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Tuesday, 16 April 2019
भारतीय समाज में नजर लगना और लगाना एक बहु प्रचलित शब्द है। लगभग प्रत्येक परिवार में नजर दोष निवारण के उपाय किए जाते हैं। घरेलू महिलाओं का मानना है कि बच्चों को नजर अधिक लगती है। बच्चा यदि दूध पीना बंद कर दे तो भी यही कहा जाता है कि भला चंगा था, अचानक नजर लग गई। लेकिन क्या नजर सिर्फ बच्चों को ही लगती है? नहीं। यदि ऐसा ही हो तो फिर लोग ऐसा क्यों कहते हैं कि मेरे काम धंधे को नजर लग गई। नया कपड़ा, जेवर आदि कट-फट जाएं, तो भी यही कहा जाता है कि किसी की नजर ल्रग गई। लोग अक्सर पूछते हैं कि नजर लगती कैसे है? इसके लक्षण क्या हैं? नजर लगने पर उससे मुक्ति के क्या उपाय किए जाएं? लोगों की इसी जिज्ञासा को ध्यान में रखकर यहां नजर के लक्षण, कारण और निवारण के उपाय का विवरण प्रस्तुत है। नजर के लक्षण नजर से प्रभावित लोगों का कुछ भी करने को मन नहीं करता। वे बेचैन और बुझे-बुझे-से रहते है। बीमार नहीं होने के बावजूद शिथिल रहते हैं। उनकी मानसिक स्थिति अजीब-सी रहती है, उनके मन में अजीब-अजीब से विचार आते रहते हैं। वे खाने के प्रति अनिच्छा जाहिर करते हैं। बच्चे प्रतिक्रिया व्यक्त न कर पाने के कारण रोने रोने लगते हैं। कामकाजी लोग काम करना भूल जाते हैं और अनर्गल बातें सोचने लगते हैं। इस स्थिति से बचाव के लिए वे चिकित्सा भीं करवाना नहीं चाहते। विद्यार्थियों का मन पढ़ाई से उचट जाता है। नौकरीपेशा लोग सुनते कुछ हैं, करते कुछ और हैं। इस प्रकार नजर दोष के अनेकानेक लक्षण हो सकते हैं। नजर किसे लगती है? नजर सभी प्राणियों, मानव निर्मित सभी चीजों आदि को लग सकती है। नजर देवी देवताओं को भी लगती है। शास्त्रों में उल्लेख है कि भगवान शिव और पार्वती के विवाह के समय सुनयना ने शिव की नजर उतारी थी। कब लगती है नजर? कोई व्यक्ति जब अपने सामने के किसी व्यक्ति अथवा उसकी किसी वस्तु को ईर्ष्यावश देखे और फिर देखता ही रह जाए, तो उसकी नजर उस व्यक्ति अथवा उसकी वस्तु को तुरत लग जाती है। ऐसी नजर उतारने हेतु विशेष प्रयत्न करना पड़ता है अन्यथा नुकसान की संभावना प्रबल हो जाती है। नजर किस की लग सकती है? किसी व्यक्ति विशेष को अपनी ही नजर लग सकती है। ऐसा तब होता है जब वह स्वयं ही अपने बारे में अच्छे या बुरे विचारव्यक्त करता है अथवा बार-बार दर्पण देखता है। उससे ईर्ष्या करने वालों, उससे प्रेम करने वालों और उसके साथ काम करने वालों की नजर भी उसे लग सकती है। यहां तक की किसी अनजान व्यक्ति, किसी जानवर या किसी पक्षी की नजर भी उसे लग सकती है। नजर की पहचान क्या है? नजर से प्रभावित व्यक्ति की निचली पलक, जिस पर हल्के रोएंदार बाल होते हैं, फूल सी जाती है। वास्तव में यही नजर की सही पहचान है। किंतु, इसकी सही पहचान कोई पारखी ही कर सकता है। नजर दोष का वैज्ञानिक आधार क्या है? कभी-कभी हमारे रोमकूप बंद हो जाते हैं। ऐसे में हमारा शरीर किसी भी बाहरी क्रिया को ग्रहण करने में स्वयं को असमर्थ पाता है। उसे हवा, सर्दी और गर्मी की अनुभूति नहीं हो पाती। रोमकूपों के बंद होने के फलस्वरूप व्यक्ति के शरीर का भतरी तापमान भीतर में ही समाहित रहता है और बाहरी वातावरण का उस पर प्रभाव नहीं पड़ता, जिससे उसके शरीर में पांच तत्वों का संतुलन बिगड़ने लगता है और शरीर में आइरन की मात्रा बढ़ जाती है। यही आइरन रोमकूपों से न निकलने के कारण आंखों से निकलने की चेष्टा करता है, जिसके फलस्वरूप आंखें की निचली पलक फूल या सूज जाती है। बंद रोमकूपों को खोलने के लिए अनेकानेक विधियों से उतारा किया जाता है। संसार की प्रत्येक वस्तु में आकर्षण शक्ति होती है अर्थात प्रत्येक वस्तु वातावरण से स्वयं कुछ न कुछ ग्रहण करती है। आमतौर पर नजर उतारने के लिए उन्हीं वस्तुओं का उपयोग किया जाता है, जिनकी ग्रहण करने की क्षमता तीव्र होती है। उदाहरण के लिए, किसी पात्र में सरसों का तेल भरकर उसे खुला छोड़ दें, तो पाएंगें कि वातावरण के साफ व स्वच्छ होने के बावजूद उस तेल पर अनेकानेक छोटे-छोटे कण चिपक जाते हैं। ये कण तेल की आकर्षण शक्ति से प्रभावित होकर चिपकते हैं। तेल की तरह ही नीबू, लाल मिर्च, कपूर, फिटकरी, मोर के पंख, बूंदी के लड्डू तथा ऐसी अन्य अनेकानेक वस्तुओं की अपनी-अपनी आकर्षण शक्ति होती है, जिनका प्रयोग नजर उतारने में किया जाता है। इस तरह उक्त तथ्य से स्पष्ट हो जाता है कि नजर का अपना वैज्ञानिक आधार है। ऊपरी हवाओं से बचाव के कुछ अनुभूत प्रयोग लहसुन के तेल में हींग मिलाकर दो बूंद नाक में डालने, नीम के पत्ते, हींग, सरसों, बच व सांप की केंचुली की धूनी देने तथा रविवार को काले धतूरे की जड़ हाथ में बांधने से ऊपरी बाधा दूर होती है। इसके अतिरिक्त गंगाजल में तुलसी के पत्ते व काली मिर्च पीसकर घर में छिड़कने, गायत्री मंत्र के (सुबह की अपेक्षा संध्या समय किया गया गायत्री मंत्र का जप अधिक लाभकारी होता है) जप, हनुमान जी की नियमित रूप से उपासना, राम रक्षा कवच या रामवचन कवच के पाठ से नजर दोष से शीघ्र मुक्ति मिलती है। साथ ही, पेरीडॉट, संग सुलेमानी, क्राइसो लाइट, कार्नेलियन जेट, साइट्रीन, क्राइसो प्रेज जैसे रत्न धारण करने से भी लाभ मिलता है। उतारा : उतारा शब्द का तात्पर्य व्यक्ति विशेष पर हावी बुरी हवा अथवा बुरी आत्मा, नजर आदि के प्रभाव को उतारने से है। उतारे आमतौर पर मिठाइयों द्वारा किए जाते हैं, क्योंकि मिठाइयों की ओर ये श्ीाघ्र आकर्षित होते हैं। उतारा करने की विधि : उतारे की वस्तु सीधे हाथ में लेकर नजर दोष से पीड़ित व्यक्ति के सिर से पैर की ओर सात अथवा ग्यारह बार घुमाई जाती है। इससे वह बुरी आत्मा उस वस्तु में आ जाती है। उतारा की क्रिया करने के बाद वह वस्तु किसी चौराहे, निर्जन स्थान या पीपल के नीचे रख दी जाती है और व्यक्ति ठीक हो जाता है। किस दिन किस मिठाई से उतारा करना चाहिए, इसका विवरण यहां प्रस्तुत है। रविवार को तबक अथवा सूखे फलयुक्त बर्फी से उतारा करना चाहिए। सोमवार को बर्फी से उतारा करके बर्फी गाय को खिला दें। मंगलवार को मोती चूर के लड्डू से उतार कर लड्डू कुत्ते को खिला दें। बुधवार को इमरती से उतारा करें व उसे कुत्ते को खिला दें। गुरुवार को सायं काल एक दोने में अथवा कागज पर पांच मिठाइयां रखकर उतारा करें। उतारे के बाद उसमें छोटी इलायची रखें व धूपबत्ती जलाकर किसी पीपल के वृक्ष के नीचे पश्चिम दिशा में रखकर घर वापस जाएं। ध्यान रहे, वापस जाते समय पीछे मुड़कर न देखें और घर आकर हाथ और पैर धोकर व कुल्ला करके ही अन्य कार्य करें।शुक्रवार को मोती चूर के लड्डू से उतारा कर लड्डू कुत्ते को खिला दें या किसी चौराहे पर रख दें। शनिवार को उतारा करना हो तो इमरती या बूंदी का लड्डू प्रयोग में लाएं व उतारे के बाद उसे कुत्ते को खिला दें। इसके अतिरिक्त रविवार को सहदेई की जड़, तुलसी के आठ पत्ते और आठ काली मिर्च किसी कपड़े में बांधकर काले धागे से गले में बांधने से ऊपरी हवाएं सताना बंद कर देती हैं। नजर उतारने अथवा उतारा आदि करने के लिए कपूर, बूंदी का लड्डू, इमरती, बर्फी, कड़वे तेल की रूई की बाती, जायफल, उबले चावल, बूरा, राई, नमक, काली सरसों, पीली सरसों मेहंदी, काले तिल, सिंदूर, रोली, हनुमान जी को चढ़ाए जाने वाले सिंदूर, नींबू, उबले अंडे, गुग्गुल, शराब, दही, फल, फूल, मिठाइयों, लाल मिर्च, झाडू, मोर छाल, लौंग, नीम के पत्तों की धूनी आदि का प्रयोग किया जाता है। स्थायी व दीर्घकालीन लाभ के लिए संध्या के समय गायत्री मंत्र का जप और जप के दशांश का हवन करना चाहिए। हनुमान जी की नियमित रूप से उपासना, भगवान शिव की उपासना व उनके मूल मंत्र का जप, महामृत्युंजय मंत्र का जप, मां दुर्गा और मां काली की उपासना करें। स्नान के पश्चात् तांबे के लोटे से सूर्य को जल का अर्य दें। पूर्णमासी को सत्यनारायण की कथा स्वयं करें अथवा किसी कर्मकांडी ब्राह्मण से सुनें। संध्या के समय घर में दीपक जलाएं, प्रतिदिन गंगाजल छिड़कें और नियमित रूप से गुग्गुल की धूनी दें। प्रतिदिन शुद्ध आसन पर बैठकर सुंदर कांड का पाठ करें। किसी के द्वारा दिया गया सेव व केला न खाएं। रात्रि बारह से चार बजे के बीच कभी स्नान न करें। बीमारी से मुक्ति के लिए नीबू से उतारा करके उसमें एक सुई आर-पार चुभो कर पूजा स्थल पर रख दें और सूखने पर फेंक दें। यदि रोग फिर भी दूर न हो, तो रोगी की चारपाई से एक बाण निकालकर रोगी के सिर से पैर तक छुआते हुए उसे सरसों के तेल में अच्छी तरह भिगोकर बराबर कर लें व लटकाकर जला दें और फिर राख पानी में बहा दें। उतारा आदि करने के पश्चात भलीभांति कुल्ला अवश्य करें। इस तरह, किसी व्यक्ति पर पड़ने वाली किसी अन्य व्यक्ति की नजर उसके जीवन को तबाह कर सकती है। नजर दोष का उक्त लक्षण दिखते ही ऊपर वर्णित सरल व सहज उपायों का प्रयोग कर उसे दोषमुक्त किया जा सकता है।
हम जहां रहते हैं वहां कई ऐसी शक्तियां होती हैं, जो हमें दिखाई नहीं देतीं किंतु बहुधा हम पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं जिससे हमारा जीवन अस्त-व्यस्त हो उठता है और हम दिशाहीन हो जाते हैं। इन अदृश्य शक्तियों को ही आम जन ऊपरी बाधाओं की संज्ञा देते हैं। भारतीय ज्योतिष में ऐसे कतिपय योगों का उल्लेख है जिनके घटित होने की स्थिति में ये शक्तियां शक्रिय हो उठती हैं और उन योगों के जातकों के जीवन पर अपना प्रतिकूल प्रभाव डाल देती हैं। यहां ऊपरी बाधाओं के कुछ ऐसे ही प्रमुख योगों तथा उनसे बचाव के उपायों का उल्लेख प्रस्तुत है। • लग्न में राहु तथा चंद्र और त्रिकोण में मंगल व शनि हों, तो जातक को प्रेत प्रदत्त पीड़ा होती है। • चंद्र पाप ग्रह से दृष्ट हो, शनि सप्तम में हो तथा कोई शुभ ग्रह चर राशि में हो, तो भूत से पीड़ा होती है। • शनि तथा राहु लग्न में हो, तो जातक को भूत सताता है। • लग्नेश या चंद्र से युक्त राहु लग्न में हो, तो प्रेत योग होता है। • यदि दशम भाव का स्वामी आठवें या एकादश भाव में हो और संबंधित भाव के स्वामी से दृष्ट हो, तो उस स्थिति में भी प्रेत योग होता है। • उक्त योगों के जातकों के आचरण और व्यवहार में बदलाव आने लगता है। ऐसे में उन योगों के दुष्प्रभावों से मुक्ति हेतु निम्नलिखित उपाय करने चाहिए। • संकट निवारण हेतु पान, पुष्प, फल, हल्दी, पायस एवं इलाइची के हवन से दुर्गासप्तशती के बारहवें अध्याय के तेरहवें श्लोक सर्वाबाधा........न संशयः मंत्र से संपुटित नवचंडी प्रयोग कराएं। • दुर्गा सप्तशती के चौथे अध्याय के चौबीसवें श्लोक का पाठ करते हुए पलाश की समिधा से घृत और सीलाभिष की आहुति दें, कष्टों से रक्षा होगी। • शक्ति तथा सफलता की प्राप्ति हेतुग्यारहवें अध्याय के ग्यारहवें श्लोक सृष्टि स्थिति विनाशानां......का उच्चारण करते हुए घी की आहुतियां दें। • शत्रु शमन हेतु सरसों, काली मिर्च, दालचीनी तथा जायफल की हवि देकर अध्याय के उनचालीसवें श्लोक का संपुटित प्रयोग तथा हवन कराएं। कुछ अन्य उपाय • महामृत्युंजय मंत्र का विधिवत् अनुष्ठान कराएं। जप के पश्चात् हवन अवश्य कराएं। • महाकाली या भद्रकाली माता के मंत्रानुष्ठान कराएं और कार्यस्थल या घर पर हवन कराएं। • गुग्गुल का धूप देते हुए हनुमान चालीस तथा बजरंग बाण का पाठ करें। • उग्र देवी या देवता के मंदिर में नियमित श्रमदान करें, सेवाएं दें तथा साफ सफाई करें। • यदि घर के छोटे बच्चे पीड़ित हों, तो मोर पंख को पूरा जलाकर उसकी राख बना लें और उस राख से बच्चे को नियमित रूप से तिलक लगाएं तथा थोड़ी-सी राख चटा दें।
घर की महिलाएं यदि किसी समस्या या बाधा से पीड़ित हों, तो निम्नलिखित प्रयोग करें। सवा पाव मेहंदी के तीन पैकेट (लगभग सौ ग्राम प्रति पैकेट) बनाएं और तीनों पैकेट लेकर काली मंदिर या शस्त्र धारण किए हुए किसी देवी की मूर्ति वाले मंदिर में जाएं। वहां दक्षिणा, पत्र, पुष्प, फल, मिठाई, सिंदूर तथा वस्त्र के साथ मेहंदी के उक्त तीनों पैकेट चढ़ा दें। फिर भगवती से कष्ट निवारण की प्रार्थना करें और एक फल तथा मेहंदी के दो पैकेट वापस लेकर कुछ धन के साथ किसी भिखारिन या अपने घर के आसपास सफाई करने वाली को दें। फिर उससे मेहंदी का एक पैकेट वापस ले लें और उसे घोलकर पीड़ित महिला के हाथों एवं पैरों में लगा दें। पीड़िता की पीड़ा मेहंदी के रंग उतरने के साथ-साथ धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी। व्यापार स्थल पर किसी भी प्रकार की समस्या हो, तो वहां श्वेतार्क गणपति तथा एकाक्षी श्रीफल की स्थापना करें। फिर नियमित रूप से धूप, दीप आदि से पूजा करें तथा सप्ताह में एक बार मिठाई का भोग लगाकर प्रसाद यथासंभव अधिक से अधिक लोगों को बांटें। भोग नित्य प्रति भी लगा सकते हैं। कामण प्रयोगों से होने वाले दुष्प्रभावों से बचने के लिए दक्षिणावर्ती शंखों के जोड़े की स्थापना करें तथा इनमें जल भर कर सर्वत्र छिड़कते रहें।
क्या हैं बंधन और उनके उपाय? बंधन अर्थात् बांधना। जिस प्रकार रस्सी से बांध देने से व्यक्ति असहाय हो कर कुछ कर नहीं पाता, उसी प्रकार किसी व्यक्ति, घर, परिवार, व्यापार आदि को तंत्र-मंत्र आदि द्वारा अदृश्य रूप से बांध दिया जाए तो उसकी प्रगति रुक जाती है और घर परिवार की सुख शांति बाधित हो जाती है। ये बंधन क्या हैं और इनसे मुक्ति कैसे पाई जा सकती है जानने केलिए पढ़िए यह आलेख... मानव अति संवेदनशील प्राणी है। प्रकृति और भगवान हर कदम पर हमारी मदद करते हैं। आवश्यकता हमें सजग रहने की है। हम अपनी दिनचर्या में अपने आस-पास होने वाली घटनाओं पर नजर रखें और मनन करें। यहां बंधन के कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं। किसी के घर में ८-१० माह का छोटा बच्चा है। वह अपनी सहज बाल हरकतों से सारे परिवार का मन मोह रहा है। वह खुश है, किलकारियां मार रहा है। अचानक वह सुस्त या निढाल हो जाता है। उसकी हंसी बंद हो जाती है। वह बिना कारण के रोना शुरू कर देता है, दूध पीना छोड़ देता है। बस रोता और चिड़चिड़ाता ही रहता है। हमारे मन में अनायास ही प्रश्न आएगा कि ऐसा क्यों हुआ? किसी व्यवसायी की फैक्ट्री या व्यापार बहुत अच्छा चल रहा है। लोग उसके व्यापार की तरक्की का उदाहरण देते हैं। अचानक उसके व्यापार में नित नई परेशानियां आने लगती हैं। मशीन और मजदूर की समस्या उत्पन्न हो जाती है। जो फैक्ट्री कल तक फायदे में थी, अचानक घाटे की स्थिति में आ जाती है। व्यवसायी की फैक्ट्री उसे कमा कर देने के स्थान पर उसे खाने लग गई। हम सोचेंगे ही कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? किसी परिवार का सबसे जिम्मेदार और समझदार व्यक्ति, जो उस परिवार का तारणहार है, समस्त परिवार की धुरी उस व्यक्ति के आस-पास ही घूम रही है, अचानक बिना किसी कारण के उखड़ जाता है। बिना कारण के घर में अनावश्यक कलह करना शुरू कर देता है। कल तक की उसकी सारी समझदारी और जिम्मेदारी पता नहीं कहां चली जाती है। वह परिवार की चिंता बन जाता है। आखिर ऐसा क्यों हो गया?
कार्यालय बंधन के लक्षण • कार्यालय बराबर नहीं जाना। • साथियों से अनावश्यक तकरार। • कार्यालय में मन नहीं लगना। • कार्यालय और घर के रास्ते में शरीर में भारीपन व दर्द की शिकायत होना। • कार्यालय में बिना गलती के भी अपमानित होना। घर-परिवार में बाधा के लक्षण • परिवार में अशांति और कलह। • बनते काम का ऐन वक्त पर बिगड़ना। • आर्थिक परेशानियां। • योग्य और होनहार बच्चों के रिश्तों में अनावश्यक अड़चन। • विषय विशेष पर परिवार के सदस्यों का एकमत न होकर अन्य मुद्दों पर कुतर्क करके आपस में कलह कर विषय से भटक जाना। • परिवार का कोई न कोई सदस्य शारीरिक दर्द, अवसाद, चिड़चिड़ेपन एवं निराशा का शिकार रहता हो। • घर के मुख्य द्वार पर अनावश्यक गंदगी रहना। • इष्ट की अगरबत्तियां बीच में ही बुझ जाना। • भरपूर घी, तेल, बत्ती रहने के बाद भी इष्ट का दीपक बुझना या खंडित होना। • पूजा या खाने के समय घर में कलह की स्थिति बनना। व्यक्ति विशेष का बंधन • हर कार्य में विफलता। • हर कदम पर अपमान। • दिल और दिमाग का काम नहीं करना। • घर में रहे तो बाहर की और बाहर रहे तो घर की सोचना। • शरीर में दर्द होना और दर्द खत्म होने के बाद गला सूखना। • हमें मानना होगा कि भगवान दयालु है। हम सोते हैं पर हमारा भगवान जागता रहता है। वह हमारी रक्षा करता है। जाग्रत अवस्था में तो वह उपर्युक्त लक्षणों द्वारा हमें बाधाओं आदि का ज्ञान करवाता ही है, निद्रावस्था में भी स्वप्न के माध्यम से संकेत प्रदान कर हमारी मदद करता है। आवश्यकता इस बात की है कि हम होश व मानसिक संतुलन बनाए रखें। हम किसी भी प्रतिकूल स्थिति में अपने विवेक व अपने इष्ट की आस्था को न खोएं, क्योंकि विवेक से बड़ा कोई साथी और भगवान से बड़ा कोई मददगार नहीं है। इन बाधाओं के निवारण हेतु हम निम्नांकित उपाय कर सकते हैं। उपाय : पूजा एवं भोजन के समय कलह की स्थिति बनने पर घर के पूजा स्थल की नियमित सफाई करें और मंदिर में नियमित दीप जलाकर पूजा करें। एक मुट्ठी नमक पूजा स्थल से वार कर बाहर फेंकें, पूजा नियमित होनी चाहिए। o इष्ट पर आस्था और विश्वास रखें। o स्वयं की साधना पर ज्यादा ध्यान दें। o गलतियों के लिये इष्ट से क्षमा मांगें। o इष्ट को जल अर्पित करके घर में उसका नित्य छिड़काव करें। o जिस पानी से घर में पोछा लगता है, उसमें थोड़ा नमक डालें। o कार्य क्षेत्र पर नित्य शाम को नमक छिड़क कर प्रातः झाडू से साफ करें। o घर और कार्यक्षेत्र के मुख्य द्वार को साफ रखें। o हिंदू धर्मावलंबी हैं, तो गुग्गुल की और मुस्लिम धर्मावलम्बी हैं, तो लोबान की धूप दें। व्यक्तिगत बाधा निवारण के लिए o व्यक्तिगत बाधा के लिए एक मुट्ठी पिसा हुआ नमक लेकर शाम को अपने सिर के ऊपर से तीन बार उतार लें और उसे दरवाजे के बाहर फेंकें। ऐसा तीन दिन लगातार करें। यदि आराम न मिले तो नमक को सिर के ऊपर वार कर शौचालय में डालकर फ्लश चला दें। निश्चित रूप से लाभ मिलेगा। o हमारी या हमारे परिवार के किसी भी सदस्य की ग्रह स्थिति थोड़ी सी भी अनुकूल होगी तो हमें निश्चय ही इन उपायों से भरपूर लाभ मिलेगा। o अपने पूर्वजों की नियमित पूजा करें। प्रति माह अमावस्या को प्रातःकाल ५ गायों को फल खिलाएं। o गृह बाधा की शांति के लिए पश्चिमाभिमुख होकर क्क नमः शिवाय मंत्र का २१ बार या २१ माला श्रद्धापूर्वक जप करें। o यदि बीमारी का पता नहीं चल पा रहा हो और व्यक्ति स्वस्थ भी नहीं हो पा रहा हो, तो सात प्रकार के अनाज एक-एक मुट्ठी लेकर पानी में उबाल कर छान लें। छने व उबले अनाज (बाकले) में एक तोला सिंदूर की पुड़िया और ५० ग्राम तिल का तेल डाल कर कीकर (देसी बबूल) की जड़ में डालें या किसी भी रविवार को दोपहर १२ बजे भैरव स्थल पर चढ़ा दें। o बदन दर्द हो, तो मंगलवार को हनुमान जी के चरणों में सिक्का चढ़ाकर उसमें लगी सिंदूर का तिलक करें। o पानी पीते समय यदि गिलास में पानी बच जाए, तो उसे अनादर के साथ फेंकें नहीं, गिलास में ही रहने दें। फेंकने से मानसिक अशांति होगी क्योंकि पानी चंद्रमा का कारक है।
कोई परिवार संपन्न है। बच्चे ऐश्वर्यवान, विद्यावान व सर्वगुण संपन्न हैं। उनकीसज्जनता का उदाहरण सारा समाज देता है। बच्चे शादी के योग्य हो गए हैं, फिर भी उनकी शादी में अनावश्यक रुकावटें आने लगती हैं। ऐसा क्यों होता है? आपके पड़ोस के एक परिवार में पति-पत्नी में अथाह प्रेम है। दोनों एक दूसरे के लिए पूर्ण समर्पित हैं। आपस में एक दूसरे का सम्मान करते हैं। अचानक उनमें कटुता व तनाव उत्पन्न हो जाता है। जो पति-पत्नी कल तक एक दूसरे के लिए पूर्ण सम्मान रखते थे, आज उनमें झगड़ा हो गया है। स्थिति तलाक की आ गई है। आखिर ऐसा क्यों हुआ? हमारे घर के पास हरा भरा फल-फूलों से लदा पेड़ है। पक्षी उसमें चहचहा रहे हैं। इस वृक्ष से हमें अच्छी छाया और हवा मिल रही है। अचानक वह पेड़ बिना किसी कारण के जड़ से ही सूख जाता है। निश्चय ही हमें भय की अनुभूति होगी और मन में यह प्रश्न उठेगा कि ऐसा क्यों हुआ? हमें अक्सर बहुत से ऐसे प्रसंग मिल जाएंगे जो हमारी और हमारे आसपास की व्यवस्था को झकझोर रहे होंगे, जिनमें क्यों'' की स्थिति उत्पन्न होगी। विज्ञान ने एक नियम प्रतिपादित किया है कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। हमें निश्चय ही मनन करना होगा कि उपर्युक्त घटनाएं जो हमारे आसपास घटित हो रही हैं, वे किन क्रियाओं की प्रतिक्रियाएं हैं? हमें यह भी मानना होगा कि विज्ञान की एक निश्चित सीमा है। अगर हम परावैज्ञानिक आधार पर इन घटनाओं को विस्तृत रूप से देखें तो हम निश्चय ही यह सोचने पर विवश होंगे कि कहीं यह बंधन या स्तंभन की परिणति तो नहीं है ! यह आवश्यक नहीं है कि यह किसी तांत्रिक अभिचार के कारण हो रहा हो। यह स्थिति हमारी कमजोर ग्रह स्थितियों व गण के कारण भी उत्पन्न हो जाया करती है। हम भिन्न श्रेणियों के अंतर्गत इसका विश्लेषण कर सकते हैं। इनके अलग-अलग लक्षण हैं। इन लक्षणों और उनके निवारण का संक्षेप में वर्णन यहां प्रस्तुत है। कार्यक्षेत्र का बंधन, स्तंभन या रूकावटें दुकान/फैक्ट्री/कार्यस्थल की बाधाओं के लक्षण • किसी दुकान या फैक्ट्री के मालिक का दुकान या फैक्ट्री में मन नहीं लगना। • ग्राहकों की संख्या में कमी आना। • आए हुए ग्राहकों से मालिक का अनावश्यक तर्क-वितर्क-कुतर्क और कलह करना। • श्रमिकों व मशीनरी से संबंधित परेशानियां। • मालिक को दुकान में अनावश्यक शारीरिक व मानसिक भारीपन रहना। • दुकान या फैक्ट्री जाने की इच्छा न करना। • तालेबंदी की नौबत आना। • दुकान ही मालिक को खाने लगे और अंत में दुकान बेचने पर भी नहीं बिके।
क्या हैं बंधन और उनके उपाय? बंधन अर्थात् बांधना। जिस प्रकार रस्सी से बांध देने से व्यक्ति असहाय हो कर कुछ कर नहीं पाता, उसी प्रकार किसी व्यक्ति, घर, परिवार, व्यापार आदि को तंत्र-मंत्र आदि द्वारा अदृश्य रूप से बांध दिया जाए तो उसकी प्रगति रुक जाती है और घर परिवार की सुख शांति बाधित हो जाती है। ये बंधन क्या हैं और इनसे मुक्ति कैसे पाई जा सकती है जानने केलिए पढ़िए यह आलेख... मानव अति संवेदनशील प्राणी है। प्रकृति और भगवान हर कदम पर हमारी मदद करते हैं। आवश्यकता हमें सजग रहने की है। हम अपनी दिनचर्या में अपने आस-पास होने वाली घटनाओं पर नजर रखें और मनन करें। यहां बंधन के कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं। किसी के घर में ८-१० माह का छोटा बच्चा है। वह अपनी सहज बाल हरकतों से सारे परिवार का मन मोह रहा है। वह खुश है, किलकारियां मार रहा है। अचानक वह सुस्त या निढाल हो जाता है। उसकी हंसी बंद हो जाती है। वह बिना कारण के रोना शुरू कर देता है, दूध पीना छोड़ देता है। बस रोता और चिड़चिड़ाता ही रहता है। हमारे मन में अनायास ही प्रश्न आएगा कि ऐसा क्यों हुआ? किसी व्यवसायी की फैक्ट्री या व्यापार बहुत अच्छा चल रहा है। लोग उसके व्यापार की तरक्की का उदाहरण देते हैं। अचानक उसके व्यापार में नित नई परेशानियां आने लगती हैं। मशीन और मजदूर की समस्या उत्पन्न हो जाती है। जो फैक्ट्री कल तक फायदे में थी, अचानक घाटे की स्थिति में आ जाती है। व्यवसायी की फैक्ट्री उसे कमा कर देने के स्थान पर उसे खाने लग गई। हम सोचेंगे ही कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? किसी परिवार का सबसे जिम्मेदार और समझदार व्यक्ति, जो उस परिवार का तारणहार है, समस्त परिवार की धुरी उस व्यक्ति के आस-पास ही घूम रही है, अचानक बिना किसी कारण के उखड़ जाता है। बिना कारण के घर में अनावश्यक कलह करना शुरू कर देता है। कल तक की उसकी सारी समझदारी और जिम्मेदारी पता नहीं कहां चली जाती है। वह परिवार की चिंता बन जाता है। आखिर ऐसा क्यों हो गया?
सकल ज्वर शूल ग्रहबाधा नाशक आरोग्यदायक = धूमावती मालामंत्र ये मालामंत्र का अतिशीघ्र परिणाम दिखता है .ये मालामंत्र नाड़ीपर भूलकर भी नहीं बोलना चाहिए | बाधिक के घरपे कुछ अन्न खाया हो तो उसके दोष का तत्काल निवारण , बाहर की अशुभ शक्ति से होनेवाले बाधा से निवारण , जन्म कुंडली की अशुभ गोचर योग से होनेवाली पीड़ा का निवारण , अकारण अस्वस्थ मन:स्थिति निवारण , डोक्टर की गलती की वजह से शरीर को होनेवाली विषमय अगर क्लेशदायक पीड़ा का निवारण , सर्व प्रकार के ताप का निवारण , डोक्टर के समझ के बाहर के रोगों का निवारण , शत्रुभय से अस्वस्थ मानसिकता का निवारण , अगर व्याधि बड़ी हो तो दिन में 3 बार भी आप (सुबह-शाम-रात के समय) ये अभिमंत्रित जल दे सकते है . इस मालामंत्र के अभिमंत्रित जल से इतने सारे लाभ होते है है | कितने दिन ये अभिमंत्रितजल प्राशन करने का ? => वैसे तो इसकी को मर्यादा नहीं है , किसी किसी को 2 -3 दिन में फायदा होता है | अगर समस्या बड़ी हो तो 1 -2 महीने लग सकते है | लेकिन एक बात का ध्यान दे , की इस मालामंत्र के अभिमंत्रित जल से समस्या का निवारण होता ही है 100 % | शरीर में अगर कोई जगह पर कोई व्याधि हो रोग हो, तो उस जगह पर अपना राईट साइड का हाथ रखके माला मंत्र का 4 से 5 बार जाप करनेपर तत्क्षण आराम मिलता ही है | विशेष सूचना : अभिमंत्रित जल उस व्यक्ति को तत्क्षण दे | और इसका पाठ करने से "निखिलेश्वरानंद कवच" का पाठ जरुर करले | विधि : पूर्वाभिमुख बैठके ,आगे का संकल्प एक बार बोलके "देवदत्तस्य " के जगह पर जिसके लिए आप प्रयोग कर रहे है, उसका नाम षष्ठी प्रत्यय लगाकर उच्चारण करे .. Example के लिए अगर किसीका नाम सचिन है तो "सचिनस्य " उच्चारण करे | अगर स्वत: के जाप लिए करना हो तो "देवदत्तस्य " के जगह पर "मम" उच्चारण करे | आगे किसी लकड़ी के बजोट पर अपने सामने ताम्बे का फुलपात्र रखकर राईट साइड के हाथ की तर्जनी ,मध्यमा ,अनामिका (अंगुष्ट और करांगुली को छोड़कर ) को ताम्बे के फुलपात्र में निचे तक डुबाकर मालामंत्र का 11 बार जोरसे और स्पष्ट उच्चारण करे | संकल्प : ॐ नमो भगवती शत्रु संहारिणी सर्वरोगप्रशमिनी सकलरिपु धन-धान्यक्षयं कुरु कुरु धूमावतीश्वरी शरभशालुव पक्षिराजप्रिये अमृत कलश वरदाभय कमल कराम्बुजे जगत्क्षोभिनी "देवदत्तस्य " शरीरे वर्त्तमान वर्तीष्यमान सकलरोगं मोचय-मोचय समस्त भूतं नाशय नाशय सर्व उन्माद शमनं कुरु कुरु स्वाहा | | मूल पाठ |
…(गों जोगिन मन्त्र) आगारी जो गुरु यागे | जोगिन गुरु डणड बतियाँ | करिया बलईयाँ | री जोगन मुख अनरिता | गायति रही रतियाँ | गो जोगिन चल इन अकेलियाँ | गो मारो है तालियाँ | गो जोगिन बाँधऊँ नजरियाँ | गो जोगिन आ पहियाँ | ना आये तो दोहाई मइया बनिता की | दोहाई सलिमा पैगम्बर की | दोहाई सलाई छु | विधि :- इस मन्त्र को शुक्रवार की रात्रि में रात भर जपें और सावधन रहे | धुप-दीप जलता रहे | चमेली की पुष्प माला भी रखे और जैसे ही गों जोगिन दर्शन दे तो यह माला उसे पहना दें | और बोलोगे वो काम करेगी | जिस काम की आज्ञा दो गे वो काम करेगी | केवल आच्हे काम करेगी | बुरे काम में हानि ही देगी | इस काम को सोच विचार कर करना | कियो की सोचना आप के वाश में है |
बीज मन्त्रों के रहस्या-- शास्त्रों में अनेकों बीज मन्त्र कहे हैं, आइये बीज मन्त्रों का रहस्य जाने! १--क्रीं--इसमें चार वर्ण हैं! [क,र,ई,अनुसार] क--काली, र--ब्रह्मा, ईकार--दुःखहरण! अर्थ--ब्रह्म-शक्ति-संपन्न महामाया काली मेरे दुखों का हरण करे! २--श्रीं----चार स्वर व्यंजन---[श, र, ई, अनुसार]=श--महालक्ष्मी, र-धन-ऐश्वर्य, ई-- तुष्टि, अनुस्वार-- दुःखहरण! अर्थ---धन- ऐश्वर्य सम्पति, तुष्टि-पुष्टि की अधिष्ठात्री देवी लाष्मी मेरे दुखों का नाश कर! ३--ह्रौं---[ह्र, औ, अनुसार] ह्र-शिव, औ-सदाशिव, अनुस्वार--दुःख हरण! अर्थ--शिव तथा सदाशिव कृपा कर मेरे दुखों का हरण करें! ४--दूँ ---[ द, ऊ, अनुस्वार]--द- दुर्गा, ऊ--रक्षा, अनुस्वार करना! अर्थ-- माँ दुर्गे मेरी रक्षा करो! यह दुर्गा बीज है! ५--ह्रीं --यह शक्ति बीज अथवा माया बीज है! [ह,र,ई,नाद, बिंदु,]---ह-शिव, र-प्रकृति,ई--महामाया, नाद-विश्वमाता, बिंदु-दुःख हर्ता! अर्थ--शिवयुक्त विश्वमाता मेरे दुखों का हरण करे! ६--ऐं--[ऐ, अनुस्वार]-- ऐ- सरस्वती, अनुस्वार-दुःखहरण! अर्थ--- हे सरस्वती मेरे दुखों का अर्थात अविद्या का नाश कर! ७--क्लीं-- इसे काम बीज कहते हैं![क, ल,ई अनुस्वार]--क--कृष्ण अथवा काम,ल--इंद्र,ई--तुष्टि भाव, अनुस्वार-सुख दाता! कामदेव रूप श्री कृष्ण मुझे सुख-सौभाग्य दें! ८--गं--यह गणपति बीज है![ग, अनुस्वार] ग-गणेश, अनुस्वार-दुःखहरता! अर्थ-- श्री गणेश मेरे विघ्नों को दुखों को दूर करें! ९--हूँ--[ ह, ऊ, अनुस्वार]--ह--शिव, ऊ-- भैरव, अनुस्वार-- दुःखहरता] यह कूर्च बीज है! अर्थ--असुर-सहारक शिव मेरे दुखों का नाश करें! १०--ग्लौं--[ग,ल,औ,बिंदु]--ग-गणेश, ल--व्यापक रूप, आय--तेज, बिंदु-दुखहरण! अर्थात--व्यापक रूप विघ्नहर्ता गणेश अपने तेज से मेरे दुखों का नाश करें! ११--स्त्रीं--[स,त,र,ई,बिंदु]--स--दुर्गा, त--तारण, र--मुक्ति, ई--महामाया, बिंदु--दुःखहरण! अर्थात--दुर्गा मुक्तिदाता, दुःखहर्ता,, भवसागर-तारिणी महामाया मेरे दुखों का नाश करें! १२--क्षौं--[क्ष,र,औ,बिंदु] क्ष--नरीसिंह, र--ब्रह्मा, औ--ऊर्ध्व, बिंदु--दुःख-हरण! अर्थात--ऊर्ध्व केशी ब्रह्मस्वरूप नरसिंह भगवान मेरे दुखों कू दूर कर! १३--वं--[व्, बिंदु]--व्--अमृत, बिंदु- दुःखहरता! [इसी प्रकार के कई बीज मन्त्र हैं] [शं-शंकर, फरौं--हनुमत, दं-विष्णु बीज, हं-आकाश बीज,यं अग्नि बीज, रं-जल बीज, लं- पृथ्वी
भूत-प्रेत बाँधने के मन्त्र (१) “बडका ताल के पेड़ माँ बँधाय जञ्जीरा । खाले माँ बाजे झाँझ-मँजीरा और बाजे तबला निशान । भाग-भाग रे भूत – मसान, पहुँचत है पञ्च-मुखा हनुमान । मोर फूँकें, मोर गुरू के फूँकें । गौरा महा-देव के फूँकें । जा रे, भूत बँधा जा । (२) “ऐठक बाँधो । बैठक बाँधो । आठ हाथ की भुइया बाँधो । बाँधो सकल शरीर । भूत आवे, भूत बाँधो । प्रेत आवे, प्रेत बाँधो । मरी मसान, चटिया बाँधो । मटिया आवे, मटिया बाँधो । बाँध देहे, फाँद देहे । लोहे की डोरी, शब्द का बन्धन । काकर बाँधे, गुरू के बाँधे । गुरू कौन ? महा-देव-पार्वती के बाँधे । जा रे, भूत बँधा जा ।” (३) “जल बाँधो, जलाजल बाँधो । जल के बाँधो पीरा । नौ नागर के राजा बाँधो, सोन के बाँधो जजीरा । भूत-प्रेत मसान बाँधो, बाँधो अपन शरीरा । काकर बाँधे, मोर गुरू के बाँधे । गुरू कौन ? गौरा-पार्वती के बाँधे । जा रे, भूत बँधा जा । दुहाई सतनाम कबीरदास जी की !” विधि – उक्त मन्त्रों को पहले १०८ बार ‘जप’ कर सिद्ध कर ले । ‘प्रयोग’ के समय सात बार भभूत पर पढ़कर फूंक मारे । इससे भूत-प्रेत आदि बँध जाते हैं ।
व्यापार बंधन मुक्ति का मन्त्र कभी-कभी अचानक ही व्यवसाय चौपट होता हुआ प्रतीत होता है। सम्भव है धन्धे को बरकत तन्त्र मन्त्र से बाँध दी गई हो। अगर ऐसा हो तो इस मन्त्र का प्रयोग किया जाना चाहिए। तुरंत लाभ मिलने लग जाता है। मन्त्रः- ”ओम नमो आदेश गुरू को वावन वार चौसठ सातऊ कलवा पांचऊ वड़वा जिन्न भूत परीत देव दानव दुष्ट मुष्ठ मैली मशाण इन्हीं को कील कील नजर दीठ मूँठ टोना टारे लोना चमारी गाजे या धन्धे दुकान की बरकत को बन्धन न छुड़ावे तो माता हिंगलाज की दुहाई।” विधिः- नवरात्रि में एक हजार जप से उक्त मन्त्र सिद्ध हो जाता है। मन्त्र सिद्धि के समय धूप जलाना चाहिए। मन्त्र सिद्धि के बाद बालकों और कन्याओं को भोजन कराना चाहिए। बँधी हुई दुकान में पाँच नीबुओं को इस मन्त्र से 21 बार अभिमन्त्रित कर एक सूत्र में पिरो कर दुकान में टाँगना चाहिए। सरसों के कुछ दानों पर 21 बार मन्त्र पढ़कर दुकान में डालें।
भूतादि भगाने का अनुभूत मन्त्र “ॐ गुरु जी ! काला भैरू क्या करे ? मरा मसान सेवे । मरा मसान से के क्या करे ? लाग को – लपट को, काचे को – कलवे को । झाँप को – झपट को, भूत को – प्रेत को ! जिन्द को – डाकन को, ताल को – बेताल को । पेट की पीड़ा, माथे की मथवा- ३६ रोग को दफा करे श्रीनाथ जी का चकरु घेर घाले । हनूमान का पर्चा । छोड़ डङ्कनी पूत पराया । शब्द साँचा, पिण्ड काचा । चलो ईश्वर वाचा । चलो मन्त्र, ईश्वर वाचा ।” विधि :- उक्त मन्त्र महात्मा लक्ष्मण गिरि का बताया हुआ है ।
गुरु-स्थापना-मन्त्र :- साधना प्रारम्भ के पहले एक पाँच बत्ती- वाला दीपक जला कर निम्न मन्त्र को सात बार पढ़ें – “गुरू दिन गुरू बाती, गुरू सहे सारी राती । वासतीक दीवना बार के, गुरू के उतारौं आरती ।।” शरीर-रक्षा-मन्त्र :- “ॐ नमो आदेश शुरू का । जय हनुमान, वीर महान । मै करथ हौं तोला प्रनाम, भूत-प्रेत-मरी मसान । भाग जाय, तोर सुन के नाम । मोर शरीर के रक्ष्या करिबे, नहीं तो सीता मैया के सय्या पर पग ला धरबे ! मोर फूकें । मोर गुरू के फूकें, गुरू कौन ? गौरा- महा-देव के फूकें । जा रे शरीर बँधा जा ।” विधि – उक्त मन्त्र को ग्यारह बार पढ़कर, अपने चारों ओर एक गोल घेरा बना लें । इससे साधना में सभी विघ्नों से साधक की रक्षा होती है ।
धन प्राप्ति के सामान्य टोटके ... आज के युग में सबसे महवपूर्ण कार्य धनप्राप्ति है|कई लोग ऐसे हैं की अज्ञात कारणों से उनके धन प्राप्ति में कोई न कोई रोड़ा अटकता ही रहता है|नीचे कुछ टोटके बताये जा रहें हैं जो धन प्राप्ति में महतवपूर्ण है|जिस स्थान पर इन टोटकों का पालन होता हैं उस स्थान पर माँ लक्ष्मी अपना स्थाई वास बनाती है| • जिस घर में नियमित रूप से अथवा प्रत्येक शुक्रवार को श्रीसूक्त अथवा श्री लक्ष्मी सूक्त का पाठ होता है वहां माँ लक्ष्मी का स्थाई वास होता है| • पर्त्येक सप्ताह घर में फर्श पर पोचा लगते समय थोडा सा समुंदरी नमक मिला लिया करें ऐसा करने से घर में होने वाले झगरे कम होते हैं|इसके अतिरिक्त यह भी लाभ मिलता है आपको नहीं मालूम की आपके घर में आने वाला अतिथि n कहाँ से आया है,तथा उसके मन में आपके प्रति क्या विचार है,नमक मिले पानी से पोचा लगाने से सारी नकारात्मक उर्जा समाप्त हो जाती है| • प्रात: उठ कर गृह लक्ष्मी यदि मुख्य द्वार पर एक गिलास अथवा लोटा जल डाले तो माँ लक्ष्मी के आने का मार्ग प्रशस्त होता है| • यदि आप चाहतें हैंकि घर में सुख शांति बनी रहे तथा आप आर्थिक रूप से समर्थ रहें तो प्रत्येक अमावस्या को अपने घर की पूर्ण सफाई करवा दें|जितना भी फ़ालतू सामान इकठा हुआ हो उसे क्बारी को बेच दें अथवा बाहर फेंक दें ,सफाई के बाद पांच अगरबती घर के मंदिर में लगायें|
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दुर्गा सप्तशती पाठ विधि
दुर्गा सप्तशती दुर्गा सप्तशती पाठ विधि पूजनकर्ता स्नान करके, आसन शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके, शुद्ध आसन पर बैठ जाएँ। माथे पर अपनी पसंद क...
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