Wednesday, 15 September 2021

नवग्रहों के वेद मंत्र

नवग्रहों के वेद मंत्र
सूर्य : ॐ आकृष्णेन रजसा वर्त्तमानो निवेशयन्नमृतं मतर्य च

हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन॥
इदं सूर्याय न मम॥

चन्द्र : ॐ इमं देवाSसपत् न ग्वं सुवध्वम् महते क्षत्राय महते ज्येष्ठयाय
महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय इमममुष्य पुत्रमुष्यै पुत्रमस्यै विश एष
वोSमी राजा सोमोSस्माकं ब्राह्मणानां ग्वं राजा॥ इदं चन्द्रमसे न मम॥

गुरू : ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अहार्द् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु।
यददीदयच्छवस ॠतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम॥
इदं बृहस्पतये, इदं न मम॥

शुक्र : ॐ अन्नात् परिस्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत् क्षत्रं पय:।
सोमं प्रजापति: ॠतेन सत्यमिन्द्रियं पिवानं ग्वं
शुक्रमन्धसSइन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोSमृतं मधु॥ इदं शुक्राय, न मम।

मंगल : ॐ अग्निमूर्द्धा दिव: ककुपति: पृथिव्या अयम्।
अपा ग्वं रेता ग्वं सि जिन्वति। इदं भौमाय, इदं न मम॥

बुध : ॐ उदबुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहित्वमिष्टापूर्ते स ग्वं सृजेथामयं च।
अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वेदेवा यजमानश्च सीदत॥
इदं बुधाय, इदं न मम॥

शनि : ॐ शन्नो देविरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।
शंय्योरभिस्त्रवन्तु न:। इदं शनैश्चराय, इदं न मम॥

राहु : ॐ कयानश्चित्र आ भुवद्वती सदा वृध: सखा।
कया शचिंष्ठया वृता॥ इदं राहवे, इदं न मम॥

केतु : ॐ केतुं कृण्वन्न केतवे पेशो मर्या अपेशसे।सम्मोहन विद्या भारतवर्ष की प्राचीनतम और सर्वश्रेष्ठ विद्या है,मन की बिखरी हुई शक्तियों को एकत्रित करके या एकाग्र करके उस बढ़ी हुई शक्ति से किसी को प्रभावित करना ही सम्मोहन विद्या है। इसकी जड़ें सुदूर गहराईयों तक स्थित हैं।भारतीय अध्यात्म, योग और उसकी शक्तियों से जुड़ा हुआ है। योग शब्द का अर्थ ही 'जुडऩा' है,आध्यात्मिक अर्थ में लेते हैं तो इसका मतलब आत्मा का परमात्मा से मिलन और दोनों का एकाकार हो जाना ही है। भक्त का भगवान से, मानव का ईश्वर से, व्यष्टि का समष्टि से, तथा पिण्ड का ब्रह्माण्ड से मिलन ही योग कहा गया है। हकीकत में देखा जाए तो यौगिक क्रियाओं का उद्देश्य मन को पूर्ण रूप से एकाग्र करके प्रभु यानि ईश्वर में समर्पित कर देना है।.

अनिष्ट शक्तिसे सम्बन्धित आध्यात्मिक उपाय

अनिष्ट शक्तिसे सम्बन्धित आध्यात्मिक उपाय
आजकल अधिकांश घरोंमें अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट है, फलस्वरूप घरमें कलह क्लेश रहना, नींद न आना, नींद अधिक आना, नींदमें भयानक स्वप्न आना, या डर जाना, शरीरमें वेदना रहना, गर्भपात होना, आर्थिक हानि होना, आदि कष्ट पाये गए हैं | 
१. तुलसीके पौधे लगायें |
२. घर एवं आसपासके परिसरको स्वच्छ रखें |
३. घरमें नियमित गौ मूत्रका छिड़काव करें, देसी गायके गौ मूत्रमें अनिष्ट शक्तिको दूर करनेकी सर्वाधिक क्षमता होती है |
४. घरमें सप्ताहमें दो दिन कच्ची नीमपत्तीकी धुनी जलाएं |
५. घरमें कंडे या लकड़ीसे अग्नि प्रज्ज्वलितकर, धुना एवं गूगुल जलाएं और उसके धुएँको प्रत्येक कमरेमें थोड़ी देर दिखाएँ |
७. संतोंके भजन, स्त्रोत्र पठन या सात्त्विक नामजपकी ध्वनि चक्रिका, अर्थात सीडी चलायें | (हमारे पास वास्तु शुद्धि हेतु मंत्रजपकी सीडी उपलब्ध है |)
८. घरमें अधिकाधिक समय नामजप करें, नामजपसे निकलनेवाले स्पंदनसे घरकी शुद्धि होती है |
९. घरमें कलह-क्लेश टालें, वास्तु देवता “तथास्तु” कहते रहते हैं, अतः क्लेशसे क्लेश और बढ़ता है और धनका नाश होता है |
१०. सत्संग प्रवचनका आयोजन करें | अतिरिक्त स्थान घरमें हो तो धर्मकार्य हेतु या साप्ताहिक सत्संग हेतु वह स्थान किसी संत या धर्मकार्य हेतु अर्पण करें |
११. संतोंके चरण घरमें पड़नेसे घरकी वास्तु १०% तक शुद्ध हो जाती है | अतः संतोके आगमन हेतु अपनी भक्ति बढ़ाएं |
१२. प्रसन्न एवं संतुष्ट रहें | घरके सदस्योंके मात्र प्रसन्नचित्त रहनेसे घरकी ३०% शुद्धि हो जाती है |
१३. घरकी रंगाई और पुताई समय-समयपर कराते रहें | घरके पर्दे, दीवारें, चादरें काले, हरे, बैगनी रंगोंके न हों, यह ध्यानमें रखें |
१४. घरमें कृत्रिम और प्लास्टिकके फूलसे सजावट न करें |
१५. घरमें दूरदर्शन संचपर रज-तम प्रधान धारावाहिक, भुतहा फिल्में या धारावाहिक न देखें |
१६. फेंग-शुई, यह एक आसुरी पद्धति है | इससे घरकी शुद्धि नहीं, वरन काली शक्ति बढ़ती है | अतः इससे सम्बंधित सर्व सामग्रीका उपयोग पूर्णत: टालें |
१७. घरमें नैसर्गिक धूप और हवाके लिए प्रतिदिन द्वार और खिड़की खोलें, इससे घरकी शुद्धि होती है |
१८. घरमें पितरोंके चित्र दृष्टिके सामने न रखें |
१९. घरके किसी एक कोने या कमरेमें विशेषकर भण्डार-गृह (स्टोर रूम) में कबाड़ एकत्रित न रखें | वह एक प्रकारसे अनिष्ट शक्तियोंको घरमें रहने हेतु आमंत्रण देना है |
२०. घरके शौचालय और स्नानगृहको सदैव स्वच्छ रखें |
२१. घरके पूजाघरको शास्त्रानुसार रचनाकर, वहाँ प्रातःकाल एवं संध्या आरती करें | (इस बारेमें और अधिक जानकारी हम आगामी अंकों में देते रहेंगे )
२२. घरमें फिल्मी अभिनेता और अभिनेत्रियों एवं आजके राजनेता, क्रिकेट खिलाड़ी, इत्यादिके चित्र न लगाएँ, इससे भी रज-तम प्रधान स्पंदन घरमें निर्मित होते हैं |
२३. घरमें सात्त्विक पुष्प, जैसे गेंदा, जाई, जुई, राजनीगंधा, चंपा, चमेली जैसे पौधे लगाएँ |
२४. घरके सामने काँटेदार पौधे जैसे कैक्टस(cactus) इत्यादि न लगाएँ |
२५. घरके बाहर भयानक मुखौटे टाँगकर न रखें !

आर्थिक समस्या के छुटकारे के लिए

आर्थिक समस्या के छुटकारे के लिए 
यदि आप हमेशा आर्थिक समस्या से परेशान हैं तो इसके लिए आप 21 शुक्रवार 9 वर्ष से कम आयु की 5 कन्यायों को खीर व मिश्री का प्रसाद बांटें !
2. घर और कार्यस्थल में धन वर्षा के लिए :
इसके लिए आप अपने घर, दुकान या शोरूम में एक अलंकारिक फव्वारा रखें ! या
एक मछलीघर जिसमें 8 सुनहरी व एक काली मछ्ली हो रखें ! इसको उत्तर या उत्तरपूर्व की ओर रखें ! यदि कोई मछ्ली मर जाय तो उसको निकाल कर नई मछ्ली लाकर उसमें डाल दें !
3. परेशानी से मुक्ति के लिए :
आज कल हर आदमी किसी न किसी कारण से परेशान है ! कारण कोई भी हो आप एक तांबे के पात्र में जल भर कर उसमें थोडा सा लाल चंदन मिला दें ! उस पात्र को सिरहाने रख कर रात को सो जांय ! प्रातः उस जल को तुलसी के पौधे पर चढा दें ! धीरे-धीरे परेशानी दूर होगी !
4. कुंवारी कन्या के विवाह हेतु :
१. यदि कन्या की शादी में कोई रूकावट आ रही हो तो पूजा वाले 5 नारियल लें ! भगवान शिव की मूर्ती या फोटो के आगे रख कर “ऊं श्रीं वर प्रदाय श्री नामः” मंत्र का पांच माला जाप करें फिर वो पांचों नारियल शिव जी के मंदिर में चढा दें ! विवाह की बाधायें अपने आप दूर होती जांयगी !
२. प्रत्येक सोमवार को कन्या सुबह नहा-धोकर शिवलिंग पर “ऊं सोमेश्वराय नमः” का जाप करते हुए दूध मिले जल को चढाये और वहीं मंदिर में बैठ कर रूद्राक्ष की माला से इसी मंत्र का एक माला जप करे ! विवाह की सम्भावना शीघ्र बनती नज़र आयेगी

नौकरी जाने का खतरा हो या ट्रांसफर रूकवाने के लिए :

नौकरी जाने का खतरा हो या ट्रांसफर रूकवाने के लिए :
पांच ग्राम डली वाला सुरमा लें ! उसे किसी वीरान जगह पर गाड दें ! ख्याल रहे कि जिस औजार से आपने जमीन खोदी है उस औजार को वापिस न लायें ! उसे वहीं फेंक दें दूसरी बात जो ध्यान रखने वाली है वो यह है कि सुरमा डली वाला हो और एक ही डली लगभग 5 ग्राम की हो ! एक से ज्यादा डलियां नहीं होनी चाहिए !
8. कारोबार में नुकसान हो रहा हो या कार्यक्षेत्र में झगडा हो रहा हो तो :
यदि उपरोक्त स्थिति का सामना हो तो आप अपने वज़न के बराबर कच्चा कोयला लेकर जल प्रवाह कर दें ! अवश्य लाभ होगा !

क्या आपको अपने कार्यक्षेत्र में अनावश्यक दबाव

क्या आपको अपने कार्यक्षेत्र में अनावश्यक दबाव या गलत काम कराने का दबाव पड़ता यदि हां तो आप निम्न तांत्रिक प्रयोग करे ,,आप दबाव तनाव से मुक्त होगे ,आपको भ्रष्ट बनाने ,,आपसे गलत कराने का दबाव कम होगा आप सोमवार को दो फूलदार लौंग और थोडा सा कपूर ले ,पहले अपने ईष्ट की विधिवत पूजा करले ,फिर उस कपूर और
लौंग को १०८ बार गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित करे ,,अब कपूर लोग को जला दे ,अपनी दृष्टि लगातार उस पर बनाए रखे और गायत्री मंत्र का पाठ करते रहे ,,जब लौंग-कपूर पूरी तरह जल जाए तब ,उससे बनी भष्म या राख को इकठ्ठा कर ले ,,आप इसे तीन बार [सुबह,शाम और कार्यक्षेत्र में प्रवेश पर अपनी जिह्वा [जीभ] पर थोडा सा लगाए ,,आप के कार्यक्षेत्र में आप पर दबाव ७ दिनों में कम हो जाएगा

शंख को विजय,समृद्धि,सुख,यश,कीर्ति

शंख को विजय,समृद्धि,सुख,यश,कीर्ति तथा लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है। वैदिक अनुष्ठानों एवं तांत्रिक क्रियाओं में भी विभिन्न प्रकार के शंखों का प्रयोग किया जाता है। आरती,धार्मिक उत्सव,हवन-क्रिया,राज्याभिषेक,गृह-प्रवेश,वास्तु-शांति आदि शुभ अवसरों पर शंखध्वनि से लाभ मिलता है। पितृ-तर्पण में शंख की अहम भूमिका होती है
शंख निधि का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि इस मंगलचिह्न को घर के पूजास्थल में रखने से अरिष्टों एवं अनिष्टों का नाश होता है और सौभाग्य की वृद्धि होती है। भारतीय धर्मशास्त्रों में शंख का विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण स्थान है। मंदिरों एवं मांगलिक कार्यों में शंख-ध्वनि करने का प्रचलन है। मान्यता है कि इसका प्रादुर्भाव समुद्र-मंथन से हुआ था। समुद्र-मंथन से प्राप्त14रत्नों में शंख भी एक है। विष्णु पुराण के अनुसार माता लक्ष्मी समुद्रराज की पुत्री हैं तथा शंख उनका सहोदर भाई है। अत यह भी मान्यता है कि जहाँ शंख है,वहीं लक्ष्मी का वास होता है। स्वर्गलोक में अष्टसिद्धियों एवं नवनिधियों में शंख का महत्वपूर्ण स्थान है। भगवान विष्णु इसे अपने हाथों में धारण करते हैं।
धार्मिक कृत्यों में शंख का उपयोग किया जाता है। पूजा-आराधना,अनुष्ठान-साधना,आरती,महायज्ञ एवं तांत्रिक क्रियाओं के साथ शंख का वैज्ञानिक एवं आयुर्वेदिक महत्व भी है। प्राचीन काल से ही प्रत्येक घर में शंख की स्थापना की जाती है। शंख को देवता का प्रतीक मानकर पूजा जाता है एवं इसके माध्यम से अभीष्ट की प्राप्ति की जाती है। शंख की विशिष्ट पूजन पद्धति एवं साधना का विधान भी है। कुछ गुह्य साधनाओं में इसकी अनिवार्यता होती है। शंख कई प्रकार के होते हैं और सभी प्रकारों की विशेषता एवं पूजन-पद्धति भिन्न-भिन्न है। शंख साधक को उसकी इच्छित मनोकामना पूर्ण करने में सहायक होते हैं तथा जीवन को सुखमय बनाते हैं। उच्च श्रेणी के श्रेष्ठ शंख कैलाश मानसरोवर,मालद्वीप,लक्षद्वीप,कोरामंडल द्वीप समूह,श्रीलंका एवं भारत में पाये जाते हैं।
शंख की आकृति के आधार पर इसके प्रकार माने जाते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं - दक्षिणावृत्ति शंख,मध्यावृत्ति शंख तथा वामावृत्ति शंख। जो शंख दाहिने हाथ से पकड़ा जाता है,वह दक्षिणावृत्ति शंख कहलाता है। जिस शंख का मुँह बीच में खुलता है,वह मध्यावृत्ति शंख होता है तथा जो शंख बायें हाथ से पकड़ा जाता है,वह वामावृत्ति शंख कहलाता है। मध्यावृत्ति एवं दक्षिणावृति शंख सहज रूप से उपलब्ध नहीं होते हैं। इनकी दुर्लभता एवं चमत्कारिक गुणों के कारण ये अधिक मूल्यवान होते हैं। इनके अलावा लक्ष्मी शंख,गोमुखी शंख,कामधेनु शंख,विष्णु शंख,देव शंख,चक्र शंख,पौंड्र शंख,सुघोष शंख,गरुड़ शंख,मणिपुष्पक शंख,राक्षस शंख,शनि शंख,राहु शंख,केतु शंख,शेषनाग शंख,कच्छप शंख आदि प्रकार के होते हैं।
घर में पूजा-वेदी पर शंख की स्थापना की जाती है। निर्दोष एवं पवित्र शंख को दीपावली,होली,महाशिवरात्रि,नवरात्र,रवि-पुष्य,गुरु-पुष्य नक्षत्र आदि शुभ मुहूर्त में विशिष्ट कर्मकांड के साथ स्थापित किया जाता है। रुद्र,गणेश,भगवती,विष्णु भगवान आदि के अभिषेक के समान शंख का भी गंगाजल,दूध,घी,शहद,गुड़,पंचद्रव्य आदि से अभिषेक किया जाता है। इसका धूप,दीप,नैवेद्य से नित्य पूजन करना चाहिए और लाल वस्त्र के आसन में स्थापित करना चाहिए। शंखराज सबसे पहले वास्तु-दोष दूर करते हैं। मान्यता है कि शंख में कपिला (लाल) गाय का दूध भरकर भवन में छिड़काव करने से वास्तुदोष दूर होते हैं। परिवार के सदस्यों द्वारा आचमन करने से असाध्य रोग एवं दुःख-दुर्भाग्य दूर होते हैं। विष्णु शंख को दुकान,ऑफिस,फैक्टरी आदि में स्थापित करने पर वहाँ के वास्तु-दोष दूर होते हैं तथा व्यवसाय आदि में लाभ होता है।
शंख की स्थापना से घर में लक्ष्मी का वास होता है। स्वयं माता लक्ष्मी कहती हैं कि शंख उनका सहोदर भ्राता है। शंख,जहाँ पर होगा,वहाँ वे भी होंगी। देव प्रतिमा के चरणों में शंख रखा जाता है। पूजास्थली पर दक्षिणावृत्ति शंख की स्थापना करने एवं पूजा-आराधना करने से माता लक्ष्मी का चिरस्थायी वास होता है। इस शंख की स्थापना के लिए नर-मादा शंख का जोड़ा होना चाहिए। गणेश शंख में जल भरकर प्रतिदिन गर्भवती नारी को सेवन कराने से संतान गूंगेपन,बहरेपन एवं पीलिया आदि रोगों से मुक्त होती है। अन्नपूर्णा शंख की व्यापारी व सामान्य वर्ग द्वारा अन्नभंडार में स्थापना करने से अन्न,धन,लक्ष्मी,वैभव की उपलब्धि होती है। मणिपुष्पक एवं पांचजन्य शंख की स्थापना से भी वास्तु-दोषों का निराकरण होता है। शंख का तांत्रिक-साधना में भी उपयोग किया जाता है। इसके लिए लघु शंखमाला का प्रयोग करने से शीघ्र सिद्धि प्राप्त होती है।
वैज्ञानिकों के अनुसार शंख-ध्वनि से वातावरण का परिष्कार होता है। इसकी ध्वनि के प्रसार-क्षेत्र तक सभी कीटाणुओं का नाश हो जाता है। इस संदर्भ में अनेक प्रयोग-परीक्षण भी हुए हैं। आयुर्वेद के अनुसार शंखोदक भस्म से पेट की बीमारियाँ,पीलिया,यकृत,पथरी आदि रोग ठीक होते हैं। त्र+षि श्रृंग की मान्यता है कि छोटे-छोटे बच्चों के शरीर पर छोटे-छोटे शंख बाँधने तथा शंख में जल भरकर अभिमंत्रित करके पिलाने से वाणी-दोष नहीं रहता है। बच्चा स्वस्थ रहता है। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि मूक एवं श्वास रोगी हमेशा शंख बजायें तो बोलने की शक्ति पा सकते हैं। हृदय रोगी के लिए यह रामबाण औषधि है। दूध का आचमन कर कामधेनु शंख को कान के पास लगाने से`ँ़'की ध्वनि का अनुभव किया जा सकता है। यह सभी मनोरथों को पूर्ण करता है।
वर्तमान समय में वास्तु-दोष के निवारण के लिए जिन चीजों का प्रयोग किया जाता है,उनमें से यदि शंख आदि का उपयोग किया जाए तो कई प्रकार के लाभ हो सकते हैं। यह न केवल वास्तु-दोषों को दूर करता है,बल्कि आरोग्य वृद्धि,आयुष्य प्राप्ति,लक्ष्मी प्राप्ति,पुत्र प्राप्ति,पितृ-दोष शांति,विवाह में विलंब जैसे अनेक दोषों का निराकरण एवं निवारण भी करता है। इसे पापनाशक बताया जाता है। अत शंख का विभिन्न प्रकार की कामनाओं के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
हिंदू मान्यता के अनुसार कोई भी पूजा,हवन,यज्ञ आदि शंख के उपयोग के बिना पूर्ण नहीं माना जाता है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार शंख बजाने से भूत-प्रेत,अज्ञान,रोग,दुराचार,पाप,दुषित विचार और गरीबी का नाश होता है। शंख बजाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। महाभारत काल में श्रीकृष्ण द्वारा कई बार अपना पंचजन्य शंख बजाया गया था।आधुनिक विज्ञान के अनुसार शंख बजाने से हमारे फेफड़ों का व्यायाम होता है,श्वास संबंधी रोगों से लडऩे की शक्ति मिलती है। पूजा के समय शंख में भरकर रखे गए जल को सभी पर छिड़का जाता है जिससे शंख के जल में कीटाणुओं को नष्ट करने की अद्भूत शक्ति होती है। साथ ही शंख में रखा पानी पीना स्वास्थ्य और हमारी हड्डियों,दांतों के लिए बहुत लाभदायक है। शंख में कैल्शियम,फास्फोरस और गंधक के गुण होते हैं जो उसमें रखे जल में आ जाते हैं।
भारतीय संस्कृति में शंख को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। माना जाता है कि समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों में से एक शंख भी था। इसकी ध्वनि विजय का मार्ग प्रशस्त करती है।
शंख का महत्व धार्मिक दृष्टि से ही नहीं,वैज्ञानिक रूप से भी है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके प्रभाव से सूर्य की हानिकारक किरणें बाधक होती हैं। इसलिए सुबह और शाम शंखध्वनिकरने का विधान सार्थक है। जाने-माने वैज्ञानिक डॉ. जगदीश चंद्र बसु के अनुसार,इसकी ध्वनि जहां तक जाती है,वहां तक व्याप्त बीमारियों के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। इससे पर्यावरण शुद्ध हो जाता है। शंख में गंधक,फास्फोरस और कैल्शियम जैसे उपयोगी पदार्थ मौजूद होते हैं। इससे इसमें मौजूद जल सुवासित और रोगाणु रहित हो जाता है। इसीलिए शास्त्रों में इसे महाऔषधिमानाजाता है।
शंख बजाने से दमा,अस्थमा,क्षय जैसे जटिल रोगों का प्रभाव काफी हद तक कम हो सकता है। इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि शंख बजाने से सांस की अच्छी एक्सरसाइज हो जाती है। ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार,शंख में जल भरकर रखने और उस जल से पूजन सामग्री धोने और घर में छिडकने से वातावरण शुद्ध रहता है। तानसेनने अपने आरंभिक दौर में शंख बजाकर ही गायन शक्ति प्राप्त की थी। अथर्ववेदके चतुर्थ अध्याय में शंखमणिसूक्त में शंख की महत्ता वर्णित है।
भागवत पुराण के अनुसार,संदीपन ऋषि आश्रम में श्रीकृष्ण ने शिक्षा पूर्ण होने पर उनसे गुरु दक्षिणा लेने का आग्रह किया। तब ऋषि ने उनसे कहा कि समुद्र में डूबे मेरे पुत्र को ले आओ। कृष्ण ने समुद्र तट पर शंखासुरको मार गिराया। उसका खोल (शंख) शेष रह गया। माना जाता है कि उसी से शंख की उत्पत्ति हुई। पांचजन्य शंख वही था। शंख से शिवलिंग,कृष्ण या लक्ष्मी विग्रह पर जल या पंचामृत अभिषेक करने पर देवता प्रसन्न होते हैं। शंख की ध्वनि से भक्तों को पूजा-अर्चना के समय की सूचना मिलती है। आरती के समापन के बाद इसकी ध्वनि से मन को शांति मिलती है। कल्याणकारी शंख दैनिक जीवन में दिनचर्या को कुछ समय के लिए विराम देकर मौन रूप से देव अर्चना के लिए प्रेरित करता है। यह भारतीय संस्कृति की धरोहर है। शंख की पूजा इस मंत्र के साथ की जाती है.

त्वं पुरा सागरोत्पन्न:विष्णुनाविघृत:करे देवैश्चपूजित: सर्वथैपाञ्चजन्यनमोऽस्तुते।

तंत्र के उपाय

१. तुलसीके पौधे लगायें |
२. घर एवं आसपासके परिसरको स्वच्छ रखें |
३. घरमें नियमित गौ मूत्रका छिड़काव करें, देसी गायके गौ मूत्रमें अनिष्ट शक्तिको दूर करनेकी सर्वाधिक क्षमता होती है |
४. घरमें सप्ताहमें दो दिन कच्ची नीमपत्तीकी धुनी जलाएं |
५. घरमें कंडे या लकड़ीसे अग्नि प्रज्ज्वलितकर, धुना एवं गूगुल जलाएं और उसके धुएँको प्रत्येक कमरेमें थोड़ी देर दिखाएँ |
७. संतोंके भजन, स्त्रोत्र पठन या सात्त्विक नामजपकी ध्वनि चक्रिका, अर्थात सीडी चलायें | (हमारे पास वास्तु शुद्धि हेतु मंत्रजपकी सीडी उपलब्ध है |)
८. घरमें अधिकाधिक समय नामजप करें, नामजपसे निकलनेवाले स्पंदनसे घरकी शुद्धि होती है |
९. घरमें कलह-क्लेश टालें, वास्तु देवता “तथास्तु” कहते रहते हैं, अतः क्लेशसे क्लेश और बढ़ता है और धनका नाश होता है |
१०. सत्संग प्रवचनका आयोजन करें | अतिरिक्त स्थान घरमें हो तो धर्मकार्य हेतु या साप्ताहिक सत्संग हेतु वह स्थान किसी संत या धर्मकार्य हेतु अर्पण करें |
११. संतोंके चरण घरमें पड़नेसे घरकी वास्तु १०% तक शुद्ध हो जाती है | अतः संतोके आगमन हेतु अपनी भक्ति बढ़ाएं |
१२. प्रसन्न एवं संतुष्ट रहें | घरके सदस्योंके मात्र प्रसन्नचित्त रहनेसे घरकी ३०% शुद्धि हो जाती है |
१३. घरकी रंगाई और पुताई समय-समयपर कराते रहें | घरके पर्दे, दीवारें, चादरें काले, हरे, बैगनी रंगोंके न हों, यह ध्यानमें रखें |
१४. घरमें कृत्रिम और प्लास्टिकके फूलसे सजावट न करें |
१५. घरमें दूरदर्शन संचपर रज-तम प्रधान धारावाहिक, भुतहा फिल्में या धारावाहिक न देखें |
१६. फेंग-शुई, यह एक आसुरी पद्धति है | इससे घरकी शुद्धि नहीं, वरन काली शक्ति बढ़ती है | अतः इससे सम्बंधित सर्व सामग्रीका उपयोग पूर्णत: टालें |
१७. घरमें नैसर्गिक धूप और हवाके लिए प्रतिदिन द्वार और खिड़की खोलें, इससे घरकी शुद्धि होती है |
१८. घरमें पितरोंके चित्र दृष्टिके सामने न रखें |
१९. घरके किसी एक कोने या कमरेमें विशेषकर भण्डार-गृह (स्टोर रूम) में कबाड़ एकत्रित न रखें | वह एक प्रकारसे अनिष्ट शक्तियोंको घरमें रहने हेतु आमंत्रण देना है |
२०. घरके शौचालय और स्नानगृहको सदैव स्वच्छ रखें |
२१. घरके पूजाघरको शास्त्रानुसार रचनाकर, वहाँ प्रातःकाल एवं संध्या आरती करें | (इस बारेमें और अधिक जानकारी हम आगामी अंकों में देते रहेंगे )
२२. घरमें फिल्मी अभिनेता और अभिनेत्रियों एवं आजके राजनेता, क्रिकेट खिलाड़ी, इत्यादिके चित्र न लगाएँ, इससे भी रज-तम प्रधान स्पंदन घरमें निर्मित होते हैं |
२३. घरमें सात्त्विक पुष्प, जैसे गेंदा, जाई, जुई, राजनीगंधा, चंपा, चमेली जैसे पौधे लगाएँ |
२४. घरके सामने काँटेदार पौधे जैसे कैक्टस(cactus) इत्यादि न लगाएँ |
२५. घरके बाहर भयानक मुखौटे टाँगकर न रखें !

पूजन में फूलों का महत्व

पूजन में फूलों का महत्व
भगवान गणेश को तुलसी छोड़कर सभी पत्र-पुष्प प्रिय हैं! गणपतिजी को दूर्वा अधिक
प्रिय है। अतः सफेद या हरी दूर्वा चढ़ाना चाहिए। दूर्वा की फुनगी में
तीन या पाँच पत्ती होना चाहिए। गणेशजी पर तुलसी कभी न चढ़ाएँ।

पद्मपुराण, आचार रत्न
में लिखा है कि 'न तुलस्या गणाधिपम्‌' अर्थात तुलसी से गणेशजी की पूजा
कभी न की जाए। कार्तिक माहात्म्य में भी कहा है कि 'गणेश तुलसी पत्र
दुर्गा नैव तु दूर्वाया' अर्थात गणेशजी की तुलसी पत्र और दुर्गाजी की
दूर्वा से पूजा न करें।

भगवान शंकर पर फूल
चढ़ाने का बहुत अधिक महत्व है। तपः शील सर्वगुण संपन्न वेद में निष्णात
किसी ब्राह्मण को सौ सुवर्ण दान करने पर जो फल प्राप्त होता है, वह शिव
पर सौ फूल चढ़ा देने से प्राप्त हो जाता है।

गुड़हल का लाल फूल

भगवान
विष्णु के लिए जो-जो पत्र-पुष्प बताए गए हैं, वे सब भगवान शिव को भी
प्रिय हैं। केवल केतकी (केवड़े) का निषेध है। शास्त्रों ने कुछ फूलों के
चढ़ाने से मिलने वाले फल का तारतम्य बतलाया है।

जैसे दस सुवर्ण दान का
फल एक आक के फूल को चढ़ाने से मिलता है, उसी प्रकार हजार आक के फूलों का
फल एक कनेर से और हजार कनेर के बराबर एक बिल्व पत्र से मिलता है। समस्त
फूलों में सबसे बढ़कर नीलकमल होता है।

भगवान गणेश को गुड़हल
का लाल फूल विशेष रूप से प्रिय होता है। इसके अलावा चाँदनी, चमेली या
पारिजात के फूलों की माला बनाकर पहनाने से भी गणेश जी प्रसन्न होते
हैं।

श्री गणेश स्त्रोत

।।श्री गणेश स्त्रोत।।
प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम।
भक्तावासं स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये।।1।।
प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम।
तृतीयं कृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम।।2।।
लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टकम् ।।3।।
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम।।4।।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर:।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो।।5।।
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ।।6।।
जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: ।।7।।
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:।।8।।

शाबर तंत्र में हनुमान

शाबर तंत्र में हनुमान
किसी अन्यर देवता की तुलना में भगवान ने कम पढ़े लिखे और आस्थाौवान लोगों के बीच सबसे तेज जगह बनाई है। इनकी आराधना के लिए किसी प्रकार की जटिल विधि की जरूरत नहीं है। तंत्र की एक शाखा शाबर में भी हनुमानजी से संबंधित मंत्रों का प्रयोग बहुतायत होता है। अधिकतर हनुमान कील और जंजीरा का प्रयोग किया जाता है। हनुमान जंजीरा का मंत्र-
ॐ हनुमान पहलवान पहलवान, बरस बारह का जबान,
हाथ में लड्डूा मुख में पान, खेल खेल गढ़ लंका के चौगान,
अंजनी‍ का पूत, राम का दूत, छिन में कीलौ
नौ खंड का भू‍त, जाग जाग हड़मान
हुँकाला, ताती लोहा लंकाला, शीश जटा
डग डेरू उमर गाजे, वज्र की कोठड़ी ब्रज का ताला
आगे अर्जुन पीछे भीम, चोर नार चंपे
ने सींण, अजरा झरे भरया भरे, ई घट पिंड
की रक्षा राजा रामचंद्र जी लक्ष्मण कुँवर हड़मान करें।

मंत्रों का पाठ 108 बार ही क्यों?

मंत्रों का पाठ 108 बार ही क्यों?
आखिर क्या है राज 108 का

* जप करने वाले व्यक्ति को एक बार में 108 जाप पूरे करने चाहिए। इसके बाद सुमेरु से माला पलटकर पुनः जाप आरंभ करना चाहिए। 

* तारक मंत्र के लिए सर्वश्रेष्ठ माला तुलसी की मानी जाती है। 

* माला के 108 मनके हमारे हृदय में स्थित 108 नाड़ियों के प्रतीक स्वरूप हैं। 

* माला का 109वां मनका सुमेरु कहलाता है। 

* माला को अंगूठे और अनामिका से दबाकर रखना चाहिए और मध्यमा उंगली से एक मंत्र जपकर एक दाना हथेली के अंदर खींच लेना चाहिए। 

* माला के दाने कभी-कभी 54 भी होते हैं। ऐसे में माला फेर कर सुमेरु से पुनः लौटकर एक बार फिर एक माला अर्थात् 54 जप पूरे कर लेना चाहिए। 

* मानसिक रूप से पवित्र होने के बाद किसी भी सरल मुद्रा में बैठें जिससे कि वक्ष, गर्दन और सिर एक सीधी रेखा में रहे। 

* मंत्र जप पूरे करने के बाद अंत में माला का सुमेरु माथे से छुआकर माला को किसी पवित्र स्थान में रख देना चाहिए। 

* मंत्र जप में कर-माला का प्रयोग भी किया जाता है। 

* जिनके पास कोई माला नहीं है वह कर-माला से विधि पूर्वक जप करें। कर-माला से मंत्र जप करने से भी माला के बराबर जप का फल मिलता है।

देवी महाकाली

देवी महाकाली, काल भैरव और शनि देव ऐसे देवता हैं जिनकी उपासना के लिए बहुत कड़े परिश्रम, त्याग और ध्यान की आवश्यकता होती है। तीनों ही देव बहुत कड़क, क्रोधी और कड़ा दंड देने वाले माने जाते है। धर्म की रक्षा के लिए देवगणों की अपनी-अपनी विशेषताएं है। किसी भी अपराधी अथवा पापी को दंड देने के लिए कुछ कड़े नियमों का पालन जरूरी होता ही है। लेकिन ये तीनों देवगण अपने उपासकों, साधकों की मनाकामनाएं भी पूरी करते हैं। कार्यसिद्धि और कर्मसिद्धि का आशीर्वाद अपने साधकों को सदा देते रहते हैं।

भगवान भैरव की उपासना बहुत जल्दी फल देती है। इस कारण आजकल उनकी उपासना काफी लोकप्रिय हो रही है। इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि भैरव की उपासना क्रूर ग्रहों के प्रभाव को समाप्त करती है। शनि की पूजा बढ़ी है। अगर आप शनि या राहु के प्रभाव में हैं तो शनि मंदिरों में शनि की पूजा में हिदायत दी जाती है कि शनिवार और रविवार को काल भैरव के मंदिर में जाकर उनका दर्शन करें। मान्यता है कि 40 दिनों तक लगातार काल भैरव का दर्शन करने से मनोकामना पूरी होती है। इसे चालीसा कहते हैं। चन्द्रमास के 28 दिनों और 12 राशियां जोड़कर ये 40 बने हैं।

पूजा में शराब, मांस ठीक नहीं
हमारे यहां तीन तरह से भैरव की उपासना की प्रथा रही है। राजसिक, सात्त्विक और तामसिक। हमारे देश में वामपंथी तामसिक उपासना का प्रचलन हुआ, तब मांस और शराब का प्रयोग कुछ उपासक करने लगे। ऐसे उपासक विशेष रूप से श्मशान घाट में जाकर मांस और शराब से भैरव को खुश कर लाभ उठाने लगे।

लेकिन भैरव बाबा की उपासना में शराब, मांस की भेंट जैसा कोई विधान नहीं है। शराब, मांस आदि का प्रयोग राक्षस या असुर किया करते थे। किसी देवी-देवता के नाम के साथ ऐसी चीजों को जोड़ना उचित नहीं है। कुछ लोगों के कारण ही आम आदमी के मन में यह भावना जाग उठी कि काल भैरव बड़े क्रूर, मांसाहारी और शराब पीने वाले देवता हैं। किसी भी देवता के साथ ऐसी बातें जोड़ना पाप ही कहलाएगा।

काल भैरव

काल भैरव का नाम सुनते ही एक अजीब-सी भय मिश्रित अनुभूति होती है। एक हाथ में ब्रह्माजी का कटा हुआ सिर और अन्य तीनों हाथों में खप्पर, त्रिशूल और डमरू लिए भगवान शिव के इस रुद्र रूप से लोगों को डर भी लगता है, लेकिन ये बड़े ही दयालु-कृपालु और जन का कल्याण करने वाले हैं।

भैरव शब्द का अर्थ ही होता है भरण-पोषण करने वाला, जो भरण शब्द से बना है। काल भैरव की चर्चा रुद्रयामल तंत्र और जैन आगमों में भी विस्तारपूर्वक की गई है। शास्त्रों के अनुसार कलियुग में काल भैरव की उपासना शीघ्र फल देने वाली होती है। उनके दर्शन मात्र से शनि और राहु जैसे क्रूर ग्रहों का भी कुप्रभाव समाप्त हो जाता है। काल भैरव की सात्त्विक, राजसिक और तामसी तीनों विधियों में उपासना की जाती है।

इनकी पूजा में उड़द और उड़द से बनी वस्तुएं जैसे इमरती, दही बड़े आदि शामिल होते हैं। चमेली के फूल इन्हें विशेष प्रिय हैं। पहले भैरव को बकरे की बलि देने की प्रथा थी, जिस कारण मांस चढ़ाने की प्रथा चली आ रही थी, लेकिन अब परिवर्तन आ चुका है। अब बलि की प्रथा बंद हो गई है।

शराब इस लिए चढ़ाई जाती है क्योंकि मान्यता है कि भैरव को शराब चढ़ाकर बड़ी आसानी से मन मांगी मुराद हासिल की जा सकती है। कुछ लोग मानते हैं कि शराब ग्रहण कर भैरव अपने उपासक पर कुछ उसी अंदाज में मेहरबान हो जाते हैं जिस तरह आम आदमी को शराब पिलाकर अपेक्षाकृत अधिक लाभ उठाया जा सकता है। यह छोटी सोच है।

आजकल धन की चाह में स्वर्णाकर्षण भैरव की भी साधना की जा रही है। स्वर्णाकर्षण भैरव काल भैरव का सात्त्विक रूप हैं, जिनकी पूजा धन प्राप्ति के लिए की जाती है। यह हमेशा पाताल में रहते हैं, जैसे सोना धरती के गर्भ में होता है। इनका प्रसाद दूध और मेवा है। यहां मदिरा-मांस सख्त वर्जित है। भैरव रात्रि के देवता माने जाते हैं। इस कारण इनकी साधना का समय मध्य रात्रि यानी रात के 12 से 3 बजे के बीच का है। इनकी उपस्थिति का अनुभव गंध के माध्यम से होता है। शायद यही वजह है कि कुत्ता इनकी सवारी है। कुत्ते की गंध लेने की क्षमता जगजाहिर है।

होरा कार्याऽकार्य विवेचना

होरा कार्याऽकार्य विवेचना
रवि की होरा - संगीत वाद्यादि शिक्षा, स्वास्थ्य, विचार औषधसेवन, मोअर यान, सवारी, नौकरी, पशु खरीदी, हवन मंत्र, उपदेश, शिक्षा, दीक्षा, अस्त्र, शस्त्र धातु की खरीद व बेचान, वाद-विवाद, न्याय विषयक सलाह कार्य, नवीन कार्य पद ग्रहण तथा राज्य प्रशासनिक कार्य, सेना संचालन आदि कार्य शुभ।

सोम की होरा - कृषि खेती यंत्र खरीदी, बीज बोना, बगीचा, फल, वृक्ष लगाना, वस्त तथा रत्न धारण, औषध क्रय-विक्रय, भ्रमण-यात्रा, कला-कार्य, नवीन कार्य, अलंकार धारण, पशुपालन, स्त्रीभूषण क्रय-विक्रय करने हेतु शुभ।

मंगल की होरा - भेद लेना, ऋण देना, गवाही, चोरी, सेना-संग्राम, युद्ध नीति-रीति, वाद-विवाद निर्णय, साहस कृत्य आदि कार्य शुभ, पर मंगल का ऋण लेना अशुभ है।

बुध की होरा -ऋण लेना अहितकर तथा शिक्षा-दीक्षा विष्ज्ञयक कार्य, विद्यारंभ, अध्ययन चातुर्य कार्य, सेवावृत्ति, बही-खाता, हिसाब विचार, शिल्प काय्र निर्माण कार्य, नोटिस देना, गृह -प्रवेश, राजनीति विचार, शालागमन शुभ है।

गुरू की होरा- ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा, धर्म-न्याय विषयक कार्य, अनुष्ठान, साइंस, कानूनी व कला संकाय शिक्षा आरंभ, शांति पाठ, मांगलिक कार्य, नवीन पद ग्रहण, वस्त आभूषण धारण, यात्रा, अंक, अेक्टर, इंजन, मोटर, यान, औषध सेवन व निर्माण शुीा साथ ही शपथ ग्रहण शुभद।

शुक्र की होरा - गुप्त विचार गोष्ठी, प्रेम-व्यवहार, मित्रता, वस्त्र, मणिरत्न धारण तथा निर्माण, अंक, इत्र, नाटक, छाया-चित्र, संगीत आदि कार्य शुभ, भंडार भरना, खेती करना, हल प्रवाह, धन्यरोपण, आयु, ठान, शिक्षा शुभ।

शनि की होरा - गृह प्रवेश व निर्माण, नौकर चाकर रखना, धातुलोह, मशीनरी, कलपुर्जों के कार्य, गवाही, व्यापार विचार, वाद-विवाद, वाहन खरीदना, सेवा विषयक कार्य करना शुभ। परन्तु बीज बोना, कृषि खेती कार्य शुभ नहीं।

भगवान शिव

भगवान शिव 
महेशान्ना परो देवो , महिम्नो ना परा स्तुति |
अघोरान्ना परो मंत्रो , नास्ति तत्वं गुरूः परम ||
महेश ( भगवान शंकर ) से बड़ा कोई देवता नहीं है , शिव महिम्न स्तोत्र से बड़ा कोई स्तोत्र नहीं है | अघोर मंत्र से बड़ा कोई मंत्र नहीं है | गुरु से बड़ा कोई तत्व नहीं है |
जिसके घर में नियमित रूप से,भक्ति-भाव से, शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ होता हो उसके बारे में श्री पुष्पदंत ऋषि कहते हैं कि वो व्यक्ति तो रूद्र का साक्षात रूप हो जाता है, शिव कि विशेष कृपा का वो अधिकारी हो जाता है |

दुर्गा सप्तशती पाठ विधि

  दुर्गा सप्तशती दुर्गा सप्तशती पाठ विधि पूजनकर्ता स्नान करके, आसन शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके, शुद्ध आसन पर बैठ जाएँ। माथे पर अपनी पसंद क...