श्रीनाथादिगुरुत्रयं गणपतिं पीठत्रयं भैरवम् ।
सिद्धौघं वटुकत्रयं पदयुगं दूतीक्रमं मण्डलम् ॥
वीरान्द्वयष्टचतुष्कषष्टिनवकं वीरावलीपञ्चकम् । श्रीमन्मालिनिमन्त्रराजसहितं वन्दे गुरोर्मण्डलम् ॥
आदि गुरु भगवान दत्तात्रेय जी महाराज कीनाराम जी से कहे हैं-
"माया अगम अनंत की, पार न पावै कोई।
जो जाने जाके कछु, काया परिचय होई।"
इससे स्पष्ट हैकि माया को जानने का सहज उपाय काया परिचय करना है।
महाराज बाबा कीनाराम जी ने कहा-
"जो ब्रह्माण्ड सो पिंड महँ, सकल पदारथ जानि।
त्रिधा शरीर भेद लै, कारन कारज जानि।।"