Wednesday, 22 September 2021

नवार्ण मंत्र महत्व:-

नवार्ण मंत्र महत्व:-
माता भगवती जगत् जननी दुर्गा जी की साधना-उपासना के क्रम में, नवार्ण मंत्र एक ऐसा महत्त्वपूर्ण महामंत्र है | नवार्ण अर्थात नौ अक्षरों का इस नौ अक्षर के महामंत्र में नौ ग्रहों को नियंत्रित करने की शक्ति है, जिसके माध्यम से सभी क्षेत्रों में पूर्ण सफलता प्राप्त की जा सकती है और भगवती दुर्गा का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है यह महामंत्र शक्ति साधना में सर्वोपरि तथा सभी मंत्रों-स्तोत्रों में से एक महत्त्वपूर्ण महामंत्र है। यह माता भगवती
दुर्गा जी के तीनों स्वरूपों माता महासरस्वती, माता महालक्ष्मी व माता महाकाली की एक साथ साधना का पूर्ण प्रभावक बीज मंत्र है और साथ ही माता दुर्गा के नौ रूपों का संयुक्त मंत्र है और इसी महामंत्र से नौ ग्रहों को भी शांत किया जा सकता है |
नवार्ण मंत्र-
|| ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ||
नौ अक्षर वाले इस अद्भुत नवार्ण मंत्र में देवी दुर्गा की नौ शक्तियां समायी हुई है | जिसका सम्बन्ध नौ ग्रहों से भी है |
ऐं = सरस्वती का बीज मन्त्र है ।
ह्रीं = महालक्ष्मी का बीज मन्त्र है ।
क्लीं = महाकाली का बीज मन्त्र है ।
इसके साथ नवार्ण मंत्र के प्रथम बीज ” ऐं “ से माता दुर्गा की प्रथम शक्ति माता शैलपुत्री की उपासना की जाती है, जिस में सूर्य ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है |
नवार्ण मंत्र के द्वितीय बीज ” ह्रीं “ से माता दुर्गा की द्वितीय शक्ति माता ब्रह्मचारिणी
की उपासना की जाती है, जिस में चन्द्र ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है|
नवार्ण मंत्र के तृतीय बीज ” क्लीं “ से माता दुर्गा की तृतीय शक्ति माता चंद्रघंटा की उपासना की जाती है, जिस में मंगल ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है|
नवार्ण मंत्र के चतुर्थ बीज ” चा “ से माता दुर्गा की चतुर्थ शक्ति माता कुष्मांडा की
उपासना की जाती है, जिस में बुध ग्रह
को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई
है |
नवार्ण मंत्र के पंचम बीज ” मुं “ से माता दुर्गा की पंचम शक्ति माँ स्कंदमाता की उपासना की जाती है, जिस में बृहस्पति ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है|
नवार्ण मंत्र के षष्ठ बीज ” डा “ से माता दुर्गा की षष्ठ शक्ति माता कात्यायनी की उपासना की जाती है, जिस में शुक्र ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है |
नवार्ण मंत्र के सप्तम बीज ” यै “ से माता दुर्गा की सप्तम शक्ति माता कालरात्रि की
उपासना की जाती है, जिस में शनि ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है |
नवार्ण मंत्र के अष्टम बीज ” वि “ से माता दुर्गा की अष्टम शक्ति माता महागौरी की उपासना की जाती है, जिस में राहु ग्रह को नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है
नवार्ण मंत्र के नवम बीज ” चै “ से माता दुर्गा की नवम शक्ति माता सिद्धीदात्री की उपासना की जाती है, जिस में केतु ग्रह को
नियंत्रित करने की शक्ति समायी हुई है l

पंडित आशु बहुगुणा
मोबाईल-9760924411

नवार्ण मंत्र साधना विधी:-

नवार्ण मंत्र साधना विधी:-
विनियोग:
ll ॐ अस्य श्रीनवार्णमंत्रस्य
ब्रम्हाविष्णुरुद्राऋषय:गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छंन्दांसी,श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासर
स्वत्यो देवता: , ऐं बीजम , ह्रीं शक्ति: ,क्लीं कीलकम श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासर स्वत्यो प्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ll
विलोम बीज न्यास:-
ॐ च्चै नम: गूदे ।
ॐ विं नम: मुखे ।
ॐ यै नम: वाम नासा पूटे ।
ॐ डां नम: दक्ष नासा पुटे ।
ॐ मुं नम: वाम कर्णे ।
ॐ चां नम: दक्ष कर्णे ।
ॐ क्लीं नम: वाम नेत्रे ।
ॐ ह्रीं नम: दक्ष नेत्रे ।
ॐ ऐं ह्रीं नम: शिखायाम ॥
(विलोम न्यास से सर्व दुखोकी नाश होता
है,संबन्धित मंत्र उच्चारण की साथ दहीने
हाथ की उँगलियो से संबन्धित स्थान पे स्पर्श कीजिये)
ब्रम्हारूप न्यास:-
ॐ ब्रम्हा सनातन: पादादी नाभि पर्यन्तं मां पातु ॥
ॐ जनार्दन: नाभेर्विशुद्धी पर्यन्तं नित्यं मां पातु ॥
ॐ रुद्र स्त्रीलोचन: विशुद्धेर्वम्हरंध्रातं मां पातु ॥
ॐ हं स: पादद्वयं मे पातु ॥
ॐ वैनतेय: कर इयं मे पातु ॥
ॐ वृषभश्चक्षुषी मे पातु ॥
ॐ गजानन: सर्वाड्गानी मे पातु ॥
ॐ सर्वानंन्द मयोहरी: परपरौ देहभागौ मे पातु ॥
( ब्रम्हारूपन्यास से सभी मनोकामनाये पूर्ण होती है, संबन्धित मंत्र उच्चारण की साथ दोनों हाथो की उँगलियो से संबन्धित स्थान पे स्पर्श कीजिये )
ध्यान मंत्र:-
खड्गमं चक्रगदेशुषुचापपरिघात्र्छुलं भूशुण्डीम शिर: शड्ख संदधतीं करैस्त्रीनयना
सर्वाड्ग भूषावृताम ।
नीलाश्मद्दुतीमास्यपाददशकां सेवे महाकालीकां यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधु कैटभम ॥
माला पूजन:-
जाप आरंभ करनेसे पूर्व ही इस मंत्र से माला का पुजा कीजिये,इस विधि से आपकी माला भी चैतन्य हो जाती है.
“ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नंम:’’
ॐ मां माले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिनी ।
चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव ॥
ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं गृहनामी दक्षिणे
करे । जपकाले च सिद्ध्यर्थ प्रसीद मम सिद्धये ॥
ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देही देही सर्वमन्त्रार्थसाधिनी साधय साधय सर्वसिद्धिं परिकल्पय परिकल्पय मे स्वाहा।
अब आप माला से नवार्ण मंत्र का जाप करे-
नवार्ण मंत्र :-
ll ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ll
नवार्ण मंत्र की सिद्धि 9 दिनो मे 1,25,000 मंत्र जाप से होती है,परंतु आप येसे नहीं कर सकते है तो रोज 1,3,5,11,21,31….इत्यादि माला मंत्र जाप भी कर सकते है,इस विधि से सारी इच्छाये पूर्ण होती है,सब दुख समाप्त जाते है  और धन की प्राप्ति या वसूली भी सहज ही हो जाती है।
हमे शास्त्र के हिसाब से यह सोलह प्रकार
के न्यास देखने मिलती है जैसे ऋष्यादी,कर ,हृदयादी ,अक्षर ,दिड्ग,सारस्वत,प्रथम मातृका ,द्वितीय मातृका,तृतीय मातृका ,षडदेवी ,ब्रम्हरूप,बीज मंत्र ,विलोम बीज ,षड,सप्तशती ,शक्ति जाग्रण न्यास और
बाकी के 8 न्यास गुप्त न्यास नाम से
जाने जाते है,इन सारे न्यासो का अपना एक अलग ही महत्व होता है,उदाहरण के लिये शक्ति जाग्रण न्यास से माँ सुष्म रूप से साधकोके सामने शीघ्र ही आ जाती है और मंत्र जाप की प्रभाव से प्रत्यक्ष होती है और जब माँ चाहे किसिभी रूप मे क्यू न आये हमारी कल्याण तो निचित ही कर देती है।
आप नवरात्री एवं अन्य दिनो मे इस मंत्र के जाप जो कर सकते है I
पंडित आशु बहुगुणा
मोबाइल -9760924411

दूकान की बिक्री अधिक हो-

दूकान की बिक्री अधिक हो-
१॰ “श्री शुक्ले महा-शुक्ले कमल-दल निवासे
श्री महालक्ष्मी नमो नमः।
लक्ष्मी माई, सत्त की सवाई। आओ,
चेतो, करो भलाई। ना करो, तो सात समुद्रों की
दुहाई। ऋद्धि-सिद्धि खावोगी, तो नौ नाथ
चौरासी सिद्धों की दुहाई।”
विधि- घर से नहा-धोकर दुकान पर जाकर अगर-
बत्ती जलाकर उसी से
लक्ष्मी जी के चित्र की
आरती करके, गद्दी पर बैठकर, १
माला उक्त मन्त्र की जपकर दुकान का लेन-देन
प्रारम्भ करें। आशातीत लाभ होगा।
२॰ “भँवरवीर, तू चेला मेरा। खोल दुकान कहा कर
मेरा।
उठे जो डण्डी बिके जो माल, भँवरवीर
सोखे नहिं जाए।।”
विधि- १॰ किसीशुभ रविवार से उक्त मन्त्र
की १० माला प्रतिदिन के नियम से दस दिनों में १००
माला जप कर लें। केवल रविवार के ही दिन इस
मन्त्र का प्रयोग किया जाता है। प्रातः स्नान करके दुकान पर
जाएँ। एक हाथ में थोड़े-से काले उड़द ले लें। फिर ११ बार
मन्त्र पढ़कर, उन पर फूँक मारकर दुकान में चारों ओर बिखेर
दें। सोमवार को प्रातः उन उड़दों को समेट कर किसी
चौराहे पर, बिना किसी के टोके, डाल आएँ। इस
प्रकार चार रविवार तक लगातार, बिना नागा किए, यह प्रयोग
करें।
२॰ इसके साथ यन्त्र का भी निर्माण किया जाता
है। इसे लाल स्याही अथवा लाल चन्दन से
लिखना है। बीच में सम्बन्धित व्यक्ति का नाम
लिखें। तिल्ली के तेल में बत्ती बनाकर
दीपक जलाए। १०८ बार मन्त्र जपने तक यह
दीपक जलता रहे। रविवार के दिन काले उड़द के
दानों पर सिन्दूर लगाकर उक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित करे। फिर
उन्हें दूकान में बिखेर दें।
श्रीराम ज्योतिष सदन. भारतीय वैदिक ज्योतिष.और मन्त्र  यन्त्र तन्त्र एवं रत्न परामँश दाता ।आपका दैवज्ञ पंडित आशु बहुगुणा ।  अपनी जन्मकुण्डली के अनुकूल विशिष्ट मन्त्र यन्त्र तन्त्र के माध्यम से कायॅ सिद्ध करने के लिये सम्पकॅ करे । --- संपर्क सूत्र---9760924411

जगदम्बा यंत्र

जगदम्बा यंत्र 
आज जब जीवन बिल्कुल असुरक्षित बन गया है, पग-पग पर संकट, और खतरे मुंह बाए खड़े हैं, तो अपनी प्राण रक्षा अत्यंत आवश्यक हो जाती है| यदि किसी शत्रु अथवा किसी आकस्मिक दुर्घटना से जान का भय हो, तो व्यक्ति का जीवन चाहे कितना ही धन-धान्य से पूरित हो, उसका कोई भी अर्थ नहीं| प्रत्येक व्यक्ति अपनी ओर से अपनी सुरक्षा की ओर से सचेष्ट रहता ही है, परन्तु दुर्घटनाएं बिना सूचना दिए आती हैं| ऐसी स्थिति में दैवी सहायता या कृपा ही एक मात्र उपाय शेष रहता है|
ज्योतिषीय दृष्टि से दुर्घटना का कारण होता है, कि अमुक व्यक्ति अमुक समय पर अमुक स्थान पर उपस्थित हो ही| परन्तु ग्रहों के प्रभाव से यदि दुर्घटना किसी विशेष स्थान पर होनी ही है, परन्तु यदि व्यक्ति उस विशेष क्षण में उस स्थान पर उपस्थित न होकर समय थोडा आगे पीछे हो जाए, तो उस दुर्घटना से बच सकता है| ग्रहों का प्रभाव ऐसा होता है, कि अपने आप ही उस विशेष समय में व्यक्ति को निश्चित दुर्घटना स्थल की ओर खीचता ही है, परन्तु जगदम्बा यंत्र एक ऐसा उपाय है, जो ग्रहों के इस क्रुप्रभाव को क्षीण कर देता है| इस यंत्र को सिर्फ अपने पूजा स्थान में स्थापित ही करना है| और नित्य धुप, दीपक दिखाकर पुष्प अर्पित करें|
श्रीराम ज्योतिष सदन. भारतीय वैदिक ज्योतिष.और मन्त्र  यन्त्र तन्त्र एवं रत्न परामँश दाता ।आपका दैवज्ञ पंडित आशु बहुगुणा ।  अपनी जन्मकुण्डली के अनुकूल विशिष्ट मन्त्र यन्त्र तन्त्र के माध्यम से कायॅ सिद्ध करने के लिये सम्पकॅ करे । --- संपर्क सूत्र---9760924411

आपदा उद्धारक बटुक भैरव यंत्र

आपदा उद्धारक बटुक भैरव यंत्र 
किसी भी शुभ कार्य में, चाहे वह यज्ञ हो, विव्वः हो, शाक्त साधना हो, तंत्र साधना हो, गृह प्रवेश अथवा कोई मांगलिक कार्य हो, भैरव की स्थापना एवं पूजा अवश्य ही की जाती है, क्योंकि भैरव ऐसे समर्थ रक्षक देव है, जो कि सब प्रकार के विघ्नों को, बाधाओं को रोक सकते हैं, और कार्य सफलतापूर्वक पूर्ण हो जाता है| आपदा उद्वारक बटुक भैरव यंत्र स्थापित करने के निम्न लाभ हैं - 
- व्यक्ति को मुकदमें में विजय प्राप्त होती है|
- समाज में उसके मां-सम्मान और पौरुष में वृद्धि होती है|
- किसी भी प्रकार की राज्य बाधा, जैसे प्रमोशन अथवा ट्रांसफर में आ रही बाधाओं से निवृत्ति प्राप्त होती है|
- आपके शत्रु द्वारा कराया गया तंत्र प्रयोग समाप्त हो जाता है|
यदि आपके जीवन में उपरोक्त प्रकार की बाधाएं लगातार आ रही हों, और आप कई प्रकार के उपाय कर चुके है, इसके बावजूद भी आपकी आपदा समाप्त नहीं हो रही है, तो आपको आपदा उद्वारक बटुक भैरव यंत्र अवश्य ही स्थापित करना चाहिए| इस यंत्र को स्थापित कर बताई गई लघु विधि द्वारा पुजन करने मात्र से ही आपकी आपदाएं स्वतः ही समाप्त हो जाती हैं| इस यंत्र के लिए किसी विशेष पूजन क्रम की आवश्यकता नहीं है क्योंकि इसे अमृत योग, शुभ मुहूर्त में सदगुरुदेव द्वारा बताई गई विशेष विधि द्वारा प्राण-प्रतिष्ठित किया गया है|
स्थापन विधि - बटुक भैरव यंत्र को किसी भी षष्ठी अथवा बुधवार को रात्रि में काले तिल की ढेरी पर स्थापित कर कुंकुम, अक्षत, धुप से संक्षिप्त पूजन कर लें| इसके पश्चात पूर्ण चैतन्य भाव से निम्न मंत्र का १ घंटे तक जप करें|
|| ॐ ह्रीं बटुकाय आपद उद्वारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ स्वाहा ||
उपरोक्त मंत्र का यंत्र के समक्ष ७ दिन तक लगातार जप करने के पश्चात यंत्र को किसी जल-सरोवर में विसर्जीत कर दें| कुछ ही दिनों में आपकी समस्त आपदाएं स्वतः ही समाप्त हो जायेगी|
श्रीराम ज्योतिष सदन. भारतीय वैदिक ज्योतिष.और मन्त्र  यन्त्र तन्त्र एवं रत्न परामँश दाता ।आपका दैवज्ञ पंडित आशु बहुगुणा ।  अपनी जन्मकुण्डली के अनुकूल विशिष्ट मन्त्र यन्त्र तन्त्र के माध्यम से कायॅ सिद्ध करने के लिये सम्पकॅ करे । --- संपर्क सूत्र---9760924411

ज्वालामालिनी यंत्र

ज्वालामालिनी यंत्र 
ज्वालामालिनी शक्ति की उग्ररूपा देवी हें, परन्तु अपने साधक के लिए अभायाकारिणी हें| इनकी साधना मुख्य रूप से उन साधकों द्वारा की जाती हें, जिससे वे शक्ति संपन्न होकर पूर्ण पौरुष को प्राप्त कर सकें| ज्वालामालिनी की पूजा साधना गृहस्थों के द्वारा भूत-प्रेत बाधा, तंत्र बाधा के लिए, शत्रुओं के लिए, शत्रुओं द्वारा किए गए मूठ आदि प्राणघातक प्रयोगों को समाप्त करने के लिए की जाती हें|
साधना विधान - इसको आप मंगलवार या अमावस्या की रात्रि को प्रारम्भ करें| यह तीन रात्री की साधना है| सर्वप्रथम गुरु पूजन संपन्न करें, उसके पश्चात यंत्र का पूजन कुंकुम, अक्षत एवं पुष्प से करें और धुप दिखाएं| फिर किसी भी माला से निम्न मंत्र का ७ माला जप करें - 
मंत्र - || ॐ नमो भगवती ज्वालामालिनी सर्वभूत संहारकारिके जातवेदसी ज्वलन्ती प्रज्वालान्ति ज्वल ज्वल प्रज्वल हूं रं रं हूं फट ||
साधना के तीसरे दिन यंत्र को अपने पूजा स्थान में स्थापित कर दें और जब भी अनुकूलता चांहे, ज्वालामालिनी मंत्र की ३ माला मंत्र जप अवश्य कर लें|
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सिद्ध लक्ष्मी सहस्त्राक्षरी मंत्र साधना।

सिद्ध लक्ष्मी सहस्त्राक्षरी मंत्र साधना। 
विनियोगः -- ॐ अस्य श्री सर्व महाविद्या महारात्रि गोपनीय मंत्र रहस्याति रहस्यमयी पराशक्ति श्री मदाधा भगवती सिद्ध लक्ष्मी सहस्त्राक्षरी सहस्त्र रूपिणी महाविद्याया: श्री इन्द्र ऋषि गायत्र्यादि नाना छन्दांसि नवकोटि शक्तिरूपा श्री मदाधा भगवती सिद्ध लक्ष्मी देवता श्री मदाधा भगवती सिद्ध लक्ष्मी प्रसादादखिलेष्टार्थे जपे पाठ विनियोगः
ऋष्यादि न्यास
श्री इन्द्र ऋषिभ्यां शिरसे नमः
गायत्र्यादि नानाछन्देभ्यो नम: मुखे
नव कोटि शक्तिरूपा श्री मदाधा भगवती सिद्ध लक्ष्मी प्रसादाद खिलेष्टार्थे जपे पाठे विनियोगाय नमः सर्वांगे
अंग न्यास
ॐ श्रीं सहस्त्रारे (सहस्त्रार चक्र)
ॐ क्लीं नमो नेत्रयुगले (दोनों नेत्र)
ॐ श्रीं नमः हृदये
ॐ ह्रीं नमः जंघा द्वये (जांघ)
ॐ ह्रीं नमः भाले(ललाट)
ॐ ऐं नमो हस्त युगले(दोनों हाथ)
ॐ क्लीं नमः कटौ(पैर)
ॐ श्रीं नमः पादादि सर्वांगे
लक्ष्मी के चित्र के आगे 21 पाठ करे पुष्य योग में।
महाविद्या मंत्र
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ह्सौ श्रीं ऐं ह्रीं क्लीं सौ: सौ: ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं जय जय महालक्ष्मी जगदाधे विजये सुरासुर त्रिभुवन निदाने दयांकुरे सर्व देव तेजो रूपिणी विरंचि संस्थिते विधि वरदे सच्चिदानन्दे विष्णु देहावृते महा मोहिनी नित्य वरदान तत्परे महा सुधाब्धि वासिनि महा तेजो धारिणी सर्वाधारे सर्व कारण कारिणे अचिन्त्य रूपे इन्द्रादि सकल निर्जर सेविते साम गान गायन परिपूर्णोदय कारिणी विजये जयंति अपराजिते सर्व सुन्दरि रक्तांशुके सूर्य कोटि संकाशे चन्द्र कोटि सुशीतले अग्निकोटि दहन शीले यम कोटि वहन शीले  ॐ कार नाद बिन्दु रूपिणी निगमागम भागदायिनी त्रिदश राजदायिनी सर्व स्त्री रत्न स्वरूपिणी दिव्य देहिनी निर्गुणो सगुणे सद् सद् रूपधारिणी सुर वरदे भक्त त्राण तत्परे बहु वरदे सहस्त्राक्षरे अयुताक्षरे सप्त कोटि लक्ष्मी रूपिणी अनेक लक्ष लक्ष स्वरुपे अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड नायिके चतुर्विंशति मुनि जन संस्थिते चतुर्दश भुवन भाव विकारणे गगन वाहिनि नाना मंत्र राज विराजते सकल सुंदरीगण सेविते चरणारविन्दे महात्रिपुर सुन्दरि कामेश दायिते करुणा रस कल्लोलिनि कल्प वृक्षादि स्थिते चिंतामणि द्वय मध्यावस्थिते मणि मन्दिरे निवासिनी विष्णु वक्षस्थल कारिणे अजिते अमिले अनुपम चरिते मुक्ति क्षेत्राधिष्ठायिनी प्रसीद प्रसीद सर्व मनोरथान पूरय पूरय सर्वारिष्ठान छेदय छेदय सर्व ग्रह पीड़ा ज्वराग्र भयं विध्वंसय विध्वंसय सर्व त्रिभुवन जातं वशय वशय मोक्ष मार्गाणि दर्शय दर्शय ज्ञान मार्ग प्रकाशय प्रकाशय अज्ञान तमो नाशय नाशय धन धान्यादि वृद्धिं कुरु कुरु सर्व कल्याणानि कल्पय कल्पय मां रक्ष रक्ष सर्वायद्भयो निस्तारय निस्तारय वज्र शरीर साधय साधय ह्रीं क्लीं सहस्त्राक्षरी सिद्ध लक्ष्मी महा विद्यायै नमः ।।
पंडित आशु बहुगुणा
मोबाइल-9760924411

Saturday, 18 September 2021

ॐ नमो महा नरसिंहाय-

ॐ नमो महा नरसिंहाय-सिंहाय सिंह-मुखाय विकटाय वज्रदन्त-नखाय माम् रक्ष-रक्ष मम शरीरं नख-शिखा पर्यन्तं रक्ष रक्षां कुरु-कुरु मदीय शरीरं वज्रांगम कुरु-कुरु पर-यंत्र, पर-मंत्र, पर-तंत्राणां क्षिणु-क्षिणु खड्गादि-धनु-बाण-अग्नि-भुशंडी आदि शस्त्राणां इंद्र-वज्रादि ब्रह्मस्त्राणां स्तम्भय-स्तम्भय,जलाग्नि-मध्ये रक्ष गृह-मध्ये ग्राम-मध्ये नगर-मध्ये नगर-मध्ये वन-मध्ये रण-मध्ये श्मशान-मध्ये रक्ष-रक्ष,राज-द्वारे राज-सभा मध्ये रक्ष रक्षां कुरु-कुरु, भूत-प्रेत-पिशाच -देव-दानव-यक्ष-किन्नर-राक्षस, ब्रह्म-राक्षस, डाकिनी-शाकिनी-मौन्जियादि अविधं प्रेतानां भस्मं कुरु-कुरु भो:अत्र्यम- गिरोसिंही-सिंहमुखी ज्वलज्ज्वाला जिव्हे कराल-वदने मां रक्ष-रक्ष, मम शरीरं वज्रमय कुरु-कुरु दश-दिशां बंध-बंध वज्र-कोटं कुरु-कुरु आत्म-चक्रं भ्रमावर्त सर्वत्रं रक्ष रक्ष सर्वभयं नाशय-नाशय व्याघ्र -सर्प-वराह-चौरदिन बन्धय-बन्धय, पिशाच-श्वान दूतान्कीलय-कीलय हुम् हुम् फट।। 

ग्रह पीड़ा निवारक टोटके

ग्रह पीड़ा निवारक टोटके-
सूर्य
१॰ सूर्य को बली बनाने के लिए व्यक्ति को प्रातःकाल सूर्योदय के समय उठकर लाल पूष्प वाले पौधों एवं वृक्षों को जल से सींचना चाहिए।
२॰ रात्रि में ताँबे के पात्र में जल भरकर सिरहाने रख दें तथा दूसरे दिन प्रातःकाल उसे पीना चाहिए।
३॰ ताँबे का कड़ा दाहिने हाथ में धारण किया जा सकता है।
४॰ लाल गाय को रविवार के दिन दोपहर के समय दोनों हाथों में गेहूँ भरकर खिलाने चाहिए। गेहूँ को जमीन पर नहीं डालना चाहिए।
५॰ किसी भी महत्त्वपूर्ण कार्य पर जाते समय घर से मीठी वस्तु खाकर निकलना चाहिए।
६॰ हाथ में मोली (कलावा) छः बार लपेटकर बाँधना चाहिए।
७॰ लाल चन्दन को घिसकर स्नान के जल में डालना चाहिए।
सूर्य के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु रविवार का दिन, सूर्य के नक्षत्र (कृत्तिका, उत्तरा-फाल्गुनी तथा उत्तराषाढ़ा) तथा सूर्य की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
चन्द्रमा
१॰ व्यक्ति को देर रात्रि तक नहीं जागना चाहिए। रात्रि के समय घूमने-फिरने तथा यात्रा से बचना चाहिए।
२॰ रात्रि में ऐसे स्थान पर सोना चाहिए जहाँ पर चन्द्रमा की रोशनी आती हो।
३॰ ऐसे व्यक्ति के घर में दूषित जल का संग्रह नहीं होना चाहिए।
४॰ वर्षा का पानी काँच की बोतल में भरकर घर में रखना चाहिए।
५॰ वर्ष में एक बार किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान अवश्य करना चाहिए।
६॰ सोमवार के दिन मीठा दूध नहीं पूना चाहिए।
७॰ सफेद सुगंधित पुष्प वाले पौधे घर में लगाकर उनकी देखभाल करनी चाहिए।
चन्द्रमा के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु सोमवार का दिन, चन्द्रमा के नक्षत्र (रोहिणी, हस्त तथा श्रवण) तथा चन्द्रमा की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
मंगल
१॰ लाल कपड़े में सौंफ बाँधकर अपने शयनकक्ष में रखनी चाहिए।
२॰ ऐसा व्यक्ति जब भी अपना घर बनवाये तो उसे घर में लाल पत्थर अवश्य लगवाना चाहिए।
३॰ बन्धुजनों को मिष्ठान्न का सेवन कराने से भी मंगल शुभ बनता है।
४॰ लाल वस्त्र लिकर उसमें दो मुठ्ठी मसूर की दाल बाँधकर मंगलवार के दिन किसी भिखारी को दान करनी चाहिए।
५॰ मंगलवार के दिन हनुमानजी के चरण से सिन्दूर लिकर उसका टीका माथे पर लगाना चाहिए।
६॰ बंदरों को गुड़ और चने खिलाने चाहिए।
७॰ अपने घर में लाल पुष्प वाले पौधे या वृक्ष लगाकर उनकी देखभाल करनी चाहिए।
मंगल के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु मंगलवार का दिन, मंगल के नक्षत्र (मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा) तथा मंगल की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
बुध
१॰ अपने घर में तुलसी का पौधा अवश्य लगाना चाहिए तथा निरन्तर उसकी देखभाल करनी चाहिए। बुधवार के दिन तुलसी पत्र का सेवन करना चाहिए।
२॰ बुधवार के दिन हरे रंग की चूड़ियाँ हिजड़े को दान करनी चाहिए।
३॰ हरी सब्जियाँ एवं हरा चारा गाय को खिलाना चाहिए।
४॰ बुधवार के दिन गणेशजी के मंदिर में मूँग के लड्डुओं का भोग लगाएँ तथा बच्चों को बाँटें।
५॰ घर में खंडित एवं फटी हुई धार्मिक पुस्तकें एवं ग्रंथ नहीं रखने चाहिए।
६॰ अपने घर में कंटीले पौधे, झाड़ियाँ एवं वृक्ष नहीं लगाने चाहिए। फलदार पौधे लगाने से बुध ग्रह की अनुकूलता बढ़ती है।
७॰ तोता पालने से भी बुध ग्रह की अनुकूलता बढ़ती है।
बुध के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु बुधवार का दिन, बुध के नक्षत्र (आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती) तथा बुध की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
गुरु
१॰ ऐसे व्यक्ति को अपने माता-पिता, गुरुजन एवं अन्य पूजनीय व्यक्तियों के प्रति आदर भाव रखना चाहिए तथा महत्त्वपूर्ण समयों पर इनका चरण स्पर्श कर आशिर्वाद लेना चाहिए।
२॰ सफेद चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर घिसकर उसमें केसर मिलाकर लेप को माथे पर लगाना चाहिए या टीका लगाना चाहिए।
३॰ ऐसे व्यक्ति को मन्दिर में या किसी धर्म स्थल पर निःशुल्क सेवा करनी चाहिए।
४॰ किसी भी मन्दिर या इबादत घर के सम्मुख से निकलने पर अपना सिर श्रद्धा से झुकाना चाहिए।
५॰ ऐसे व्यक्ति को परस्त्री / परपुरुष से संबंध नहीं रखने चाहिए।
६॰ गुरुवार के दिन मन्दिर में केले के पेड़ के सम्मुख गौघृत का दीपक जलाना चाहिए।
७॰ गुरुवार के दिन आटे के लोयी में चने की दाल, गुड़ एवं पीसी हल्दी डालकर गाय को खिलानी चाहिए।
गुरु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु गुरुवार का दिन, गुरु के नक्षत्र (पुनर्वसु, विशाखा, पूर्व-भाद्रपद) तथा गुरु की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
शुक्र
१॰ काली चींटियों को चीनी खिलानी चाहिए।
२॰ शुक्रवार के दिन सफेद गाय को आटा खिलाना चाहिए।
३॰ किसी काने व्यक्ति को सफेद वस्त्र एवं सफेद मिष्ठान्न का दान करना चाहिए।
४॰ किसी महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए जाते समय १० वर्ष से कम आयु की कन्या का चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लेना चाहिए।
५॰ अपने घर में सफेद पत्थर लगवाना चाहिए।
६॰ किसी कन्या के विवाह में कन्यादान का अवसर मिले तो अवश्य स्वीकारना चाहिए।
७॰ शुक्रवार के दिन गौ-दुग्ध से स्नान करना चाहिए।
शुक्र के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु शुक्रवार का दिन, शुक्र के नक्षत्र (भरणी, पूर्वा-फाल्गुनी, पुर्वाषाढ़ा) तथा शुक्र की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
शनि
१॰ शनिवार के दिन पीपल वृक्ष की जड़ पर तिल्ली के तेल का दीपक जलाएँ।
२॰ शनिवार के दिन लोहे, चमड़े, लकड़ी की वस्तुएँ एवं किसी भी प्रकार का तेल नहीं खरीदना चाहिए।
३॰ शनिवार के दिन बाल एवं दाढ़ी-मूँछ नही कटवाने चाहिए।
४॰ भड्डरी को कड़वे तेल का दान करना चाहिए।
५॰ भिखारी को उड़द की दाल की कचोरी खिलानी चाहिए।
६॰ किसी दुःखी व्यक्ति के आँसू अपने हाथों से पोंछने चाहिए।
७॰ घर में काला पत्थर लगवाना चाहिए।
शनि के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु शनिवार का दिन, शनि के नक्षत्र (पुष्य, अनुराधा, उत्तरा-भाद्रपद) तथा शनि की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
राहु
१॰ ऐसे व्यक्ति को अष्टधातु का कड़ा दाहिने हाथ में धारण करना चाहिए।
२॰ हाथी दाँत का लाकेट गले में धारण करना चाहिए।
३॰ अपने पास सफेद चन्दन अवश्य रखना चाहिए। सफेद चन्दन की माला भी धारण की जा सकती है।
४॰ जमादार को तम्बाकू का दान करना चाहिए।
५॰ दिन के संधिकाल में अर्थात् सूर्योदय या सूर्यास्त के समय कोई महत्त्वपूर्ण कार्य नहीम करना चाहिए।
६॰ यदि किसी अन्य व्यक्ति के पास रुपया अटक गया हो, तो प्रातःकाल पक्षियों को दाना चुगाना चाहिए।
७॰ झुठी कसम नही खानी चाहिए।
राहु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु शनिवार का दिन, राहु के नक्षत्र (आर्द्रा, स्वाती, शतभिषा) तथा शनि की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
केतु
१॰ भिखारी को दो रंग का कम्बल दान देना चाहिए।
२॰ नारियल में मेवा भरकर भूमि में दबाना चाहिए।
३॰ बकरी को हरा चारा खिलाना चाहिए।
४॰ ऊँचाई से गिरते हुए जल में स्नान करना चाहिए।
५॰ घर में दो रंग का पत्थर लगवाना चाहिए।
६॰ चारपाई के नीचे कोई भारी पत्थर रखना चाहिए।
७॰ किसी पवित्र नदी या सरोवर का जल अपने घर में लाकर रखना चाहिए।
केतु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु मंगलवार का दिन, केतु के नक्षत्र (अश्विनी, मघा तथा मूल) तथा मंगल की होरा में अधिक शुभ होते हैं।......................

कुबेर साधना रहस्य -

कुबेर साधना रहस्य ---एक वार महा ऋषि पुलस्य के सिर पे बहुत बड़ी विपता आ पढ़ी और उन को उस समय में दरिद्रता का सहमना करना पड़ा जिस के चलते उस राज्य की प्रजा काल और सूखे की चपेट में या गई और धन न होने की वजह से चारो तरफ लोग भूख और गरीबी से बेहाल हो उठे तब महा ऋषि पुलस्य ने इस से उबरने के लिए कुबेर की सहायता लेनी चाही क्यू के वोह जानते थे के कुबेर के बिना धन नहीं आ सकता मगर दैवी नियमो के चलते कुबेर सीधे धन नहीं दे सकते थे !इस लिए महा ऋषि पुलस्य ने गणपती भगवान की साधना की तो गणपती ब्पा ने कुबेर को हुकम दिया के महा ऋषि की सहायता करे तो कुबेर ने कहा के अगर आप कुबेर यंत्र का स्थापन कर मेरे नो रूप में से किसी की भी साधना करेगे तो धन की बरसात होने लगेगी इस लिए महा ऋषि ने गणपती भगवान से प्रार्थना की और गणपती भगवान ने उन्हे कुबेर के 9 दिव्य रूप के मंत्र दिये महा ऋषि ने कुबेर यंत्र स्थापन कर कुबेर के 9 दिव्य रूप की साधना संपन की और परजा को दरिद्रता से उबारा साधना संपन होने से धन की बरसात होने लगी और चारो तरफ खुशहाली फ़ेल गई !इन 9 दिव्य रूपो की साधना आज भी हमारे शास्त्रो में है और जो एक वार इन साधनयों को कर लेता है उस के जीवन में कोई अभाव नहीं रहता !
क्या है यह कुबेर के 9 रूप -
1 - उग्र कुबेर -- यह कुबेर धन तो देते ही है साथ में आपके सभी प्रकार के शत्रुओ का भी हनन कर देते है !
2-पुष्प कुबेर --यह धन प्रेम विवाह ,प्रेम में सफलता ,मनो वर प्राप्ति ,स्न्मोहन प्राप्ति ,और सभी प्रकार के दुख से निवृति के लिए की जाती है !
3-चंद्र कुबेर -- इन की साधना धन एवं पुत्र प्राप्ति के लिए की जाती है ,योग्य संतान के लिए चंदर कुबेर की साधना करे !
4-पीत कुबेर -- धन और वाहन सुख संपति आदि की प्राप्ति के लिए पीत कुबेर की साधना की जाती है !इस साधना से मनो वाशित वाहन और संपति की प्राप्ति होती है !
5- हंस कुबेर -- अज्ञात आने वाले दुख और मुकदमो में विजय प्राप्ति के लिए हंस कुबेर की साधना की जाती है !
6- राग कुबेर -- भोतिक और अधियात्मक हर प्रकार की विधा संगीत ललित कलाँ और राग नृत्य आदि में न्पुनता और सभी प्रकार की परीक्षा में सफलता के लिए राग कुबेर की साधना फलदायी सिद्ध होती है !
7-अमृत कुबेर -- हर प्रकार के स्वस्थ लाभ रोग मुक्ति ,धन और जीवन में सभी प्रकार के रोग और दुखो के छुटकारे के लिए अमृत कुबेर की साधना दिव्य और फलदायी है !
8-प्राण कुबेर -- धन है पर कर्ज से मुक्ति नहीं मिल रही वेयर्थ में धन खर्च हो रहा हो तो प्राण कुबेर हर प्रकार के ऋण से मुक्ति दिलाने में सक्षम है !इन की साधना साधक को सभी प्रकार के ऋण से मुक्ति देती है !
9- धन कुबेर -- सभी प्रकार की कुबेर साधनयों में सर्व श्रेष्ठ है जीवन में हम जो भी कर्म करे उनके फल की प्राप्ति और धन आदि की प्राप्ति के लिए और मनोकामना की पूर्ति हेतु और भाग्य अगर साथ न दे रहा हो तो धन कुबेर की साधना सर्व श्रेष्ठ कही गई है !

आप इन में से जो भी साधना करना चाहते है अपने घर में कुबेर यंत्र लाये और और जिनहे जो साधना चाहे वोह मुझे सूचित कर दे जिस रूप की साधना करना चाहे बता दे उसे साधना पोस्ट कर दी जाएगी यह 9 रूप बहुत ही श्रेष्ठ दिव्य है और जल्द प्रसन होते है यह साधना एक एक दिन की है !आपकी जो रुचि हो कह दे अपने मन से अपने आपको साधना के लिए तयार करे !भाग्य आपके दुवार पे दस्तक दे रहा है !अगर गुरु इच्छा हुई तो इन 9 साधनाओ को मैं जहां पोस्ट कर दूंगा आप अपना मन बनाए और साधक बने सद्गुरु आपको जरूर सफलता देंगे ऐसा ही कामना करता हु।

तंत्र उपाय

१. सूर्योदय से पूर्व ब्रह्मा बेला में उठे , और अपने दोनों हांथो की हंथेली को रगरे और हंथेली को देख कर अपने मुंह पर फेरे, ,शास्त्रों में कहा गया है की कराग्रे वसते लक्ष्मी, करमध्ये सरस्वती । करमूले स्थिता गौरी, मंगलं करदर्शनम् ॥ इसलिए प्रातः काल उठकर अपने दोनों हांथो को देखे और अपने सर पर फेरे .
    २.मल , मूत्र , दातुन , और भोजन करते समय मौन ( शांत ) रहे . योग और प्राणायाम करें जिसको करने से शरीर हमेशा निरोग रहता है,
    3. . प्रातः अपने माता पिता गुरुजनों और अपने से बड़ों का आशीर्वाद ले , ऋषियों ने कहा है की जो भी माता बहन या भाई बंधू अपने घरों में रोज अपने से बड़ो या पति , सास -ससुर का रोज आशीर्वाद लेते है उनके घर में कभी अशांति नहीं आती है या कभी भी तलाक या महामरी नहीं हो टी है इशलिये अपने से बड़ो की इज्जत करें और उनका आशीर्वाद लें .
    ४ तिलक किये बिना और अपने सर को बिना ढके पूजा पाठ और पित्रकर्म या कोई भी शुभ कार्य न करें, जहाँ तक हो सके तिलक जरुर करें,
    5. रोज नहा धोकर अपने शारीर को स्वक्ष करें , साफ वस्त्र पहने , गुरु और इश्वर का चिंतन करते हुए अपने काम को इश्वर की सेवा करते हुए करें, कुछ भी खाने पिने से पहले गाय, कुत्ता और कौवा का भोजन जरुर निकले, इश्को करने से आप के घर में अन्ना का भंडार हमेशा भरा रहेगा.
    ६.सोते समय अपना सिरहाना (सर ) दक्षिण या पूर्व दिशा की तरफ करें.सिरहाना पूर्व या दक्षिण दिशा की ओर रखने से धन व आयु की बढ़ोत्तरी होती है।उत्तर की ओर सिरहाना रखने से आयु की हानि होतीहै
    ७. संक्रांति, द्वादशी , अमावश , पूर्णिमा और रविवार को और संध्या के समय में तुलशी दल न तोड़े.
    ८. कभी भी बीम या शहतीर के नीचे न बैठें और न ही सोयें । इससे देह पीड़ा या सिर दर्द होता है ।
    ९. अपने घर में तुलशी का पौधा लगायें ,
    १०-घर में पोछा लगाते समय पानी में नमक या सेंधा नमक डाल लें । घर में झाडू व पोंछा खुले स्थान पर न रखें ।
    ११-घर में टूटे-फूटे बतरन, टूटा दर्पण ( शीशा ), टूटी चारपाई या बैड न रखें । इनमें दरिद्रता का वास होता है।
    १२-यदि घर में कोइ घडी ठीक से नहीं चल रही हैं तो उन्हें ठीक करा लें ।बंद घड़ी गृहस्वामी के भाग्य को कम करती है ।
    १३-पूर्व की ओर मुंह करके भोजन करने से आयु, दक्षिण की ओर मुंह करके भोजन करने से प्रेत, पश्‍चिम की ओर मुंह करके भोजन करने से रोग व उत्तर की ओर मुंह करके भोजन करने से धन व आयु की प्राप्ति होती है ।
    १४- परोपकार का पालन करें, असहाय , गरीब और पशुओं और पर्यावरण की रक्षा करें
    १५- अपने धर्मं की रक्षा करें, मानव समाज की रक्षा करें, अपने देशा और जन्मभूमि की रक्षा करें ,
    १६-मन वाणी और कर्म से सदाचार का पालन करें .
    १७- प्यार ही जीवन है खुद भी जियो और दुशरो को भी जीनो दो ।

उड्डीस तंत्र

उड्डीस तंत्र 
ज्ञानांजन शलाका द्वारा अज्ञानता को दूर कर ज्ञान चक्षुओं को खोल देने वले श्री सदगुरुदेव को नमस्कार है। कैलाश पर्वत की चोटी पर बैठे हुये भगवान शिव से रावण ने निवेदन किया हे प्रभु आप मुझे ऐसी कोई तंत्र विद्या बतायें जिससे क्षणमात्र मे सिद्धि की प्राप्ति हो जाये। भगवान शिव बोले हे वस्त तुमने यह श्रेष्ठ प्रश्न पूछा है अत: लोक हितार्थ मैं उड्डीस तंत्र का वर्णन कर रहा हूँ।

जिसे उड्डीस तंत्र का पता नही है वह दूसरो पर गुस्सा करने के बाद कर भी क्या सकता है वह केवल अपने लहू और आत्मा मे चीत्कार कर सकता है और अपने ही शरीर को जला सकता है अपनी दिन चर्या को बरबाद कर सकता है। जैसे रात मे चन्द्रमा नही हो तो रात बेकार लगती है दिन मे सूर्य नही उदय हो तो दिन बेकार हो जाता है जिस राज्य मे राजा नही होता वह राज्य बेकार होती है वैसे बिना गुरु के कोई भी मंत्र की सिद्धि नही होती है।

पुस्तकों को पढकर किसी भी विद्या का ज्ञान नही होता है बिना गुरु के किसी भी तंत्र का अनुष्ठान हो ही नही सकता है,कलयुग मे जब गुरु की मान्यता ही समाप्त हो जाती है तो तंत्र के नाम पर केवल मदारी जैसे करिश्मे दिखाने से कोई तांत्रिक नही बनता है,गुरु मिलते भी है तो वे केवल अपना भंडार भरने वाले होते है,जो झूठ बोलना जानता हो और मजाक करने के बाद अपनी प्रस्तुति देना जानता हो कलयुग मे वही ज्ञानी और भक्ति से युक्त जान पडता है,इस समय मे भजन और कीर्तन भी चकाचौंध मे किये जाते है जो जितना मोहक और कामुक गाना बजाना नृत्य करना जानता है वही बडा भजन गाने वाला और भक्त कहलाता है।

उड्डीस तंत्र मे षडकर्म का उल्लेख जरूरी है इनके विधिवत अनुष्ठान से मनुष्य कुछ सिद्धिया जरूर प्राप्त कर सकता है जिससे वह अपनी जीविका और घोर जिन्दगी को खुशी जिन्दगी मे बदल सकता है। षटकर्म विधान मे शान्ति कर्म वशीकरण स्तंभन बैरभाव उच्चाटन और मारण आदि षटकर्म कहे गये है। जब मनुष्य अधिक क्रूर व्यक्तियों और समुदाय मे घिर जाता है चारो तरफ़ कलह और मारधाड ही देखने को मिलती है कसाई का काम करने वाले बढ जाते है तो शान्ति कर्म की प्रधानता बताई जाती है इस शान्ति कर्म वाले विधान करने से क्रूर शक्तियां पलायन कर जाती है और खुशहाली आजाती है लोग एक दूसरे के प्रति दया करना शुरु कर देते है। यही शान्ति कर्म जब शरीर मे रोग पैदा होते है ग्रहो का दोष पैदा हो जाता है तो किये जाते है।

जब अपना स्थान बनाने केलिये और अपने को सभी के प्रति सम्मान के भाव मे प्रस्तुत करने के लिये सभी को अपने प्रभाव मे लाने के लिये जो कार्य किये जाते है वह वशीकरण की श्रेणी मे आते है।पति पत्नी मे जब बैर भाव पैदा हो जाये माता पुत्र अलग अलग हो जाये पिता का सहयोग नही बन रहा हो भाई बहिन ही खुद के बैरी हो जाये तो वशीकरण नामक प्रयोग लाभदायी होता है।

जब समस्याये लगातार आगे बढती आ रही हो बैर करने वाले लोग चारो तरफ़ से घेरा डाल रहे हो पुलिस मुकद्दमा अस्प्ताल आदि के कारण लगातार घेरने लगे हो तो स्तम्भन नाम का तंत्र प्रयोग किया जाता है यही प्रयोग वे लोग भी अपनाते है जो अपने साथ के लोगो से आगे निकलने की होड मे अपने प्रभाव को हमेशा रखने के लिये उन्हे पीछे करना चाहते है लेकिन यह पापकर्म के अन्दर आने से उड्डीस तंत्र मे इसका प्रयोग खुद के लिये हानिकारक बन जाता है,जहां कोई बैर से आगे बढने की योजना को बनाता है और छल फ़रेब से आगे निकलने की क्रिया को करता है अनुचित काम करने के बाद वह आगे जाना चाहता है उसके लिये स्तम्भन का कार्य करना हितकर होता है।

काली पञ्च वाण

|| काली पञ्च वाण ||

आज के इस युग में प्रत्येक व्यक्ति अच्छे रोजगार की प्राप्ति में लगा हुआ है पर बहुत प्रयत्न करने पर भी अच्छी नौकरी नहीं मिलती है ! रोजगार सम्बन्धी किसी भी समस्या के समाधान के लिए इस मन्त्र का प्रतिदिन 11बार सुबह और 11बार शाम को जप करे !

प्रथम वाण

ॐ नमः काली कंकाली महाकाली
मुख सुन्दर जिए ब्याली
चार वीर भैरों चौरासी
बीततो पुजू पान ऐ मिठाई
अब बोलो काली की दुहाई !

द्वितीय वाण

ॐ काली कंकाली महाकाली
मुख सुन्दर जिए ज्वाला वीर वीर
भैरू चौरासी बता तो पुजू
पान मिठाई !

तृतीय वाण

ॐ काली कंकाली महाकाली
सकल सुंदरी जीहा बहालो
चार वीर भैरव चौरासी
तदा तो पुजू पान मिठाई
अब बोलो काली की दुहाई !

चतुर्थ वाण

ॐ काली कंकाली महाकाली
सर्व सुंदरी जिए बहाली
चार वीर भैरू चौरासी
तण तो पुजू पान मिठाई
अब राज बोलो
काली की दुहाई !

पंचम वाण

ॐ नमः काली कंकाली महाकाली
मख सुन्दर जिए काली
चार वीर भैरू चौरासी
तब राज तो पुजू पान मिठाई
अब बोलो काली की दोहाई !

|| विधि ||

इस मन्त्र को सिद्ध करने की कोई आवश्यकता नहीं है ! यह मन्त्र स्वयं सिद्ध है केवल माँ काली के सामने अगरबती जलाकर 11 बार सुबह और 11 बार शाम को जप कर ले ! मन्त्र एक दम शुद्ध है भाषा के नाम पर हेर फेर न करे !शाबर मन्त्र जैसे लिखे हो वैसे ही पढने पर फल देते है शुद्ध करने पर निष्फल हो जाते है !

गणेश जी के विभिन्न रूपों की आराधना का महत्त्व

गणेश जी के विभिन्न रूपों की आराधना का महत्त्व
 सफेद आंकड़े के गणेश 
तंत्र क्रियाओं में सफेद आंकड़ा (एक प्रकार का पौधा) की जड़ से निर्मित श्रीगणेश का विशेष महत्व है। इसे श्वेतार्क गणपति भी कहते हैं। कई टोने-टोटकों में श्रीगणेश के इस स्वरूप का उपयोग किया जाता है। श्वेतार्क गणपति को घर में स्थापित कर विधि-विधान से पूजा करने पर घर में किसी ऊपरी बाधा का असर नहीं होता।

 मूंगा गणेश 
मूंगा सिंदूरी रंग का एक रत्न होता है। इससे निर्मित श्रीगणेश की प्रतिमा को पूजा स्थान पर स्थापित करने व नित्य पूजा करने से शत्रुओं का भय समाप्त हो जाता है साथ ही इससे बने श्रीगणेश अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं।

 पन्ने के गणेश 
पन्ना भी हरे रंग का एक रत्न होता है। इससे निर्मित श्रीगणेश की प्रतिमा की पूजा स्थान पर स्थापित कर विधि-विधान से पूजा करने पर बुद्धि व यश प्राप्त होता है। विद्यार्थियों के लिए पन्ने के गणेशजी की पूजा करना श्रेष्ठ होता है।

 चांदी के गणेश 
जो लोग धन की इच्छा रखते हैं, उन्हें चांदी से निर्मित गणेश प्रतिमा की पूजा करना चाहिए। इन्हें पूजा घर में स्थापित कर दूर्वा चढ़ाने से धन-संपत्ति में वृद्धि होती है और धन की आगमन भी तेजी से होने लगता है। इनकी पूजा करने से जीवन का सुख प्राप्त होता है।

 चंदन की लकड़ी के गणेश 
चंदन की लकड़ी से निर्मित श्रीगणेश की प्रतिमा घर में कहीं भी स्थापित कर सकते हैं। इससे घर में किसी प्रकार की विपदा नहीं आती साथ ही परिवार के सदस्यों में सामंजस्य बना रहता है व पारिवारिक माहौल खुशहाल रहता है।

 पारद गणेश 
धन-संपत्ति प्राप्ति के लिए पारद यानी पारे से निर्मित गणेश प्रतिमा की पूजा भी की जाती है। यदि किसी ने आपके घर पर या घर के किसी सदस्य पर तंत्र प्रयोग किया हो तो पारद गणेश की पूजा से उसका कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता।

बांसुरी बजाते गणेश 
यदि आपके घर में रोज क्लेश या विवाद होता है तो आपको बांसुरी बजाते हुए श्रीगणेश की तस्वीर या मूर्ति घर में स्थापित करना चाहिए। बांसुरी बजाते हुए श्रीगणेश की पूजा करने से घर में सुख-शांति का वातावरण रहता है।

हरे रंग के गणेश 
हरे रंग के श्रीगणेश की पूजा करने से ज्ञान व बुद्धि की वृद्धि होती है। विद्यार्थियों को विशेषतौर पर हरे रंग की श्रीगणेश की मूर्ति या तस्वीर का पूजन करना चाहिए।

 हाथी पर बैठे गणेश 
यदि आप धन की इच्छा रखते हैं तो आपको हाथी पर बैठे श्रीगणेश की पूजा करना चाहिए। हाथी पर विराजित श्रीगणेश की पूजा करने से पैसा, इज्जत व शौहरत मिलती है।

नाचते हुए गणेश 
नाचते हुए गणेश की पूजा करने से मन को शांति का अनुभव होता है। यदि आप किसी तनाव में हैं तो आपको प्रतिदिन नाचते हुए श्रीगणेश की पूजा करना चाहिए।

पंचमुखी गणेश 
तंत्र क्रिया की सिद्धि के लिए पंचमुखी श्रीगणेश का पूजन किया जाता है, इससे कोई भी तंत्र क्रिया किसी भी बाधा के संपन्न हो जाती है।

Friday, 17 September 2021

गणपति पूजन में तुलसी निषिद्ध क्यों

गणपति पूजन में तुलसी निषिद्ध क्यों 
मनोहारिणी तुलसी समस्त पौधों में श्रेष्ठ मानी जाती हैं। इन्हें समस्त पूजन कर्मो में प्रमुखता दी जाती है साथ ही मंदिरों में चरणामृत में भी तुलसी का प्रयोग होता है तथा ऎसी कामना होती है कि यह अकाल मृत्यु को हरने वाली तथा सर्व व्याधियों का नाश करने वाली हैं परन्तु यही पूज्य तुलसी देवों को भगवान श्री गणेश की पूजा में निषिद्ध मानी गई हैं। इनसे सम्बद्ध ब्रrाकल्प में एक कथा मिलती है जो कि इसके कारण को व्यक्त करती है।
कथा — एक समय नवयौवना, सम्पन्ना तुलसी देवी नारायण परायण होकर तपस्या के निमित्त से तीर्थो में भ्रमण करती हुई गंगा तट पर पहुँचीं। वहाँ पर उन्होंने गणेश को देखा, जो कि तरूण युवा लग रहे थे। अत्यन्त सुन्दर, शुद्ध और पीताम्बर धारण किए हुए थे, आभूषणों से विभूषित थे, सुन्दरता जिनके मन का अपहरण नहीं कर सकती, जो कामनारहित, जितेन्द्रियों में सर्वश्रेष्ठ, योगियों के योगी तथा जो श्रीकृष्ण की आराधना में घ्यानरत थे। उन्हें देखते ही तुलसी का मन उनकी ओर आकर्षित हो गया। तब तुलसी उनका उपहास उडाने लगीं। घ्यानभंग होने पर गणेश जी ने उनसे उनका परिचय पूछा और उनके वहां आगमन का कारण जानना चाहा। गणेश जी ने कहा—माता! तपस्वियों का घ्यान भंग करना सदा पापजनक और अमंगलकारी होता है। "" शुभे! भगवान श्रीकृष्ण आपका कल्याण करें, मेरे घ्यान भंग से उत्पन्न दोष आपके लिए अमंगलकारक न हो। ""
इस पर तुलसी ने कहा—प्रभो! मैं धर्मात्मज की कन्या हूं और तपस्या में संलग्न हूं। मेरी यह तपस्या पति प्राप्ति के लिए है। अत: आप मुझसे विवाह कर लीजिए। तुलसी की यह बात सुनकर बुद्धि श्रेष्ठ गणेश जी ने उत्तर दिया— " हे माता! विवाह करना बडा भयंकर होता है, मैं ब्रम्हचारी हूं। विवाह तपस्या के लिए नाशक, मोक्षद्वार के रास्ता बंद करने वाला, भव बंधन की रस्सी, संशयों का उद्गम स्थान है। अत: आप मेरी ओर से अपना घ्यान हटा लें और किसी अन्य को पति के रूप में तलाश करें। तब कुपित होकर तुलसी ने भगवान गणेश को शाप देते हुए कहा—"कि आपका विवाह अवश्य होगा।" यह सुनकर शिव पुत्र गणेश ने भी तुलसी को शाप दिया—" देवी, तुम भी निश्चित रूप से असुरों द्वारा ग्रस्त होकर वृक्ष बन जाओगी। "
इस शाप को सुनकर तुलसी ने व्यथित होकर भगवान श्री गणेश की वंदना की। तब प्रसन्न होकर गणेश जी ने तुलसी से कहा—हे मनोरमे! तुम पौधों की सारभूता बनोगी और समयांतर से भगवान नारायण की प्रिया बनोगी। सभी देवता आपसे स्नेह रखेंगे परन्तु श्रीकृष्ण के लिए आप विशेष प्रिय रहेंगी। आपकी पूजा मनुष्यों के लिए मुक्तिदायिनी होगी तथा मेरे पूजन में आप सदैव त्याज्य रहेंगी। ऎसा कहकर गणेश जी पुन: तप करने चले गए। इधर तुलसी देवी दु:खित ह्वदय से पुष्कर में जा पहुंची और निराहार रहकर तपस्या में संलग्न हो गई। तत्पश्चात गणेश के शाप से वह चिरकाल तक शंखचूड की प्रिय पत्नी बनी रहीं। जब शंखचूड शंकर जी के त्रिशूल से मृत्यु को प्राप्त हुआ तो नारायण प्रिया तुलसी का वृक्ष रूप में प्रादुर्भाव हुआ है।

दुर्गा सप्तशती पाठ विधि

  दुर्गा सप्तशती दुर्गा सप्तशती पाठ विधि पूजनकर्ता स्नान करके, आसन शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके, शुद्ध आसन पर बैठ जाएँ। माथे पर अपनी पसंद क...