Saturday, 1 February 2025

माता महासरस्वती ( साबर मंत्र, तांत्रिक मंत्र और शास्त्रोक्त मंत्र)


 

माता महासरस्वती के विभिन्न मंत्र

( साबर मंत्र, तांत्रिक मंत्र और शास्त्रोक्त मंत्र)

सरस्वती शाबर मंत्र

1. नमो आदेश गुरु को आदेश सरस्वती माई।

ब्रम्हा संग कंंठ समाई।करें वाणी ह्रदय पर राज।

वाणी मोरी सत्य होय।विध्या बसै मुख

राज पर राज करूं।पल पल आठ पहर।

शब्द वाणी गुरु की। सत्य कृपा तोरी होय।

मोरी रक्षा करे। दुहाई दुहाई माई। शब्द सांचा

पिन्ड कान्चा फूरो मंत्र ईश्वरी वाचा

विधि---- किसी बुधवार या शुक्रवार से २१ दिन

तक २ माला जाप करें या ४१ दिन तक

१ माला करें तो मंत्र सिद्ध होता है

यह सर्व सिद्धि प्रदायक और ज्ञान विद्याप्राप्ति का

अद्भुत चमत्कारी मंत्र है।

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2...ॐ गुरु जी, सरस्वती माई, स्वर्ग लोक बैकुंठ से आई।

शिवजी बैठे अंगूठे मरोड़, देवी देवता आएं तैंतीस करोड़।

साधु सन्तों की जो रक्षा करें, दानव दैत्यों का भक्षण करे

शिव शक्ति बिन कोण थी।

जिव्हा ज्वाला माई बसै, सरस्वती माई बसै हमेशा।

भूली वाणी कंठ कराओ. गौरी नंदन गणेश महादेव पुत्र

गणेश आया। ऋद्धि सिद्धि बुद्धि लाया

अन्न धन से भरे भन्डार देही कुंची हिंगलाज की,

ज्ञान कुंची नवग्रहों की, कंठ कुंची गुरु गोरखनाथ की,

लागी कुन्ची खुले कपाट।अब देखो ब्रहमान्ड का पाट

अक्षय घर का भरे भन्डार।

अनन्त कोटि सिद्धों ने, लौंग सुपारी पान श्रीफल का होवे

प्रवान। आगच्छ आगच्छ गौरा पार्वती पुत्र गणेश।

ॐ सरस्वती विदमहे ब्रहमप्रियायै धीमहि तन्नो आद विध्याय प्रचोदयात्।

शून्य की गादी बैठ राजा भर्तृहरि नाथ ने आपो आप सुनाया।

श्री नाथ जी गुरु जी को आदेस।।

विधि ----- होली या दीपावली की रात्रि में १०८ बार जाप करें और गुड़ और घी मिलाकर हवन करें

कम से कम ५१ बार

तो फिर मंत्र सिद्ध होता हैं। फिर नित्य ११ बार पढ़े

यह स्वयं सिद्ध प्रयोग है

इससे माता सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है

स्मरण शक्ति बढ़ती है। किसी भी परीक्षा आदि की तैयारी में इससे बहुत लाभ होता है।

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3....ॐ गुरु जी ,वीणा की देवी सरस्वती,

जिव्हा बैठो अनूकूल।

उसकी विध्या हर लो जो हो मेरे प्रतिकूल।

मेरी वाणी तेरी वीणा ,हर शब्द में तेरा वासा

जिसके सिर रखूं में हाथ,उसको कभी न हो निराशा

हर मन्त्र में तेरी शक्ति, तेरे ज्ञान से मिले हैं मुक्ति

मेरी जिव्हा विराजो आप, सदा शुभ फरमाओ

विध्या ज्ञान के खोलो कपाट , मेरी जड़ता को मिटाओ।

ॐ ऐं वद वद वाग्वादिनी तुम आओ

ॐ नमो आदेश गुरु को

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4..ॐ नमो भगवति सरस्वती वाग्वादिनी ब्रह्माणी ब्रहमरूपिणी ज्ञानेश्वरी महामेधा बुद्धिवर्धिनी मम सर्व विद्याम् देही देही नमः।

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5..ॐ नमो भगवति सरस्वती परमेश्वरी वाग्वादिनी मम विद्याम देही । भगवति हंसवाहिनी ।

समारू का बुद्धि देही प्राज्ञा देही देही विध्याम देही देही

परमेश्वरी सरस्वती स्वाहा

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6..ॐ नमो सरस्वती विद्या नमो कंठ विराजो आप

भूला अक्षर कंठ करें ह्रदय विराजो

आप ॐ नमो स्व: ठ:ठ:ठ:

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7...ॐ नमो सरस्वती मैया कंठ विराजो आन

पूरन करो मेरा सारा काम

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नोट --- संख्या 1 से 7 तक के साबर मंत्रो की साधना के लिए होली या दीपावली की रात्रि में 108 जाप हवन से करे । या किसी शुभ मुहूर्त में 21 दिन का अनुष्ठान कर

नित्य एक या दो माला जाप करें अंतिम दिन एक माला

हवन से करे। नवरात्रि में नौ दिन तक नित्य एक माला जप से भी अनुष्ठान पूर्ण होता है।

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8...ऋग्वेदोक्त सरस्वती सूक्त श्लोक ---

अम्बितमे नदीतमे देवितमे सरस्वति ।

अप्रशस्ता इव स्मसि प्रशस्तिमम्ब नस्कृधि ॥ २७॥

इस श्लोक के जाप ज्ञान विद्या प्राप्त होती है

स्मृति वृद्धि होती है। निरंतर अभ्यास से दिव्य शक्तियों

की प्राप्ति होती है।

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त्रिपुरा सरस्वती मंत्र

9..ॐ ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं सौ: ऐं महात्रिपुरा सरस्वत्यै नमः

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुरा भारत्यै नमः

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सिद्ध सरस्वती मंत्र

10..ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह्रसौ: महसिद्धसरस्वत्यै नमः

11..ॐ ऐं ह्रीं भगवति सिद्धसरस्वती सर्व सिद्धिदायिनी

नमः

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चिन्तामणि सरस्वती मंत्र

12.. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं भगवती चिन्तामणि सरस्वती मम सर्वार्थ सिद्धिम् देहि देहि नमः

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सौभाग्य सरस्वती मंत्र

13....ॐ ऐं ह्रीं श्रीं सौभाग्य सरस्वती दुर्भाग्यनाशिनी

सर्व सुखप्रदायिनी नमः

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आदि सरस्वती मंत्र

14..ॐ ऐं ऐं ऐं आदि सरस्वत्यै ऐं ऐं ऐं नमः

15...ॐ ऐं ह्रीं क्लीं आदि सरस्वत्यै नमः।

16.. ॐ ब्रहमविद्यायै विदमहे पराविद्यायै धीमहि तन्नो

आद्यसरस्वती प्रचोदयात्।

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महानीला सरस्वती मंत्र

17....ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौ: क्लीं ह्रीं ऐं ब्लूं स्त्रीं

महानीला सरस्वती द्रां द्रीं क्लीं ब्लूं स:।

ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सौ: सौ: ह्रीं स्वाहा।।

यह सरस्वती का प्रिय मंत्र है और कहा जाता है कि जो इसे सिद्ध कर लेता है वह किसी भी विषय पर धाराप्रवाह बोल सकता हैऔर किसी भी विषय पर शास्त्रार्थ में पूर्ण सफलता प्राप्त कर सकता है।

यह मंत्र सवा लाख जाप से सिद्ध होता है

बालक जन्म ले तब स्नान कराकर दूर्वा से उसकी जीभ पर लिखने से वह विद्या और ज्ञान बुद्धि में प्रवीण होता है

लघु नीलसरस्वती मंत्र

18...ॐ ह्री ऐं हुं नील सरस्वती फट् स्वाहा

19...ॐ ब्लूं वें वद वद त्रीं हूं फट्।

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पारिजातेश्वरि सरस्वती मंत्र

20...ॐ ऐं ह्रीं श्रीं पारिजातेश्वरी सर्वकार्य साधिनी नमः

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वागीश्वरी सरस्वती मंत्र

21.. ॐ नमः पदमासने शब्द रूपे ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं वद वद वाग्वादिनी स्वाहा।

22.. ऐं ह्रीं श्रीं वाग्वादिनी सरस्वती देवी मम

जिव्हायाम् सर्व विद्याम देही दापय नमः

23...ॐ ह्रीं श्रीं ऐं वाग्वादिनी भगवति अर्हनमुख

निवासिनी सरस्वती ममास्यै प्रकाशंं कुरु कुरु स्वाहा

ऐं नमः

24. ॐ ह्री श्रीं ऐं वद वद वाग्वादिनी सरस्वती तुष्टि पुष्टि

तुभ्यं नमः

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चित्रेश्वरी सरस्वती मंत्र

25....ॐ ऐं ह्रीं चित्रघंटायै नमः

26......ॐ क्लीं वद वद चित्रेश्वरी ऐं नमः

इस स्वरूप की साधना से भविष्य ज्ञान होता है

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27.....कुलजा सरस्वती मंत्र

ॐ सें कुलजे ऐं सरस्वत्यै नमः

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28....कीर्तिश्वरी सरस्वती मंत्र

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं वद वद कीर्तिश्वरी स्वाहा।

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अंतरिक्ष सरस्वती मंत्र

29...ॐ ऐं ह्रीं अंतरिक्ष सरस्वत्यै नमः

30.. ओम ऐं ह्रीं श्रीं अंतरिक्ष सरस्वती परमरक्षिणी मम

सर्व विघ्न बाधा निवारय निवारय नमः

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..घट सरस्वती मंत्र

31...ॐ ह्रसफ्रैं ह्रसौ: ष्फीं ऐं ह्रीं श्रीं द्रां ह्रीं क्लीं ब्लूं स:

घटसरस्वति घटे वद वद तर तर रूद्राज्ञयां

ममाभिलाषम् कुरु कुरु स्वाहा।

यह तांत्रिक स्वरुप का मंत्र है। शत्रु विजय और

सर्व कार्य सिद्धि प्रद है

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महासरस्वती मंत्र

प्रार्थना

वन्दे श्री सरस्वती विद्या की स्वामिनी

विनय सुनो दयामयि , बुद्धि ज्ञानदायिनी।

दया करो दया करो,दे दो मुझे विद्या दान

तुम महान सत गुरु खान , कामाख्या का रंग लो मान।

32....मन्त्र-----

ॐ विद्या बुद्धिदायिनी सर्वकलास्वामिनी,

श्री श्रीं सरस्वती देव्यै नमः

ॐ ह्रीं ब्रीं श्रीं फट् स्वाहा

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वत्यै नमः

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33.....ॐ ह्री श्रां श्रूं श्र: हं सं थ:थ: ठ: ठ:

सरस्वती भगवती विद्या प्रसादं कुरु कुरु स्वाहा

34. ॐ हूं ऐं ऐं ह्रीं चामुण्डायै विच्चै नमः

35... ॐ हूं ऐं ऐंं ह्रीं चामुण्डायै स्वाहा

36.. ॐ ऐं क्लीं सरस्वत्यै विच्चै नमः

37.. ॐ ऐं ऐं ऐं महासरस्वत्यै ऐं ऐं ऐं नमः

38.. ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वत्यै नमः

39.. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं महासरस्वत्यै नमः

40 ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ल्रीँ (Lreem) श्रीं ह्रीं क्लीं नमः

41... ऐं ह्रीं भगवति श्वेताम्बरायै श्वेतपद्मासनायै नमः

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माता सरस्वती

42. ॐ ह्री भारत्यै नमः

43. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं भारत्यै नमः

44.. ॐ ऐं वाग्दैव्यै ऐं ॐ

45. ॐ ऐं ब्रहमाण्यै नमः

46 ॐ ऐं ह्रीं ब्राहम्यै नमः

47.. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह्रसौ सरस्वत्यै नम

48 ऐं स्मृत्यै बुद्धिवर्धिन्यै नमः

49 .ॐ ज्ञं ज्ञानेश्वर्यै नमः

50. ऐं ह्रीं श्रीं पुस्तक वासिन्यै नमः

51 .ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सरस्वत्यै नमः

52 ऐं ह्रीं श्रीं सरस्वत्यै बिद्याजनन्यै नमः

53 ॐ सं सरस्वत्यै नमः

54 ॐ भाषा रूपायै नमः

55 ॐ सर्वशास्त्र वासिन्यै नमः

56 ॐ स्वरायै नमः

57. ॐ अक्षरायै नमः

58. ॐ शब्द ब्रह्म रूपिण्यै नमः

59. ॐ सर्व कलामय्यै नमः

60 ॐ वीणापाण्यै नमः

61. ॐ भगवति महाश्रृत्यै नमः

62. ॐ ह्रीं वेदमात्रे नमः

63. ॐ ऐं ह्रीं जिव्हाग्रवासिन्यै नमः

64. ॐ गद्य पद्य वासिन्यै नमः

65 ॐ ग्रंथबीजस्वरूपायै नमः

66. .ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं ह्रसौ अष्टसरस्वत्यै नमः

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..67.ॐ महावाण्यै च विदमहे महासरस्वत्यै धीमहि तन्नो

भारती प्रचोदयात्

..68...ॐ ॐ अक्षररूपायै च विदमहे पुस्तकवासिन्यै च

धीमहि तन्नो महावाणी प्रचोदयात्

69...ॐ नादब्रहमरूपायै विदमहे वीणावादिन्यै धीमहि

तन्नोः सरस्वती प्रचोदयात्

70... ऐं वाग्देव्यै विदमहे क्लीं त्रिपुरायै धीमहि तन्नो

भारती प्रचोदयात्

71...ॐ महामेधायै विदमहे स्मृतिवर्धिन्यै धीमहि तन्नो

वाग्देवी प्रचोदयात्

72 .ॐ नाद ब्रहमरूपायै विदमहे अक्षररूपायै धीमहि

तन्नो वागीश्वरी प्रचोदयात्

73....ॐ स्मृतिवर्धिन्यै विदमहे बुद्धिदात्र्यै धीमहि तन्नो

महावाणी प्रचोदयात्

74.. ज्ञानप्रदायिन्यै विदमहे वीणावादिन्यै धीमहि।

तन्नोः सरस्वती प्रचोदयात्

75....ॐ नकारायै च विदमहे महाविद्यायै धीमहि तन्नो

भारती प्रचोदयात्

76...ॐ वेदगर्भायै विदमहे नादब्रहमरूपायै धीमहि तन्नो

अक्षरा प्रचोदयात्

77... देवीब्रहमाण्यै विदमहे महाशक्त्यै धीमहि तन्नो

देवी प्रचोदयात

78...ॐ नील सरस्वत्यै विदमहे शारदायै धीमहि तन्नो

शिवा प्रचोदयात्

79....ॐ नादमय्यै च विदमहे वीणाधारिण्यै च धीमहि

तन्नो वाणी प्रचोदयात्

80...ॐ वाग्देव्यै च विदमहे विरन्चिपत्न्यै च धीमहि तन्नो

महावाणी प्रचोदयात्

81..ॐ ऐं महावाण्यै विदमहे क्लीं महात्रिपुरायै धीमहि

तन्नो भारती प्रचोदयात्

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सरस्वती ध्यान

नमस्ते शारदादेवी सरस्वती मतिप्रदे।

वसतम् मम् जिव्हाग्रे सर्व विद्या प्रदाभव:

नमस्ते शारदादेवी वीणा पुस्तकधारिणी।

विद्यारंभ करिष्यामि प्रसन्न भव सर्वदा।

ॐ श्री सरस्वती शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम्।। कोटिचंद्रप्रभामुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम्।

वह्निशुद्धां शुकाधानां वीणापुस्तकमधारिणीम्।। रत्नसारेन्द्रनिर्माणनवभूषणभूषिताम्।

सुपूजितां सुरगणैब्रह्मविष्णुशिवादिभि:।।

वन्दे भक्तया वन्दिता च मुनीन्द्रमनुमानवै:।

या कुन्देन्दु तुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता

या वीणा वर दंड मंडितकरा या श्वेत पद्मासना

या ब्रहमाच्युतशंकर प्रभृतिर्भिदेव सदावन्दिता

सां मां पातु सरस्वती भगवती निशेषजाड्यापहा।।

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🌹🌹🌹सरस्वतीद्वादशनामावलिः 🌹🌹🌹

ॐ ऐं भारत्यै नमः ।

ॐ सरस्वत्यै नमः ।

ॐ शारदायै नमः ।

ॐ हंसवाहिन्यै नमः ।

ॐ जगतिख्यातायै नमः ।

ॐ वाणीश्वर्यै नमः ।

ॐ कौमार्यै नमः ।

ॐ ब्रह्मचारिण्यै नमः ।

ॐ बुद्धिदात्र्यै नमः ।

ॐ वरदायिन्यै नमः ।

ॐ क्षुद्रघण्टायै नमः ।

ॐ भुवनेश्वर्यै नमः । १२

इति सरस्वतीद्वादशनामावलिः समाप्ता ।

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🌷🌷🌷अष्टसरस्वती_साधना!! 🌷🌷🌷

विद्या बुद्धि प्राप्ति के लिए बच्चों को अवश्य कराएँ।

वस्त्रासन - सफेद दिशा - पूर्व

माला - स्फटिक दीपक - घी

दिनसमय - प्रातः काल - सोमवार, बुधवार

विधि - संलग्न चित्र में दिए गए यन्त्र को सफेद कपड़े पर अष्टगन्ध से बना लें। फिर कपड़े पर बने यन्त्र के मध्य जहां " ऐं " बीज लिखा है, उसके ऊपर गुरुधाम से प्राप्त " सरस्वती यन्त्र " रखें। इस यन्त्र का भी चित्र नीचे संलग्न है।

इसके बाद कपड़े पर बने यन्त्र के बाहर अष्ट दलों में एक - एक गोमती चक्र ( कुल 8 गोमती चक्र ) रख दें।

मध्य में रखे सरस्वती यन्त्र पर वाग्देवी सरस्वती का पूजन होगा। तथा बाहर आठों दलों में रखे आठ गोमती चक्रों पर अष्ट शक्तियों और अष्ट सरस्वती का पूजन किया जाएगा।

जहां पर "हकीक" लिखा गया है वहां पर गुरुधाम से दो हल्ट हकीक प्राप्त कर स्थापित करें। बाद में इसे विसर्जित करना है।

जहाँ पर " गणेश जी " लिखा है वहाँ पर गणेश जी का कोई यन्त्र, या विग्रह या सुपारी पर मौली लपेट कर रखें। और पूजन करें -

विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय

लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय।

नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय

गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥

भक्तार्तिनाशनपराय गणेश्वराय

सर्वेश्वराय शुभदाय सुरेश्वराय।

विद्याधराय विकटाय च वामनाय

भक्तप्रसन्नवरदाय नमो नमस्ते॥

नमस्ते ब्रह्मरूपायविष्णुरूपाय ते नमः

नमस्ते रुद्ररूपाय करिरूपाय ते नमः।

विश्वरूपस्वरूपाय नमस्ते ब्रह्मचारिणे

भक्तप्रियाय देवाय नमस्तुभ्यं विनायक॥

लम्बोदर नमस्तुभ्यं सततं मोदकप्रिय।

निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।

त्वां विघ्नशत्रुदलनेति च सुन्दरेति

भक्तप्रियेति सुखदेति फलप्रदेति।

विद्याप्रदेत्यघहरेति च ये स्तुवन्ति

तेभ्यो गणेश वरदो भव नित्यमेव॥

गणेशमंत्र:-ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो बुद्धिः प्रचोदयात्।

~भगवती सरस्वतीध्यान~

या कुन्देन्दु तुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता।

या वीणावर दण्डमण्डितकरा या श्वेत पद्मासना।।

या ब्रह्माच्युत शंकर प्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।

सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा।।

शुक्लां ब्रह्मविचारसार परमां आद्यां जगद्व्यापनीं।

वीणापुस्तक धारिणीं अभयदां जाड्यांधकारपहां।।

हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थितां।

वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदां।।

पहले माता सरस्वती के अष्ट शक्तियों का पूजन करें तथा प्रार्थना करें कि - हे माता मुझे मेधा , प्रज्ञा, प्रभा, विद्या, धी, धृति, तीव्र स्मृति, तीव्र कुशाग्र बुद्धि, इत्यादि शक्तियां प्रधान करें!

1. ॐ ऐं मेधायै नमः

2. ॐ ऐं प्रज्ञायै नमः

3. ॐ ऐं प्रभायै नमः

4. ॐ ऐं विद्यायै नमः

5. ॐ ऐं धीयै नमः

6. ॐ ऐं धृत्यै नमः

7. ॐ ऐं स्मृत्यै नमः

8. ॐ ऐं बुद्धयै नमः

बीच में रखे सरस्वती यन्त्र पर -

ॐ ऐं सर्व विद्येश्वर्यै नमः

ॐ ऐं सर्व वागेश्वर्यै नमः

ॐ ऐं सर्व ज्ञानेश्वर्यै नमः

फिर अष्ट सरस्वती का पूजन सफेद या पीला पुष्प, सफेद चंदन, सफेद चावल, अष्टगन्ध, इत्यादि से करें -

अष्ट सरस्वती के मन्त्र निम्न है, मन्त्र पढ़ते हुए पुष्प, अक्षत इत्यादि प्रत्येक गोमती चक्र या सफेद सुपारी पर चढ़ाते जाएं -

~अष्ट सरस्वती पूजन~ -

1. वाग्देवी सरस्वती मन्त्र - ॐ नमः पद्मासने शब्दरूपे ऐं ह्रीं क्लीं वद वद वाग्वादिनी स्वाहा।

2. चित्रेश्वरी सरस्वती मन्त्र - ह स क ल ह्रीं वद वद ऐं चित्रेश्वरी स्वाहा।

3. कुलजा सरस्वती - ऐं कुलजे ऐं सरस्वती स्वाहा।

4. कीर्तिश्वरी सरस्वती मन्त्र - ऐं ह्रीं श्रीं वद वद कीर्तिश्वरी स्वाहा।

5. अंतरिक्ष सरस्वती - ऐं ह्रीं अंतरिक्ष सरस्वती स्वाहा।

6. घट सरस्वती - ह् ष्फ्रें ह्सौः ष्फ्रीं ऐं ह्रीं श्रीं द्रां ह्रीं क्लीं ब्लूं सः घ्नीं घट सरस्वती घटे वद वद तर तर रुद्राज्ञया मम अभिलाषम् कुरू कुरू स्वाहा।

7. नील सरस्वती मन्त्र - ब्लूं वें वद वद त्रीं हूँ फट् ।

8. किणी सरस्वती मन्त्र - ऐं ह्रैं ह्रीं किणि किणि विच्चे।

फिर एक पुष्प , अक्षत बीच यन्त्र पर चढ़ाएं -

विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तं जनं कुरु।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।

मंत्र:-ॐ ऐंग् ह्रींग् क्लींग् महासरस्वत्यै नमः।

इसके बाद माता को धूप, दीप दिखाकर खीर का भोग लगाएं। फिर निम्न मंत्र का यथाशक्ति जप करें -

~ॐ ऐं सरस्वत्यै ऐं नमः।

ये मन्त्र सरस्वती का बीज मंत्र है। एकदम छोटा है, और अत्यंत तीव्र प्रभाव लिए हुए है। सरस्वती से सम्बंधित समस्त तंत्रों एवं मंत्रों का आधार है।

-- अगर बच्चे हैं तो 10 मिनट या 1, 5 या 11 माला जप करें।

-- अगर अनुष्ठान करना चाहें तो 51 या 101 माला नित्य वसन्त पंचमी से पूर्णिमा तक जप करें।

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।।वाग्वादिनी सावित्री प्रयोग --

मंत्र--ॐ ऐं त्रिपुरे देवि विद्महे ऐं कामेश्वरी धीमहि ऐं तन्नो प्रचोदयात्।

यह त्रिपुरसुदंरी गायत्री मंत्र है जिसको 'ऐं' बीज से भिन्न पाद मंत्र बनाने से यह सरस्वती प्रधान मंत्र हो गया है। यह मंत्र विधा बुद्धि देता है तभी सम्मोहन में भी कार्य करता है ।

सावित्री :--

मंत्र--ॐभगवति सावित्रि कं खं घं ड़ं लं तं थं दं धं नं रं क्लीं स्वाहा।

इस मंत्र के 24 लाख जप 3 वर्ष नें पूर्ण करे तो वाक सिद्धि प्राप्त होवे।

।।विलोम गायत्री साधना ।।

मंत्र--ॐ भू भुव: स्व: तयादचोप्र नः यो योधि हिमधी स्यवदेर्गोभ ण्यंरेर्वतुविस तत स्व: भुव: भू ॐ।

विलोम मंत्र अग्नि के समान कार्य करता है। मारण प्रयोगों मे भी कार्य करता है। ईष्ट मंत्र सिद्ध नही हो रहा हो तो लोम गायत्री मंत्र पश्चात पुन: विलोम गायत्री शीघ्र सिद्धि प्रदा होती। ( किसी भी मंत्र के आगे लोमगायत्री तथा मंत्र के बाद विलोम गायत्री मंत्र लगाकर इस तरह तीन मंत्रों का एक ही मंत्र बनेगा) जप करने से वह मंत्र शीघ्र कार्य करता है ।

गायत्री सावित्री समष्टि मंत्र साधना--

मंत्र--ॐ ह्रौं ह्रीं ऐं ईं तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् वेदगर्भें भगवती स्वाहा ।

यह मंत्र दैन्य ,दुरित का क्षय कर सौभाग्य में वृद्धि करता है। विधा एवं विवेक प्रदान करता है। त्रिपुर सुंदरी कका ध्यान करते हुए उसके त्रिनेत्रों का अलग अलग वर्ण का ध्यान करें । एक नेत्र शोणभद्र नदी के जल की तरह लाल , दुसरा नेत्र गंगाजल के समान धवल, तीसरा यमुना जल के समान श्याम वर्ण का है नित्य 1008बार जप करें।

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🌹🌹श्रीसरस्वत्यष्टोत्तरशतनामावलिः 🌹🌹🌹

चतुर्भुजां महादेवीं वाणीं सर्वाङ्गसुन्दरीम् ।

श्वेतमाल्याम्बरधरां श्वेतगन्धानुलेपनाम् ॥

प्रणवासनमारूढां तदर्थत्वेन निश्चिताम् ।

सितेन दर्पणाभेण वस्त्रेणोपरिभूषीताम् ।

शब्दब्रह्मात्मिकां देवीं शरच्चन्द्रनिभाननाम् ॥

अङ्कुशं चाक्षसूत्रं च पाशं वीणां च धारिणीम् ।

मुक्ताहारसमायुकां देवीं ध्यायेत् चतुर्भुजाम् ॥

ॐ वाग्देव्यै नमः ।

ॐ शारदायै नमः ।

ॐ मायायै नमः ।

ॐ नादरूपिण्यै नमः ।

ॐ यशस्विन्यै नमः ।

ॐ स्वाधीनवल्लभायै नमः ।

ॐ हाहाहूहूमुखस्तुत्यायै नमः ।

ॐ सर्वविद्याप्रदायिन्यै नमः ।

ॐ रञ्जिन्यै नमः ।

ॐ स्वस्तिकासनायै नमः । १०

ॐ अज्ञानध्वान्तचन्द्रिकायै नमः ।

ॐ अधिविद्यादायिन्यै नमः ।

ॐ कम्बुकण्ठ्यै नमः ।

ॐ वीणागानप्रियायै नमः ।

ॐ शरणागतवत्सलायै नमः ।

ॐ श्रीसरस्वत्यै नमः ।

ॐ नीलकुन्दलायै नमः ।

ॐ वाण्यै नमः ।

ॐ सर्वपूज्यायै नमः ।

ॐ कृतकृत्यायै नमः । २०

ॐ तत्त्वमय्यै नमः ।

ॐ नारदादिमुनिस्तुतायै नमः ।

ॐ राकेन्दुवदनायै नमः ।

ॐ यन्त्रात्मिकायै नमः ।

ॐ नलिनहस्तायै नमः ।

ॐ प्रियवादिन्यै नमः ।

ॐ जिह्वासिद्ध्यै नमः ।

ॐ हंसवाहिन्यै नमः ।

ॐ भक्तमनोहरायै नमः ।

ॐ दुर्गायै नमः । ३०

ॐ कल्याण्यै नमः ।

ॐ चतुर्मुखप्रियायै नमः ।

ॐ ब्राह्म्यै नमः ।

ॐ भारत्यै नमः ।

ॐ अक्षरात्मिकायै नमः ।

ॐ अज्ञानध्वान्तदीपिकायै नमः ।

ॐ बालारूपिण्यै नमः ।

ॐ देव्यै नमः ।

ॐ लीलाशुकप्रियायै नमः ।

ॐ दुकूलवसनधारिण्यै नमः । ४०

ॐ क्षीराब्धितनयायै नमः ।

ॐ मत्तमातङ्गगामिन्यै नमः ।

ॐ वीणागानविलोलुपायै नमः ।

ॐ पद्महस्तायै नमः ।

ॐ रणत्किङ्किणिमेखलायै नमः ।

ॐ त्रिलोचनायै नमः ।

ॐ अङ्कुशाक्षसूत्रधारिण्यै नमः ।

ॐ मुक्ताहारविभूषितायै नमः ।

ॐ मुक्तामण्यङ्कितचारुनासायै नमः ।

ॐ रत्नवलयभूषितायै नमः । ५०

ॐ कोटिसूर्यप्रकाशिन्यै नमः ।

ॐ विधिमानसहंसिकायै नमः ।

ॐ साधुरूपिण्यै नमः ।

ॐ सर्वशास्त्रार्थवादिन्यै नमः ।

ॐ सहस्रदलमध्यस्थायै नमः ।

ॐ सर्वतोमुख्यै नमः ।

ॐ सर्वचैतन्यरूपिण्यै नमः ।

ॐ सत्यज्ञानप्रबोधिन्यै नमः ।

ॐ विप्रवाक्स्वरूपिण्यै नमः ।

ॐ वासवार्चितायै नमः । ६०

ॐ शुभ्रवस्त्रोत्तरीयायै नमः ।

ॐ विरिञ्चिपत्न्यै नमः ।

ॐ तुषारकिरणाभायै नमः ।

ॐ भावाभावविवर्जितायै नमः ।

ॐ वदनाम्बुजैकनिलयायै नमः ।

ॐ मुक्तिरूपिण्यै नमः ।

ॐ गजारूढायै नमः ।

ॐ वेदनुताय नमः ।

ॐ सर्वलोकसुपूजितायै नमः ।

ॐ भाषारूपायै नमः । ७०

ॐ भक्तिदायिन्यै नमः ।

ॐ मीनलोचनायै नमः ।

ॐ सर्वशक्तिसमन्वितायै नमः ।

ॐ अतिमृदुलपदाम्बुजायै नमः ।

ॐ विद्याधर्यै नमः ।

ॐ जगन्मोहिन्यै नमः ।

ॐ रमायै नमः ।

ॐ हरिप्रियायै नमः ।

ॐ विमलायै नमः ।

ॐ पुस्तकभृते नमः । ८०

ॐ नारायण्यै नमः ।

ॐ मङ्गलप्रदायै नमः ।

ॐ अश्वलक्ष्म्यै नमः ।

ॐ धान्यलक्ष्म्यै नमः ।

ॐ राजलक्ष्म्यै नमः ।

ॐ गजलक्ष्म्यै नमः ।

ॐ मोक्षलक्ष्म्यै नमः ।

ॐ सन्तानलक्ष्म्यै नमः ।

ॐ जयलक्ष्म्यै नमः ।

ॐ खड्गलक्ष्म्यै नमः । ९०

ॐ कारुण्यलक्ष्म्यै नमः ।

ॐ सौम्यलक्ष्म्यै नमः ।

ॐ भद्रकाल्यै नमः ।

ॐ चण्डिकायै नमः ।

ॐ शाम्भव्यै नमः ।

ॐ सिंहवाहिन्यै नमः ।

ॐ सुभद्रायै नमः ।

ॐ महिषासुरमर्दिन्यै नमः ।

ॐ अष्टैश्वर्यप्रदायिन्यै नमः ।

ॐ हिमवत्पुत्रिकायै नमः । १००

ॐ महाराज्ञै नमः ।

ॐ त्रिपुरसुन्दर्यै नमः ।

ॐ पाशाङ्कुशधारिण्यै नमः ।

ॐ श्वेतपद्मासनायै नमः ।

ॐ चाम्पेयकुसुमप्रियायै नमः ।

ॐ वनदुर्गायै नमः ।

ॐ राजराजेश्वर्यै नमः ।

ॐ श्रीदुर्गालक्ष्मीसहित-

महासरस्वत्यै नमः । १०८

इति श्रीसरस्वत्यष्टोत्तरनामावलिः समाप्ता

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🌹🌹🌹🌹देवीस्तोत्रम् 🌹🌹🌹🌹🌹🌹

श्रीसरस्वत्यै नमः ।

श्री शारदे (सरस्वति)! नमस्तुभ्यं जगद्भवनदीपिके ।

विद्वज्जनमुखाम्भोजभृङ्गिके! मे मुखे वस ॥ १॥

वागीश्वरि! नमस्तुभ्यं नमस्ते हंसगामिनि! ।

नमस्तुभ्यं जगन्मातर्जगत्कर्त्रिं! नमोऽस्तु ते ॥ २॥

शक्तिरूपे! नमस्तुभ्यं कवीश्वरि! नमोऽस्तु ते ।

नमस्तुभ्यं भगवति! सरस्वति! नमोऽस्तुते ॥ ३॥

जगन्मुख्ये नमस्तुभ्यं वरदायिनि! ते नमः ।

नमोऽस्तु तेऽम्बिकादेवि! जगत्पावनि! ते नमः ॥ ४॥

शुक्लाम्बरे! नमस्तुभ्यं ज्ञानदायिनि! ते नमः ।

ब्रह्मरूपे! नमस्तुभ्यं ब्रह्मपुत्रि! नमोऽस्तु ते ॥ ५॥

विद्वन्मातर्नमस्तुभ्यं वीणाधारिणि! ते नमः ।

सुरेश्वरि! नमस्तुभ्यं नमस्ते सुरवन्दिते! ॥ ६॥

भाषामयि! नमस्तुभ्यं शुकधारिणि! ते नमः ।

पङ्कजाक्षि! नमस्तुभ्यं मालाधारिणि! ते नमः ॥ ७॥

पद्मारूढे! नमस्तुभ्यं पद्मधारिणि! ते नमः ।

शुक्लरूपे नमस्तुभ्यं नमञ्जिपुरसुन्दरि ॥ ८॥

श्री(धी)दायिनि! नमस्तुभ्यं ज्ञानरूपे! नमोऽस्तुते ।

सुरार्चिते! नमस्तुभ्यं भुवनेश्वरि! ते नमः ॥ ९॥

कृपावति! नमस्तुभ्यं यशोदायिनि! ते नमः ।

सुखप्रदे! नमस्तुभ्यं नमः सौभाग्यवर्द्धिनि! ॥ १०॥

विश्वेश्वरि! नमस्तुभ्यं नमस्त्रैलोक्यधारिणि ।

जगत्पूज्ये! नमस्तुभ्यं विद्यां देहि (विद्यादेवी) महामहे ॥ ११॥

श्रीर्देवते! नमस्तुभ्यं जगदम्बे! नमोऽस्तुते ।

महादेवि! नमस्तुभ्यं पुस्तकधारिणि! ते नमः ॥ १२॥

कामप्रदे नमस्तुभ्यं श्रेयोमाङ्गल्यदायिनि ।

सृष्टिकर्त्रिं! स्तुभ्यं सृष्टिधारिणि! नमः ॥ १३॥

जगद्धिते! नमस्तुभ्यं नमः संहारकारिणि! ।

विद्यामयि! नमस्तुभ्यं विद्यां देहि दयावति! ॥ १४॥

अथ लक्ष्मीनामानि -

महालक्ष्मि नमस्तुभ्यं पीतवस्त्रे नमोऽस्तु ते ।

पद्मालये! नमस्तुभ्यं नमः पद्मविलोचने ॥ १५॥

सुवर्णाङ्गि नमस्तुभ्यं पद्महस्ते नमोऽस्तु ते ।

नमस्तुभ्यं गजारूढे विश्वमात्रे नमोऽस्तु ते ॥ १६॥

शाकम्भरि नमस्तुभ्यं कामधात्रि नमोऽस्तु ते ।

क्षीराब्धिजे नमस्तुभ्यं शशिस्वस्रे नमोऽस्तु ते ॥ १७॥

हरिप्रिये! नमस्तुभ्यं वरदायिनि ते नमः ।

सिन्दूराभे नमस्तुभ्यं नमः सन्मतिदायिनि ॥ १८॥

ललिते! च नमस्तुभ्यं वसुदायिनि ते नमः ।

शिवप्रदे नमस्तुभ्यं समृद्धिं देहि मे रमे! ॥ १९॥

अथ योगिनीरूपाणि -

गणेश्वरि! नमस्तुभ्यं दिव्ययोगिनि ते! नमः ।

विश्वरूपे! नमस्तुभ्यं महायोगिनि! ते नभः ॥ २०॥

भयङ्करि! नमस्तुभ्यं सिद्धयोगिनि! ते नमः ।

चन्द्रकान्ते! नमस्तुभ्यं चक्रेश्वरि! नमोऽस्तु ते ॥ २१॥

पद्मावति! नमस्तुभ्यं रुद्रवाहिनि! ते नमः ।

परमेश्वरि! नमस्तुभ्यं कुण्डलिनि! नमोऽस्तु ते ॥ २२॥

कलावति! नभस्तुभ्यं मन्त्रवाहिनि! ते नमः ।

मङ्गले! च नमस्तुभ्यं श्रीजयन्ति! नमोऽस्तु ते ॥ २३॥

अथान्यनामानि -

चण्डिके! च नमस्तुभ्यं दुर्गे! देवि! नमोऽस्तु ते ।

स्वाहारूपे नमस्तुभ्यं स्वधारूपे नमोऽस्तु ते ॥ २४॥

प्रत्यङ्गिरे नमस्तुभ्यं गोत्रदेवि नमोऽस्तु ते ।

शिवे! कृष्णे नमस्तुभ्यं नमः कैटभनाशिनि ॥ २५॥

कात्यायनि! नमस्तुभ्यं नमो धूम्रविनाशिनि!

नारायणि! नमस्तुभ्यं नमो महिषखण्डिनि! ॥ २६॥

सहस्राक्षि! नमस्तुभ्यं नमश्चण्डविनाशिनि!

तपस्विनि! नमस्तुभ्यं नमो मुण्डविनाशिनि! ॥ २७॥

अग्निज्वाले! नमस्तुभ्यं नमो निशुम्भखण्डिनि!

भद्रकालि! नमस्तुभ्यं मधुमर्दिनि! ते नमः ॥ २८॥

महाबले! नमस्तुभ्यं शुम्भखण्डिनि! ते नमः ।

श्रुतिमयि! नमस्तुभ्यं रक्तबीजवधे! नमः ॥ २९॥

धृतिमयि! नमस्तुभ्यं दैत्यमर्दिनि! ते नमः ।

दिवागते! नमस्तुभ्यं ब्रह्मदायिनि! ते नभः ॥ ३०॥

माये! क्रिये! नमस्तुभ्यं श्रीमालिनि! नमोऽस्तु ते ।

मधुमति! नमस्तुभ्यं कले! कालि! नमोऽस्तु ते ॥ ३१॥

श्रीमातङ्गि नमस्तुभ्यं विजये! च नमोऽस्तु ते ।

जयदे! च नमस्तुभ्यं श्रीशाम्भवि! नमोऽस्तु ते ॥ ३२॥

त्रिनयने नमस्तुभ्यं नमः शङ्करवल्लभे! ।

वाग्वादिनि नमस्तुभ्यं श्रीभैरवि! नमोऽस्तु ते ॥ ३३॥

मन्त्रमयि! नमस्तुभ्यं क्षेमङ्करि! नमोऽस्तु ते ।

त्रिपुरे! च नमस्तुभ्यं तारे शबरि! ते नमः ॥ ३४॥

हरसिद्धे! नमस्तुभ्यं ब्रह्मवादिनि! ते नमः ।

अङ्गे! वङ्गे! नमस्तुभ्यं कालिके! च नमोऽस्तु ते ॥ ३५॥

उमे! नन्दे! नमस्तुभ्यं यमघण्टे! नमोऽस्तु ते ।

श्रीकौमारि! नमस्तुभ्यं वातकारिणि! ते नमः ॥ ३६॥

दीर्घदंष्ट्रे! नमस्तुभ्यं महादंष्ट्रे! नमोऽस्तु ते ।

प्रभे! रौद्रि! नमस्तुभ्यं सुप्रभे! ते नमो नमः ॥ ३७॥

महाक्षमे! नमस्तुभ्यं क्षमाकारि! नमोऽस्तु ते ।

सुतारिके! नमस्तुभ्यं भद्रकालि! नमोऽस्तु ते ॥ ३८॥

चन्द्रावति नमस्तुभ्यं वनदेवि नमोऽस्तु ते ।

नारसिंहि! नमस्तुभ्यं महाविद्ये! नमोऽस्तु ते ॥ ३९॥

अग्निहोत्रि! नमस्तुभ्यं सूर्यपुत्रि! नमोऽस्तु ते ।

सुशीतले! नमस्तुभ्यं ज्वालामुखि! नमोऽस्तु ते ॥ ४०॥

सुमङ्गले! नमस्तुभ्यं वैश्वानरि! नमोऽस्तु ते

निरञ्जने! नमस्तुभ्यं श्रीवैष्णवि! नमोऽस्तु ते ॥ ४१॥

श्रीवाराहि! नमस्तुभ्यं तोतलायै नमो नमः ।

कुरुकुल्ले! नमस्तुभ्यं भैरवपत्नि! ते नमः ॥ ४२॥

अथागमोक्तनामानि स्वयमूह्यानि पण्डितैः ।

कथ्यन्ते कानि नामानि प्रसिद्धानि तथा न वा ॥ ४३॥

हेमकान्ते! नमस्तुभ्यं हिङ्गुलायै नमो नमः ।

यज्ञविद्ये नमस्तुभ्यं वेदमातर्नमोऽस्तु ते ॥ ४४॥

श्रीमृडानि नमस्तुभ्यं विन्ध्यवासिनि ते नमः ।

पृथ्वीज्योत्सने! नमस्तुभ्यं नमो नारदसेविते! ॥ ४५॥

प्रह्लादिनि! नमस्तुभ्यमपर्णायै नमो नमः ।

जैनेश्वरि! नमस्तुभ्यं सिंहगामिनि! ते नमः ॥ ४६॥

बौद्धमातर्नमस्तुभ्यं जिनमातर्नमोऽस्तु ते ।

ॐ कारे च नमस्तुभ्यं राज्यलक्ष्भि! नमोऽस्तु ते ॥ ४७॥

सुधात्मिके! नमस्तुभ्यं राजनीते! नमोऽस्तु ते ।

मन्दाकिनि! नमस्तुभ्यं गोदावरि! नमोऽस्तु ते ॥ ४८॥

पताकिनि! नमस्तुभ्यं भगमालिनि! ते नमः ।

वज्रायुधे! नमस्तुभ्यं परापरकले! नमः ॥ ४९॥

वज्रहस्ते! नमस्तुभ्यं मोक्षदायिनि! ते नमः ।

शतबाहु नमस्तुभ्यं कुलवासिनि ते नमः ॥ ५०॥

श्रीत्रिशक्ते नमस्तुभ्यं नमश्चण्डपराक्रमे ।

महाभुजे! नमस्तुभ्यं नमः षट्वक्रभेदिनि! ॥ ५१॥

नभःश्यामे! नमस्तुभ्यं षट्चक्रक्रमवासिनि! ।

वसुप्रिये! नमस्तुभ्यं रक्तादिनि! नमो नमः ॥ ५२॥

महामुद्रे! नमस्तुभ्यमेकचक्षुर्नमोऽस्तु ते ।

पुष्पबाणे! नमस्तुभ्यं खगगामिनि ते नमः ॥ ५३॥

मधुमत्ते! नमस्तुभ्यं बहुवर्णे! नमो नमः ।

मदोद्धते! नमस्तुभ्यं इन्द्रचापिनि! ते नमः ॥ ५४॥

चक्रहस्ते! नमस्तुभ्यं श्रीखड्गिनि! नमो नभः ।

शक्तिहस्ते! नमस्तुभ्यं नमस्त्रिशूलधारिणि! ॥ ५५॥

वसुधारे! नमस्तुभ्यं नमो मयूरवाहिनि! ।

जालन्धरे! नमस्तुभ्यं सुबाणायै! नमो नमः ॥ ५६॥

अनन्तर्वीर्ये! नमस्तुभ्यं वरायुधधरे! नमः ।

वृषप्रिये! नमस्तुभ्यं शत्रुनाशिनि! ते नमः ॥ ५७॥

वेदशक्ते! नमस्तुभ्यं वरधारिणि! ते नमः ।

वृषारूढं! नमस्तुभ्यं वरदायै! नमो नमः ॥ ५८॥

शिवदूति! नमस्तुभ्यं नमो धर्मपरायणे! ।

घनध्वनि! नमस्तुभ्यं षट्कोणायै! नमो नमः ॥ ५९॥

जगद्गर्भे! नमस्तुभ्यं त्रिकोणायै! नमोनमः ।

निराधारे! नमस्तुभ्यं सत्यमार्गप्रबोधिनि! ॥ ६०॥

निराश्रये! नमस्तुभ्यं छत्रच्छायाकृतालये! ।

निराकारे! नमस्तुभ्यं वह्निकुण्डकृतालये! ॥ ६१॥

प्रभावति! नमस्तुभ्यं रोगनाशिनि! ते नमः ।

तपोनिष्टे! नमस्तुभ्यं सिद्धिदायिनि! ते नमः ॥ ६२॥

त्रिसन्ध्यिके! नमस्तुभ्यं दृढबन्धविमोक्षणि! ।

तपोयुक्ते! नमस्तुभ्यं काराबन्धविमोचनि! ॥ ६३॥

मेघमाले! नमस्तुभ्यं भ्रमनाशिनि! ते नमः ।

ह्रीङ्क्लीङ्कारि! नमस्तुभ्यं सामगायनि! ते नमः ॥ ६४॥

ॐ ऐंरूपे! नमस्तुभ्यं बीजरूपं! नमोऽस्तु ते ।

नृपवश्ये! नमस्तुभ्यं शस्यवर्द्धिनि! ते नमः ॥ ६५॥

नृपसेव्ये! नमस्तुभ्यं धनवर्द्धिनि! ते नमः ।

नृपमान्ये! नमस्तुभ्यं लोकवश्यविधायिनि! ॥ ६६॥

नमः सर्वाक्षरमयि! वर्णमालिनि! ते नमः ।

श्रीब्रह्माणि! नमस्तुभ्यं चतुराश्रमवासिनि! ॥ ६७॥

शास्त्रमयि! नमस्तुभ्यं वरशस्त्रास्त्रधारिणि! ।

तुष्टिदे! च नमस्तुभ्यं पापनाशिनि! ते नमः ॥ ६८॥

पुष्टिदे! च नमस्तुभ्यमार्तिनाशिनि! ते नमः ।

धर्मदे! च नमस्तुभ्यं गायत्रीमयि! ते नमः ॥ ६९॥

कविप्रिये! नमस्तुभ्यं चतुर्वर्गफलप्रदे! ।

जगज्जीवे! नमस्तुभ्यं त्रिवर्गफलदायिनि! ॥ ७०॥

जगद्बीजे! नमस्तुभ्यमष्टसिद्धिप्रदे! नमः ।

मातङ्गिनि! नमस्तुभ्यं नमो वेदाङ्गधारिणि! ॥ ७१॥

हंसगते! नमस्तुभ्यं परमार्थप्रबोधिनि!

चतुर्बाहु! नमस्तुभ्यं शैलवासिनि! ते नमः ॥ ७२॥

चतुर्मुखि! नमस्तुभ्यं द्युतिवर्द्धिनि! ते नमः ।

चतुःसमुद्रशयिनि! तुभ्यं देवि! नमो नमः ॥ ७३॥

कविशक्ते! नमस्तुभ्यं कलिनाशिनि! ते नमः ।

कवित्वदे! नमस्तुभ्यं मत्तमातङ्गगामिनि! ॥ ७४॥

॥ इति देवीस्तोत्रम् समाप्तम् ॥

 

 

Wednesday, 22 January 2025

श्री कालभैरवाष्टमी विशेष साधना क्रम

 


 श्री कालभैरवाष्टमी विशेष साधना क्रम
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दसों दिशाओं से रक्षा करते हैं श्री #भैरव।
श्री भैरव के अनेक रूप हैं जिसमें प्रमुख रूप से #बटुक भैरव, #महाकाल भैरव तथा स्वर्णाकर्षण भैरव प्रमुख हैं। जिस भैरव की पूजा करें उसी रूप के नाम का उच्चारण होना चाहिए। सभी भैरवों में बटुक भैरव उपासना का अधिक प्रचलन है। तांत्रिक ग्रंथों में अष्ट भैरव के नामों की प्रसिद्धि है। वे इस प्रकार हैं-
1. असितांग भैरव,
2. चंड भैरव,
3. रूरू भैरव,
4. क्रोध भैरव,
5. उन्मत्त भैरव,
6. कपाल भैरव,
7. भीषण भैरव
8. संहार भैरव।
क्षेत्रपाल व दण्डपाणि के नाम से भी इन्हें जाना जाता है। श्री भैरव से काल भी भयभीत रहता है अत: उनका एक रूप'काल भैरव'के नाम से विख्यात हैं।
दुष्टों का दमन करने के कारण इन्हें"आमर्दक"कहा गया है।
शिवजी ने भैरव को काशी के कोतवाल पद पर प्रतिष्ठित किया है।
जिन व्यक्तियों की जन्म कुंडली में शनि, मंगल, राहु आदि पाप ग्रह अशुभ फलदायक हों, नीचगत अथवा शत्रु क्षेत्रीय हों। शनि की साढ़े-साती या ढैय्या से पीडित हों, तो वे व्यक्ति भैरव जयंती अथवा किसी माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी, रविवार, मंगलवार या बुधवार प्रारम्भ कर बटुक भैरव मूल मंत्र की एक माला (108 बार) का जाप प्रतिदिन रूद्राक्ष की माला से 41 दिन तक करें, अवश्य ही शुभ फलों की प्राप्ति होगी।
भगवान भैरव की महिमा अनेक शास्त्रों में मिलती है। भैरव जहाँ शिव के गण के रूप में जाने जाते हैं, वहीं वे दुर्गा के अनुचारी माने गए हैं। भैरव की सवारी कुत्ता है। चमेली फूल प्रिय होने के कारण उपासना में इसका विशेष महत्व है। साथ ही भैरव रात्रि के देवता माने जाते हैं और इनकी आराधना का खास समय भी मध्य रात्रि में 12 से 3 बजे का माना जाता है।
भैरव के नाम जप मात्र से मनुष्य को कई रोगों से मुक्ति मिलती है। वे संतान को लंबी उम्र प्रदान करते है। अगर आप भूत-प्रेत बाधा, तांत्रिक क्रियाओं से परेशान है, तो आप शनिवार या मंगलवार कभी भी अपने घर में भैरव पाठ का वाचन कराने से समस्त कष्टों और परेशानियों से मुक्त हो सकते हैं।
जन्मकुंडली में अगर आप मंगल ग्रह के दोषों से परेशान हैं तो भैरव की पूजा करके पत्रिका के दोषों का निवारण आसानी से कर सकते है। राहु केतु के उपायों के लिए भी इनका पूजन करना अच्छा माना जाता है। भैरव की पूजा में काली उड़द और उड़द से बने मिष्ठान्न इमरती, दही बड़े, दूध और मेवा का भोग लगानालाभकारी है इससे भैरव प्रसन्न होते है।
भैरव की पूजा-अर्चना करने से परिवार में सुख-शांति, समृद्धि के साथ-साथ स्वास्थ्य की रक्षा भी होती है। तंत्र के ये जाने-माने महान देवता काशी के कोतवाल माने जाते हैं। भैरव तंत्रोक्त, बटुक भैरव कवच, काल भैरव स्तोत्र, बटुक भैरव ब्रह्म कवच आदि का नियमित पाठ करने से अपनी अनेक समस्याओं का निदान कर सकते हैं। भैरव कवच से असामायिक मृत्यु से बचा जा सकता है।
खास तौर पर कालभैरव अष्टमी पर भैरव के दर्शन करने से आपको अशुभ कर्मों से मुक्ति मिल सकती है। भारत भर में कई परिवारों में कुलदेवता के रूप में भैरव की पूजा करने का विधान हैं। वैसे तो आम आदमी, शनि, कालिका माँ और काल भैरव का नाम सुनते ही घबराने लगते हैं, लेकिन सच्चे दिल से की गई इनकी आराधना आपके जीवन के रूप-रंग को बदल सकती है। ये सभी देवता आपको घबराने के लिए नहीं बल्कि आपको सुखी जीवन देने के लिए तत्पर रहते है बशर्ते आप सही रास्ते पर चलते रहे।
भैरव अपने भक्तों की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण करके उनके कर्म सिद्धि को अपने आशीर्वाद से नवाजते है। भैरव उपासना जल्दी फल देने के साथ-साथ क्रूर ग्रहों के प्रभाव को समाप्त खत्म कर देती है। शनि या राहु से पीडि़त व्यक्ति अगर शनिवार और रविवार को काल भैरव के मंदिर में जाकर उनका दर्शन करें। तो उसके सारे कार्य सकुशल संपन्न हो जाते है।
एक बार भगवान शिव के क्रोधित होने पर काल भैरव की उत्पत्ति हुई। काल भैरव ने ब्रह्माजी के उस मस्तक को अपने नाखून से काट दिया जिससे उन्होंने असमर्थता जताई। तब ब्रह्म हत्या को लेकर हुई आकाशवाणी के तहत ही भगवान काल भैरव काशी में स्थापित हो गए थे।
मध्यप्रदेश के उज्जैन में भी कालभैरव के ऐतिहासिक मंदिर है, जो बहुत महत्व का है। पुरानी धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान कालभैरव को यह वरदान है कि भगवान शिव की पूजा से पहले उनकी पूजा होगी। इसलिए उज्जैन दर्शन के समय कालभैरव के मंदिर जाना अनिवार्य है। तभी महाकाल की पूजा का लाभ आपको मिल पाता है।

श्री बटुक भैरव माला मन्त्रंम्

 


श्री बटुक भैरव माला मन्त्रंम्

विनियोग
ॐ अस्य श्री बटुक भैरव माला मन्त्रस्य बृहदारण्यक ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्री बटुक भैरवो देवता, ह्रीं बीजं, बटुकाय,शक्तिः, आपदुद्धारणाय कीलकं, ममाभिष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः

माला मन्त्र

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ह्रीं ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय
 कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं द्रां द्रीं क्लीं क्लूं सः
हौं जूं सः ह्रां ह्रीं ह्रूं भ्रां भ्रीं भ्रुं डमल वरयूं हौं हौं
महा कालाय महा भैरवाय मां रक्ष रक्ष,
मम पुत्रान् रक्ष रक्ष, मम भ्रातृन् रक्ष रक्ष,
मम शिष्यान् रक्ष रक्ष, साधकान् रक्ष रक्ष, मम परिवारान् रक्ष रक्ष,
ममोपरि दुष्ट दृष्टि दुष्ट बुद्धि दुष्ट प्रयोगान्
कारकान् दुष्ट प्रयोगान् कुर्वति कारयति करिष्यति तां हन हन,
उच्चाटय उच्चाटय,स्तम्भय स्तम्भय,
 मारय मारय, मथ मथ,धुन धुन
छेदय छेदय, छिन्धि छिन्धि,
हन हन, फ्रें फ्रें फ्रें, खें खें खें, ह्रीं ह्रीं ह्रीं,
ह्रूं ह्रूं ह्रूं, दुं दुं दुं, दुष्टं दारय दारय,
दारिद्रं हन हन, पापं मथ मथ,
आरोग्यं कुरु कुरु, पर बलानि क्षोभय क्षोभय,
 क्षौं क्षौं क्षौं ह्रीं बटुकाय, केलि रुद्राय नमः |    

श्रीनृसिंहमाला मंत्र

 

 


श्रीगणेशाय नमः । अस्य श्रीनृसिंहमाला मंत्रस्य नारदभगवान् ऋषिः । अनुष्टुभ छन्दः ॥

श्री नृसिंहदेवता । आं बीजम् । लं शवित्तः । मेरुकीलकम् । श्रीनृसिंहप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।

ॐ नमो नृसिंहाय ज्वालामुखाग्निनेत्राय शंखचक्रगदाप्रहस्ताय ।

योगरुपाय हिरण्यकशिपुच्छेदनान्त्रमालाविभूषणाय हन हन दह दह वच वच रक्ष वो नृसिंहाय पूर्वदिशां बंध बंध रौद्ररभसिंहाय दक्षिणदिशां बंध बंध पावननृसिंहाय पश्चिमदिशां बंध बंध दारुणनृसिंहाय उत्तरदिशां बंध बंध ज्वालानृसिंहाय आकाशदिशां बंध बंध लक्ष्मीनृसिंहाय पातालदिशां बंध बंध कः कः कंपय कंपय आवेशय आवेशय अवतारय अवतारय शीघ्रं शीघ्रम् ।

ॐ नमो नारसिंहाय नवकोटिदेवग्रहोच्चाटनाय ।

ॐ नमो नारसिंहाय अष्टकोटिगंधर्व ग्रहोच्चटनाय ।

ॐ नमोनृसिंहाय । सप्तकोटिकिन्नर ग्रहोच्चाटनाय। ॐ नमो नारसिंहाय षट्कोटिशाकिनी - ग्रहोच्चटनाय ।

ॐ नमो नारसिंहाय पंचकोटि पन्नग्रहोच्चटनाय । ॐ नमो नारसिंहाय चतुष्कोटि ब्रह्मराक्षसग्रहोच्चाटनाय ।

ॐ नमो नारसिंहाय द्विकोटिदनुग्रहोच्चाटनाय । ॐ नमो नारसिंहाय एक कोटिग्रहोच्चाटनाय ।

ॐ नमो नारसिंहाय अरिमुरिचोरराक्षसजितिः वारं वारम् । श्रीभय चोरभय व्याधिभय सकल भयकण्टकान् विध्वंसय विध्वंसय ।

शरणागत वज्रपंजराय विश्वह्रदयाय प्रल्हादवरदाय क्ष्रौं श्रीं नृसिंहाय स्वाहा ॥

ॐ नमो नारसिंहाय मुन्दल शंखचक्र गदापद्महस्ताय नीलप्रभांगवर्णाय भीमाय भीषणाय ज्वाला करालभयभाषित श्रीनृसिंहहिरण्यकश्यपवक्षस्थलविदाहरणात जय जय एहि एहि भगवन् भगवन् गरुडध्वज गरुडध्वज मम सर्वोपद्रवं वज्रदेहेन चूर्णय चूर्णय आपत्समुद्रं शोषय शोषय ।

असुरगंधर्वयक्षप्रह्मराक्षस भूतप्रेत पिशाचादीन् विध्वंसय विध्वंसय । पूर्वाखिलं मूलय मूलय ।

प्रतिच्छां स्त्म्भय परमंत्रयंत्र परतंत्र परकष्टं छिन्धि छिन्धि भिन्धि हं फट् स्वाहा ।

इति श्री अथर्वण नृसिंहमालामन्त्रः समाप्तः । श्री नृसिंहार्पणमस्तु ॥५

खतरनाक नरसिंह मंत्र


 

 

 खतरनाक नरसिंह मंत्र तांत्रिक बन्धन किया कराया,घर,व्यापार,शरीर बंधन कट जायेंगा, मंत्र तंत्रों की काट

सभी तांत्रिक बन्धन खोलने के उपाय, घर,व्यापार,शरीर बंधन खुल जायेंगा,गुप्त नरसिंह बंधन तोड़ने का मंत्र

ॐ नमो नृसिंहाय कपिल जटाय मम सर्व रोगान् बन्ध बन्ध, सर्व ग्रहान बन्ध बन्ध, सर्व दोषादीनां बन्ध बन्ध, सर्व वृश्चिकादिनां विषं बन्ध बन्ध, सर्व भूत प्रेत, पिशाच, डाकिनी शाकिनी, यंत्र मंत्रादीन् बन्ध बन्ध, कीलय कीलय चूर्णय चूर्णय, मर्दय मर्दय, ऐं ऐं एहि एहि, मम येये विरोधिन्स्तान् सर्वान् सर्वतो हन हन, दह दह, मथ मथ, पच पच, चक्रेण, गदा, वज्रेण भष्मी कुरु कुरु स्वाहा।
ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं ह्रीं क्ष्रीं क्ष्रीं क्ष्रौं नृसिंहाय नमः स्वाहा।

श्रीराम ज्योतिष सदन

 


 "ॐ गणेशाय नमः"
ॐ रां रामाय नमः
श्रीराम ज्योतिष सदन
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महाँकालभैरव_साधना

 


 

 महाँकालभैरव_साधना

           यह रक्षा कारक साधना है, जिन्हें दुसरों से धोखे अगर बार बार मिलते हों,अनजाना भय लगता हो, शत्रु हैरान या बदनामी करते हों, उनके लिए ये रामबाण साधना है। ये किसी भी रविवार या अष्टमी की रात्रि में कर सकते हैं।
संकल्प लेकर गुरुदेव, गणपति को प्रणाम करें भैरवजी के यंत्र या चित्र के सामने स्नान करके रात्रि 9 बजे काले या लाल आसन पर दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके बैठ जाएं।
अपने सामने काले वस्त्र पर सूखा नारियल , एक कपूर के टुकड़े , 11 लौंग 11 इलायची थोड़ा लोबान या  धूप रखें। सरसों के तेल का दीपक जलाएं। हाथ में नारियल लेकर अपनी मनोकामना बोलें। नारियल परसिंदूर,अक्षत,काले तिल लाल पुष्प, थोड़ा गुड़ या जलेबी अर्पित करें।
दक्षिण दिशा की ओर देखकर इस मन्त्र का 108 बार जप हकीक या रुद्राक्ष से करें।
मंत्र:- ॐ भ्रां भ्रीं भ्रूं भ्रः! ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रः!ख्रां ख्रीं ख्रूं ख्रः!घ्रां घ्रीं घ्रूं घ्र:! म्रां म्रीं म्रूं म्र:! म्रों म्रों म्रों म्रों! क्लों क्लों क्लों क्लों!श्रों श्रों श्रों श्रों! ज्रों ज्रों  ज्रों ज्रों। हूँ हूँ हूँ हूँ। हूँ हूँ हूँ हूँ फट सर्वतो रक्ष रक्ष रक्ष रक्ष भैरव नाथ हूँ फट।
जप के बाद क्षमा प्रार्थना करें, अपनी इच्छा पूर्ण होने का अनुरोध करें। भोग गुड़ या जलेबी को घर के बाहर कुत्ते के लिए रख दें,फिर इस बाकी सामान को उसी रात्रि या अगले दिन काले कपडे़ में बांधकर भैरव मंदिर में चढ़ा दें या फिर जल में प्रवाहित कर दें या सुनसान जगह पर छोड़ दें।

महाभैरवाष्टकम्

  

 


 

महाभैरवाष्टकम्॥
श्रीगणेशाय नमः॥
         ॐ अस्य श्रीबटुकभैरवाष्टक स्तोत्र मन्त्रस्य ईश्वर ऋषिः गायत्री छन्दः  बटुकभैरवो देवताः ह्रीं बीजम्  बटुकायेतिशक्तिः प्रणवः कीलकम्  धर्मार्थ काममोक्षार्थे पाठे विनियोगः ॥
अथ करन्यास:-
कं अङ्गुष्टाभ्यां नमः ।
हं तर्जनीभ्यां स्वाहा ।
खं मध्यमाभ्यां वषट् ।
सं अनामिकाभ्यां हूं ।
गं कनिष्टिकाभ्यां वौषट् ।
क्षं करतलकरपृष्टाभ्यां फट् ॥
अथ हृदयादिन्यासः :-
कं हृदयाय नमः ।
हं शिरसे स्वाहा ।
खं शिखायै वषट् ।
सं कवचाय हूं ।
गं नेत्रत्रयाय वौषट् ।
क्षं अस्त्राय फट् ॥
अथाङ्ग न्यासः :-
क्षं नमः हृदि ।
कं नमः नासिकयोः ।
हं नमः ललाटे ।
खं नमः मुखे ।
सं नमः जिह्वायाम् ।
रं नमः कण्ठे ।
मं नमः स्तनयोः ।
नमः नमः सर्वाङ्गेषु ॥
॥ आज्ञा ॥
तीक्ष्णदंष्ट्र महाकाय कल्पान्त दहनोपम।
भैरवाय नमस्तुभ्यमनुज्ञान्दातुमर्हसि ॥१॥
अथ ध्यानम् :-
करकलितकपालः कुण्डलीदण्डपाणि
स्तरुणतिमिरनीलोव्यालयज्ञोपवीती।
क्रतुसमयसपर्या विघ्नविच्छेदहेतु-
र्जयतिबटुकनाथः सिद्धिदः साधकानाम् ॥२॥
॥ इति ध्यानम् ॥
पूर्वे आसिताङ्गभैरवाय नमः पूर्वदिशि मां रक्ष रक्ष कालकण्टकान्
भक्ष भक्ष आवाहयाम्यहमत्रतिष्ट तिष्ट हूं फट् स्वाहा।
आग्नेये रुरुभैरवाय नमः आग्नेये मां रक्ष रक्ष कालकण्टकान्
भक्ष भक्ष आवाहयाम्यहमत्रतिष्ट तिष्ट हूं फट् स्वाहा।
दक्षिणे चण्डभैरवाय नमः दक्षिणे मां रक्ष रक्ष कालकण्टकान्
भक्ष भक्ष आवाहयाम्यहमत्रतिष्ट तिष्ट हूं फट् स्वाहा।
नैरृत्ये क्रोधभैरवाय नमः नैरृत्यां मां रक्ष रक्ष कालकण्टकान्
भक्ष भक्ष आवाहयाम्यहमत्रतिष्ट तिष्ट हूं फट् स्वाहा।
प्रतिच्यां उन्मत्तभैरवाय नमः प्रतिच्यां मां रक्ष रक्ष कालकण्टकान्
भक्ष भक्ष आवाहयाम्यहमत्रतिष्ट तिष्ट हूं फट् स्वाहा।
वायव्ये कपालभैरवाय नमः वायव्ये मां रक्ष रक्ष कालकण्टकान्
भक्ष भक्ष आवाहयाम्यहमत्रतिष्ट तिष्ट हूं फट् स्वाहा।
उदिच्यां भीषणभैरवाय नमः उदिच्यां मां रक्ष रक्ष कालकण्टकान्
भक्ष भक्ष आवाहयाम्यहमत्रतिष्ट तिष्ट हूं फट् स्वाहा।
ईशान्यां संहारभैरवाय नमः ईशाने मां रक्ष रक्ष
कालकण्टकान् भक्ष भक्ष आवाहयाम्यहमत्रतिष्ट तिष्ट हूं फट् स्वाहा।
मंत्र:-नमो भगवते भैरवाय नमः क्लीं क्लीं क्लीं॥
हकीक माला से कम से कम 1/5/11 माला करें।
इति मन्त्रमष्टोत्तर शतं जप्त्वा चतुर्विध पुरुषार्थ सिद्धये महासिद्धिकर भैरवाष्टक स्तोत्र पाठे विनियोगः ॥
यं यं यं यक्षरूपं दिशिचकृतपदं भूमिकम्पायमानं
सं सं संहारमूर्तिं शिरमुकुटजटा भालदेशेऽर्धचन्द्रम् ।
दं दं दं दीर्घकायं विकृतनख मुखं चोर्ध्वरोमं करालं
पं पं पं पापनाशं नतिरिह सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥१॥
रं रं रं रक्तवर्णं कटिनतनुमयं तीक्ष्णदंष्ट्रं च भीमं
घं घं घं घोरघोषं घ घ घनघटितं घुर्घुरा घोरनादम् ।
कं कं कं कालपाशं ध्रिकि ध्रिकि चकितं कालमेघावभासं
तं तं तं दिव्यदेहं नतिरिह सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥२॥
लं लं लं लम्बदन्तं ल ल ल लितल ल्लोलजिह्वा करालं
धूं धूं धूं धूम्रवर्णं स्फुट विकृतनखमुखं भास्वरं भीमरूपम् ।
रुं रुं रुं रूण्डमालं रुधिरमयतनुं ताम्रनेत्रं सुभीमं
नं नं नं नग्नरूपं नतिरिह सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥३॥
वं वं वं वायुवेगं ग्रहगणनमितं ब्रह्मरुद्रैस्सुसेव्यं
खं खं खं खड्गहस्तं त्रिभुवननिलयं घोररूपं महोग्रम् ।
चं चं चं व्यालहस्तं चालित चल चला चालितं भूतचक्रं
मं मं मं मातृरूपं नतिरिह सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥४॥
शं शं शं शङ्खहस्तं शशिशकलयरं सर्पयज्ञोपवीतं
मं मं मं मन्त्रवर्णं सकलजननुतं मन्त्र सूक्ष्मं सुनित्यम् ।
भं भं भं भूतनाथं किलिकिलिकिलितं गेहगेहेरटन्तं
अं अं अं मुख्यदेवं नतिरिह सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥५॥
खं खं खं खड्गभेदं विषममृतमयं कालकालं सुकालं
क्षं क्षं क्षं क्षिप्रवेगं दहदहदहनं तप्तसन्तप्तमानम् ।
हं हं हं कारनादं प्रकटितदपातं गर्जितां भोपिभूमिं
बं बं बं बाललीलं नतिरिह सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥६॥
सं सं सं सिद्धियोगं सकलगुणमयं रौद्ररूपं सुरौद्रं
पं पं पं पद्मनाभं हरिहरनुतं चन्द्रसूर्याग्नि नेत्रम् ।
ऐं ऐं ऐं ऐश्वर्यरूपं सततभयहरं सर्वदेवस्वरूपं
रौं रौं रौं रौद्रनादं नतिरिह सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥७॥
हं हं हं हंसहास्यं कलितकरतलेकालदण्डं करालं
थं थं थं स्थैर्यरूपं शिरकपिलजटं मुक्तिदं दीर्घहास्यम् ।
टं टं टंकारभीमं त्रिदशवरनुतं लटलटं कामिनां दर्पहारं
भूं भूं भूं (भुं भुं भुं) भूतनाथं नतिरिह सततं भैरवं क्षेत्रपालम्॥८॥
भैरवस्याष्टकं स्तोत्रं पवित्रं पापनाशनम्।
महाभयहरं दिव्यं सिद्धिदं रोगनाशनम् ॥
॥ इति श्रीरुद्रयामलेतन्त्रे महाभैरवाष्टकं सम्पूर्णम् ॥


भैरवजी को काशी_के_कोतवाल माना जाता है।


 भैरवजी को काशी_के_कोतवाल माना जाता है। मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी के दिन भगवान महादेव ने कालभैरव के रूप में अवतार लिया था। कालभैरव भगवान महादेव का अत्यंत ही  रौद्र, भयाक्रांत, वीभत्स, विकराल प्रचंड स्वरूप है।
भैरवबाबा के 12 स्वरुप है जिनमें से 8 स्वरुप को उग्र तथा शेष को सौम्य माना गया है। तेल का दीपक लगा कर एवं  कपित्थ फल ( कैथ/कोठा) उसमें गुड़ और भुना जीरा भर भोग रखें इनकी उपासना आपके सभी दुखों-कष्टों को दूर करने में फलदायी मानी गयी है इसके अतरिक्त भैरव जी के 108 नाम का प्रतिदिन जप करने से घर से हर प्रकार का अनिष्ट दूर होने लगते हैं। आप चाहें तो काली मिर्च और लौंग से मंत्र में स्वाहा लगा कर हवन भी कर सकते हैं।
जैसे:- ॐ ह्रीं भैरवाय स्वाहा। घर से नकारात्मक शक्तियाँ प्रभावहीन होने लगती हैं।

कालभैरवः तान्त्रोक्तकवच!!

 कालभैरवः!!
   भगवान शिव के ही अंश हैं। ऐसा माना जाता है कि कालाष्टमी के दिन भगवान भैरव की पूजा अर्चना करने से जीवन में स्वयं की एवं घर की रक्षा करते हैं आने वाली बाधाओं का नाश हो जाता है और जातक सुखी और निरोगी रहता है।
कालभैरव को प्रसन्न करने के लिए कवच स्तोत्र के 5/11पाठ कर सकते हैं। और अधिक करना चाहें तो काले आसन पर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके वैठ जाएं रुद्राक्ष या काली हकीक माला से "ॐ ह्रीं भ्रं भैरवाय नमः"!  की 21 माला जप करें!
              


    !!तान्त्रोक्तकवच!!
ऊँ सहस्त्रारे महाचक्रे कर्पूरधवले गुरुः।
पातु मां बटुको देवो भैरवः सर्वकर्मसु।।
पूर्वस्यामसितांगो मां दिशि रक्षतु सर्वदा।
संहार भैरवः पायादीशान्यां च महेश्वरः।।
ऊर्ध्वं पातु विधाता च पाताले नन्दको विभुः।
सद्योजातस्तु मां पायात् सर्वतो देवसेवितः।।
रामदेवो वनान्ते च वने घोरस्तथावतु।
जले तत्पुरुषः पातु स्थले ईशान एव च।।
डाकिनी पुत्रकः पातु पुत्रान् में सर्वतः प्रभुः।
हाकिनी पुत्रकः पातु दारास्तु लाकिनी सुतः।।
पातु शाकिनिका पुत्रः सैन्यं वै कालभैरवः।
मालिनी पुत्रकः पातु पशूनश्वान् गंजास्तथा।।
महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा।
वाद्यम् वाद्यप्रियः पातु भैरवो नित्यसम्पदा।।
कालभैरव अष्टमी के दिन बाबा भैरव नाथ को चमेली के पुष्प चड़ाये, तेल का दीपक लगाएँ, नैवेद्य में पापड़,उड़द की दाल के पकोड़े मलपुए,गुड़,जलेबी,पान का भोग लगाएं। इसके बाद थोड़ा प्रसाद ग्रहण करें एवं थोड़ा किसी कुत्ते को खिला दें। कुत्ता बाबा भैरव नाथ की सवारी माना जाता है।अतः बाबा भैरवनाथ को कुत्ता अतिप्रिय होता है।

भूतेश्वर_विशेषमंत्र!!

 भूतेश्वर_विशेषमंत्र!!
        यह मंत्र विशेष लाभदायक है शिवलिंग या मूर्ति को स्नान या हवन यज्ञ करते समय इस मंत्र का जप करने से असाध्यता भी साध्य हो जाती है।
    मंत्र:- ओम नमो भगवते भूतेश्वराय  कलि कलि नखाय रौद्र द्रंष्टाय  कराल वक्त्राय त्रिनगर धग धग धगिता पिशंग ललाट नेत्राय तीव्र कोपानल मित तेजसे पाश शूल खटवांग डमरू धनुर्बाण मुग्ददरामय  दंड त्रास समुद्राव्ययद  संपदार्द दंड मंडिताय कपिल जटाजूर्ध चंद्र धारिणोभस्म  राग रंजित निग्रहाय उग्रफण काल कूटाटोप  मंडित कंठ देशाय जय जय जय जय भूत नाथामरात्मने रूपं दर्शय दर्शय: नृत्य नृत्य चल चल पावन बंन्ध बंन्ध हुकारेण त्राशय त्राशय वज्र दंडेन हन हन निशित खंगेन छिंन्न छिंन्न शूलाग्रेण भिन्न-भिन्न मुद्गरेण चूर्णय चूर्णय सर्व ग्रहाणाम वेषया वेषय स्वाहा।
ओम नमो शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च।।
यजु/अ१६/मं४१।।


अगस्त्य ऋषि कृत सरस्वती स्तोत्रम्

  अगस्त्य ऋषि कृत सरस्वती स्तोत्रम्  देवी सरस्वती को समर्पित एक पवित्र मंत्र है, जिन्हें ज्ञान, बुद्धि और शिक्षा के रूप में पूजा जाता है। ...