Monday, 30 August 2021

कौड़ी के सिद्ध प्रयोग

कौड़ी दरअसल एक समुद्री जीव के शरीर का कड़ा आवरण होता है। किसी समय इसे ही मुद्रा के रूप में इस्तेमाल किया जाता था क्योंकि इसे साक्षात धन का स्वरूप माना जाता था। समय के साथ कौड़ी मुद्रा के रूप में चलन से बाहर हो गई और फिर इसका प्रयोग चौपड़ आदि खेलों में किया जाने लगा। लक्ष्मी पूजा में आज भी कौड़ी प्रयोग की जाती है। ज्यादातर सफेद और पीली कौड़ी बाजारों में मिलती हैं, लेकिन लाल कौड़ी अत्यंत ही दुर्लभ किस्म की होती है। यह कौड़ी समुद्र की तलहटी में लाल मूंगा की चट्टानों के बीच में पाई जाती है। कहा जाता है यक्षराज कुबेर के सिंहासन में लाल कौड़ियां जड़ी हुई हैं। इसलिए यह कौड़ी धन को खींचने वाली मानी जाती है। तंत्र शास्त्र के लिए यह अत्यंत दुर्लभ कौड़ी है। इस पर विभिन्न् प्रकार के प्रयोग करके लक्ष्मी को सिद्ध किया जाता है।

1.ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक कौड़ी से मां लक्ष्मी सबसे ज्यादा प्रसन्न होती हैं। अगर शुक्रवार के दिन एक पीले कपड़े में पांच पीली कौड़ियां, थोड़ा केसर और चांदी का एक सिक्का रखकर इसकी पोटली बना लें। अब इसे मां लक्ष्मी को छुआकर अपनी तिजोरी में रख लें। इससे धन की वृद्धि होगी।

2.जो लोग रुपए-पैसों की दिक्कत से बचना चाहते हैं तो उन्हें आज के दिन जरूरतमंदों को सफेद चीजों का दान करना चाहिए। इसमें आप सफेद कपड़ों से लेकर सफेद अन्न तक दे सकते हैं।

3.जो लोग अपनी मनोकामना की पूर्ति चाहते हैं उन्हें शुक्रवार की शाम को तीन या पांच कन्याओं को घर बुलाकर खीर खिलानी चाहिए। इससे मां लक्ष्मी प्रसन्न होंगी।

4.अगर आप घर में खुशहाली चाहते हैं तो देवी मां के सामने देसी घी का दीपक जलाएं। साथ ही उसमें थोड़ा केसर डाल दें। ऐसा करने से घर में धन-धान्य की बढ़ोत्तरी होगी।

5.चूंकि मां लक्ष्मी भगवान विष्णु की पत्नी हैं, इसलिए आज के दिन विष्णु जी पूजा से भी लाभ होता है। शास्त्रों के अनुसार विष्णु जी को दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर स्नान कराने से ईश्वर की कृपा मिलती है।

6.अगर आपका कोई काम नहीं बन रहा है तो आप शुक्रवार के दिन एक दीपक जलाएं। इसमें चार बाती हो। ये बाती लाल रंग की होनी चाहिए।

7.पति की लंबी आयु और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए आज के दिन सुहाग का सामान दान करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।

8.अगर आपकी नौकरी नहीं लग रही है तो आज के दिन मां लक्ष्मी के किसी भी सिद्ध मंत्र का 108 बार जाप करें। अब देवी मां को एक लाल गुलाब का फूल चढ़ाएं। अब पूजन के बाद इस पुष्प को अपने पास रख लें और इंटरव्यू में जाते समय इसे अपने साथ लें जाएं। इससे आपका काम जल्द ही बन जाएगा।

9.आज के दिन मां लक्ष्मी के प्रिय श्रीयंत्र को अपने पर्स में रखें। इसमें सिंदूर से स्वास्तिक का निशान बनाएं। ऐसा करने से आपकी जेब हमेशा रुपयों से भरी रहेगी।

10.शुक्रवार की शाम को देसी घा का दीपक जलाकर इसमें थोड़े काले तिल डालने से घर में समृद्धि आती है। इससे घर से नकारात्मकता का भी नाश होता है।

नकारात्मक ऊर्जा

 उपरी हवा अथवा नकारात्मक ऊर्जा के निराकरण का उपाय घर के सदस्य या घर पर किसी उपरी हवा का असर महसूस हो तो निम्न उपाय से राहत मिलती है |उपरी हवा के निम्न लिखित संकेत हैं -- घर में भोजन के समय क्लेश होना |घर के छोटे सदस्यों द्वारा बड़ों का अपमान होना | अचानक आग लगना अचानक चोरी होना अचानक छत का गिरना या छत में दरार आना घर में दीमक लग्न ,घर में सीलन आना |घर में मकड़ी के जाले लगना घर के सदस्यों में वैचारिक मतभेद रहना घर की स्त्रियों का मासिक धर्म अनियमित होना लगातार घर की रसोई में रोटियां जल जाना ,सब्जियां जल जाना लगातार घर की रसोई में दूध का फटना या बहना घर में कहीं भी खून के छींटे मिलना |घर के सदस्यों के कपडे फटना ,या जलना या काटना घर की छत पर पत्थर गिरना घर में रखे हुए पैसे गायब होना 
घर में रखे हुए पैसे गायब होना इस तरह के संकेतों से अंदाजा लगाया जा सकता है की घर पर नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव है

गोमती चक्र

गोमती चक्र समृद्धि, खुशी, अच्छा स्वास्थ्य, धन, मन की शांति और बुरे प्रभावों से बचाता है। रोग के इलाज़ में सहायता, अधिक चेतना, बेहतर भक्ति, समाज में प्रतिष्ठा, वित्तीय विकास, एकाग्रता, व्यापार वृद्धि और पूजा की शक्ति देने में बहुत सहायक होता है।
गोमती चक्र गोमती नदी में पाए जाने वाले अल्पमौली चक्र होते हैं। यह चक्र केल्शियम से निर्मित होते हैं। इनका रंग कुछ सफ़ेद और पीलापन लिए हुए होता है। किसी-किसी में हल्का कत्थईपन भी होता है।  अधिकांश इनका प्रयोग धन प्राप्ति, व्यापार वृद्धि, शीघ्र विवाह तथा शत्रु नाश के उपायों में किया जाता है। यह एक यंत्र के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह मंत्र के लिए भी प्रयोग किया जाता है। यदि इनका प्रयोग पूर्ण विश्वास के साथ किया जाए तो असफलता की कोई संभावना नही है।
 
यदि आपका ट्रेवलिंग कार्य है किन्तु पर्याप्त आय और सफलता नहीं मिल पा रही, या ऑफिस में पदोन्नति नहीं हो पा रही, हर समय कुछ रुकावटें आ जाती है, तो तीन अभिमंत्रित गौमती चक्र, चांदी के तार में एक साथ बांध कर अपनी जेब में रखें। इसके प्रभाव से आप सफलता प्राप्त करेंगे पर याद रहे कि गोमती चक्र अभिमंत्रित होने चाहिए।  
 
धन प्राप्ति के लिए और स्थायी आर्थिक समृद्धि के लिए आप किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार को 11 अभिमंत्रित गौमती चक्र लें और घर के पूजा स्थान पर लाल रेशमी वस्त्र बिछाकर सभी गौमती चक्र रख दें। सर्वप्रथम चंदन के इत्र से तिलक करें फिर रौली से तिलक करें। 
 
स्फटिक की माला से 11 माला “श्री महालक्ष्म्यै श्रीयें नम:” का जाप करें। फिर जाप के बाद उठ कर सभी गौमती चक्रों को उसी लाल वस्त्र में ही धन रखने के स्थान तिजोरी आदि में रख दें। आपको आर्थिक तौर पर स्थायी लाभ होने लगेगा। 
 
विवाह के लिए सर्वप्रथम 25  गोमती चक्र लें और किसी गुरुवार को पूजा स्थल पर पीला रेशमी रुमाल बिछाएं। उस पर पीतल की थाली रखेँ। थाली पर केसर व हल्दी मिलाकर तर्जनी उंगली से “ॐ जीवाय नम:, ॐ स्वर्णकायाय नम:, ॐ चतुर्भुजाय नम:” लिखें। 
 
अब आप सभी गोमती चक्र थाली में रखकर उस पर भी हल्दी केसर से तिलक करें। फिर हल्दी की माला से “ॐ बृं बृहस्पत्ये नम:” का जाप करें। जाप के बाद तीन गोमती मंत्र पीले रुमाल के कोने में बांध कर अपने पास रखें (जब तक विवाह न हो जाए)। और थाली में जो आपने मंत्र लिखे थे उनको पानी से धो लें। उस पानी को अपने स्नान के जल में मिलकर स्नान कर लें। 
 
बचे हुए 22 गोमती चक्र को शुद्ध स्थान पर रख दें। एक गोमती चक्र को लेकर किसी निर्जन स्थान पर जाएं और स्वयं पर से 7 बार वार कर दक्षिण दिशा की और फेंक दें। एक चक्र को वार कर बहते जल में प्रवाहित करें। यह कार्य आप उसी दिन करें जिस दिन (गुरुवार) आपने प्रयोग आरंभ किया है। 
 
अब बचे हुए 20 गोमती चक्रों को बीस दिन नियमित रूप से एक एक करके उपरोक्त विधि से अपने ऊपर से वार कर जल में प्रवाहित करते जाएं। जिस दिन आपका यह प्रयोग पूर्ण हो जाए आप किसी भी केले के वृक्ष पर जल में केसर, हल्दी, शहद और गुड को 300 ग्राम बेसन के लड्डू के भोग के साथ अर्पित करें। शुद्ध घी का दीपक जलाएं। कुछ समय में आपको स्पष्टत: परिणाम दिखने लगेंगे। विवाह तय हो जाने पर विवाह की रस्म से पूर्व अपने पास में रखें गोमती चक्र जल में प्रवाहित कर दें। या आप विवाह पश्चात भी इन्हें जल में प्रवाहित कर सकते हैं। यह उपाय कन्या और पुरुष दोनों कर सकते हैं। 
 


काली पञ्च वाण

|| काली पञ्च वाण ||

आज के इस युग में प्रत्येक व्यक्ति अच्छे रोजगार की प्राप्ति में लगा हुआ है पर बहुत प्रयत्न करने पर भी अच्छी नौकरी नहीं मिलती है ! रोजगार सम्बन्धी किसी भी समस्या के समाधान के लिए इस मन्त्र का प्रतिदिन 11बार सुबह और 11बार शाम को जप करे !

प्रथम वाण

ॐ नमः काली कंकाली महाकाली
मुख सुन्दर जिए ब्याली
चार वीर भैरों चौरासी
बीततो पुजू पान ऐ मिठाई
अब बोलो काली की दुहाई !

द्वितीय वाण

ॐ काली कंकाली महाकाली
मुख सुन्दर जिए ज्वाला वीर वीर
भैरू चौरासी बता तो पुजू
पान मिठाई !

तृतीय वाण

ॐ काली कंकाली महाकाली
सकल सुंदरी जीहा बहालो
चार वीर भैरव चौरासी
तदा तो पुजू पान मिठाई
अब बोलो काली की दुहाई !

चतुर्थ वाण

ॐ काली कंकाली महाकाली
सर्व सुंदरी जिए बहाली
चार वीर भैरू चौरासी
तण तो पुजू पान मिठाई
अब राज बोलो
काली की दुहाई !

पंचम वाण

ॐ नमः काली कंकाली महाकाली
मख सुन्दर जिए काली
चार वीर भैरू चौरासी
तब राज तो पुजू पान मिठाई
अब बोलो काली की दोहाई !

|| विधि ||

इस मन्त्र को सिद्ध करने की कोई आवश्यकता नहीं है ! यह मन्त्र स्वयं सिद्ध है केवल माँ काली के सामने अगरबती जलाकर 11 बार सुबह और 11 बार शाम को जप कर ले ! मन्त्र एक दम शुद्ध है भाषा के नाम पर हेर फेर न करे !शाबर मन्त्र जैसे लिखे हो वैसे ही पढने पर फल देते है शुद्ध करने पर निष्फल हो जाते है !

भैरव साधना

सर्व मनोकामना पूरक भैरव देव जी का नित्य जाप करने के लिए शाबर मंत्र जन हितार्थ प्रस्तुत है।

ॐ सत् नमो आदेश गुरु को आदेश
गुरूजी चंडी चंडी तो प्रचंडी
अला-वला फिरे नवखंडी
तीर बांधू तलवार बांधू बीस कोस पर बांधू वीर
चक्र ऊपर चक्र चले भैरव वली के आगे धरे
छल चले वल चले तब जानबा काल भैरव तेरा रूप कौन भैरव
आदि भैरव युगादी भैरव त्रिकाल भैरव कामरु देश रोला मचाबे
हिन्दू का जाया मुसलमान का मुर्दा फाड़ फाड़ बगाया
जिस माता का दूध पिया सो माता कि रक्षा करना
अबधूत खप्पर मैं खाये
मशान मैं लेटे
काल भैरव तेरी पूजा कोण मेटे
रजा मेटे राज-पाठ से जाये
योगी मेटे योग ध्यान से जाये
परजा मेटे दूध पूत से जाये
लेना भैरव लोंग सुपारी
कड़वा प्याला भेंट तुम्हारी
हाथ काती मोंडे मड़ा जहा सुमिरु ताहा हाज़िर खड़ा
श्री नाथ जी गुरूजी आदेश आदेश। ।

किसी भी पुष्य नक्षत्र या गुप्त नवरात्रि से किसी भी शुभ पर्व आदि को इस मंत्र को जाग्रत कर लें उसके बाद नित्य भैरव जी के सामने इस मंत्र कि दो माला का जाप करे। या यथाशक्ति जाप करे।

उल्लू तंत्र

उल्लू तंत्र
पक्षी तंत्र के अनुसार उल्लू धन के संकेत देने वाला होता है। जिन जगहों पर गड़ा धन या खजाना होता है। वहां उल्लूूू पाए जाते हैं। तंत्र शास्त्रों में उल्लू को धन की रक्षा करने वाला माना जाता है। उल्लू जिस घर या मंदिर में रहने लग जाए तो समझे उस जगह गड़ा धन या खजाना होगा और जहां उल्लू रहने लग जाते हैं ऐसी जगह जल्दी ही सुनसान हो जाती है।
[१] माना जाता है प्रात:काल पूर्व दिशा में वृक्ष पर बैठे उल्लू को बोलते हुए देखने वाले व्यक्ति को धन की प्राप्ति का संकेत है।
[२] यदि पश्चिम दिशा में पेड़ पर बैठकर बोल रहे उल्लू पर नजर पड़ जाए तो धन की हानि की सूचना है।
[३] उल्लू उत्तर दिशा में बैठा बोलता दिखे तो मृत्यु, दुर्घटना या बीमारी का संकेत है।
[४] दक्षिण दिशा में प्रात: उल्लू को देखना-सुनना शत्रु हानि, धन लाभ जैसे शुभ का सूचक है।
[५] रात्रि की बेला में उल्लू की आवाज यदि पूर्व दिशा से आ रही हो तो माना जाता है कि कल्याणकारी है और अगर पश्चिम, उत्तर या दक्षिण दिशा से आए तो किसी परेशानी की पूर्व सूचना है।
[६] यदि प्रस्थान के समय उल्लू दाईं ओर दिखे तो यात्रा निष्फल होने की आशंका है।
[७] कहीं जाते समय पीठ पीछे उल्लू हो तो यात्रा सफल होगी, ऐसा माना जाता है।
[८]बिना आवाज किए उल्लू रात्रि में बिस्तर पर आ बैठे तो यह विश्वास है कि यदि कोई रोगी हो तो वह शीघ्र स्वस्थ होगा या कोई मांगलिक कार्य शीघ्र होने वाला है।
[९]किसी मकान पर उल्लू कई दिन तक आ-आकर बैठता है तो उस घर में किसी अनिष्ट की आशंका प्रबल है।
[१०]किसी पेड़ पर उल्लू का आकर नियमित बैठना और बोलना उस पेड़ या क्षेत्र के लिए अनिष्ट का सूचक है।
तंत्र में उल्लू के रक्त, मल, मूत्र, हृदय, नेत्र, पंख, नख आदि रोगों के अलग-अलग उपयोग हैं। प्राचीन काल में कथित तौर पर तांत्रिक क्रियाओं में उल्लू सर्वाधिक वांछित पक्षी माना गया और उसके विविध उपयोगिताओं पर विस्तृत ग्रंथ ‘उलूक कल्प’ लिखा गया।

शाबर धूमावती साधना

शाबर धूमावती साधना :----
दस महाविद्याओं में माँ धूमावती का स्थान सातवां है और माँ के इस स्वरुप को बहुत ही उग्र माना जाता है ! माँ का यह स्वरुप अलक्ष्मी स्वरूपा कहलाता है किन्तु माँ अलक्ष्मी होते हुए भी लक्ष्मी है ! एक मान्यता के अनुसार जब दक्ष प्रजापति ने यज्ञ किया तो उस यज्ञ में शिव जी को आमंत्रित नहीं किया ! माँ सती ने इसे शिव जी का अपमान समझा और अपने शरीर को अग्नि में जला कर स्वाहा कर लिया और उस अग्नि से जो धुआं उठा )उसने माँ धूमावती का रूप ले लिया ! इसी प्रकार माँ धूमावती की उत्पत्ति की अनेकों कथाएँ प्रचलित है जिनमे से कुछ पौराणिक है और कुछ लोक मान्यताओं पर आधारित है !
नाथ सम्प्रदाय के प्रसिद्ध योगी सिद्ध चर्पटनाथ जी माँ धूमावती के उपासक थे ! उन्होंने माँ धूमावती पर अनेकों ग्रन्थ रचे और अनेकों शाबर मन्त्रों की रचना भी की !
यहाँ मैं माँ धूमावती का एक प्रचलित शाबर मंत्र दे रहा हूँ जो बहुत ही शीघ्र प्रभाव देता है !
कोर्ट कचहरी आदि के पचड़े में फस जाने पर अथवा शत्रुओं से परेशान होने पर इस मंत्र का प्रयोग करे !
माँ धूमावती की उपासना से व्यक्ति अजय हो जाता है और उसके शत्रु उसे मूक होकर देखते रह जाते है !

|| मंत्र ||

ॐ पाताल निरंजन निराकार
आकाश मंडल धुन्धुकार
आकाश दिशा से कौन आई
कौन रथ कौन असवार
थरै धरत्री थरै आकाश
विधवा रूप लम्बे हाथ
लम्बी नाक कुटिल नेत्र दुष्टा स्वभाव
डमरू बाजे भद्रकाली
क्लेश कलह कालरात्रि
डंका डंकिनी काल किट किटा हास्य करी
जीव रक्षन्ते जीव भक्षन्ते
जाया जीया आकाश तेरा होये
धुमावंतीपुरी में वास
ना होती देवी ना देव
तहाँ ना होती पूजा ना पाती
तहाँ ना होती जात न जाती
तब आये श्री शम्भु यती गुरु गोरक्षनाथ
आप भई अतीत
ॐ धूं: धूं: धूमावती फट स्वाहा !

|| विधि ||

41 दिन तक इस मंत्र की रोज रात को एक माला जाप करे ! तेल का दीपक जलाये और माँ को हलवा अर्पित करे ! इस मंत्र को भूल कर भी घर में ना जपे, जप केवल घर से बाहर करे ! मंत्र सिद्ध हो जायेगा !

|| प्रयोग विधि १ ||

जब कोई शत्रु परेशान करे तो इस मंत्र का उजाड़ स्थान में 11 दिन इसी विधि से जप करे और प्रतिदिन जप के अंत में माता से प्रार्थना करे –
“ हे माँ ! मेरे (अमुक) शत्रु के घर में निवास करो ! “

ऐसा करने से शत्रु के घर में बात बात पर कलह होना शुरू हो जाएगी और वह शत्रु उस कलह से परेशान होकर घर छोड़कर बहुत दुर चला जायेगा !

|| प्रयोग विधि २ ||

शमशान में उगे हुए किसी आक के पेड़ के साबुत हरे पत्ते पर उसी आक के दूध से शत्रु का नाम लिखे और किसी दुसरे शमशान में बबूल का पेड़ ढूंढे और उसका एक कांटा तोड़ लायें ! फिर इस मंत्र को 108 बार बोल कर शत्रु के नाम पर चुभो दे !
ऐसा 5 दिन तक करे , आपका शत्रु तेज ज्वर से पीड़ित हो जायेगा और दो महीने तक इसी प्रकार दुखी रहेगा !

नोट – इस मंत्र के और भी घातक प्रयोग है जिनसे शत्रु के परिवार का नाश तक हो जाये ! किसी भी प्रकार के दुरूपयोग के डर से मैं यहाँ नहीं लिखना चाहता ! इस मंत्र का दुरूपयोग करने वाला स्वयं ही पाप का भागी होगा !

उतारा टोटके

उतारा टोटके:----
दुख-सुख, अच्छे-बुरे दिन, लाभ-हानि, यश-अपयश, सफलता-विफलता, हारी-बीमारी आदि सभी इस जीवन के विभिन्न रंग हैं। समय-समय पर मनुष्य को विभिन्न प्रकार के सुख-दुख भोगने पडते हैं। यद्यपि ये सभी हमारे जन्म और पूर्व जन्मों के प्रभाव का फल हैं, परन्तु फिर भी इनके दुष्प्रभावों को कम तो किया ही जा सकता है। इस कार्य के लिए सम्पूर्ण विश्व में ही मानव अनेक टोने-टोटकों का प्रयोग करता रहा है। यही नहीं, सौभाग्य को बढाने, घर में सुख-समृद्धि लाने, व्यापार को चमकाने के लिए भी अनेके टोने-टोटकों का प्रयोग किया ही जाता है। यही नहीं, नि:संतान दम्पतियों ने सन्तान और दरिद्रों ने राजसी वैभव भी टोने-टोटकों के बल पर प्राप्त किए हैं।
टोने-टोटकों और गंडे-तावीजों का अपना एक पूर्ण विज्ञान है और यही कारण है कि इस क्षेत्र में सफलता प्राप्ति के कुछ नियमों का पालन आवश्यक ही नहीं, बल्कि अनिवार्य है। टोटकों में सफलता के सूत्र आस्था, विश्वास, प्रयास और उनकी सिद्धि के विविध नियम का पालन टोटका-सिद्धि का मूल आधार है, जिसके द्वारा आपके सभी प्रकार के कष्टों का निवारण हो सकता है। जब किसी भी उपचार या औषधि का कोई प्रभाव नहीं पडता, तो उसके समय टोने-टोटके का सहारा लेना पड जाता है। ये टोटके उस व्याधि का अंत ही नहीं करते, बल्कि सदा के लिए उसकी जडें भी उखाड फेंकते हैं।
कुछ टोटके केवल वस्तु के प्रयोग से ही सफल हो जाते हैं, जबकि कुछ टोटकों के प्रयोग में एक विशेष प्रकार की ध्वनि या मंत्र का भी उच्चारण करना पडता है। टोटकों के प्रयोग से पूर्व इन बातों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। उतारों की विधि व महत्व टोने-टोटकों के संसार में उतारों का बहुत ही अधिक महत्व हैं। बालको को नजर लग जाने, किसी के भूत बाधाग्रस्त होने अथवा बीमार हो जाने पर झाड-फूंक के साथ ही उतारे भी किए जाते हैं। कोई भी उतारा सर से पैर की ओर सात बार उतारा जाता है। इस उतारे के करने से वह बीमारी अथवा दुष्ट आत्मा उस मिठाई के टुकडे पर आ जाती है और इस उतारे को घर से दूर रख आने पर उसके साथ ही घर से बाहर चली जाती है।
रविवार : इतवार के रोज यदि उतारा करना हो, तो बर्फी से उतारा करे बर्फी गाय को खिला देनी चाहिए।
सोमवार : सोमवार के रोज भी यदि उतारा करना हो, तो उस रोज भी बर्फी के टुकडे से उतारा करके गाय को ही खिलाना चाहिए।
मंगलवार : यदि मंगल के रोज उतारा करने की आवश्यकता पडे, तो उस रोज मोतीचूर के लड्डू से उतारा करना चाहिए और उसे कुत्ते को डालना चाहिए।
बुधवार : बुधवार के रोज यदि उतारा करना हो, तो उस दिन इमरती अथवा मोतीचूर के लड्डू से उतारा करना चाहिए और उसे कुत्ते को डालना चाहिए।
गुरूवार : बृहस्पतिवार के रोज शाम के समय पांच मिठाइयां एक दोने में रखकर उताररा करना चाहिए। उतारा करके उसमें धूपबत्ती और छोटी इलायची रखकर पीपल के पेड की जड में पश्चिम दिशा में रखकर लौट आना चाहिए। उतारा करके आते समय पलटकर नहीं देखना चहिए और न ही रास्ते में किसी से बोलना चाहिए। घर आकर हाथ-पैर धोने के बाद कोई कार्य करना चाहिए।
शुक्रवार : शुक्रवार को यदि उतारा करना हो, तो शाम के समय मोतीचूर के लड्डृ से ही उतारा करके उसे कुत्ते को डालना चाहिए।
शनिवार : शनिवार के दिन इमरती और मोतीचूर के लड्डू से उतार किया जाता है। यदि शनिवार के दिन काला कुत्ता मिले और उसे इमरती डाली जाए तो बहुत अच्छा होता है।

बगलामुखी देवी साधना

बगलामुखी की साधना :-
बगलामुखी देवी की गणना दस महाविद्याओं में है तथा संयम-नियमपूर्वक बगलामुखी के पाठ-पूजा, मंत्र जाप, अनुष्ठान करने से उपासक को सर्वाभीष्ट की सिद्धि प्राप्त होती है। शत्रु विनाश, मारण-मोहन, उच्चाटन, वशीकरण के लिए बगलामुखी से बढ़ कर कोई साधना नहीं है। मुकद्दमे में इच्छानुसार विजय प्राप्ति कराने में तो यह रामबाण है। बाहरी शत्रुओं की अपेक्षा आंतरिक शत्रु अधिक प्रबल एवं घातक होते हैं। अतः बगलामुखी साधना की, मानव कल्याण, सुख-समृद्धि हेतु, विशेष उपयोगिता दृष्टिगोचर होती है। यथेच्छ धन प्राप्ति, संतान प्राप्ति, रोग शांति, राजा को वश में करने हेतु कारागार (जेल) से मुक्ति, शत्रु पर विजय, मारण आदि प्रयोगों हेतु प्राचीन काल से ही बगलामुखी प्रयोग द्वारा लोगों की इच्छा पूर्ति होती रही है।
आज भी राजनीतिज्ञगण इस महाविद्या की साधना करते हैं। चुनावों के दौरान प्रत्याशीगण मां का आशीर्वाद लेने उनके मंदिर अवश्य जाते हैं।

भारतवर्ष में इस शक्ति के केवल तीन ही शक्ति पीठ हैं – 1)कामाख्या 2) हिमाचल में ज्वालामुखी से 22 किमी दूर वनखंडी नामक स्थान पर। और 3) दतिया में पीतांबरा पीठ

महर्षि च्यवन ने इसी विद्या के प्रभाव से इन्द्र के वज्र को स्तम्भित कर दिया था । आदिगुरु शंकराचार्य ने अपने गुरु श्रीमद्-गोविन्दपाद की समाधि में विघ्न डालने पर रेवा नदी का स्तम्भन इसी विद्या के प्रभाव से किया था । महामुनि निम्बार्क ने एक परिव्राजक को नीम के वृक्ष पर सूर्य के दर्शन इसी विद्या के प्रभाव से कराए थे । इसी विद्या के कारण ब्रह्मा जी सृष्टि की संरचना में सफल हुए ।

श्री बगला शक्ति कोई तामसिक शक्ति नहीं है, बल्कि आभिचारिक कृत्यों से रक्षा ही इसकी प्रधानता है । इस संसार में जितने भी तरह के दुःख और उत्पात हैं, उनसे रक्षा के लिए इसी शक्ति की उपासना करना श्रेष्ठ होता है । शुक्ल यजुर्वेद माध्यंदिन संहिता के पाँचवें अध्याय की २३, २४ एवं २५वीं कण्डिकाओं में अभिचारकर्म की निवृत्ति में श्रीबगलामुखी को ही सर्वोत्तम बताया है । शत्रु विनाश के लिए जो कृत्या विशेष को भूमि में गाड़ देते हैं, उन्हें नष्ट करने वाली महा-शक्ति श्रीबगलामुखी ही है ।
त्रयीसिद्ध विद्याओं में आपका पहला स्थान है । आवश्यकता में शुचि-अशुचि अवस्था में भी इसके प्रयोग का सहारा लेना पड़े तो शुद्धमन से स्मरण करने पर भगवती सहायता करती है । लक्ष्मी-प्राप्ति व शत्रुनाश उभय कामना मंत्रों का प्रयोग भी सफलता से किया जा सकता है ।
देवी को वीर-रात्रि भी कहा जाता है, क्योंकि देवी स्वम् ब्रह्मास्त्र-रूपिणी हैं, इनके शिव को एकवक्त्र-महारुद्र तथा मृत्युञ्जय-महादेव कहा जाता है, इसीलिए देवी सिद्ध-विद्या कहा जाता है । विष्णु भगवान् श्री कूर्म हैं तथा ये मंगल ग्रह से सम्बन्धित मानी गयी हैं ।
शत्रु व राजकीय विवाद, मुकदमेबाजी में विद्या शीघ्र-सिद्धि-प्रदा है । शत्रु के द्वारा कृत्या अभिचार किया गया हो, प्रेतादिक उपद्रव हो, तो उक्त विद्या का प्रयोग करना चाहिये ।

बगला उपासनायां उपयोगी कुल्कुलादि साधना :-

बगला उपासना व दश महाविद्याओं में मंत्र जाग्रति हेतु शापोद्धार मंत्र, सेतु, महासेतु, कुल्कुलादि मंत्र का जप करना जरुरी है । अतः उनकी संक्षिप्त जानकारी व अन्य विषय साधकों के लिये आवश्यक है ।
नाम – बगलामुखी, पीताम्बरा, ब्रह्मास्त्र-विद्या ।
आम्नाय – मुख आम्नाय दक्षिणाम्नाय हैं इसके उत्तर, ऊर्ध्व व उभयाम्नाय मंत्र भी हैं ।
आचार – इस विद्या का वामाचार क्रम मुख्य है, दक्षिणाचार भी है ।
कुल – यह श्रीकुल की अंग-विद्या है ।
शिव – इस विद्या के त्र्यंबक शिव हैं ।
भैरव – आनन्द भैरव हैं । कई विद्वान आनन्द भैरव को प्रमुख शिव व त्र्यंबक को भैरव बताते हं ।
गणेश – इस विद्या के हरिद्रा-गणपति मुख्य गणेश हैं । स्वर्णाकर्षण भैरव का प्रयोग भी उपयुक्त है ।
यक्षिणी – विडालिका यक्षिणी का मेरु-तंत्र में विधान है । प्रयोग हेतु अंग-विद्यायें -मृत्युञ्जय, बटुक, आग्नेयास्त्र, वारुणास्त्र, पार्जन्यास्त्र, संमोहनास्त्र, पाशुपतास्त्र, कुल्लुका, तारा स्वप्नेश्वरी, वाराही मंत्र की उपासना करनी चाहिये ।
कुल्लुका – “ॐ क्ष्रौं” अथवा “ॐ हूँ क्षौं” शिर में १० बार जप करना ।
सेतु – कण्ठ में १० बार “ह्रीं” मंत्र का जप करें ।
महासेतु – “स्त्रीं” इसका हृदय में १० बार जप करें ।
निर्वाण – हूं, ह्रीं श्रीं से संपुटित करे एवं मंत्र जप करें । दीपन पुरश्चरण आदि में “ईं” से सम्पुटित मंत्र का जप करें ।
जीवन – मूल मंत्र के अंत में ” ह्रीं ओं स्वाहा” १० बार जपे । नित्य आवश्यक नहीं है ।
मुख-शोधन – “हं ह्रीं ऐं” मुख में १० बार मंत्र जप करें ।
शापोद्धार – “ॐ ह्लीं बगले रुद्रशायं विमोचय विमोचय ॐ ह्लीं स्वाहा” १० बार जपे ।
उत्कीलन – “ॐ ह्लीं स्वाहा” मंत्र के आदि में १० बार जपे ।….

बगलामुखी एकाक्षरी मंत्र –

|| ॐ ह्लीं ॐ ||

‘’ ह्लीं ‘’ को स्थिर माया कहते हैं । यह मंत्र दक्षिण आम्नाय का है । दक्षिणाम्नाय में बगलामुखी के दो भुजायें हैं । अन्य बीज “ह्रीं” का उल्लेख भी बगलामुखी के मंत्रों में आता है, इसे “भुवन-माया” भी कहते हैं । चतुर्भुज रुप में यह विद्या विपरीत गायत्री (ब्रह्मास्त्र विद्या) बन जाती है । ह्रीं बीज-युक्त अथवा चतुर्भुज ध्यान में बगलामुखी उत्तराम्नाय या उर्ध्वाम्नायात्मिका होती है । ह्ल्रीं बीज का उल्लेख ३६ अक्षर मंत्र में होता है ।
(सांख्यायन तन्त्र)
विनियोगः- ॐ अस्य एकाक्षरी बगला मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, बगलामुखी देवता, लं बीजं, ह्रीं शक्तिः ईं कीलकं, सर्वार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यासः- ब्रह्मा ऋषये नमः शिरसि, गायत्री छन्दसे नमः मुखे, बगलामुखी देवतायै नमः हृदि, लं बीजाय नमः गुह्ये, ह्रीं शक्तये नमः पादयो, ईं कीलकाय नमः नाभौ, सर्वार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।

षडङ्ग-न्यास कर-न्यास अंग-न्यास
ह्लां अंगुष्ठाभ्यां नमः हृदयाय नमः
ह्लीं तर्जनीभ्यां नमः शिरसे स्वाहा
ह्लूं मध्यमाभ्यां नमः शिखायै वषट्
ह्लैं अनामिकाभ्यां नमः कवचाय हुं
ह्लौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः नेत्र-त्रयाय वौषट्
ह्लः करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः अस्त्राय फट्

ध्यानः- हाथ में पीले फूल, पीले अक्षत और जल लेकर ‘ध्यान’ करे -
वादीभूकति रंकति क्षिति-पतिः वैश्वानरः शीतति,
क्रोधी शान्तति दुर्जनः सुजनति क्षिप्रानुगः खञ्जति ।
गर्वी खर्वति सर्व-विच्च जड़ति त्वद्यन्त्रणा यन्त्रितः,
श्रीनित्ये ! बगलामुखि ! प्रतिदिनं कल्याणि ! तुभ्यं नमः ।।

एक लाख जप कर, पीत-पुष्पों से हवन करे, गुड़ोदक से दशांश तर्पण करे ।
विशेषः- “श्रीबगलामुखी-रहस्यं” में शक्ति ‘हूं’ बतलाई गई है तथा ध्यान में पाठन्तर है – ‘शान्तति’ के स्थान पर ‘शाम्यति’ ।

मंत्र महोदधि में बगलामुखी साधना के बारे में विस्तार से दिया हुआ है।
साधना में सावधानियां बगलामुखी तंत्र के विषय में बतलाया गया है – बगलासर्वसिद्धिदा सर्वाकामना वाप्नुयात’ अर्थात बगलामुखी देवी का स्तवन पूजा करने वालों की सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं।
‘सत्ये काली च अर्थात बगला शक्ति को त्रिशक्तिरूपिणी माना गया है। वस्तुतः बगलामुखी की साधना में साधक भय से मुक्त हो जाता है। किंतु बगलामुखी की साधना में कुछ विशेष सावधानियां बरतना अनिवार्य है जो इस प्रकार हैं। पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। साधना क्रम में स्त्री का स्पर्श या चर्चा नहीं करनी चाहिए। साधना डरपोक या बच्चों को नहीं करनी चाहिए।

बगलामुखी देवी अपने साधक को कभी-कभी भयभीत भी करती हैं। अतः दृढ़ इच्छा और संकल्प शक्ति वाले साधक ही साधना करें। साधना आरंभ करने से पूर्व गुरु का ध्यान और पूजा अनिवार्य है। बगलामुखी के भैरव मृत्युंजय हैं। अतः साधना से पूर्व महामृत्यंजय का कम से कम एक माला जप अवश्य करें। वस्त्र, आसन आदि पीले होने चाहिए। साधना उत्तर की ओर मुंह कर के ही करें। मंत्र जप हल्दी की माला से करें। जप के बाद माला गले में धारण करें। ध्यान रखें, साधना कक्ष में कोई अन्य व्यक्ति प्रवेश न करे, न ही कोई माला का स्पर्श करे। साधना रात्रि के 8.00 से भोर 3.00 बजे के बीच ही करें। मंत्र जप की संख्या अपनी क्षमतानुसार निश्चित करें, फिर उससे न तो कम न ही अधिक जप करें। मंत्र जप 16 दिन में पूरा हो जाना चाहिए। मंत्र जप के लिए शुक्ल पक्ष या नवरात्रि सर्वश्रेष्ठ समय है। मंत्र जप से पहले संकल्प हेतु जल हाथ में लेकर अपनी इच्छा स्पष्ट रूप से बोल कर व्यक्त करें। साधना काल में इसकी चर्चा किसी से न करें। साधना काल में अपने बायीं ओर तेल का तथा अपने दायीं ओर घी का अखंड दीपक जलाएं।

उपासना विधि :- किसी भी शुभ मुहूर्त में सोने, चांदी, या तांबे के पत्र पर मां बगलामुखी के यंत्र की रचना करें। यंत्र यथासंभव उभरे हुए रेखांकन में हो। इस यंत्र की प्राण प्रतिष्ठा कर नियमित रूप से पूजा करें। इस यंत्र को रविपुष्य या गुरुपुष्य योग में मां बगलामुखी के चित्र के साथ स्थापित करें। फिर सब से पहले बगला माता का ध्यान कर विनियोग करें गणेशजी का पूजन, संकल्प , गुरुजी का पूजन , पंचदेवता पूजन, भैरव पूजन , भूतशुद्धि , कलशस्थापन प्राणप्रतिस्ठा , पीठमातृका न्यास , पीठपूजन करें | निम्न मंत्र पढ़कर विनियोग करें :-

विनियोग मंत्र :- ॐ अस्य श्री बगलामुखी मंत्रस्य नारद ऋषिः त्रिष्टुपछंदः श्री बगलामुखी देवता ह्लीं बीजं स्वाहा शक्तिः ममाभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः।( दाएं हाथ में जल में जल लेकर मंत्र का उच्चारण करते हुए चित्र के आगे छोड़ दें )–

करन्यास :-
————
ॐ ह्ल्रीम अगुष्ठाभ्यां नमः |
बगलामुखी तर्जनीभ्यां नमः सर्वदुष्टानां मध्यमाभ्यां नमः |
वाचं मुखं पदं स्तंभय अनामिकाभ्यां नमः |
जिह्वां कीलय कनिष्ठिकाभ्यां नमः |
बुद्धिं विनाशय ह्ल्रीम ॐ स्वाहा करतल कर पृष्ठाभ्यां नमः |

षडअंगन्यास :-
ॐ ह्ल्रीम हृदयाम नमः |
बगलामुखी शिरसे स्वाहा |
सर्वदुष्टानां शिखायै वषट् |
वाचं मुखं पदं स्तम्भयं कवचाय हुंम |
जिह्वां कीलय नेत्रत्रयाय वौषट् |
बुद्धि विनाशय ह्ल्रीम ॐ स्वाहा अस्त्राय फट्।

ध्यान :-
——-
मध्ये सुधाब्धि मणि मंडप रत्नवेद्यां |
सिंहासनो परिगतां परिपीतवर्णाम् ||
पीताम्बरा भरणमाल्य विभूषितांगी |
देवी नजामि घृतमुद्गर वैरिजिहवाम्।।
जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं। वामेन शत्रून् परिपीडयंतीम् ||
गदाभिघातेन व दक्षिणेन। पीतांबराढ्यां द्विभुजां नमामि।।

अब षोडशोपचार पूजन करने के बाद आवरण पूजा , स्तोत्र , सहस्त्रनाम , बगलहृदय पाठ करें पश्चात उपरोक्त उद्धृत बगला उपासनायां उपयोगी कुल्कुलादि साधना एवं प्राणायाम करके 36 अक्षर का मूल मंत्र जप करे ( प्रतिदिन कम से कम 5000 मंत्र जप आवश्यक है )

36 अक्षर का मंत्र -
———————
“ॐ ह्ल्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाश ह्ल्रीं ॐ स्वाहा ।”

प्रणाम :-
———
प्रपद्ये शर्णां देवी श्री कामाख्या स्वरूपिणीम् ।
शिवश्य दुहितां शुद्धां नमामि बगलामुखीम् ॥

अंतिम दिन दशांश हवन , ततदशांश तर्पण ततदशांश मार्जन ततदशांश ब्राह्मण भोजन भी करना आवश्यक है

विशेष :- 1)माँ बगलामुखी का बीज ‘’ ह्लीं ‘’ है , परंतु इसमे अग्नि बीज का संयुक्त कर ‘’ ह्ल्रीम ‘’ का जप करने पर मंत्र और भी शक्ति प्रदान करता है |

2) माँ बगलामुखी दशमहाविद्या में से हैं अतः गुरुवर के सान्निध्य में ही साधना करें अन्यथा हानि की आशंका रहती है ।

यदि शत्रु का प्रयोग या प्रेतोपद्रव भारी हो, तो मंत्र क्रम में निम्न विघ्न बन सकते हैं -

१॰ जप नियम पूर्वक नहीं हो सकेंगे ।
२॰ मंत्र जप में समय अधिक लगेगा, जिह्वा भारी होने लगेगी ।
३॰ मंत्र में जहाँ “जिह्वां कीलय” शब्द आता है, उस समय स्वयं की जिह्वा पर संबोधन भाव आने लगेगा, उससे स्वयं पर ही मंत्र का कुप्रभाव पड़ेगा ।
४॰ ‘बुद्धिं विनाशय’ पर परिभाषा का अर्थ मन में स्वयं पर आने लगेगा ।

सावधानियाँ :-
१॰ ऐसे समय में तारा मंत्र पुटित बगलामुखी मंत्र प्रयोग में लेवें, अथवा कालरात्रि देवी का मंत्र व काली अथवा प्रत्यंगिरा मंत्र पुटित करें । तथा कवच मंत्रों का स्मरण करें । सरस्वती विद्या का स्मरण करें अथवा गायत्री मंत्र साथ में करें ।

२॰ बगलामुखी मंत्र में “ॐ ह्ल्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाश ह्ल्रीं ॐ स्वाहा ।” इस मंत्र में ‘सर्वदुष्टानां’ शब्द से आशय शत्रु को मानते हुए ध्यान-पूर्वक आगे का मंत्र पढ़ें ।

३॰ यही संपूर्ण मंत्र जप समय ‘सर्वदुष्टानां’ की जगह काम, क्रोध, लोभादि शत्रु एवं विघ्नों का ध्यान करें तथा ‘वाचं मुखं …….. जिह्वां कीलय’ के समय देवी के बाँयें हाथ में शत्रु की जिह्वा है तथा ‘बुद्धिं विनाशय’ के समय देवी शत्रु को पाशबद्ध कर मुद्गर से उसके मस्तिष्क पर प्रहार कर रही है, ऐसी भावना करें ।

४॰ बगलामुखी के अन्य उग्र-प्रयोग वडवामुखी, उल्कामुखी, ज्वालामुखी, भानुमुखी, वृहद्-भानुमुखी, जातवेदमुखी इत्यादि तंत्र ग्रथों में वर्णित है । समय व परिस्थिति के अनुसार प्रयोग करना चाहिये ।

५॰ बगला प्रयोग के साथ भैरव, पक्षिराज, धूमावती विद्या का ज्ञान व प्रयोग करना चाहिये ।

६॰ बगलामुखी उपासना पीले वस्त्र पहनकर, पीले आसन पर बैठकर करें । गंधार्चन में केसर व हल्दी का प्रयोग करें, स्वयं के पीला तिलक लगायें । दीप-वर्तिका पीली बनायें । पीत-पुष्प चढ़ायें, पीला नैवेद्य चढ़ावें । हल्दी से बनी हुई माला से जप करें । अभाव में रुद्राक्ष माला से जप करें | अन्य किसी माला से जप कभी न करें |

पीताम्बरा बगलामुखी खड्ग मालामन्त्र

पीताम्बरा बगलामुखी खड्ग मालामन्त्र
यह स्तोत्र शत्रुनाश एवं कृत्यानाश, परविद्या छेदन करने वाला एवं रक्षा कार्य हेतु प्रभावी है । साधारण साधकों को कुछ समय आवेश व आर्थिक दबाव रहता है, अतः पूजा उपरान्त नमस्तस्यादि शांति स्तोत्र पढ़ने चाहिये ।
विनियोगः- ॐ अस्य श्रीपीताम्बरा बगलामुखी खड्गमाला मन्त्रस्य नारायण ऋषिः, त्रिष्टुप् छन्दः, बगलामुखी देवता, ह्लीं बीजं, स्वाहा शक्तिः, ॐ कीलकं, ममाभीष्टसिद्धयर्थे सर्वशत्रु-क्षयार्थे जपे विनियोगः ।
हृदयादि-न्यासः-नारायण ऋषये नमः शिरसि, त्रिष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, बगलामुखी देवतायै नमः हृदि, ह्लीं बीजाय नमः गुह्ये, स्वाहा शक्तये नमः पादयो, ॐ कीलकाय नमः नाभौ, ममाभीष्टसिद्धयर्थे सर्वशत्रु-क्षयार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
षडङ्ग-न्यास – कर-न्यास – अंग-न्यास -
ॐ ह्लीं अंगुष्ठाभ्यां नमः हृदयाय नमः
बगलामुखी तर्जनीभ्यां नमः शिरसे स्वाहा
सर्वदुष्टानां मध्यमाभ्यां नमः शिखायै वषट्
वाचं मुखं पद स्तम्भय अनामिकाभ्यां नमः कवचाय हुम्
जिह्वां कीलय कनिष्ठिकाभ्यां नमः नेत्र-त्रयाय वौषट्
बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः अस्त्राय फट्

ध्यानः-
हाथ में पीले फूल, पीले अक्षत और जल लेकर ‘ध्यान’ करे -
मध्ये सुधाब्धि-मणि-मण्डप-रत्न-वेद्यां, सिंहासनोपरि-गतां परि-पीत-वर्णाम् ।
पीताम्बराभरण-माल्य-विभूषितांगीं, देवीं स्मरामि धृत-मुद्-गर-वैरि-जिह्वाम् ।।
जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं, वामेन शत्रून् परि-पीडयन्तीम् ।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन, पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि ।।
मानस-पूजनः- इस प्रकार ध्यान करके भगवती पीताम्बरा बगलामुखी का मानस पूजन करें -
ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (अधोमुख-कनिष्ठांगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (अधोमुख-तर्जनी-अंगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (ऊर्ध्व-मुख-तर्जनी-अंगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ रं वह्नयात्मकं दीपं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि । (ऊर्ध्व-मुख-मध्यमा-अंगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ वं जल-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (ऊर्ध्व-मुख-अनामिका-अंगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ शं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (ऊर्ध्व-मुख-सर्वांगुलि-मुद्रा) ।
खड्ग-माला-मन्त्रः-
ॐ ह्लीं सर्वनिन्दकानां सर्वदुष्टानां वाचं मुखं स्तम्भय-स्तम्भय बुद्धिं विनाशय-विनाशय अपरबुद्धिं कुरु-कुरु अपस्मारं कुरु-कुरु आत्मविरोधिनां शिरो ललाट मुख नेत्र कर्ण नासिका दन्तोष्ठ जिह्वा तालु-कण्ठ बाहूदर कुक्षि नाभि पार्श्वद्वय गुह्य गुदाण्ड त्रिक जानुपाद सर्वांगेषु पादादिकेश-पर्यन्तं केशादिपाद-पर्यन्तं स्तम्भय-स्तम्भय मारय-मारय परमन्त्र-परयन्त्र-परतन्त्राणि छेदय-छेदय आत्म-मन्त्र-यन्त्र-तन्त्राणि रक्ष-रक्ष, सर्व-ग्रहान् निवारय-निवारय सर्वम् अविधिं विनाशय-विनाशय दुःखं हन-हन दारिद्रयं निवारय निवारय, सर्व-मन्त्र-स्वरुपिणि सर्व-शल्य-योग-स्वरुपिणि दुष्ट-ग्रह-चण्ड-ग्रह भूतग्रहाऽऽकाशग्रह चौर-ग्रह पाषाण-ग्रह चाण्डाल-ग्रह यक्ष-गन्धर्व-किंनर-ग्रह ब्रह्म-राक्षस-ग्रह भूत-प्रेतपिशाचादीनां शाकिनी डाकिनी ग्रहाणां पूर्वदिशं बन्धय-बन्धय, वाराहि बगलामुखी मां रक्ष-रक्ष दक्षिणदिशं बन्धय-बन्धय, किरातवाराहि मां रक्ष-रक्ष पश्चिमदिशं बन्धय-बन्धय, स्वप्नवाराहि मां रक्ष-रक्ष उत्तरदिशं बन्धय-बन्धय, धूम्रवाराहि मां रक्ष-रक्ष सर्वदिशो बन्धय-बन्धय, कुक्कुटवाराहि मां रक्ष-रक्ष अधरदिशं बन्धय-बन्धय, परमेश्वरि मां रक्ष-रक्ष सर्वरोगान् विनाशय-विनाशय, सर्व-शत्रु-पलायनाय सर्व-शत्रु-कुलं मूलतो नाशय-नाशय, शत्रूणां राज्यवश्यं स्त्रीवश्यं जनवश्यं दह-दह पच-पच सकल-लोक-स्तम्भिनि शत्रून् स्तम्भय-स्तम्भय स्तम्भनमोहनाऽऽकर्षणाय सर्व-रिपूणाम् उच्चाटनं कुरु-कुरु ॐ ह्लीं क्लीं ऐं वाक्-प्रदानाय क्लीं जगत्त्रयवशीकरणाय सौः सर्वमनः क्षोभणाय श्रीं महा-सम्पत्-प्रदानाय ग्लौं सकल-भूमण्डलाधिपत्य-प्रदानाय दां चिरंजीवने । ह्रां ह्रीं ह्रूं क्लां क्लीं क्लूं सौः ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय राजस्तम्भिनि क्रों क्रों छ्रीं छ्रीं सर्वजन संमोहिनि सभास्तंभिनि स्त्रां स्त्रीं सर्व-मुख-रञ्जिनि मुखं बन्धय-बन्धय ज्वल-ज्वल हंस-हंस राजहंस प्रतिलोम इहलोक परलोक परद्वार राजद्वार क्लीं क्लूं घ्रीं रुं क्रों क्लीं खाणि खाणि , जिह्वां बन्धयामि सकलजन सर्वेन्द्रियाणि बन्धयामि नागाश्व मृग सर्प विहंगम वृश्चिकादि विषं निर्विषं कुरु-कुरु शैलकानन महीं मर्दय मर्दय शत्रूनोत्पाटयोत्पाटय पात्रं पूरय-पूरय महोग्रभूतजातं बन्धयामि बन्धयामि अतीतानागतं सत्यं कथय-कथय लक्ष्मीं प्रददामि-प्रददामि त्वम् इह आगच्छ आगच्छ अत्रैव निवासं कुरु-कुरु ॐ ह्लीं बगले परमेश्वरि हुं फट् स्वाहा ।

विशेषः- मूलमन्त्रवता कुर्याद् विद्यां न दर्शयेत् क्वचित् ।
विपत्तौ स्वप्नकाले च विद्यां स्तम्भिनीं दर्शयेत् ।
गोपनीयं गोपनीयं गोपनीयं प्रयत्नतः ।
प्रकाशनात् सिद्धहानिः स्याद् वश्यं मरणं भवेत् ।
दद्यात् शानताय सत्याय कौलाचारपरायणः ।
दुर्गाभक्ताय शैवाय मृत्युञ्जयरताय च ।
तस्मै दद्याद् इमं खड्गं स शिवो नात्र संशयः ।
अशाक्ताय च नो दद्याद् दीक्षाहीनाय वै तथा ।
न दर्शयेद् इमं खड्गम् इत्याज्ञा शंकरस्य च ।।
।। श्रीविष्णुयामले बगलाखड्गमालामन्त्रः ।।

मृत्युंजय जाप

मृत्युंजय जाप 
महाकाल की आराधना का मृत्यु शैया पर पड़े व्यक्ति को बचाने में विशेष महत्व है। खासकर तब जब व्यक्ति अकाल मृत्यु का शिकार होने वाला हो। इस हेतु एक विशेष जाप से भगवान महाकाल का लक्षार्चन अभिषेक किया जाता है।

'ॐ ह्रीं जूं सः भूर्भुवः स्वः, 
ॐ त्र्यम्बकं स्यजा महे
सुगन्धिम्पुष्टिवर्द्धनम्‌।
उर्व्वारूकमिव बंधनान्नमृत्योर्म्मुक्षीयमामृतात्‌ 
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ' 
इसी तरह सर्वव्याधि निवारण हेतु इस मंत्र का जाप किया जाता है। 

ॐ मृत्युंजय महादेव त्राहिमां शरणागतम 
जन्म मृत्यु जरा व्याधि पीड़ितं कर्म बंधनः 
शिवरात्रि में शिवोत्सव बडे धूमधाम से मनाया जाता है। इन दिनों भक्तवत्सल्य भगवान आशुतोष महाकालेश्वर का विशेष श्रृंगार किया जाता है, उन्हें विविध प्रकार के फूलों से सजाया जाता है। यहाँ तक कि भक्तजन अपनी श्रद्धा का अर्पण इतने विविध रूपों में करते है कि देखकर आश्चर्य होता है। 

जटाओं में गंगाजी को धारण करने वाले, सिर पर चंद्रमा को सजाने वाले,मस्तक पर त्रिपुंड तथा तीसरे  नेत्र वाले ,कंठ में कालपाश [नागराज] तथा रुद्रा- क्षमाला से सुशोभित , हाथ में डमरू और त्रिशूल है जिनके  और भक्तगण बड़ी  श्रद्दा से  जिन्हें  शिवशंकर, शंकर, भोलेनाथ, महादेव, भगवान् आशुतोष, उमापति, गौरीशंकर, सोमेश्वर, महाकाल, ओंकारेश्वर, वैद्यनाथ, नीलकंठ, काशीविश्वनाथ, त्र्यम्बक, त्रिपुरारि, सदाशिव तथा अन्य सहस्त्रों नामों से संबोधित कर उनकी पूजा-अर्चना किया करते हैं —– ऐसे भगवान् शिव एवं शिवा हम सबके चिंतन को सदा-सदैव सकारात्मक बनायें ।

नजर दोष दूर करना

कुदृष्टि (नजर) उतारने के लिए नमक और राई से की जानेवाली विधि:-
प्रथम कृत्य : – प्रार्थना करना
जिसकी कुदृष्टि उतारनी है उसे श्री हनुमानजी से प्रार्थना करनी चाहिए : मैं (अपना नाम लें) प्रार्थना करता हूं मुझे लगी कुदृष्टि उतर जाए और (जो कुदृष्टि उतार रहा है उसका नाम लें) पर किसी भी प्रकार का अनिष्ट प्रभाव न पडे ।
जो कुदृष्टि उतार रहा है वह श्री हनुमानजी से प्रार्थना करे कि उस पर कष्टदायक नकारात्मक शक्ति का कोई प्रभाव न हो ।

द्वितीय कृत्य : अपना स्थान ग्रहण करें

जिस अनिष्ट शक्ति से आवेशित व्यक्ति की कुदृष्टि उतारनी है उसे लकडी की चौकी पर पूर्व दिशा की ओर मुख कर, घुटनों को छाती से लगा कर उकडू बैठने के लिए कहें ।

तृतीय कृत्य : विधि करना

जो व्यक्ति कृत्य कर रहा हो उसे दूसरे व्यक्ति के समक्ष खडा होना चाहिए । जितनी मात्रा में रवेदार नमक और राई मुट्ठी में लिए जा सकते हैं वह दोनों हाथों में लें ।
अपने सामने दोनों मुट्ठियां गुणाकार चिन्ह के आकार में रखें । दोनों मुट्ठियां बाधित व्यक्ति के मस्तक से पैरों तक एक दूसरे की विपरीत दिशा में घुमाते हुए नीचे लाएं एवं धरती का स्पर्श करें ।
हाथों को केवल प्रारंभ में गुणाकार स्थिति में रखा जाता है, किंतु जैसे ही क्रिया का आरंभ होता है और हाथ विलग होते हैं, एक साथ दाहिनी मुट्ठी घडी की दिशा में तथा बांयीं मुट्ठी घडी की विपरीत दिशा में मस्तक से पैरों तक घुमाएं ।
धरती को स्पशर्र् करने के उपरांत पहले की तरह क्रिया करते हैं अर्थात हांथों को अलग कर एक साथ, दायीं मुट्ठी को घडी की दिशा में तथा बायीं मुट्ठी को घडी की विपरीत दिशा में पैरों से मस्तक तक ले जाते हैं ।
कुदृष्टि (नजर) उतारने की विधि करते समय यह बोलें ‘‘ आगंतुकों की, अशरीरी आत्माओं की, वृक्ष की, आने-जानेवालों की, विशिष्ट स्थान की लगी कुदृष्टि (नजर) उतर जाए और इसकी रोगों अथवा चोट से रक्षा हो ।’’
मुट्ठियों को घुमाने एवं धरती को स्पर्श करने का कारण :
बताए अनुसार मुट्ठियों को घुमाने से, अनिष्ट स्पंदन कुदृष्टि (नजर) उतारने वाले पदार्थ में सोख लिए जाते हैं तदुपरांत धरती को स्पर्श कराने पर वे धरती द्वारा खींच लिए जाते हैं !

Sunday, 29 August 2021

व्यापार बढाने के चमत्कारी उपाय

व्यापार बढाने के चमत्कारी उपाय

  1. व्यापार स्थल पर श्री यंत्र, गणेश यंत्र व कुबेर यंत्र स्थापित करे। वह प्रतिदिन उन्हें धूप दीप दिखावें।
  2. रात्रि के समय एक पानी का कलश सिरहाने रख ले। और सुबहा अपने मेन गेट के दोनो कोलो को‌‌ सिचें।
  3. श्री लक्ष्मी माता के कनक धारा स्त्रोत का रोजाना 2-4 बार पाठ करें। कनक धारा स्त्रोत को‌ घर के सभी सदस्य एक-एक बार पढ़ सकते है।
  4. प्रात: स्नान करके, तुलसी के पेड़ को एक कलश जल चढावे। और धूप दीप व अगरबत्ती लगावें। 21 दिनो मे परिणाम दिखे।
  5. व्यापार स्थल के एक कोने मे वृहस्पतिवार को गंगा जल का छिड़काव करे। फिर हल्दी से स्वास्तिक बनाए।
  6. स्वास्तिक के ऊपत दिपक लगाकर, गुड़ व चनर के दाल चढावे। यह उपाय आपको 11 वृहस्पतिवार लगातार करना है।
  7. शुक्रवार के दिन गुड व चना बच्चों मे बांटे।
  8. गेहूँ व चावल की किनकी मे शक्कर मिलाकर। चींटियों  को डाले।
  9. वृहस्पतिवार को एक नींबू, दुकान खोलने से पहले शटर के बाहर काट दें। और दोनो‌ पीस को दाए-बाए फेंक‌‌ दे। फिर गंगा जल छिड़काव कर लोबान की धूनी दे।
  10. सफेद धतूसफेरे के बीज को किसी कपड़े मे बांधकर गल्ले मे रखे। और रोज धूप दें,
  11. शुक्ल पक्ष के रविवार को व्यापार स्थल मे सरसों के तेल का दिपक लगाकर। काले मां की दाल को सामने एक थाली मे रख ले। और इस मंत्र का 108 बार जाप करे। और काले मां की दाल पर फूंक मारते रहे। जाप पूर्ण होने के बाद काले मा को दुकान मे छिड़क दे। अगले दिल पानी मे परवाह कर दें। इसके अतिरिक्त इस मंत्र का रोजाना जाप भी कर सकते है।

व्यापार न चलने के कारण

व्यापार न चलने के कारण

आपका व्यापक मंदा पड़ गया है। दुकान पर कोई भी ग्राहक नही आता। इसके पीछे बहुत सारे कारण होते है। जैसे :-

  1. जब भी हम व्यापार व दुकान को आरम्भ करते है। अपने पित्तरो को याद नही करते।
  2. व्यापार आरम्भ करने से पहले हमे किसी पंडित या शास्त्री को अवश्य दिखाना चाहिए।
  3. दुकान व कोई भी‌ व्यापार आरम्भ करने से‌ पहले पूजा अवश्य करवाए।
  4. व्यापार शुरु करने से पहले अपने कुल देवी देवताओं से आज्ञा व आर्शीवाद प्राप्त करे।
  5. व्यापार शुभ दिनो मे आरम्भ करें।
  6. किसी के द्वारा हमारे व्यापार को तांत्रिक क्रिया से बांध देना।
  7. हमारे घर के प्रेत व किसी भी बुरी आत्माओं द्वारा रुकावट।
  8. अपनी पत्नी व माता पिता का अपमान करने से हमारा व्यापार मंदा पड़ सकता है।
  9. व्यापार स्थल पर देवी देवताओं का कोई चित्र न हो, और धूप बत्ती न होती हो।
  10. यदि आपकी कोई दुकान है। तो सटर उठाने से पहले मंदिर जाए। व अपने इष्ट देव का ध्यान करे। और उनसे व्यापार मे वृद्धि करने की प्रार्थना करें।

सिंदूर तिलक वशीकरण साधना मंत्र

सिंदूर तिलक वशीकरण साधना मंत्र

ॐ नमो आदेश गुरु का।
सिंदूर की माया।
सिंदूर नाम तेरी पत्ती।
कामाख्या सिर पर तेरी उत्पत्ति।
सिंदूर पढ़ि मैं लगाऊँ बिन्दी।
वश अमुख होके रहे निर्बुध्दी।
महादेव की शक्ति। गुरु की भक्ति।
न वशी हो तो कामरु कामाख्या को दुहाई।
आदेश हाड़ी दासी चण्डी का।
अमुक का मन लाओ निकाल।
नहीं तो महादेव पिता का वाम पढ़ जाये लाग।
आदेश आदेश आदेश

महत्वपूर्ण जानकारी

इस मंत्र मे जहां भी अमुख, या अमुक शब्द इस्तमाल किया गया है। उसके स्थान पर आप‌ जिस भी व्यक्ति को वश मे करना चाहते है। उनका नाम ले। पर जब यह मंत्र आप सिद्ध कर रहे है। तब आप को अमुख और अमुक ही बोलना है। जब आप इस मंत्र का‌ किसी व्यक्ति पर इस्तमाल करना चाहते है। तो अमुख और अमुक के‌ स्थान पर उस व्यक्ति का नाम लेना है।


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