Tuesday, 7 September 2021

व्याधि नाश के लिए मंत्र --

व्याधि नाश के लिए मंत्र ---

उतदेवा अवहितं देवन्नयथा पुन:।
उतागश्र्चक्रुषं देवादेवाजीवयथा पुन:।।
मंत्र को व्रतपूर्वक जप करने से प्रत्येक रोगों का नाश होता है तथा व्याधियों से छुटकारा मिलता है।

संतान-प्राप्ति के लिए मंत्र---

अपश्यं त्वमनसा दीध्यानां
स्वायां तनू ऋत्वये नाधमानाम्
उप मामुच्या युवतिर्बभूय:
प्रजायस्व प्रजया पुत्र कामे।
पवित्र होकर व्रत करके उपरोक्त मंत्र का जाप करने से संतान की प्राप्ति होती है।

मनवांछित वस्तुओं की प्राप्ति के लिए मंत्र---

उभन्यासो जातवेश: स्याम ते
स्तोतारो अग्ने सूर्यजश्र्च शर्मणि।
वस्वोराय: पुरुष्चंद्रस्य भूयस:
प्रजावत: स्वपत्यस्य शाग्धिन:।

इस मंत्र ऋचा का नियमित जप करने से मनोवांछित वस्तुओं की प्राप्ति होती है। ये सभी मंत्र ऋग्वेद के प्रमुख मंत्र हैं। इनका प्रयोग करने से मनुष्य जीवन का कल्याण होता ही है।

साधना स्थल कैसा हो -

साधना स्थल कैसा हो -
मंत्र साधना की सफलता में साधना का स्थान बहुत महत्व रखता है। जो स्थान मंत्र की सफलता दिलाता है। सिद्ध पीठ कहलाता है। मंत्र की साधना के लिए उचित स्थान के रूप में तीर्थ स्थान, गुफा, पर्वत, शिखर, नदी, तट-वन, उपवन इसी के साथ बिल्वपत्र का वृक्ष, पीपल वृक्ष अथवा तुलसी का पौधा सिद्ध स्थल माना गया है।

आहार - मंत्र साधक को सदा ही शुद्ध व पवित्र एवं सात्विक आहार करना चाहिए। दूषित आहार को साधक ने नहीं ग्रहण करना चाहिए। इस प्रकार प्रथम एवं द्वितीय जानकारी को ध्यान में रखकर किया गया मंत्र सिद्धकारी होता है। आपके एवं जनकल्याण के लिए कुछ प्रयोग दे रहे हैं।

रामचरित मानस जन-जन में लोकप्रिय एवं प्रामाणिक ग्रंथ हैं। इसमें वर्णित दोहा, सोरठा, चौपाई पाठक के मन पर अद्‍भुत प्रभाव छोड़ते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार इसमें रचित कुछ पंक्तियाँ समस्याओं से छुटकारा दिलाने में भी सक्षम है। हम अपने पाठकों के लिए कुछ चयनित पंक्तियाँ दे रहे हैं। ये पंक्तियाँ दोहे-चौपाई एवं सोरठा के रूप में हैं।

इन्हें इन मायनों में चमत्कारिक मंत्र कहा जा सकता है कि ये सामान्य साधकों के लिए है। मानस मंत्र है। इनके लिए किसी विशेष विधि-विधान की जरूरत नहीं होती। इन्हें सिर्फ मन-कर्म-वचन की शुद्धि से श्रीराम का स्मरण करके मन ही मन श्रद्धा से जपा जा सकता है। इन्हें सिद्ध करने के लिए किसी माला या संख्यात्मक जाप की आवश्‍यकता नहीं हैं बल्कि सच्चे मन से कभी भी इनका ध्यान किया जा सकता है।

प्रस्तुत है चयनित मंत्र

* मुकदमें में विजय के लिए

पवन तनय बल पवन समाना।
बुधि विवेक विज्ञान निधाना।।

* शत्रु नाश के लिए
बयरू न कर काहू सन कोई।
रामप्रताप विषमता खोई।।

* अपयश नाश के लिए
रामकृपा अवरैब सुधारी।
विबुध धारि भई गुनद गोहारी।।

* मनोरथ प्राप्ति के लिए
मोर मनोरथु जानहु नीके।
बसहु सदा उर पुर सबही के।।

* विवाह के लिए
तब जन पाई बसिष्ठ आयसु ब्याह।
साज सँवारि कै।
मांडवी, श्रुतकी, रति, उर्मिला कुँअरि
लई हंकारि कै।

* इच्छित वर प्राप्ति के लिए
जानि गौरि अनुकूल सिय हिय ह‍रषि न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे।।

* सर्वपीड़ा नाश के लिए
जासु नाम भव भेषज हरन घोर त्रय सूल।
सो कृपालु मोहि तो पर सदा रहउ अनुकूल।।

* श्रेष्‍ठ पति प्राप्ति के लिए
गावहि छवि अवलोकि सहेली।
सिय जयमाल राम उर मेली।।

* पुत्र प्राप्ति के लिए
प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बाल चरित कर गान।।

* सर्वसुख प्राप्ति के लिए
सुनहि विमुक्त बिरत अरू विषई।
लहहि भगति गति सं‍पति सई।।

* ऋद्धि-सिद्धि प्राप्ति के लिए
साधक नाम जपहि लय लाएँ।
होहि सिद्ध अनिमादिक पाएँ।।

सर्वविघ्नहरण मंत्र

सर्वविघ्नहरण मंत्र
ऊँ नम: शान्ते प्रशान्ते ऊँ ह्यीं ह्रां सर्व क्रोध प्रशमनी स्वाहा।

इस मंत्र को नियमपूर्वक प्रतिदिन प्रात:काल इक्कीस बार स्मरण करने के पश्चात मुख प्रक्षालन करने से तथा सायंकाल में पीपल के वृक्ष की जड़ में शर्बत चढ़ाकर धूप दीप देने से घर के सभी लोग शांतमय निर्विघ्न जीवन व्यतीत करते हैं। इसका इतना प्रभाव होता है कि पालतू जानवर भी बाधा रहित जीवन व्यतीत करता है।

पति मोहन मंत्र --

पति मोहन मंत्र ---

मंत्र - ऊँ अस्य श्री सुरी मंत्र स्वार्थ वर्ण। ऋषि इति शिपस स्वाहा।

जिस नारी का पति उससे खुश ना रहता हो, उसे निम्न मंत्र का 108 बार प्रतिदिन नियम से जाप करते हुए 108 दिन तक पाठ करना चाहिए। इससे पति, पत्नी की तरफ आकर्षित होगा एवं दोनों का जीवन आनंदमय हो जाएगा।

तिलक क्यों लगाना चाहिए ?

तिलक क्यों लगाना चाहिए ?
भारतीय संस्कृति में प्रत्येक मनुष्य अपने धर्म को बड़े विस्वास एवं आस्था के साथ निभाता है! हिन्दू पूजा करते समय या कहीं जाते समय अवस्य तिलक लगता है! महिलाये भी सुहाग के प्रतीक चिन्ह हेतु तिलक लगाती है! महिलाये लाल तिलक ही लगाती है क्योकि पति जाते समय उस तिलक को देखकर जाता है, जो सूर्य की लालिमा का प्रतीक होता है,एवं तिलक को देखकर पति को ये प्रेरणा मिलती है कि आज का दिन सूर्य कि लालिमा जैसा ( सुखमय ) रहें! एवं हर मांगलिक कार्य,शादी-विवाह,धार्मिक आयोजन,सामाजिक आयोजन में व्यक्ति तिलक लगाकर जाता है !
किसी आयोजन में आने वाले व्यक्ति का स्वागत-सत्कार हम तिलक लगाकर ही करते है! विशेषकर शादी-विवाह में बहन-बेटी या सुहागन आने वाले प्रत्येक व्यक्ति का स्वागत तिलक लगाकर करती है! विशेषकर यह प्रथा मध्यप्रदेश में मालवा एवं निमाड़ में यह प्रथा आज भी है!
तिलक मस्तक पर दोनों भौंहों के बीच नासिका के ऊपर प्रारंभिक स्थल पर लगाए जाते हैं जो हमारे चिंतन-मनन का स्थान है- यह चेतन-अवचेतन अवस्था में भी जागृत एवं सक्रिय रहता है, इसे आज्ञा-चक्र भी कहते हैं।
इसी चक्र के एक ओर दाईं ओर अजिमा नाड़ी होती है तथा दूसरी ओर वर्णा नाड़ी है।
इन दोनों के संगम बिंदु पर स्थित चक्र को निर्मल, विवेकशील, ऊर्जावान, जागृत रखने के साथ ही तनावमुक्त रहने हेतु ही तिलक लगाया जाता है।
इस बिंदु पर यदि सौभाग्यसूचक द्रव्य जैसे चंदन, केशर, कुमकुम आदि का तिलक लगाने से सात्विक एवं तेजपूर्ण होकर आत्मविश्वास में अभूतपूर्ण वृद्धि होती है, मन में निर्मलता, शांति एवं संयम में वृद्धि होती है।

मंत्र प्रयोग

मंत्र प्रयोग
गृह रक्षा- गाय का गोबर या लाल रंग का घोल लेकर उक्त मंत्र से १०८बार पढ़कर अभिमंत्रित कर लें फिर इसी मंत्र को पढ़ते हुए घर के चारों ओर रेखा खींच दें।ऐसा कर देने से घर में भूत,पिशाच,चोर डाकू के घुसने का भय नहीं रहता।साथ ही हिंसक जंतु,अग्नि भय से भी सुरक्षित रहा जा सकता हैं।
मंत्र- ॐ ह्रीं चण्डे!चामुण्डे भ्रुकुटि अट्टा ट्टे,भीम दर्शने!रक्ष रक्ष चौरेभ्यःवज्रेभ्यःअग्निभ्यःश्वापदेभ्यःदुष्टजनेभ्यःसर्वेभ्यःसर्वौपद्रवेभ्यःगण्डीःह्रीं ह्रीं ठःठः।
टोना टोटका तंत्र बाधा निवारण मंत्र- आज यह भी देखने को मिलता है कि कुछ दुष्ट लोग किसी टोना करने वाले से कोई प्रयोग करा देते है और लोग भयानक कष्ट भोगने लगते है।
दवा करने पर भी लाभ नहीं मिलता है,तब इस मंत्र को ११ माला से सिद्ध कर प्रयोग करे।लोग जादू टोना से प्रभावित होकर विक्षिप्त भी हो जाते है।किसी शुभ मूर्हूत मे ईस मंत्र का प्रयोग करें।एक दीपक जलाकर किशमिश का भोग लगा कर मंत्र सिद्ध करे,फिर प्रयोग करते समय ७बार मंत्र पढ़ फूंक मारकर उतारा कर दें।ऐसा ७बार कर देने पर सभी जादू टोना नष्ट हो जाता हैं।बाद मे एक सफेद भोजपत्र पर अष्टगंध की स्याही से अनार के कलम से मंत्र लिख ताँबा या चाँदी की ताबीज मे यंत्र भरकर काला धागा लगाकर स्त्री हो तो बांया पुरूष हो तो दांये बांह मे ७बार मंत्र पढ़ बाँध ले।
शाबर मंत्र- ॐ नमो आदेश गुरू को।ॐ अपर केश विकट भेष।खम्भ प्रति पहलाद राखे,पाताल राखे पाँव।देवी जड़घा राखे,कालिका मस्तक रखें।महादेव जी कोई या पिण्ड प्राण को छोड़े,छेड़े तो देवक्षणा भूत प्रेत डाकिनी,शाकिनी गण्ड ताप तिजारी जूड़ी एक पहरूँ साँझ को सवाँरा को कीया को कराया को,उल्टा वाहि के पिण्ड पर पड़े।इस पिण्ड की रक्षा श्री नृसिंह जी करे।शब्द साँचा,पिण्ड काचा।फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा।..................

अष्टचिरंजीवी पवनपुत्र हनुमानजी

अष्टचिरंजीवी पवनपुत्र हनुमानजी
तीन युग बीत चुके हैं सतयुग, त्रेता युग और द्वापर युग। अभी कलयुग चल रहा है। कलयुग में मात्र भगवान का नाम लेने से ही कई जन्मों के पाप स्वत: नष्ट हो जाते हैं। सामान्य पूजा से देवी-देवता प्रसन्न हो जाते हैं। शीघ्र कृपा करने वाले हनुमानजी प्रमुख देव माने गए हैं। बजरंगबली सभी सुख-संपत्ति और सुविधाएं प्रदान करते हैं। हनुमानजी सभी प्रतिमाओं और फोटो की पूजा का अलग-अलग महत्व बताया गया है। धन या पैसों से जुड़ी समस्याओं से निजात पाना है, दुर्भाग्य को दूर करना है तो हनुमानजी के ऐसे फोटो की पूजा करनी चाहिए जिसमें वे स्वयं श्रीराम, लक्ष्मण और सीता माता की आराधना कर रहे हैं। पवनपुत्र के भक्ति भाव वाली प्रतिमा या फोटो की पूजा करने से उनकी कृपा तो प्राप्त होती है साथ ही श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता की कृपा भी प्राप्त होती है। दुर्भाग्य भी सौभाग्य में परिवर्तित हो जाता है। श्रीरामचरित मानस के अनुसार माता सीता द्वारा पवनपुत्र हनुमानजी को अमरता का वरदान दिया गया है। इसी वरदान के प्रभाव से इन्हें अष्टचिरंजीवी में शामिल किया जाता है। हनुमानजी भक्तों की मनोकामनाएं तुरंत ही पूर्ण करते हैं। श्रीराम के अनन्य भक्त हनुमानजी की कृपा प्राप्त होते ही भक्तों के सभी दुख दूर हो जाते हैं। पैसों से जुड़ी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। कोई रोग हो तो वह भी नष्ट हो जाता है। इसके साथ ही यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में कोई ग्रह दोष हो तो पवनपुत्र की पूजा से वह भी दूर हो जाता है। कोई व्यक्ति पैसों की तंगी का सामना करना रहा है तो उसे मंगलवार और शनिवार यह उपाय अपनाना चाहिए। सभी समस्याएं धीरे-धीरे समाप्त हो जाती हैं और व्यक्ति मालामाल हो सकता है। उपाय - सप्ताह के प्रति मंगलवार और शनिवार को ब्रह्म मुहूर्त में उठें। इसके बाद नित्य कर्मों से निवृत्त होकर किसी पीपल के पेड़ से 11 पत्ते तोड़ लें। पत्ते पूरे होने चाहिए, कहीं से टूटे या खंडित नहीं होने चाहिए। इन पत्तों पर स्वच्छ जल में कुमकुम या अष्टगंध या चंदन मिलाकर इससे श्रीराम का नाम लिखें। नाम लिखते से हनुमान चालिसा का पाठ करें। इसके बाद श्रीराम नाम लिखे हुए इन पत्तों की एक माला बनाएं। इस माला को किसी भी हनुमानजी के मंदिर जाकर वहां बजरंगबली को अर्पित करें। कुछ समय में सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे।किसी भी प्रकार के अधार्मिक कार्य न करें।....................

दुश्मन चाहते हुए भी आपका विरोध ना कर पाए

दुश्मन चाहते हुए भी आपका विरोध ना कर पाए
कभी सुख तो कभी दुख, कभी फायदा तो कभी नुकसान। जिंदगी एक जैसी कभी नहीं रहती। परिवर्तन जिंदगी का नियम है। उतार-चढ़ाव जिंदगी में आते जाते रहते हैं। कई बार हमें बिना किसी कारण के ही नुकसान और अपमान का सामना करना पड़ता है कई बार ना चाहते हुए भी कई लोग अनजाने में या किसी गलतफहमी के कारण भी हमारे दुश्मन बन जाते हैं। किसी भी दुश्मन से निपटने के लिए लड़ाई- झगड़ा करने से अच्छा है कि आपका दुश्मन चाहते हुए भी आपका विरोध ना कर पाए इसके लिए बगलामुखी साधना सबसे सरल उपाय है। इस दुर्लभ बगलामुखी साधना की संक्षिप्त विधि इस प्रकार है।आधी रात के समय दक्षिणाभिमुख होकर बैठें। साधना प्रारंभ करने से पूर्व गणपति, इष्ट देवता और गुरु को नमन स्मरण कर प्रार्थना करें। साधक पद्मासन में बैठकर मां बगलामुखी के समक्ष वस्त्र, गंध, फल, तांबूल, धूप, दीप, नैवेध समर्पित करें। इसके बाद नीचे दिए मंत्र का पूर्ण विधि-विधान से 11 माला जप करें। मंत्र:
ओम् ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानाम वाचं, मुखं करं पदं स्तंभेय जिव्हाम कीलय कीलय बुद्धिय नाशय ह्रीं ओम्।

पूर्ण नियम कायदों और शास्त्रीय तरीके से करने पर यह साधना जरूर सफल होती है।

जीवन साथी कहां मिलेगा ?

जीवन साथी कहां मिलेगा ?
शादी के लिए माता-पिता को लड़की या लड़के की तलाश करते समय काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अगर यह पता हो कि विवाह किस दिशा और कितनी दूर होना है तो वर या वधू की तलाश करना माता-पिता के लिए आसान हो जाता है. सप्तम स्थान यानि सातवें भाव को विवाह, पति-पत्नी और दाम्पत्य जीवन के लिए देखा जाता है।
सप्तम भाव में ग्रह और राशि की स्थिति से जानिए, कहां होगी आपकी शादी?
कहां होगी शादी- अगर सप्तम भाव यानि कुंडली में सातवें स्थान में वृष (2 नंबर लिखा हो तो), कुंभ(11) या फिर वृश्चिक राशि(8) है तो यह समझना चाहिए कि व्यक्ति का जीवनसाथी माता-पिता के घर से लगभग 70-75 किलोमीटर दूर है।
मिथुन(3), कन्या(6), धनु(9) या फिर मीन(12) राशि सप्तम भाव में है तो जीवनसाथी की तलाश के लिए लगभग 125 किलोमीटर तक जाना पड़ सकता है। सप्तम भाव में मेष(1), कर्क (4), तुला(7) या मकर(10) राशि होने पर जीवनसाथी 200 किलोमीटर या उससे और अधिक दूर होता है।

किस दिशा में होगी शादी:-यदि सप्तम भाव में मेष राशि के साथ सूर्य हो तो पूर्व दिशा में शादी होने के योग बनते हैं।- शुक्र यदि तुला राशि के साथ हो तो पश्चिम दिशा में शादी होती है। - मीन राशि उत्तर दिशा में उदय होती है यदि यह राशि अपने स्वामी गुरु के साथ सातवें भाव में हो तो उत्तर दिशा विवाह के लिए उचित रहती है।- सप्तम भाव में कन्या राशि के साथ बुध का होना दक्षिण दिशा में विवाह होने का संकेत देता है।

कब करें शादी

कब करें शादी
पत्नीअतिप्रिय होगी 
यदि...
शास्त्रों में शादी के लिए चार माह शुभ बताए गए हैं। जिसमें विवाह करने से अलग-अलग लाभ हैं। आइए जानें किस माह में विवाह करने से क्या लाभ हैं?
माघे धनवती कन्या, फाल्गुने शुभगा भवेत,
वैशाखे तथा ज्येष्ठे पतिउत्यन्तवल्लभा।
मार्गशिर्ष मपिच्छती, अन्यये मासाश्च वर्जिता।।
यानि जिस स्त्री का विवाह माघ मास में होता है, वह धनवान होती है, फाल्गुन में विवाह होने पर वह सौभाग्यवती होती है। वैशाख तथा ज्येष्ठ में विवाह होने पर पति को प्यारी होती है। अकस्मात बहुत आवश्यक होने पर ही मार्गशिर्ष मास में भी विवाह कर सकते है। बाकी सभी माह विवाह हेतु वर्जित है।
वर्तमान में वैशाख मास चल रहा है।इसके अलावा सूर्य जब गुरुकी राशि धनु एवं मीन में होने पर, गुरु-शुक्र तारा अस्त होने पर, मलमास या अधिमास होने पर विवाह निषेध होता है।भारतीय सामाजिक व्यवस्था में विवाह को पवित्र बंधन माना जाता है। हमारे शास्त्रों में तलाक जैसा कोई शब्द ही नहीं है।

शिव की पंचामृत पूजा है।

शिव की पंचामृत पूजा है।
फलदायी
कामनाओं की पूर्ति के लिए भगवान शिव की उपासना बहुत ही फलदायी मानी गई है। भगवान शिव की प्रसन्नता के इन खास दिनों में सोमवार का दिन बहुत महत्व रखता है।शास्त्रों में अलग-अलग कामनाओं की पूर्ति के लिए शिव की अलग-अलग तरह की पूजा बताई गई है। किंतु सोमवार के दिन शिव की पंचामृत पूजा हर मनौती को पूरा करने वाली मानी गई है। इस पूजा में खासतौर पर शिव को दूध, दही, घी, शक्कर और शहद से स्नान कराया जाता है। पंचामृत स्नान व पूजा न केवल मनौतियां पूरी करती है, बल्कि वैभव भी देती है। साथ ही अनेक परेशानियों और पीड़ा का अंत होता है। भगवान शिव की पंचामृत स्नान और पूजन का तरीका -
- सुबह जल्दी उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहन घर या देवालय में शिवलिंग के सामने बैठें।- सबसे पहले शिवलिंग पर जल और उसके बाद क्रम से दूध, दही, घी, शहद और शक्कर चढ़ाएं। हर सामग्री के बाद शिवलिंग का जल से स्नान कराएं। पूजा के दौरान पंचाक्षरी या षडाक्षरी मंत्र ऊँ नम: शिवाय बोलते रहें। - आखि़र में पांच सामग्रियों को मिलाकर शिव को स्नान कराएं। - पंचामृत स्नान के बाद गंगाजल या शुद्धजल से स्नान कराएं।- पंचामृत पूजन के साथ रुद्राभिषेक पूजा शीघ्र मनोवांछित फलदायक मानी जाती है। यह पूजन किसी विद्वान ब्राह्मण से कराया जाना श्रेष्ठ होता है। - पंचामृत स्नान और पूजा के बाद पंचोपचार पूजा करें। गंध, चंदन, अक्षत, सफेद फूल और बिल्वपत्र चढ़ाएं। नैवेद्य अर्पित करें।- शिव की धूप या अगरबत्ती और दीप से आरती करें। - शिव रुद्राष्टक, शिवमहिम्र स्त्रोत, पंचाक्षरी मंत्र का पाठ और जप करें या कराएं।
- आरती के बाद पूजा में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगे और मनौती करें।- शिव की पंचामृत पूजा ब्राह्मण से कराने पर पूर्ण फल तभी मिलता है जब दान-दक्षिणा भेंट की जाए। इसलिए ऐसा करना न भूलें।

बाबा भैरव साधना

दर्शन हेतु बाबा भैरव साधना ।महा भैरव मंत्र:- नमो काली कंकाली महाकाली के पूत कंकाली भैरव हुक्मे हाजिर रहे मेरा भेजा तुरत करे रछा करे । आन बांधू बान बांधू चलते फूल मेँ जाये काठेजी पड़े थर थर काँपे , हल हल हिलै , गिर गिर परै उठ उठ भागै , बक बक बकै । मेरा भेजा सवा घड़ी सवा पहर सवा दिन सवा मास सवा बरस को बाबला न करै तो माता काली की शय्या पै पग धरै । वाचा को चूके तो ऊमा सूखे । वाचा छोड़ कुवाचा करै. धोबी की नाद चमार के कूंडे मेँ परै । मेरा भेजा बाबला न करै तो रुद्र के नेत्र के आग की ज्वाला कढ़ै. सिर की जटा टूट भूमि मेँ गिरै . माता पार्वती के चीर पे चोट पड़ै । बिना हुकुम नहीँ मारना हो काली के पुत्र कंकाल भैरव फुरो मंत्र इशवरो वाचा सत्य नाम आदेश गुरु को ।। विधी:-रात्र मे ग्यारह बजे काले वस्त्र धारण कर काला अश एक बेजोट पै काला वस्त्र बिछाकर भागवान भैरव की स्थापना करे फिर उनकी षोडशोपचार पुजन करना है । फिर रुद्राछ माला से भैरव के 108 नामो का जाप करना है । फिर ईस साबर मंत्र की भी 1 माला मंत्र जाप करना है जप पुर्ण होने के बाद बाबा भैरव की आरती करना हैँ । कांशे या तांबे की थाली मेँ पान का पत्ता रखकर, उस पर कपूर ढेली जलाकर आरती उतारना हैँ । आरती के पश्चात भगवान भैरव को नमस्कार कर , आसन से उठ जावेँ । यह साधना 41 दिनो की हैँ 41 दिनो मेँ 41 माला मंत्र जाप करना हैँ मतलब रोज 1 माला मंत्र जाप करना हैँ । भगवान भैरव का आसन पहले दिन का लगा हुआ 41 दिन तक रहेगा । परन्तु दुसरे दिन से षोड़शोपचार पुजन करने की आवाश्यक्ता नही हैँ ।केवल पंचोपचार पुजन कर सक्ते हैँ । दिपक सुद्ध देशी घी का होगा या फिर तिल के तेल का भी दिपक जगा सक्ते हैँ । अन्तिम रात्रि मतलब 41 वे रात्रि को जप सम्पन्न होने के बाद एक माला मंत्र का हवन करना हैँ । हवन के बाद आरती करेँ । तभी भगवान भैरव प्रकट होँगे तो उन्हैँ लाल पुष्पो की माला उन्के गले मे डाल दे और वो खुश होकर वरदान माँगने को कहेंगे तो उनसे डरे ना जो वर माँगना हो माँग ले ।

सर्व रोग नाशक हनुमान शाबर मंत्र

।।सर्व रोग नाशक हनुमान शाबर मंत्र ।। 
शाबर मंत्र:- ओम नमो आदेश गुरु को वीर बली हनुमन्त जी मुगदर दाहिने हाथ । मार मार पछाड़िये,पर्वत बायेँ हाथ ।। भूत प्रेत अरु डाकिनी, जिल्द खईस मसान । बचै न इनमेँ एकहू , निराकार की आन ।। दुहाई अंजनी की , दुहाई राजा राम चन्द्र की , दुहाई लछमण यती की । मेरी भक्ति गुरु की शक्ति , फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा ।। विधि :- ईस मंत्र का मंगलवार से जप चालु कर के 21 दिन तक रोज 1,3,या5 माला जप करने से सभी रोगो से मुक्ति मिल्ती है । जप के समय अगरबत्ती जलती रहनी चाहिये और हो सके तो तो तिल के तेल का दिपक भी जला सक्ते है वस्त्र लाल हो तो ज्यादा अच्छा और माला लाल मुंगे की आखरी दिन हनुमान जी के मंदिर मेँ नारियल और लंगोट चढ़ाये । अगर किसी और के रोग के लिये जप कर रहे है तो उसके नाम से संकल्प जरुर ले।

चतुर्थी को ही गणेश व्रत क्यों?

चतुर्थी को ही गणेश व्रत क्यों?
ज्योतिषशास्त्र में सूर्य के साथ विशेष संबंध स्थापित किया गया है। सूर्य ब्रह्मांड की प्राणशक्ति का केन्द्र है और चंद्रमा ब्रह्मांड की मनःशक्ति का सर्वस्व है। जिस प्रकार अमावस्या के दिन चंद्र सूर्य की कक्षा में विलीन रहता है और पूर्णिमा को दोनों ग्रह क्षितिज पर ठीक आमने-सामने उदित होने से समान रेखा पर रहते हैं, वैसे ही शुक्ल और कृष्ण दोनों पक्षों की अष्टमी तिथि को चंद्र और सूर्य अर्द्ध सम रेखा पर यानि कि परस्पर ९० अंश पर रहते हैं। इस तरह सूर्य चंद्रमा की दूरी के आधार पर तिथियाँ निर्मित होती हैं। स्थूल तथा सूक्ष्म जगत पर तिथियों के अधिष्ठाताओं का आधिपत्य है। इसलिए हिन्दुओं के सभी सकाम व्रत चंद्र तिथियों के साथ संबंधित हैं। इसी तरह एकम् अर्थात प्रतिपदा आदि पंद्रह तिथियों का भी किसी न किसी दैवी शक्ति के साथ विशेष संबंध है। इन तिथियों के अधिष्ठाता निर्धारित किये गये हैं। चतुर्थी के दिन अवकाश में सूर्य और चंद्र की स्थिति कुछ ऐसी कक्षा में होती है कि उस दिन मानव मन सहज कृत्यों को करने के लिए प्रेरित होता है जो मानव के जीवन और प्रगति में अवरोध रूप बन सकता है। गणेशजी सभी विघ्नों को हरने वाले और रिद्धि-सिद्धि के दाता माने जाते हैं। इसलिए चतुर्थी के दिन उपस्थित होने वाली संबंधित बाधाएँ और विघ्नों को रोकने के लिए गणेशजी की उपासना की जाती है, ताकि मन उस दिन संयमित रहे और किसी अनिष्ट कार्य का आचरण न हो।

गणेश चतुर्थी का व्रत किस तरह करें?
गणेश चतुर्थी के दिन प्रातःकाल उठ कर दैनिक क्रियाओं को पूरा कर के, स्नान कर के शुद्ध वस्त्र धारण करें। पूजा के स्थान पर पूर्व दिशा की ओर मुँह रख कर कुश के आसन पर बैठें। अपने सामने छोटी चौकी के आसन पर सफेद वस्त्र बिछा कर उस पर एक थाली में कुंकुं से ‘शुभ लाभ’ लिखें या स्वस्तिक का चिह्न बनाएँ और उस पर मूर्ति स्थापित करें। थाली में कुंकुं और केसर से रंगे अक्षत का ढेर करें और उस पर गणेशजी कॊ मूर्ति रख कर उन की पूजा करें और शुद्ध घी का दीपक जलाएँ तथा दिन के दौरान उपवास करके रात में चंद्रमा का दर्शन कर के श्री गणेशजी को लड्डू का भोग लगाएँ और नेत्र बंद करके पूरी श्रद्धाभाव से गणेशजी का व्रत पूरा करें।

संकट चतुर्थी व्रत करने से आप के जीवन में आए हुए हरेक प्रकार के संकट दूर होते हैं और यदि किसी भी प्रकार का दोषारोपण लगा हो तो दूर होता है। समाज में मान-प्रतिष्ठा मिलती है। आयुष्य और बल में वृद्धि होती है और सर्वत्र आप की कीर्ति फैलती है।
जलस्नान कराने से जीवन से दुःख का नाश होता है और सुख का आगमन होता है। जीवन में विद्या, धन संतान और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
सफेद पुष्प अथवा जासुद अर्पण करने से कीर्ति मिलती है।

दुर्वा अर्पण करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है, आर्थिक उन्नति होती है और संतान का सुख मिलता है।
सिंदूर अर्पण करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
धूप अर्पण करने से कीर्ति मिलती है।
लड्डू अर्पण करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

सुगंध का महत्त्व

।। सुगंध का महत्त्व ।।
जहाँ चंदन का वृक्ष होगा वहाँ सर्प अपने आप लिपट जाते है चन्दन की खुशबु के कारण|इसी प्रकार हर सुगंध को कोई ना कोई पसंद करता है फिर वो जिव-जन्तु हो या देवता-मानव-दानव।सब की दो सोच होती है एक पसंदिता सुगंध जिससे जिव आकर्षित होता है और दूसरी वह गंध जिससे उच्चाटन होता है या विकर्षण होता है।
पूजन संस्कार,भक्ति में सुगंध का महत्त्व सबसे ज्यादा होता है अपने आराध्य को अपनी और रिझाने के लिए या आकर्षित करने के लिए।किन्तु पहले ये जानना आवश्यक होता है की आपके आराध्य देवता या गुरु की पसंद की सुगंध क्या है।जिस प्रकार चमेली के पेड़ से सर्प आकर्षित नहीं होता उसी प्रकार यदि विपरीत सुगंध का प्रयोग करने से आपके आराध्य आकर्षित नहीं होते।
हर देवता का एक विशेष सुगंध से प्रेम होता है जैसे हनुमान जी को गूगूल,भैरवजी को गुलाब , शिवजी को चन्दन एवम् देवी को धुप प्रिय होती है।
मृतक आत्माओ को भी चन्दन की एवम् लुभान की खुशबु पसंद होती है।इसी कारण पूजन -विधि के पहले संकलप की आवश्यकता होती है या फिर उस देवता के नाम के उच्चारन की आवश्यकता होती है जिनको आप आकर्षित करना चाहते है अन्यथा नाम उच्चारण के अभाव में उस सुगंध को पसंद करने वाल कोई और देवता या असुर आकर्षित हो कर साधना या पूजन-विधि को भंग कर देता है।
अतः सावधानी एवम् चेतन रहना आवश्यक होता है।


दुर्गा सप्तशती पाठ विधि

  दुर्गा सप्तशती दुर्गा सप्तशती पाठ विधि पूजनकर्ता स्नान करके, आसन शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके, शुद्ध आसन पर बैठ जाएँ। माथे पर अपनी पसंद क...