Tuesday 16 April 2019

कलियुग में जप चार गुना अधिक करने से सिद्धि प्राप्त होती है। मंत्रों का गलत उच्चारण कर जप करने से दोष लगता है। केवल दूध पीकर जो मंत्र, तंत्र, अनुष्ठान आदि किया जाता है, उसका फल शीघ्र मिलता है। मंत्र का जप मन से करें। स्तोत्र जप बोलकर करें। अपवित्र अवस्था में, लेटे हुए, चलते-फिरते मंत्र जप न करें। गं, रां, ह्वीं आदि का उच्चारण लोग प्राय: अशुद्ध करते हैं। ये अनुनासिक उच्चारण है, जो नाक व मुंह से किए जाते हैं। मंत्र, तंत्र, यंत्र की प्राप्ति दीपावली, होली की रात, सूर्य व चंद्र ग्रहण पर विशेष रू प से होती है। जल में रहकर, बहते हुए जल में खड़े होकर जप करने से सिद्धि प्राप्त होती है। मंत्र, तंत्र, यंत्र गुप्त रखें। उनका प्रचार न करें। नीचे स्थल, गड्ढे आदि में जप न करें। दिन में पूर्व दिशा में, रात्रि में उत्तर की ओर मुंह करके जप करें। केवल रेशम, कंबल (ऊनी) व कुशा के आसन पर बैठकर जप करें। जप करते समय माला हिले नहीं। किसी दुखी, पीडि़त व्यक्ति को यंत्र या मंत्र देना हो, तो दीपावली, होली, ग्रहण के दिन दें। अनुष्ठानकर्ता सदाचारी हो, सद्गुणी हो। अशुद्ध व्यक्ति पर तंत्र-मंत्र, जादू-टोना शीघ्र असर करते हैं। अत: शुद्ध रहें और ईश्वर आराधना करते रहने से लाभ मिलना संभव है।

नित्यकर्म की संक्षिप्त विधि प्रत्येक तंत्र - साधक को अपने जीवन - यापन में ही नहीं , अपितु दैनिक दिनचर्या में भी कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना बहुत आवश्यक होता है । वैसे भी जो व्यक्ति जिस मार्ग का अनुसरण करता है , उसे उस मार्ग में सफलतापूर्वक चलकर लक्ष्य तक पहुंचने के सभी नियमों को जान लेना तथा उनका पूरी तरह से पालन करना चाहिए । तंत्र - साधक को तंत्रादि प्रयोग में सफलता प्राप्त करने के लिए स्नान - संध्याशील होना अत्यावश्यक है ।   प्रातः कृत्य सूर्योदय से प्रायः दो घण्टे पूर्व ब्रह्म - मुहूर्त्त होता है । इस समय सोना ( निद्रालीन होना ) सर्वथा निषिद्ध है । इस कारण ब्रह्म - मुहूर्त्त में उठकर निम्न मंत्र को बोलते हुए अपने हाथों ( हथेलियों ) को देखना चाहिए । कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती । करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते कर - दर्शनम् ॥ हाथों के अग्रभाग में लक्ष्मी , मध्य में सरस्वती और मूल में ब्रह्मा स्थित हैं ( ऐसा शास्त्रों में कहा गया है ) । इसलिए प्रातः उठते ही हाथों का दर्शन करना चाहिए । उसके पश्चात् नीचे लिखी प्रार्थना को बोलकर भूमि पर पैर रखें । समुद्रवसने देवी ! पर्वतस्तनमण्डले । विष्णुपत्नि ! नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व मे ॥ हे विष्णु पत्नी ! हे समुद्ररुपी वस्त्रों को धारण करने वाली तथा पर्वतरुप स्तनों से युक्त पृथ्वी देवी ! तुम्हें नमस्कार है , तुम मेरे पादस्पर्श को क्षमा करो । इस कृत्य के पश्चात् मुख को धोएं , कुल्ला करें और फिर प्रातः स्मरण तथा भजन आदि करके श्री गणेश , लक्ष्मी , सूर्य , तुलसी , गाय , गुरु , माता , पिता , इष्टदेव एवं ( घर के ) वृद्धों को सादर प्रणाम करें ।   प्रातः स्मरण उमा उषा च वैदेही रमा गंगेति पंचकम् । प्रातरेव स्मरेन्नित्यं सौभाग्यं वर्द्धते सदा ॥ सर्वमंगल मांगल्ये ! शिवे ! सर्वार्थसाधिके । शरण्ये ! त्र्यंबक ! गौरि नारायणि ! नमोऽस्तुते ॥ हे जिह्वेरससराज्ञे ! सर्वदा मधुरप्रिये ! । नारायणाख्यपीयूषं पिब जिह्वे ! निरंतरम् ॥ शौच - विधि यज्ञोपवीत को कंठी कर दाएं कर्ण में लपेटकर वस्त्र या आधी धोती से सिर ढांप लें । वस्त्राभाव में जनेऊ को सिर के ऊपर से लेकर बाएं कर्ण से पीछे करें । जल के पात्र को बाएं रख , दिन में उत्तर तथा रात्रि में दक्षिण की ओर मुख कर निम्नलिखित मंत्र बोलकर एवं मौनता बनाए रखकर मल - मूत्र का त्याग करें - गच्छंतु ऋषयो देवाः पिशाचा ये च गुह्यकाः । पितृभूतगणाः सर्वे करिष्ये मलमोचनम् ॥ पात्र से जल लें , बाएं हाथ से गुदा धोकर लिंग में एक बार , गुदा में तीन बार मिट्टी लगाकर जल से शुद्ध करें । बाएं हाथ को अलग रखते हुए दाएं हाथ से लांग टांगकर उसी हाथ में पात्र लें । मिट्टी के तीन हिस्से करें । पहले से बायां हाथ दस बार , दूसरे ( हिस्से ) से दोनों हाथ सात बार और तीसरे से पात्र को तीन बार शुद्ध करें । उसी पात्र से बारह से सोलह बार कुल्ले करें । अब दोनों पैरों को ( पहले बायां और फिर दायां ) तीन - तीन बार धोकर बची हुई मिट्टी धो दें । सूर्योदय से पूर्व एवं पश्चात् उत्तर की ओर मुख कर बारह बार कुल्ला करें । दिन से रात्रि में आधी , यात्रा में चौथाई तथा आतुरकाल में यथाशक्ति शुद्धि करनी आवश्यक है । मल - त्याग के पश्चात् बारह बार , मूत्र - त्याग के बाद चार बार तथा भोजनोपरांत सोलह बार कुल्ला करें । कर्म २ दंतधावन - विधि मुखशुद्धि किए बिना कोई भी मंत्र कभी फलदायक नहीं होता । अतः सूर्योदय से पहले और बाद में उत्तर अथवा दोनों समय पूर्वोत्तर कोण ( ईशान ) में मुंह करके दतुअन करें । मध्यमा , अनामिका अथवा अंगुष्ठ से दांत साफ करें । तर्जनी उंगली का कभी प्रयोग न करें । तत्पश्चात् प्रार्थना करें - आयुर्बलं यशो वर्चः प्रजाः पशुवसूनि च । ब्रह्म प्रज्ञां च मेधां च त्वन्नो देहि वनस्पते ॥   दुग्धवाले वृक्ष का बारह अंगुल का दतुअन ( दातौन ) धोकर उपर्युक्त प्रार्थना करें । फिर दतुअन को चीरकर जीभी करें और धोकर बायीं ओर फेंक दें ।  सीताराम जय वीर हनुमान ओं रां रामाय नम: आप अपनी जन्म कुंडली के दोष निवारण हेतू सटीक उपाय और एवं मंत्र साधनाएं संबंधित जानकारी के लिए सम्पर्क करे। श्री राम ज्योतिष सदन भारतीय वैदिक ज्योतिष एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता दैवज्ञ पंडित आशु बहुगुणा मोबाइल नंबर 97 6092 4411 यही हमारा WhatsApp नंबर भी है। हमारी वैबसाईट है। www shriramjyotishsadan.com मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश

कई बार ऐसा होता है की मकान में उपरी बाधा होती है। भुत प्रेत पितृ आदि का उपद्रव होता है। जिस से मकान में रहने वाले लोगो परेसान होते है । बीमार रहते है। कोइ काम बनता नही । अगर ऐसा लगता है और इस बात की पुष्टि करनी है तो इस के लिए ये कीजिए। एक हरा कपड़ा सवा मीटर ले। एक नारियल ले। सवा किलो चावल ले। अब नारियल को अपने मकान के सब कोने में बिना बोले लेके घूमे । इस के बाद उस को हरा कपड़ा में चावल के साथ कही पर बांध दे। ये क्रिया बिना बोले करे। फिर इस को मकान के अंदर कही टांग दे। 21 दिन के बाद उसे देखे। अगर उस में सफेद कीड़े पड गये है ।तो यकीनन उस मकान में उपद्रव है। कई बार नारियल इतना सड जाता है की मुर्दे जेसी बदबू आती है। ये एक निदान पद्धति है। इस तंत्र को बड़े मंत्र के साथ किया जाता है।.. जय श्री राम ----- श्रीराम ज्योतिष सदन। दैवज्ञ पंडित आशु बहुगुणा । पुत्र दैवज्ञ श्री पंडित टीकाराम बहुगुणा भारतीय वैदिक ज्योतिष और मंत्र विशेषज्ञ एवं रत्न परामशॅ दाता- और मंत्र अनुष्ठान के द्ववारा सभी सम्सयाओ का समाधान किया जाता है। क्या आप निशुल्क परामर्श चाहते हैं ? तो आप मुझसे सम्पकॅ ना करे । मोबाईल न0॰है। (9760924411) इसी नंबर पर और दोपहर-12.00 –बजे से शाम -07.00 -के मध्य ही संपर्क करें। मुजफ्फरनगर ॰उ0॰प्र0.

मन्त्र का स्वरुप इस प्रकार है - नमो भगवते आञ्जनेयाय महाबलाय स्वाहा ॥ अब काम्य प्रयोग कहते हैं - साधक इस मन्त्र के अनुष्ठान करते समय इन्द्रियों को वश में रखे । केवल रात्रि में भोजन करे । जो साधक व्यवधान रहित मात्र तीन दिन तक उस १०९ की संख्या में इस का जप करता है वह तीन दिन मे ही क्षुद्र रोगों से छुटकारा पा जाता है । भूत, प्रेत एवं पिश्चाच आदि को दूर करने के लिए भी उक्त मन्त्र का प्रयोग करना चाहिए । किन्तु असाध्य एवं दीर्घकालीन रोगों से मुक्ति पाने के लिए प्रतिदिन एक हजार की संख्या में जप आवश्यक है नियमित एक समय हविष्यान्न भोजन करते हुये जो साधक राक्षस समूह को नष्ट करते हुये कपीश्वर का ध्यान कर प्रतिदिन १० हजार की संख्या में जप करता है वह शीघ्र ही शत्रु पर विजय प्राप्त कर लेता है ॥ सुग्रीव के साथ राम की मित्रता कराये हुये कपीश्वर का ध्यान करते हुये इस मन्त्र का १० हजार की संख्या में जप करने से शत्रुओं के साथ सन्धि करायी जा सकती है ॥ लंकादहन करते हुये कपीश्वर का ध्यान करते हुये जो साधक इस मन्त्र का दश हजार करता है, उसके शत्रुओं के घर अनायास जल जाते हैं ॥ जो साधक यात्रा के समय हनुमान् जी का ध्यान कर इस मन्त्र का जप करता हुआ यात्रा करता है वह अपना अभीष्ट कार्य पूर्ण कर शीघ्र ही घर लौट आता है ॥ जो व्यक्ति अपने घर में सदैव हनुमान् जी की पूजा करता है और इस मन्त्र का जप करता है उसकी आयु और संपत्ति नित्य बढती रहती है तथा समस्त उपद्रव अपने आप नष्ट हो जाते है ॥ इस मन्त्र के जप से साधक की व्याघ्रादि हिंसक जन्तुओं से तथा तस्करादि उपद्रवी तत्त्वों से रक्षा होती है । इतना ही नहीं सोते समय इस मन्त्र के जप से चोरों से रक्षा तो होती रहती ही है दुःस्वप्न भी दिखाई नहीं देते ॥ सीताराम जय वीर हनुमान ओं रां रामाय नम: आप अपनी जन्म कुंडली के दोष निवारण हेतू सटीक उपाय और एवं मंत्र साधनाएं संबंधित जानकारी के लिए सम्पर्क करे। श्री राम ज्योतिष सदन भारतीय वैदिक ज्योतिष एवं मंत्र यंत्र तंत्र परामर्शदाता दैवज्ञ पंडित आशु बहुगुणा मोबाइल नंबर 97 6092 4411 यही हमारा WhatsApp नंबर भी है। हमारी वैबसाईट है। www shriramjyotishsadan.com मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश

तांत्रिक क्रियाओं और टोने टोटके से बहुत व्यक्ति परेशान है और इनके प्रभाव भी बहुत ही बुरे होते है जो व्यक्ति के रहन सहन को बहुत प्रभावित करते है। ऎसे पहचाने कि आप पर तंत्र शक्ति प्रयोग की गई है या नहीं : (1) नाड़ी की गति सामान्य से अधिक हो जाती है: जब भी शरीर पर किसी भी नकारात्मक ऊर्जा का हमला होता है तो हमारा शरीर उसका प्रतिरोध करता है जिसके फलस्वरूप हमारी धड़कन सामान्य से तेज हो जाती है। जितना घातक अटैक होगा, नाड़ी की गति उतनी ही ज्यादा तेज हो जाएगी। (2) श्वास की गति बढ़ जाती है: तांत्रिक हमला होते ही सांस की गति भी बहुत तेज हो जाती है। घातक हमले की हालत में श्वास की गति इतनी अधिक हो सकती है जितनी की भागदौड़ के बाद भी नहीं होती। (3) अचानक ही शारीरिक तथा मानसिक रूप से कमजोरी महसूस करना: तांत्रिक हमले या साईकिक अटैक में नकारात्मक शक्तियां व्यक्ति के मन-मस्तिष्क को काबू में करने का प्रयास करती है जिसके चलते व्यक्ति अपनी शक्ति काम नहीं ले पाता और वह अंदर ही अंदर शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोरी महसूस करने लगता है। (4) रात को डरावने सपने आते हैं: तांत्रिक हमले के दौरान रात को सोते समय भयावह और डरावने सपने आने लगते हैं। कई बार ऎसा लगता है जैसे कि आप पर किसी जानवर ने हमला कर दिया या आप कहीं बहुत ऊंचाई से गिर गए हैं। (5) पलंग के पास पानी रखने से भी पता चलता है: रात को सोते समय पलंग के पास पानी का एक गिलास रख दें और सोते समय मन में सोचे कि आपके अंदर की नकारात्मक ऊर्जा उस पानी में जा रही है। सुबह उस पानी को किसी छोटे पौधे में डाल दें। ऎसा लगातार आठ दिन तक करें। आठ दिन में वह पौधा मुरझा जाएगा। यदि हमला बहुत तेज हुआ तो पौधा 2-3 दिन में ही कुम्हला जाएगा। (6) तकिए के नीचे नींबू रखें: फल तथा सब्जियां भी नकारात्मक ऊर्जा से अत्यधिक प्रभावित होते हैं। आप रात को सोते समय एक नींबू अपने तकिए के नीचे रख दें और अपने मन में सोचे कि आपके आस-पास कोई भी नकारात्मक ऊर्जा है तो वह इस नींबू में आ जाएं। तांत्रिक हमला होने की दशा में सुबह आप उस नींबू को मुरझा हुआ पाएंगे। उसका रंग भी काला पड़ जाएगा। जय श्री राम ----- श्रीराम ज्योतिष सदन। दैवज्ञ पंडित आशु बहुगुणा । पुत्र दैवज्ञ श्री पंडित टीकाराम बहुगुणा भारतीय वैदिक ज्योतिष और मंत्र विशेषज्ञ एवं रत्न परामशॅ दाता- और मंत्र अनुष्ठान के द्ववारा सभी सम्सयाओ का समाधान किया जाता है। क्या आप निशुल्क परामर्श चाहते हैं ? तो आप मुझसे सम्पकॅ ना करे । मोबाईल न0॰है। (9760924411) इसी नंबर पर और दोपहर-12.00 –बजे से शाम -07.00 -के मध्य ही संपर्क करें। मुजफ्फरनगर ॰उ0॰प्र0.

…… श्री भैरव दर्शन प्राप्ति मन्त्र “ॐ गुरुजी काला भैरुँ कपिला केश, कानों मुंदरा, भगवाँ वेश । मार-मार काली-पुत्र। बारह कोस की मार, भूताँ हाथ कलेजी खूँहा गेडिया। जहाँ जाऊँ भैरुँ साथ। बारह कोस की रिद्धि ल्यावो। चौबीस कोस की सिद्धि ल्यावो। सूती होय, तो जगाय ल्यावो। बैठी होय,उठाय ल्यावो। अनन्त केसर की भारी ल्यावो। गौरा-पार्वती की विछिया ल्यावो। गेल्याँ की रस्तान मोह, कुवे की पणिहारी मोह, बैठा बाणिया मोह, गृह बैठी बणियानी मोह, राजा की रजवाडन मोह, महिलो बैठी रानी मोह। डाकिनी को, शाकिनी को, भूतनी को, पलीतनी को, ओपरी को, पराई को, लाग कूँ, लपट कूँ, धूम कूँ, धक्का कूँ, पलीया कूँ, चौड़ कूँ, चौगट कूँ, काचा कूँ, कलवा कूँ, भूत कूँ, पलीत कूँ, जिन कूँ, राक्षस कूँ, बैरियों से बरी कर दे। नजराँ जड़ दे ताला, इत्ता भैरव नहीं करे, तो पिता महादेव की जटा तोड़ तागड़ी करे, माता पार्वती का चीर फाड़ लँगोट करे। चल डाकिनी, शाकिनी, चौडूँ मैला बाकरा, देस्यूँ मद की धार, भरी सभा में द्यूं आने में कहाँ लगाई बार ? खप्पर में खाय, मसान में लौटे, ऐसे काला भैरुँ की कूण पूजा मेटे। राजा मेटे राज से जाय, प्रजा मेटे दूध-पूत से जाय, जोगी मेटे ध्यान से जाय। शब्द साँचा, पिंड काचा , फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा।”

…… भागे या रूठ के गये हुये को वापिस बुलाने का मंत्र ओम नमो काली कलिका .......... को आकर्शय आकर्शय . बड़े वेग आकर्शय जिन वाटे जाई सोई वाट खिलूँ . ओम श्रीं ह्रीं आकर्षण आकर्षण स्वाहा। इस मंत्र के प्रभाव से रूठ कर विदेश या कंही बाहर अथवा भाग कर गया हुआ व्यक्ति या पत्नी घर वापिस आ जाते है। मैने कई बार इस मंत्र का प्रयोग किया है आप भी कर सकते है। विधि -- इस मंत्र का जाप 1000 की सांख्या मे करना चाहिये जाप आप खुद भी कर सकते हो या किसी अच्छे कर्म कांड करने वाले ब्राह्मण से भी करवा सकते हो। जाप के पस्चात हवन करना जरूरी है. हवन हर रोज भी किया जा सकता है। 108 आहुति देते हुये हर रोज हवन कर सकते है खाली जगह पर उसका नाम लें जिसको बुलाना हो। काली पूजन करें काली मंदिर मे हर रोज सरसों के तेल का दीपक जलाएं इसके साथ 15 का यंत्र भी प्रयोग करे तो कार्य अति शीघ्र पूर्ण होगा .

सर्व सिद्दी कारक भैरव मंत्र ॐ गुरु जी काल भैरव काली लट हाथ फारसी साथ नगरी करूँ प्रवेश नगरी को करो बकरी राजा को करो बिलाई जो कोई मेरा जोग भंग करे बाबा क्रिशन नाथ की दुहाई | इस मंत्र के बड़े चमत्कारिक प्रभाव हैं अगर आपको कही भी किसी काम के लिए जाना हो तो इस मंत्र का जाप करके जावें आपका काम जरुर बनेगा आप कहीं नोकरी के लिए जाने पहले इसका जाप करके निकलोगे तो आपका काम जरुर बनेगा ..

सर्व-कार्य-सिद्धि हेतु शाबर मन्त्र “काली घाटे काली माँ, पतित-पावनी काली माँ, जवा फूले-स्थुरी जले। सई जवा फूल में सीआ बेड़ाए। देवीर अनुर्बले। एहि होत करिवजा होइबे। ताही काली धर्मेर। बले काहार आज्ञे राठे। कालिका चण्डीर आसे।” विधिः- उक्त मन्त्र भगवती कालिका का बँगला भाषा में शाबर मन्त्र है। इस मन्त्र को तीन बार ‘जप’ कर दाएँ हाथ पर फूँक मारे और अभीष्ट कार्य को करे। कार्य में निश्चित सफलता प्राप्त होगी। गलत कार्यों में इसका प्रयोग न करें

कैसे करें नवदुर्गा की आराधना... दुर्गापूजा के आरंभ में पवित्र स्थान की मिट्टी से वेदी बनाकर उसमें जौ, गेहूं बोए। फिर उसके ऊपर कलश को विधिपूर्वक स्थापित करें। कलश के ऊपर मूर्ति की प्रतिष्ठा करें। मूर्ति यदि कच्ची मिट्टी, कागज या सिंदूर आदि से बनी हो और स्नानादि से उसमें विकृति होने की आशंका हो तो उसके ऊपर शीशा लगा दें। मूर्ति न हो तो कलश के पीछे स्वास्तिक और उसके दोनों भुजाओं में त्रिशूल बनाकर दुर्गाजी का चित्र, पुस्तक तथा शालग्राम को विराजित कर विष्णु का पूजन करें। पूजन सात्विक हो, राजस और तामस नहीं। नवरात्रि व्रत के आरंभ में स्वस्तिवाचक शांति पाठ कर संकल्प करें और तब सर्वप्रथम गणपति की पूजा कर मातृका, लोकपाल, नवग्रह एवं वरुण का विधि से पूजन करें। फिर प्रधानमूर्ति का षोड़शोपचार पूजन करना चाहिए। अपने ईष्टदेव का पूजन करें। पूजन वेद विधि या संप्रदाय निर्दिष्ट विधि से होना चाहिए। दुर्गा देवी की आराधना अनुष्ठान में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का पूजन तथा मार्कण्डेयपुराण के अनुसार श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ मुख्य अनुष्ठान कर्तव्य है। पाठ विधि - श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक का विधिपूर्वक पूजन कर इस मंत्र से प्रार्थना करनी चाहिए। 'नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः। नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम्‌।' इस मंत्र से पंचोपचार पूजन कर यथाविधि पाठ करें। देवी व्रत में कुमारी पूजन परम आवश्यक माना गया है। सामर्थ्य हो तो नवरात्रि के प्रतिदिन, अन्यथा समाप्ति के दिन नौ कुंवारी कन्याओं के चरण धोकर उन्हें देवी रूप मान कर गंध-पुष्पादि से अर्चन कर आदर के साथ यथारुचि मिष्ठान भोजन कराना चाहिए एवं वस्त्रादि से सत्कार करना चाहिए। कुमारी पूजन में दस वर्ष तक की कन्याओं का अर्चन विशेष महत्व रखता है। इसमें दो वर्ष की कन्या कुमारी, तीन वर्ष की त्रिमूर्तिनी, चार वर्ष की कल्याणी, पांच वर्ष की रोहिणी, छः वर्ष की काली, सात वर्ष की चंडिका, आठ वर्ष की शाम्भवी, नौ वर्ष की दुर्गा और दस वर्ष वाली सुभद्रा स्वरूपा होती है। दुर्गा पूजा में प्रतिदिन की पूजा का विशेष महत्व है जिसमें प्रथम शैलपुत्री से लेकर नवम्‌ सिद्धिदात्री तक नव दुर्गाओं की नव शक्तियों का और स्वरूपों का विशेष अर्चन होता है।

रोग बाधा निवारण साधना.(पाताल क्रिया) यह साधना पाताल क्रिया से सम्बंधित है,इस साधना कि कई अनुभूतिया है,और साधना भि एक दिन कि है.कई येसे रोग या बीमारिया है जिनका निवारण नहीं हो पाता ,और दवाईया भि काम नहीं करती ,येसे समय मे यह प्रयोग अति आवश्यक है.यह प्रयोग आज तक अपनी कसौटी पर हमेशा से ही खरा उतरा है . प्रयोग सामग्री :- एक मट्टी कि कुल्हड़ (मटका) छोटासा,सरसों का तेल ,काले तिल,सिंदूर,काला कपडा . प्रयोग विधि :- शनिवार के दिन श्याम को ४ या ४:३० बजे स्नान करके साधना मे प्रयुक्त हो जाये,सामने गुरुचित्र हो ,गुरुपूजन संपन्न कीजिये और गुरुमंत्र कि कम से कम ५ माला अनिवार्य है.गुरूजी के समक्ष अपनी रोग बाधा कि मुक्ति कि लिए प्रार्थना कीजिये.मट्टी कि कुल्हड़ मे सरसों कि तेल को भर दीजिये,उसी तेल मे ८ काले तिल डाल दीजिये.और काले कपडे से कुल्हड़ कि मुह को बंद कर दीजिये.अब ३६ अक्षर वाली बगलामुखी मंत्र कि १ माला जाप कीजिये.और कुल्हड़ के उप्पर थोडा सा सिंदूर डाल दीजिये.और माँ बगलामुखी से भि रोग बाधा मुक्ति कि प्रार्थना कीजिये.और एक माला बगलामुखी रोग बाधा मुक्ति मंत्र कीजिये. मंत्र :- || ओम ह्लीम् श्रीं ह्लीम् रोग बाधा नाशय नाशय फट || मंत्र जाप समाप्ति के बाद कुल्हड़ को जमींन गाड दीजिये,गड्डा प्रयोग से पहिले ही खोद के रख दीजिये.और ये प्रयोग किसी और के लिए कर रहे है तो उस बीमार व्यक्ति से कुल्हड़ को स्पर्श करवाते हुये कुल्हड़ को जमींन मे गाड दीजिये.और प्रार्थना भि बीमार व्यक्ति के लिए ही करनी है.चाहे व्यक्ति कोमा मे भि क्यों न हो ७ घंटे के अंदर ही उसे राहत मिलनी शुरू हो जाती है.कुछ परिस्थितियों मे एक शनिवार मे अनुभूतिया कम हो तो यह प्रयोग आगे भि किसी शनिवार कर सकते है

ज्योतिष और शाबर साधना-काल में जन्म-लग्न-चक्र के अनुसार ग्रहों की अनुकूलता जानना आवश्यक है। साधना भी एक प्रकार का कर्म है, अतः ‘दशम भाव’ उसकी सफलता या असफलता का सूचक है। साधना की प्रकृत्ति तथा सफलता हेतु पँचम, नवम तथा दशम भाव का अवलोकन उचित रहेगा। १॰ नवम स्थान में शनि हो तो साधक शाबर मन्त्र में अरुचि रखता है या वह शाबर-साधना सतत नहीं करेगा। यदि वह ऐसा करेगा तो अन्त में उसको वैराग्य हो जाएगा। २॰ नवम स्थान में बुध होने से जातक को शाबर-मन्त्र की सिद्धि में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। ३॰ पँचम स्थान पर यदि मंगल की दृष्टि हो, तो जातक कुल-देवता, देवी का उपासक होता है। ४॰ पँचम स्थान पर यदि गुरु की दृष्टि हो, तो साधक को शाबर-साधना में विशेष सफलता मिलती है। ५॰ पँचम स्थान पर सूर्य की दृष्टि हो, तो साधक सूर्य या विष्णु की उपासना में सफल होता है। ६॰ यदि राहु की दृष्टि होती है, तो वह “भैरव” उपासक होता है। इस प्रकार के साधक को यदि पथ-प्रदर्शन नहीं मिलता, तो वह निम्न स्तर के देवी-देवताओं की उपासना करने लगता है।

कार्य-सिद्धि हेतु गणेश शाबर मन्त्र “ॐ गनपत वीर, भूखे मसान, जो फल माँगूँ, सो फल आन। गनपत देखे, गनपत के छत्र से बादशाह डरे। राजा के मुख से प्रजा डरे, हाथा चढ़े सिन्दूर। औलिया गौरी का पूत गनेश, गुग्गुल की धरुँ ढेरी, रिद्धि-सिद्धि गनपत धनेरी। जय गिरनार-पति। ॐ नमो स्वाहा।” विधि- सामग्रीः- धूप या गुग्गुल, दीपक, घी, सिन्दूर, बेसन का लड्डू। दिनः- बुधवार, गुरुवार या शनिवार। निर्दिष्ट वारों में यदि ग्रहण, पर्व, पुष्य नक्षत्र, सर्वार्थ-सिद्धि योग हो तो उत्तम। समयः- रात्रि १० बजे। जप संख्या-१२५। अवधिः- ४० दिन। किसी एकान्त स्थान में या देवालय में, जहाँ लोगों का आवागमन कम हो, भगवान् गणेश की षोडशोपचार से पूजा करे। घी का दीपक जलाकर, अपने सामने, एक फुट की ऊँचाई पर रखे। सिन्दूर और लड्डू के प्रसाद का भोग लगाए और प्रतिदिन १२५ बार उक्त मन्त्र का जप करें। प्रतिदिन के प्रसाद को बच्चों में बाँट दे। चालीसवें दिन सवा सेर लड्डू के प्रसाद का भोग लगाए और मन्त्र का जप समाप्त होने पर तीन बालकों को भोजन कराकर उन्हें कुछ द्रव्य-दक्षिणा में दे। सिन्दूर को एक डिब्बी में सुरक्षित रखे। एक सप्ताह तक इस सिन्दूर को न छूए। उसके बाद जब कभी कोई कार्य या समस्या आ पड़े, तो सिन्दूर को सात बार उक्त मन्त्र से अभिमन्त्रित कर अपने माथे पर टीका लगाए। कार्य सफल होगा।…………………………

नजर उतारने का मन्त्र “ओम नमो आदेश गुरु का। गिरह-बाज नटनी का जाया, चलती बेर कबूतर खाया, पीवे दारु, खाय जो मांस, रोग-दोष को लावे फाँस। कहाँ-कहाँ से लावेगा? गुदगुद में सुद्रावेगा, बोटी-बोटी में से लावेगा, चाम-चाम में से लावेगा, नौ नाड़ी बहत्तर कोठा में से लावेगा, मार-मार बन्दी कर लावेगा। न लावेगा, तो अपनी माता की सेज पर पग रखेगा। मेरी भक्ति, गुरु की शक्ति, फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा।” विधिः- छोटे बच्चों और सुन्दर स्त्रियों को नजर लग जाती है। उक्त मन्त्र पढ़कर मोर-पंख से झाड़ दें, तो नजर दोष दूर हो जाता है।नजर-टोना झारने का मन्त्र “कालि देवि, कालि देवि, सेहो देवि, कहाँ गेलि, विजूवन खण्ड गेलि, कि करे गेलि, कोइल काठ काटे गेलि। कोइल काठ काटि कि करति। फलाना का धैल धराएल, कैल कराएल, भेजल भेजायल। डिठ मुठ गुण-वान काटि कटी पानि मस्त करै। दोहाई गौरा पार्वति क, ईश्वर महादेव क, कामरु कमख्या माई इति सीता-राम-लक्ष्मण-नरसिंघनाथ क।” विधिः- किसी को नजर, टोना आदि संकट होने पर उक्त मन्त्र को पढ़कर कुश से झारे। नोट :- नजर उतारते समय, सभी प्रयोगों में ऐसा बोलना आवश्यक है कि “इसको बच्चे की, बूढ़े की, स्त्री की, पुरूष की, पशु-पक्षी की, हिन्दू या मुसलमान की, घर वाले की या बाहर वाले की, जिसकी नजर लगी हो, वह इस बत्ती, नमक, राई, कोयले आदि सामान में आ जाए तथा नजर का सताया बच्चा-बूढ़ा ठीक हो जाए। सामग्री आग या बत्ती जला दूंगी या जला दूंगा।´´“काली काली महा-काली, इन्द्र की बेटी, ब्रह्मा की साली। पीती भर भर रक्त प्याली, उड़ बैठी पीपल की डाली। दोनों हाथ बजाए ताली। जहाँ जाए वज्र की ताली, वहाँ ना आए दुश्मन हाली। दुहाई कामरो कामाख्या नैना योगिनी की, ईश्वर महादेव गोरा पार्वती की, दुहाई वीर मसान की।।” विधिः- प्रतिदिन १०८ बार ४० दिन तक जप कर सिद्ध करे। प्रयोग के समय पढ़कर तीन बार जोर से ताली बजाए। जहाँ तक ताली की आवाज जायेगी, दुश्मन का कोई वार या भूत, प्रेत असर नहीं करेगा

नजर-टोना झारने का मन्त्र “आकाश बाँधो, पाताल बाँधो, बाँधो आपन काया। तीन डेग की पृथ्वी बाँधो, गुरु जी की दाया। जितना गुनिया गुन भेजे, उतना गुनिया गुन बांधे। टोना टोनमत जादू। दोहाई कौरु कमच्छा के, नोनाऊ चमाइन की। दोहाई ईश्वर गौरा-पार्वती की, ॐ ह्रीं फट् स्वाहा।” विधि- नमक अभिमन्त्रित कर खिला दे। पशुओं के लिए विशेष फल-दायक है।नजर उतारने का मन्त्र “ओम नमो आदेश गुरु का। गिरह-बाज नटनी का जाया, चलती बेर कबूतर खाया, पीवे दारु, खाय जो मांस, रोग-दोष को लावे फाँस। कहाँ-कहाँ से लावेगा? गुदगुद में सुद्रावेगा, बोटी-बोटी में से लावेगा, चाम-चाम में से लावेगा, नौ नाड़ी बहत्तर कोठा में से लावेगा, मार-मार बन्दी कर लावेगा। न लावेगा, तो अपनी माता की सेज पर पग रखेगा। मेरी भक्ति, गुरु की शक्ति, फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा।” विधिः- छोटे बच्चों और सुन्दर स्त्रियों को नजर लग जाती है। उक्त मन्त्र पढ़कर मोर-पंख से झाड़ दें, तो नजर दोष दूर हो जाता है।

दुर्गा सप्तशती पाठ विधि

  दुर्गा सप्तशती दुर्गा सप्तशती पाठ विधि पूजनकर्ता स्नान करके, आसन शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके, शुद्ध आसन पर बैठ जाएँ। माथे पर अपनी पसंद क...