Friday, 10 September 2021

दत्तात्रेय तंत्र में वशीकरण प्रयोग


दत्तात्रेय तंत्र में वशीकरण प्रयोग

तंत्र शीघ्र कामना की सिद्धि करने वाला माना जाता है। भगवान् दत्तात्रेय को अवतार की संज्ञा दी गयी है। कलियुग में अमर और प्रत्यक्ष देवता के रूप में भगवान् दत्तात्रेय सदा प्रश
दत्तात्रेय तंत्र देवाधिदेव महादेव शंकर के साथ महर्षि दत्तात्रेय का एक संवाद पत्र है।

मोहन प्रयोग `:-
तुलसी-बीजचूर्ण तु सहदेव्य रसेन सह। रवौ यस्तिलकं कुर्यान्मोहयेत् सकलं जगत्।।
तुलसी के बीज के चूर्ण को सहदेवी के रस में पीस कर तिलक के रूप में उसे ललाट पर लगाएं। उससे उसको देखने वाले मोहित हो जाते हैं।

हरितालं चाश्वगन्धां पेषयेत् कदलीरसे। गोरोचनेन संयुक्तं तिलके लोकमोहनम्।।
हरताल और असगन्ध को केले के रस में पीस कर उसमें गोरोचन मिलाएं तथा उसका मस्तक पर तिलक लगाएं तो उसको देखने से सभी लोग मोहित हो जाते हैं।
श्रृङ्गि-चन्दन-संयुक्तो वचा-कुष्ठ समन्वितः। धूपौ गेहे तथा वस्त्रे मुखे चैव विशेषतः।। राजा प्रजा पशु-पक्षि दर्शनान्मोहकारकः। गृहीत्वा मूलमाम्बूलं तिलकं लोकमोहनम्।।
काकडा सिंगी, चंदन, वच और कुष्ठ इनका चूर्ण बनाकर अपने शरीर तथा वस्त्रों पर धूप देने तथा इसी चूर्ण से तिलक लगाने पर राजा, प्रजा, पशु और पक्षी उसे देखने मात्र से मोहित हो जाते हैं। इसी प्रकार ताम्बूल की जड़ को घिस कर उसका तिलक करने से लोगों का मोहन होता है।

सिन्दूरं कुङ्कुमं चैव गोरोचन समन्वितम्। धात्रीरसेन सम्पिष्टं तिलकं लोकमोहनम्।।
सिन्दूर, केशर, और गोरोचन इन तीनों को आंवले के रस में पीसकर तिलक लगाने से लोग मोहित हो जाते हैं।

सिन्दूरं च श्वेत वचा ताम्बूल रस पेषिता। अनेनैव तु मन्त्रेण तिलकं लोकनोहनम्।।
सिन्दूर और सफेद वच को पान के रस में पीस कर आगे उद्धृत किये मंत्र से तिलक करें तो लोग मोहित हो जाते हैं।

अपामार्गों भृङ्गराजो लाजा च सहदेविका। एभिस्तु तिलकं कृत्वा त्रैलोक्यं मोहयेन्नरः।।
अपामार्ग-ओंगा, भांगरा, लाजा, धान की खोल और सहदेवी इनको पीस कर उसका तिलक करने से व्यक्ति तीनों लोकों को मोहित कर लेता है।

श्वेतदूर्वा गृहीता तु हरितालं च पेषयेत्। एभिस्तु तिलकं कृत्वा त्रैलोक्यं मोहयेन्नरः।।
सफेद दूर्वा और हरताल को पीसकर उसका तिलक करने से मनुष्य तीनों लोकों को मोह लेता है।

मनःशिला च कर्पूरं पेषयेत् कदलीरसे। तिलकं मोहनं नृणां नान्यथा मम भाषितम्।।
मैनसिल और कपूर को केले के रस में पीस कर तिलक करने से वह मनुष्यों को मोहित करता है।

अथ कज्जल विधानम् गृहीत्वौदुम्बरं पुष्पं वर्ति कृत्वा विचक्षणैः। नवनीतेन प्रज्वाल्य कज्जलं कारयेन्निशि।। कज्जलं चांजयेन्नेत्रे मोहयेत् सकलं जगत्। यस्मै कस्मै न दातव्यं देवानामपि दुर्लभम्।।
बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि गूलर के पुष्प से कपास रूई के साथ बत्ती बनाए और उस बत्ती को नवनीत से प्रज्वलित कर जलती हुई ज्वाला से काजल निकाले तथा उस काजल को रात में अपनी आंखों में लगा लें। इस काजल के लगाने से वह समस्त जगत को मोहित कर लेता है। ऐसा सिद्ध किया हुआ काजल किसी भी व्यक्ति को नहीं दें।

अथ लेपविधानम् श्वेत-गुंजारसे पेष्यं ब्रह्मदण्डीय-मूलकम्। शरीरे लेपमात्रेण मोहयेत् सर्वतो जगत्।।
श्वेतगुंजा सफेद घूंघची के रस में बह्मदण्डी की जड़ को पीस लें और उसका शरीर में लेप करें तो उससे समस्त जगत् मोहित हो जाता है।

पंचांगदाडिमी पिष्ट्वा श्वेत गुंजा समन्विताम्। एभिस्तु तिलकं कृत्वा मोहयेत् सकलं जगत्।।
अनार के पंचांग (जड़, पत्ते फल, पुष्प और टहनी) को पीसकर उसमें सफेद घुंघुची मिलाकर तिलक लगाएं। इस तिलक के प्रभाव से व्यक्ति समस्त जगत को मोहित कर लेता है।
मन्त्रस्तु इन प्रयोगों की सिद्धि के लिए अग्रिम दिए हुए मंत्रों के दस हजार जप करने से लाभ होता है।
”¬
नमो भगवते रुद्राय सर्वजगन्मोहनं कुरु कुरु स्वाहा।अथवा ”¬ नमो भगवते कामदेवाय यस्य यस्य दृश्यो भवामि यश्य यश्य मम मुखं पश्यति तं तं मोहयतु स्वाहा।।

आकर्षण प्रयोग:-
कृष्ण धत्तूरपत्राणां रसं रोचनसंयुतम्। श्वेतकर्वीर लेखन्या भूर्जपत्रे लिखेत् ततः।। मन्त्रं नाम लिखेन्मध्ये तापयेत् खदिराग्निना। शतयोजनगो वापि शीघ्रमायाति नान्यथा।
काले धतूरे के पत्रों से रस निकालकर उसमें गोरोचन मिलाएं और स्याही बना लें। फिर सफेद कनेर की कलम से भोजपत्र पर जिसका आकर्षण करना हो उसका नाम लिखें और उसके चारों ओर मंत्र लिखें। फिर उसको खैर की लकड़ी से बनी आग पर तपाएं, इससे जिसके लिए प्रयोग किया हो, वह सौ योजन दूर गया हो तो भी शीघ्र ही वापस आ जाता है।

अनामिकाया रक्तेन लिखेन्मन्त्रं च भूर्जके। यस्य नाम लिखन्मध्ये मधुमध्ये च निक्षिपेत्।। तेन स्यादाकर्षणं च सिद्धयोग उदाहृतः। यस्मै कस्मै न दातव्यं नान्यथा मम भाषितम्।।
अनामिका अंगुली के रक्त से भोजपत्र पर मंत्र लिखें और मध् य में अभीष्ट व्यक्ति का नाम लिख कर मधु में डाल दें, इसमें जिसका नाम लिखा हुआ होगा उसका आकर्षण हो जाएगा। यह सिद्ध योग कहा गया है।
अथाकर्षण मंत्र ”¬ नम आदिपुरुषाय अमुकस्याकर्षणं कुरु कुरु स्वाहा।एकलक्षजपान्मन्त्रः सिद्धो भवति सर्वथा। अष्टोत्तरशतजपादग्रे प्रयोगोऽस्य विधीयते।।
इस मंत्र का एक लाख बार जप करने से यह मंत्र पूर्ण रूप से सिद्ध हो जाता है। तदंतर प्रयोग से पूर्व इस मंत्र का 108 बार जप करके इसका प्रयोग किया जाता है।

सर्वजन वशीकरण प्रयोग:-
ब्रह्मदण्डी वचाकुष्ठ चूर्ण ताम्बूल मध्यतः। पाययेद् यं रवौ वारे सोवश्यो वर्तते सदा।।
ब्रह्मदण्डी, वच और कुठ के चूर्ण को रविवार के दिन पान में डालकर खिला दें। जिसको खिलाया जाए वह सदैव के लिए वश में हो जाता है।

गृहीत्वा वटमूलं च जलेन सह घर्षयेत्। विभूत्या संयुतं शाले तिलकं लोकवश्यकृत।।
बड़ के पेड़ की जड़ को पानी में घिस कर उसमें भस्म मिलाएं और उसका तिलक लगाएं तो उसे देखने वाले लोग वशीभूत हो जाते हैं।

पुष्ये पुनर्नवामूलं करे सप्ताभिमन्त्रितम्। बुद्ध्वा सर्वत्र पूज्येत सर्वलोक वशङ्करः।।
पुष्य नक्षत्र के दिन पुनर्नवा की जड़ को लाकर उसे वशीकरण मंत्र से सात बार अभिमंत्रित करें और हाथ में बांधे तो वह सर्वत्र पूजित होता है तथा सभी लोग उसके वशीभूत हो जाते हैं।

पिष्ट्वाऽपामार्गमूलं तु कपिला पयसा युतम्। ललाटे तिलकं कृत्वा वशीकुयोज्जगत्त्रयम्।।
कपिला गाय के दूध में अपामार्ग आंधी झाड़ा की जड़ को पीस कर ललाट पर तिलक करने से त्रिलोक को भी वश में किया जा सकता है।

गृहीत्वा सहदेवीं च छायाशुष्कां च कारयेत्। ताम्बूलेन च तच्चूर्ण सर्वलोकवशंकरः।।
सहदेवी को छाया में सुखाकर उसका चूर्ण बना लें तथा उसे पान में डाल कर खिलाएं तो सभी का वशीकरण हो जाता है।

रोचना सहदेवीभ्यां तिलकं लोकवश्यकृत्।
गोरोचन और सहदेवी को मिलाकर उसका तिलक करने वाला सब को वश में कर लेता है।

गृहीत्वौदुम्बरं मूलं ललाटे तिलकं चरेत्। प्रियो भवति सर्वेषां दृष्टमात्रो न संशयः।।
उदुम्बर की जड़ को घिस कर उससे जो तिलक लगाता है, उस पर जिसकी दृष्टि पड़ती है, वह उसके वश में हो जाता है। इसमें कोई संशय नहीं है।

ताम्बूलेन प्रदातव्यं सर्वलोक वशङ्करम्।
यदि गूलर की जड़ का चूर्ण पान में डालकर खिलाया जाए तो उससे वह वश में हो जाता है जिसे यह खिलाया जाता है।

सिद्धार्थ देवदाल्योश्च गुटिकां कारयेद् बुधः। मुखे निक्षिप्य भाषेत सर्वलोक वशङ्करम्।।
सरसों और देवदाली के चूर्ण की गोली बनाकर उसे मुंह में रखकर बातचीत करने से जिससे बात करता है, वह वश में हो जाता है।

कुङ्कुमं नागरं कुष्ठं हरितालं मनःशिलाम्। अनामिकाया रक्तेन तिलकं सर्ववश्यकृत।।
केशर, सोंठ, कुठ, हरताल और मैनसिल का चूर्ण करके उसमें अपनी अनामिका अंगुली का रक्त मिलाकर तिलक लगाने से सभी लोग वश में हो जाते हैं।

गोरोचनं पद्मपत्रं प्रियङ्गुं रक्तचन्दनम्। एषां तु तिलकं भाले सर्वलोक वशङ्करम्।।
गोरोचन, कमल का पत्र, कांगनी और लाल चंदन इनका ललाट पर तिलक करने से व्यक्ति वश में हो जाते हैं।

गृहीत्वा श्वेतगुंजां च छयाशुष्कां तु कारयेत्। कपिला पयसा सार्द्ध तिलकं लोकवश्यकृत्।।
सफेद घुंघुची को छाया में सुखा कर कपिला गाय के दूध में घिस कर तिलक करने से सर्वजन वश में हो जाते हैं।

श्वेतार्क च गृहीत्वा च छायाशुष्कं तु कारयेत्। कपिला पयसा सार्द्ध तिलकं लोकवश्यकृत्।।
सफेद मदार (आक) को छाया में सुखा कर कपिला गाय के दूध में घिस कर तिलक करने से सर्वजन वश में हो जाते हैं।

श्वेतार्क च गृहीत्वा च कपिला दुग्ध मिश्रिताम्। लेपमात्रं शरीरे तु सर्वलोक वशङ्करम्।।
सफेद दूर्वा को कपिला गाय के दूध में मिलाकर शरीर में लेप करने मात्र से सभी जन वश में हो जाते हैं।

बिल्वपत्राणि संगृहय मातुलुंगं तथैव च। अजादुग्धेन तिलकं सर्वलोक वशङ्करम्।।
बिल्व पत्र और बिजोरा नीबू को बकरी के दूध में पीसकर तिलक करने से सर्वजन वश में हो जाते हैं।

कुमारी मूलमादाय विजया बीज संयुतम्। तलकं मस्तके कुर्यात् सर्वलोक वशङ्करम्।।
घी कुंवारी की जड़ और भांग के बीज, दोनों को मिलाकर मस्तक पर तिलक करने से सर्वजन वश में हो जाते हैं।

हरितालं चाश्वगन्धा सिन्दूरं कदली रसः। एषां तु तिलकं भाले सर्वलोक वशङ्करम्।।
हरताल और असगन्ध को सिन्दूर तथा केले के रस म मिलाकर ललाट पर तिलक करने से सर्वजन वश में हो जाते हैं।

अपामार्गस्य बीजानि छागदुग्धेन पेषयेत्। अनेन तिलकं भाले सर्वलोक वशङ्करम।।
अपामार्ग के बीजों को बकरी के दूध में पीसकर उसका कपाल में तिलक लगाने से समस्त जन वश में होते हैं।

ताम्बूलं तुलसी पत्रं कपिलादुग्धेन पेषितम्। अनेन तिलकं भाले सर्वलोक वशङ्करम्।।
नागरबेल का पान और तुलसी पत्र को कपिला गाय के दूध में पीस कर उसका मस्तक पर तिलक लगाने से समस्त जन वश में हो जाते हैं।

धात्रीफलरसैर्भाव्यमश्वगन्धा मनः शिला। अनेन तिलकं भाले सर्वलोक वशङ्करम्।।
आंवले के रस में मैनसिल और असगंध को मिलाकर ललाट पर तिलक करने से समस्त जन वश में हो जाते हैं।

अथ वशीकरण मंत्र इन उपर्युक्त वस्तुओं को अभिमंत्रित करने का मंत्र इस प्रकार है- ”¬ नमो नारायणाय सर्वलोकान् मम वशं कुरु कुरु स्वाहा।
इसकी प्रयोगात्मक सफलता के लिए एकलक्षजपान्मन्त्रः सिद्धो भवति नान्यथा। अष्टोत्तरशतजपात् प्रयोगे सिद्धिरुत्तमा।। एक लाख जप से यह मंत्र सिद्ध होता है और प्रयोग के समय इस मंत्र का 108 बार जप करके प्रयोग करने से सफलता मिलती है।

युवक एवं युवती वशीकरण प्रयोग:-
रविवारे गृहीत्वा तु कृष्णधत्तूरपुष्पकम्। शाखां लतां गृहीत्वा तु पत्रं मूलं तथैव च।। पिष्ट्वा कर्पूरसंयुक्तं कुङ्कुमं रोचनां तथा। तिलकैः स्त्रीवशीभूता यदि साक्षादरुन्धती।।
रविवार के दिन काले धतूरे के पुष्प, शाखा, लता और जड़ लेकर उनमें कपूर, केशर और गोरोचन पीसकर मिला दें और तिलक बना लें। इस तिलक को मस्तक पर लगाने से स्त्री चाहे वह साक्षात् अरुंधती जैसी भी हो, तो भी वश में हो जाती है।

काकजङ्घा व तगरं कुङ्कुमं तु मनःशिलाम्।। चूर्ण स्त्रीशिरसि क्षिप्तं वशीकरणमद्भुतम्।।
काकजङ्घा, तगर, केशर और मैनशिल का चूर्ण बनाकर उसे स्त्री के सिर पर डाले तो वह वश में हो जाती है। यह उत्तम वशीकरण है।

ब्रह्मदण्डीं समादाय पुष्यार्केण तु चूर्णयेत्। कामार्ता कामिनीं दृष्ट्वा उत्तमाङ्गे विनिक्षिपेत्।। पृष्ठतः सा समायाति नान्यथा मम भाषितम्।
रवि पुष्य के दिन ब्रह्मदंडी को लाकर उसको पीस लें। तदनंतर जिस काम पीड़ित कामिनी के मस्तक पर वह चूर्ण डाला जाए वह स्त्री ऐसी आकर्षक हो जाती है कि प्रयोग करने वाले पुरुष के पीछे-पीछे वह चली आती है।

राजवशीकरण प्रयोग:-
कुङ्कुमं चन्दनं चैव कर्पूरं तुलसीदलम्। गवां क्षीरेण तिलकं राजवश्यकरं परम्।।
केशर, चंदन, कपूर और तुलसी पत्र को गाय के दूध में पीस कर तिलक करने से राजा का वशीकरण हो जाता है।

करे सुदर्शनं मूलं बद्ध्वा राजप्रियो भवेत्।
सुदर्शन जामुन की जड़ को हाथ में बांधकर मनुष्य राजा का अथवा अपने बड़े अधिकारी का प्रिय हो जाता है।

हरितालं चाश्वगन्धां कर्पूरं च मनःशिलाम्। अजाक्षीरेण तिलकं राजवश्यकरं परम्।।
हरताल, असगंध, कपूर तथा मैनसिल को बकरी के दूध म पीस कर तिलक लगाने से राजा का वशीकरण होता है।

हरेत् सुदर्शनं मूलं पुष्यभे रविवासरे। कर्पूरं तुलसीपत्रं पिष्ट्वा तु वस्त्रलेपने।। विष्णुक्रान्तस्य बीजानां तैले प्रज्वाल्य दीपके। कज्जलं पातयेद रात्रौ शुचिपूर्व समाहितः।। कज्जलं चांजयेन्नेत्रे राजवश्यकरं परम्।। जामुन की जड़ को रविपुष्य के दिन लाए और कपूर तथा तुलसीपत्र के साथ पीस कर एक वस्त्र के ऊपर लपेट लें। तदनंतर अपराजिता के बीजों के तेल से दीपक जलाएं। दीपक से रात्रि में पवित्रता और सावधानी से काजल बनाएं और उसे अपने दोनों नेत्रों में लगा लें। ऐसा करने से राजा का वशीकरण होता है।

भौमवारे दर्शदिने कृत्वा नित्यक्रियां शुचिः। वने गत्वा हयपामार्गवृक्षं पश्येदुदङ् मुखः।। तत्र विप्रं समाहूय पूजां कृत्वा यथा विधि। कर्षमेकं सुवर्ण च दद्यात् तस्मै द्विजन्मने।। तस्य हस्तेन गृहीणीयादपामार्गस्य बीजकम्। कृत्वा निस्तुषबीजानि मौनी गच्छेन्निजं गृहम्।। रमेशं हृदये ध्यात्वा राजानं खादयेच्च तान्। येनकेनाप्युपायेन यावज्जीवं वशं भवेत्।।
मंगलवार के दिन वाली अमावस्या को अपना नित्यकर्म करके पवित्रता पूर्वक वन में चला जाए और वहां उत्तर की ओर मुंह करके खड़ा हो, अपामार्ग वृक्ष को देखे। फिर वहां ब्राह्मण को बुलाकर विधिपूर्वक उसकी पूजा करके उसे 16 माशा सुवर्ण दान दें और उसके हाथ से अपामार्ग के बीजों को साफ करके हृदय में भगवान विष्णु का ध्यान करें और जैसे भी बने वे बीज राजा को खिला दें। इस प्रकार प्रयोग करने से राजा जन्म भर के लिए दास बन जाता है। तालीस, कुठ और तगर को एक साथ पीस कर लेप बना लें। फिर नर कपाल में सरसों का तेल डालकर रेशमी वस्त्र की बत्ती जलाएं तथा काजल बनाएं। उस काजल को आंखों में लगा लें। इसमें जो भी देखने में आता है वह वश में हो जाता है। यह प्रयोग तीनों लोकों को वश में करने वाला है।
अपामार्गस्य बीजं तु गृहीत्वा पुष्य भास्करे। खाने पाने प्रदातव्यं राजवश्यकरं परम्।।
रविपुष्य के दिन अपामार्ग के बीज लाकर उन्हें भोजन में अथवा पानी में मिलाकर यदि राजा को खिला दिया जाए तो वह वश में हो जाता है।
अथ वशीकरण मंत्र ”¬ नमो भास्कराय त्रिलोकात्मने अमुकं महीपतिं वशं कुरु कुरु स्वाहा।इसका विधान इस प्रकार है एकलक्षजपादस्य सिद्धिर्भवति नान्यथा। अष्टोत्तरशतजपादस्य प्रयोगे सिद्धिरुत्तमा।। प्रथम पुरश्चरण के रूप में उपर्युक्त मंत्र का एक लाख बार जप कर लें। इससे निश्चित सिद्धि होती है और प्रयोग करने का अवसर आने पर एक सौ आठ बार जप करके प्रयोग करें तो उसमें पूर्ण सफलता प्राप्त होती है।

 

 

तंत्र के उपाय

तंत्र के उपाय
१. मोर की कलगी रेश्मी वस्त्र में बांधकर जेब में रखने से सम्मोहन शक्ति 
बढ़ती है।
२. श्वेत अपामार्ग की जड़ को घिसकर तिलक करने से सम्मोहन 
शक्ति बढ़ती है।
३. स्त्रियां अपने मस्तक पर आंखों के मध्य एक लाल बिंदी लगाकर
उसे देखने का प्रयास करें।
यदि कुछ समय बाद बिंदी खुद को दिखने लगे तो 
समझ लें कि आपमें सम्मोहन शक्ति जागृत हो गई है।
४. गुरुवार को मूल नक्षत्र में केले की जड़ को सिंदूर में
मिलाकर पीस कर रोजाना तिलक करने से आकर्षण शक्ति बढ़ती है।
५. गेंदे का फूल, पूजा की थाली में रखकर हल्दी के कुछ छींटे 
मारें व गंगा जल के साथ पीसकर माथे पर तिलक लगाएं
आकर्षण शक्ति बढ़ती है।
६. कई बार आपको यदि ऐसा लगता है कि परेशानियां व 
समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। धन का आगमन रुक गया है

या आप पर किसी द्वारा तांत्रिक अभिकर्म'' किया गया है
तो आप यह टोटके अवश्य प्रयोग करें, 
आपको इनका प्रभाव जल्दी ही प्राप्त होगा।
तांत्रिक अभिकर्म से प्रतिरक्षण हेतु उपाय
१. पीली सरसों, गुग्गल, लोबान व गौघृत 
इन सबको मिलाकर इनकी धूप बना लें व सूर्यास्त के 
1 घंटे भीतर उपले जलाकर उसमें डाल दें।
ऐसा २१ दिन तक करें व इसका धुआं पूरे घर में करें
। इससे नकारात्मक शक्तियां दूर भागती हैं।
२. जावित्री, गायत्री व केसर लाकर उनको कूटकर गुग्गल मिलाकर धूप बनाकर
सुबह शाम २१ दिन तक घर में जलाएं। धीरे-धीरे तांत्रिक अभिकर्म समाप्त होगा।
३. गऊ, लोचन व तगर थोड़ी सी मात्रा में लाकर लाल कपड़े में बांधकर 

अपने घर में पूजा स्थान में रख दें। शिव कृपा से तमाम टोने-टोटके का 
असर समाप्त हो जाएगा।
४. घर में साफ सफाई रखें व पीपल के पत्ते से ७ दिन तक 
घर में गौमूत्र के छींटे मारें व तत्पश्चात् शुद्ध गुग्गल का धूप जला दें।
५. कई बार ऐसा होता है कि शत्रु आपकी सफलता व तरक्की से चिढ़कर
तांत्रिकों द्वारा अभिचार कर्म करा देता है।
इससे व्यवसाय बाधा एवं गृह क्लेश होता है
अतः इसके दुष्प्रभाव से बचने हेतु सवा 1 किलो काले उड़द, सवा 1 किलो कोयला को 
सवा 1 मीटर काले कपड़े में बांधकर
अपने ऊपर से २१ बार घुमाकर शनिवार के दिन
बहते जल में विसर्जित करें व मन में हनुमान जी का ध्यान करें।

ऐसा लगातार ७ शनिवार करें। तांत्रिक अभिकर्म पूर्ण रूप से समाप्त हो जाएगा।
६. यदि आपको ऐसा लग रहा हो कि कोई आपको मारना चाहता है 
तो पपीते के २१ बीज लेकर शिव मंदिर जाएं व शिवलिंग पर कच्चा दूध 
चढ़ाकर धूप बत्ती करें तथा शिवलिंग के 
निकट बैठकर पपीते के बीज अपने सामने रखें। अपना नाम, गौत्र उच्चारित 
करके भगवान् शिव से 
अपनी रक्षा की गुहार करें व एक माला महामृत्युंजय मंत्र 
की जपें तथा बीजों को एकत्रित कर तांबे के ताबीज में भरकर गले में धारण कर लें।

ज्योतिष के विशिष्ट उपाय

ज्योतिष के विशिष्ट उपाय
 अगर आपको किसी विशेष काम से जाना है, तो नीले रंग का धागा ले कर घर से निकलें। घर से जो तीसरा खंभा पड़े, उस पर, अपना काम कह कर, नीले रंग का धागा बांध दें। काम होने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। हल्दी की ७ साबुत गांठें, ७ गुड़ की डलियां, एक रुपये का सिक्का किसी पीले कपड़े में बांध कर, रेलवे लाइन के पार फेंक दें। फेंकते समय कहें काम दे, तो काम होने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी।
* धन के लिए एक हंडियां में सवा किलो हरी साबुत मूंग दाल या मूंगी, दूसरी में सवा किलो डलिया वाला नमक भर दें। यह दो हंडियां घर में कहीं रख दें। यह क्रिया बुधवार को करें। घर में धन आना शुरू हो जाएगा।
* मिर्गी के रोग को दूर करने के लिए अगर गधे के दाहिने पैर का नाखून अंगूठी में धारण करें, तो मिर्गी की बीमारी दूर हो जाती है।
* भूत-प्रेत और जादू-टोना से बचने के लिए मोर पंख को अगर ताबीज में भर के बच्चे के गले में डाल दें, तो उसे भूत-प्रेत और जादू-टोने की पीड़ा नहीं रहती।
* परीक्षा में सफलता हेतु गणेश रुद्राक्ष धारण करें। बुधवार को गणेश जी के मंदिर में जाकर दर्शन करें और मूंग के लड्डुओं का भोग लगाकर सफलता की प्रार्थना करें।
* पदोन्नति हेतु शुक्ल पक्ष के सोमवार को सिद्ध योग में तीन गोमती चक्र चांदी के तार में एक साथ बांधें और उन्हें हर समय अपने साथ रखें, पदोन्नति के साथ-साथ व्यवसाय में भी लाभ होगा।
* मुकदमे में विजय हेतु पांच गोमती चक्र जेब में रखकर कोर्ट में जाया करें, मुकदमे में निर्णय आपके पक्ष में होगा।
* पढ़ाई में एकाग्रता हेतु शुक्ल पक्ष के पहले रविवार को इमली के २२ पत्ते ले आएं और उनमें से ११ पत्ते सूर्य देव को ¬ सूर्याय नमः कहते हुए अर्पित करें। शेष ११ पत्तों को अपनी किताबों में रख लें, पढ़ाई में रुचि बढ़ेगी।
* कार्य में सफलता के लिए अमावस्या के दिन पीले कपड़े का त्रिकोना झंडा बना कर विष्णु भगवान के मंदिर के ऊपर लगवा दें, कार्य सिद्ध होगा।
* कारोबार में हानि हो रही हो अथवा ग्राहकों का आना कम हो गया हो, तो समझें कि किसी ने आपके कारोबार को बांध दिया है। इस बाधा से मुक्ति के लिए दुकान या कारखाने के पूजन स्थल में शुक्ल पक्ष के शुक्रवार को अमृत सिद्ध या सिद्ध योग में श्री धनदा यंत्र स्थापित करें। फिर नियमित रूप से केवल धूप देकर उनके दर्शन करें, कारोबार में लाभ होने लगेगा।
* गृह कलह से मुक्ति हेतु परिवार में पैसे की वजह से कलह रहता हो, तो दक्षिणावर्ती शंख में पांच कौड़ियां रखकर उसे चावल से भरी चांदी की कटोरी पर घर में स्थापित करें। यह प्रयोग शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार को या दीपावली के अवसर पर करें, लाभ अवश्य होगा।
* क्रोध पर नियंत्रण हेतु यदि घर के किसी व्यक्ति को बात-बात पर गुस्सा आता हो, तो दक्षिणावर्ती शंख को साफ कर उसमें जल भरकर उसे पिला दें। यदि परिवार में पुरुष सदस्यों के कारण आपस में तनाव रहता हो, तो पूर्णिमा के दिन कदंब वृक्ष की सात अखंड पत्तों वाली डाली लाकर घर में रखें। अगली पूर्णिमा को पुरानी डाली कदंब वृक्ष के पास छोड़ आएं और नई डाली लाकर रखें। यह क्रिया इसी तरह करते रहें, तनाव कम होगा।
* मकान खाली कराने हेतु शनिवार की शाम को भोजपत्र पर लाल चंदन से किरायेदार का नाम लिखकर शहद में डुबो दें। संभव हो, तो यह क्रिया शनिश्चरी अमावस्या को करें। कुछ ही दिनों में किरायेदार घर खाली कर देगा। ध्यान रहे, यह क्रिया करते समय कोई टोके नहीं।
* बिक्री बढ़ाने हेतु ग्यारह गोमती चक्र और तीन लघु नारियलों की यथाविधि पूजा कर उन्हें पीले वस्त्र में बांधकर बुधवार या शुक्रवार को अपने दरवाजे पर लटकाएं तथा हर पूर्णिमा को धूप दीप जलाएं। यह क्रिया निष्ठापूर्वक नियमित रूप से करें, ग्राहकों की संख्या में वृद्धि होगी और बिक्री बढ़ेगी।
* शत्रु शमन के लिए साबुत उड़द की काली दाल के 38 और चावल के 40 दाने मिलाकर किसी गड्ढे में दबा दें और ऊपर से नीबू निचोड़ दें। नीबू निचोड़ते समय शत्रु का नाम लेते रहें, उसका शमन होगा और वह आपके विरुद्ध कोई कदम नहीं उठाएगा।
* ससुराल में सुखी रहने के लिए : कन्या अपने हाथ से हल्दी की 7 साबुत गांठें, पीतल का एक टुकड़ा और थोड़ा-सा गुड़ ससुराल की तरफ फेंके, ससुराल में सुरक्षित और सुखी रहेगी।
* घर में खुशहाली तथा दुकान की उन्नति हेतु घर या व्यापार स्थल के मुख्य द्वार के एक कोने को गंगाजल से धो लें और वहां स्वास्तिक की स्थापना करें और उस पर रोज चने की दाल और गुड़ रखकर उसकी पूजा करें। साथ ही उसे ध्यान रोज से देखें और जिस दिन वह खराब हो जाए उस दिन उस स्थान पर एकत्र सामग्री को जल में प्रवाहित कर दें। यह क्रिया शुक्ल पक्ष के बृहस्पतिवार को आरंभ कर ११ बृहस्पतिवार तक नियमित रूप से करें। फिर गणेश जी को सिंदूर लगाकर उनके सामने लड्डू रखें तथा ÷जय गणेश काटो कलेश' कहकर उनकी प्रार्थना करें, घर में सुख शांति आ जागी।
* सफलता प्राप्ति के लिए प्रातः सोकर उठने के बाद नियमित रूप से अपनी हथेलियों को ध्यानपूर्वक देखें और तीन बार चूमें। ऐसा करने से हर कार्य में सफलता मिलती है। यह क्रिया शनिवार से शुरू करें।
* धन लाभ के लिए शनिवार की शाम को माह (उड़द) की दाल के दाने पर थोड़ी सी दही और सिंदूर डालकर पीपल के नीचे रख आएं। वापस आते समय पीछे मुड़कर नहीं देखें। यह क्रिया शनिवार को ही शुरू करें और 7 शनिवार को नियमित रूप से किया करें, धन की प्राप्ति होने लगेगी।
* संपत्ति में वृद्धि हेतु किसी भी बृहस्पतिवार को बाजार से जलकुंभी लाएं और उसे पीले कपड़े में बांधकर घर में कहीं लटका दें। लेकिन इसे बार-बार छूएं नहीं। एक सप्ताह के बाद इसे बदल कर नई कुंभी ऐसे ही बांध दें। इस तरह 7 बृहस्पतिवार करें। यह निच्च्ठापूर्वक करें, ईश्वर ने चाहा तो आपकी संपत्ति में वृद्धि होगी।

गोमती चक्र का संशोधन और उसके प्रभाव शाली उपयोग

गोमती चक्र का संशोधन और उसके प्रभाव शाली उपयोग ....

यह  सम्पूर्ण भारतीय वैदिक ज्योतिष के आधार पर गोमती चक्र स्वयम सिध्ध है।

१)गोमती चक्र को पेशन्ट के बिस्तर पर रखने से जल्दी अच्छा होता है।

२)रविवार के दिन थोडा सिंदूर गोमती चक्र पर लगा के शत्रु का नाम लेकर नदी या तालाब में डालने से शत्रु पर प्रभाव रहेता है।

३)कोई भी काम क पूरा करने के लिये एक गोमती चक्र घर के दरवाजे की चोखट पे रखे उस को बाए पैर के निचे दबाके दाए पैर से बहार आने से काम में सफलता मिलती है।

४)एक गोमती चक्र को शुभ दिन गंगा जल में रखिये थोड़े समय बाद उस पर केसर लागाये और अगरबत्ती का धुप देकर आलमारी में रखने से पेसो की कमी दूर होती है।

५)सुफला एकादशी की रात को पांच गोमती चक्र की पूजा करके उस पर केसर का तिलक कर के साथ में शालिंग्राम की भी पूजा करने से धन लंबे समय तक टिकता है।

६)जिस वास्तु में अशुभ तत्व और भुत /प्रेत का वास हो या ऐसा शक हो तो दो गोमती चक्र लेके घर के बड़े व्यक्ति के सीर पर से सात बार उतार के उस को अग्नि में डाल दीजिए 

७)जिस वास्तु में बीमारी घर कर गई हो अनेक दवाई लेने से भी बीमारी दूर ना होती हो तो एक गोमती चक्र शुध्ध चांदी में बना के पेशन्ट के गले में बाँध ने से अच्छा रहेता है।

८)दो गोमती चक्र मुख्य द्वार पर ऐसे लगाये की ग्राहक उसके निचे से पसार हो व्यवसाय में सफलता मिलेगी 

९)कोर्ट -कचहरी में सफलता के लिये नम्बर २ वाला प्रयोग करे।

पीपल के वृक्ष द्वारा अपनी समस्याओं को दूर करें…

पीपल के वृक्ष द्वारा अपनी समस्याओं को दूर करें…
प्रत्येक नक्षत्र वाले दिन भी इसका विशिष्ट गुण भिन्नता लिए हुए होता है.
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में कुल मिला कर 28 नक्षत्रों कि गणना है, तथा प्रचलित केवल 27 नक्षत्र है उसी के आधार पर प्रत्येक मनुष्य के जन्म के समय नामकरण होता है. अर्थात मनुष्य का नाम का प्रथम अक्षर किसी ना किसी नक्षत्र के अनुसार ही होता है. तथा इन नक्षत्रों के स्वामी भी अलग अलग ग्रह होते है. विभिन्न नक्षत्र एवं उनके स्वामी निम्नानुसार है यहां नक्षत्रों के स्वामियों के नाम कोष्ठक के अंदर लिख रहा हूँ जिससे आपको आसानी रहे.

(१)अश्विनी(केतु), (२)भरणी(शुक्र), (३)कृतिका(सूर्य),
(४)रोहिणी(चन्द्र), (५)मृगशिर(मंगल), (६)आर्द्रा(राहू), (७)पुनर्वसु(वृहस्पति), (८)पुष्य(शनि), (९)आश्लेषा(बुध), (१०)मघा(केतु), (११)पूर्व फाल्गुनी(शुक्र), (१२)उत्तराफाल्गुनी(सूर्य), (१३)हस्त(चन्द्र), (१४)चित्रा(मंगल), (१५)स्वाति(राहू), (१६)विशाखा(वृहस्पति), (१७)अनुराधा(शनि), (१८)ज्येष्ठा(बुध), (१९)मूल(केतु), (२०)पूर्वाषाढा(शुक्र), (२१)उत्तराषाढा(सूर्य), (२२)श्रवण(चन्द्र), (२३)धनिष्ठा(मंगल), (२४)शतभिषा(राहू), (२५)पूर्वाभाद्रपद(वृहस्पति), (२६)उत्तराभाद्रपद(शनि) एवं (२७)रेवती(बुध)..

ज्योतिष शास्त्र अनुसार प्रत्येक ग्रह 3, 3 नक्षत्रों के स्वामी होते है
.
कोई भी व्यक्ति जिस भी नक्षत्र में जन्मा हो वह उसके स्वामी ग्रह से सम्बंधित दिव्य प्रयोगों को करके लाभ प्राप्त कर सकता है.

अपने जन्म नक्षत्र के बारे में अपनी जन्मकुंडली को देखें या अपनी जन्मतिथि और समय व् जन्म स्थान लिखकर भेजे.या अपने विद्वान ज्योतिषी से संपर्क कर जन्म का नक्षत्र ज्ञात कर के यह सर्व सिद्ध प्रयोग करके लाभ उठा सकते है.

विभिन्न ग्रहों से सम्बंधित पीपल वृक्ष के प्रयोग निम्न है.

(१) सूर्य:- जिन नक्षत्रों के स्वामी भगवान सूर्य देव है, उन व्यक्तियों के लिए निम्न प्रयोग है.
(अ) रविवार के दिन प्रातःकाल पीपल वृक्ष की 5 परिक्रमा करें.
(आ) व्यक्ति का जन्म जिस नक्षत्र में हुआ हो उस दिन (जो कि प्रत्येक माह में अवश्य आता है) भी पीपल वृक्ष की 5 परिक्रमा अनिवार्य करें.
(इ) पानी में कच्चा दूध मिला कर पीपल पर अर्पण करें.
(ई) रविवार और अपने नक्षत्र वाले दिन 5 पुष्प अवश्य चढ़ाए. साथ ही अपनी कामना की प्रार्थना भी अवश्य करे तो जीवन की समस्त बाधाए दूर होने लगेंगी.

(२) चन्द्र:- जिन नक्षत्रों के स्वामी भगवान चन्द्र देव है, उन व्यक्तियों के लिए निम्न प्रयोग है.
(अ) प्रति सोमवार तथा जिस दिन जन्म नक्षत्र हो उस दिन पीपल वृक्ष को सफेद पुष्प अर्पण करें लेकिन पहले 4 परिक्रमा पीपल की अवश्य करें.
(आ) पीपल वृक्ष की कुछ सुखी टहनियों को स्नान के जल में कुछ समय तक रख कर फिर उस जल से स्नान करना चाहिए.
(इ) पीपल का एक पत्ता सोमवार को और एक पत्ता जन्म नक्षत्र वाले दिन तोड़ कर उसे अपने कार्य स्थल पर रखने से सफलता प्राप्त होती है और धन लाभ के मार्ग प्रशस्त होने लगते है.
(ई) पीपल वृक्ष के नीचे प्रति सोमवार कपूर मिलकर घी का दीपक लगाना चाहिए.

(३) मंगल:- जिन नक्षत्रो के स्वामी मंगल है. उन नक्षत्रों के व्यक्तियों के लिए निम्न प्रयोग है....
(अ) जन्म नक्षत्र वाले दिन और प्रति मंगलवार को एक ताम्बे के लोटे में जल लेकर पीपल वृक्ष को अर्पित करें.
(आ) लाल रंग के पुष्प प्रति मंगलवार प्रातःकाल पीपल देव को अर्पण करें.
(इ) मंगलवार तथा जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल वृक्ष की 8 परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए.
(ई) पीपल की लाल कोपल को (नवीन लाल पत्ते को) जन्म नक्षत्र के दिन स्नान के जल में डाल कर उस जल से स्नान करें.
(उ) जन्म नक्षत्र के दिन किसी मार्ग के किनारे १ अथवा 8 पीपल के वृक्ष रोपण करें.
(ऊ) पीपल के वृक्ष के नीचे मंगलवार प्रातः कुछ शक्कर डाले.
(ए) प्रति मंगलवार और अपने जन्म नक्षत्र वाले दिन अलसी के तेल का दीपक पीपल के वृक्ष के नीचे लगाना चाहिए.

(४) बुध:- जिन नक्षत्रों के स्वामी बुध ग्रह है, उन नक्षत्रों से सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहिए.
(अ) किसी खेत में जंहा पीपल का वृक्ष हो वहां नक्षत्र वाले दिन जा कर, पीपल के नीचे स्नान करना चाहिए.
(आ) पीपल के तीन हरे पत्तों को जन्म नक्षत्र वाले दिन और बुधवार को स्नान के जल में डाल कर उस जल से स्नान करना चाहिए.
(इ) पीपल वृक्ष की प्रति बुधवार और नक्षत्र वाले दिन 6 परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए.
(ई) पीपल वृक्ष के नीचे बुधवार और जन्म, नक्षत्र वाले दिन चमेली के तेल का दीपक लगाना चाहिए.
(उ) बुधवार को चमेली का थोड़ा सा इत्र पीपल पर अवश्य लगाना चाहिए अत्यंत लाभ होता है.

(५) वृहस्पति:- जिन नक्षत्रो के स्वामी वृहस्पति है. उन नक्षत्रों से सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहियें.
(अ) पीपल वृक्ष को वृहस्पतिवार के दिन और अपने जन्म नक्षत्र वाले दिन पीले पुष्प अर्पण करने चाहिए.
(आ) पिसी हल्दी जल में मिलाकर वृहस्पतिवार और अपने जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल वृक्ष पर अर्पण करें
(इ) पीपल के वृक्ष के नीचे इसी दिन थोड़ा सा मावा शक्कर मिलाकर डालना या कोई भी मिठाई पीपल पर अर्पित करें.
(ई) पीपल के पत्ते को स्नान के जल में डालकर उस जल से स्नान करें
(उ) पीपल के नीचे उपरोक्त दिनों में सरसों के तेल का दीपक जलाएं.

(६) शुक्र:- जिन नक्षत्रो के स्वामी शुक्र है. उन नक्षत्रों से सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहियें.
(अ) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल वृक्ष के नीचे बैठ कर स्नान करना.
(आ) जन्म नक्षत्र वाले दिन और शुक्रवार को पीपल पर दूध चढाना.
(इ) प्रत्येक शुक्रवार प्रातः पीपल की 7 परिक्रमा करना.
(ई) पीपल के नीचे जन्म नक्षत्र वाले दिन थोड़ासा कपूर जलाना.
(उ) पीपल पर जन्म नक्षत्र वाले दिन 7 सफेद पुष्प अर्पित करना.
(ऊ) प्रति शुक्रवार पीपल के नीचे आटे की पंजीरी सालना.

(७) शनि:- जिन नक्षत्रों के स्वामी शनि है. उस नक्षत्रों से सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहिए.
(अ) शनिवार के दिन पीपल पर थोड़ा सा सरसों का तेल चडाना.
(आ) शनिवार के दिन पीपल के नीचे तिल के तेल का दीपक जलाना.
(इ) शनिवार के दिन और जन्म नक्षत्र के दिन पीपल को स्पर्श करते हुए उसकी एक परिक्रमा करना.
(ई) जन्म नक्षत्र के दिन पीपल की एक कोपल चबाना.
(उ) पीपल वृक्ष के नीचे कोई भी पुष्प अर्पण करना.
(ऊ) पीपल के वृक्ष पर मिश्री चडाना.

(८) राहू:- जिन नक्षत्रों के स्वामी राहू है, उन नक्षत्रों से सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न प्रयोग करने चाहिए.
(अ) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल वृक्ष की 21 परिक्रमा करना.
(आ) शनिवार वाले दिन पीपल पर शहद चडाना.
(इ) पीपल पर लाल पुष्प जन्म नक्षत्र वाले दिन चडाना.
(ई) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल के नीचे गौमूत्र मिले हुए जल से स्नान करना.
(उ) पीपल के नीचे किसी गरीब को मीठा भोजन दान करना.

(९) केतु:- जिन नक्षत्रों के स्वामी केतु है, उन नक्षत्रों से सम्बंधित व्यक्तियों को निम्न उपाय कर अपने जीवन को सुखमय बनाना चाहिए.
(अ) पीपल वृक्ष पर प्रत्येक शनिवार मोतीचूर का एक लड्डू या इमरती चडाना.
(आ) पीपल पर प्रति शनिवार गंगाजल मिश्रित जल अर्पित करना.
(इ) पीपल पर तिल मिश्रित जल जन्म नक्षत्र वाले दिन अर्पित करना.
(ई) पीपल पर प्रत्येक शनिवार सरसों का तेल चडाना.
(उ) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल की एक परिक्रमा करना.
(ऊ) जन्म नक्षत्र वाले दिन पीपल की थोडीसी जटा लाकर उसे धूप दीप दिखा कर अपने पास सुरक्षित रखना.

इस प्रकार से प्रत्येक व्यक्ति उपरोक्त उपाय अपने अपने नक्षत्र के अनुसार करके अपने जीवन को सुगम बना सकते है, इन उपायों को करने से तुरंत लाभ प्राप्य होता है और जीवन में किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं होती है और जो बाधा हो वह तत्काल दूर होने लगती है. शास्त्र, आदि सभी महान ग्रन्थ अनुसार पीपल वृक्ष में सभी देवी देवताओं का वास होता है. उन्हीं को हम अपने जन्म नक्षत्र अनुसार प्रसन्न करते है. और आशीर्वाद प्राप्त करते है।

त्रैलोक्यमोहन गौरी प्रयोग

 त्रैलोक्यमोहन गौरी प्रयोग
 त्रैलोक्यमोहन गौरी मन्त्र – माया (हीं), उसके अन्त में ‘नमः’ पद, फिर ‘ब्रह्म श्री राजिते राजपूजिते जय’, फिर ‘विजये गौरि गान्धारि’, फिर ‘त्रिभु’, इसके बाद तोय (व), मेष (न), फिर ‘वशङ्करि’, फिर ‘सर्व’ पद, फिर ससद्यल (लो), फिर ‘क वशङ्करि’, फिर ‘सर्वस्त्री पुरुष के बाद ‘वशङ्करि’, फिर ‘सु द्वय’ (सु सु), दु द्वय (दु दु), घे युग (घे घे), वायुग्म (वा वा), फिर हरवल्लभा (ह्रीं), तथा अन्त में ‘स्वाहा’ लगाने से ६१ अक्षरों का यह मन्त्रराज कहा गया है। मन्त्र – ‘ह्रीं नमः ब्रह्मश्रीराजिते राजपूजिते जयविजये गौरि गान्धारि त्रिभुवनवशङ्करि, सर्वलोकवशङ्करि सर्वस्त्रीपुरुषवशङ्करि सु सु दु दु घे घे वा वा ह्रीं स्वाहा’। इस मन्त्र के अज ऋषि हैं, निचृद् गायत्री छन्द है, त्रैलोक्यमोहिनी गौरी देवता है, माया बीज है एवं स्वाहा शक्ति है । षड्दीर्घयुक्त मायाबीज से युक्त इस मन्त्र के १४, १०, ८, ८, १० एवं ११ अक्षरों से षडङ्गन्यास करना चाहिए । फिर मूलमन्त्र से व्यापक कर त्रैलोक्यमोहिनी का ध्यान करना चाहिए । विनियोग – ‘अस्य श्रीत्रैलोक्यमोहनगौरीमन्त्रस्य अजऋषिर्निचृद्गायत्री छन्दः त्रैलोक्यमोहिनीगौरीदेवता ह्रीं बीजं स्वाहा शक्ति ममाऽभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।’ षडङ्गन्यास – ह्रां ह्रीं नमो ब्रह्मश्रीराजिते राजपूजिते हृदयाय नमः, ह्रीं जयविजये गौरिगान्धारि शिरसे स्वाहा, ह्रूं त्रिभुवनवशङ्करि शिखायै वषट्, ह्रैं सर्वलोक वशङ्करि कवचाय हुं, ह्रौं सर्वस्त्रीपुरुष नेत्रत्रयाय वशङ्कर वौषट्, ह्रः सु सु दु दु घे घे वा वा ह्रीं स्वाहा, अस्त्राय फट्, ह्रीं नमोः ब्रह्मश्रीराजिते राजपूजिते जयविजये गौरिगान्धारि त्रिभुवनवशङ्करि सर्वलोकवशङ्करि सर्वस्त्रीपुरुष वशङ्करि सु सु दु दु घे घे वा वा ह्रीं स्वाहा, सर्वाङ्गे । ॥ ध्यानम् ॥ गीर्वाणसङ्घार्चितपादपङ्कज अरुणप्रभाबालशशाङ्कशेखरा । रक्ताम्बरालेपनपुष्प मुदे सृणिं सपाशं दधती शिवास्तु नः ॥ ॥ आवरण पूजा ॥ केशरों पर षडङ्गपूजा कर अष्टदलों में ब्राह्मी आदि मातृकाओं की, भूपुर में लोकपालों की तथा बाहर उनके आयुधों की पूजा करनी चाहिए । पीठ देवताओं एवं पीठशक्तियों का पूजन कर पीठ पर मूलमन्त्र से देवी की मूर्ति की कल्पना कर आवाहनादि उपचारों से पुष्पाञ्जलि समर्पित कर उनकी आज्ञा से इस प्रकार आवरण पूजा करे । सर्वप्रथम केशरों में षड्ङ्ग मन्त्रों से षडङ्गपूजा करनी चाहिए । यथा – ह्रीं ह्रीं नमो ब्रह्मश्रीराजिते राजपूजिते हृदयाय नमः, ह्रीं जयविजये गौरि गान्धारि शिरसे स्वाहा, ह्रूँ त्रिभुवनवशङ्करि शिखायै वौषट्, ह्रैं सर्वलोकवशङ्करि कवचाय हुम्, ह्रौं सर्वस्त्रीपुरुषवशङ्करि नेत्रत्रयाय वौषट्, ह्रः सु सु दु दु घे घे वा वा ह्रीं स्वाहा अस्त्राय फट् । फिर अष्टदल में पूर्वादि दिशाओं के क्रम से ब्राह्मी आदि का पूजन करनी चाहिए । १. ॐ ब्राह्मयै नमः, पूर्वदले २. ॐ माहेश्वर्यै नमः,आग्नेये ३. ॐ कौमार्यै नमः, दक्षिणे ४. ॐ वैष्णव्यै नमः, नैर्ऋत्ये ५. ॐ वारायै नमः, पश्चिमे ६. ॐ इन्द्राण्यै नमः, वायव्ये ७. ॐ चामुण्डायै नमः, उत्तरे ८. ॐ महालक्ष्म्यै नमः, ऐशान्ये । तत्पश्चात् भूपुर के भीतर अपनी-अपनी दिशाओं में इन्द्रादि दश दिक्पालों की पूजा करनी चाहिए । इन्द्राय नमः पूर्वे, अग्नये नमः आग्नेये, यमाय नमः दक्षिणे, नैर्ऋत्याय नमः नैर्ऋत्ये, वरुणाय नमः पश्चिमे, वायवे नमः वायव्ये, सोमाय नमः उत्तरे, ईशानाय नमः ईशाने, पूर्व ईशान मध्ये ब्रह्मणे, अनंताय नमः पश्चिम नैर्ऋत्ययोर्मध्ये । पुनः भूपुर के बाहर वज्रादि आयुधों की पूजा करनी चाहिए । वज्राय नमः पूर्वे, शक्तये नमः आग्नेये, दण्डाय नमः दक्षिणे, खडगाय नमः नैर्ऋत्ये, पाशाय नमः पश्चिमे, अंकुशाय नमः वायव्ये, गदायै नमः उत्तरे, त्रिशूलाय नमः ऐशान्ये, पद्माय नमः पूर्वेशानयोर्मध्ये, चक्राय नमः पश्चिमनैर्ऋत्ययोर्मध्ये । ॥ काम्य प्रयोग ॥ इस प्रकार आराधना करने से देवी सुख एवं संपत्ति प्रदान करती हैं तिल मिश्रित तण्डुल (चावल), सुन्दर फल, त्रिमधु (घी, मधु, दूध) से मिश्रित लवण और मनोहर लालवर्ण के कमलों से जो व्यक्ति तीन दिन तक हवन करता है, उस व्यक्ति के ब्राह्मणादि सभी वर्ण एक महीने के भीतर वश में हो जाते हैं । सूर्यमण्डल में विराजमान देवी के उक्त स्वरूप का ध्यान करते हुये जो व्यक्ति जप करता है अथवा १०८ आहुतियाँ प्रदान करता है वह व्यक्ति सारे जगत् को अपने वश में कर लेता है । गौरी का अन्य मन्त्र – हंस (स्), अनल (र), ऐकारस्थ शशांकयुत् (ऐं) उससे युक्त नभ (ह्) इस प्रकार ही फिर वायु (य), अग्नि (र) एवं कर्णेन्दु (ऊ) सहित तोय (व्), अर्थात् ‘व्याँ ,’फिर ‘राजमुखि’, ‘राजाधिमुखिवश्य’ के बाद ‘मुखि’, फिर माया (ही) रमा (श्री), आत्मभूत (क्लीं), फिर “देवि देवि महादेवि देवाधिदेवि सर्वजनस्य मुखं” के बाद ‘मम वशं’ फिर दो बार ‘कुरु कुरु’ और इसके अन्त में वह्निप्रिया (स्वाहा) लगाने से अड़तालिस अक्षरों का मन्त्र निष्पन्न होता है ॥ ४२-४३ ॥ मन्त्र – “ह्स्त्रैं व्यरूँ राजमुखि राजाधिमुखि वश्यमुखि ह्रीं श्रीं क्लीं देवि देवि महादेवि देवाधिदेवि सर्वजनस्य मुखं मम वशं कुरु कुरु स्वाहा’ । विनियोग- ‘अस्य श्रीगौरीमन्त्रस्य अजऋषिर्निचृद्गायत्रीछन्दः गौरीदेवता, ह्रीं बीजं स्वाहा शक्तिः ममाखिलकामनासिद्धयर्थे जपे विनियोगः’ । षडङ्गन्यास- ह्रां ह्स्त्रैं व्यरूँ राजमुखिराजाधिमुखि हृदयाय नमः, ह्रीं वश्यमुखि ह्रीं श्रीं क्लीं शिरसे स्वाहा, ह्रूँ देवि देवि शिखायै वषट्, ह्रैं महादेवि कवचाय हुम्, ह्रौं देवाधिदेवि नेत्रत्रयाय वौषट्, ह्रः सर्वजनस्य मुखं मम वशं कुरु कुरु स्वाहा अस्त्राय फट् । ॥ पूजाविधि ॥ देवी के स्वरूप का ध्यान करे । अर्घ्य स्थापन, पीठशक्तिपूजन, देवी पूजन तथा आवरण देवताओं के पूजन का प्रकार पूर्वोक्त है । ॥ वशीकरण मन्त्राः ॥ वशीकरण मन्त्र के पूजन जप होम एवं तर्पण में मूल मन्त्र के ‘सर्वजनस्य’ पद के स्थान पर जिसे अपने वश में करना हो उस साध्य के षष्ठ्यन्त रूप को लगाना चाहिए। सात दिन तक सहस्र-सहस्र की संख्या में संपातपूर्वक (हुतावशेष स्रुवावस्थित घी का प्रोक्षणी में स्थापन) घी से होमकर उस संपात (संव) घृत को साध्य व्यक्ति को पिलाने से वह वश में हो जाता है। ॥ इति त्रैलोक्यमोहन गौरी प्रयोगः ॥


श्रीलक्ष्मी-नारायण-वज्र-पञ्जर-कवच

श्रीलक्ष्मी-नारायण-वज्र-पञ्जर-कवच 
।।पूर्व-पीठिका-श्रीभैरव उवाच।। अधुना देवि ! वक्ष्यामि, लक्ष्मी-नारायणस्य ते । कवचं मन्त्र-गर्भं च, वज्र-पञ्जरकाख्यया ।।१ श्रीवज्र-पञ्जरं नाम, कवचं परमाद्भुतम । रहस्यं सर्व-देवानां, साधकानां विशेषतः ।।२ यं धृत्वा भगवान् देवः, प्रसीदति परः पुमान् । यस्य धारण-मात्रेण, ब्रह्मा लोक-पितामहः ।।३ ईश्वरोऽहं शिवो भीमो, वासवोऽपि दिवस्पतिः । सूर्यस्तेजो-निधिर्देवि ! चन्द्रमास्तारकेश्वरः ।।४ वायुश्च बलवांल्लोके, वरुणो यादसांपतिः । कुबेरोऽपि धनाध्यक्षो, धर्मराजो यमः स्मृतः ।।५ यं धृत्वा सहसा विष्णुः, संहरिष्यति दानवान् । जघान रावणादींश्च, किं वक्ष्येऽहमतः परम् ।।६ कवचस्यास्य सुभगे ! कथितोऽयं मुनिः शिवः । त्रिष्टुप् छन्दो देवता च, लक्ष्मी-नारायणो मतः ।।७ रमा बीजं परा शक्तिस्तारं कीलकमीश्वरि ! । भोगापवर्ग-सिद्धयर्थं, विनियोग इति स्मृतः ।।८ विनियोगः- ॐ अस्य श्रीलक्ष्मी-नारायण-कवचस्य शिव ऋषिः, त्रिष्टुप् छन्दः, श्रीलक्ष्मी-नारायण देवता, श्रीं बीजं, ह्रीं शक्तिः, ॐ कीलकं, भोगापवर्ग-सिद्धयर्थं कवच-पाठे विनियोगः । ऋष्यादि-न्यासः- श्रीशिव ऋषये नमः शिरसि, त्रिष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, श्रीलक्ष्मी-नारायण देवतायै नमः हृदि, श्रीं बीजाय नमः गुह्ये, ह्रीं शक्तये नमः नाभौ, ॐ कीलकाय नमः पादयो, भोगापवर्ग-सिद्धयर्थं कवच-पाठे विनियोगाय नमः अञ्जलौ । ध्यानः- पूर्णेन्दु-वदनं पीत-वसनं कमलासनम् । लक्ष्म्याश्रितं चतुर्बाहुं, लक्ष्मी-नारायणं भजे ।। ‘मानस-पूजन’ कर ‘कवच-पाठ’ करे । यथा – ।।मूल कवच-पाठ।। ॐ वासुदेवोऽवतु मे, मस्तकं सशिरोरुहम् । ह्रीं ललाटं सदा पातु, लक्ष्मी-विष्णुः समन्ततः ।।१ हसौः नेत्रेऽवताल्लक्ष्मी-गोविन्दो जगतां पतिः । ह्रीं नासां सर्वदा पातु, लक्ष्मी-दामोदरः प्रभुः ।।२ श्रीं मुखं सततं पातु, देवो लक्ष्मी-त्रिविक्रमः । लक्ष्मी कण्ठं सदा पातु, देवो लक्ष्मी-जनार्दनः ।।३ नारायणाय बाहू मे, पातु लक्ष्मी गदाग्रजः । नमः पार्श्वौ सदा पातु, लक्ष्मी-नन्दैक-नन्दनः ।।४ अंआंइंईं पातु वक्षो, ॐ लक्ष्मी-त्रिपुरेश्वरः । उंऊंऋंॠं पातु कुक्षिं, ह्रीं लक्ष्मी-गरुड़-ध्वजः ।।५ लृंॡंएंऐं पातु पृष्ठं, हसौः लक्ष्मी-नृसिंहकः । ॐॐअंअः पातु नाभिं, ह्रीं लक्ष्मी-विष्टरश्रवः ।।६ कंखंगंघं गुदं पातु, श्रीं लक्ष्मी-कैटभान्तकः । चंछंजंझं पातु शिश्नं, लक्ष्मी लक्ष्मीश्वरः प्रभुः ।।७ टंठंडंढं कटिं पातु, नारायणाय नायकः । तंथंदंधं पातु चोरु, नमो लक्ष्मी-जगत्पतिः ।।८ पंफंबंभं पातु जानू, ॐ ह्रीं लक्ष्मी-चतुर्भुजः । यंरंलंवं पातु जंघे, हसौः लक्ष्मी-गदाधरः ।।९ शंषंसंहं पातु गुल्फौ, ह्रीं श्रीं लक्ष्मी-रथांगभृत् । ळंक्षं पादौ सदा पातु, मूलं लक्ष्मी-सहस्त्रपात् ।।१० ङंञंणंनंमं मे पातु, लक्ष्मीशः सकलं वपुः । इन्द्रो मां पूर्वतः पातु, वह्निर्वह्नौ सदाऽवतु ।।११ यमो मां दक्षिणे पातु, नैर्ऋत्यां निर्ऋतिश्च माम् । वरुणः पश्चिमेऽव्यान्मां, वायव्येऽवतु मां मरुत् ।।१२ उत्तरे धनदः पायादैशान्यामीश्वरोऽवतु । वज्र-शक्ति-दण्ड-खड्ग-पाश-यष्टि-ध्वजांकिताः ।।१३ सशूलाः सर्वदा पान्तु, दिगीशाः परमार्थदाः । अनन्तः पात्वधो नित्यमूर्ध्वे ब्रह्मावताच्च माम् ।।१४ दश-दिक्षु सदा पातु, लक्ष्मी-नारायणः प्रभुः । प्रभाते पातु मां विष्णुर्मध्याह्ने वासुदेवकः ।।१५ दामोदरोऽवतात् सायं, निशादौ नरसिंहकः । संकर्षणोऽर्धरात्रेऽव्यात्, प्रभातेऽव्यात् त्रिविक्रमः ।।१६ अनिरुद्धः सर्व-कालं, विश्वक्-सेनश्च सर्वतः । रणे राज-कुले द्युते, विवादे शत्रु-संकटे । ॐ ह्रींहसौः ह्रींश्रींमूलं, लक्ष्मी-नारायणोऽवतु ।।१७ ॐॐॐ रण-राज-चौर-रिपुतः पायाच्च मां केशवः, ह्रींह्रींह्रींहहहाहसौः हसहसौ वह्नेर्वतान्माधवः । ह्रींह्रींह्रींजल-पर्वताग्र-भयतः पायादनन्तो विभुः, श्रींश्रींश्रींशशशाललं प्रति-दिनं लक्ष्मीधवः पातु माम् ।।१८ ।।फल-श्रुति।। इतीदं कवचं दिव्यं, वज्र-पञ्जरकाभिधम् । लक्ष्मी-नारायणस्थेष्टं, चतुर्वर्ग-फल-प्रदम् ।।१ सर्व-सौभाग्य-निलयं, सर्व-सारस्वत-प्रदम् । लक्ष्मी-संवननं तत्त्वं, परमार्थ-रसायनम् ।।२ मन्त्र-गर्भं जगत्-सारं, रहस्यं त्रिदिवौकसाम् । दश-वारं पठिद्रात्रौ, रतान्ते वैष्णवोत्तमः ।।३ स्वप्ने वर-प्रदं पश्येल्लक्ष्मी-नारायणं सुधीः । त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नित्यं, कवचं मन्मुखोदितम् ।।४ स याति परमं धाम, वैष्णवं वैष्णवोत्तमः । महा-चीन-पदस्थोऽपि यः, पठेदात्म-चिन्तकः ।।५ आनन्द-पूरितस्तूर्णं, लभेद् मोक्षं स साधकः । गन्धाष्टकेन विलिखेद्रवौ भुर्जे जपन्मनुम् ।।६ पीत-सूत्रेण संवेष्ट्य, सौवर्णेनाथ वेष्टयेत् । धारयेद्-गुटिकां मूर्घ्नि, लक्ष्मी-नारायणं स्मरन् ।।७ रणे रिपून् विजित्याशु, कल्याणी गृहमाविशेत् । वन्ध्या वा काक-वन्ध्या वा, मृत-वत्सा च यांगना ।।८ सा बध्नीयात् कण्ठ-देशे, लभेत् पुत्रांश्चिरायुषः । गुरुपदेशतो धृत्वा, गुरुं ध्यात्वा मनुं जपन् ।।९ वर्ण-लक्ष-पुरश्चर्या-फलमाप्नोति साधकः । बहुनोक्तेन किं देवि ! कवचस्यास्य पार्वति ! ।।१० विनानेन न सिद्धिः स्यान्मन्त्रस्यास्य महेश्वरि ! । सर्वागम-रहस्याढ्यं, तत्त्वात् तत्त्वं परात् परम् ।।११ अभक्ताय न दातव्यं, कुचैलाय दुरात्मने । दीक्षिताय कुलीनाय, स्व-शिष्याय महात्मने ।।१२ महा-चीन-पदस्थाय, दातव्यं कवचोत्तमम् । गुह्यं गोप्यं महा-देवि ! लक्ष्मी-नारायण-प्रियम् । वज्र-पञ्जरकं वर्म, गोपनीयं स्व-योनि-वत् ।।१३ ।।श्रीरुद्रयामले तन्त्रे श्रीलक्ष्मी-नारायण-कवचं।।

श्रीमहागणपति-वज्रपञ्जर-कवच

श्रीमहागणपति-वज्रपञ्जर-कवच 
॥ पूर्व-पीठिका-श्रीभैरव उवाच ॥ महा-देवि गणेशस्य, वरदस्य महात्मनः । कवचं ते प्रवक्ष्यामि, वज्र-पञ्जरकाभिधम् ॥ विनियोगः- अस्य श्रीमहा-गणपति-वज्र-पञ्जर-कवचस्य शऽरीभैरव ऋषिः, गायत्र्यं छन्दः, श्रीमहा-गणपतिः देवता, गं बीजं, ह्रीं शक्तिः, कुरु-कुरु कीलकं, वज्र-विद्यादि-सिद्धयर्थे महा-गणपति-वज्र-पञ्जर-कवच-पाठे-विनियोगः। ऋष्यादि-न्यासः- श्रीभैरव ऋषये नमः शिरसि, गायत्र्यं छन्दसे नमः मुखे, श्रीमहा-गणपति देवतायै नमः हृदि, गं बीजाय नमः गुह्ये, ह्रीं शक्तये नमः नाभौ, कुरु-कुरु कीलकाय नमः पादयोः, वज्र-विद्यादि-सिद्धयर्थे महा-गणपति-वज्र-पञ्जर-कवच-पाठे विनियोगाय नमः अञ्जलौ। षडंग-न्यास कर-न्यास अंग-न्यास गां अंगुष्ठाभ्यां नमः हृदयाय नमः गीं तर्जनीभ्यां स्वाहा शिरसे स्वाहा गूं मध्यमाभ्यां वषट् शिखायै वषट् गैं अनामिकाभ्यां हुं कवचाय हुं गौं  कनिष्ठिकाभ्यां वौषट् नेत्र-त्रयाय वौषट् गः  करतल-कर-पृष्ठाभ्यां फट् अस्त्राय फट्   ध्यानः- विघ्नेशं विश्व-वन्द्यं सु-विपुल-यशसं लोक-रक्षा-प्रदक्षं, साक्षात् सर्वापदासु प्रशमन-सुमतिं पार्वती-प्राण-सूनुम। प्रायः सर्वासुरेन्द्रैः स-सुर-मुनि-गणैः साधकैः पूज्यमानं, कारयण्येनान्तरायामित-भय-शमनं विघ्न-राजं नमामि।। ‘मानस-पूजन’ कर ‘कवच-पाठ’ करे। यथा- ॥ मूल कवच-पाठ ॥ ॐ श्रीं ह्रीं गं शीरः पातु, महा-गणपतिः प्रभुः । विनायको ललाटं मे, विघ्न-राजो भ्रुवौ मम ॥ १ ॥ पातु नेत्रे गणाध्यक्षो, नासिकां मे गजाननः । श्रुती मेऽवतु हेरम्बो, गण्डौ मे मोदकाशनः ॥ २ ॥ द्वै-मातुरो मुखं पातु, चाधरौ पात्वरिन्दमः । दन्तान् ममैक-दन्तोऽव्याद्, वक्र-तुण्डोऽवताद् रसाम् ॥ ३ ॥ गांगेयो मे गलं पातु, स्कन्धौ सिंहासनोऽवतु । विघ्नान्तको भुजौ पातु, हस्तौ मूषक-वाहनः ॥ ४ ॥ ऊरु ममावतान्नित्यं, देवस्त्रिपुर-घातनः । हृदयं मे कुमारोऽव्याज्जयन्तः पार्श्व-युग्मकम् ॥ ५ ॥ प्रद्युम्नो मेऽवतात् पृष्ठं, नाभिं शंकर-नन्दनः । कटिं नन्दि-गणः पातु, शिश्नं वीरेश्वरोऽवतु ॥ ६ ॥ मेढ्रे मेऽवतु सौभाग्यो, भृंगिरीटी च गुह्यकम् । विराटकोऽवतादूरु, जानू मे पुष्प-दन्तकः ॥ ७ ॥ जंघे मम विकर्तोऽव्याद्, गुल्फायन्त्य-गणोऽवतु । पादौ चित्त-गणः पातु, पादाधो लोहितोऽवतु ॥ ८ ॥ पाद-पृष्ठं सुन्दरोऽव्याद्, नूपुराढ्यो वपुर्मम । विचारो जठरं पातु, भूतानि चोग्र-रुपकः ॥ ९ ॥ शिरसः पाद-पर्यन्तं, वपुः सुप्त-गणोऽवतु । पादादि-मूर्घ-पर्यन्तं, वपुः पातु विनर्तकः ॥ १० ॥ विस्मारितं तु यत् स्थानं, गणेशस्तत् सदाऽवतु । पूर्वे मां ह्रीं करालोऽव्यादाग्नेये विकरालकः ॥ ११ ॥ दक्षिणे पातु संहारो, नैऋते रुरु-भैरवः । पश्चिमे मां महा-कालो, वायौ कालाग्नि-भैरवः ॥ १२ ॥ उत्तरे मां सितास्योऽव्यादैशान्यामसितात्मकः । प्रभाते शत-पत्रोऽव्यात्, सहस्त्रारस्तु मध्यमे ॥ १३ ॥ दन्त-माला दिनान्तेऽव्यान्निशि पात्रं सदाऽवतु । कलशो मां निशीथेऽव्यान्निशान्ते परशुस्तथा ॥ सर्वत्र सर्वदा पातु शंख-युग्मं च मद्-वपुः ॥ १४ ॥ ॐ ॐ राज-कुले हहौं रण-भये ह्रीं ह्रीं कुद्यूतेऽवतात्, श्रीं श्रीं शत्रु-गृहे शशौं जल-भये क्लीं क्लीं वनान्तेऽवतु । ग्लौं ग्लूं ग्लैं ग्लं गुं सत्त्व-भीतिषु महा-व्याधऽयार्तिषु ग्लौं गगौं, नित्यं यक्ष-पिशाच-भूत-फणिषु ग्लौं गं गणेशोऽवतु ॥ १५ ॥ ॥ फल-श्रुति ॥ इतीदं कवचं गुह्यं, सर्व-तन्त्रेषु गोपितम् । वज्र-पञ्जर-नामानं, गणेशस्य महात्मनः ॥ १ ॥ अंग-भूतं मनु-मयं, सर्वाचारैक-साधनम् । विनानेन न सिद्धिः स्यात्, पूजनस्य जपस्य च ॥ २ ॥ तस्मात् तु कवचं पुण्यं, पठेद्वा धारयेत् सदा । तस्य सिद्धिर्महा-देवि करस्था पारलौकिकी ॥ ३ ॥ यं यं कामयते कामं, तं तं प्राप्नोति पाठतः । अर्ध-रात्रे पठेन्नित्यं, सर्वाभीष्ट-फलं लभेत् ॥ ४ ॥ इति गुह्यं सुकवचं, महा-गणपतेः प्रियम् । सर्व-सिद्धि-मयं दिव्यं, गोपयेत् परमेश्वरि ॥ ५ ॥ ॥ इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे श्रीदेवीरहस्ये महागणपतिकवचं समाप्तम् ॥


महागणपति मंत्र

महागणपति मंत्रः 
मंत्र – ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा । यह मन्त्र संसार का वशीकरण कर सर्वसिद्धि देने वाला है । विनियोगः- ॐ अस्य श्री महागणपति मंत्रस्य गणक ऋषिः (शिरसि), निवृद गायत्री छन्दः (मुखे), महागणपतये देवताये (हृदि), सर्वाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः। ध्यानम् : हस्तीन्द्रा चूडमरुणच्छायं त्रिनेत्रं रसा दाश्लिष्टं प्रियया स पद्मकरया साङ्कस्थया सङ्गतम् । बीजापूर गदा धनुस्त्रिशिख युक् चक्राब्ज पाशोत्पलम् ब्रीह्यग्र स्व विषाण रत्न कलशान् हस्तैर्वहन्तं भजे ॥ कराङ्गन्यासः – श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गां अंगुष्ठाभ्यां नमः । श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गी तर्जनीभ्यां स्वाहा । श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गूं मध्यमाभ्यां वषट् । श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गैं अनामिकाभ्यां हुं । श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गौं कनिष्ठाभ्यां वौषट् । श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गः करतल करपृष्ठाभ्यां फट् । इसी तरह से हृदयादि न्यास करें । यंत्रोद्धार – त्रिकोण के बाहर षट्कोण उसके बाहर अष्टदल, उसके बाहर भूपूर की रचना करें । गणपति तर्पण एवं गुरुमण्डल पूजन करने के पश्चात् त्रिकोण के बाहर १. पूर्वे – श्रियै सह श्रीपतये नमः । २. दक्षिणे – गौर्ये सह गौरीपतये नमः । ३. पश्चिमे – रत्यै सह रतिपतये नमः। ४. उत्तरे – ॐ मह्यै नमः ॐ वराहाय नमः । ५. देवताग्रे – ॐ लक्ष्मी सहित गणनायकाय नमः । गंधार्चन से पूजन तर्पण करें । प्रत्येक आवरण के अंत में अभीष्ट सिद्धिं मे देहि शरणागत वत्सल । भक्त्या समर्पये तुभ्यं अमुकावरणार्चनम् ॥ से पुष्पाञ्जलि देवें तथा बाद में पूजिताः तर्पिताः सन्तु कहकर अर्घपात्र से जल छोड़ें । द्वितीयावरणम् – (षटकोणे – अग्रे) पूर्वे – ॐ सिद्धि सहिता मोदाय नमः श्री पा० ॥ १ ॥ अग्निकोणे – ॐ समृद्धि सहित प्रमोदाय नमः श्री पा० ॥ २ ॥ नैर्ऋत्ये – ॐ मदद्रवा सहित विघ्नाय नमः श्री पा० ॥ ३ ॥ वायुकोणे – ॐ द्राविणी सहित विघ्नकर्त्रे नमः श्री पा० ॥ ४ ॥ ईशाने – ॐ कांति सहिताय सुमुखाय नमः श्री पा० ॥ ५ ॥ पश्चिमे – ॐ मदनावती सहिताय दुर्मुखाय नमः श्री पा० ॥ ६ ॥ षट्कोण के दोनों ओर – ॐ वसुधा सहित शङ्खनिधये नमः, वसुमती सहित पद्मनिधये नमः । आवरण देवताओं के गंधार्चन तर्पण, ‘ॐ अभीष्ट सिद्धिं …………… द्वितीयावरणार्चनम्’ से पुष्पाञ्जलि देवें तथा बाद में पूजिताः तर्पिताः सन्तु कहकर अर्घपात्र से जल छोड़ें । तृतीयावरणम् – (षट्कोण में अङ्गन्यास की तरह) “ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गां हृदयाय नमः’ । श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गी शिरसे स्वाहा । श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गूं शिखायै वषट् । श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं मैं कवचाय हुं । श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गौं नेत्रत्रयाय वौषट् । श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गः अस्त्राय फट् । शेष देवताओं का पूजन अष्टदल व भुपूर की उच्छिष्ट गणपति यंत्र पूजा विधि के समान षडङ्ग पूजा कर पुष्पाञ्जलि प्रदान करें ‘ॐ अभीष्ट सिद्धिं …… तृतीयावरणार्चनम्’ । बाद में पूजिता: तर्पिताः सन्तु कहकर अर्घपात्र से जल छोड़ें । चतुर्थावरणम् :- अष्टदल में ब्राह्मी आदि शक्तियों का पूजन उच्छिष्ट गणपति यंत्र की तरह से करें । यथा – ॐ ब्राह्मयै नमः, ब्राह्मी श्री पा० पू० त० नमः ॥ १ ॥ ॐ महेश्वर्यै नमः, माहेश्वरी श्री पा० ॥ २ ॥ ॐ कौमार्यै नमः, कौमारी श्री पा० पू० त० ॥ ३ ॥ ॐ वैष्णव्यै नमः, वैष्णवी श्री पा० ॥ ४ ॥ ॐ वाराह्यै नमः, वाराहीं श्री पा० ॥ ५ ॥ ॐ इन्द्राण्यै नमः, इन्द्राणी श्री पा० ॥ ६ ॥ ॐ चामुण्डायै नमः, चामुण्डा श्री पा० ॥ ७ ॥ ॐ महालक्ष्म्यै नमः, महालक्ष्मी श्री पा० पू० त० ॥ ८ ॥ पंचम तथा षष्टम् आवरणपूजा में इन्द्रादि लोकपालों व आयुधों का पूजन तर्पण उच्छिष्ट गणपति यंत्रार्चन जैसे करें । यथा – पञ्चमावरण – पूर्वे – ॐ इन्द्राय नमः, इन्द्र श्री पा० पू० त० नमः ॥ १ ॥ ॐ अग्नये नमः श्री पा० ॥ २ ॥ ॐ यमाय नमः श्री पा० ॥ ३ ॥ ॐ निर्ऋतये नमः श्री पा० ॥ ४ ॥ ॐ वरुणाय नमः श्री पा० ॥ ४ ॥ ॐ वायवे नमः श्री पा० ॥ ५ ॥ ॐ कुबेराय नमः श्री पा० ॥ ६ ॥ ऐशान्ये – ॐ ईशानाय नम० श्री पा० ॥ ७ ॥ इन्द्रेईशानयोर्मध्ये – ॐ ब्रह्मणे नमः ब्रह्मा श्री पा० ॥ ८ ॥ वरुणनैर्ऋतर्योर्मध्ये – ॐ अनंताय नमः अनन्त श्री पा० पू० त० ॥ ९ ॥ षष्ठावरण – ॐ वं वज्राय नमः श्री पा० ॥ १ ॥ ॐ शं शक्त्यै नमः श्री० पा० ॥ २ ॥ ॐ दं दण्डाय नमः श्री पा० ॥ ३ ॥ ॐ खं खड्गाय नमः श्री० पा० ॥ ४ ॥ ॐ पां पाशाय नमः श्री० पा० ॥ ५ ॥ ॐ अं अंकुशाय नमः श्री० पा० ॥ ६ ॥ ॐ गं गदायै नमः श्री० पा० ॥ ७ ॥ ॐ त्रिं त्रिशूलाय नमः श्री पा० ॥ ८ ॥ ॐ पं पद्माय नमः श्री पा० ॥ ९ ॥ ॐ चं चक्राय नमः, चक्र श्री पा० पू० त० नमः ॥ १० ॥ 

हनुमान जी का शत्रु-नाशक मन्त्र

हनुमान जी का शत्रु-नाशक मन्त्र
 “ॐ हनुमान वीर नमः। ॐ नमो वीर, हनुमत वीर, शूर वीर, धाय-धाय चलै वीर। मूठी भर चलावै तीर। मूठी मार, कलेजा काढ़ै। क्रोध करता, हियरा काढ़ै। मेरा वैरी, तेरे वश होवै। धर्म की दुहाई। राजा रामचन्द्र की दोहाई। मेरा वैरी न पछाड़ मारै तो माता अञ्जनी की दोहाई।” विधि- काले उड़द को अभिमन्त्रित करके शत्रु की ओर फेंके। इससे शत्रु का नाश होगा। प्रयोग करते समय मन्त्र का जप २१ से लेकर १०८ बार करे। पहले होली, दीपावली, एकादशी में सिद्ध कर लें। जप संख्या १००८।


हनुमान शाबर मंत्र

हनुमान शाबर मन्त्र
-निज ध्यान धूप, शिव वीर हनुमान, जटा – जूट अवधूत, जङ्ग जञ्जीर, लँगोट गाढ़ो । भूत को वश, परीत को वश, गदा तेल सिन्दूर चढ़े । आप देखे, तो सत्य की नाव नारसिंह खेवे । दुष्ट को लात बजरङ्ग देवे । भक्त की कड़ी आठ लाख अस्सी हजार वश कर । रावण की ठनाठनी, भक्त वीर हनुमान बारह वर्ष का ज्वान । हाथ में लड्‌डू, मुख में पान, सीता की गए खोज लगावन । मो सों का कहे, हनुमान? धारता की नगरी पैठ, राज करन्ता, जा जल्दी से । इस प्रीत की दृष्टि निकाल के आवै, तो सच्चा सिजबार का हनु-मान कहावै ।।” विधि – पहले गाय के शुद्ध घी से १०८ आहुतियां शनिवार के दिन देकर जगा ले । फिर कहीं भी प्रयोग करे । धारदार हथियार से झाड़ें । भूत-प्रेत, जादू-टोना और नजर आदि दूर हो ।


दुर्गा सप्तशती पाठ विधि

  दुर्गा सप्तशती दुर्गा सप्तशती पाठ विधि पूजनकर्ता स्नान करके, आसन शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके, शुद्ध आसन पर बैठ जाएँ। माथे पर अपनी पसंद क...