Sunday, 10 March 2013

जन्मकुंडली के द्वारा जाने क्या रत्न पहनें, क्या न पहनें

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जन्मकुंडली के द्वारा जाने क्या रत्न पहनें, क्या न पहनें
रत्न सबके लिए नहीं होते, वे सुंदरता की वस्तु न होकर प्राणवान ऊर्जा के स्रोत के रूप में कार्य करते हैं। शुभ रत्नों का चयन करने के लिए अपने जन्म कुंडली में शुभ ग्रहों और लग्न की राशि के अनुसार करना चाहिए, अन्यथा प्रतिकूल रत्न लाभ के बजाय हानि भी कर सकता है। कई रत्न बड़े प्रभावशाली होते हैं और वे अपना प्रभाव तुरंत दिखाते है। रत्न पहनने के लिए दशा-महादशाओं का अध्ययन भी जरूरी है। केंद्र या त्रिकोण के स्वामी की ग्रह महादशा में उस ग्रह का रत्न पहनने से अधिक लाभ मिलता है।
जन्म कुंडली में त्रिकोण सदैव शुभ होता है इसलिए लग्नेश, पंचमेश व नवमेश का रत्न धारण किया जा सकता है। यदि इन तीनों में कोई ग्रह अपनी उच्च राशि या स्वराशि में हो तो रत्न धारण नहीं करना चाहिए। यदि शुभ ग्रह अस्त या निर्बल हो तो उसका रत्न पहनें ताकि उस ग्रह के प्रभाव को बढ़ाकर शुभ फल दे। यदि लग्न कमजोर है या लग्नेश अस्त है तो लग्नेश का रत्न पहनें। यदि भाग्येश निर्बल या अस्त है तो भाग्येश का रत्न पहनें। लग्नेश का रत्न जीवन-रत्न, पंचमेश का कारक-रत्न और नवमेश का भाग्य-रत्न कहलाता है। त्रिकोण का स्वामी यदि नीच का है, तो वह रत्न न पहने। कभी भी मारक, बाधक, नीच या अशुभ ग्रह का रत्न न पहनें। सभी रत्न शुक्ल पक्ष में निर्धारित वार व होरा में धारण किए जाने चाहिए।
जन्म लग्न के अनुसार करे रत्नों का चयन :-
मेष: इस लग्न वाले जातकों का अनुकूल रत्न मूंगा है जिसको शुक्ल पक्ष में किसी मंगलवार को मंगल की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर सोने में अनामिका अंगुली में धारण करना चाहिए। मंत्र- ऊँ भौं भौमाय नमः लाभ- मूंगा धारण करने से रक्त साफ होता है और रक्त, साहस और बल में वृद्धि होती है, महिलाओं के शीघ्र विवाह मंे सहयोग करता है, प्रेत बाधा से मुक्ति दिलाता है। बच्चों में नजर दोष दूर करता है। वृश्चिक लग्न वाले भी इसे धारण कर सकते हैं।
वृष: इस लग्न वाले जातकों के लिए अनुकूल रत्न हीरा तथा राजयोग कारक रत्न नीलम है। हीरा को शुक्ल पक्ष में किसी शुक्रवार को शुक्र की होरा में जाग्रत कर धारण करना चाहिए। मंत्र- ऊँ शुं शुक्राय नमः लाभ- हीरा धारण करने से स्वास्थ्य व साहस प्रदान करता है। समझदार बनाता है। शीघ्र विवाह कराता है। अग्नि भय व चोरी से बचाता है। महिलाओं में गर्भाशय के रोग दूर करता है। पुरुषों में वीर्य दोष मिटाता है। कहा गया है कि पुत्र की कामना रखने वाली महिला को हीरा धारण नहीं करना चाहिए अतः वे महिलाएं जो पुत्र संतान चाहती हैं या जिनके पुत्र संतान है उन्हें परीक्षणोपरांत ही हीरा धारण करना चाहिए। इसे तुला लग्न वाले जातक भी धारण कर सकते हैं।
मिथुन: इस लग्न वाले जातकों के लिए अनुकूल रत्न पन्ना है जिसे बुधवार को बुध की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर पहनना चाहिए। मंत्र- ऊँ बुं बुधाय नमः लाभ- पन्ना निर्धनता दूर कर शांति प्रदान करता है। परीक्षाओं में सफलता दिलाता है। खांसी व अन्य गले संबंधी बीमारियों को दूर करता है।इसके धारण करने से एकाग्रता विकसित होती है। काम, क्रोध आदि मानसिक विकारों को दूर करके अत्यंत शांति दिलाता है। कन्या लग्न वाले जातक भी इसे धारण कर सकते हैं।
कर्क: इस लग्न वाले जातकों के लिए अनुकूल रत्न मोती है जिसे सोमवार के दिन प्रातः चंद्र की होरा में पहनना चाहिए। पहनने के पहले रत्न को इस मंत्र से अवश्य जाग्रत कर लेना चाहिए। मंत्र- ऊँ सों सोमाय नमः लाभ- मोती धारण करने से स्मरण शक्ति प्रखर होती है। बल, विद्या व बुद्धि में वृद्धि होती है। क्रोध व मानसिक तनाव शांत होता है। अनिद्रा, दांत व मूत्र रोग में लाभ होता है। पुरुषों का विवाह शीध्र कराता है तथा महिलाओं को सुमंगली बनाता है। इस लग्न वाले यदि मूंगा भी धारण करें तो अत्यंत लाभ देता है क्योंकि मूंगा इस लग्न वाले व्यक्ति का राजयोग कारक रत्न होता है।
सिंह: इस लग्न वाले जातकांे का अनुकूल रत्न माणिक्य है। इसे रविवार को प्रातः रवि की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर धारण करना चाहिए। मंत्र- ऊँ घृणि सूर्याय नमः लाभ- माणिक्य धारण करने से साहस में वृद्धि होती है। भय, दुःख व अन्य व्याधियों का नाश होता है। नौकरी में उच्चपद व प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। अस्थि विकार व सिर दर्द की समस्या से निजात मिलती है। इस लग्न वाले व्यक्ति यदि मूंगा भी धारण करें तो अत्यंत लाभ देता है। क्योंकि इस लग्न वाले व्यक्ति का मूंगा राजयोग कारक रत्न होता है।
कन्या :- इस लग्न वाले जातकों के लिए अनुकूल रत्न पन्ना है जिसे बुधवार को बुध की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर पहनना चाहिए। मंत्र- ऊँ बुं बुधाय नमः , इस लग्न के लिए पन्ना , हीरा . नीलम रत्न शुभ होता है
तुला :- इस लग्न वाले जातकों के लिए अनुकूल रत्न हीरा तथा राजयोग कारक रत्न नीलम है। हीरा को शुक्ल पक्ष में किसी शुक्रवार को शुक्र की होरा में जाग्रत कर धारण करना चाहिए। मंत्र- ऊँ शुं शुक्राय नमः, हीरा , ओपेल
वृश्चिक :- इस लग्न वाले जातकों का अनुकूल रत्न मूंगा है जिसको शुक्ल पक्ष में किसी मंगलवार को मंगल की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर सोने में अनामिका अंगुली में धारण करना चाहिए। मंत्र- ऊँ भौं भौमाय नमः
धनु: इस लग्न वाले जातकों का अनुकूल रत्न पुखराज है जिसे शुक्ल पक्ष के किसी गुरुवार को प्रातः गुरु की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर धारण करना चाहिए। मंत्र- ऊँ बृं बृहस्पतये नमः लाभ: पुखराज धारण करने से बल, बुद्धि, ज्ञान, यज्ञ व मान-सम्मान में वृद्धि होती है। पुत्र संतान देता है। पापकर्म करने से बचाता है। अजीर्ण प्रदर, कैंसर व चर्मरोग से मुक्ति दिलाता है।
मकर :-इस लग्न वाले जातकों के लिए अनुकूल रत्न नीलम है जिसे शनिवार के दिन प्रातः शनि की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर धारण करना चाहिए। मंत्र- ऊँ शं शनैश्चराये नमः लाभ- नीलम धारण करने से धन, सुख व प्रसिद्धि में वृद्धि करता है। मन में सद्विचार लाता है। संतान सुख प्रदान करता है। वायु रोग, गठिया व हर्निया जैसे रोग में लाभ देता है। नीलम को धारण करने के पूर्व परीक्षण अवश्य करना चाहिए।
नीलम धारण करने से पूर्व कुशल ज्योतिषाचार्य से सलाह अवश्य ले लेनी चाहिए।
कुम्भ :- -इस लग्न वाले जातकों के लिए अनुकूल रत्न नीलम है जिसे शनिवार के दिन प्रातः शनि की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर धारण करना चाहिए। मंत्र- ऊँ शं शनैश्चराये नमः लाभ- नीलम धारण करने से धन, सुख व प्रसिद्धि में वृद्धि करता है।
मीन :- इस लग्न वाले जातकों का अनुकूल रत्न पुखराज है जिसे शुक्ल पक्ष के किसी गुरुवार को प्रातः गुरु की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर धारण करना चाहिए। मंत्र- ऊँ बृं बृहस्पतये नमः
मिथुन, कन्या, वृश्चिक, धनु, कुंभ व मीन लग्न वाले जातक पुखराज धारण कर सकते हैं। वृष, कर्क, सिंह, तुला और मकर लग्न वाले जातक पुखराज धारण न ही करें तो अच्छा है।
मेष लग्न वाले जातकों को भी वर्जित है परंतु यदि गुरु जन्म कुंडली के प्रथम, पंचम व नवम भावस्थ हो तो धारण करें। अच्छा है। जिस कन्या का विवाह न हो रहा हो उसे अवश्य धारण करना चाहिए परंतु उसकी लग्न या राशि, धनु या मीन होनी चाहिए।
रत्न सारणी लग्न स्वामी ग्रह रत्न धातु मित्र रत्न शत्रु रत्न
मेष, वृश्चिक मंगल मूंगा सोना माणिक्य, मोती, पुखराज पन्ना वृष, तुला शुक्र हीरा सोना पन्ना, नीलम माणिक्य, मोती मिथुन, कन्या बुध पन्ना सोना/ कांसा माणिक्य, हीरा मोती कर्क चंद्रमा मोती चांदी माणिक्य, पन्न्ना
सिंह सूर्य माणिक्य सीसा मोती, मूंगा, पुराखराज म ा िण् ा क् य , मोती, मंूगा मकर, कुंभ शनि नीलम लोहा/ सीसा पन्ना, हीरा म ा िण् ा क् य , मोती, मूंगा धनु, मीन गुरु पुखराज सोना/ चांदी मोती, मूंगा, माणिक्य हीरा, नीलम रत्न धारण करने में हाथ का चयन: चिकित्सा शास्त्र की मान्यता है कि पुरुष का दायां हाथ व महिला का बांया हाथ गर्म होता है। इसी प्रकार पुरुष का बांया हाथ व महिला का दांया हाथ ठंडा होता है। रत्न भी अपनी प्रकृति के अनुसार ठंडे व गर्म होते हैं। यदि ठंडे रत्न, ठंडे हाथ में व गर्म रत्न गर्म हाथ में धारण किये जाएं तो आशातीत लाभ होता है। प्रकृति के अनुसार गर्म रत्न पुखराज, हीरा, माणिक्य, मूंगा। प्रकृति के अनुसार ठंडे रत्न मोती, पन्ना, नीलम, गोमेद, लहसुनिया। रत्न मर्यादा- रत्न को धारण करने के बाद उसकी मर्यादा बनायी रखनी चाहिए। अशुद्ध स्थान, दाह-संस्कार आदि में रत्न पहन कर नहीं जाना चाहिए। यदि उक्त स्थान में जाना हो तो उसे उतार कर देव-स्थान में रखना चाहिए तथा पुनः निर्धारित समय में धारण करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि रत्न शुक्ल पक्ष के दिन निर्धारित वार की निर्धारित होरा में धारण किये जाएं। खंडित रत्न कदापि धारण नहीं करना चाहिए।

अनिष्ट निवारक दक्षिणावृत्ति शंख

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अनिष्ट निवारक दक्षिणावृत्ति शंख
दक्षिणावृत्ति शंख कल्प में लिखा है-
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जिस घर में यह शंख रहता है वह कभी भी धन-धान्य से रिक्त नहीं रहता। 
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भगवान विष्णु का आयुध होने के कारण यह अत्यंत मंगलकारी है। 
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जिस परिवार में शास्त्रोक्त उपायों द्वारा इसकी स्थापना की जाती है, वहॉ भूत, प्रेत, पिशाच, ब्रह्मराक्षस द्वारा पहुचाये जा रहे दुर्भिक्षों का स्वतः ही समाधान होने लगता है। 
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शत्रु पक्ष कितना भी बलशाली क्यों न हो इसके प्रभाव से हानि नहीं पहॅुचा पाता।
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इसके प्रभाव से दुर्घटना, मृत्यु भय, चोरी आदि से रक्षा होती है।
दक्षिणावृत्ति शंख की महिमा अनेक प्रमाणिक ग्रंथों में मिलती है।
महाभारत में सभी योद्धाओं ने युद्ध घोष के लिए अलग-अलग शंख बजाये थे। गीता में इस विषय में लिखा है -
श्री कृष्ण भगवान ने पांचजन्य नामक, अर्जुन ने देवदत्त, भीम सेन ने पौंड्र शंख बजाया था। युधिष्ठिर ने अनंत विजय शंख, नकुल ने सुघोष एवं सहदेव ने मणिपुष्पक नामक शंखनाद किया था। पुलस्त्य संहिता में वर्णित है-
लक्ष्मी को प्राप्त करना और उसे स्थाई रुप से निवास देने का एक मात्र प्रयोग दक्षिणावृत्ति शंख प्रयोग ही है, जो कि अपने में आश्चर्यजनक रुप से धन देने में समर्थ है। इसके प्रयोग से ऋण, दरिद्रता तथा रोग आदि मिट जाता है तथा हर प्रकार से संपन्नता आने लगती है। 
विश्वामित्र संहिता में वर्णनन आता है- 
दक्षिणावृत्ति शंख कल्प प्रयोग से जो सफलता मिलती है, वह आश्चर्यजनक रुप से अद्वितीय है। धन वर्षा करने और सुख समृद्धि प्रदान करने में इसकी तो कोई तुलना ही नहीं है। 
गौरक्ष संहिता में लिखा है-
दक्षिणावृत्ति शंख कल्प प्रयोग एक श्रेष्ठ तांत्रिक प्रयोग है। इसका प्रभाव तुरंत तथा अचूक होता है।
मार्कन्डय पुराण के अनुसार -
भगवती लक्ष्मी के सभी प्रयोगों में दक्षिणावृत्ति शंख प्रयोग ही सर्वाधिक प्रमाणिक व धनवर्षा करने में समर्थ है। इसका प्रयोग उज्जवल रत्नों का सागर है। 
लक्ष्मी संहिता में लिखा है-
सभी प्रकार से दरिद्रता, दुःख, अभाव, रोग आदि को मिटाने में दक्षिणावृत्ति कल्प प्रयोग आश्चर्यजनक रुप से सफलता प्रदान करता है। 
विष्णुपुराण के अनुसार-
समुद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में शंख भी एक है। माता लक्ष्मी समुद्र राज की पुत्री तथा शंख उनका सहोदर भाई है। अतः जहां शंख है, वही लक्ष्मी का वास है। स्वर्ग लोक में अष्ट सिद्धियों एवं नवनिधियों में शंख का स्थान महत्वपूर्ण है। 
कहने का तात्पर्य यह है कि शंख को विजय, समृद्धि, सुख, यश, कीर्ति तथा लक्ष्मी का साक्षात प्रतीक माना गया है। धार्मिक कृत्यों, अनुष्ठान-साधना, तांत्रिक क्रियाओं आदि में शंख का प्रयोग सर्वविदित है। परंतु विडम्बना है कि न तो हमें उचित शंख मिल पाते हैं और न ही हम उनका उचित प्रयोग कर पाते हैं। परिणाम स्वरुप हमें वांछित फल भी नहीं मिल पाते हैं। बाजार में आसानी से उपलब्ध किये जा रहे शंख वास्तव में 90 प्रतिशत तक खण्डित होते हैं। इसीलिए उनके सुप्रभाव हम अनुभूत नहीं कर पाते।
शंख अनेक नामों से मिलते हैं। जैसे लक्ष्मी शंख, गौमुखी शंख, कामधेनु शंख, विष्णु शंख, देव शंख, चक्र शंख, पौड्र शंख, शुघोष शंख, मणिपुष्पक शंख, राक्षस शंख, शेषनाग शंख, शनि, राहु, केतु आदि शंख।
आकृति के अनुसार इन्हें तीन श्रेणियों में रखा गया है-
दक्षिणावृत्ति शंख अर्थात् दायें हाथ से पकड़ा जाने वाला, वामावृत्ति अर्थात् वायें हाथ से पकड़ा जाने वाला तथा मध्यावृत्ति अर्थात् बीच में खुले मुह वाला शंख। अपने चमत्कारिक गुणों के कारण दक्षिणावृत्ति तथा मध्यावृत्ति शंख सरलता से नहीं मिल पाते। सौभाग्य से यदि आपको निर्दोष शंख मिल जाए तो उसे किसी शुभ मुहूर्त में गंगा जल, गौघृत, कच्चा दूध, मधु, गुड़ आदि से अभिषेक करके अपने पूजा स्थल में लाल कपड़े के आसन पर स्थापित कर लीजिए। इससे लक्ष्मी का चिर स्थाई निवास बना रहेगा। यदि लक्ष्मी जी की विशेष कृपा के आप अभिलाषी हैं तो दक्षिणावृत्ति शंख का जोड़ अर्थात् नर और मादा दो शंखों को देव प्रतिमा के सम्मुख स्थापित कर लें। 
शंख की विभिन्न प्रजातियों के अनुरुप शास्त्रों में विभिन्न प्रयोजनों की व्याख्या मिलती है। यथा नाम अन्नपूर्णा शंख घर में धन-धान्य की वृद्धि करता है। मणिपुष्पक तथा पांचजन्य शंख से भवन के विभिन्न वास्तु दोषों का निवारण होता है। ऐसे शंख में जल भर कर भवन में छिड़कने से सौभाग्य का आगमन होता है। गणेश शंख में रखा हुआ जल सेवन करने से अनेक रोगों का शमन होता है। विष्णु नामक शंख से कार्य स्थल में छिड़काव करने से उन्नति के अवसर बनने लगते हैं। 
जो साधक दक्षिणावृत्ति शंख कल्प करना चाहते हैं, वह सरल सा यह प्रयोग करके देखें, उनको आशातीत लाभ अवश्य ही मिलेगा।
पूजा सामग्री :
मुख्य सामग्री तो निर्दोष तथा पवित्र शंख ही है। इसके अतिरिक्त शुद्ध घी का दीपक, अगरबत्ती, कुमकुम, केसर, चावल, जल का पात्र, पुष्प, कच्चा दूध, चांदी का वर्क, इत्र, कपूर तथा नैवैध अर्थात् प्रसाद की व्यवस्था पूर्व में करके रख लें। 
पूजन विधि :
शुभ मुहूर्त में प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें। एक पात्र में सामने शंख रख लें। उसे दूध तथा जल से स्नान कराएं। साफ कपड़े से उसे पोंछ कर उस पर चांदी का वर्क लगाएं। घी का दीपक जला कर अगरबत्ती जला लें। दूध तथा केसर मिश्रित घोल से शंख पर श्रींएकाक्षरी मंत्र लिख कर उसे तांबे अथवा चांदी के पात्र में स्थापित कर दें। अब निम्न मंत्र का जप करते हुए इस पर कुमकुम चावल तथा इत्र अर्पित करें। श्वेत पुष्प शंख पर चढ़ा कर प्रसाद भोग के रुप में अर्पित करें।
मंत्र-
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रीधर करस्थायपयोनिधि जाताय श्री। दक्षिणावृत्ति शंखाय ह्रीं श्रीं क्लीं श्रीकराय पूज्याय नमः।।
अब मन, क्रम तथा वचन से शंख का ध्यान करें।
ध्यान मंत्र-
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं दक्षिणावृतशंखाय भगवते विश्वरुपाय सर्वयोगीश्वराय त्रैलोक्यनाथाय सर्वकामप्रदाय सर्वऋद्धि समृद्धि वांछितार्थसिद्धिदाय नमः। ॐ सर्वाभरण भूषिताय प्रशस्यांगोपांगसंयुताय कल्पवृक्षाधः - स्थिताय कामधेनु - चिन्तामणि - नर्वानधिरुपाय चतुर्दशरत्नपरिवृताय महासिद्धि - संहिताय लक्ष्मीदेवतायुताय कृष्णदेवताकर ललिताय- श्री शंखमहानिधये नमः।
ध्यान मंत्र आवाहन मंत्र है अर्थात् स्तुति मंत्र है। इसके साथ 11 माला बीज मंत्र अथवा पांचजन्य गायत्री शंख मंत्र की जपना आवश्यक है। 
बीज मंत्र-
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं दक्षिणमुखाय शंख निधये समुद्रप्रभावय नमः।
शंख गायत्री मंत्र-
ॐ पांचजन्याय विद्महे। पावमानाय धीमहि। तंनः शंखः प्रचोदयात्।
ऋद्धि-सिद्धि तथा सुख-समृद्धि के लिए एक बहुत ही सरल सा प्रयोग है। यदि आपके पास कोई दखिणावृत्ति शंख है तो उसका उपरोक्त ध्यान मंत्र से उसका पूजन कर लें। गायत्री अथवा बीज मंत्र अथवा दोनों मंत्र शंख के सामने बैठ कर जपते रहें। एक मंत्र पूरा होने पर शंख में ठीक अग्नि में सामग्री होम करने की तरह चावल तथा नाग केसर दांये हाथ के अंगूठे तथा मध्यमा तथा अनामिका उंगली से छोड़ते रहें। जब शंख भर जाए तो उसे घर में स्थापित कर लें। ध्यान रखें कि शंख की पूंछ उत्तर-पूर्व दिशा की ओर रहे। किसी शुभ मुहूर्त अथवा दीवाली से पूर्व धन त्रियोदशी के दिन पुराने चावल तथा नागकेसर उपरोक्त विधि से पुनः बदल लिया करें। 
इस प्रकार सिद्ध किया हुआ शंख लाल कपड़े में लपेट कर धन, आभूषण आदि रखने के स्थान पर स्थापित करने से जीवन के हर क्षेत्र में निरंतर श्री की प्राप्ति होने लगती है

दुर्गा सप्तशती पाठ विधि

  दुर्गा सप्तशती दुर्गा सप्तशती पाठ विधि पूजनकर्ता स्नान करके, आसन शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके, शुद्ध आसन पर बैठ जाएँ। माथे पर अपनी पसंद क...