Friday 11 February 2022

सुख-शांति देने वाले होते है।आशीर्वाद

सुख-शांति देने वाले होते है।आशीर्वाद
विद्वानों, तपस्वियों और प्रशस्त आप्तजनों से ईष्टसिद्धि के लिए शक्ति और कल्याण के लिए आशीर्वाद प्राप्त करना, भारत की एक पुरानी परंपरा है।
आशीर्वाद एक प्रकार की शुभ कल्पना है। जैसे बुरे विचार का एक वातावरण दूर-दूर तक फैलता है। वैसे ही शुभ भावना की गुप्त विचार तरंगेें दूर-दूर तक फैलती हैं। और मनुष्य को तीव्रता से प्रभावित करती हैं। भलाई चाहने वाला यदि पुष्ट मस्तिष्क का व्यक्ति होता है। तो उसका गुप्त प्रभाव और भी तेज रहता है।
विद्वानों, तपस्वियों तथा प्रशस्त आप्तजनों का जीवन नि:स्वार्थ होता है। वे समाज का हित चिंतन ही किया करते हैं। मन और वचन से सबकी भलाई ही चाहते हैं। उन्हें किसी से व्यक्तिगत लाभ नहीं उठाना होता। इसलिए उनका शक्तिशाली मस्तिष्क प्रबल विचार तरंगें फेंका करता है। वे सबके विषय में शुभ कल्पनाएं ही किया करते हैं। फलस्वरूप उनके आशीर्वाद में अद्भुत फलदायिनी शक्ति होती है।
आशीर्वाद में मन की उज्जवलता, शुभचिंतन, शुभकल्पना ही फलदायक होती है। जिसका मन उज्जवल विचारों से परिपूर्ण है। वह सर्वत्र प्रकाश ही प्रकाश फैलाएगा। उससे आशा और उत्साह ही बढ़ेंगे। आशीर्वाद पाकर हमारा चेहरा आंतरिक खुशी से भर जाता है। मस्तक तेजोमय हो उठता है। हमारा सोया हुआ आत्मविश्वास जागृत हो उठता है।
प्रत्येक आशीर्वाद एक प्रकार का शुभ आत्मसंकेत अथवा सजेशन है। एक उत्पादक दिशा में वृद्धि का प्रयत्न है। जिस प्रकार लोहे का बना हुआ कवच मनुष्य के शरीर की रक्षा करता है। और युद्ध में बाहर से होने वाले आक्रमणों को रोकता रहता है। कवच पहनकर लड़ने वाला योद्धा बचा रहता है। उसी प्रकार आशीर्वाद एक गुप्त मानसिक कवच है। विद्वानों और तपस्वियों के दिए हुए इस गुप्त मानसिक कवच को धारण करने वाला योद्धा नए उत्साह और साहस से कर्तव्यपथ पर अग्रसर होता है।
आशीर्वाद हमें शक्ति का सही दिशा में उपयोग करना सिखाता है। हम तभी आशीर्वाद के लिए जाते हैं। जब हम अपने उद्देश्य और कर्म की पवित्रता में पूर्ण विश्वास करते हैं। विद्वान और तपस्वी, सुपात्रों को उच्च उद्देश्य की प्राप्ति में ही आशीर्वाद देते हैं। वे हमारी शक्ति के सद्व्यय में सहायक होते हैं।
सारी शक्तियां अदृश्य होती हैं। वायु अदृश्य है, विद्युत अदृश्य है। आत्मा अदृश्य है। इसी प्रकार विद्वानों के आशीर्वाद की शक्ति भी अदृश्य है। विवाहों, यज्ञों, युद्धों तथा महत्वपूर्ण अवसरों पर हमें विद्वानों, तपस्वियों तथा प्रशस्त आप्तजनों के आशीर्वाद अवश्य ग्रहण करने चाहिए।
आशीर्वाद एक गुप्त मानसिक कवच की तरह सदा हमारे साथ रहता है। हमें गुप्त रूप से उससे बड़ी प्रेरणा मिलती रहती है। वह हमारी शक्ति का छिपा हुआ एक शक्ति केंद्र है। अत: हमें महान कार्य करने से पूर्व आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिए।

No comments:

दुर्गा सप्तशती पाठ विधि

  दुर्गा सप्तशती दुर्गा सप्तशती पाठ विधि पूजनकर्ता स्नान करके, आसन शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके, शुद्ध आसन पर बैठ जाएँ। माथे पर अपनी पसंद क...