या नष्ट-पुत्रा, बहु-पुत्र-वती भवेत् ।।
कवचस्य प्रसादेन, जीवन्मुक्तो भवेन्नरः । त्रैलोक्यं क्षोभयेत् सदा, त्रैलोक्य-विजयी भवेत् ।।
भूत-प्रेत-पिशाचाश्च, राक्षसा दानवाश्च ये । तं दृष्ट्वा प्रपलायन्ते, देशाद् देशान्तरे ध्रुवम् ।।
यस्मिन् गृहे च कवचं, ग्रामे वा यदि तिष्ठति । तद्-देशं तु परित्यज्य, प्रयान्ति ह्यति-दूरतः ।।
।। इति ब्रह्म-संहितायां त्रैलोक्य-विजयं नाम नृसिंह-कवचम् ।।
‘पूर्व-पीठिका’ और ‘फल-श्रुति’ के अनुसार उक्त ‘श्रीनृसिंह कवच’ का १०८ पाठ करने से इसका ‘पुरश्चरण’ होता है । दशांश अर्थात् ११ पाठ द्वारा ‘हवन’ और एक-एक पाठ द्वारा ‘तर्पण’, ‘मार्जन’ कर एक ब्राह्मण को भोजन कराने से यह ‘कवच-स्तोत्र’ सिद्ध हो जाता है । तब इसका प्रयोग कर विविध प्रकार की कामनाओं की पूर्ति की जा सकती है । कामनाओं का उल्लेख ‘पूर्व-पीठिका’ और ‘फल-श्रुति’ में किया गया है । यहाँ दिये गये ‘यन्त्र’ को भोज-पत्र पर लिखकर ‘ताबीज’ के रुप में कण्ठ़ या भुजा में धारण करने से अनेक कामनाओं की पूर्ति होती है ।

श्री नरसिंह महा मंत्र प्रयोग

अष्टमुखगण्डभेरुण्ड नृसिंहमूलमहामन्त्रः
श्रीगणेशाय नमः । ॐ अस्य श्रीअष्टमुखगण्डभेरुण्ड नृसिंहमूलमहामन्त्रय । भगवान् ऋषिः ।
अनुष्टुभ् छन्दः । अष्टमुखगन्डभेरुण्डनृसिंह ब्रह्मविद्यादेवता क्ष्रां बीजाम् । क्ष्रौं शक्तिः फट् कीलकम् ।
मम इष्टाकांम्यार्थे जपे विनियोगः । क्ष्रां र्हां् अंगुष्ठाभ्या नमः । क्ष्रीं र्हींा तर्जनीभ्यां नमः ।
क्ष्रुं र्हुं् मध्यमाभ्यां नमः । क्ष्रैं र्हैःा करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । एवं ह्रदयादिभ्यां ध्यानम् ।
अष्टास्यो वह्रिहविभिः दुरवरणरवो विद्युदुज्वालजिव्हो मारीर्भीमाचपक्षौ ह्रदयजठरगाअष्टकालाग्नि उग्रः ॥
ऊरोद्वौ रुद्रकीलौ खगमृगनृहरिर्गंडभैरेण्डरुपो विध्वस्तात्युग्र दुहुछरभसरभसः स्फुरद्युग्मौरवाङगम् ॥
ध्यात्वा । मानसोपचारै सम्यूज्य ॥ अथ मन्यः । ॐ घ्रां क्ष्रां घौं अ सौः रें वं लं क्ष्रौं र्हींा अं फट् स्वाहा ॥१३॥
मंत्रः । अस्य श्री अष्टमुखगण्डभैरुडनृसिंहाय महाबलप्रराक्रमाय कोटिसूर्यप्रकाशाय वडवानलमुखाय अनंतबाहवे अनंतकोटिदिव्यायुधधराय कनकगिरिसमान – मणिकुण्डलधराय प्रलयकालसत्प्रमारुअतप्रचण्डवेगऊर्ध्वकेशाय ऊर्ध्वरेतसे गुणातीताय परात्पराय अनेककोटिशत्रुजन शिरोमालाधृताय प्रमथगणसेविताय सरभसालवेश्वरीप्राणापहाराय अष्टभैरवपरिसेविताय सर्वदैत्य प्रभंजनाय गजाननदिगण सेविताय वीरभद्रश्वरुप विध्वंसनाय महानन्दिकेश्वर समागमनाय सकलसुरासुरभयंकरगण्डभेरुण्डनृसिंहाय एहि एहि आगच्छ आगच्छ अवरफुर्ज अवरफुर्ज गर्ज गर्ज भीषय भीषय किलि किलि लिलि लिलि लल लल लुलु लुलु हल हल घट घट चट चट प्रचट प्रचट लुडु लुडु रिरि रिरि रुरु रुरु डुरु डुरु आक्रान्तय आक्रान्तय परिवेषय परिवेषय पूर्वपश्चिमदक्षिनोत्तर निऋतीशान्यअग्निवायव्यपातालोर्ध्वांन्तरिक्षसर्वदिग्बंधी सर्वदिशोज्वाला -सुदर्शनचक्रेण बन्धय बन्धय अस्मिन्भूतण्डलं प्रें प्रें प्रवेशय प्रवेशय क्रों क्रों अंकुशेनाकर्षयाकर्षय र्हांू र्हांं भूतानि अस्मिन् आवशेय आवेशय भुं भुं भूतानि आकम्पय आकम्पय ऑ ऑ यमपाशेन बन्धय बन्धय र्हींा र्हींा मोहय मोहय टं टं पादादि केशान् स्तम्भय स्तम्भय दं धं टं ष्टां कीलय कीलय जं भुं जिव्हांश्चालय चालय भूतग्रहान् आकर्षय प्रेतग्रहपिशाचगर्हयक्षग्रहब्रह्मराक्षसग्रहडाकिनी ग्रहशाकिनी ग्रहवेताल ग्रहगांधर्व ग्रहदानव ग्रहापस्मार ग्रहक्षुद्रग्रह ज्वरग्रह रोगग्रह रतिग्रह छायाग्रह अममृत्युग्रह यमदूतग्रह सर्वग्रह महामायाग्रह असाध्यग्रहाणां खँ खँ भेदय भेदय बां बां बाधय बाधय शोषय शोषय रं रं दाहय दाहय क्षां क्षां क्षोभय क्षोभय ख्रें ख्रें खादय खादय स्त्रां स्त्रां तापय तापय र्हौंम र्हौंग त्रोट त्रोय व्रां व्रां भ्रामय भ्रामय लृं लृं लोटय लोटय द्रां द्रां मोटय मोटय गं गं गुलुं गुलुं छ्रीं छ्रीं दिलु दिलु र्हुंो र्हुंं तुरु तुरु म्रीं म्रीं मुरु मुरु त्रां त्रां हेलि हेलि श्रौं श्रौं मिलि मिलि वं वं वज्रपक्षद्यातय घातय चूर्णय चूर्णय फ्रें फ्रें वज्रनखेन कृंतय कृंतय खं खं खड्‌गेन खण्डय खण्डय खें खें मारय मारय अष्टमुख गण्डभेरुण्डमहनृसिंह महाधीर महावीर महाशूर महामाय सं सं सर्वदुष्टग्रहाणा पीडां हन हन फट् फट् भूतानि फट् फट् पिशासान् फट् फट् सर्व ग्रहान फट् फट् महाद्योतं अघोरं दुरितापहम् ।
आयुष्करं मृत्युहरं अंगरोगादिनाशनम् ॥ एकवर्तमात्रेण आवेशं तस्य सिद्धयेत् ॥
भस्मस्पर्शमात्रेण सर्गग्रहभयं हरेत् ॥ इति श्री गण्डभेरुण्डनृसिंहस्तोत्रं समाप्तम् ॥ ……………

श्री नरसिंह मंत्र प्रयोग


जय गोरख़।
ॐ नृसिंह बाला  ॐ नृसिंह बाला ॐ नृसिंह बाला। घट पिंड का तुम रखवाला । तुमरे सुमेरि होवे उजियाला,खुले जब घट के कुंची ताला । द्रष्टि काल महा विकराल , चार खुंट के बोधान-हार। रुद्धि सिद्धि का श्री लक्ष्मीजी ! भरो भंडार । ॐ सत्य नृसिंह कमल , नृसिंह भक्त वत्सल । नृसिंह भक्त वत्सल , नृसिंह योग, ध्यानी ध्याय के । ढ़ोय के , चार खुंट की रुद्धि सिद्धि आसन पर आनी । उलट लाल ललाट सोहे ,चार खुंट पुथ्वी को नृसिंह मोहे । ॐ साहेब मेरा शब्द का सांचा ॐ साहेब मेरा वचन का गांटा । ॐ साहेब मेरा गहन  गंभीरा । ॐ राजा राणी को  किल । दैत्य- दानव को किल । नारी स्यारी को किल । डाकिनी दंक्क को किल । टोना  टामरा को किल । छल छिद्र को किल । भोदरा भोटी को किल । नौ नाड़ी बहोतेर कोठे को किल । चंडी चुडेल को किल । ताव तिजारी को किल । एक तारा बह तारा  किल । बारह जाती बाग़ किल । नो कोटि नाग किल । चोर चर्पट किल । आकाश के दैत्यों को किल । पाताल के दैत्यों को किल । नाके घाटे किल । मरे मसान किल । गुनी गुनियो को किल । नदी नाले को किल । कुआ बावड़ी को किल । दुष्ट मुष्ट को किल । ॐ किल,ॐ किल,ॐ किल । मेरा किला करे घात  छाती  फाट मरे ।  जो पिंड पर करे घात उलटी घात उसे परे । ॐ खं खं खं  फट स्वाहा इति । श्री पिंड प्राण की रक्षा नृसिंह करे । संकट में सुमिरु नृसिंह  हकार में हनुमान । धक्के धूम में खांसी खुरी में मिरगी या मसान में रक्तिया मसान में दुहाई नृसिंह की।
इस मंत्र को 21 दिन रोज एक माला जप करे। शनिवार से जप शरू करे। सिद्ध हो जायेगा।

अगर किसी को नजर लगी हो, प्रसूता स्त्री को उपरी हवा, छोटा बालक रात में रोता हो, बेचेनी, आदि में इस मन्त्र को लाल धागा पे 7 गांठ लगा के बंधने से आराम होगा। प्रत्येक गांठ पे एक बार मंत्र जप करे।

तांत्रिक प्रयोग निवारण

तांत्रिक प्रयोग निवारण प्रयोग
यदि किसी भी प्रकार के तांत्रिक प्रयोग किये जाने के कारन कोई ब्यक्ति बार बार बीमार पर जाता हो और लगातार परेशान रहता हो तो उसके निवारण हेतु प्रयोग  प्रस्तुत कर रहा हु जिसका प्रयोग कोई भी श्रधा के साथ कर सकता है :-
सामग्री :- 01 कैथा का फल ।
आसन- कोई भी
वस्त्र - कोई भी
समय - दोपहर या अर्द्ध रात्रि में
मन्त्र- न्री  नरसिंघा ये प्रचंड रुपाये सर्व बाधा नाशय नाशय !!
विधि :- कैथा के फल को सामने रखकर उपरोक्त मन्त्र का एक माला जप कर कैथा के फल पर एक बार फुक मारे । इस प्रकार कुल 08 माला उपरोक्त मन्त्र का जप कर 08 बार कैथा के फल पर फुक मरने के बाद उस फल से उसी समय पीड़ित व्यक्ति का 7 बार उतारा  करे और उस कैथा के फल को किसी चौराहे पर जाकर पटककर फोर दे तथा वापस घर चले आये । रास्ते में पीछे मुरकर नहीं देखे ।
यदि कैथा का फल उपलब्ध नहीं हो तो बेल का फल उपयोग में लाया जा सकता है।।

शक्तिशाली काली का मंत्र

शक्तिशाली सर्व कार्य साधक मंत्र

मां भगवती काली का मनोकामना पूर्ति मंत्र ! काली के भगतों की मनोकामना इस मंत्र के प्रभाव से आवश्य ही पूर्ण होती है बस कुछ ही दिन धर्य के साथ हर रोज शाम को 30 मिनट इस मंत्र का जाप करने से चमत्कारिक लाभ होगा और जीवन मे कोई भी अभाव नहीं रहेगा ये पक्की बात है। विश्वास ना हो तो आजमा के देखलो . इसके साथ यदि प्राण प्रतिष्ठित कलियंत्र भी धारण् कर लिया जाये तो बस फिर कहना ही क्या .

मंत्र

  ओम क्रीं काली काली कलकत्ते वाली !
 हरिद्वार मे आके डंका बजाओ ! धन के भंडार भरो मेरे सब काज करो       ना करो तो दुहाई !दुहाई राजा राम चन्द्र हनुमान वीर की !

आबिचार कर्म नाशक प्रयोग

अभिचार-कर्म नाशक :साबर साधना
साधना तो बेहद आसान है,साधना काल मे ब्रम्हचैर्यत्व आवश्यक है,माला रुद्राक्ष का हो,धोती और आसन भगवे एवं लाल रंग का हो,दीपक मे सिर्फ देशी घी होना चाहिये,लोबान का धूप जलाओ,साधना से पूर्व गणेश जी ,गुरुजी और दत्त-महाप्रभुजी का पूजन आवश्यक है॰
निम्न मंत्र का जाप किसि भी शनिवार से करे,यह साधना 11 दिन का है,साधना शाम के समय करना अनुकूल है,साधना मे नित्य 108 बार मंत्र जाप आवश्यक है,मंत्र का जब भी स्वयं के लिए प्रयोग करना हो तो 7 बार मंत्र बोलकर जल पे 3 बार फुक मारे और जल को ग्रहण करले दूसरे व्यक्ति के लिये भि यही विधान है,अगर प्रयोग आपके सामने किया जा रहा हो तो तुरंत ही ७ बार मंत्र बोलकर अपने सिने पे ३ फुक मारले...
तो तंत्र-मंत्र का असर नष्ट होता है और किया गया तंत्र-मंत्र करनेवाले पे वापस लौट जाता है......
मंत्र-
जल बाँधो,जलाजल बाँधो । जल के बाँधो कीरा,नौ नगर के राजा बाँधो,टोना के बाँधो जंजीरा । धरमदास कबीर, चकमक धुरी धर के काटे जाम के जूरी । काकर फूँके, मोर फूँके । मोर गुरु धरमदास के फूँके, जिहा से आय हस, वही चले जा, सत गुरु,सत कबीर ।

श्रीराम दुर्गम कवच

श्री राम दुर्गम

सभी प्रकार की किसी भी लौकिक अलौकिक बाधा को दूर करने में श्री राम दुर्गम का अचूक प्रभाव है सभी प्रकार की कामनाओ की भी पूर्ति करता है शत्रुओ से रक्षा होती है नित्य कम  से कम २१ पाठ करे ।

विनियोगः ॐ अस्य श्री राम दुर्गस्य् विश्वामित्र ऋषिः अनुष्टुप छन्दः श्री रामो देवता श्री राम प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।

श्री रामो रक्षतु प्राच्यां रक्षेदयाम्यां च लक्ष्मणः । प्रतीच्यां भरतो रक्षेद उदीच्यां शत्रु मर्दनः ॥१ ॥
ईशान्यां जानकी रक्षेद आग्नेयाम रविनन्दनः । विभीषणस्तु नैऋत्यां वायव्यां वायुनन्दनः ॥२ ॥
ऊर्ध्वं रक्षेन्महाविष्णुर्मध्यं रक्षेन्नृकेशरी । अधस्तु वामनः पातु सर्वतः पातु केशवः ॥ ३ ॥
सर्वतः कपिसेनाद्यैः सदा मर्कटनायकः । चतुर्द्वारं सदा रक्षेदच्चतुर्भिः कपिपुंगवैः ॥ ४॥
श्री रामाख्यं महादुर्गं विश्वामित्रकृतं शुभम । यः स्मरेद भय काले तु सर्व शत्रु विनाशनम ॥ ५ ॥
रामदुर्गं पठेद भक्त्या सर्वोपद्रवनाशनं । सर्वसम्पदप्रदम् नृणां च गच्छेद वैष्णव पदं ॥ ६ ॥

इति  श्री रामदुर्गं सम्पूर्णम ॥

नवग्रह शाबर मंत्र

श्री नवग्रह शाबर मंत्र
ॐ गुरु जी कहे, चेला सुने, सुन के मन में गुने, नव ग्रहों का मंत्र, जपते पाप काटेंते, जीव मोक्ष पावंते, रिद्धि सिद्धि भंडार भरन्ते, ॐ आं चं मं बुं गुं शुं शं रां कें चैतन्य नव्ग्रहेभ्यो नमः, इतना नव ग्रह शाबर मंत्र सम्पूरण हुआ, मेरी भगत गुरु की शकत, नव ग्रहों को गुरु जी का आदेश आदेश आदेश !
 मंत्र का १०० माला जप कर सिद्धि प्राप्त की जाती है. अगर नवरात्रों में दशमी तक १० माला रोज़ जप जाये तो भी सिद्धि होती है. दीपक घी का, आसन रंग बिरंगा कम्बल का, किसी भी समय, दिशा प्रात काल पूर्व, मध्यं में उत्तर, सायं काल में पश्चिम की होनी चाहिए. हवन किया जाये तो ठीक नहीं तो जप भी पर्याप्त है. रोज़ १०८ बार जपते रहने से किसी भी ग्रह की बाधा नहीं सताती है.

मायाजाल वापस करने का मंत्र

तांत्रिक मायाजाल वापिस करने का मंत्र
मंत्र  ------ एक ठो सरसों ,सौला राई | मोरो पटवल को रोजाई | खाय खाय पड़े भार | जे करै ते मरै उलट विद्या ताहि पर परे | शब्द साँचा ,पिंड काँचा | हनुमान का मंत्र साँचा | फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा | -- यदि किसी के ऊपर किसी ने तांत्रिक अभिचार कर दिया हो और बार बार करता हो तो थोड़ी सी राई ,सरसों और नमक मिलाकर रख ले |इसके बाद इस मंत्र का जप करते हुए सात बार रोगी को उतारा करे और फिर जलती हुई भट्ठी में यह सामग्री झटके से झोक दे तो सारा मायाजाल वापस चला जायेगा |.

सूर्यमणि साधना


सूर्य मणि साधना -


सूर्य को आत्म भी कहते है ! क्यू के यह आत्मा के प्रकाश का प्रतीक है और सूर्य साधना जीवन को प्रकाशमान करती हुई साधक को साधना क्षेत्र में विशेष उच्ता प्रदान करती है ! बहुत सोभाग्यशालि साधक होते है जो सूर्य साधना को अपना कर अपना जीवन प्रकाश म्ये करते है ! सूर्य साधना के लिए विशेष कर मकर संक्राति का समय सभ से उचित है ! जिस दिन सूर्य भगवान जल राशि में परवेश करते है और हर साधक को विशेष प्र्सनता पार्डन करते हुए उसके जीवन को प्रकाश म्यी बनाते है !इस दिन आप सूर्य उद्ये से पूर्व उठे ईशनान करे फिर मन को पर्सन रखते हुए ये साधना करे इस से आप अपने में एक ञ तेज महसूस करेगे और जीवन में आने वाली वाधाओ पे विजय पाएगे सूर्य साधना जीवन में आपको एक नई दिशा प्रदान करेगी और इस के लिए आप को जो स्मगरी चाहिए सूर्य यंत्र एक माणिक का स्टोन ले ले और लाल हकीक की माला मूँगे की भी ले सकते है न मिले तो रुद्राश की माला से जप कर ले !
विधि --- सुबह उठ के ईशनान करे और लाल धोती पहन कर उद्ये होते सूर्य को प्रणाम करते हुये निम्न मंत्र का 21 वार जप करे !
मंत्र – सूर्य दर्शन मंत्र -
ॐ कनक वर्णग महा तेज्ग रत्न माले भूष्णग !
सर्व पाप पर्मुच्यते भरवासरे रवि दर्शनग !!
एक पुजा की थाली पहले तयार कर ले जिस में कुंकुम दीप लाल फूल नवेद के लिए गुड और यगोपावित आदि हो एक नारियल पनि वाला और दक्षणा के लिए कुश चेंज और अब सूर्य के सहमने लाल आसन पे बैठे आप का मुख सूर्य की तरफ होना चाहिए ! अब भूमि पर त्रिकोण वृत और चतुरसर मण्डल चन्दन से बनाए और उसका गंध अक्षत से पूजन कर उस पे अर्ग पात्र स्थाप्त करे और उस में निम्न मंत्र से जल डाले –
मंत्र – ॐ शन्नो देवी रभिष्ट्य आपो भावन्तु पीतये ! शन्ययो रविसर्वन्तु नः !!
उस जल में तीर्थों का आवाहन करे –
ॐ गंगे च जमुने चैव गोदावरि सरस्वती !
नर्मन्दे सिन्धु कावेरि जले गंग स्मिन सन्निधि करू !!
इस के बाद उस जल में गंध अक्षत कुक्म थोड़ा गुड डाल कर पूजन करे और निम्न मंत्र से सूर्य ध्यान करे
मंत्र –
अरुणो अरुण पंकजे निष्ण्ण: कमले अभीतिवरौ करैर्दधान: !
स्वरुचार्हितमण्डल सित्र्नेत्रोंरवि शताकुलं बतान्न !!
अब अर्ग दान करे –
ॐ एहि सूर्य सहस्रान्शों तेजो राशे जगत पते ,
अनुक्म्प्या मां भ्क्त्या ग्रेहाणार्घ्य दिवाकर !!
ॐ अदित्या नमः ॐ प्रभाकराये नमः ॐ दिवाकराये नमः !!
अर्घ दान के बाद आसन पे सूर्य की और विमुख हो कर बैठ जाए अपने सहमने एक ताँबे की पलेट में एक लाल फूल के उपर सूर्य यंत्र स्थापित करे उसके उपर माणक का स्टोन (रूबी )स्थापित करे यन्त्र का पूजन पंचौपचार से करे और संकल्प ले के मैं अपना नाम बोले ---- अपना गोत्र बोले गुरु स्वामी निखिलेश्वरा नन्द जी का शिष्य अपने जीवन की सभी नेयुंताओ को दूर करने और जीवन के हर क्षेत्र में सफलता के लिए यह सूर्य मणि प्रयोग कर रहा हु हे गुरुदेव मुझे सफलता प्रदान करे जल भूमि पे शोड दे और फिर मूँगे जा हकीक जा रुद्राश माला से निम्न मंत्र की 21 माला जाप करे और जप पूर्ण होने पर नमस्कार कर उठ जाए जदी पहले और बाद में एक एक माला गुरु मंत्र की कर ले तो भी बहुत अशा है ! साधना के बाद उसी दिन यन्त्र और माला को जल परवाहित कर दे और माणक को अंगूठी में जड़ा कर पहिन ले इस तरह की अंगूठी पहले भी बना सकते है और अंगूठी को यन्त्र पे अर्पित कर साधना कर सकते है !आप स्व महसूस करेगे की ज़िंदगी में एक उतशाह और सफलता का मार्ग मिल गया है!



सूर्य नवग्रह शांति दायक टोटके


सूर्य नवग्रह शांतिदायक टोटके––

सूर्यः-
१॰ सूर्यदेव के दोष के लिए खीर का भोजन बनाओ और रोजाना चींटी के बिलों पर रखकर आवो और केले को छील कर रखो ।
२॰ जब वापस आवो तभी गाय को खीर और केला खिलाओ ।
३॰ जल और गाय का दूध मिलाकर सूर्यदेव को चढ़ावो। जब जल चढ़ाओ, तो इस तरह से कि सूर्य की किरणें उस गिरते हुए जल में से निकल कर आपके मस्तिष्क पर प्रवाहित हो ।
४॰ जल से अर्घ्य देने के बाद जहाँ पर जल चढ़ाया है, वहाँ पर सवा मुट्ठी साबुत चावल चढ़ा देवें ।
चन्द्रमाः-
१॰ पूर्णिमा के दिन गोला, बूरा तथा घी मिलाकर गाय को खिलायें । ५ पूर्णमासी तक गाय को खिलाना है ।
२॰ ५ पूर्णमासी तक केवल शुक्ल पक्ष में प्रत्येक १५ दिन गंगाजल तथा गाय का दूध चन्द्रमा उदय होने के बाद चन्द्रमा को अर्घ्य दें । अर्घ्य देते समय ऊपर दी गई विधि का इस्तेमाल करें ।
३॰ जब चाँदनी रात हो, तब जल के किनारे जल में चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब को हाथ जोड़कर दस मिनट तक खड़ा रहे और फिर पानी में मीठा प्रसाद चढ़ा देवें, घी का दीपक प्रज्जवलित करें । उक्त प्रयोग घर में भी कर सकते हैं, पीतल के बर्तन में पानी भरकर छत पर रखकर या जहाँ भी चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब पानी में दिख सके वहीं पर यह कार्य कर सकते हैं ।
मंगलः-
१॰ चावलों को उबालने के बाद बचे हुए माँड-पानी में उतना ही पानी तथा १०० ग्राम गुड़ मिलाकर गाय को खिलाओ ।
२॰ सवा महीने में जितने दिन होते हैं, उतने साबुत चावल पीले कपड़े में बाँध कर यह पोटली अपने साथ रखो । यह प्रयोग सवा महीने तक करना है ।
३॰ मंगलवार के दिन हनुमान् जी के व्रत रखे । कम-से-कम पाँच मंगलवार तक ।
४॰ किसी जंगल जहाँ बन्दर रहते हो, में सवा मीटर लाल कपड़ा बाँध कर आये, फिर रोजाना अथवा मंगलवार के दिन उस जंगल में बन्दरों को चने और गुड़ खिलाये ।
बुधः-
१॰ सवा मीटर सफेद कपड़े में हल्दी से २१ स्थान पर “ॐ” लिखें तथा उसे पीपल पर लटका दें ।
२॰ बुधवार के दिन थोड़े गेहूँ तथा चने दूध में डालकर पीपल पर चढ़ावें ।
३॰ सोमवार से बुधवार तक हर सप्ताह कनैर के पेड़ पर दूध चढ़ावें । जिस दिन से शुरुआत करें उस दिन कनैर के पौधे की जड़ों में कलावा बाँधें । यह प्रयोग कम-से-कम पाँच सप्ताह करें ।
बृहस्पतिः-
१॰ साँड को रोजाना सवा किलो ७ अनाज, सवा सौ ग्राम गुड़ सवा महीने तक खिलायें ।
२॰ हल्दी पाँच गाँठ पीले कपड़े में बाँधकर पीपल के पेड़ पर बाँध दें तथा ३ गाँठ पीले कपड़े में बाँधकर अपने साथ रखें ।
३॰ बृहस्पतिवार के दिन भुने हुए चने बिना नमक के ग्यारह मन्दिरों के सामने बांटे । सुबह उठने के बाद घर से निकलते ही जो भी जीव सामने आये उसे ही खिलावें चाहे कोई जानवे हो या मनुष्य ।
शुक्रः-
१॰ उड़द का पौधा घर में लगाकर उस पर सुबह के समय दूध चढ़ावें । प्रथम दिन संकल्प कर पौधे की जड़ में कलावा बाँधें । यह प्रयोग सवा दो महीने तक करना है ।
२॰ सवा दो महीने में जितने दिन होते है, उतने उड़द के दाने सफेद कपड़े में बाँधकर अपने पास रखें ।
३॰ शुक्रवार के दिन पाँच गेंदा के फूल तथा सवा सौ उड़द पीपल की खोखर में रखें, कम-से-कम पाँच शुक्रवार तक ।
शनिः-
१॰ सवा महिने तक प्रतिदिन तेली के घर बैल को गुड़ तथा तेल लगी रोटी खिलावें ।
राहूः-
१॰ चन्दन की लकड़ी साथ में रखें । रोजाना सुबह उस चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर घिसकर पानी में मिलाकर उस पानी को पियें ।
२॰ साबुत मूंग का खाने में अधिक सेवन करें ।
३॰ साबुत गेहूं उबालकर मीठा डालकर कोड़ी मनुष्यों को खिलावें तथा सत्कार करके घर वापस आवें ।
केतुः-
१॰ मिट्टी के घड़े का बराबर आधा-आधा करो । ध्यान रहे नीचे का हिस्सा काम में लेना है, वह समतल हो अर्थात् किनारे उपर-नीचे न हो । इसमें अब एक छोटा सा छेद करें तथा इस हिस्से को ऐसे स्थान पर जहाँ मनुष्य-पशु आदि का आवागमन न हो अर्थात् एकान्त में, जमीन में गड्ढा कर के गाड़ दें । ऊपर का हिस्सा खुला रखें । अब रोजाना सुबह अपने ऊपर से उबार कर सवा सौ ग्राम दूध उस घड़े के हिस्से में चढ़ावें । दूध चढ़ाने के बाद उससे अलग हो जावें तथा जाते समय पीछे मुड़कर नहीं देखें साधना –(पंडित आशु बहुगुणा)---


सूर्य को आत्म भी कहते है ! क्यू के यह आत्मा के प्रकाश का प्रतीक है और सूर्य साधना जीवन को प्रकाशमान करती हुई साधक को साधना क्षेत्र में विशेष उच्ता प्रदान करती है ! बहुत सोभाग्यशालि साधक होते है जो सूर्य साधना को अपना कर अपना जीवन प्रकाश म्ये करते है ! सूर्य साधना के लिए विशेष कर मकर संक्राति का समय सभ से उचित है ! जिस दिन सूर्य भगवान जल राशि में परवेश करते है और हर साधक को विशेष प्र्सनता पार्डन करते हुए उसके जीवन को प्रकाश म्यी बनाते है !इस दिन आप सूर्य उद्ये से पूर्व उठे ईशनान करे फिर मन को पर्सन रखते हुए ये साधना करे इस से आप अपने में एक ञ तेज महसूस करेगे और जीवन में आने वाली वाधाओ पे विजय पाएगे सूर्य साधना जीवन में आपको एक नई दिशा प्रदान करेगी और इस के लिए आप को जो स्मगरी चाहिए सूर्य यंत्र एक माणिक का स्टोन ले ले और लाल हकीक की माला मूँगे की भी ले सकते है न मिले तो रुद्राश की माला से जप कर ले !
विधि --- सुबह उठ के ईशनान करे और लाल धोती पहन कर उद्ये होते सूर्य को प्रणाम करते हुये निम्न मंत्र का 21 वार जप करे !
मंत्र – सूर्य दर्शन मंत्र -
ॐ कनक वर्णग महा तेज्ग रत्न माले भूष्णग !
सर्व पाप पर्मुच्यते भरवासरे रवि दर्शनग !!
एक पुजा की थाली पहले तयार कर ले जिस में कुंकुम दीप लाल फूल नवेद के लिए गुड और यगोपावित आदि हो एक नारियल पनि वाला और दक्षणा के लिए कुश चेंज और अब सूर्य के सहमने लाल आसन पे बैठे आप का मुख सूर्य की तरफ होना चाहिए ! अब भूमि पर त्रिकोण वृत और चतुरसर मण्डल चन्दन से बनाए और उसका गंध अक्षत से पूजन कर उस पे अर्ग पात्र स्थाप्त करे और उस में निम्न मंत्र से जल डाले –
मंत्र – ॐ शन्नो देवी रभिष्ट्य आपो भावन्तु पीतये ! शन्ययो रविसर्वन्तु नः !!
उस जल में तीर्थों का आवाहन करे –
ॐ गंगे च जमुने चैव गोदावरि सरस्वती !
नर्मन्दे सिन्धु कावेरि जले गंग स्मिन सन्निधि करू !!
इस के बाद उस जल में गंध अक्षत कुक्म थोड़ा गुड डाल कर पूजन करे और निम्न मंत्र से सूर्य ध्यान करे
मंत्र –
अरुणो अरुण पंकजे निष्ण्ण: कमले अभीतिवरौ करैर्दधान: !
स्वरुचार्हितमण्डल सित्र्नेत्रोंरवि शताकुलं बतान्न !!
अब अर्ग दान करे –
ॐ एहि सूर्य सहस्रान्शों तेजो राशे जगत पते ,
अनुक्म्प्या मां भ्क्त्या ग्रेहाणार्घ्य दिवाकर !!
ॐ अदित्या नमः ॐ प्रभाकराये नमः ॐ दिवाकराये नमः !!
अर्घ दान के बाद आसन पे सूर्य की और विमुख हो कर बैठ जाए अपने सहमने एक ताँबे की पलेट में एक लाल फूल के उपर सूर्य यंत्र स्थापित करे उसके उपर माणक का स्टोन (रूबी )स्थापित करे यन्त्र का पूजन पंचौपचार से करे और संकल्प ले के मैं अपना नाम बोले ---- अपना गोत्र बोले गुरु स्वामी निखिलेश्वरा नन्द जी का शिष्य अपने जीवन की सभी नेयुंताओ को दूर करने और जीवन के हर क्षेत्र में सफलता के लिए यह सूर्य मणि प्रयोग कर रहा हु हे गुरुदेव मुझे सफलता प्रदान करे जल भूमि पे शोड दे और फिर मूँगे जा हकीक जा रुद्राश माला से निम्न मंत्र की 21 माला जाप करे और जप पूर्ण होने पर नमस्कार कर उठ जाए जदी पहले और बाद में एक एक माला गुरु मंत्र की कर ले तो भी बहुत अशा है ! साधना के बाद उसी दिन यन्त्र और माला को जल परवाहित कर दे और माणक को अंगूठी में जड़ा कर पहिन ले इस तरह की अंगूठी पहले भी बना सकते है और अंगूठी को यन्त्र पे अर्पित कर साधना कर सकते है !आप स्व महसूस करेगे की ज़िंदगी में एक उतशाह और सफलता का  मार्ग मिल गया है!



Sunday 4 January 2015

हनुमत्सहस्त्र नामावली

हनुमत्सहस्त्र नामावली
विनियोगः-
ॐ अस्य श्रीहनुमत्सहस्त्रनामस्तोत्रमन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः हनुमान देवता, अनुष्टुप छन्द, ह्रां बीजं श्रीं शक्ति, श्रीहनुमत्प्रीत्यर्थं-तद्सहस्त्रनामभिरमुकसंख्यार्थ पुष्पादिद्रव्य समर्पणे विनियोगः।

ध्यानः-
ध्यायेद् बालदिवाकर-द्युतिनिभ देवारिदर्पापहं
देवेन्द्रमुख-प्रशा्तयकसं देदीप्यमान रुचा।
सुग्रीवादिसमतवानरयुतं सुव्यक्ततत्त्वप्रियं
संरक्तारुणलोचनं पवनजं पीताम्बरालंकृतम्।।
उद्यदादित्यसंकाशमुदारभुजविक्रमम्।
कन्दर्पकोटिलावण्य सर्वविद्याविशारदम्।।
श्रीरामहृदयानन्दं भक्तकल्पमहीरुहम्।
अभयं वरदं दोर्म्मा चिन्तयेन्मारुतात्मजम्।।


ॐ हनुमते नमः
ॐ श्री प्रदाय नमः
ॐ वायु पुत्राय नमः
ॐ रुद्राय नमः
ॐ अनघाय नमः
ॐ अजराय नमः
ॐ अमृत्यवे नमः
ॐ वीरवीराय नमः
ॐ ग्रामावासाय नमः
ॐ जनाश्रयाय नमः
ॐ धनदाय नमः
ॐ निर्गुणाय नमः
ॐ अकायाय नमः
ॐ वीराय नमः
ॐ निधिपतये नमः
ॐ मुनये नमः
ॐ पिंगाक्षाय नमः
ॐ वरदाय नमः
ॐ वाग्मीने नमः ।
ॐ सीता-शोक-विनाशाय नमः
ॐ शिवाय नमः
ॐ शर्वाय नमः
ॐ पराय नमः
ॐ अव्यक्ताय नमः
ॐ व्यक्ताव्यक्ताय नमः
ॐ रसा-धराय नमः
ॐ पिंग-केशाय नमः
ॐ पिंग-रोमम्णे नमः ।
ॐ श्रुति-गम्याय नमः
ॐ सनातनाय नमः
ॐ अनादये नमः
ॐ भगवते नमः
ॐ देवाय नमः
ॐ विश्व-हेतवे नमः
ॐ निरामयाय नमः
ॐ आरोग्यकर्त्रे नमः ।
ॐ विश्वेशाय नमः
ॐ विश्वनाथाय नमः
ॐ हरीश्वराय नमः
ॐ भर्गाय नमः
ॐ रामाय नमः
ॐ राम-भक्ताय नमः
ॐ कल्याणाय नमः
ॐ प्रकृति-स्थिराय नमः
ॐ विश्वम्भराय नमः
ॐ विश्वमूर्तये नमः
ॐ विश्वाकाराय नमः
ॐ विश्वदाय नमः
ॐ विश्वात्मने नमः
ॐ विश्वसेव्याय नमः
ॐ विश्वाय नमः
ॐ विश्वराय नमः
ॐ रवये नमः
ॐ विश्व-चेष्टाय नमः
ॐ विश्व-गम्याय नमः
ॐ विश्व-ध्येयाय नमः
ॐ कला-धराय नमः
ॐ प्लवंगमाय नमः
ॐ कपि-श्रेष्टाय नमः
ॐ ज्येष्ठाय नमः ।
ॐ विद्यावते नमः
ॐ वनेचराय नमः
ॐ बालाय नमः
ॐ वृद्धाय नमः
ॐ यूने नमः ।
ॐ तत्त्वाय नमः
ॐ तत्त्व-गम्याय नमः
ॐ सख्ये नमः
ॐ अजाय नमः
ॐ अन्जना-सूनवे नमः
ॐ अव्यग्राय नमः
ॐ ग्राम-ख्याताय नमः
ॐ धरा-धराय नमः
ॐ भूर्लोकाय नमः
ॐ भुवर्लोकाय नमः ।
ॐ स्वर्लोकाय नमः
ॐ महर्लोकाय नमः
ॐ जनलोकय नमः
ॐ तपसे नमः
ॐ अव्ययाय नमः
ॐ सत्ययाय नमः
ॐ ओंकार-गम्याय नमः
ॐ प्रणवाय नमः
ॐ व्यापकाय नमः
ॐ अमलाय नमः
ॐ शिवाय नमः
ॐ धर्म-प्रतिष्ठात्रे नमः ।
ॐ रामेष्टाय नमः
ॐ फाल्गुण-प्रियाय नमः
ॐ गोष्पदिने नमः
ॐ कृत-वारीशाय नमः
ॐ पूर्ण-कामाय नमः
ॐ धराधिपाय नमः
ॐ रक्षोघ्नाय नमः
ॐ पुण्डरीकाक्षाय नमः
ॐ शरणागत-वत्सलाय नमः
ॐ जानकी-प्राण-दात्रे नमः
ॐ रक्षः-प्राणहारकाय नमः
ॐ पूर्णाय नमः ।
ॐ सत्याय नमः १००
ॐ पीतवाससे नमः ।
ॐ दिवाकर-समप्रभाय नमः
ॐ देवोद्यान-विहारीणे नमः ।
ॐ देवता-भय-भञ्जनाय नमः ।
ॐ भक्तोदयाय नमः ।
ॐ भक्त-लब्धाय नमः ।
ॐ भक्त-पालन-तत्पराय नमः ।
ॐ द्रोणहर्षाय नमः ।
ॐ शक्तिनेत्राय नमः ।
ॐ शक्तये नमः
ॐ राक्षस-मारकाय नमः
ॐ अक्षघ्नाय नमः
ॐ राम-दूताय नमः
ॐ शाकिनी-जीव-हारकाय नमः
ॐ बुबुकार-हतारातये नमः
ॐ गर्वाय नमः
ॐ पर्वत-मर्दनाय नमः
ॐ हेतवे नमः
ॐ अहेतवे नमः
ॐ प्रांशवे नमः
ॐ विश्वभर्ताय नमः ।
ॐ जगद्गुरवे नमः
ॐ जगन्नेत्रे नमः ।
ॐ जगन्नथाय नमः
ॐ जगदीशाय नमः
ॐ जनेश्वराय नमः
ॐ जगद्धिताय नमः ।
ॐ हरये नमः
ॐ श्रीशाय नमः
ॐ गरुडस्मयभंजनाय नमः
ॐ पार्थ-ध्वजाय नमः
ॐ वायु-पुत्राय नमः
ॐ अमित-पुच्छाय नमः
ॐ अमित-विक्रमाय नमः
ॐ ब्रह्म-पुच्छाय नमः
ॐ परब्रह्म-पुच्छाय नमः
ॐ रामेष्ट-कारकाय नमः
ॐ सुग्रीवादि-युताय नमः
ॐ ज्ञानिने नमः ।
ॐ वानराय नमः
ॐ वानरेश्वराय नमः
ॐ कल्पस्थायिने नमः ।
ॐ चिरंजीविने नमः ।
ॐ तपनाय नमः
ॐ सदा-शिवाय नमः
ॐ सन्नताय नमः
ॐ सद्गते नमः
ॐ भुक्ति-मुक्तिदाय नमः
ॐ कीर्ति-दायकाय नमः
ॐ कीर्तये नमः
ॐ कीर्ति-प्रदाय नमः
ॐ समुद्राय नमः
ॐ श्रीप्रदाय नमः
ॐ शिवाय नमः
ॐ भक्तोदयाय नमः ।
ॐ भक्तगम्याय नमः ।
ॐ भक्त-भाग्य-प्रदायकाय नमः ।
ॐ उदधिक्रमणाय नमः
ॐ देवाय नमः
ॐ संसार-भय-नाशनाय नमः
ॐ वार्धि-बंधनकृदाय नमः ।
ॐ विश्व-जेताय नमः ।
ॐ विश्व-प्रतिष्ठिताय नमः
ॐ लंकारये नमः
ॐ कालपुरुषाय नमः
ॐ लंकेश-गृह- भंजनाय नमः
ॐ भूतावासाय नमः
ॐ वासुदेवाय नमः
ॐ वसवे नमः
ॐ त्रिभुवनेश्वराय नमः
ॐ श्रीराम-रुपाय नमः
ॐ कृष्णस्तवे नमः
ॐ लंका-प्रासाद-भंजकाय नमः
ॐ कृष्णाय नमः
ॐ कृष्ण-स्तुताय नमः
ॐ शान्ताय नमः
ॐ शान्तिदाय नमः
ॐ विश्वपावनाय नमः
ॐ विश्व-भोक्त्रे नमः ।
ॐ मारिघ्नाय नमः
ॐ ब्रह्मचारिणे नमः ।
ॐ जितेन्द्रियाय नमः
ॐ ऊर्ध्वगाय नमः
ॐ लान्गुलिने नमः ।
ॐ मालिने नमः।
ॐ लान्गूला-हत-राक्षसाय नमः
ॐ समीर-तनुजाय नमः
ॐ वीराय नमः
ॐ वीर-ताराय नमः
ॐ जय-प्रदाय नमः
ॐ जगन्मन्गलदाय नमः
ॐ पुण्याय नमः
ॐ पुण्य-श्रवण-कीर्तनाय नमः
ॐ पुण्यकीर्तये नमः
ॐ पुण्य-गीतये नमः
ॐ जगत्पावन-पावनाय नमः
ॐ देवेशाय नमः
ॐ जितमाराय नमः
ॐ राम-भक्ति-विधायकाय नमः
ॐ ध्यात्रे नमः।
ॐ ध्येयाय नमः
ॐ लयाय नमः
ॐ साक्षिणे नमः ।
ॐ चेत्रे नमः।
ॐ चैतन्य-विग्रहाय नमः
ॐ ज्ञानदाय नमः
ॐ प्राणदाय नमः
ॐ प्राणाय नमः
ॐ जगत्प्राणाय नमः
ॐ समीरणाय नमः
ॐ विभीषण-प्रियाय नमः
ॐ शूराय नमः
ॐ पिप्पलाश्रयाय नमः
ॐ सिद्धिदाय नमः
ॐ सिद्धाय नमः
ॐ सिद्धाश्रयाय नमः
ॐ कालाय नमः
ॐ महोक्षाय नमः ।
ॐ काल-जान्तकाय नमः
ॐ लंकेश-निधन-स्थायिने नमः
ॐ लंका-दाहकाय नमः ।
ॐ ईश्वराय नमः
ॐ चन्द्र-सूर्य-अग्नि-नेत्राय नमः
ॐ कालाग्ने नमः
ॐ प्रलयान्तकाय नमः
ॐ कपिलाय नमः
ॐ कपीशाय नमः
ॐ पुण्यराशये नमः
ॐ द्वादश राशिगाय नमः
ॐ सर्वाश्रयाय नमः
ॐ अप्रमेयत्माय नमः ।
ॐ रेवत्यादि-निवारकाय नमः
ॐ लक्ष्मण-प्राणदात्रे नमः ।
ॐ सीता-जीवन-हेतुकाय नमः
ॐ राम-ध्येयाय नमः
ॐ हृषीकेशाय नमः
ॐ विष्णु-भक्ताय नमः
ॐ जटिने नमः
ॐ बलिने नमः
ॐ देवारिदर्पघ्ने नमः
ॐ होत्रे नमः
ॐ कर्त्रे नमः
ॐ धार्त्रे नमः
ॐ जगत्प्रभवे नमः
ॐ नगर-ग्राम-पालाय नमः
ॐ शुद्धाय नमः
ॐ बुद्धाय नमः
ॐ निरन्तराय नमः
ॐ निरंजनाय नमः
ॐ निर्विकल्पाय नमः
ॐ गुणातीताय नमः
ॐ भयंकराय नमः
ॐ हनुमते नमः ।
ॐ दुराराध्याय नमः
ॐ तपस्साध्याय नमः
ॐ महेश्वराय नमः
ॐ जानकी-घन-शोकोत्थतापहर्त्रे नमः ।
ॐ परात्पराय नमः
ॐ वाङ्मयाय नमः
ॐ सद-सद्रूपाय नमः
ॐ कारणाय नमः
ॐ प्रकृतेः-पराय नमः
ॐ भाग्यदाय नमः
ॐ निर्मलाय नमः
ॐ नेत्रे नमः
ॐ पुच्छ-लंका-विदाहकाय नमः
ॐ पुच्छ-बद्धाय नमः
ॐ यातुधानाय नमः
ॐ यातुधान-रिपुप्रियाय नमः
ॐ छायापहारिणे नमः
ॐ भूतेशाय नमः
ॐ लोकेशाय नमः
ॐ सद्गति-प्रदाय नमः
ॐ प्लवंगमेश्वराय नमः
ॐ क्रोधाय नमः
ॐ क्रोध-संरक्तलोचनाय नमः
ॐ क्रोध-हर्त्रे नमः
ॐ ताप-हर्त्रे नमः
ॐ भक्ताऽभय-वरप्रदाय नमः
ॐ वर-प्रदाय नमः
ॐ भक्तानुकंपिने नमः
ॐ विश्वेशाय नमः
ॐ पुरु-हूताय नमः
ॐ पुरंदराय नमः
ॐ अग्निने नमः
ॐ विभावसवे नमः
ॐ भास्वते नमः
ॐ यमाय नमः
ॐ निष्कृतिरेवचाय नमः
ॐ वरुणाय नमः
ॐ वायु-गति-मानाय नमः
ॐ वायवे नमः
ॐ कौबेराय नमः
ॐ ईश्वराय नमः
ॐ रवये नमः
ॐ चन्द्राय नमः
ॐ कुजाय नमः
ॐ सौम्याय नमः
ॐ गुरवे नमः
ॐ काव्याय नमः
ॐ शनैश्वराय नमः
ॐ राहवे नमः
ॐ केतवे नमः

ॐ मरुते नमः
ॐ धात्रे नमः
ॐ धर्त्रे नमः
ॐ हर्त्रे नमः
ॐ समीरजाय नमः
ॐ मशकीकृत-देवारये नमः
ॐ दैत्यारये नमः
ॐ मधुसूदनाय नमः
ॐ कामाय नमः
ॐ कपये नमः
ॐ कामपालाय नमः
ॐ कपिलाय नमः
ॐ विश्व जीवनाय नमः
ॐ भागीरथी-पदांभोजाय नमः
ॐ सेतुबंध-विशारदाय नमः
ॐ स्वाहा-काराय नमः
ॐ स्वधा-काराय नमः
ॐ हविषे नमः
ॐ कव्याय नमः
ॐ हव्यवाहकाय नमः
ॐ प्रकाशाय नमः
ॐ स्वप्रकाशाय नमः
ॐ महावीराय नमः
ॐ लघवे नमः
ॐ अमित-विक्रमाय नमः
ॐ प्रडीनोड्डीनगतिमानाय नमः
ॐ सद्गतये नमः
ॐ पुरुषोत्तमाय नमः
ॐ जगदात्मने नमः
ॐ जगद्योनये नमः
ॐ जगदंताय नमः
ॐ अनंतकाय नमः
ॐ विपात्मने नमः
ॐ निष्कलंकाय नमः
ॐ महते नमः
ॐ महदहंकृतये नमः
ॐ खाय नमः
ॐ वायवे नमः
ॐ पृथिव्यै नमः
ॐ आपोभ्य नमः
ॐ वह्नये नमः
ॐ दिक्पालाय नमः
ॐ एकस्थाय नमः
ॐ क्षेत्रज्ञाय नमः
ॐ क्षेत्र-पालाय नमः
ॐ पल्वली-कृत-सागराय नमः
ॐ हिरण्मयाय नमः
ॐ पुराणाय नमः
ॐ खेचराय नमः
ॐ भुचराय नमः
ॐ मनसे नमः
ॐ हिरण्यगर्भाय नमः
ॐ सूत्राम्णे नमः
ॐ राज-राजाय नमः
ॐ विशांपतये नमः
ॐ वेदांत-वेद्याय नमः
ॐ उद्गीथाय नमः
ॐ वेदवेदांग- पारगाय नमः
ॐ प्रति-ग्राम-स्थिताय नमः
ॐ साध्याय नमः
ॐ स्फूर्ति दात्रे नमः
ॐ गुणाकराय नमः
ॐ नक्षत्र-मालिने नमः
ॐ भूतात्मने नमः
ॐ सुरभये नमः
ॐ कल्प-पादपाय नमः
ॐ चिन्ता-मणये नमः
ॐ गुणनिधये नमः
ॐ प्रजापतये नमः
ॐ अनुत्तमाय नमः
ॐ पुण्यश्लोकाय नमः
ॐ पुरारातये नमः
ॐ ज्योतिष्मते नमः
ॐ शर्वरीपतये नमः
ॐ किलिकिल्यारवत्रस्त-प्रेत-भूत-पिशाचकाय नमः
ॐ ऋणत्रय-हराय नमः
ॐ सूक्ष्माय नमः
ॐ स्थूलाय नमः
ॐ सर्वगतये नमः
ॐ पुंसे नमः
ॐ अपस्मार-हराय नमः
ॐ स्मर्त्रे नमः
ॐ श्रुतये नमः
ॐ गाथायै नमः
ॐ स्मृतये नमः
ॐ मनवे नमः
ॐ स्वर्ग-द्वाराय नमः
ॐ प्रजा-द्वाराय नमः
ॐ मोक्ष-द्वाराय नमः
ॐ यतीश्वराय नमः
ॐ नाद-रूपाय नमः
ॐ पर-ब्रह्मणे नमः
ॐ ब्रह्मणे नमः
ॐ ब्रह्म-पुरातनाय नमः
ॐ एकाय नमः
ॐ अनेकाय नमः
ॐ जनाय नमः
ॐ शुक्लाय नमः
ॐ स्वयज्योतिषे नमः
ॐ अनाकुलाय नमः
ॐ ज्योति-ज्योतिषे नमः
ॐ अनादये नमः
ॐ सात्त्विकाय नमः
ॐ राजसत्तमाय नमः
ॐ तमसे नमः
ॐ तमो-हर्त्रे नमः
ॐ निरालंबाय नमः
ॐ निराकाराय नमः
ॐ गुणाकराय नमः
ॐ गुणाश्रयाय नमः
ॐ गुणमयाय नमः
ॐ बृहत्कायाय नमः
ॐ बृहद्यशसे नमः
ॐ बृहद्धनुषे नमः
ॐ बृहत्पादाय नमः
ॐ बृहन्नमूर्ध्ने नमः
ॐ बृहत्स्वनाय नमः
ॐ बृहत्कर्णाय नमः
ॐ बृहन्नासाय नमः
ॐ बृहन्नेत्राय नमः
ॐ बृहत्गलाय नमः
ॐ बृहध्यन्त्राय नमः
ॐ बृहत्चेष्टाय नमः
ॐ बृहत्पुच्छाय नमः
ॐ बृहत्कराय नमः
ॐ बृहत्गतये नमः
ॐ बृहत्सेव्याय नमः
ॐ बृहल्लोक-फलप्रदाय नमः
ॐ बृहच्छक्तये नमः
ॐ बृहद्वांछा-फलदाय नमः
ॐ बृहदीश्वराय नमः
ॐ बृहल्लोकनुताय नमः
ॐ द्रंष्टे नमः
ॐ विद्या-दात्रे नमः
ॐ जगद्गुरवे नमः
ॐ देवाचार्याय नमः
ॐ सत्य-वादिने नमः
ॐ ब्रह्म-वादिने नमः
ॐ कलाधराय नमः
ॐ सप्त-पातालगामिने नमः
ॐ मलयाचल-संश्रयाय नमः
ॐ उत्तराशास्थिताय नमः
ॐ श्रीदाय नमः
ॐ दिव्य-औषधि-वशाय नमः
ॐ खगाय नमः
ॐ शाखामृगाय नमः
ॐ कपीन्द्राय नमः
ॐ पुराणाय नमः
ॐ श्रुति-संचराय नमः
ॐ चतुराय नमः
ॐ ब्राह्मणाय नमः
ॐ योगिने नमः
ॐ योगगम्याय नमः
ॐ परात्पराय नमः
ॐ अनादये नमः
ॐ निधनाय नमः
ॐ व्यासाय नमः
ॐ वैकुण्ठाय नमः
ॐ पृथ्वी-पतये नमः
ॐ अपराजितये नमः
ॐ जितारातये नमः
ॐ सदानन्दाय नमः
ॐ ईशित्रे नमः
ॐ गोपालाय नमः
ॐ गोपतये नमः
ॐ गोप्त्रे नमः
ॐ कलये नमः
ॐ कालाय नमः
ॐ परात्पराय नमः
ॐ मनोवेगिने नमः
ॐ सदा-योगिने नमः
ॐ संसार-भय-नाशनाय नमः
ॐ तत्त्व-दात्रे नमः
ॐ तत्त्वज्ञाय नमः
ॐ तत्त्वाय नमः
ॐ तत्त्व-प्रकाशाय नमः
ॐ शुद्धाय नमः
ॐ बुद्धाय नमः
ॐ नित्यमुक्ताय नमः
ॐ भक्त-राजाय नमः
ॐ जयप्रदाय नमः
ॐ प्रलयाय नमः
ॐ अमित-मायाय नमः
ॐ मायातीताय नमः
ॐ विमत्सराय नमः
ॐ माया-निर्जित-रक्षसे नमः
ॐ माया-निर्मित-विष्टपाय नमः
ॐ मायाश्रयाय नमः
ॐ निर्लेपाय नमः
ॐ माया-निर्वंचकाय नमः
ॐ सुखाय नमः
ॐ सुखिने नमः
ॐ सुखप्रदाय नमः
ॐ नागाय नमः
ॐ महेशकृत-संस्तवाय नमः
ॐ महेश्वराय नमः
ॐ सत्यसंधाय नमः
ॐ शरभाय नमः
ॐ कलि-पावनाय नमः
ॐ रसाय नमः
ॐ रसज्ञाय नमः
ॐ सम्मानाय नमः
ॐ तपस्चक्षवे नमः
ॐ भैरवाय नमः
ॐ घ्राणाय नमः
ॐ गन्धाय नमः
ॐ स्पर्शनाय नमः
ॐ स्पर्शाय नमः
ॐ अहंकारमानदाय नमः
ॐ नेति-नेति-गम्याय नमः
ॐ वैकुण्ठ-भजन-प्रियाय नमः
ॐ गिरीशाय नमः
ॐ गिरिजा-कान्ताय नमः
ॐ दूर्वाससे नमः
ॐ कवये नमः
ॐ अंगिरसे नमः
ॐ भृगुवे नमः
ॐ वसिष्ठाय नमः
ॐ च्यवनाय नमः
ॐ तुम्बुरुवे नमः
ॐ नारदाय नमः
ॐ अमलाय नमः
ॐ विश्व-क्षेत्राय नमः
ॐ विश्व-बीजाय नमः
ॐ विश्व-नेत्राय नमः
ॐ विश्वगाय नमः
ॐ याजकाय नमः
ॐ यजमानाय नमः
ॐ पावकाय नमः
ॐ पित्रे नमः
ॐ श्रद्धायै नमः
ॐ बुद्धये नमः
ॐ क्षमायै नमः
ॐ तन्त्राय नमः
ॐ मन्त्राय नमः
ॐ मन्त्रयुताय नमः
ॐ स्वराय नमः
ॐ राजेन्द्राय नमः
ॐ भूपतये नमः
ॐ रुण्ड-मालिने नमः
ॐ संसार-सारथये नमः
ॐ नित्याय नमः
ॐ संपूर्ण-कामाय नमः
ॐ भक्त कामदुधे नमः
ॐ उत्तमाय नमः
ॐ गणपाय नमः
ॐ केशवाय नमः
ॐ भ्रात्रे नमः
ॐ पित्रे नमः
ॐ मात्रे नमः
ॐ मारुतये नमः
ॐ सहस्र-शीर्षा-पुरुषाय नमः
ॐ सहस्राक्षाय नमः
ॐ सहस्रपाताय नमः
ॐ कामजिते नमः
ॐ काम-दहनाय नमः
ॐ कामाय नमः
ॐ काम्य-फल-प्रदाय नमः
ॐ मुद्रापहारिणे नमः
ॐ रक्षोघ्नाय नमः
ॐ क्षिति-भार-हराय नमः
ॐ बलाय नमः
ॐ नख-दंष्ट्रा-युधाय नमः
ॐ विष्णु-भक्ताय नमः
ॐ अभय-वर-प्रदाय नमः
ॐ दर्पघ्ने नमः
ॐ दर्पदाय नमः
ॐ इष्टाय नमः
ॐ शत-मूर्त्तये नमः
ॐ अमूर्त्तिमते नमः
ॐ महा-निधये नमः
ॐ महा-भागाय नमः
ॐ महा-भर्गाय नमः
ॐ महार्थदाय नमः
ॐ महाकाराय नमः
ॐ महा-योगिने नमः
ॐ महा-तेजसे नमः
ॐ महा-द्युतये नमः
ॐ महा-कर्मणे नमः
ॐ महा-नादाय नमः
ॐ महा-मन्त्राय नमः
ॐ महा-मतये नमः
ॐ महाशयाय नमः
ॐ महोदराय नमः
ॐ महादेवात्मकाय नमः
ॐ विभवे नमः
ॐ रुद्र-कर्मणे नमः
ॐ अकृत-कर्मणे नमः
ॐ रत्न-नाभाय नमः
ॐ कृतागमाय नमः
ॐ अम्भोधि-लंघनाय नमः
ॐ सिंहाय नमः
ॐ नित्याय नमः
ॐ धर्माय नमः
ॐ प्रमोदनाय नमः
ॐ जितामित्राय नमः
ॐ जयाय नमः
ॐ सम-विजयाय नमः
ॐ वायु-वाहनाय नमः
ॐ जीव-दात्रे नमः
ॐ सहस्रांशवे नमः
ॐ मुकुन्दाय नमः
ॐ भूरि-दक्षिणाय नमः
ॐ सिद्धर्थाय नमः
ॐ सिद्धिदाय नमः
ॐ सिद्ध-संकल्पाय नमः
ॐ सिद्धि-हेतुकाय नमः
ॐ सप्त-पातालचरणाय नमः
ॐ सप्तर्षि-गण-वन्दिताय नमः
ॐ सप्ताब्धि-लंघनाय नमः
ॐ वीराय नमः
ॐ सप्त-द्वीपोरुमण्डलाय नमः
ॐ सप्तांग-राज्य-सुखदाय नमः
ॐ सप्त-मातृ-निशेविताय नमः
ॐ सप्त-लोकैक-मुकुटाय नमः
ॐ सप्त-होता-स्वराश्रयाय नमः
ॐ सप्तच्छन्द-निधये नमः
ॐ सप्तच्छन्दसे नमः
ॐ सप्त-जनाश्रयाय नमः
ॐ सप्त-सामोपगीताय नमः
ॐ सप्त-पातल-संश्रयाय नमः
ॐ मेधावी-कीर्तिदाय नमः
ॐ शोक-हारिणे नमः
ॐ दौर्भाग्य-नाशनाय नमः
ॐ सर्व-वश्यकराय नमः
ॐ गर्भ-दोषघ्नाय नमः
ॐ पुत्र-पौत्र-दाय नमः
ॐ प्रतिवादि-मुखस्तंभिने नमः
ॐ तुष्टचित्ताय नमः
ॐ प्रसादनाय नमः
ॐ पराभिचारशमनाय नमः
ॐ दवे नमः
ॐ खघ्नाय नमः
ॐ बंध-मोक्षदाय नमः
ॐ नव-द्वार-पुराधाराय नमः
ॐ नव-द्वार-निकेतनाय नमः
ॐ नर-नारायण-स्तुत्याय नमः
ॐ नरनाथाय नमः
ॐ महेश्वराय नमः
ॐ मेखलिने नमः
ॐ कवचिने नमः
ॐ खद्गिने नमः
ॐ भ्राजिष्णवे नमः
ॐ जिष्णुसारथये नमः
ॐ बहु-योजन-विस्तीर्ण-पुच्छाय नमः
ॐ पुच्छ-हतासुराय नमः
ॐ दुष्टग्रह-निहंत्रे नमः
ॐ पिशाच-ग्रह-घातकाय नमः
ॐ बाल-ग्रह-विनाशिने नमः
ॐ धर्माय नमः
ॐ नेता-कृपाकराय नमः
ॐ उग्रकृत्याय नमः
ॐ उग्रवेगिने नमः
ॐ उग्र-नेत्राय नमः
ॐ शत-क्रतवे नमः
ॐ शत-मन्युस्तुताय नमः
ॐ स्तुत्याय नमः
ॐ स्तुतये नमः
ॐ स्तोत्रे नमः
ॐ महा-बलाय नमः
ॐ समग्र-गुणशालिने नमः
ॐ अव्यग्राय नमः
ॐ रक्षाय नमः
ॐ विनाशकाय नमः
ॐ रक्षोघ्न-हस्ताय नमः
ॐ ब्रह्मेशाय नमः
ॐ श्रीधराय नमः
ॐ भक्त-वत्सलाय नमः
ॐ मेघ-नादाय नमः
ॐ मेघ-रूपाय नमः
ॐ मेघ-वृष्टि-निवारकाय नमः
ॐ मेघ-जीवन-हेतवे नमः
ॐ मेघ-श्यामाय नमः
ॐ परात्मकाय नमः
ॐ समीर-तनयाय नमः
ॐ बोध्-तत्त्व-विद्या-विशारदाय नमः
ॐ अमोघाय नमः
ॐ अमोघहृष्टये नमः
ॐ इष्टदाय नमः
ॐ अनिष्ट-नाशनाय नमः
ॐ अर्थाय नमः
ॐ अनर्थापहारिणे नमः
ॐ समर्थाय नमः
ॐ राम-सेवकाय नमः
ॐ अर्थिने नमः
ॐ धन्याय नमः
ॐ असुरारातये नमः
ॐ पुण्डरीकाक्षाय नमः
ॐ आत्मभूवे नमः
ॐ संकर्षणाय नमः
ॐ विशुद्धात्मने नमः
ॐ विद्या-राशये नमः
ॐ सुरेश्वराय नमः
ॐ अचलोद्धारकाय नमः
ॐ नित्याय नमः
ॐ सेतुकृते नमः
ॐ राम-सारथये नमः
ॐ आनन्दाय नमः
ॐ परमानन्दाय नमः
ॐ मत्स्याय नमः
ॐ कूर्माय नमः
ॐ निधये नमः
ॐ शूराय नमः
ॐ वाराहाय नमः
ॐ नारसिंहाय नमः
ॐ वामनाय नमः
ॐ जमदग्निजाय नमः
ॐ रामाय नमः
ॐ कृष्णाय नमः
ॐ शिवाय नमः
ॐ बुद्धाय नमः
ॐ कल्किने नमः
ॐ रामाश्रयाय नमः
ॐ हराय नमः
ॐ नन्दिने नमः
ॐ भृन्गिने नमः
ॐ चण्डिने नमः
ॐ गणेशाय नमः
ॐ गण-सेविताय नमः
ॐ कर्माध्यक्ष्याय नमः
ॐ सुराध्यक्षाय नमः
ॐ विश्रामाय नमः
ॐ जगतांपतये नमः
ॐ जगन्नथाय नमः
ॐ कपि-श्रेष्टाय नमः
ॐ सर्ववासाय नमः
ॐ सदाश्रयाय नमः
ॐ सुग्रीवादिस्तुताय नमः
ॐ शान्ताय नमः
ॐ सर्व-कर्मणे नमः
ॐ प्लवंगमाय नमः
ॐ नखदारितरक्षसे नमः
ॐ नख-युद्ध-विशारदाय नमः
ॐ कुशलाय नमः
ॐ सुघनाय नमः
ॐ शेषाय नमः
ॐ वासुकये नमः
ॐ तक्षकाय नमः
ॐ स्वराय नमः
ॐ स्वर्ण-वर्णाय नमः
ॐ बलाढ्याय नमः
ॐ राम-पूज्याय नमः
ॐ अघनाशनाय नमः
ॐ कैवल्य-दीपाय नमः
ॐ कैवल्याय नमः
ॐ गरुडाय नमः
ॐ पन्नगाय नमः
ॐ गुरवे नमः
ॐ क्लिक्लिरावणहतारातये नमः
ॐ गर्वाय नमः
ॐ पर्वत-भेदनाय नमः
ॐ वज्रांगाय नमः
ॐ वज्र-वेगाय नमः
ॐ भक्ताय नमः
ॐ वज्र-निवारकाय नमः
ॐ नखायुधाय नमः
ॐ मणिग्रीवाय नमः
ॐ ज्वालामालिने नमः
ॐ भास्कराय नमः
ॐ प्रौढ-प्रतापाय नमः
ॐ तपनाय नमः
ॐ भक्त-ताप-निवारकाय नमः
ॐ शरणाय नमः
ॐ जीवनाय नमः
ॐ भोक्त्रे नमः
ॐ नानाचेष्टा नमः
ॐ चंचलाय नमः
ॐ सुस्वस्थाय नमः
ॐ अस्वास्थ्यघ्ने नमः
ॐ दवे नमः
ॐ खशमनाय नमः
ॐ पवनात्मजाय नमः
ॐ पावनाय नमः
ॐ पवनाय नमः
ॐ कान्ताय नमः
ॐ भक्तागाय नमः
ॐ सहनाय नमः
ॐ बलाय नमः
ॐ मेघनाद-रिपवे नमः
ॐ मेघनाद-संहृतराक्षसाय नमः
ॐ क्षराय नमः
ॐ अक्षराय नमः
ॐ विनीतात्मा वानरेशाय नमः
ॐ सतांगतये नमः
ॐ शिति-कण्ठाय नमः
ॐ श्री-कण्ठाय नमः
ॐ सहायाय नमः
ॐ सहनायकाय नमः
ॐ अस्थलाय नमः
ॐ अनणवे नमः
ॐ भर्गाय नमः
ॐ देवाय नमः
ॐ संसृतिनाशनाय नमः
ॐ अध्यात्म-विद्याय नमः
ॐ साराय नमः
ॐ अध्यात्म-कुशलाय नमः
ॐ सुधिये नमः
ॐ अकल्मषाय नमः
ॐ सत्य-हेतवे नमः
ॐ सत्यगाय नमः
ॐ सत्य-गोचराय नमः
ॐ सत्य-गर्भाय नमः
ॐ सत्य-रूपाय नमः
ॐ सत्याय नमः
ॐ सत्य-पराक्रमाय नमः
ॐ अन्जना-प्राणलिंगाय नमः
ॐ वायु-वंशोद्भवाय नमः
ॐ शुभाय नमः
ॐ भद्र-रूपाय नमः
ॐ रुद्र-रूपाय नमः
ॐ सुरूपस्चित्र-रूपधृताय नमः
ॐ मैनाक-वंदिताय नमः
ॐ सूक्ष्म-दर्शनाय नमः
ॐ विजयाय नमः
ॐ जयाय नमः
ॐ क्रान्त-दिग्मण्डलाय नमः
ॐ रुद्राय नमः
ॐ प्रकटीकृत-विक्रमाय नमः
ॐ कम्बु-कण्ठाय नमः
ॐ प्रसन्नात्मने नमः
ॐ ह्रस्व-नासाय नमः
ॐ वृकोदराय नमः
ॐ लंबोष्टाय नमः
ॐ कुण्डलिने नमः
ॐ चित्र-मालिने नमः
ॐ योग-विदावराय नमः
ॐ वराय नमः
ॐ विपश्चिताय नमः
ॐ कविरानन्द-विग्रहाय नमः
ॐ अनन्य-शासनाय नमः
ॐ फल्गुणीसूनुरव्यग्राय नमः
ॐ योगात्मने नमः
ॐ योगतत्पराय नमः
ॐ योग-वेद्याय नमः
ॐ योग-कर्त्रे नमः
ॐ योग-योनये नमः
ॐ दिगंबराय नमः
ॐ अकारादि-क्षकारान्ताय नमः
ॐ वर्ण-निर्मिताय नमः
ॐ विग्रहाय नमः
ॐ उलूखल-मुखाय नमः
ॐ सिंहाय नमः
ॐ संस्तुताय नमः
ॐ परमेश्वराय नमः
ॐ श्लिष्ट-जंघाय नमः
ॐ श्लिष्ट-जानवे नमः
ॐ श्लिष्ट-पाणये नमः
ॐ शिखा-धराय नमः
ॐ सुशर्मणे नमः
ॐ अमित-शर्मणे नमः
ॐ नारायण-परायणाय नमः
ॐ जिष्णवे नमः
ॐ भविष्णवे नमः
ॐ रोचिष्णवे नमः
ॐ ग्रसिष्णवे नमः
ॐ स्थाणुरेवाय नमः
ॐ हरये नमः
ॐ रुद्रानुकृते नमः
ॐ वृक्ष-कंपनाय नमः
ॐ भूमि-कंपनाय नमः
ॐ गुण-प्रवाहाय नमः
ॐ सूत्रात्मने नमः
ॐ वीत-रागाय नमः
ॐ स्तुति-प्रियाय नमः
ॐ नाग-कन्या-भय-ध्वंसिने नमः
ॐ ऋतु-पर्णाय नमः
ॐ कपाल-भृताय नमः
ॐ अनाकुलाय नमः
ॐ भवोपायाय नमः
ॐ अनपायाय नमः
ॐ वेद-पारगाय नमः
ॐ अक्षराय नमः
ॐ पुरुषाय नमः
ॐ लोक-नाथाय नमः
ॐ रक्ष-प्रभवे नमः
ॐ दृडाय नमः
ॐ अष्टांग-योगाय नमः
ॐ फलभुवे नमः
ॐ सत्य-संधाय नमः
ॐ पुरुष्टुताय नमः
ॐ श्मशान-स्थान-निलयाय नमः
ॐ प्रेत-विद्रावणाय नमः
ॐ क्षमाय नमः
ॐ पंचाक्षर-पराय नमः
ॐ पञ्च-मातृकाय नमः
ॐ रंजनाय नमः
ॐ ध्वजाय नमः
ॐ योगिने नमः
ॐ वृन्द-वंद्याय नमः
ॐ शत्रुघ्नाय नमः
ॐ अनन्त-विक्रमाय नमः
ॐ ब्रह्मचारिणे नमः
ॐ इन्द्रिय-रिपवे नमः
ॐ धृतदण्डाय नमः
ॐ दशात्मकाय नमः
ॐ अप्रपंचाय नमः
ॐ सदाचाराय नमः
ॐ शूर-सेना-विदारकाय नमः
ॐ वृद्धाय नमः
ॐ प्रमोदाय नमः
ॐ आनंदाय नमः
ॐ सप्त-जिह्व-पतिर्धराय नमः
ॐ नव-द्वार-पुराधाराय नमः
ॐ प्रत्यग्राय नमः
ॐ सामगायकाय नमः
ॐ षट्चक्रधाम्ने नमः
ॐ स्वर्लोकाय नमः
ॐ भयहृते नमः
ॐ मानदाय नमः
ॐ अमदाय नमः
ॐ सर्व-वश्यकराय नमः
ॐ शक्तिरनन्ताय नमः
ॐ अनन्त-मंगलाय नमः
ॐ अष्ट-मूर्तिर्धराय नमः
ॐ नेत्रे नमः
ॐ विरूपाय नमः
ॐ स्वर-सुन्दराय नमः
ॐ धूम-केतवे नमः
ॐ महा-केतवे नमः
ॐ सत्य-केतवे नमः
ॐ महारथाय नमः
ॐ नन्दि-प्रियाय नमः
ॐ स्वतन्त्राय नमः
ॐ मेखलिने नमः
ॐ समर-प्रियाय नमः
ॐ लोहांगाय नमः
ॐ सर्वविदे नमः
ॐ धन्विने नमः
ॐ षट्कलाय नमः
ॐ शर्वाय नमः
ॐ ईश्वराय नमः
ॐ फल-भुजे नमः
ॐ फल-हस्ताय नमः
ॐ सर्व-कर्म-फलप्रदाय नमः
ॐ धर्माध्यक्षाय नमः
ॐ धर्म-फलाय नमः
ॐ धर्माय नमः
ॐ धर्म-प्रदाय नमः
ॐ अर्थदाय नमः
ॐ पं-विंशति-तत्त्वज्ञाय नमः
ॐ तारक-ब्रह्म-तत्पराय नमः
ॐ त्रि-मार्गवसतये नमः
ॐ भीमाये नमः
ॐ सर्व-दुष्ट-निबर्हणाय नमः
ॐ ऊर्जस्वानाय नमः
ॐ निष्कलाय नमः
ॐ मौलिने नमः
ॐ गर्जाय नमः
ॐ निशाचराय नमः
ॐ रक्तांबर-धराय नमः
ॐ रक्ताय नमः
ॐ रक्त-माला-विभूषणाय नमः
ॐ वन-मालिने नमः
ॐ शुभांगांय नमः
ॐ श्वेताय नमः
ॐ श्वेतांबराय नमः
ॐ जयाय नमः
ॐ जय-परीवाराय नमः
ॐ सहस्र-वदनाय नमः
ॐ कपये नमः
ॐ शाकिनी-डाकिनी-यक्ष-रक्षाय नमः
ॐ भूतौघ-भंजनाय नमः
ॐ सद्योजाताय नमः
ॐ कामगतये नमः
ॐ ज्ञान-मूर्तये नमः
ॐ यशस्कराय नमः
ॐ शंभु-तेजसे नमः
ॐ सार्वभौमाय नमः
ॐ विष्णु-भक्ताय नमः
ॐ चतुर्नवति-मन्त्रज्ञाय नमः
ॐ पौलस्त्य-बल-दर्पहाय नमः
ॐ सर्व-लक्ष्मी-प्रदाय नमः
ॐ श्रीमानाय नमः
ॐ अन्गदप्रियाय नमः
ॐ स्मृतये नमः
ॐ सुरेशानाय नमः
ॐ संसार-भय-नाशनाय नमः
ॐ उत्तमाय नमः
ॐ श्रीपरिवाराय नमः
ॐ सदागतिर्मातरये नमः
ॐ राम-पादाब्ज-षट्पदाय नमः
ॐ नील-प्रियाय नमः
ॐ नील-वर्णाय नमः
ॐ नील-वर्ण-प्रियाय नमः
ॐ सुहृताय नमः
ॐ राम दूताय नमः
ॐ लोक-बन्धवे नमः
ॐ अन्तरात्मा-मनोरमाय नमः
ॐ श्री राम ध्यानकृद् वीराय नमः
ॐ सदा किंपुरुषस्स्तुताय नमः
ॐ राम कार्यांतरंगाय नमः
ॐ शुद्धिर्गतिरानमयाय नमः
ॐ पुण्य श्लोकाय नमः
ॐ परानन्दाय नमः
ॐ परेशाय नमः
ॐ प्रिय सारथये नमः
ॐ लोक-स्वामिने नमः
ॐ मुक्ति-दात्रे नमः
ॐ सर्व-कारण-कारणाय नमः
ॐ महा-बलाय नमः
ॐ महा-वीराय नमः
ॐ पारावारगतये नमः
ॐ समस्त-लोक-साक्षिणे नमः
ॐ समस्त-सुर-वंदिताय नमः
ॐ सीता-समेत-श्रीराम-पाद-सेवा-धुरंधराय नमः

अनेन सहस्त्रनाम्नाऽमुकद्रव्यसमर्पणेन श्री हनुमद्देवता प्रीयताम् न मम।।

https://youtu.be/XfpY7YI9CHc

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