Tuesday, 17 August 2021

दशमहाविद्यास्तोत्रम्

दशमहाविद्यास्तोत्रम् 

श्रीपार्वत्युवाच -

नमस्तुभ्यं महादेव! विश्वनाथ ! जगद्गुरो ! ।
श्रुतं ज्ञानं महादेव ! नानातन्त्र तवाननत् ॥

इदानीं ज्ञानं महादेव ! गुह्यस्तोत्रं वद प्रभो ! ।
कवचं ब्रूहि मे नाथ ! मन्त्रचैतन्यकारणम् ॥

मन्त्रसिद्धिकरं गुह्याद्गुह्यं मोक्षैधायकम् ।
श्रुत्वा मोक्षमवाप्नोति ज्ञात्वा विद्यां महेश्वर ! ॥

श्री शिव उवाच -
दुर्लभं तारिणीमार्गं दुर्लभं तारिणीपदम् ।
मन्त्रार्थं मन्त्रचैतन्यं दुर्लभं शवसाधनम् ॥

श्मशानसाधनं योनिसाधनं ब्रह्मसाधनम् ।
क्रियासाधनकं भक्तिसाधनं मुक्तिसाधनम् ॥

तव प्रसादाद्देवेशि! सर्वाः सिद्ध्यन्ति सिद्धयः ।

ॐ नमस्ते चण्डिके चण्डि चण्डमुण्डविनाशिनि ।
नमस्ते कालिके कालमहाभयविनाशिनि ॥ १॥

शिवे रक्ष जगद्धात्रि प्रसीद हरवल्लभे ।
प्रणमामि जगद्धात्रीं जगत्पालनकारिणीम् ॥ २॥

जगत् क्षोभकरीं विद्यां जगत्सृष्टिविधायिनीम् ।
करालां विकटां घोरां मुण्डमालाविभूषिताम् ॥ ३॥

हरार्चितां हराराध्यां नमामि हरवल्लभाम् ।
गौरीं गुरुप्रियां गौरवर्णालङ्कारभूषिताम् ॥ ४॥

हरिप्रियां महामायां नमामि ब्रह्मपूजिताम् ।
सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्धविद्याधरङ्गणैर्युताम् ॥ ५॥

मन्त्रसिद्धिप्रदां योनिसिद्धिदां लिङ्गशोभिताम् ।
प्रणमामि महामायां दुर्गां दुर्गतिनाशिनीम् ॥ ६॥

उग्रामुग्रमयीमुग्रतारामुग्रगणैर्युताम् ।
नीलां नीलघनश्यामां नमामि नीलसुन्दरीम् ॥ ७॥

श्यामाङ्गीं श्यामघटितां श्यामवर्णविभूषिताम् ।
प्रणमामि जगद्धात्रीं गौरीं सर्वार्थसाधिनीम् ॥ ८॥

विश्वेश्वरीं महाघोरां विकटां घोरनादिनीम् ।
आद्यामाद्यगुरोराद्यामाद्यनाथप्रपूजिताम् ॥ ९॥

श्रीं दुर्गां धनदामन्नपूर्णां पद्मां सुरेश्वरीम् ।
प्रणमामि जगद्धात्रीं चन्द्रशेखरवल्लभाम् ॥ १०॥

त्रिपुरां सुन्दरीं बालामबलागणभूषिताम् ।
शिवदूतीं शिवाराध्यां शिवध्येयां सनातनीम् ॥ ११॥

सुन्दरीं तारिणीं सर्वशिवागणविभूषिताम् ।
नारायणीं विष्णुपूज्यां ब्रह्मविष्णुहरप्रियाम् ॥ १२॥

सर्वसिद्धिप्रदां नित्यामनित्यां गुणवर्जिताम् ।
सगुणां निर्गुणां ध्येयामर्चितां सर्वसिद्धिदाम् ॥ १३॥

विद्यां सिद्धिप्रदां विद्यां महाविद्यां महेश्वरीम् ।
महेशभक्तां माहेशीं महाकालप्रपूजिताम् ॥ १४॥

प्रणमामि जगद्धात्रीं शुम्भासुरविमर्दिनीम् ।
रक्तप्रियां रक्तवर्णां रक्तबीजविमर्दिनीम् ॥ १५॥

भैरवीं भुवनां देवीं लोलजिह्वां सुरेश्वरीम् ।
चतुर्भुजां दशभुजामष्टादशभुजां शुभाम् ॥ १६॥

त्रिपुरेशीं विश्वनाथप्रियां विश्वेश्वरीं शिवाम् ।
अट्टहासामट्टहासप्रियां धूम्रविनाशिनीम् ॥ १७॥

कमलां छिन्नभालाञ्च मातङ्गीं सुरसुन्दरीम् ।
षोडशीं विजयां भीमां धूमाञ्च वगलामुखीम् ॥ १८॥

सर्वसिद्धिप्रदां सर्वविद्यामन्त्रविशोधिनीम् ।
प्रणमामि जगत्तारां साराञ्च मन्त्रसिद्धये ॥ १९॥

इत्येवञ्च वरारोहे स्तोत्रं सिद्धिकरं परम् ।
पठित्वा मोक्षमाप्नोति सत्यं वै गिरिनन्दिनि ॥ २०॥

कुजवारे चतुर्दश्याममायां जीववासरे ।
शुक्रे निशिगते स्तोत्रं पठित्वा मोक्षमाप्नुयात् ॥

त्रिपक्षे मन्त्रसिद्धि स्यात्स्तोत्रपाठाद्धि शंकरि ।
चतुर्दश्यां निशाभागे निशि भौमेऽष्टमीदिने ॥

निशामुखे पठेत्स्तोत्रं मन्त्र सिद्धिमवाप्नुयात् ।
केवलं स्तोत्रपाठाद्धि तन्त्रसिद्धिरनुत्तमा ।
जागर्ति सततं चण्डी स्तवपाठाद्भुजङ्गिनी ॥

इति मुण्डमालातन्त्रोक्त पञ्चदशपटलान्तर्गतं
                      दशमहाविद्यास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
ॐ रां रामाय नमः
श्री राम ज्योतिष सदन 
पंडित आशु बहुगुणा 
आपकी जो भी समस्या है। उस समस्या का समाधान।
मैं केवल आपकी जन्मकुंडली देख कर ही आपकी समस्याओं का समाधान कर सकता हूं। यह मेरा व्हाट्सएप नंबर भी है।
मोबाइल नं-9760924411
मुजफ्फरनगर UP

नवग्रहों को शांत करने के लिए श्री नवग्रह शक्‍ति यंत्र चौकी अत्‍यंत प्रभावकारी है।


नवग्रहों को शांत करने के लिए श्री नवग्रह शक्‍ति यंत्र चौकी अत्‍यंत प्रभावकारी है। जीवन पर सौरमंडल के नौ ग्रहों का अनुकूल-प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

श्री नवग्रह शक्‍ति यंत्र चौकी नवग्रहों को प्रतिबिंबित करता है। इस यंत्र की पूजा से मनुष्‍य को जीवन के हर पड़ाव और पहलू पर सफलता मिलती है।

इस यंत्र से सभी ग्रह शांत रहते हैं और आपके जीवन में सुख-समृ‍द्धि प्रदान करते हैं। श्री नवग्रह शक्‍ति यंत्र चौकी नवग्रहों के अशुभ प्रभाव को कम करता है।

श्री नवग्रह शक्‍ति यंत्र चौकी के लाभ
श्री नवग्रह शक्‍ति यंत्र चौकी के पूजन से नवग्रहों का अशुभ प्रभाव कम होता है और आपको ग्रहों के शुभ प्रभाव मिलने लगते हैं। 
जिस व्‍यक्‍ति की कुंडली में कोई भी ग्रह अशुभ या नीच स्‍थान में बैठा हो तो श्री नवग्रह शक्‍ति यंत्र चौकी की स्‍थापना और पूजन अवश्‍य करना चाहिए। इस यंत्र के पूजन से आपके जीवन की सभी समस्‍याएं दूर होती हैं।
किसी भी ग्रह के प्रकोप से पीडित हैं तो आपको श्री नवग्रह शक्‍ति यंत्र चौकी की पूजा करनी चाहिए।
इस यंत्र की सहायता से जीवन में शांति, सुख और पॉजिटीविटी आती है।
कैसे करें पूजा
अपने घर के पूजन स्‍थल पर पूर्व दिशा में इस चौकी को स्‍थापित करें। इसके आगे धूप और दीप जलाएं।

अपने ईष्‍ट देव की आराधना करें और नवग्रहों से आप और आपके परिवार के ऊपर कृपा बरसाने की प्रार्थना करें। गंगाजल छिड़क कर घी का दीया जलाएं।
ॐ रां रामाय नमः
श्री राम ज्योतिष सदन 
पंडित आशु बहुगुणा 
अपनी समस्याओं के समाधान हेतु संपर्क करें। 
मोबाइल नं-9760924411
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अगर शत्रु पीछे पड़ा हो यह उपाय करे।

अगर शत्रु पीछे पड़ा हो, किसी को बिना किसी कारण से परेशान कर रहा हो तो हनुमान जी की शरण में जाएँ । नित्य हनुमान जी को गुड़ या बूंदी का भोग लगाएं, हनुमान जी को लाल गुलाब चढ़ाकर हनुमान चालीसा , बजरंग बाण का पाठ करें और प्रतिदिन कच्ची धानी के तेल के दीपक में लौंग डालकर हनुमान जी की आरती करें , और अपने उनसे शत्रु को नष्ट करने / परास्त करने की प्रार्थना करें। अपनी कमीज़ की सामने वाली जेब में लाल रंग की छोटी हनुमान चालीसा रखें ,इससे संकटमोचन की कृपा से सभी तरह के अनिष्ट दूर होते है, मनोबल बढ़ता है, जातक निर्भय हो जाता है, नए और शक्तिशाली मित्र बनते है। शत्रु कुछ भी नहीं बिगाड़ पाता है और शांत हो जाता है।
ॐ रां रामाय नमः
श्री राम ज्योतिष सदन 
पंडित आशु बहुगुणा 
आपकी जो भी समस्या है। उस समस्या का समाधान।
मैं केवल आपकी जन्मकुंडली देख कर ही आपकी समस्याओं का समाधान कर सकता हूं।
यह फ्री सेवा नही है। यह मेरा व्हाट्सएप नंबर भी है।
मोबाइल नं-9760924411
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रुका फंसा हुआ धन वापस पाने के उपाए।

रुका फंसा हुआ धन वापस पाने के उपाए

1. किसी बुधवार के दिन, हो सके तो कृष्ण पक्ष के किसी बुधवार या बुधवार को पड़ने वाली अमावस्या पर शाम के समय मीठे तेल की पाँच पूड़ियाँ बना लें। सबसे ऊपर की पूड़ी पर रोली से एक स्वास्तिक का चिन्ह बनायें और उसपर गेहूं के आटे का एक दिया सरसों का तेल डाल कर रख लें। दिया जलाएं और फिर उसपर भी रोली से तिलक करें। पीले या लाल रंग का एक पुष्प अर्पित करें। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान भगवान श्री गणेश से उस व्यक्ति से अपना धन वापस दिलाने की प्रार्थना करते रहें। फिर बाएं हाथ में सरसों और उड़द के कुछ दाने लेकर निम्न मंत्र का जप करते जाएँ और पूड़ी तथा दिए पर छोड़ते जाएँ । ये मन्त्र 21 बार जपना है
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं ह्रैं ह्रूं ह्रः हेराम्बाय नमो नमः। मम धनं प्रतिगृहं कुरु कुरु स्वाहा। 
तत्पश्चात इस सामग्री को लेजाकर उस व्यक्ति के घर के पास यानि मुख्य द्वार के सामने या ऐसे स्थान पर रख दें जहाँ से उसका मुख्यद्वार या घर नज़र आता हो। मुख्यद्वार के सामने रखने का अर्थ ये है के सड़क के दूसरी ओर यदि वहां भी कोई घर हो और रखने का मौका न मिले तो एक निश्चित दुरी पर रख दें जहाँ से कम से कम उसका घर नज़र आता हो।ॐ रां रामाय नमः
श्री राम ज्योतिष सदन 
पंडित आशु बहुगुणा 
आपकी जो भी समस्या है। उस समस्या का समाधान।
मैं केवल आपकी जन्मकुंडली देख कर ही आपकी समस्याओं का समाधान कर सकता हूं। यह मेरा व्हाट्सएप नंबर भी है।
मोबाइल नं-9760924411
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धनवान बनने के लिए सबसे अधिक आवश्यक है ।

धनवान बनने के लिए सबसे अधिक आवश्यक है कि धन की देवी यानी महालक्ष्मी आप पर प्रसन्न हो। क्योंकि जब तक महालक्ष्मी प्रसन्न नहीं होगी आप धनवान नहीं बन सकते। यदि आप महालक्ष्मी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो नीचे लिखे श्री महालक्ष्मी बीज मंत्र का विधि-विधान से जप करें। इस मंत्र का जप करने से महालक्ष्मी प्रसन्न होगी और साधक की धन-संपत्ति आदि सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाएंगी। मंत्र इस प्रकार है---
बीज मंत्र
ऊँ श्रीं महालक्ष्म्यै नम:
जप विधि :--
- शुक्रवार के दिन सुबह जल्दी उठकर नहाकर व साफ वस्त्र पहनकर सबसे पहले मां महालक्ष्मी की पूजा करें।
- मां महालक्ष्मी को कमल का फूल, चंदन, केसर, पीला वस्त्र, इत्र व मिठाई अर्पित करें।
- इसके बाद एकांत में कुश के आसन पर बैठकर कमल गट्टे की माला से इस मंत्र का जप 11 बार करें।
- अब प्रति शुक्रवार इस मंत्र की 11 माला जप करने से अति शीघ्र आपकी समस्या का समाधान हो जाएगा।

कभी-कभी उधार में बहुत-सा पैसा फंस जाता है।

कभी-कभी उधार में बहुत-सा पैसा फंस जाता है। ऐसी स्थिति में यह प्रयोग करे
किसी भी शुक्ल पक्ष की अष्टमी को रुई धुनने वाले से थोड़ी साफ रुई खरीदकर ले आएँ। उसकी चार बत्तियाँ बना लें। बत्तियों को जावित्री, नागकेसर तथा काले तिल (तीनों अल्प मात्रा में) थोड़ा-सा गीला करके सान लें। यह चारों बत्तियाँ किसी चौमुखे दिए में रख लें। रात्रि को सुविधानुसार किसी भी समय दिए में तिल का तेल डालकर चौराहे पर चुपके से रखकर जला दें। अपनी मध्यमा अंगुली का साफ पिन से एक बूँद खून निकाल कर दिए पर टपका दें। मन में सम्बन्धित व्यक्ति या व्यक्तियों के नाम, जिनसे कार्य है, तीन बार पुकारें। मन में विश्वास जमाएं कि परिश्रम से अर्जित आपकी धनराशि आपको अवश्य ही मिलेगी। इसके बाद बिना पीछे मुड़े चुपचाप घर लौट आएँ। अगले दिन सर्वप्रथम एक रोटी पर गुड़ रखकर गाय को खिला दें। यदि गाय न मिल सके तो उसके नाम से निकालकर घर की छत पर रख दें।

।। नवार्ण तांत्रिक महामंत्र ।।

।।  नवार्ण तांत्रिक महामंत्र  ।।
ओम ऐं ह्रीं क्लीं महादुर्गे नवाक्षरी नवदुर्गे नवात्मिके नवचन्डी महामाये महायोगनिंद्न्जये मधूकैटभ विद्राविणी महिषासुरमर्दिनी धूम्रल़ोचन संहंत्री चंड मुंड विनाशिनी रक्तबीजान्तके निशुम्भध्वंशिनी शुम्भ दर्पघ्नी देवी अष्टादशबाहुके  कपाल खट्वांग शूल खडग खेटकधारिणी छिन्नमस्तकधारिणी रूधिरमांसभोजिनी समस्त भूतप्रेतादियोगध्वंसिनी ब्रम्हा इन्दा्दिक स्तुते देवी माम रक्ष रक्ष मम शत्रून नाशय नाशय ह्रीं फट् हूं फट्।
ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुन्डायै विच्चे नमः

इस मंत्र का सिर्फ नित्य एक 108 बार जप करना चाहिये।
समस्त प्रकार की अभिलाषा को पूर्ण करता है।
अधिक जानकारी के लिए आप संपर्क कर सकते है।
ॐ रां रामाय नमः
श्री राम ज्योतिष सदन 
पंडित आशु बहुगुणा 
आपकी जो भी समस्या है। उस समस्या का समाधान।
मैं केवल आपकी जन्मकुंडली देख कर ही आपकी समस्याओं का समाधान कर सकता हूं। यह मेरा व्हाट्सएप नंबर भी है।
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श्रीलक्ष्मी नरसिंह सुप्रभात स्तोत्रम

श्रीलक्ष्मी नरसिंह सुप्रभातस्तोत्रम् 
। श्री यादगिरि लक्ष्मीनृसिंह सुप्रभातम्
श्री वङ्गीपुरम् नरसिंहाचार्यरचित ।
कौसल्या सुप्रजा राम पूर्वा संध्या प्रवर्तते ।
उत्तिष्ठ नरशार्दूल! कर्तव्यं दैवमाह्निकम् ॥ १॥

उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविंद उत्तिष्ठ गरुडध्वज ।
उत्तिष्ठ कमलाकान्त त्रैलोक्यं मङ्गळं कुरु ॥ २॥

यादाद्रिनाथशुभमन्दिरकल्पवल्लि
पद्मालये जननि पद्मभवादिवन्द्ये ।
भक्तार्तिभञ्जनि दयामयदिव्यरूपे
लक्ष्मीनृसिंहदयिते तव सुप्रभातम् ॥ ३॥

ज्वालानृसिंह करुणामय दिव्यमूर्ते
योगाभिनन्दन नृसिंह दयासमुद्र! ।
लक्ष्मीनृसिंह शरणागतपारिजात
यादाद्रिनाथ नृहरे! तव सुप्रभातम् ॥ ४॥

श्रीरङ्गवेङ्कटमहीधरहस्तिशैल
श्री यादवाद्रिमुखसत्त्वनिकेतनानि ।
स्थानानि तेकिल वदन्ति परावरज्ञाः
यादाद्रिनाथ नृहरे! तव सुप्रभातम् ॥ ५॥

ब्रह्मादयस्सुरवर मुनिपुङ्गवाश्च
त्वां सेवितुं विविधमङ्गळवस्तुहस्ताः ।
द्वारे वसन्ति नरसिंह भवाब्धिपोत
यादाद्रिनाथ नृहरे! तव सुप्रभातम् ॥ ६॥

प्रह्लाद नारद पराशर पुण्डरीक
व्यासादिभक्तरसिका भवदीयसेवाम् ।
वाञ्छन्त्यनन्यहृदया करुणासमुद्र
यादाद्रिनाथ नृहरे! तव सुप्रभातम् ॥ ७॥

त्वद्दास्यभोगरसिकाश्शठजिन्मुखार्याः
रामानुजादिमहनीयगुरुप्रधानाः ।
सेवार्थ मत्र भवदीयगृहाङ्गणस्थाः
यादाद्रिनाथ नृहरे! तव सुप्रभातम् ॥ ८॥

भक्ता स्त्वदीयपदपङ्कजसक्तचित्ताः
काल्यं विधाय तवकन्दर मन्दिराग्रे ।
त्वद्दर्शनोत्सुकतया निबिडं श्रयन्ते
यादाद्रिनाथ नृहरे! तव सुप्रभातम् ॥ ९॥

दिव्यावतारदशके नरसिंह ते तु
दिव्यावतारमहिमा नहि देवगम्यः ।
प्रह्लाददानवशिशोःकिल भक्तिगम्यः
यादाद्रिनाथ नृहरे! तव सुप्रभातम् ॥ १०॥

श्रीयादवाद्रिशिखरे त्वमहोबिलेऽपि
सिंहाचले च शुभमङ्गळशैलराजे ।
वेदाचलादि गिरि मूर्धसु सुस्थितोसि
यादाद्रिनाथ नृहरे! तव सुप्रभातम् ॥ ११॥

काम्यार्थिनो वरदकल्पक कल्पकं त्वां
सेवार्थिनः स्सुजनसेव्यपदद्वयं त्वाम् ।
भक्त्या विनम्र शिरसा प्रणमन्ति सर्वे
यादाद्रिनाथ नृहरे! तव सुप्रभातम् ॥ १२॥

त्वन्नाममन्त्रपठनेन लुठन्ति पापाः
त्वन्नाममन्त्रपठनेन लुठन्ति दैत्याः ।
त्वन्नाममन्त्रपठनेन लुठन्तिरोगाः
यादाद्रिनाथ नृहरे! तव सुप्रभातम् ॥ १३॥

लक्ष्मीनृसिंह! जगदीश! सुरेश! विष्णो
जिष्णो! जनार्दन! परात्पर विश्वरूप ।
विश्वप्रभातकरणाय कृतावतार
यादाद्रिनाथ नृहरे! तव सुप्रभातम् ॥ १४॥

त्वन्नाममन्त्र पठनंकिलसुप्रभातं
अस्माकमस्तु तवचास्तु च सुप्रभातम् ।
अस्मत्समुद्धरणमेव विचित्रगाध
यादाद्रिनाथ नृहरे! तव सुप्रभातम् ॥ १५॥

त्वत् पूजका परिव्रुढा परिचारकाश्च
नित्यार्चनाय विधिवद्विहित स्वक्रुत्याः ।
यत्तस्त्वदीय शुभगह्वर मन्दिराग्रे
यादाद्रिनाथ नृहरे! तव सुप्रभातम् ॥ १६॥

प्राभातकीमुपचितिम् परिकल्पयन्तः
कुण्डाश्च पूर्णजलकुम्भमुपाहरन्तः ।
श्रीवैष्णवाः समुपयान्तिहरे! नृसिंह
यादाद्रिनाथ नृहरे! तव सुप्रभातम् ॥ १७॥

सूर्योऽभ्युदेति विकसन्ति सरोरुहाणि
नीलोत्पलानि हि भवन्ति निमीलितानि ।
प्राग्दिङ्मुखेरुणगभस्तिगणोऽभ्युदेति
यादाद्रिनाथ नृहरे! तव सुप्रभातम् ॥ १८॥

मन्दानिलस्सुर नदीकमलोदरेशु
मन्दंविगाह्य शुभसौरभ मादधानः ।
हर्षप्रकर्षमुपयाति च सेवितुं त्वां
यादाद्रिनाथ नृहरे! तव सुप्रभातम् ॥ १९॥

तारागणोवियति मज्जति सुप्रभाते
सूर्येणसाकमवलोकयितुं त्वदीयम् ।
श्रीसुप्रभातमवभासित सर्वलोकं
यादाद्रिनाथ नृहरे! तव सुप्रभातम् ॥ २०॥

पक्षिस्वनाश्चपरितःपरिसम्पतन्ति
कूजन्तिकोकिलगणाःकलकंठरावैः ।
वाचा विशुद्धकलयानुवदन्तिकीराः
यादाद्रिनाथ नृहरे! तव सुप्रभातम् ॥ २१॥

पल्लीषु वल्लवजनाःस्वगृहाङ्गणेषु
धेनूर्दुहन्ति विनिभान्ति विशेषदृष्ट्या ।
गोपालबाल इव भक्तहृदम्बुजेषु
यादाद्रिनाथ नृहरे! तव सुप्रभातम् ॥ २२॥

गाढांधकारपटलम् गगनंजहाति
मोहान्धकार इव सन्मनुजम् समस्तम् ।
रागोविराग इव संविशति प्रकामं
यादाद्रिनाथ नृहरे! तव सुप्रभातम् ॥ २३॥

निद्राजहाति हि जनान् सुमुनिं यधावत्
प्रज्ञाप्युदेति हि जनेषु मुनौयधावत् ।
सक्तिर्जनेषु हि यथा च मुनौविरक्तिः
यादाद्रिनाथ नृहरे! तव सुप्रभातम् ॥ २४॥

फुल्लानिपङ्कजवनानि विशुद्धसत्त्व
फुल्लानि सज्जनमनःकमलानि यद्वत् ।
भाश्शुद्धसत्वमिव भाति विदिक्षु दिक्षु
यादाद्रिनाथ नृहरे! तव सुप्रभातम् ॥ २५॥

ब्रह्मास्वयंसुरगणैस्सहलोकपालैः
धामप्रविश्य तव मण्डपगोपुराढ्यम् ।
पञ्चाङ्गशुद्धिमभिवर्णयति त्वदीयां
यादाद्रिनाथ नृहरे! तव सुप्रभातम् ॥ २६॥

विख्यातवैद्यजन वञ्चकरोगजाल
विख्यातवैद्य इति रोगनिपीडितास्त्वाम् ।
निश्चित्यधाम तव दूरत आपतन्ति
यादाद्रिनाथ नृहरे! तव सुप्रभातम् ॥ २७॥

भूतग्रहादि बलवत्तर तापयुक्ताः
बाणावतीमुख महोग्रपिशाच विद्धाः ।
स्नाताःप्रदक्षिणविधा वुपयान्तिनाथ
यादाद्रिनाथ नृहरे! तव सुप्रभातम् ॥ २८॥

सन्तानहीन वनितास्सरसि त्वदीये
स्नात्वाजलार्द्रवसनास्तव दर्शनाय ।
आयान्तिसन्ततिवरप्रद देवदेव
यादाद्रिनाथ नृहरे! तव सुप्रभातम् ॥ २९॥

यद्दुष्ट संहरणमुत्तमलोकरक्षा
दीक्षां व्यनक्ति तवरूप महोनृसिंह ।
तच्चात्र यादगिरिमूर्थनिसंविभाति
यादाद्रिनाथ नृहरे! तव सुप्रभातम् ॥ ३०॥

प्रह्लाद पुण्यजनि पुण्यबलात्प्रतीतं
रूपं जनस्तवहरे निगमान्तवेद्यम् ।
प्रातःस्मरंस्तरति संस्मारणाम्बुराशिं
यादाद्रिनाथ नृहरे! तव सुप्रभातम् ॥ ३१॥

श्रीसुप्रभातमिदमच्युतकैतवोक्त
मप्यच्युतं भवतुभक्तजनैकवेद्यम् ।
लक्ष्मीनृसिंह तव नामशुभप्रभावात्
यादाद्रिनाथ नृहरे! तव सुप्रभातम् ॥ ३२॥

इत्थं यादाद्रिनाथस्य सुप्रभात मतन्द्रिताः ।
ये पठन्ति सदा भक्त्या ते नरास्सुखभागिनः ॥ ३३॥

इति श्री लक्ष्मी नरसिंह सुप्रभातम् ।

नरसिंह माला सिद्ध मंत्र

श्रीनृसिंहमालामन्त्रः -
श्री गणेशाय नमः ।
अस्य श्री नृसिंहमालामन्त्रस्य नारदभगवान् ऋषिः ।
अनुष्टुभ् छन्दः । श्री नृसिंहोदेवता । आं बीजम् ।
लं शवित्तः । मेरुकीलकम् ।
श्रीनृसिंहप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ॥
ॐ नमो नृसिंहाय ज्वलामुखग्निनेत्रय शङ्खचक्रगदाप्र्हस्ताय ।
योगरूपाय हिरण्यकशिपुच्छेदनान्त्रमालाविभुषणाय हन हन दह
दह वच वच रक्ष वो नृसिंहाय पुर्वदिषां बन्ध बन्ध
रौद्रभसिंहाय दक्षिणदिशां बन्ध बन्ध पावननृसिंहाय
पश्चिमदिशां बन्ध बन्ध दारुणनृसिंहाय उत्तरदिशां बन्ध
बन्ध ज्वालानृसिंहाय आकाशदिशां बन्ध बन्ध लक्ष्मीनृसिंहाय
पातालदिशां बन्ध बन्ध कः कः कम्पय कम्पय आवेशय आवेशय
अवतारय अवतारय शीघ्रं शीघ्रं ।

ॐ नमो नारसिंहाय नवकोटिदेवग्रहोच्चाटनाय ।
ॐ नमो नारसिंहाय अष्टकोटिगन्धर्व ग्रहोच्चाटनाय ।
ॐ नमो नारसिंहाय षट्कोटिशाकिनीग्रहोच्चाटनाय ।
ॐ नमो नारसिंहाय पञ्चकोटि पन्नगग्रहोच्चाटनाय ।
ॐ नमो नारसिंहाय चतुष्कोटि ब्रह्मराक्षसग्रहोच्चाटनाय ।
ॐ नमो नारसिंहाय द्विकोटिदनुजग्रहोच्चाटनाय ।
ॐ नमो नारसिंहाय कोटिग्रहोच्चाटनाय ।
ॐ नमो नारसिंहाय अरिमूरीचोरराक्षसजितिः वारं वारं ॥

श्रीभय चोरभय व्याधिभय सकलभयकण्टकान् विध्वंसय विध्वंसय ।
शरणागत वज्रपञ्जराय विश्वहृदयाय प्रह्लादवरदाय
क्षरौं श्रीं नृसिंहाय स्वाहा ।
ॐ नमो नारसिंहाय मुद्गलशङ्खचक्रगदापद्महस्ताय
नीलप्रभाङ्गवर्णाय भीमाय भीषणाय ज्वालाकरालभयभाषित
श्रीनृसिंहहिरण्यकश्यपवक्षस्थलविदार्णाय ।
जय जय एहि एहि भगवन् भवन गरुडध्वज गरुडध्वज
मम सर्वोपद्रवं वज्रदेहेन चूर्णय चूर्णय
       आपत्समुद्रं शोषय शोषय ।
असुरगन्धर्वयक्षब्रह्मराक्षस भूतप्रेत
       पिशाचदिन विध्वन्सय् विध्वन्सय् ।
पूर्वाखिलं मूलय मूलय ।
प्रतिच्छां स्तम्भय परमन्त्रपयन्त्र परतन्त्र परकष्टं
छिन्धि छिन्धि भिन्धि हं फट् स्वाहा ।
इति श्रीअथर्वण वेदोवत्तनृसिंहमालामन्त्रः समाप्तः ।
श्री नृसिंहार्पणमस्तु ॥

होली की पूजा का महत्व

होली की पूजा मुखयतः भगवान विष्णु (नरसिंह अवतार) को ध्यान में रखकर की जाती है।

घर के प्रत्येक सदस्य को होलिका दहन में देशी घी में भिगोई हुई दो लौंग, एक बताशा और एक पान का पत्ता अवश्य चढ़ाना चाहिए। होली की ग्यारह परिक्रमा करते हुए होली में सूखे नारियल की आहुति देनी चाहिए। इससे सुख-समृद्धि बढ़ती है, कष्ट दूर होते हैं। 
होली पर पूरे दिन अपनी जेब में काले कपड़े में बांधकर काले तिल रखें। रात को जलती होली में उन्हें डाल दें। यदि पहले से ही कोई टोटका होगा तो वह भी खत्म हो जाएगा।

होली दहन के समय ७ गोमती चक्र लेकर भगवान से प्रार्थना करें कि आपके जीवन में कोई शत्रु बाधा न डालें। प्रार्थना के पश्चात पूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ गोमती चक्र दहन में डाल दें।

होली दहन के दूसरे दिन होली की राख को घर लाकर उसमें थोडी सी राई व नमक मिलाकर रख लें। इस प्रयोग से भूतप्रेत या नजर दोष से मुक्ति मिलती है।
होली के दिन से शुरु होकर बजरंग बाण का ४० दिन तक नियमित पाठ करनें से हर मनोकामना पूर्ण होगी।
यदि व्यापार या नौकरी में उन्नति न हो रही हो, तो २१ गोमती चक्र लेकर होली दहन के दिन रात्रि में शिवलिंग पर चढा दें।

नवग्रह बाधा के दोष को दूर करने के लिए होली की राख से शिवलिंग की पूजा करें तथा राख मिश्रित जल से स्नान करें।

होली वाले दिन किसी गरीब को भोजन अवश्य करायें।
होली की रात्रि को सरसों के तेल का चौमुखी दीपक जलाकर पूजा करें व भगवान से सुख - समृद्धि की प्रार्थना करें। इस प्रयोग से बाधा निवारण होता है।
यदि बुरा समय चल रहा हो, तो होली के दिन पेंडुलम वाली नई घडी पूर्वी या उत्तरी दीवार पर लगाए। परिणाम स्वयं देखे।

होम की साधारण विधि इस प्रकार है।

होम की साधारण विधि इस प्रकार है।
सभी होम के प्रारंभ में सात प्रायश्‍चित आहुतियाँ पाँच पंचवारुणी कुल बारह आहुतियाँ दी जाती है। वह इस प्रकार है :
(1) ओं प्रजापतये स्वाहा इदं प्रजापतये न मम।
(2) ओं इन्द्राय स्वाहा इदमिन्द्राय न मम।
(3) ओं अग्नये स्वाहा इदमग्नये न मम।
(4) ओं सोमाय स्वाहा इदं सोमाय न मम।
(5) ओं भू: स्वाहा इदमग्नये न मम।
(6) ओं भुव: स्वाहा इदं वायवे न मम।
(7) ओं स्व: स्वाहा इदं सूर्याय न मम।
इसके बाद नीचे लिखा मन्त्र पढ़ कर जल छिड़के, या केवल मन्त्र ही पढ़ दे :
यथा वाण महाराणां कवचंवारकं भवेत्। तद्वद्दैवोपघातानां शांतिर्भवति वारिका। शांतिरस्तु पुष्टिरस्तु वृद्धिरस्तु यत्पापं तत्प्रतिहतमस्तु द्विपदे चतुष्पदे सुशांतिर्भवतु।
फिर पंचवाणी से होम करे :
(1) ओं त्वन्नोअग्ने वरुणस्य विद्वान्देवस्य हेडो अवयासिसीष्ठा। यजिष्ठो वद्दितम: शोशुचानो विश्‍वा द्वेषांसि प्रमुमुग्धयस्मत्स्वाहा इदमग्नीवरुणायाभ्यां न मम।
(2) ओं सत्वन्नोऽअग्नेवमोभवीती नेदिष्ठो अस्या उषसोव्युष्टौ। अवयक्ष्वनोवरुण-रंराणो वीहि मृडीकं सुहवो न एधिस्वाहा इदमग्नीवरुणाभ्यां न मम।
(3) ओं अयाश्‍चाग्येस्यनभि शस्तिपाश्‍च सत्वमित्तवमयाअसि। अयानो यज्ञं वहास्ययानो धोहि भेषजं स्वाहा इदमग्नये न मम।
(4) ओं येते शतं यं सहस्रं यज्ञिया: पाशा वितता महान्त:। तेभिर्नोऽअद्य सवितोत विष्णुर्विश्‍वे मुंचन्तु मरुत: स्वर्का: स्वाहा इदं वरुणाय सवित्रो विष्णवे विश्‍वेभ्यो देभ्यो मरुद्‍भय: स्वर्केभ्यश्‍च न मम।
(5) ओं उदुत्तामं वरुणपाशमस्मदवाधामं विमध्यमं श्रथाय। अथावयमादित्यव्रते तवानागसोऽअदितये स्याम स्वाहा इदं वरुणाय न मम।
इसके बाद थोड़ा जल गिरा कर नवग्रह आदि देवताओं के नाम ले कर और जिस देवता का होम करना हो उसका भी नाम ले कर स्वाहा शब्द के साथ चतरुथ्यंत उच्चारण कर के आहुतियाँ दे और अन्त में ‘ओं अग्नये स्विष्टकृते स्वाहा इदमग्नये स्विष्टकृते न मम’ पढ़ कर आहुति दे और पूर्णाहुति करे। होम के आरंभ में संकल्प कर के होम शुरू करे और अन्त में पूर्णाहुति का संकल्प करे। यदि दूसरा आदमी होम करनेवाला हो तो भी संकल्प स्वयं पढ़ना चाहिए और ‘इदं प्रजापतये न मम’ इत्यादि प्रतिमन्त्र के अन्त में स्वयं बोलना चाहिए और उसी के साथ आहुति छोड़नी चाहिए, न कि ‘स्वाहा’ के साथ। इनका नाम त्याग है और इसके बोलने का अधिकार केवल यजमान को ही है। इसके बिना आहुति अधूरी रह जाती है।

चौर गणपति सटीक साधना करे।

चौर गणपति साधना प्रकरण
जय मां बगलामुखी,मां भगवती पीतांबरा की कृपा आप सब भक्तजनों के ऊपर बनी रहे..!
अधिकतर साधकों का मुझसे प्रश्न रहता है, कि विशाल जी हमने अमुक नाम के देवता के अनेक मंत्र पुरश्चरण किए परंतु हर बार निराशा ही हाथ लगी !
इस प्रश्न का उत्तर मैंने उन साधकों को निजी तौर पर दीया परंतु आज मेरे एक शुभचिंतक बड़े भाई ने मुझसे कहा कि विशाल जी जो जानकारी आपने मुझे प्रदान की है यह मेरी साधना के मध्य में बहुत लाभकारी सिद्ध हुई है कृपया कर इस गुढ ज्ञान को अधिकतर से अधिकतर 
साधकों तक पहुंचाएं
तो साधकों आपको विदीत होगा की सोशल नेटवर्किंग साइट पर मेरे जितने भी आर्टिकल्स है अधिकतर शाबर विद्या को छोड़कर प्रमाणिकता की दृष्टि से वह किसी ना किसी प्रमाणित ग्रंथ से संबंध रखते ही है!
और जो आज का प्रश्न साधकों का हुआ था इसका उत्तर हमें तंत्र के महानतम प्रमाणित ग्रंथ "वर्णबिल" मे स्पष्ट "चौर गणपति साधना प्रकरण" मे अध्ययन करने को मिलता है इसमे स्पष्ट लिखा है कि साधक के शरीर में कुंडलिनी कमल के प्रत्येक द्वार के प्रत्येक पथ पर पचास गण देवता के रूप में मुनि गण खड़े रहते हैं और जप का दिव्य तेज कुंडलिनी के जिस कमल दल में स्थित होगा यह ऋषि उस जप के तेज  का हरण कर लेते हैं परिणाम स्वरुप अधिकतर मेरे साधक जीवन में भी मुझे देखने को  मिला है कि जप के तेज के हरण होने के पर्यंत कुछ साधकों को संबंधित कुंडलिनी कमल दल के अंग क्षेत्र में विकार उत्पन्न होना प्रारंभ हो गया जिसके परिणाम स्वरुप हृदय गति का वढ जाना, पाचन में समस्या आना, बिना किसी अर्थ के भयभीत होना मस्तिष्क में हर समय दबाब महसूस होना, एंग्जाइटी जैसे परिणाम सामने आए हैं!
इसीलिए तंत्र में बार बार कहा गया है कि बिना गुरु के किसी भी मंत्र का जप ना करें फिर भी अगर किसी साधक भाई के साथ इस प्रकार की घटनाएं घटित हो रही है तो वह इस चौर गणपति के छोटे से प्रयोग को करके पुनः स्वस्थ हो सकता है!
कुंडलिनी कमल दल के गणों के अधिष्ठात्री देव चौर गणपति माने जाते हैं मंत्र जप करने से पहले इन गणपति कि इस छोटी सी विधि को करके आप अपने प्रत्येक कुंडलिनी द्वार माने जाने वाले अंग को बंधित कर सकते हैं विधि इस प्रकार से है परंतु मैं पुनः कहता हूं कि अगर इस प्रकार से किसी भी साधक के साथ घटनाएं घटित हो तो योग्य गुरु से परामर्श अवश्य लें मेरे इस आर्टिकल का हेतु आप सबको इस गूढ़ विद्या से अवगत करवाना है.!
तो आइए जानते हैं की कुंडलिनी कमलदल से प्रवाहित होने वाली यत्र तत्र ऊर्जा को कैसे एक जगह स्थापित किया जा सकता है._!
 जप आसन पर बैठ कर सर्वप्रथम इस विधि को करने के पश्चात ही अपने मंत्र जप को प्रारंभ करें.....!
● हृदय पर दाएं हाथ को स्पर्श कर - दस बार "क्रों " बीज मंत्र जपे!
■ दक्षिण नेत्र को स्पर्श कर - दस बार "ह्रीं ह्रीं" का जप करें!
● बाम नेत्र - दस बार "ह्रीं ह्रीं" जपे !
■ दक्षिण कान - दस बार "ह्रीं ह्रीं" जपे !
● बाम कान  - दस बार "ह्रीं ह्रीं" जपे !
■ दक्षिण नासिका - दस बार"ह्रुं ह्रुं जपे !
● बाम नासिका - दस बार"ह्रुं ह्रुं जपे !
■ मुख पर  -  दस बार "ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं" जपे !
● नाभि पर - दस बार "ऐं क्लीं"जपे !
■ लिंग पर - दस बार हसौ: जपे !
●  भ्रुमध्य पर - दस बार हुं जपे !

काल सर्प दोष के सटीक उपाय

कालसर्प योग निवारण के अनेक उपाय हैं । इस योग की शांति विधि विधान के साथ योग्य विद्धान एवं अनुभवी ज्योतिषी, कुल गुरू या पुरोहित के परामर्श के अनुसार किसी कर्मकांडी ब्राह्मण से यथा योग्य समयानुसार करा लेने से दोष का निवारण हो जाता हैं । कुछ साधारण उपाय निम्न हैं:-
1. घर में वन तुलसी के पौधे लगाने से कालसर्प योग वालों को शान्ति प्राप्त होती हैं ।
2. प्रतिदिन ‘‘सर्प सूक्त‘‘ का पाठ भी कालसर्प योग में राहत देता हैं ।
3. विश्व प्रसिद्ध तिरूपति बाला जी के पास काल हस्ती शिव मंदिर में भी कालसर्प योग शान्ति कराई जाती हैं।
4. इलाहाबाद संगम पर व नासिक के पास त्रयंबकेश्वर में व केदारनाथ में भी शान्ति कराई जाती हैं ।
5. ऊँ नमः शिवाय मंत्र का प्रतिदिन एक माला जप करें । नाग पंचमी का वृत करें, नाग प्रतिमा की अंगुठी पहनें ।
7. कालसर्प योग यंत्र की प्राण प्रतिष्ठा करवाकर नित्य पूजन करें । घर एवं दुकान में मोर पंख लगाये ।
8. ताजी मूली का दान करें । मुठ्ठी भर कोयले के टुकड़े नदी या बहते हुए पानी में बहायें ।
9. महामृत्युंजय जप सवा लाख , राहू केतु के जप, अनुष्ठान आदि योग्य विद्धान से करवाने चाहिए ।
10. नारियल का फल बहते पानी में बहाना चाहिए । बहते पानी में मसूर की दाल डालनी चाहिए ।
11. पक्षियों को जौ के दाने खिलाने चाहिए ।
12. पितरों के मोक्ष का उपाय करें । श्राद्ध पक्ष में पितरों का श्राद्ध श्रृृद्धा पूर्वक करना चाहिए ।
कुलदेवता की पूजा अर्चना नित्य करनी चाहिए ।
13. शिव उपासना एवं रूद्र सूक्त से अभिमंत्रित जल से स्नान करने से यह योग शिथिल हो जाता हैं ।
14. सूर्य अथवा चन्द्र ग्रहण के दिन सात अनाज से तुला दान करें ।
15. 72000 राहु मंत्र ‘‘ऊँ रां राहवे नमः‘‘ का जप करने से काल सर्प योग शांत होता हैं ।
16. गेहू या उड़द के आटे की सर्प मूर्ति बनाकर एक साल तक पूजन करने और बाद में नदी में छोड़ देने तथा तत्पश्चात नाग बलि कराने से काल सर्प योग शान्त होता हैं ।
17. राहु एवं केतु के नित्य 108 बार जप करने से भी यह योग शिथिल होता हैं । राहु माता सरस्वती एवं
केतु श्री गणेश की पूजा से भी प्रसन्न होता हैं ।
18. हर पुष्य नक्षत्र को महादेव पर जल एवं दुग्ध चढाएं तथा रूद्र का जप एवं अभिषेक करें ।
19. हर सोमवार को दही से महादेव का ‘‘ऊँ हर-हर महादेव‘‘ कहते हुए अभिषेक करें ।
20. राहु-केतु की वस्तुओं का दान करें । राहु का रत्न गोमेद पहनें । चांदी का नाग बना कर उंगली में
धारण करें । शिव लिंग पर तांबे का सर्प अनुष्ठानपूर्वक चढ़ाऐ। पारद के शिवलिंग बनवाकर घर में प्राण प्रतिष्ठित करवाए ।

॥ श्री प्रज्ञाविवर्धन स्तोत्रम् ॥

॥ श्री प्रज्ञाविवर्धन स्तोत्रम् ॥ विनियोग — ‘ॐ अस्य श्री प्रज्ञाविवर्धन स्तोत्र मंत्रस्य सनत् कुमार ऋषिः स्वामी कार्तिकेयो देवता अनुष्टुप् छन्दः । मम सकल विद्या सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः । ॥ श्री गणेशाय नमः ॥ ॥ श्री स्कंद उवाच ॥ योगीश्वरो महासेनः कार्तिकेयोऽग्निनंदनः । स्कन्दः कुमारः सेनानी स्वामी शंकरसंभवः ॥ गाङ्गेयस्ताम्रचूडश्च ब्रह्मचारी शिखिध्वजः । तारकारिरुमापुत्रः क्रौञ्चारिस्च षडाननः ॥ शब्दब्रह्म समुद्रश्च सिद्धः सारस्वतो गुहः । सनत्कुमारो भगवान् भोग मोक्ष फलप्रदः ॥ शरजन्मा गुणादीशः पूर्वजो मुक्ति मार्गकृत् । सर्वागम प्रणेता च वांछितार्थ प्रदर्शनः ॥ ॥ फलश्रुति ॥ अष्‍टाविंशतिनामानि मदीयानीति यः पठेत् । प्रत्यूषं श्रद्धया युक्‍तो मूको वाचस्पतिर्भवेत् ॥ महामंत्रमया नीति मम नामानुकीर्तनम् । महाप्रज्ञामवाप्नोति नात्र कार्या विचारणा ॥ पुष्यनक्षत्रमारभ्य दशवारं पठेन्नरः । पुष्यनक्षत्र पयंताश्वत्थमुले दिने दिने ॥ पुरश्‍चरणमात्रेण सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥ ॥ इति श्री रुद्रयामले प्रज्ञाविवर्धनाख्याम् श्रीमत्कार्तिकेयस्तोत्रम् संपुर्णम् ॥ ॥ श्रीकार्तिकेयार्पणमस्तु ॥ ॥ मंत्रः ॥ “नमस्ते शारदे देवि सरस्वति मतिप्रदे । वस त्वं मम जिह्वाग्रे सर्वविद्याप्रदा भव ॥”

Monday, 16 August 2021

बिल्व वृक्ष की महिमा और प्रयोग

बातें बिल्व वृक्ष की-
1. बिल्व वृक्ष के आसपास सांप नहीं आते 
2. अगर किसी की शव यात्रा बिल्व वृक्ष की छाया से होकर गुजरे तो उसका मोक्ष हो जाता है 
3. वायुमंडल में व्याप्त अशुध्दियों को सोखने की क्षमता सबसे ज्यादा बिल्व वृक्ष में होती है 
4. चार पांच छः या सात पत्तो वाले बिल्व पत्रक पाने वाला परम भाग्यशाली और शिव को अर्पण करने से अनंत गुना फल मिलता है 
5. बेल वृक्ष को काटने से वंश का नाश होता है।और बेल वृक्ष लगाने से वंश की वृद्धि होती है।
6. सुबह शाम बेल वृक्ष के दर्शन मात्र से पापो का नाश होता है।
7. बेल वृक्ष को सींचने से पितर तृप्त होते है।
8. बेल वृक्ष और सफ़ेद आक् को जोड़े से लगाने पर अटूट लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
9. बेल पत्र और ताम्र धातु के एक विशेष प्रयोग से ऋषि मुनि
स्वर्ण धातु का उत्पादन करते थे ।
10. जीवन में सिर्फ एक बार और वो भी यदि भूल से भी शिव लिंग पर बेल पत्र चढ़ा दिया हो तो भी उसके सारे पाप मुक्त हो जाते है 
11. बेल वृक्ष का रोपण, पोषण और संवर्धन करने से महादेव से साक्षात्कार करने का अवश्य लाभ मिलता है।
कृपया बिल्व पत्र का पेड़ जरूर लगाये । 
बिल्व पत्र के लिए पेड़ को क्षति न पहुचाएं 
शिवजी की पूजा में ध्यान रखने योग्य बात
शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव को कौन सी चीज़ चढाने से
मिलता है क्या फल
किसी भी देवी-देवता का पूजन करते वक़्त उनको अनेक चीज़ें
अर्पित की जाती है। प्रायः भगवन को अर्पित की जाने वाली हर
चीज़ का फल अलग होता है। शिव पुराण में इस बात का वर्णन
मिलता है की भगवन शिव को अर्पित करने वाली अलग-अलग
चीज़ों का क्या फल होता है।
शिवपुराण के अनुसार जानिए कौन सा अनाज भगवान शिव को
चढ़ाने से क्या फल मिलता है:
1. भगवान शिव को चावल चढ़ाने से धन की प्राप्ति होती है।
2. तिल चढ़ाने से पापों का नाश हो जाता है।
3. जौ अर्पित करने से सुख में वृद्धि होती है।
4. गेहूं चढ़ाने से संतान वृद्धि होती है।यह सभी अन्न भगवान को अर्पण करने के बाद गरीबों में वितरीत कर देना चाहिए।
शिव पुराण के अनुसार जानिए भगवान शिव को कौन सा रस
(द्रव्य) चढ़ाने से उसका क्या फल मिलता है
1. ज्वर (बुखार) होने पर भगवान शिव को जलधारा चढ़ाने से शीघ्र लाभ मिलता है। सुख व संतान की वृद्धि के लिए भी जलधारा द्वारा शिव की पूजा उत्तम बताई गई है।
2. नपुंसक व्यक्ति अगर शुद्ध घी से भगवान शिव का अभिषेक करे, ब्राह्मणों को भोजन कराए तथा सोमवार का व्रत करे तो उसकी समस्या का निदान संभव है।
3. तेज दिमाग के लिए शक्कर मिश्रित दूध भगवान शिव को चढ़ाएं।
4. सुगंधित तेल से भगवान शिव का अभिषेक करने पर समृद्धि में वृद्धि होती है।
5. शिवलिंग पर ईख (गन्ना) का रस चढ़ाया जाए तो सभी आनंदों की प्राप्ति होती है।
6. शिव को गंगाजल चढ़ाने से भोग व मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है।
7. मधु (शहद) से भगवान शिव का अभिषेक करने से राजयक्ष्मा
(टीबी) रोग में आराम मिलता है।
शिव पुराण के अनुसार जानिए भगवान शिव को कौन का फूल
चढ़ाया जाए तो उसका क्या फल मिलता है
1. लाल व सफेद आंकड़े के फूल से भगवान शिव का पूजन करने
पर भोग व मोक्ष की प्राप्ति होती है।
2. चमेली के फूल से पूजन करने पर वाहन सुख मिलता है।
3. अलसी के फूलों से शिव का पूजन करने से मनुष्य भगवान
विष्णु को प्रिय होता है।
4. शमी पत्रों (पत्तों) से पूजन करने पर मोक्ष प्राप्त होता है।
5. बेला के फूल से पूजन करने पर सुंदर व सुशील पत्नी मिलती है।
6. जूही के फूल से शिव का पूजन करें तो घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती।
7. कनेर के फूलों से शिव पूजन करने से नए वस्त्र मिलते हैं।
8. हरसिंगार के फूलों से पूजन करने पर सुख-सम्पत्ति में वृद्धि होती है।
9. धतूरे के फूल से पूजन करने पर भगवान शंकर सुयोग्य पुत्र प्रदान करते हैं, जो कुल का नाम रोशन करता है।
10. लाल डंठलवाला धतूरा पूजन में शुभ माना गया है।
11. दूर्वा से पूजन करने पर आयु बढ़ती है।
ॐ नमः शिवाय

दुर्गा सप्तशती पाठ विधि

  दुर्गा सप्तशती दुर्गा सप्तशती पाठ विधि पूजनकर्ता स्नान करके, आसन शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके, शुद्ध आसन पर बैठ जाएँ। माथे पर अपनी पसंद क...