Tuesday, 16 April 2019

* दसों दिशाओं से रक्षा करते हैं श्री भैरव जानिए श्री भैरव की अद्भुत महिमा श्री भैरव के अनेक रूप हैं जिसमें प्रमुख रूप से बटुक भैरव, महाकाल भैरव तथा स्वर्णाकर्षण भैरव प्रमुख हैं। जिस भैरव की पूजा करें उसी रूप के नाम का उच्चारण होना चाहिए। सभी भैरवों में बटुक भैरव उपासना का अधिक प्रचलन है। तांत्रिक ग्रंथों में अष्ट भैरव के नामों की प्रसिद्धि है। वे इस प्रकार हैं- 1. असितांग भैरव, 2. चंड भैरव, 3. रूरू भैरव, 4. क्रोध भैरव, 5. उन्मत्त भैरव, 6. कपाल भैरव, 7. भीषण भैरव 8. संहार भैरव। क्षेत्रपाल व दण्डपाणि के नाम से भी इन्हें जाना जाता है। श्री भैरव से काल भी भयभीत रहता है अत: उनका एक रूप 'काल भैरव' के नाम से विख्यात हैं। दुष्टों का दमन करने के कारण इन्हें "आमर्दक" कहा गया है। शिवजी ने भैरव को काशी के कोतवाल पद पर प्रतिष्ठित किया है। जिन व्यक्तियों की जन्म कुंडली में शनि, मंगल, राहु आदि पाप ग्रह अशुभ फलदायक हों, नीचगत अथवा शत्रु क्षेत्रीय हों। शनि की साढ़े-साती या ढैय्या से पीडित हों, तो वे व्यक्ति भैरव जयंती अथवा किसी माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी, रविवार, मंगलवार या बुधवार प्रारम्भ कर बटुक भैरव मूल मंत्र की एक माला (108 बार) का जाप प्रतिदिन रूद्राक्ष की माला से 40 दिन तक करें, अवश्य ही शुभ फलों की प्राप्ति होगी। भगवान भैरव की महिमा अनेक शास्त्रों में मिलती है। भैरव जहाँ शिव के गण के रूप में जाने जाते हैं, वहीं वे दुर्गा के अनुचारी माने गए हैं। भैरव की सवारी कुत्ता है। चमेली फूल प्रिय होने के कारण उपासना में इसका विशेष महत्व है। साथ ही भैरव रात्रि के देवता माने जाते हैं और इनकी आराधना का खास समय भी मध्य रात्रि में 12 से 3 बजे का माना जाता है। भैरव के नाम जप मात्र से मनुष्य को कई रोगों से मुक्ति मिलती है। वे संतान को लंबी उम्र प्रदान करते है। अगर आप भूत-प्रेत बाधा, तांत्रिक क्रियाओं से परेशान है, तो आप शनिवार या मंगलवार कभी भी अपने घर में भैरव पाठ का वाचन कराने से समस्त कष्टों और परेशानियों से मुक्त हो सकते हैं। जन्मकुंडली में अगर आप मंगल ग्रह के दोषों से परेशान हैं तो भैरव की पूजा करके पत्रिका के दोषों का निवारण आसानी से कर सकते है। राहु केतु के उपायों के लिए भी इनका पूजन करना अच्छा माना जाता है। भैरव की पूजा में काली उड़द और उड़द से बने मिष्ठान्न इमरती, दही बड़े, दूध और मेवा का भोग लगानालाभकारी है इससे भैरव प्रसन्न होते है। भैरव की पूजा-अर्चना करने से परिवार में सुख-शांति, समृद्धि के साथ-साथ स्वास्थ्य की रक्षा भी होती है। तंत्र के ये जाने-माने महान देवता काशी के कोतवाल माने जाते हैं। भैरव तंत्रोक्त, बटुक भैरव कवच, काल भैरव स्तोत्र, बटुक भैरव ब्रह्म कवच आदि का नियमित पाठ करने से अपनी अनेक समस्याओं का निदान कर सकते हैं। भैरव कवच से असामायिक मृत्यु से बचा जा सकता है। खास तौर पर कालभैरव अष्टमी पर भैरव के दर्शन करने से आपको अशुभ कर्मों से मुक्ति मिल सकती है। भारत भर में कई परिवारों में कुलदेवता के रूप में भैरव की पूजा करने का विधान हैं। वैसे तो आम आदमी, शनि, कालिका माँ और काल भैरव का नाम सुनते ही घबराने लगते हैं, लेकिन सच्चे दिल से की गई इनकी आराधना आपके जीवन के रूप-रंग को बदल सकती है। ये सभी देवता आपको घबराने के लिए नहीं बल्कि आपको सुखी जीवन देने के लिए तत्पर रहते है बशर्ते आप सही रास्ते पर चलते रहे। भैरव अपने भक्तों की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण करके उनके कर्म सिद्धि को अपने आशीर्वाद से नवाजते है। भैरव उपासना जल्दी फल देने के साथ-साथ क्रूर ग्रहों के प्रभाव को समाप्त खत्म कर देती है। शनि या राहु से पीडि़त व्यक्ति अगर शनिवार और रविवार को काल भैरव के मंदिर में जाकर उनका दर्शन करें। तो उसके सारे कार्य सकुशल संपन्न हो जाते है। एक बार भगवान शिव के क्रोधित होने पर काल भैरव की उत्पत्ति हुई। काल भैरव ने ब्रह्माजी के उस मस्तक को अपने नाखून से काट दिया जिससे उन्होंने असमर्थता जताई। तब ब्रह्म हत्या को लेकर हुई आकाशवाणी के तहत ही भगवान काल भैरव काशी में स्थापित हो गए थे। मध्यप्रदेश के उज्जैन में भी कालभैरव के ऐतिहासिक मंदिर है, जो बहुत महत्व का है। पुरानी धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान कालभैरव को यह वरदान है कि भगवान शिव की पूजा से पहले उनकी पूजा होगी। इसलिए उज्जैन दर्शन के समय कालभैरव के मंदिर जाना अनिवार्य है। तभी महाकाल की पूजा का लाभ आपको मिल पाता है।

श्री हनुमान के इन बारह नामों का ध्यान श्री हनुमान को देवताओं से मिले चिरंजीव होने के वरदान से इन बारह नामों का ध्यान मृत्यु भय और संकटनाशक माने गए हैं। इन बारह नामों का ध्यान करना मनोबल और इच्छाशक्ति को बढ़ाने वाला होता है - - हनुमान – जो अहं यानि मान से रहित हो। - अंजनीसुत – माता अंजनी के पुत्र। - वायुपुत्र – मारूति या पवन पुत्र। - महाबली – अतुलनीय बल के स्वामी। - रामेष्ट – जिनके इष्ट भगवान श्री राम हैं। - फाल्गुन सखा – अर्जुन के मित्र। - पिगांक्ष – जिनके लाल नेत्र हैं, जो वीरता को प्रगट करते हैं। - अमित विक्रम – शौर्य और अथाह बल वाले देवता। - उदधिक्रमण – सागर को उछल कर पार करने वाले। - सीता शोक विनाशक – माता सीता का शोक हरने वाले। - लक्ष्मण प्राणदाता – लक्ष्मण के प्राण बचाने वाले। - दशग्रीव दर्पहा – परम शक्तिशाली दशानन यानि रावण का दर्प यानि दंभ चूर करने वाले। मान्यता है कि इन नामों के स्मरण से विपरीत हालात में भी कोई व्यक्ति हनुमान की भांति ही जुझारू बन मुश्किल घड़ी को काट देता है।

काली के विभिन्न भेद काली के अलद-अलग तंत्रों में अनेक भेद हैं । कुछ पूर्व में बतलाये गये हैं । अन्यच्च आठ भेद इस प्रकार हैं - १॰ संहार-काली, २॰ दक्षिण-काली, ३॰ भद्र-काली, ४॰ गुह्य-काली, ५॰ महा-काली, ६॰ वीर-काली, ७॰ उग्र-काली तथा ८॰ चण्ड-काली । ‘कालिका-पुराण’ में उल्लेख हैं कि आदि-सृष्टि में भगवती ने महिषासुर को “उग्र-चण्डी” रुप से मारा एवं द्वितीयसृष्टि में ‘उग्र-चण्डी’ ही “महा-काली” अथवा महामाया कहलाई । योगनिद्रा महामाया जगद्धात्री जगन्मयी । भुजैः षोडशभिर्युक्ताः इसी का नाम “भद्रकाली” भी है । भगवती कात्यायनी ‘दशभुजा’ वाली दुर्गा है, उसी को “उग्र-काली” कहा है । कालिकापुराणे – कात्यायनीमुग्रकाली दुर्गामिति तु तांविदुः । “संहार-काली” की चार भुजाएँ हैं यही ‘धूम्र-लोचन’ का वध करने वाली हैं । “वीर-काली” अष्ट-भुजा हैं, इन्होंने ही चण्ड का विनाश किया “भुजैरष्टाभिरतुलैर्व्याप्याशेषं वमौ नमः” इसी ‘वीर-काली’ विषय में दुर्गा-सप्तशती में कहा हैं । “चण्ड-काली” की बत्तीस भुजाएँ हैं एवं शुम्भ का वध किया था । यथा – चण्डकाली तु या प्रोक्ता द्वात्रिंशद् भुज शोभिता । समयाचार रहस्य में उपरोक्त स्वरुपों से सम्बन्धित अन्य स्वरुप भेदों का वर्णन किया है । संहार-काली – १॰ प्रत्यंगिरा, २॰ भवानी, ३॰ वाग्वादिनी, ४॰ शिवा, ५॰ भेदों से युक्त भैरवी, ६॰ योगिनी, ७॰ शाकिनी, ८॰ चण्डिका, ९॰ रक्तचामुण्डा से सभी संहार-कालिका के भेद स्वरुप हैं । संहार कालिका का महामंत्र १२५ वर्ण का ‘मुण्ड-माला तंत्र’ में लिखा हैं, जो प्रबल-शत्रु-नाशक हैं । दक्षिण-कालिका -कराली, विकराली, उमा, मुञ्जुघोषा, चन्द्र-रेखा, चित्र-रेखा, त्रिजटा, द्विजा, एकजटा, नीलपताका, बत्तीस प्रकार की यक्षिणी, तारा और छिन्नमस्ता ये सभी दक्षिण कालिका के स्वरुप हैं । भद्र-काली - वारुणी, वामनी, राक्षसी, रावणी, आग्नेयी, महामारी, घुर्घुरी, सिंहवक्त्रा, भुजंगी, गारुडी, आसुरी-दुर्गा ये सभी भद्र-काली के विभिन्न रुप हैं । श्मशान-काली – भेदों से युक्त मातंगी, सिद्धकाली, धूमावती, आर्द्रपटी चामुण्डा, नीला, नीलसरस्वती, घर्मटी, भर्कटी, उन्मुखी तथा हंसी ये सभी श्मशान-कालिका के भेद रुप हैं । महा-काली - महामाया, वैष्णवी, नारसिंही, वाराही, ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, इत्यादि अष्ट-शक्तियाँ, भेदों से युक्त-धारा, गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा इत्यादि सब नदियाँ महाकाली का स्वरुप हैं । उग्र-काली - शूलिनी, जय-दुर्गा, महिषमर्दिनी दुर्गा, शैल-पुत्री इत्यादि नव-दुर्गाएँ, भ्रामरी, शाकम्भरी, बंध-मोक्षणिका ये सब उग्रकाली के विभिन्न नाम रुप हैं । वीर-काली -श्रीविद्या, भुवनेश्वरी, पद्मावती, अन्नपूर्णा, रक्त-दंतिका, बाला-त्रिपुर-सुंदरी, षोडशी की एवं काली की षोडश नित्यायें, कालरात्ति, वशीनी, बगलामुखी ये सभी वीरकाली ये सभी वीरकाली के नाम भेद रुप हैं ।.................................

श्री बटुक भैरव अपराध क्षमा पन स्तोत्र ॐ गुरोः सेवा व्याकत्वा गुरुबचन शकतोपि न भवे भवत्पुजा – ध्यानाज्ज्प हवन –यागा दिरहित : ! त्व्दर्चा- निर्माणे क्वचिदपि न यत्नं च कृतवान , जग ज्जाल-ग्रस्तों झटितिकुरु हादर मायि विभो !! 1 !! प्रभु दुर्गा सुनो ! तव शरणतां सोयधिगतवान , कृपालों ! दुखार्त: कमपि भवदन्नयं प्रकथये ! सुहृत ! सम्पतेयहं सरल –विरल साधक जन , स्तवदन्य: क्स्त्राता भव-दहन –दाहं शमयति !!2!! वदान्यों मन्यसत्वं विविध जनपालों वभसि वै , दयालुर्दी नर्तान भवजलधिपारम गमयसि ! अतस्त्वतो याचे नति- नियमतोयकिञ्च्नधन , सदा भूयात भावः पदनलिनयोस्ते तिमिरहा !!3!! अजापूर्वो विप्रो मिलपदपरो योयतिपतितो , महामूर्खों दुष्टो वृजननिरत: पामरनृप: ! असत्पाना सक्त्तो यवन युवती व्रातरमण, प्रभा वातत्वन्नान्म: परमपदवी सोप्याधिगत !!4!! द्यां दीर्घाम दीने बटुक ! कुरु विश्वम्भर मयी, न चन्यस्संत्राता परम शिव मां पलाया विभो ! महाशचर्याम प्राप्तस्त्व सरलदृष्टच्या विरहित: , कृपापूर्णेनेत्रे: कजदल निर्भेमा खचयतात !!5!! सहस्ये किं हंसो नहि तपति दीनं जनचयम, घनान्ते किं चंर्दोंयसमकर- निपातो भुवितले! कृपादृष्टे स्तेहं भयहर भिवों किं विरहितों, जले वा हमर्ये वा घनरस- निपातो न विषम!!6!! त्रिमूर्तित्वं गीतों हरिहर- विधात्मकगुणो ! निराकारा: शुद्ध: परतरपर: सोयप्यविषय: , द्या रूपं शान्तम मुनिगननुतं भक्तदायितं !!7!! तपोयोगं संख्यम यम-नियम –चेत: प्रयजनं, न कौलाचर्चा-चक्रम हरिहरविधिनां प्रियतरम! न जाने ते भक्तिम परममुनिमार्गाम मधु विधि, तथाप्येषा वाणी परिरटति नित्यं तव यश :!!8!! न मे कांक्षा धर्मे न वसुनिच्ये राज्य निवहे: , न मे स्त्रीणा भोगे सखि-सुत-कटुम्बेषु न च मे! यदा यद्द्द भाव्यं भवतु भगवन पूर्वसकृतान , ममैत्तू प्रथर्यम तव विमल- भक्ति: प्रभवतात!!9!! कियांस्तेस्मदभार: पतित पतिता स्तारयासि भो, मद्न्य: क: पापी ययन बिमुख पाठ रहित :! दृढ़ो मे विश्वासस्तव नियति रुद्धार विषय:, सदा स्याद विश्र्म्भ: कवचिदपि मृषा माँ च भवतात!!10!! भवदभावादभिन्नो व्यसन- निरत: को मदपरो , मदान्ध: पाप आत्मा बटुक !शिव ! ते नाम रहित ! उदरात्मन बन्धो नहि तवकतुल्य: कालुपहा , पुनः संचिन्त्यैवं कुरु हृदि यथेच्छसि तथा !!11!! जपान्ते स्नानांते हमुषसि च निशिथे जपति यो , महा सौख्यं देवी वितरति नु तस्मै प्रमुदित:! अहोरात्रम पाशर्वे परिवसति भकतानु गमनों , वयोन्ते संहृष्ट: परिनियति भकतानस्व भुवनम !!12!!

श्री बटुक भैरव साधना – श्री बटुक भैरव जी दुर्गा के पुत्र कहे जाते है !पहली पोस्ट में भैरव चरित्र्म में मैंने बटुक भैरव की उतपति के वारे विस्तार पूर्वक बायता था ! जहां श्री बटुक भैरव की साधना पोस्ट कर रहा हु ! बटुक भैरव जी साधक की हर साधना में रक्षा करते है और इस आज के भय म्ये वातावर्ण में भी साधक के साथ साये की तरह रहते हुये उसे पूर्ण सुरक्षा देते है !इस लिए यह आज के युग में भय मुक्त जीवन के लिए अवशक साधना है ! भैरव जी दरिद्रता विनाशक है अंत साधक की दरिद्रता को दूर करते हुये उसे पूर्ण वैवभ युक्त जीवन प्रदान करते है ! व्ही उसे अन्य रोगो से भी बचाते है ! इस लिए इस साधना से सभी साधको को लाभ उठाना चाहिए ! विधि – इस साधना को किसी भी मंगल वार जा मंगल वर पड़ने वाली अष्टमी को करना बेहतर है ! इस के लिए पहले से श्री बटुक भैरव यंत्र व मूँगे की जा हकीक की माला गुरुधाम से मँगवा ले हकीक माला काले हकीक की ले सकते है और साधक को लाल वस्त्र जा काले वस्त्र धारण कर दक्षिण दिशा की और मुख कर बैठना है सहमने श्री बटुक भैरव जी का चित्र फ्रेम करा के रख ले एक बेजोट पे लाल रंग का वस्त्र विषा कर चित्र के साहमने ही एक पलेट में स्वास्तिक बना कर श्री बटुक भैरव यंत्र की साथपन करे और गुरु चित्र भी पास में रखे पहले गुरु पूजन कर आज्ञा ले और संकल्प करे की मैं अपने मन के भय से मुक्ति पाते हुये पूर्ण सिमृद्धि पूर्ण जीवन प्राप्ति के लिए यह साधना करना चाहता हु ! हे सद्गुरुदेव मुझे साधना में पूर्णा दे ! और यंत्र का पूजन सिंदूर लाल फूल से करे पंचो उपचार पूजन कर सकते है भोग के लिए लड्डू स्मर्पित करे ! यंत्र के पास ही थोरे ऊरद की ढेरी लगा के उस ऊपर तेल का दिया लगा दे दिये का भी पूजन करे और फिर गुरु मंत्र का दो माला मंत्र जप करे और निम्न श्री बटुक भैरव जी के मूल मंत्र का 11 माला जाप करे ऐसा 21 दिन करे इस से भैरव जी प्रतक्ष दर्शन जा बिबात्मक दर्शन देंगे हर मंगल वर को भोग किसी कुते को खिला दे और नया भोग रख दे ! मंत्र – ॐ ह्रीं वां बटुकाये क्ष्रौं क्ष्रौं आपदुद्धाराणाये कुरु कुरु बटुकाये ह्रीं बटुकाये स्वाहा !! इस तरह इस मूल मंत्र के जप के बाद श्री बटुक भैरव- अपराध – क्षमापन स्तोत्र का पाठ करे ! कोई भी भैरव साधना जा दुर्गा शप्तशती के पाठ के बाद जदी क्षमापन स्तोत्र का पाठ कर लिया जाए तो सिद्धि का फल अवश्य मिलता है ! इस साधना को शाम 7 से 10 वजे के बीच कभी भी कर सकते है

मंत्रों की जानकारी एवं निर्देश---- 1. यदि शाबर मंत्रों को छोड़ दें तो मुख्यत: दो प्रकार के मंत्र है- वैदिक मंत्र और तांत्रिक मंत्र। जिस मंत्र का जप अथवा अनुष्‍ठान करना है, उसका अर्घ्य पहले से लेना चाहिए। तत्पश्चात मंत्र का जप और उसके अर्घ्य की भावना करनी चाहिए। ध्यान रहे, अर्घ्य बिना जप निरर्थक रहता है। 2. मंत्र के भेद क्रमश: तनि माने गए हैं। 1. वाचिक जप 2. मानस जप और 3. उपाशु जप। वाचिक जप- जप करने वाला ऊँचे-ऊँचे स्वर से स्पष्‍ट मंत्रों को उच्चारण करके बोलता है, तो वह वाचिक जप कहलाता है। उपांशु जप- जप करने वालों की जिस जप में केवल जीभ हिलती है या बिल्कुल धीमी गति में जप किया जाता है जिसका श्रवण दूसरा नहीं कर पाता वह उपांशु जप कहलाता है। मानस जप- यह सिद्धि का सबसे उच्च जप कहलाता है। जप करने वाला मंत्र एवं उसके शब्दों के अर्थ को एवं एक पद से दूसरे पद को मन ही मन चिंतन करता है वह मानस जप कहलाता है। इस जप में वाचक के दंत, होंठ कुछ भी नहीं हिलते है। अभिचार कर्म के लिए वाचिक रीति से मंत्र को जपना चाहिए। शां‍‍‍ति एवं पुष्‍टि कर्म के लिए उपांशु और मोक्ष पाने के लिए मानस रीति से मंत्र जपना चाहिए। 3. मंत्र सिद्धि के लिए आवश्यक है कि मंत्र को गुप्त रखना चाहिए। मंत्र- साधक के बारे में यह बात किसी को पता न चले कि वो किस मंत्र का जप करता है या कर रहा है। यदि मंत्र के समय कोई पास में है तो मानसिक जप करना चाहिए। 4. सूर्य अथवा चंद्र ग्रहण के समय (ग्रहण आरंभ से समाप्ति तक) किसी भी नदी में खड़े होकर जप करना चाहिए। इसमें किया गया जप शीघ्र लाभदायक होता है। जप का दशांश हवन करना चाहिए। और ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। वैसे तो यह सत्य है कि प्रतिदिन के जप से ही सिद्धि होती है परंतु ग्रहण काल में जप करने से कई सौ गुना अधिक फल मिलता है। विशेष : नदी में जप हमेशा नाभि तक जल में रहकर ही करना चाहिए।..

इन टोटकों से होगी मनोकामना पूरी तंत्र विज्ञान मे कुछ ऐसे टोटके हैं जिन्हे अपनाकर आप निश्चित ही अपनी सारी मनोकामनाओं को पूर्ण कर सकते हैं। यदि आप चाहते हैं आपकी हर एक मनोकामना पूरी हो तो आपकी राशि के अनुसार नीचे लिखें टोटको को पूरी श्रद्धा से अपनाएं निश्चित ही आपकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। मेष- ग्यारह हनुमान जी को सिन्दूर का चोला चढ़ाएं या वर्ष में एक बार हनुमान जी के किसी मन्दिर में रामध्वजा लगवाएं। वृषभ- ग्यारह शुक्रवार लक्ष्मीजी या देवी के मन्दिर में खुशबु वाली अगरबत्ती चढ़ाएं और खीर का प्रसाद बांटे। मिथुन- रोज कुछ भी खाने से पूर्व इलायची और तुलसीदल गणपति के स्मरण के साथ सेवन करें।कर्क- भगवान शिव को हर सोमवार को मीठा दूध चढ़ाएं। सिंह- जल में रोली और शहद मिलाकर रोज सूर्यदेव को तांबे के लोटे से अघ्र्य दें। कन्या- २१ बुधवार गणेश जी को दूर्वा, गुड़ व साबुत मूंग चढाएं। तुला- शुभ कार्य के लिए निकलने से पहले तुलसी के दर्शन करें और उसका एक पत्ता खाकर निकलें। वृश्चिक- किसी भी महत्वपूर्ण कार्य के लिए निकलने से पूर्व हनुमान जी को पान का बीड़ा चढ़ाएं। धनु- सूर्यदशा की ओर मुख करते हुए नित्य नाभि और मस्तक पर केसर का तिलक लगाएं। मकर- हर शनिवार को उठते समय सबसे पहले खेजड़ी या पीपल के पेड़ पर जल चढाएं। कुंभ- सात शनिवार दक्षिणामुखी हनुमान जी की परिक्रमा करें। अंत में गुड़ चने का प्रसाद चढ़ाकर हनुमान चालिसा का पाठ करें। मीन- सात गुरुवार छोटी कन्याओं को गुड़ और भीगे चनों का प्रसाद बांटे।

महामृत्युंजय मंत्र शिव का महामृत्यंजय रूप पीड़ा और दु:खों से मुक्त कर सुख और आनंद देने वाला माना गया है। शिव के इस कल्याणकारी रूप की भक्ति और साधना के लिए महामृत्युंजय मंत्र के जप को बहुत ही शुभ और सिद्ध माना गया है। पुराणों में इसे मृत संजीवनी मंत्र बताया गया है। इस मंत्र के असर और शक्ति का महत्व दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य ने महर्षि दधीचि को बताया था।धार्मिक मान्यताओं में महामृत्युंजय मंत्र ऐसा सिद्ध मंत्र जिसके जप या उच्चारण मात्र से ही कड़ी से बड़ी विपत्ति से छुटकारा मिल जाता है। यह मंत्र न केवल अकाल मौत और मृत्यु भय से बचाता है। बल्कि इसके जप मात्र से कुंटुब की भी रोगों और और शत्रुओं से रक्षा भी होती है। दौलत, वैभव, मान-सम्मान भी इस मंत्र के प्रभाव मिल जाता है।शिव उपासना के विशेष दिन सोमवार, प्रदोष, अष्टमी, चतुर्दशी पर शिव पूजा के साथ इस मंत्र का जप बहुत ही सिद्ध माना जाता है। महामृत्युंजय का यह सिद्ध मंत्र इस प्रकार है - ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम। उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।। इस मंत्र के जप की अलग-अलग प्रयोजन के लिए नियत संख्या बताई गई है। जिसे किसी विद्वान ब्राह्मण से विधि-विधान, हवन और ब्रह्मभोज के साथ कराया जाना शास्त्रों के मुताबिक सुनिश्चित फल देता है। ........................

कर्ण - पिशाचनी साधना प्रयोग इस मंत्र को गुप्त त्रिकालदर्शी मंत्र भी कहा जाता हैं .इस मंत्र के साधक को किसी भी व्यक्ति को देखते ही उसके जीवन की सूक्ष्म से सुक्ष्म घटना का ज्ञान हो जाता हैं . उसके विषय में विचार करते ही उसकी समस्त गतिविधियों एवं क्रिया कलापो का ज्ञान हो जाता हैं . कर्ण - पिशाचनी - साधना वैदिक विधि से भी सम्पन्न की जताई हैं , और तांत्रिक विधि से भी अनुष्ठानित की जाती हैं . यंहा वैदिक विधि द्वारा सम्पन्न की जाने वाली साधना का प्रयोग दिया जा रहा हैं . मंत्र """" ॐ लिंग सर्वनाम शक्ति भगवती कर्ण - पिशाचनी रुपी सच चण्ड सच मम वचन दे स्वाहा """""" विधि :- किसी भी नवरात्री में या शुभ नक्षत्र योग तिथि में भूति - शुद्धि , स्थान - शुद्धि , गुरु स्मरण , गणेश - पूजन , नवग्रह पूजन , से पूर्व एक चौकी पर लाल कपडा बिछाये . उस पर तांबे का एक लोटा या कलश - स्थापना करें . कलश पर पानी वाला नारियल रखे . कलश के चारो ओर पान , सुपारी , सिंदूर , व २ लड्डू रखे . कलश - पूजन करके साष्टांग प्रणाम करें . इसके बाद कंधे पर लाल कपडा रखकर उपरोक्त मंत्र का जाप करें . जाप पूर्ण होने पर पहले सामग्री से , फिर खीर से , और अंत में त्रिमधु से होम करें . इसके उपरांत क्षमा - याचना कर साक्षात देवी के रुपी कलश को भूमि पर लेटकर दंडवत प्रणाम करें . अनुष्ठान के दिनों में ब्रम्हचर्य का पालन एवं एकांत वास करें . सदाचरण करते हुए सभी नियमो का पालन करें . झूठ - फरेब - अत्याचार , बेईमानी से दूर रहें . समय :- नवरात्र यदि ग्रहण काल में आरम्भ करे तो स्पर्श काल से , १५ मिनट पूर्व , आरम्भ करके मोक्ष के १५ मिनट बाद तक करें . ग्रहण काल में नदी के किनारे अथवा शमशान में जाप करें . आवश्यक समस्त सामग्री अपने पास रखे . सामग्री :- एक यन्त्र और एक माला जो प्राण - प्रतिष्ठा युक्त , मंत्र सिद्धि चैतन्य हो , पान , सुपारी , लौंग , सिंदूर , नारियल , अगर - ज्योति , लाल वस्त्र , जल का लोटा , लाल चन्दन की माला , जाप करने के लिए और दो लड्डू . जाप - संख्या : - एक लाख हवन - सामग्री : - सफ़ेद चन्दन का चुरा , लाल चन्दन का चुरा , लोबान , गुग्गल , प्रत्येक ३०० ग्राम , कपूर लगभग १०० ग्राम , बादाम गिरी ५० ग्राम ,काजू ५० ग्राम , अखरोट गिरी ५० ग्राम , गोल ५० ग्राम , छुहारे ५० ग्राम , मिश्री का कुजा १ , . इन सभी को बारीक़ कर के मिला ले . इसमे घी भी मिलाए . फिर खीर बनाये , चावल काम दूध जड़ा रखें . खीर में ५ मेवे डाले , देशी घी , शहद , व चीनी भी डाले . विशेष :- जाप करने के उपरांत १०००० मंत्रो से हवन करें . हवन के दशांश का तर्पण , उसके दशांश का यानि एक माला से मार्जन , और उसके बाद १० कन्याओ एवं एक बटुक को भोजन करा कर अपने गुरुदेव से आशीर्वाद प्राप्त करें . नोट : - उपरोक्त साधना के लिए गुरु - दीक्षा आवश्यक हैं . अन्यथा प्रयास असफल रहता हैं

पंचांगुली साधना... पंचांगुली साधना....यह साधना किसी भी समय से प्रारम्भ की जा सकती है, परन्तु साधकको चाहिए कि वह पूर्ण विधि विधान के साथ इस साधना को सम्पन्नकरेँ, मन्त्र जप तीर्थ भूमि, गंगा-यमुना संगम, नदी-तीर, पर्वत,गुफा, या किसी मन्दिर मे की जा सकती है, साधक चाहे तो साधना केलिए घर के एकांत कमरे का उपयोग भी कर सकते हैँ ।इस साधना मेँ यन्त्र आवश्यक है, शुभ दिन शुद्ध , समय मेसाधना स्थान को स्वच्छ पानी से धो ले, कच्चा आंगन हो तो लीप लेँ ,तत्पश्चात लकडी के एक समचौरस पट्टे पर श्वेत वस्त्र धो करबिछा देँ, और उस पर चावलोँ से यन्त्र का निर्माण करेँचावलोँ को अलग-अलग 5 रंगो मे रंग देँ , यन्त्र को सुघडता से सही रुपमेँ बनावे यन्त्र की बनावट मे जरा सी भी गलती सारे परिश्रम को व्यर्थकर देती है ।तत्पश्चात यन्त्र के मध्य ताम्र कलश स्थापित करेँ और उस पर लालवस्त्र आच्छादित कर ऊपर नारियल रखेँ और फिर उस परपंचागुली देवी की मूर्ति स्थापित करे इसके बाद पूर्ण षोडसोपचार से 9दिन तक पूजन करेँ और नित्य पंचागुली मन्त्र का जप तरेँ ।सर्व प्रथम मुख शोधन कर पंचागुली मन्त्र चैतन्य करेँ ,पंचांगुली की साधना मेँ मन्त्र चैतन्य ' ई ' है अतः मन्त्र के प्रारम्भऔर अन्त मे ' ई ' सम्पुट देने से मंत्र चैतन्य हो जाता है ।मन्त्र चैतन्य के बाद योनि-मुद्रा का अनुष्ठान किया जाय यदि योनि-मुद्रा अनुष्ठान का ज्ञान न हो तो भूत लिपि - विधान करना चाहिए ।इसके बाद यन्त्र पूजा कर पंचांगुली ध्यान करेँ ।पंचांगुली ध्यान-पंचांगुली महादेवीँ श्री सोमन्धर शासने ।अधिष्ठात्री करस्यासौ शक्तिः श्री त्रिदशोशितुः ।।पंचांगुली देवी के सामने यह ध्यान करके पंचांगुली मन्त्र का जपकरना चाहिए - पंचांगुली मन्त्र - ॐ नमो पंचागुली पंचांगुली परशरी माता मयंगल वशीकरणी लोहमयदडमणिनी चौसठ काम विहंडनी रणमध्ये राउलमध्ये शत्रुमध्येदीपानमध्ये भूतमध्ये प्रेतमध्ये पिशाचमध्ये झोटिगमध्ये डाकिनिमध्येशाखिनीमध्ये यक्षिणीमध्ये दोषणिमध्ये गुणिमध्ये गारुडीमध्येविनारिमध्ये दोषमध्ये दोषशरणमध्ये दुष्टमध्ये घोर कष्ट मुझ ऊपरबुरो जो कोई करे करावे जडे जडावे चिन्ते चिन्तावे तस माथेश्री माता पंचांगुली देवी ताणो वज्र निर्घार पडे ॐ ठं ठं ठं स्वाहा ।वस्तुतः यह साधना लम्बी और श्रम साध्य है, प्रारम्भ मेगणपति पूजन, संकल्प, न्यास , यन्त्र-पूजा , प्रथम वरण पूजा ,द्वतिया, तृतिया , चतुर्थ, पंचम, षष्ठम् सप्तम, अष्टम औरनवमावरण के बाद भूतीपसंहार करके यन्त्र से प्राण-प्रतिष्ठाकरनी चाहिए ।इसके बाद पंचागुली देवी को संजीवनी बनाने के लिए ध्यान ,अन्तर्मातृका न्यास , कर न्यास, बहिर्मातृका न्यास करनी चाहिए ,यद्यपि इन सारी विधि को लिखा जाय तो लगभग 40-50 पृष्ठो मेआयेगी , यहां मेरा उद्देश्य आप सब को मात्र इस साधना से परिचितकराना है । देश के श्रेष्ठ साधको का मत है कि यदि साधक ये सारे क्रियाकलाप नकरके केवल घर मे मन्त्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त पंचांगुली यन्त्रतथा चित्र स्थापित कर उसके सामने नित्य पंचांगुली मंत्र 21 बार जपकरें तो कुछ समय बाद स्वतः पंचांगुली साधना सिद्ध हो जाती है ।सामान्य साधक को लम्बे चौडे जटिल विधि विधान मे न पड कर अपनेघर मे पंचांगुली देवी का चित्र स्थापना चाहिए और प्रातः स्नान कर गुरुमंत्र जप कर पंचांगुली मन्त्र का 21 बार उच्चारण करना चाहिए ।कुछ समय बाद मन्त्र सिद्ध हो जाता है और यह साधना सिद्ध करसाधक सफल भविष्यदृष्टा बन जाता है , साधक मेजितनि उज्जवला और पवित्रता होती है उसी के अनुसार उसे फलमिलता है ।वर्तमान समय मे यह श्रैष्ठतम और प्रभावपूर्ण मानी जाती हैतथा प्रत्येक मन्त्र मर्मज्ञ और तांत्रिक साधक इस बात को स्वीकारकरते है कि वर्तमान समय मे यह साधना अचूक फलदायक है । इस साधना में कार्तिक माह के हस्त नक्षत्र का ज्यादा महत्व है क्योंकि ये हस्तरेखा और भविष्य दर्शन से जुडी है। ज्यादा उचित ये रहेगा की गुरु के सानिंध्य में साधना करें ये।

चौंसठ योगिनी नाम-स्तोत्रम् गजास्या सिंह-वक्त्रा च, गृध्रास्या काक-तुण्डिका । उष्ट्रा-स्याऽश्व-खर-ग्रीवा, वाराहास्या शिवानना ।। उलूकाक्षी घोर-रवा, मायूरी शरभानना । कोटराक्षी चाष्ट-वक्त्रा, कुब्जा च विकटानना ।। शुष्कोदरी ललज्जिह्वा, श्व-दंष्ट्रा वानरानना । ऋक्षाक्षी केकराक्षी च, बृहत्-तुण्डा सुराप्रिया ।। कपालहस्ता रक्ताक्षी च, शुकी श्येनी कपोतिका । पाशहस्ता दंडहस्ता, प्रचण्डा चण्डविक्रमा ।। शिशुघ्नी पाशहन्त्री च, काली रुधिर-पायिनी । वसापाना गर्भरक्षा, शवहस्ताऽऽन्त्रमालिका ।। ऋक्ष-केशी महा-कुक्षिर्नागास्या प्रेतपृष्ठका । दन्द-शूक-धरा क्रौञ्ची, मृग-श्रृंगा वृषानना ।। फाटितास्या धूम्रश्वासा, व्योमपादोर्ध्वदृष्टिका । तापिनी शोषिणी स्थूलघोणोष्ठा कोटरी तथा ।। विद्युल्लोला वलाकास्या, मार्जारी कटपूतना । अट्टहास्या च कामाक्षी, मृगाक्षी चेति ता मताः ।। ।। फल-श्रुति ।। चतुष्षष्टिस्तु योगिन्यः पूजिता नवरात्रके । दुष्ट-बाधां नाशयन्ति, गर्भ-बालादि-रक्षिकाः ।। न डाकिन्यो न शाकिन्यो, न कूष्माण्डा न राक्षसाः । तस्य पीड़ां प्रकुर्वन्ति, नामान्येतानि यः पठेत् ।। बलि-पूजोपहारैश्च, धूप-दीप-समर्पणैः । क्षिप्रं प्रसन्ना योगिन्यो, प्रयच्छेयुर्मनोरथान् ।। कृष्णा-चतुर्दशी-रात्रावुपवासी नरोत्तमः । प्रणवादि-चतुर्थ्यन्त-नामभिर्हवनं चरेत् ।। प्रत्येकं हवनं चासां, शतमष्टोत्तरं मतम् । स-सर्पिषा गुग्गुलुना, लघु-बदर-मानतः ।। साधक कृष्ण-पक्ष की चतुर्दशी को उपवास करे । रात्रि में गुग्गुल और घृत से विभक्ति युक्त प्रत्येक नाम के आगे प्रणव ॐ लगाकर, प्रत्येक नाम से १०८ आहुतियाँ अर्पित करे । पूरी तरह शुद्ध होकर, एकाग्र-मन से जो इन नामों का पाठ करता है, उसे डाकिनी, शाकिनी, कूष्माण्ड और राक्षस आदि किसी प्रकार की पीड़ा नहीं होती । धूप-दीपादि उपचारों सहित पूजन और बलि प्रदान करने से योगनियाँ शीघ्र प्रसन्न होकर सभी कामनाओं को पूरा करती है । हवन के लिये चौंसठ योगिनी नाम इस प्रकार है, प्रत्येक नाम के आदि में ‘ॐ’ तथा अन्त में स्वाहा लगाकर हवन करें - १॰ ॐ गजास्यै स्वाहा, २॰ सिंह-वक्त्रायै, ३॰ गृध्रास्यायै, ४॰ काक-तुण्डिकायै , ५॰ उष्ट्रास्यायै, ६॰ अश्व-खर-ग्रीवायै, ७॰ वाराहस्यायै, ८॰ शिवाननायै, ९॰ उलूकाक्ष्यै, १०॰ घोर-रवायै, ११॰ मायूर्यै, १२॰ शरभाननायै, १३॰ कोटराक्ष्यै, १४॰ अष्ट-वक्त्रायै, १५॰ कुब्जायै, १६॰ विकटाननायै, १७॰ शुष्कोदर्यै, १८॰ ललज्जिह्वायै, १९॰ श्व-दंष्ट्रायै, २०॰ वानराननायै, २१॰ ऋक्षाक्ष्यै, २२॰ केकराक्ष्यै, २३॰ बृहत्-तुण्डायै, २४॰ सुरा-प्रियायै, २५॰ कपाल-हस्तायै, २६॰ रक्ताक्ष्यै, २७॰ शुक्यै, २८॰ श्येन्यै, २९॰ कपोतिकायै, ३०॰ पाश-हस्तायै, ३१॰ दण्ड-हस्तायै, ३२॰ प्रचण्डायै, ३३॰ चण्ड-विक्रमायै, ३४॰ शिशुघ्न्यै, ३५॰ पाश-हन्त्र्यै, ३६॰ काल्यै, ३७॰ रुधिर-पायिन्यै, ३८॰ वसा-पानायै, ३९॰ गर्भ-भक्षायै, ४०॰ शव-हस्तायै, ४१॰ आन्त्र-मालिकायै, ४२॰ ऋक्ष-केश्यै, ४३॰ महा-कुक्ष्यै, ४४॰ नागास्यायै, ४५॰ प्रेत-पृष्ठकायै, ४६॰ दन्द-शूक-धरायै, ४७॰ क्रौञ्च्यै, ४८॰ मृग-श्रृंगायै, ४९॰ वृषाननायै, ५०॰ फाटितास्यायै, ५१॰ धूम्र-श्वासायै, ५२॰ व्योम-पादायै, ५३॰ ऊर्ध्व-दृष्टिकायै, ५४॰ तापिन्यै, ५५॰ शोषिण्यै, ५६॰ स्थूल-घोणोष्ठायै, ५७॰ कोटर्यै, ५८॰ विद्युल्लोलायै, ५९॰ बलाकास्यायै, ६०॰ मार्जार्यै, ६१॰ कट-पूतनायै, ६२॰ अट्टहास्यायै, ६३॰ कामाक्ष्यै, ६४॰ मृगाक्ष्यै ।

दुर्गा दूर हटायें दुर्भाग्य एक रोटी ले लें |इस रोटी को अपने ऊपर से 31 बार उतार लें। प्रत्येक बार उतारते समय इस मन्त्र का उच्चारण भी करें। मन्त्र इस प्रकार है- ऊँ दुर्भाग्यनाशिनी दुं दुर्गाय नमः। बाद में रोटी को कुत्‍ते को खिला दें अथवा बहते पानी में बहा दें। इस प्रयोग को दिन में किसी भी समय कर के प्रवाहित अथवा खिलाया जा सकता है | टोटके रविवार और मंगलवार को अधिक प्रभावी होते हैं अतः संभव हो तो इस क्रिया को इन दिनों में करें |.....

बीसा यंत्र का महत्व प्राचीन काल में तांत्रिक लोग एवं तंत्र से जुड़े वर्ग के लोग इस यंत्र का अत्यधिक उपयोग किया करते थे। बीसा यंत्र अनेक प्रकार के भंय को नष्ट करता है जैसे- चोर भंय, प्रेत भंय, शत्रु भय, रोग भय, दुर्घटना भय आदि। बीसा यंत्र को सम्मुख रखकर शुभ मुहूर्त में हनुमान चालीसा का एक सौ आठ पाठ करने से बीमार मनुष्यों को बीमारी से छुटकारा मिलता है। इस यंत्र के सम्मुख शक्ति का सावर मंत्र जप करने से मंत्र सिद्ध होता है और उसमें शक्ति जाग्रत होती है। इस यंत्र को प्रतिदिन धूप दीप आदि से पूजन करके सिरहाने रखने से बुरे स्वप्न से छुटकारा मिलता है।

महामृत्युंजय गायत्री संजीवनी मंत्र ऊँ हौं जूं स: ऊँ भूर्भुव: स्व: ऊँ त्रयंबकंयजामहे ऊँ तत्सर्वितुर्वरेण्यं ऊँ सुगन्धिंपुष्टिवर्धनम ऊँ भर्गोदेवस्य धीमहि ऊँ उर्वारूकमिव बंधनान ऊँ धियो योन: प्रचोदयात ऊँ मृत्योर्मुक्षीय मामृतात ऊँ स्व: ऊँ भुव: ऊँ भू: ऊँ स: ऊँ जूं ऊँ हौं ऊँ *************************** इस मंत्र की आराधना निम्न रूप में की जिसके प्रभाव से वह देव-दानव युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए दानवों को सहज ही जीवित कर सकें || महामृत्युंजय मंत्र में 33 देवताओं 8 वसु, 11 रूद्र, 12 आदित्य, 1 प्रजापति तथा 1 वषट तथा ऊँ की शक्तियां शामिल हैं वहीं गायत्री मंत्र प्राण ऊर्जा तथा आत्मशक्ति को चमत्कारिक रूप से बढ़ाने वाला मंत्र है || विधिवत रूप से संजीवनी मंत्र की साधना करने से इन दोनों मंत्रों के संयुक्त प्रभाव से व्यक्ति में कुछ ही समय में विलक्षण शक्तियां उत्पन्न हो जाती है || यदि वह नियमित रूप से इस मंत्र का जाप करता रहे तो उसे अष्ट सिदि्धयां, नव निधियां मिलती हैं तथा मृत्यु के बाद उसका मोक्ष हो जाता है ||

भैरव जी की कृपा प्राप्ति हेतु एक दुर्लभ प्रयोग -- ..कुछ थोड़ी लॉन्ग-इलायची-सौंफ पीसकर एक सेर आटे में मिला ले ! पाव भर देशी खांड और ओउ उतना ही पानी मिला ले की जिससे आटा सुलभता से गुंथा जा सके ! इस गुंथे आटे से केवल एक ही रोटी बनानी है ! जब रोटी बन जाये तो उसमे कुछ सरसों का तेल चुपड़ दे ! इस रोटी के ठीक बीच में सिंदूर का एक टीका लगाये ! टीके से कुछ दूरी पर रोटी का एक गोलाकार टुकड़ा काटे -[यानि गोल टुकड़े के बीच में टीका आना चाहिए] ! अब इस गोलाकार टुकड़े को भी बीच में से काटकर-[निम्बू की तरह] दो भाग बना ले , किन्तु ऐसा काटे की एक भाग में टीका पूरा आना चाहिए ! अब इन टुकडो को फिर से जोड़ -मिलाकर रोटी के बीच में रख दे ! अब भैरव मंदिर जाकर भगवान को धूप-दीप दे ! रोटी के सभी भागो को भगवान के भोग हेतु अर्पित कीजिये और अपने किसी भी कार्य की सिद्धि हेतु प्रार्थना कीजिये ! अब टीका लगा हुवा टुकड़ा श्वान-[कुत्ता] को खिला दे , बचा हुवा आधा गोल टुकड़ा किसी कुए में फेंक दे ! शेष बची हुयी रोटी को भी टुकड़े करके श्वान को ही दे ,,, किन्तु एक टुकड़ा बचाकर अपने घर ले आये ! और घर में ही किसी सुरक्षित स्थान में रख दे ! इस क्रिया के फल स्वरूप प्रयोगकर्ता का असाध्य कार्य में सफलता सिद्ध होगी ! और उस पर भैरव जी की विशिष्ट कृपा बनी रहेगी ! प्रयोगकर्ता को चाहिए की अपने और अपने परिवार की प्रसन्नता -सुख समृद्धि हेतु ही ये प्रयोग करे------------ -किसी के अनिष्ट की कामना को ध्यान में कदापि भी न रखे !

दुर्गा सप्तशती पाठ विधि

  दुर्गा सप्तशती दुर्गा सप्तशती पाठ विधि पूजनकर्ता स्नान करके, आसन शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके, शुद्ध आसन पर बैठ जाएँ। माथे पर अपनी पसंद क...