Tuesday, 7 September 2021

चतुर्थी को ही गणेश व्रत क्यों?

चतुर्थी को ही गणेश व्रत क्यों?
ज्योतिषशास्त्र में सूर्य के साथ विशेष संबंध स्थापित किया गया है। सूर्य ब्रह्मांड की प्राणशक्ति का केन्द्र है और चंद्रमा ब्रह्मांड की मनःशक्ति का सर्वस्व है। जिस प्रकार अमावस्या के दिन चंद्र सूर्य की कक्षा में विलीन रहता है और पूर्णिमा को दोनों ग्रह क्षितिज पर ठीक आमने-सामने उदित होने से समान रेखा पर रहते हैं, वैसे ही शुक्ल और कृष्ण दोनों पक्षों की अष्टमी तिथि को चंद्र और सूर्य अर्द्ध सम रेखा पर यानि कि परस्पर ९० अंश पर रहते हैं। इस तरह सूर्य चंद्रमा की दूरी के आधार पर तिथियाँ निर्मित होती हैं। स्थूल तथा सूक्ष्म जगत पर तिथियों के अधिष्ठाताओं का आधिपत्य है। इसलिए हिन्दुओं के सभी सकाम व्रत चंद्र तिथियों के साथ संबंधित हैं। इसी तरह एकम् अर्थात प्रतिपदा आदि पंद्रह तिथियों का भी किसी न किसी दैवी शक्ति के साथ विशेष संबंध है। इन तिथियों के अधिष्ठाता निर्धारित किये गये हैं। चतुर्थी के दिन अवकाश में सूर्य और चंद्र की स्थिति कुछ ऐसी कक्षा में होती है कि उस दिन मानव मन सहज कृत्यों को करने के लिए प्रेरित होता है जो मानव के जीवन और प्रगति में अवरोध रूप बन सकता है। गणेशजी सभी विघ्नों को हरने वाले और रिद्धि-सिद्धि के दाता माने जाते हैं। इसलिए चतुर्थी के दिन उपस्थित होने वाली संबंधित बाधाएँ और विघ्नों को रोकने के लिए गणेशजी की उपासना की जाती है, ताकि मन उस दिन संयमित रहे और किसी अनिष्ट कार्य का आचरण न हो।

गणेश चतुर्थी का व्रत किस तरह करें?
गणेश चतुर्थी के दिन प्रातःकाल उठ कर दैनिक क्रियाओं को पूरा कर के, स्नान कर के शुद्ध वस्त्र धारण करें। पूजा के स्थान पर पूर्व दिशा की ओर मुँह रख कर कुश के आसन पर बैठें। अपने सामने छोटी चौकी के आसन पर सफेद वस्त्र बिछा कर उस पर एक थाली में कुंकुं से ‘शुभ लाभ’ लिखें या स्वस्तिक का चिह्न बनाएँ और उस पर मूर्ति स्थापित करें। थाली में कुंकुं और केसर से रंगे अक्षत का ढेर करें और उस पर गणेशजी कॊ मूर्ति रख कर उन की पूजा करें और शुद्ध घी का दीपक जलाएँ तथा दिन के दौरान उपवास करके रात में चंद्रमा का दर्शन कर के श्री गणेशजी को लड्डू का भोग लगाएँ और नेत्र बंद करके पूरी श्रद्धाभाव से गणेशजी का व्रत पूरा करें।

संकट चतुर्थी व्रत करने से आप के जीवन में आए हुए हरेक प्रकार के संकट दूर होते हैं और यदि किसी भी प्रकार का दोषारोपण लगा हो तो दूर होता है। समाज में मान-प्रतिष्ठा मिलती है। आयुष्य और बल में वृद्धि होती है और सर्वत्र आप की कीर्ति फैलती है।
जलस्नान कराने से जीवन से दुःख का नाश होता है और सुख का आगमन होता है। जीवन में विद्या, धन संतान और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
सफेद पुष्प अथवा जासुद अर्पण करने से कीर्ति मिलती है।

दुर्वा अर्पण करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है, आर्थिक उन्नति होती है और संतान का सुख मिलता है।
सिंदूर अर्पण करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
धूप अर्पण करने से कीर्ति मिलती है।
लड्डू अर्पण करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

No comments:

दुर्गा सप्तशती पाठ विधि

  दुर्गा सप्तशती दुर्गा सप्तशती पाठ विधि पूजनकर्ता स्नान करके, आसन शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके, शुद्ध आसन पर बैठ जाएँ। माथे पर अपनी पसंद क...