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Tuesday, 16 April 2019
भोज पत्र यंत्रों के जब प्रयोग सामने आते हैं तो एक सामान्य साधक का यह सोचना स्वाभाविक हैं की इन्हें बनाया कैसे जाये . दूसरा यह भोज पत्र क्या हैं , क्या इसमें भी कुछ गुणवत्ता देखना जरुरी हैं . भोज पत्र पर यंत्र बनाना कहीं ज्यादा उचित माना गया हैं .यु तो काल अवधि को दृष्टिगत रखते हुए चांदी ताम्बे और स्वर्ण पर भी निर्माण देखने में आया गया हैं कतिपय विशष्ट यंत्रो के साथ यदि धातुओं से जुडी हुयी कुछ विशष्ट ता हैं तो यह अलग बात हैं क्योंकि हर धातु का अपना एक अलग ही गुण हैं जो मानव को प्रभावित भी करता हैं हैं कुछ धातुये अलग तत्व को तो कुछ अलग तत्वों की प्रतिनिधि होती हैं , यहाँ तत्व से तात्पर्य सत रज तम से हैं . और किसके लिए किस प्रकार की व्यवस्था हैं यह तो कोई योग्य ही सामने रख सकता हैं, क्योंकि अगर यह विज्ञानं हैं तो सारे कार्य कलाप में एक निश्चित परिणाम की प्राप्ति के लिए एक निश्चित तरीका भी तो उपयोग होगा. भोज पत्र एक वृक्ष का नाम हैं और इसकी छाल ही भोज पत्र के नाम से बिकती हैं यह एक और भूरे रंग की तो दूसरी और सफ़ेद रंग की होती हैं भूरे रंग को ही लाल कह कर बाजार में उपलब्ध कराया जाता हैं ., ध्यान रहे भोज पत्र की यह छाल जिस पर यह यन्त्र बनाया जाना हैं वह साफ़ सुथरा और टुटा फूटा न हो .और इसको बाजार से ले आये साथ ही यह तो एक कागज़ की तरह का होता हैं तो जितना बड़ा यन्त्र हो उस आकार का इसको काट कर टुकड़ा लेना चाहिए. यंत्र के प्रयोग जिनमे यंत्रो को धारण करने का निर्देश होता हैं उन्हें सामन्यतः भोज पत्र में ही बना कर फिर बाज़ार में मिल रहे विभिन्न ताबीजो के अनुसार से उनके अंदर भर कर प्रयोग करना चाहिए .ताबीज की धातु भी यदि निर्देशित हो तो उसका पालन करे या फिर जो भी धातु या त्रि धातु का आपको ठीक लगे उसका उपयोग करे .. जितना अच्छा और उच्च कोटि का भोज पत्र होगा उतना ही अच्छा हैंहाँ यदि निर्देशित हो तो आप इन यंत्रो को अच्छे से मधवा भी सकते हैं .इन यंत्रो के निर्माण के लिए महा पर्व ही नहीं बल्कि कोई भी शुभ समय लिया जा सकता हैं और इस बात की जानकारी तो आप सदगुरुदेव द्वारा रचित “काल निर्णय “ नाम के ग्रथ से जान सकतेहैं फिर भी यह भी नहीं हो पा रहा हो हर दिन दिन के १२ बजे एक महूर्त होता हैं जिसे अभिजीत महूर्त कहते हैं उस समय भी उपयोग कर सकते हैं , हलाकि जैसा निर्देशित किया गया हो उस यंत्र के निर्माण प्रक्रिया के बारे में वैसा किया भी जाना चहिये . और जब यन्त्र का निर्माण हो जाये तो अब उसकी पूजन कैसे करना हैं यह भी एक आवश्यक बात हैं क्योंकि जा की रही भावना जैसी ..
गोमती चक्र : कुछ विशेष उपाए : - १. दुश्मन तंग कर रहे हों तो तीन गोमती चक्रों पर दुश्मन के नाम लिख कर जमीन में गाड दें . दुश्मन परास्त हो जाएंगे. २. व्योपार बदने के लिए दो गोमती चक्र लाल कपडे में बाँध कर चौखट पे इस तरह से लटका दें कि ग्राहक उसके नीचे से गुजरें , इस से ग्राहक ज्यादा आयेंगे. ३. सरकार की तरफ से सम्मान हासिल करने के लिए और अटके काम पूरे करने के लिए दो गोमती चक्र किसी ब्राह्मण को दान कर दें. ४. बार बार गर्भपात हो रह हो तो दो गोमती चक्र लाल कपडे में बाँध कर कमर से बाँध दें. ५. यदि प्रमोशन नही हो रही तो एक गोमती चक्र शिव मन्दिर में चढ़ा दें. ६. दुर्भाग्य दूर करने के लिए तीन गोमती चक्रों का चूर्ण बनाकर घर के आगे बिखेर दें . ७.पुत्र प्राप्ति के लिए पांच गोमती चक्र लेकर किसी तालाब या नदी में प्रवाह करें, मन्त्र पढ़ते हुए - हिली हिली मिलि मिलि चिली चिली हुक ८. पति पत्नी का झगडा ख़तम करने के लिए तीन गोमती चक्र हलूं बलजाद कह्कर घर के दक्षिण में फेंकें . ९ कचहरी जाते समय एक गोमती चक्र घर के बहर रख कर अपना पहला कदम उस पर राख कर जाएँ.गोमती चक्र : कुछ विशेष उपाए : - १. दुश्मन तंग कर रहे हों तो तीन गोमती चक्रों पर दुश्मन के नाम लिख कर जमीन में गाड दें . दुश्मन परास्त हो जाएंगे. २. व्योपार बदने के लिए दो गोमती चक्र लाल कपडे में बाँध कर चौखट पे इस तरह से लटका दें कि ग्राहक उसके नीचे से गुजरें , इस से ग्राहक ज्यादा आयेंगे. ३. सरकार की तरफ से सम्मान हासिल करने के लिए और अटके काम पूरे करने के लिए दो गोमती चक्र किसी ब्राह्मण को दान कर दें. ४. बार बार गर्भपात हो रह हो तो दो गोमती चक्र लाल कपडे में बाँध कर कमर से बाँध दें. ५. यदि प्रमोशन नही हो रही तो एक गोमती चक्र शिव मन्दिर में चढ़ा दें. ६. दुर्भाग्य दूर करने के लिए तीन गोमती चक्रों का चूर्ण बनाकर घर के आगे बिखेर दें . ७.पुत्र प्राप्ति के लिए पांच गोमती चक्र लेकर किसी तालाब या नदी में प्रवाह करें, मन्त्र पढ़ते हुए - हिली हिली मिलि मिलि चिली चिली हुक ८. पति पत्नी का झगडा ख़तम करने के लिए तीन गोमती चक्र हलूं बलजाद कह्कर घर के दक्षिण में फेंकें . ९ कचहरी जाते समय एक गोमती चक्र घर के बहर रख कर अपना पहला कदम उस पर राख कर जाएँ.
व्यापार वृधि के लिए यदि परिश्रम के पश्चात् भी कारोबार ठप्प हो, या धन आकर खर्च हो जाता हो तो यह टोटका काम में लें। किसी गुरू पुष्य योग और शुभ चन्द्रमा के दिन प्रात: हरे रंग के कपड़े की छोटी थैली तैयार करें। श्री गणेश के चित्र अथवा मूर्ति के आगे “संकटनाशन गणेश स्तोत्र´´ के 11 पाठ करें। तत्पश्चात् इस थैली में 7 मूंग, 10 ग्राम साबुत धनिया, एक पंचमुखी रूद्राक्ष, एक चांदी का रूपया या 2 सुपारी, 2 हल्दी की गांठ रख कर दाहिने मुख के गणेश जी को शुद्ध घी के मोदक का भोग लगाएं। फिर यह थैली तिजोरी या कैश बॉक्स में रख दें। गरीबों और ब्राह्मणों को दान करते रहे। आर्थिक स्थिति में शीघ्र सुधार आएगा। 1 साल बाद नयी थैली बना कर बदलते रहें।
किसी शनिवार को, यदि उस दिन `सर्वार्थ सिद्धि योग’ हो तो अति उत्तम सांयकाल अपनी लम्बाई के बराबर लाल रेशमी सूत नाप लें। फिर एक पत्ता बरगद का तोड़ें। उसे स्वच्छ जल से धोकर पोंछ लें। तब पत्ते पर अपनी कामना रुपी नापा हुआ लाल रेशमी सूत लपेट दें और पत्ते को बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। इस प्रयोग से सभी प्रकार की बाधाएँ दूर होती हैं और कामनाओं की पूर्ति होती है।
जिन व्यक्तियों को लाख प्रयत्न करने पर भी स्वयं का मकान न बन पा रहा हो, वे इस टोटके को अपनाएं। प्रत्येक शुक्रवार को नियम से किसी भूखे को भोजन कराएं और रविवार के दिन गाय को गुड़ खिलाएं। ऐसा नियमित करने से अपनी अचल सम्पति बनेगी या पैतृक सम्पति प्राप्त होगी। अगर सम्भव हो तो प्रात:काल स्नान-ध्यान के पश्चात् निम्न मंत्र का जाप करें। “ॐ पद्मावती पद्म कुशी वज्रवज्रांपुशी प्रतिब भवंति भवंति।।´´
सोमवार के दिन एक रूमाल, 5 गुलाब के फूल, 1 चांदी का पत्ता, थोड़े से चावल तथा थोड़ा सा गुड़ लें। फिर किसी विष्णुण्लक्ष्मी जी के मिन्दर में जा कर मूर्त्ति के सामने रूमाल रख कर शेष वस्तुओं को हाथ में लेकर 21 बार गायत्री मंत्र का पाठ करते हुए बारी-बारी इन वस्तुओं को उसमें डालते रहें। फिर इनको इकट्ठा कर के कहें की `मेरी परेशानियां दूर हो जाएं तथा मेरा कर्जा उतर जाए´। यह क्रिया आगामी 7 सोमवार और करें। कर्जा जल्दी उतर जाएगा तथा परेशानियां भी दूर हो जाएंगी।
घर में बार-बार धन हानि हो रही हो तों वीरवार को घर के मुख्य द्वार पर गुलाल छिड़क कर गुलाल पर शुद्ध घी का दोमुखी (दो मुख वाला) दीपक जलाना चाहिए। दीपक जलाते समय मन ही मन यह कामना करनी चाहिए की `भविष्य में घर में धन हानि का सामना न करना पड़े´। जब दीपक शांत हो जाए तो उसे बहते हुए पानी में बहा देना चाहिए।
नए कारोबार की शुरुआत के लिए नया कारोबार, नई दुकान या कोई भी नया कार्य करने से पूर्व मिट्टी के पांच पात्र लें जिसमें सवाकिलो सामान आ जाएं। प्रत्येक पात्र में सवा किलो सफेद तिल, सवा किलो पीली सरसों, सवा किलो उड़द, सवा किलो जौ, सवा किलो साबुत मूंग भर दें। मिट्टी के ढक्कन से ढंक कर सभी पात्र को लाल कपड़े से मुंह बांध दें और अपने व्यावसायकि स्थल पर इन पांचों कलश को रख दें। वर्ष भर यह कलश अपनी दुकान में रखें। ग्राहकों का आगमन बड़ी सरलता से बढ़ेगा और कारोबारी समस्या का निवारण भी होगा। एक वर्ष के बाद इन संपूर्ण पात्रों को अपने ऊपर से 11 बार उसार कर बहते पानी में प्रवाह कर दें। और नये पात्र भरकर रख दें।
कुछ लक्षणों को देखते ही व्यक्ति के मन में आषंका उत्पन्न हो जाती है कि उसका कार्य पूर्ण नहीं होगा। कार्य की अपूर्णता को दर्षाने वाले ऐसे ही कुछ लक्षणों को हम अपषकुन मान लेते हैं। अपशकुनों के बारे में हमारे यहां काफी कुछ लिखा गया है, और उधर पष्चिम में सिग्मंड फ्रॉयड समेत अनेक लेखकों-मनोवैज्ञानिकों ने भी काफी लिखा है। यहां पाठकों के लाभार्थ घरेलू उपयोग की कुछ वस्तुओं, विभिन्न जीव-जंतुओं, पक्षियों आदि से जुड़े कुछ अपषकुनों का विवरण प्रस्तुत है। झाड़ू का अपषकुन • नए घर में पुराना झाड़ू ले जाना अषुभ होता है। • उलटा झाडू रखना अपषकुन माना जाता है। • अंधेरा होने के बाद घर में झाड़ू लगाना अषुभ होता है। इससे घर में दरिद्रता आती है। • झाड़ू पर पैर रखना अपषकुन माना जाता है। इसका अर्थ घर की लक्ष्मी को ठोकर मारना है। • यदि कोई छोटा बच्चा अचानक झाड़+ू लगाने लगे तो अनचाहे मेहमान घर में आते हैं। • किसी के बाहर जाते ही तुरंत झाड़ू लगाना अषुभ होता है। दूध का अपषकुन • दूध का बिखर जाना अषुभ होता है। • बच्चों का दूध पीते ही घर से बाहर जाना अपषकुन माना जाता है। • स्वप्न में दूध दिखाई देना अशुभ माना जाता है। इस स्वप्न से स्त्री संतानवती होती है। पशुओं का अपषकुन • किसी कार्य या यात्रा पर जाते समय कुत्ता बैठा हुआ हो और वह आप को देख कर चौंके, तो विन हो। • किसी कार्य पर जाते समय घर से बाहर कुत्ता शरीर खुजलाता हुआ दिखाई दे तो कार्य में असफलता मिलेगी या बाधा उपस्थित होगी। • यदि आपका पालतू कुत्ता आप के वाहन के भीतर बार-बार भौंके तो कोई अनहोनी घटना अथवा वाहन दुर्घटना हो सकती है। • यदि कीचड़ से सना और कानों को फड़फड़ाता हुआ दिखाई दे तो यह संकट उत्पन्न होने का संकेत है। • आपस में लड़ते हुए कुत्ते दिख जाएं तो व्यक्ति का किसी से झगड़ा हो सकता है। • शाम के समय एक से अधिक कुत्ते पूर्व की ओर अभिमुख होकर क्रंदन करें तो उस नगर या गांव में भयंकर संकट उपस्थित होता है। • कुत्ता मकान की दीवार खोदे तो चोर भय होता है। • यदि कुत्ता घर के व्यक्ति से लिपटे अथवा अकारण भौंके तो बंधन का भय उत्पन्न करता है। • चारपाई के ऊपर चढ़ कर अकारण भौंके तो चारपाई के स्वामी को बाधाओं तथा संकटों का सामना करना पड़ता है। • कुत्ते का जलती हुई लकड़ी लेकर सामने आना मृत्यु भय अथवा भयानक कष्ट का सूचक है। • पषुओं के बांधने के स्थान को खोदे तो पषु चोरी होने का योग बने।
अपषकुनों से मुक्ति तथा बचाव के उपाय विभिन्न अपशकुनों से ग्रस्त लोगों को निम्नलिखित उपाय करने चाहिए। यदि काले पक्षी, कौवा, चमगादड़ आदि के अपषकुन से प्रभावित हों तो अपने इष्टदेव का ध्यान करें या अपनी राषि के अधिपति देवता के मंत्र का जप करें तथा धर्मस्थल पर तिल के तेल का दान करें। अपषकुनों के दुष्प्रभाव से बचने के लिए धर्म स्थान पर प्रसाद चढ़ाकर बांट दें। छींक के दुष्प्रभाव से बचने के लिए निम्नोक्त मंत्र का जप करें तथा चुटकी बजाएं। क्क राम राम रामेति रमे रामे मनोरमे। सहस्रनाम जपेत् तुल्यम् राम नाम वरानने॥ अषुभ स्वप्न के दुष्प्रभाव को समाप्त करने के लिए महामद्यमृत्युंजय के निम्नलिखित मंत्र का जप करें। क्क ह्रौं जूं सः क्क भूर्भुवः स्वः क्क त्रयम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुच्च्िटवर्(नम् उर्वारूकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीयमाऽमृतात क्क स्वः भुवः भूः क्क सः जूं ह्रौं॥क्क॥ श्री विष्णु सहस्रनाम पाठ भी सभी अपषकुनों के प्रभाव को समाप्त करता है। सर्प के कारण अषुभ स्थिति पैदा हो तो जय राजा जन्मेजय का जप २१ बार करें। रात को निम्नोक्त मंत्र का ११ बार जप कर सोएं, सभी अनिष्टों से भुक्ति मिलेगी। बंदे नव घनष्याम पीत कौषेय वाससम्। सानन्दं सुंदरं शुद्धं श्री कृष्ण प्रकृते परम्॥
भारतीय समाज में नजर लगना और लगाना एक बहु प्रचलित शब्द है। लगभग प्रत्येक परिवार में नजर दोष निवारण के उपाय किए जाते हैं। घरेलू महिलाओं का मानना है कि बच्चों को नजर अधिक लगती है। बच्चा यदि दूध पीना बंद कर दे तो भी यही कहा जाता है कि भला चंगा था, अचानक नजर लग गई। लेकिन क्या नजर सिर्फ बच्चों को ही लगती है? नहीं। यदि ऐसा ही हो तो फिर लोग ऐसा क्यों कहते हैं कि मेरे काम धंधे को नजर लग गई। नया कपड़ा, जेवर आदि कट-फट जाएं, तो भी यही कहा जाता है कि किसी की नजर ल्रग गई। लोग अक्सर पूछते हैं कि नजर लगती कैसे है? इसके लक्षण क्या हैं? नजर लगने पर उससे मुक्ति के क्या उपाय किए जाएं? लोगों की इसी जिज्ञासा को ध्यान में रखकर यहां नजर के लक्षण, कारण और निवारण के उपाय का विवरण प्रस्तुत है। नजर के लक्षण नजर से प्रभावित लोगों का कुछ भी करने को मन नहीं करता। वे बेचैन और बुझे-बुझे-से रहते है। बीमार नहीं होने के बावजूद शिथिल रहते हैं। उनकी मानसिक स्थिति अजीब-सी रहती है, उनके मन में अजीब-अजीब से विचार आते रहते हैं। वे खाने के प्रति अनिच्छा जाहिर करते हैं। बच्चे प्रतिक्रिया व्यक्त न कर पाने के कारण रोने रोने लगते हैं। कामकाजी लोग काम करना भूल जाते हैं और अनर्गल बातें सोचने लगते हैं। इस स्थिति से बचाव के लिए वे चिकित्सा भीं करवाना नहीं चाहते। विद्यार्थियों का मन पढ़ाई से उचट जाता है। नौकरीपेशा लोग सुनते कुछ हैं, करते कुछ और हैं। इस प्रकार नजर दोष के अनेकानेक लक्षण हो सकते हैं। नजर किसे लगती है? नजर सभी प्राणियों, मानव निर्मित सभी चीजों आदि को लग सकती है। नजर देवी देवताओं को भी लगती है। शास्त्रों में उल्लेख है कि भगवान शिव और पार्वती के विवाह के समय सुनयना ने शिव की नजर उतारी थी। कब लगती है नजर? कोई व्यक्ति जब अपने सामने के किसी व्यक्ति अथवा उसकी किसी वस्तु को ईर्ष्यावश देखे और फिर देखता ही रह जाए, तो उसकी नजर उस व्यक्ति अथवा उसकी वस्तु को तुरत लग जाती है। ऐसी नजर उतारने हेतु विशेष प्रयत्न करना पड़ता है अन्यथा नुकसान की संभावना प्रबल हो जाती है। नजर किस की लग सकती है? किसी व्यक्ति विशेष को अपनी ही नजर लग सकती है। ऐसा तब होता है जब वह स्वयं ही अपने बारे में अच्छे या बुरे विचारव्यक्त करता है अथवा बार-बार दर्पण देखता है। उससे ईर्ष्या करने वालों, उससे प्रेम करने वालों और उसके साथ काम करने वालों की नजर भी उसे लग सकती है। यहां तक की किसी अनजान व्यक्ति, किसी जानवर या किसी पक्षी की नजर भी उसे लग सकती है। नजर की पहचान क्या है? नजर से प्रभावित व्यक्ति की निचली पलक, जिस पर हल्के रोएंदार बाल होते हैं, फूल सी जाती है। वास्तव में यही नजर की सही पहचान है। किंतु, इसकी सही पहचान कोई पारखी ही कर सकता है। नजर दोष का वैज्ञानिक आधार क्या है? कभी-कभी हमारे रोमकूप बंद हो जाते हैं। ऐसे में हमारा शरीर किसी भी बाहरी क्रिया को ग्रहण करने में स्वयं को असमर्थ पाता है। उसे हवा, सर्दी और गर्मी की अनुभूति नहीं हो पाती। रोमकूपों के बंद होने के फलस्वरूप व्यक्ति के शरीर का भतरी तापमान भीतर में ही समाहित रहता है और बाहरी वातावरण का उस पर प्रभाव नहीं पड़ता, जिससे उसके शरीर में पांच तत्वों का संतुलन बिगड़ने लगता है और शरीर में आइरन की मात्रा बढ़ जाती है। यही आइरन रोमकूपों से न निकलने के कारण आंखों से निकलने की चेष्टा करता है, जिसके फलस्वरूप आंखें की निचली पलक फूल या सूज जाती है। बंद रोमकूपों को खोलने के लिए अनेकानेक विधियों से उतारा किया जाता है। संसार की प्रत्येक वस्तु में आकर्षण शक्ति होती है अर्थात प्रत्येक वस्तु वातावरण से स्वयं कुछ न कुछ ग्रहण करती है। आमतौर पर नजर उतारने के लिए उन्हीं वस्तुओं का उपयोग किया जाता है, जिनकी ग्रहण करने की क्षमता तीव्र होती है। उदाहरण के लिए, किसी पात्र में सरसों का तेल भरकर उसे खुला छोड़ दें, तो पाएंगें कि वातावरण के साफ व स्वच्छ होने के बावजूद उस तेल पर अनेकानेक छोटे-छोटे कण चिपक जाते हैं। ये कण तेल की आकर्षण शक्ति से प्रभावित होकर चिपकते हैं। तेल की तरह ही नीबू, लाल मिर्च, कपूर, फिटकरी, मोर के पंख, बूंदी के लड्डू तथा ऐसी अन्य अनेकानेक वस्तुओं की अपनी-अपनी आकर्षण शक्ति होती है, जिनका प्रयोग नजर उतारने में किया जाता है। इस तरह उक्त तथ्य से स्पष्ट हो जाता है कि नजर का अपना वैज्ञानिक आधार है। ऊपरी हवाओं से बचाव के कुछ अनुभूत प्रयोग लहसुन के तेल में हींग मिलाकर दो बूंद नाक में डालने, नीम के पत्ते, हींग, सरसों, बच व सांप की केंचुली की धूनी देने तथा रविवार को काले धतूरे की जड़ हाथ में बांधने से ऊपरी बाधा दूर होती है। इसके अतिरिक्त गंगाजल में तुलसी के पत्ते व काली मिर्च पीसकर घर में छिड़कने, गायत्री मंत्र के (सुबह की अपेक्षा संध्या समय किया गया गायत्री मंत्र का जप अधिक लाभकारी होता है) जप, हनुमान जी की नियमित रूप से उपासना, राम रक्षा कवच या रामवचन कवच के पाठ से नजर दोष से शीघ्र मुक्ति मिलती है। साथ ही, पेरीडॉट, संग सुलेमानी, क्राइसो लाइट, कार्नेलियन जेट, साइट्रीन, क्राइसो प्रेज जैसे रत्न धारण करने से भी लाभ मिलता है। उतारा : उतारा शब्द का तात्पर्य व्यक्ति विशेष पर हावी बुरी हवा अथवा बुरी आत्मा, नजर आदि के प्रभाव को उतारने से है। उतारे आमतौर पर मिठाइयों द्वारा किए जाते हैं, क्योंकि मिठाइयों की ओर ये श्ीाघ्र आकर्षित होते हैं। उतारा करने की विधि : उतारे की वस्तु सीधे हाथ में लेकर नजर दोष से पीड़ित व्यक्ति के सिर से पैर की ओर सात अथवा ग्यारह बार घुमाई जाती है। इससे वह बुरी आत्मा उस वस्तु में आ जाती है। उतारा की क्रिया करने के बाद वह वस्तु किसी चौराहे, निर्जन स्थान या पीपल के नीचे रख दी जाती है और व्यक्ति ठीक हो जाता है। किस दिन किस मिठाई से उतारा करना चाहिए, इसका विवरण यहां प्रस्तुत है। रविवार को तबक अथवा सूखे फलयुक्त बर्फी से उतारा करना चाहिए। सोमवार को बर्फी से उतारा करके बर्फी गाय को खिला दें। मंगलवार को मोती चूर के लड्डू से उतार कर लड्डू कुत्ते को खिला दें। बुधवार को इमरती से उतारा करें व उसे कुत्ते को खिला दें। गुरुवार को सायं काल एक दोने में अथवा कागज पर पांच मिठाइयां रखकर उतारा करें। उतारे के बाद उसमें छोटी इलायची रखें व धूपबत्ती जलाकर किसी पीपल के वृक्ष के नीचे पश्चिम दिशा में रखकर घर वापस जाएं। ध्यान रहे, वापस जाते समय पीछे मुड़कर न देखें और घर आकर हाथ और पैर धोकर व कुल्ला करके ही अन्य कार्य करें।शुक्रवार को मोती चूर के लड्डू से उतारा कर लड्डू कुत्ते को खिला दें या किसी चौराहे पर रख दें। शनिवार को उतारा करना हो तो इमरती या बूंदी का लड्डू प्रयोग में लाएं व उतारे के बाद उसे कुत्ते को खिला दें। इसके अतिरिक्त रविवार को सहदेई की जड़, तुलसी के आठ पत्ते और आठ काली मिर्च किसी कपड़े में बांधकर काले धागे से गले में बांधने से ऊपरी हवाएं सताना बंद कर देती हैं। नजर उतारने अथवा उतारा आदि करने के लिए कपूर, बूंदी का लड्डू, इमरती, बर्फी, कड़वे तेल की रूई की बाती, जायफल, उबले चावल, बूरा, राई, नमक, काली सरसों, पीली सरसों मेहंदी, काले तिल, सिंदूर, रोली, हनुमान जी को चढ़ाए जाने वाले सिंदूर, नींबू, उबले अंडे, गुग्गुल, शराब, दही, फल, फूल, मिठाइयों, लाल मिर्च, झाडू, मोर छाल, लौंग, नीम के पत्तों की धूनी आदि का प्रयोग किया जाता है। स्थायी व दीर्घकालीन लाभ के लिए संध्या के समय गायत्री मंत्र का जप और जप के दशांश का हवन करना चाहिए। हनुमान जी की नियमित रूप से उपासना, भगवान शिव की उपासना व उनके मूल मंत्र का जप, महामृत्युंजय मंत्र का जप, मां दुर्गा और मां काली की उपासना करें। स्नान के पश्चात् तांबे के लोटे से सूर्य को जल का अर्य दें। पूर्णमासी को सत्यनारायण की कथा स्वयं करें अथवा किसी कर्मकांडी ब्राह्मण से सुनें। संध्या के समय घर में दीपक जलाएं, प्रतिदिन गंगाजल छिड़कें और नियमित रूप से गुग्गुल की धूनी दें। प्रतिदिन शुद्ध आसन पर बैठकर सुंदर कांड का पाठ करें। किसी के द्वारा दिया गया सेव व केला न खाएं। रात्रि बारह से चार बजे के बीच कभी स्नान न करें। बीमारी से मुक्ति के लिए नीबू से उतारा करके उसमें एक सुई आर-पार चुभो कर पूजा स्थल पर रख दें और सूखने पर फेंक दें। यदि रोग फिर भी दूर न हो, तो रोगी की चारपाई से एक बाण निकालकर रोगी के सिर से पैर तक छुआते हुए उसे सरसों के तेल में अच्छी तरह भिगोकर बराबर कर लें व लटकाकर जला दें और फिर राख पानी में बहा दें। उतारा आदि करने के पश्चात भलीभांति कुल्ला अवश्य करें। इस तरह, किसी व्यक्ति पर पड़ने वाली किसी अन्य व्यक्ति की नजर उसके जीवन को तबाह कर सकती है। नजर दोष का उक्त लक्षण दिखते ही ऊपर वर्णित सरल व सहज उपायों का प्रयोग कर उसे दोषमुक्त किया जा सकता है।
हम जहां रहते हैं वहां कई ऐसी शक्तियां होती हैं, जो हमें दिखाई नहीं देतीं किंतु बहुधा हम पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं जिससे हमारा जीवन अस्त-व्यस्त हो उठता है और हम दिशाहीन हो जाते हैं। इन अदृश्य शक्तियों को ही आम जन ऊपरी बाधाओं की संज्ञा देते हैं। भारतीय ज्योतिष में ऐसे कतिपय योगों का उल्लेख है जिनके घटित होने की स्थिति में ये शक्तियां शक्रिय हो उठती हैं और उन योगों के जातकों के जीवन पर अपना प्रतिकूल प्रभाव डाल देती हैं। यहां ऊपरी बाधाओं के कुछ ऐसे ही प्रमुख योगों तथा उनसे बचाव के उपायों का उल्लेख प्रस्तुत है। • लग्न में राहु तथा चंद्र और त्रिकोण में मंगल व शनि हों, तो जातक को प्रेत प्रदत्त पीड़ा होती है। • चंद्र पाप ग्रह से दृष्ट हो, शनि सप्तम में हो तथा कोई शुभ ग्रह चर राशि में हो, तो भूत से पीड़ा होती है। • शनि तथा राहु लग्न में हो, तो जातक को भूत सताता है। • लग्नेश या चंद्र से युक्त राहु लग्न में हो, तो प्रेत योग होता है। • यदि दशम भाव का स्वामी आठवें या एकादश भाव में हो और संबंधित भाव के स्वामी से दृष्ट हो, तो उस स्थिति में भी प्रेत योग होता है। • उक्त योगों के जातकों के आचरण और व्यवहार में बदलाव आने लगता है। ऐसे में उन योगों के दुष्प्रभावों से मुक्ति हेतु निम्नलिखित उपाय करने चाहिए। • संकट निवारण हेतु पान, पुष्प, फल, हल्दी, पायस एवं इलाइची के हवन से दुर्गासप्तशती के बारहवें अध्याय के तेरहवें श्लोक सर्वाबाधा........न संशयः मंत्र से संपुटित नवचंडी प्रयोग कराएं। • दुर्गा सप्तशती के चौथे अध्याय के चौबीसवें श्लोक का पाठ करते हुए पलाश की समिधा से घृत और सीलाभिष की आहुति दें, कष्टों से रक्षा होगी। • शक्ति तथा सफलता की प्राप्ति हेतुग्यारहवें अध्याय के ग्यारहवें श्लोक सृष्टि स्थिति विनाशानां......का उच्चारण करते हुए घी की आहुतियां दें। • शत्रु शमन हेतु सरसों, काली मिर्च, दालचीनी तथा जायफल की हवि देकर अध्याय के उनचालीसवें श्लोक का संपुटित प्रयोग तथा हवन कराएं। कुछ अन्य उपाय • महामृत्युंजय मंत्र का विधिवत् अनुष्ठान कराएं। जप के पश्चात् हवन अवश्य कराएं। • महाकाली या भद्रकाली माता के मंत्रानुष्ठान कराएं और कार्यस्थल या घर पर हवन कराएं। • गुग्गुल का धूप देते हुए हनुमान चालीस तथा बजरंग बाण का पाठ करें। • उग्र देवी या देवता के मंदिर में नियमित श्रमदान करें, सेवाएं दें तथा साफ सफाई करें। • यदि घर के छोटे बच्चे पीड़ित हों, तो मोर पंख को पूरा जलाकर उसकी राख बना लें और उस राख से बच्चे को नियमित रूप से तिलक लगाएं तथा थोड़ी-सी राख चटा दें।
घर की महिलाएं यदि किसी समस्या या बाधा से पीड़ित हों, तो निम्नलिखित प्रयोग करें। सवा पाव मेहंदी के तीन पैकेट (लगभग सौ ग्राम प्रति पैकेट) बनाएं और तीनों पैकेट लेकर काली मंदिर या शस्त्र धारण किए हुए किसी देवी की मूर्ति वाले मंदिर में जाएं। वहां दक्षिणा, पत्र, पुष्प, फल, मिठाई, सिंदूर तथा वस्त्र के साथ मेहंदी के उक्त तीनों पैकेट चढ़ा दें। फिर भगवती से कष्ट निवारण की प्रार्थना करें और एक फल तथा मेहंदी के दो पैकेट वापस लेकर कुछ धन के साथ किसी भिखारिन या अपने घर के आसपास सफाई करने वाली को दें। फिर उससे मेहंदी का एक पैकेट वापस ले लें और उसे घोलकर पीड़ित महिला के हाथों एवं पैरों में लगा दें। पीड़िता की पीड़ा मेहंदी के रंग उतरने के साथ-साथ धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी। व्यापार स्थल पर किसी भी प्रकार की समस्या हो, तो वहां श्वेतार्क गणपति तथा एकाक्षी श्रीफल की स्थापना करें। फिर नियमित रूप से धूप, दीप आदि से पूजा करें तथा सप्ताह में एक बार मिठाई का भोग लगाकर प्रसाद यथासंभव अधिक से अधिक लोगों को बांटें। भोग नित्य प्रति भी लगा सकते हैं। कामण प्रयोगों से होने वाले दुष्प्रभावों से बचने के लिए दक्षिणावर्ती शंखों के जोड़े की स्थापना करें तथा इनमें जल भर कर सर्वत्र छिड़कते रहें।
क्या हैं बंधन और उनके उपाय? बंधन अर्थात् बांधना। जिस प्रकार रस्सी से बांध देने से व्यक्ति असहाय हो कर कुछ कर नहीं पाता, उसी प्रकार किसी व्यक्ति, घर, परिवार, व्यापार आदि को तंत्र-मंत्र आदि द्वारा अदृश्य रूप से बांध दिया जाए तो उसकी प्रगति रुक जाती है और घर परिवार की सुख शांति बाधित हो जाती है। ये बंधन क्या हैं और इनसे मुक्ति कैसे पाई जा सकती है जानने केलिए पढ़िए यह आलेख... मानव अति संवेदनशील प्राणी है। प्रकृति और भगवान हर कदम पर हमारी मदद करते हैं। आवश्यकता हमें सजग रहने की है। हम अपनी दिनचर्या में अपने आस-पास होने वाली घटनाओं पर नजर रखें और मनन करें। यहां बंधन के कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं। किसी के घर में ८-१० माह का छोटा बच्चा है। वह अपनी सहज बाल हरकतों से सारे परिवार का मन मोह रहा है। वह खुश है, किलकारियां मार रहा है। अचानक वह सुस्त या निढाल हो जाता है। उसकी हंसी बंद हो जाती है। वह बिना कारण के रोना शुरू कर देता है, दूध पीना छोड़ देता है। बस रोता और चिड़चिड़ाता ही रहता है। हमारे मन में अनायास ही प्रश्न आएगा कि ऐसा क्यों हुआ? किसी व्यवसायी की फैक्ट्री या व्यापार बहुत अच्छा चल रहा है। लोग उसके व्यापार की तरक्की का उदाहरण देते हैं। अचानक उसके व्यापार में नित नई परेशानियां आने लगती हैं। मशीन और मजदूर की समस्या उत्पन्न हो जाती है। जो फैक्ट्री कल तक फायदे में थी, अचानक घाटे की स्थिति में आ जाती है। व्यवसायी की फैक्ट्री उसे कमा कर देने के स्थान पर उसे खाने लग गई। हम सोचेंगे ही कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? किसी परिवार का सबसे जिम्मेदार और समझदार व्यक्ति, जो उस परिवार का तारणहार है, समस्त परिवार की धुरी उस व्यक्ति के आस-पास ही घूम रही है, अचानक बिना किसी कारण के उखड़ जाता है। बिना कारण के घर में अनावश्यक कलह करना शुरू कर देता है। कल तक की उसकी सारी समझदारी और जिम्मेदारी पता नहीं कहां चली जाती है। वह परिवार की चिंता बन जाता है। आखिर ऐसा क्यों हो गया?
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