Sunday, 4 January 2015

भूत भगाने हेतु थप्पड़ क्यों मारा जाता है ?



भूत भगाने हेतु थप्पड़ क्यों मारा जाता है ?

भूत भगाने हेतु थप्पड़ क्यों मारा जाता है ?
जो गढवाल - कुमाऊं के गाँव में रहे हैं और भूत भगाने की क्रिया को जिन्होंने देखा हो या अनुभव किया हो तो उन्हेंने देखा होगा कि
झाड़खंडी भूत लगे मनुष्य को थप्पड़ मरता है या चावल के दानो का ताड़ देता है . कुछ लोग सोचते हैं कि यह अज्ञानियों का कोई खेल है
जी नही यह भुतहा गये मनुष्य को थप्पड़ मारने वाला तांत्रिक अनुष्ठान अज्ञानबस नही अपनाया गया है अपितु विज्ञानं भैरव या भैरव तंत्र के एक विशेष सिधांत को ब्यवहारिक
रूप देने हुतू अपनाया गया है
विज्ञान भैरव या भैरव तंत्र में एक सिद्धांत इस प्रकार है
यस्य कस्येंद्रियस्यापी व्याघाताच्च निरोध्त:
प्रवष्टिस्याद्व्ये शुन्य तत्रैवात्मा प्रकाशते
यदि अचानक या स्वयम शरीर के किसी अंग पर किसी वाह्य वस्तु से आघात किया जाय तो आत्म दर्शन याने भैरव प्राप्ति होती है
सभी को अनुभव होगा कि जब कभी अपघात से (accidently ) किसी बस्तु से जोर से टकराते हैं या कोई वस्तु हमारे शरीर के किसी अंग से जोर से टकराती है तो मनुष्य ना तो भूत काल की शरम या भविष्य की कोई बात सोचता है अपितु पूर्ण वर्तमान (ना भूत ना भविष्य की सोच/विचार) में आ जाता है. पूर्ण वर्तमान क़ी स्तिथि में आने के वक्त ही मनुष्य आत्मा से आत्मसात करता है या असीम आनन्द को प्राप्त होता है
भूत लगना याने डर याने भूतकाल में जीना . जब भुतहे मनुष्य को थप्पड़ मारा जाता है तो वह वर्तमान में आ जाता है . चावल के दानो का ताड़ भी इसी सिद्धांत के अनुसार दिया जाता है

अघोरी तांत्रिक



अघोरी तांत्रिक मानव खोपड़ी से तांत्रिक विधान क्यों करते हैं ?
यद्यपि कुमाऊं या गढवाल के ग्रामीण इलाकों में अघोरी तांत्रिक नही मिलते हैं किन्तु इस लेखक ने एक बार नयार गंगा संगम - व्यासचट्टी में
बिखोत मेले में मानव खोपड़ी की सहायता से एक स्त्री की छाया पूजते देखा था .
वैसे यह बात आम लोगों हेतु चौंकाने वाला है किन्तु हट्ठ योग या अघोर पंथियों के लिए मानव खोपड़ी एक पूज्य वस्तु है और इस के पीछे विज्ञानं भैरव का निम्न सिद्धांत काम करता है
कपालांतर्मनो न्यस्य तिष्ठन्मीलितलोचन:
क्रमेण मनसो दाध्यार्त लक्षयेल्लक्ष्यमुत्तम (विज्ञानं भैरव , ३४
स्थिरता पुर्बक बैठकर , ऑंखें मूंदकर कपाल के आंतरिक भाग पर ध्यान केन्द्रित करो धीरी धीरे भैरव प्राप्ति हो जायेगी

एक नाथपंथी मंत्र



नगेलो जागर : एक नाथपंथी मंत्र
गढवाल कुमाऊँ में नागराजा कृष्ण रूप है यद्यपि नाग देवता वेदों से पहले के देवता हैं . नाग देवता का उल्लेख ऋग्वेद आदि में भी है. गढवाल में नाग वंशियों का भी अधिपत्य रहा है और गढवाली में कई शब्द नागवंशी काल के शब्द मिलते हैं . खस व कोल वंस का नाग वंश के साथ अटूट रिश्ता रहा है
गढवाल कुमाऊं में नाग देवता के जागर लगते हैं और नागराजा नाचते हैं
नागराजा का जागर यद्यपि खड़ी व ब्रिज मिश्रित ( व गढवाली के एक दो शब्द हैं )भाषा में है किन्तु यही समझा जाता है कि यह मंत्र या जागर गढवाली भाषा का है जबकि यह जागर नाथपंथी मंत्र है
ॐ नमो आदेस, गुरु को आदेस ,
प्रथम सुमिरों नादबुद भैरों
द्वितीय सुमिरों ब्रह्मा भैरों ,
तृतीय सुमिरों मछेंद्रनाथ भैरों
मच्छ रूप धरी ल्याओ ,
चतुर्थ सुमिरों चौरंगी नाथ ,
विन्धा उतीर्थ करी ल्यायो .
पंचम सुमिरों पिंगला देवी
षष्ठे सुमिरों श्री गुरु गोरख साईं
सप्तमे सुमिरों चंडिका देवी
या पिंड को छल करी छिद्र करी
भूत प्रेत हर ल़े स्वामी
प्रचंड बाण मारी ल़े स्वामी
सप्रेम सुमिरों नादबुद भैरों
तेरा इस पिंड का ध्यान छोड़ा दे
इस पिण्डा को भूत प्रेत ज्वर उखेल दे स्वामी
फिर सुमिरों दहिका देवी
इस पिंड को दग्ध बाण उखेल दे स्वामी
अब मैं सुमिरों कालिपुत्र कलुवा बीर
गू ल़ो तोई स्वामी गूगल को धूप
कलुवा बीर आग रख पीछ रख
स्वा कोस मू रख , पातळ मू रख
फीलि फेफ्नी को मॉस रख
मूंड कि मुंडारो उखेल
मुंड को जर उखेल
पीठी को स्लको उखेल
कोखी को धमाल उखेल
बार बिथा छतीस बलई तू उखेल रे बाबा
मेरी भक्ति , गुरु कि शक्ति सब साचा
पिण्डा राचा चालो मंत्र , ईस्रोवाच
फॉर मंत्र फट स्वाहा
या बिक्षा आन मि दूसरी बार

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