Sunday, 4 January 2015

बैरी बिणास मंत्र



बैरी बिणास मंत्र एवम यंत्र जिसमे मुसलमानी सभ्यता झलकती है

नमो आदेस गुरु को आदेस : उंज काला क्न्काला : बजुरमुखी बाण नाचे : : लग्न ऩा नाचे चौसठ मसाण नाचे : आट मारग कि जड़ नाचे : समसाण घाट को कुइलो नाचे : बेताल घाट को बेताल नाचे : छुर्की का अक्षत नाचे : घोर अघोर लग्न नाचे : डुकुर बोल नि बोले तो : तिन पाल कनिडु करे तो काली कलिन्द्रा कि द्वाई . फिर रे बोल बोल रे ब्यादी बियादी . लाया लगाया . तोई दूं अष्ट बली . कंकाली कंकाली . किल किल किलक्वार . औटे लग्न बाके मसाण नाचे निबोले नि नाचे तो कलचेरी कि .फुर मंच फटे स्वाहा .
अथ लग्न थमौण को मंत्र : ॐ नमो काली कंकाली बर्मा कि बेटी रूद्र कि साळी लठगण का मुख मार्रो ताळी . जो बक दारे सो मरे . उसी का बाण उसी का घर जावे . तोई काली दयून्लू काल़ा बानुर का मुख .कि बळी , ब्यादी बियादी ताका सिर मारो बज्र कि सिला . जा वि मारो लुब्बा कि कील श्रव काली ह्रीं ह्रीं लं लं हं हं त्रं त्रं पं पं श्रव व्याधि नसावे : फटे स्वाहा ये मंत्रल लगे डुकराण : सतनाजा को लगण करणु . छुरकी क साठी समसाण को कुइलो लगण का पेट धरणो : उड़द चौंळ मन्त्रिक लग्न पर ताड़ो मारणो स्टे . ॐ नमो आदेस . गुरु को जुहार . तो आयो बिर नरसिंग वायु नरसिंग वर्ण नरसिंग . मेरा जिय रख जंत रंग प्राण रख . अष्टन्गुली आत्मा रख .
मेरो बैरी को भख . दडी दुश्मन कि कलेजी चख . फुर मंत्र इस्स्रो वाच . सातर कि विभूति मन्त्रिक अपणा सिर ल़ाणी , तब लग्न को मंत्र करणो . ॐ नमो गुरु को आदेस गुरु को चड़े गेरू में सात गुदडि का देमड़ा . कालिका का पूत चेड़ा खादा औंदा नाड़ तोडि कपाळ फोड़ी चले सत्रु का घर सिव का बाण नाचे कुदेक लवानिवु के ताल हाडिक घुळ मसाण हवया. गाडो मंगाल बार बिर पथर पड़े . मेरा सत्रु के घर फुर मंत्र एसुरी वाच . येई मन्त्रण शयीराड़ो मड़घाट कि विभूति १०८ बेरी मंत्र कनु कुड़ अ का आसपास धरी देणु
ॐ नमो आदेस गुरु को : कालुर देस का कालुरी बिर दानो बिर धुन्दवा बिर सुन्द्रिका बिर लड़तिउं चले भगता लात मारते चले. खटंग बिर खितग ताल चले . सात सबद मार पेखंत खेलता चले . बिर चल चलूंडंति दानौ मार. बजुर गोला बाण ते चलाऊं तब ब्रिछ लडाऊं . राम्च्न्दरी बाण चलाऊं . बजुर बाण तेलग लागे . थातिया बिर लडाऊं गुम्बर गुबर नि लदे तो खेल नि खेले तो फेर सात त्रिपर कि दुबाई. फिरेसते चंद्रा बुतिणि बिर कि दुबाई फेरे सहि. इस मंत्र न मुसलमान को कब्र कि मटि . ७ जोड़ा लौंग ८ सूत को धागों करणो .एका ब्रिछ बंधणो . आफु अलग राणु , नजर मारणि : ७ चिक्ला मंत्र सूते लड़दि लकड़ी बज्र छीनती कि लकड़ी मुर्दा बोकण कि लकड़ी तीनो लकड़ी घुसाणो ब्रिछु पर छेद दिणि
ॐ नमो आदेस गुरु को इंद्रजाल हंकारो जिमजाळ हंकारो काल जिम हंकारो मेढक जाल हंकारो . उमड़े नही जाहाँ चलाऊं थान चलाऊं . दि चले त ह्न्कारनात भैरों कलुआ ध्यावन छूटे . गेदों सि फूटे डोरी सि टूटे , रुई को सिमडे लोट सि तड़े. जिम कि सभा नि बैठाई तो काला कलुआ तेरी आण पड़े . जो इंद्र कि सभा नि बैठाई तो नौ नौरतो कि पूजा नि पाई . देखो परचो उंकी नात भैंरों मेरा बैरी तेरा भक . जम कि सभा नि लग तो तिन नरग जाई . तिन घडी तिन पहर मड़घट नि ल्याई तो हंकार नात भैरों गुटा जाई तो मिटा खाई . बैण भांजा का पाप जाई ., चांडा बोग्सा कि जाटा तोड़ खाई . जांजी बोगसा उतरी जाई . मेरी भक्ति गुरु कि सती फुर मंत्र फटे स्वाहा . यई मंत्र तिघर कि लाल पिंगळी पिठाइ २ घर का ज्युंदाळ साड़े तीन हात को धागों नापणो धरणो . सत्रु का घर मा फुकणो ९ सत्रु मरे १८ बेरी काम करणु
नमो उस्ताद बैठे पास काम अवे रास . मेरा कलुवा एसा बिर जैसा हो तिर . जिम का मुहा पे बैठी कल़ेजी खाई , छाती पैराडि भैर निकळ आई . भोगे खाई भोगे का आड़ा दे मैं देवा क्रूर वारि करू ढाडा कलुवा कामड़ घाट बैठे ख़ुबाट कूद आवे मुर्दा के घाट. बारा घटी सोला बकरा खाई . असी कासकिदी ड़करे . सोटी ब्यानपे खावे ॐ काल भैरों कंकाल पाटी चन्द्र भैरों दुष्ट कि छ्यती. मेरा बैरी तेरा भक काट कल़ेजा कर चबट . मेरी बात नि माने त माता कालिका का दांत गीद्लिया . २१ जोड़ा लौंग .
अथ घट बंथण को :
तै बिट में कौं बिर बैठे . बिगठ मै बिर हणमंत रड़ बैठेउर हट्टी आगे दिया . उबैठे वबरी मैं महाकाली बैठे चार बिर घट के पेट में बैठे बंद बंदन भवन बंद पाणी का नागला . चरकी का घेर बंद चलदा घराट बंद .बोल बोल बंद बंद करी त्याई तो बिर हणमंत तेरी द्वाई . फुट ह्न्मन्त बीर तेरी दवाई . बर्ज मुख का कोइला मंत्रणा . उइरा गेरी देण घरात बंद होई
अथ उखेल मंत्र :
ॐ नमो आदेस गुरु का : बिगत बिरात कौं बिर उखेल बिगत बिट हणीमंत्र उखेल द्विखिं आगे दरिया उखेल. चार बीर घट के पेट में उखेल . घट उपरी महाकाली उखेल . उखेल उखेल लखेल करी नि त्याई त : बिर हणमंत तेरी द्वाई . तेरी आण पड़ी . फुर बरुवा अनजानी का पूत हनुमंत उखेल . फुर मंत्र इस्रोवाच पंच गारा मंत्रणा या तीन बेरी या सात बेरी ॐ नमो गुरु को आदेस गुरु को काली काली महाकाली . कंकाली माता गडदेवी या बर्मा कि बेटी . गर्भ ते छुटी रगत नि लेटी भैं माता कर्यो तेरो सुमरिण वेदी वोलाऊं औसान की बेला माता चली आयी . माता हंकारी ल़े मेरा बैरी सन्तान का जिए खाई .तुम मेरी बैणी मै तेरा भाई . मेरा बैरी का पेट काट ल्याई . मैदान का बाठा ल्याई रक्त निकाल ल्याई . नाक नकुआ उपाई अंक पाड़ो काल़ो उपाई . तुम मेरी बैणा मै तेरा भाई . तुम बैरी घडी तीसरा पहर तीसरा दिन बरपाई मेरा बैरी का बत्तीस दंत खाई . ताल़ू जिभ्या लाइ . सौ हात आन्द्ड़ो खाई. मेरा बैरी को जितमो फोड़ी खाई फबसो कल़ेजी फोड़ी खाई . मेरा पढ़ायियां नि जाई त अपणा भाई बाप का x x न जाई. तू मेरी बैणा मै तेरा भाई मेरा पठायाँ नि जाई त अपणा गुरु को मांश खाई पाए बिट सिर जाई . मेरा बैरी ढाई पहर ढाई घडी फ़ट जाई . छ्न्चर का दिन न्यूती मात . ऐतवार का दिन हंकार पठाई . आगे नि जाई पीछे रही त अपणा गुरु का मॉस खाई . कैसा फिराआं फिरि आई त भाई बाप का अफु नि जाई . नौ नौती पूजा नि पाई . तोई द्विल नरसिंग कि दुबाई . . अब तो माता किल्कन्ति आई . मेरा बैरी भकनडि आई कं कं किलकन्त जाई . मेरा बैरी भाकान्ति आई . खं खं खडख प्रले ल़े चली आई . मेरा बैरी तुरंत खाई . घं घं घं घोरंती जाई . मेरा बैरी तुरंत खाई ढं ढं ढं ढाल ल़े जाई . मेरा बैरी बैद हो तो बिदा खाई . सुता हो त सुतो खाई . मेरा बैरी रूसो होव तो मनाई खाई . मेरा बैरी कि डाँडि नदी तिर लाइ . नि ल्याई त अपणा भाई बाप का कुबोल जाई . नौ नारसिंग सोल़ा कलुवा असी मण चौरासी चेड़ा . चौसठ भैरों चौसठ जोगणि रथ बेरथ सुन बे -सुन बैरी का घर घाली तब चलो बाबा काल भैरों . गोल मैमंदा बिर मेरा बैरी का घर सुन बे-सुन घाली मेरा बैरी तीसरा दिन तीसरी पहर तीसरी धीवर ऩा खाई त बाबा सुन्गर हलाल कर खाई . अब मेरा बैरी खाईलो त तेरी पूजा देयून्लू लाल ल्वारण मॉस का बीड़ा कठ गई मठगढ़ बारा भोजन छतीस प्रकार देउलूं . कुखडी मेडा कि बली मद कि धार दयून्लू मेरी चलाई ऩा चली तो नी जाई त नौ नारसिंग बर्मा बिसनु मादेव पारबती कि आण पड़ी . हणमंत बिर कि आण पड़ी मेरी भगती गुरु कि सगती फीर मंत्र फटे स्वाहा . कागा कि पाग चित्रि का क्षर मड़ा हाड राता दयेपड़ा को क्षर नूर उंगुल को त्रिसुल करणो १०८ बेरी मंत्र करणो सबु नाम ल़ेणु

गढवाली कुमाउनी मन्त्रों में अमावस्य का महत्व



गढवाली कुमाउनी मन्त्रों में अमावस्य का महत्व
यह देखा गया है कि गढवाल व कुमाऊं क्षेत्र में तांत्रिक अनुष्ठान अधिकतर कृष्ण पक्ष या अमावस्य की रातों को किया जाता है .. आज आधुनिकता के नाम पर इस विधा या अनुष्ठान को दकियानूस अथवा अंधविश्वास का नाम दिया जाता है किन्तु वास्तव में ऐसा नही है . यह ठीक है कि चिकित्सा अथवा मानसिक दुःख दूर करने के के नाम पर मान्त्रिक तांत्रिक ठगी करने लगे हैं . कहीं कहीं समाज चिकित्सा कि उपेक्षा कर केवल मन्त्रों या तंत्रों के भरोसे रह जाते हैं और नुकसान पा जाते हैं . किन्तु इसका यह अर्थ कदापि नही लगाना चाहिए कि शुद्ध तांत्रिक विधा में विज्ञान या मनोविज्ञान का अभाव है .
उत्तर भारत में तांत्रिक विधा या तो वाम पंथी शैव्यों या बुद्ध पंथियों की देन है .
नाथपंथी शैव्य हुए हैं और उनके अनुष्ठान हठ योग आधारित हैं . इसे वाम योग या विपासना योग भी कह लेते हैं, नाथपंथियों के प्रसिद्ध गुरु गोरखनाथ व उनके हजारों शिष्यों ने तंत्र विद्या में अभिनव अन्वेषण किये व तन्त्र विद्या को आम आदमी कि पंहुच तक पंहुचाया .
गढवाल कुमाऊं में भी मंत्र तन्त्र विधा को आम जन तक पंहुचाने में नाथपंथियों का सर्वाधिक हाथ रहा है , जैसा कि कहा गया है कि नाथपंथी शैव्य पन्थ के अनुचर रहे हैं अत : उनके तंत्रों में शैव्य तन्त्र का खजाना " विज्ञान भैरव" का अर्वाधिक हाथ रहा है . विज्ञान भैरव भारत की एक ऐसी बौधिक सम्पदा है जिस पर अन्वेषण होने ही चाहिए . विज्ञान भैरव के १२३ सूत्र शरीर से आत्मदर्शन कराता है . जी हाँ विज्ञान भैरव वही वातावरण व शरीर को महत्व देता है . असीम आनन्द हेतु विज्ञान भैरव में मन व तन दोनों में से तन को अधिक महत्व दिया गया है . विज्ञान भैरव को शिव उपनिषद भी कहते हैं जो भारतीय तंत्र विज्ञान का जनक भी है .
गढवाल व कुमाऊं में अधिकतर तांत्रिक अनुष्ठान अमावश्य या कृष्ण पक्ष की रातों को किया जाता है और उसके पीछे " विज्ञान भैरव" ड़ो सूत्र जनक हैं
एवमेव दुर्निशाया कृष्णपक्षागमे चिरम .
तिमिरम भव्यं रूपम भैरव रूपमध्यति
इसी तरह अमावस्य की रात या कृष्ण पक्ष की रात में अन्धकार पर सूक्ष्म ध्यान दो तो भैरव प्राप्ति हो जायेगी
एवमेव निमील्यादौ नेत्रेकृष्णा भमग्रत::
प्रसार्य भैरवम रूपम भाव्यं स्त्न्मयो भवेत
उसी प्रकार आँख बंद कर अँधेरे पर सूक्ष्म ध्यान दो फिर आँख खोलकर अँधेरे पर सूक्ष्म ध्यान दो , भैरव प्राप्ति हो जायेगी
जो लोग गढवाल या कुमाऊँ के गाँव में रहे हैं उन्हें अकेले में कृष्ण पक्ष की रात में डर , डर को दूर करने व अंत में सर्वाधिक आनन्द (जब भूत , वर्तमान, भविष्यकी चिंता सर्वथा समाप्त हो जाय ) का अनुभव अवस्य होगा , भैरव तन्त्र इसी अनुभव प्राप्ति की बात कर रहा है .
प्राचीन समय में जिन्होंने भैरव तंत्र को जिया हो परखा हो वे चाहते रहे होंगे किस तरह, इस तरह के आनन्द को आम जनता तक पंहुचाया जाय ! उन्होंने तांत्रिक विद्या का अनुष्ठान कृष्ण पक्ष या आमवस्य की रातों को करना शुरू किया जिससे की पश्वा (भक्त ) भी भैरव योनी (सर्वाधिक आनन्दित योनी) में पंहुच सके .
यही कारण है की अधिकतर तांत्रिक अनुष्ठान अमावस्य या कृष्ण पक्ष की रातों को किये जाते हैं

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