Tuesday 17 August 2021

होम की साधारण विधि इस प्रकार है।

होम की साधारण विधि इस प्रकार है।
सभी होम के प्रारंभ में सात प्रायश्‍चित आहुतियाँ पाँच पंचवारुणी कुल बारह आहुतियाँ दी जाती है। वह इस प्रकार है :
(1) ओं प्रजापतये स्वाहा इदं प्रजापतये न मम।
(2) ओं इन्द्राय स्वाहा इदमिन्द्राय न मम।
(3) ओं अग्नये स्वाहा इदमग्नये न मम।
(4) ओं सोमाय स्वाहा इदं सोमाय न मम।
(5) ओं भू: स्वाहा इदमग्नये न मम।
(6) ओं भुव: स्वाहा इदं वायवे न मम।
(7) ओं स्व: स्वाहा इदं सूर्याय न मम।
इसके बाद नीचे लिखा मन्त्र पढ़ कर जल छिड़के, या केवल मन्त्र ही पढ़ दे :
यथा वाण महाराणां कवचंवारकं भवेत्। तद्वद्दैवोपघातानां शांतिर्भवति वारिका। शांतिरस्तु पुष्टिरस्तु वृद्धिरस्तु यत्पापं तत्प्रतिहतमस्तु द्विपदे चतुष्पदे सुशांतिर्भवतु।
फिर पंचवाणी से होम करे :
(1) ओं त्वन्नोअग्ने वरुणस्य विद्वान्देवस्य हेडो अवयासिसीष्ठा। यजिष्ठो वद्दितम: शोशुचानो विश्‍वा द्वेषांसि प्रमुमुग्धयस्मत्स्वाहा इदमग्नीवरुणायाभ्यां न मम।
(2) ओं सत्वन्नोऽअग्नेवमोभवीती नेदिष्ठो अस्या उषसोव्युष्टौ। अवयक्ष्वनोवरुण-रंराणो वीहि मृडीकं सुहवो न एधिस्वाहा इदमग्नीवरुणाभ्यां न मम।
(3) ओं अयाश्‍चाग्येस्यनभि शस्तिपाश्‍च सत्वमित्तवमयाअसि। अयानो यज्ञं वहास्ययानो धोहि भेषजं स्वाहा इदमग्नये न मम।
(4) ओं येते शतं यं सहस्रं यज्ञिया: पाशा वितता महान्त:। तेभिर्नोऽअद्य सवितोत विष्णुर्विश्‍वे मुंचन्तु मरुत: स्वर्का: स्वाहा इदं वरुणाय सवित्रो विष्णवे विश्‍वेभ्यो देभ्यो मरुद्‍भय: स्वर्केभ्यश्‍च न मम।
(5) ओं उदुत्तामं वरुणपाशमस्मदवाधामं विमध्यमं श्रथाय। अथावयमादित्यव्रते तवानागसोऽअदितये स्याम स्वाहा इदं वरुणाय न मम।
इसके बाद थोड़ा जल गिरा कर नवग्रह आदि देवताओं के नाम ले कर और जिस देवता का होम करना हो उसका भी नाम ले कर स्वाहा शब्द के साथ चतरुथ्यंत उच्चारण कर के आहुतियाँ दे और अन्त में ‘ओं अग्नये स्विष्टकृते स्वाहा इदमग्नये स्विष्टकृते न मम’ पढ़ कर आहुति दे और पूर्णाहुति करे। होम के आरंभ में संकल्प कर के होम शुरू करे और अन्त में पूर्णाहुति का संकल्प करे। यदि दूसरा आदमी होम करनेवाला हो तो भी संकल्प स्वयं पढ़ना चाहिए और ‘इदं प्रजापतये न मम’ इत्यादि प्रतिमन्त्र के अन्त में स्वयं बोलना चाहिए और उसी के साथ आहुति छोड़नी चाहिए, न कि ‘स्वाहा’ के साथ। इनका नाम त्याग है और इसके बोलने का अधिकार केवल यजमान को ही है। इसके बिना आहुति अधूरी रह जाती है।

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