About The Best Astrologer In Muzaffarnagar, India -Consultations by Astrologer Consultations by Astrologer - Pandit Ashu Bahuguna Skills : Vedic Astrology , Horoscope Analysis , Astrology Remedies , Prashna kundli IndiaMarriage Language: Hindi Experience : Exp: 35 Years Expertise: Astrology , Business AstrologyCareer Astrology ,Court/Legal Issues , Property Astrology, Health Astrology, Finance Astrology, Settlement , Education http://shriramjyotishsadan.in Mob +919760924411
सोमवार, 30 अगस्त 2021
शाबर धूमावती साधना
उतारा टोटके
बगलामुखी देवी साधना
पीताम्बरा बगलामुखी खड्ग मालामन्त्र
मृत्युंजय जाप
नजर दोष दूर करना
रविवार, 29 अगस्त 2021
व्यापार बढाने के चमत्कारी उपाय
व्यापार बढाने के चमत्कारी उपाय
- व्यापार स्थल पर श्री यंत्र, गणेश यंत्र व कुबेर यंत्र स्थापित करे। वह प्रतिदिन उन्हें धूप दीप दिखावें।
- रात्रि के समय एक पानी का कलश सिरहाने रख ले। और सुबहा अपने मेन गेट के दोनो कोलो को सिचें।
- श्री लक्ष्मी माता के कनक धारा स्त्रोत का रोजाना 2-4 बार पाठ करें। कनक धारा स्त्रोत को घर के सभी सदस्य एक-एक बार पढ़ सकते है।
- प्रात: स्नान करके, तुलसी के पेड़ को एक कलश जल चढावे। और धूप दीप व अगरबत्ती लगावें। 21 दिनो मे परिणाम दिखे।
- व्यापार स्थल के एक कोने मे वृहस्पतिवार को गंगा जल का छिड़काव करे। फिर हल्दी से स्वास्तिक बनाए।
- स्वास्तिक के ऊपत दिपक लगाकर, गुड़ व चनर के दाल चढावे। यह उपाय आपको 11 वृहस्पतिवार लगातार करना है।
- शुक्रवार के दिन गुड व चना बच्चों मे बांटे।
- गेहूँ व चावल की किनकी मे शक्कर मिलाकर। चींटियों को डाले।
- वृहस्पतिवार को एक नींबू, दुकान खोलने से पहले शटर के बाहर काट दें। और दोनो पीस को दाए-बाए फेंक दे। फिर गंगा जल छिड़काव कर लोबान की धूनी दे।
- सफेद धतूसफेरे के बीज को किसी कपड़े मे बांधकर गल्ले मे रखे। और रोज धूप दें,
- शुक्ल पक्ष के रविवार को व्यापार स्थल मे सरसों के तेल का दिपक लगाकर। काले मां की दाल को सामने एक थाली मे रख ले। और इस मंत्र का 108 बार जाप करे। और काले मां की दाल पर फूंक मारते रहे। जाप पूर्ण होने के बाद काले मा को दुकान मे छिड़क दे। अगले दिल पानी मे परवाह कर दें। इसके अतिरिक्त इस मंत्र का रोजाना जाप भी कर सकते है।
व्यापार न चलने के कारण
व्यापार न चलने के कारण
आपका व्यापक मंदा पड़ गया है। दुकान पर कोई भी ग्राहक नही आता। इसके पीछे बहुत सारे कारण होते है। जैसे :-
- जब भी हम व्यापार व दुकान को आरम्भ करते है। अपने पित्तरो को याद नही करते।
- व्यापार आरम्भ करने से पहले हमे किसी पंडित या शास्त्री को अवश्य दिखाना चाहिए।
- दुकान व कोई भी व्यापार आरम्भ करने से पहले पूजा अवश्य करवाए।
- व्यापार शुरु करने से पहले अपने कुल देवी देवताओं से आज्ञा व आर्शीवाद प्राप्त करे।
- व्यापार शुभ दिनो मे आरम्भ करें।
- किसी के द्वारा हमारे व्यापार को तांत्रिक क्रिया से बांध देना।
- हमारे घर के प्रेत व किसी भी बुरी आत्माओं द्वारा रुकावट।
- अपनी पत्नी व माता पिता का अपमान करने से हमारा व्यापार मंदा पड़ सकता है।
- व्यापार स्थल पर देवी देवताओं का कोई चित्र न हो, और धूप बत्ती न होती हो।
- यदि आपकी कोई दुकान है। तो सटर उठाने से पहले मंदिर जाए। व अपने इष्ट देव का ध्यान करे। और उनसे व्यापार मे वृद्धि करने की प्रार्थना करें।
सिंदूर तिलक वशीकरण साधना मंत्र
सिंदूर तिलक वशीकरण साधना मंत्र
ॐ नमो आदेश गुरु का।
सिंदूर की माया।
सिंदूर नाम तेरी पत्ती।
कामाख्या सिर पर तेरी उत्पत्ति।
सिंदूर पढ़ि मैं लगाऊँ बिन्दी।
वश अमुख होके रहे निर्बुध्दी।
महादेव की शक्ति। गुरु की भक्ति।
न वशी हो तो कामरु कामाख्या को दुहाई।
आदेश हाड़ी दासी चण्डी का।
अमुक का मन लाओ निकाल।
नहीं तो महादेव पिता का वाम पढ़ जाये लाग।
आदेश आदेश आदेश
महत्वपूर्ण जानकारी
इस मंत्र मे जहां भी अमुख, या अमुक शब्द इस्तमाल किया गया है। उसके स्थान पर आप जिस भी व्यक्ति को वश मे करना चाहते है। उनका नाम ले। पर जब यह मंत्र आप सिद्ध कर रहे है। तब आप को अमुख और अमुक ही बोलना है। जब आप इस मंत्र का किसी व्यक्ति पर इस्तमाल करना चाहते है। तो अमुख और अमुक के स्थान पर उस व्यक्ति का नाम लेना है।
रोगो से मुक्ति के मंत्र
रोगो से मुक्ति के मंत्र
- सभी प्रकार के रोग नाशक मंत्र – ॐ सं सां सिं सीं सुं सूं सें सैं सौं सं स: वं वां विं वीं वुं वूं वें वैं वों वौं वं व: हंस: अमृत वर्चसे स्वाहा ( साधक अपना नाम ले )
- बवासीर नाशक मंत्र -ॐ काका कता क्रोरी कर्ता, ॐ करता से होय, यरसना दश हूंस प्रकटे, खूनी बादी बवासीर न होय, मंत्र जान के न बताये, द्वादश ब्रह्म हत्या का पाप होय, लाख जप करे तो उसके वंश में न होय, शब्द साँचा, पिण्ड काँचा, हनुमान का मंत्र साँचा फुरो मंत्र ईश्वरोवाचा (रोगी नाम ले )
- सर्व रोग नाशक मंत्र – ॐ नमो आदेश गुरु का, काली कमली वाला श्याम उसको कहते है। घन श्याम रोग नाशे, शोक नाशे नही तो कृष्ण की आन, राधा मीरा मनावे, अमुक का रोग जावे। ( अमुक के स्थान पर रोगी का नाम ले)
- हर प्रकार के रोग नाशक मंत्र – ॐ वन मे बैठी वानरी अजनी जायो हनुमन्त, बाल डमरू ब्याही बिलाई, आख की पीड़ा, मस्तक की पीड़ा चौरासी बाई, बलि-बलि भस्म हो जाय, पक्के न फुटे पीड़ा करे तो गोरखयति रक्षा करें। गुरु कि शक्ति मेरी भक्ति फुरे मंत्र ईश्वरो वाचा। (रोगी का नाम ले)
रोग मुक्ति के चमत्कारी टोटके
रोग मुक्ति के चमत्कारी टोटके
- शनिवार के दिन सूर्य अस्त होने के बाद 2 लड्डू रोगी के उपर से बारकर काले कुत्ते को जिला हें।
- एक नारियल के गुट को उपर से थोड़ा काटकर उसने सात चीजें डालकर, सतनाजा तैयार करले और जहां ढ़ेर सारी चींटियाँ हो बहा दबा दे।
- एक सूखा नारियल लेकर रोगी के उपर से 7 बार फिरा कर नदी मे परवाह कर दें।
- बीमार व्यक्ति के पास रोजाना हनुमान चालीसा का पाठ करें।
- बीमार व्यक्ति को प्रतिदिन महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना चाहिए।
- यदि आपके घर का कोई सदस्य सदैव बीमार रहता है। तो उसकी कुंडली दिखाए।क
- कुंडली मे यदि किसी भी ग्रह की बुरी दशा हो तो दान करें। या रत्न धारण करवाए।
- रात या दोपहर के 12 बजे 7 लौंग रोगी व्यक्ति के उपर से फिरा कर अग्नि मे डाले।
- हनुमान जी के बजरंग बाण या सुंदर कांड का पाठ करें।
- पित्तरो की सेवा करें।
- प्रतिदिन सुबहा मां दुर्गा के कवच का पाठ करें
भैरव साधना
रूद्र काल भैरव की उग्र साधना -
रूद्र काल भैरव की उग्र साधना -
आपने भैरवजी के बारे में सुना होगा।
मगर भैरवजी किन किन भागों में विभाजित हैं। ..
आज आपको इस पोस्ट के माध्यम से बताते हैं। .. भैरवजी के साथ भैरवी पूजन का भी विधान है... |
हर शक्तिपीठ में माँ के हर रूप के साथ कोई ना कोई भैरव विद्यमान जरूर होता है |
आप जितने भी शक्तिपीठो में जायेंगे आपको हर शक्ति भैरवी के साथ भैरव भी उस पीठ में दिखाई देंगे |
ये दोनों एक दुसरे के बिना अपूर्ण माने जाते है |
महाकाल के बिना महाकाली अपूर्ण है इसी तरह शिव का अर्धनारीश्वर रूप भी यही बोध कराता है की स्त्री और पुरुष शक्ति दोनों का ही महत्त्व है |
भैरव की पूजा पूर्ण तभी होती है जब साथ में भैरवी की भी पूजा की जाये |
भैरवी भैरव भक्तो की साधना में मदद करके उनकी पूजा अर्चना को सफल बनाने में सहायक होती है |
भैरव हिन्दुओं के प्रसिद्द देवता हैं जो शिव के रूप हैं। इनकी पूजा भारत और नेपाल में होती है। हिन्दू और जैन दोनों भैरव की पूजा करते हैं। भैरवों की संख्या ६४ है। ये ६४ भैरव भी ८ भागों में विभाजित हैं।
शिवपुराण’ के अनुसार मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को मध्यान्ह में भगवान शंकर के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी, अतः इस तिथि को काल-भैरवाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है।
पौराणिक आख्यानों के अनुसार अंधकासुर नामक दैत्य अपने कृत्यों से अनीति व अत्याचार की सीमाएं पार कर रहा था, यहाँ तक कि एक बार घमंड में चूर होकर वह भगवान शिव तक के ऊपर आक्रमण करने का दुस्साहस कर बैठा. तब उसके संहार के लिए शिव के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई।
कुछ पुराणों के अनुसार शिव के अपमान-स्वरूप भैरव की उत्पत्ति हुई थी। यह सृष्टि के प्रारंभकाल की बात है। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने भगवान शंकर की वेशभूषा और उनके गणों की रूपसज्जा देख कर शिव को तिरस्कार युक्त वचन कहे। अपने इस अपमान पर स्वयं शिव ने तो कोई ध्यान नहीं दिया, किन्तु उनके शरीर से उसी समय क्रोध से कम्पायमान और विशाल दण्डधारी एक प्रचण्डकाय काया प्रकट हुई और वह ब्रह्मा का संहार करने के लिये आगे बढ़ आयी। स्रष्टा तो यह देख कर भय से चीख पड़े। शंकर द्वारा मध्यस्थता करने पर ही वह काया शांत हो सकी। रूद्र के शरीर से उत्पन्न उसी काया को महाभैरव का नाम मिला। बाद में शिव ने उसे अपनी पुरी, काशी का नगरपाल नियुक्त कर दिया। ऐसा कहा गया है कि भगवान शंकर ने इसी अष्टमी को ब्रह्मा के अहंकार को नष्ट किया था, इसलिए यह दिन भैरव अष्टमी व्रत के रूप में मनाया जाने लगा।
कालान्तर में भैरव-उपासना की दो शाखाएं- बटुक भैरव तथा काल भैरव के रूप में प्रसिद्ध हुईं। जहां बटुक भैरव अपने भक्तों को अभय देने वाले सौम्य स्वरूप में विख्यात हैं वहीं काल भैरव आपराधिक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करने वाले प्रचण्ड दंडनायक के रूप में प्रसिद्ध हुए।
पुराणों में भैरव का उल्लेख
तंत्रशास्त्र में अष्ट-भैरव का उल्लेख है –
असितांग-भैरव,
रुद्र-भैरव,
चंद्र-भैरव,
क्रोध-भैरव,
उन्मत्त-भैरव,
कपाली-भैरव,
भीषण-भैरव
तथा संहार-भैरव।
कालिका पुराण में भैरव को नंदी, भृंगी, महाकाल, वेताल की तरह भैरव को शिवजी का एक गण बताया गया है जिसका वाहन श्वान है।
ब्रह्मवैवर्तपुराण में भी १ . महाभैरव, २ . संहार भैरव, ३ . असितांग भैरव, ४ . रुद्र भैरव, ५ . कालभैरव, ६ . क्रोध भैरव, ७ . ताम्रचूड़ भैरव तथा ८ . चंद्रचूड़ भैरव नामक आठ पूज्य भैरवों का निर्देश है। इनकी पूजा करके मध्य में नवशक्तियों की पूजा करने का विधान बताया गया है। शिवमहापुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का ही पूर्णरूप बताया गया है -
भैरव के आठ भैरवीयो के नाम -
श्री भैरवी , महा भैरवी , सिंह भैरवी , धूम्र भैरवी, भीम भैरवी, उन्मत्त भैरवी , वशीकरण भैरवी और मोहन भैरवी
नमस्कार मंत्र-
ॐ श्री भैरव्यै , ॐ मं महाभैरव्यै , ॐ सिं सिंह भैरव्यै , ॐ धूं धूम्र भैरव्यै, ॐ भीं भीम भैरव्यै , ॐ उं उन्मत्त भैरव्यै , ॐ वं वशीकरण भैरव्यै , ॐ मों मोहन भैरव्यै |
ॐ श्री भैरव्यै नमः श्री भैरव्यै पदुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
ॐ श्री भैरव्यै नमः महाभैरवी पदुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
ॐ सिं सिंह भैरव्यै नमः श्री सिंह भैरवी पदुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
ॐ धूं धूम्र भैरव्यै धूम्र भैरवी पदुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
ॐ भीं भीम भैरव्यै भीम भैरवी पदुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
ॐ उं उन्मत्त भैरव्यै उन्मत्त भैरवी पदुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
ॐ वं वशीकरण भैरव्यै वशीकरण भैरवी पदुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
ॐ मों मोहन भैरव्यै मोहन भैरवी पदुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
भैरव रूद्र पाठ-
भं भं भं भं भं विकट गंभीर नाद कर प्रकट भये भैरव
कल कल कल कल कल विकराल अग्नि नेत्र धरे विशाल भैरव
घम घम घम घम घम घुंघरू घमकावत नाचे भैरव
हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हुँकारे भूतनाथ भैरव
डम डम डम डम डम डमरू डमकावत प्रचंड भैरव
हर हर हर हर हर नाद उद्घोषित करते महाकाल भैरव
झम झम झम झम झमक झम झम मेघ बरसत प्रकट भैरव
तड़ तड़ तड़ तड़ तड़क तड़ तड़ तड़तड़ावत घनघोर बिजली
धम धम धम धम धम दंड धमकावत काल भैरव
जय हो भव भय हारक क्रोधेश महाकाल भैरव ।।।
ॐ भैरवाय नमः।
शत्रु से मुक्ति पाये
भैरव साधना शाबर मंत्र
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ॐ श्री काल भैरव बटुक भैरव शाबर स्तोत्र मंत्र ॐ अस्य श्री बटुक भैरव शाबर स्तोत्र मन्त्रस्य सप्त ऋषिः ऋषयः , मातृका छंदः , श्री बटुक भैरव ...