त्रैलोक्यमोहन गौरी मन्त्र – माया (हीं), उसके अन्त में ‘नमः’ पद, फिर ‘ब्रह्म श्री राजिते राजपूजिते जय’, फिर ‘विजये गौरि गान्धारि’, फिर ‘त्रिभु’, इसके बाद तोय (व), मेष (न), फिर ‘वशङ्करि’, फिर ‘सर्व’ पद, फिर ससद्यल (लो), फिर ‘क वशङ्करि’, फिर ‘सर्वस्त्री पुरुष के बाद ‘वशङ्करि’, फिर ‘सु द्वय’ (सु सु), दु द्वय (दु दु), घे युग (घे घे), वायुग्म (वा वा), फिर हरवल्लभा (ह्रीं), तथा अन्त में ‘स्वाहा’ लगाने से ६१ अक्षरों का यह मन्त्रराज कहा गया है। मन्त्र – ‘ह्रीं नमः ब्रह्मश्रीराजिते राजपूजिते जयविजये गौरि गान्धारि त्रिभुवनवशङ्करि, सर्वलोकवशङ्करि सर्वस्त्रीपुरुषवशङ्करि सु सु दु दु घे घे वा वा ह्रीं स्वाहा’। इस मन्त्र के अज ऋषि हैं, निचृद् गायत्री छन्द है, त्रैलोक्यमोहिनी गौरी देवता है, माया बीज है एवं स्वाहा शक्ति है । षड्दीर्घयुक्त मायाबीज से युक्त इस मन्त्र के १४, १०, ८, ८, १० एवं ११ अक्षरों से षडङ्गन्यास करना चाहिए । फिर मूलमन्त्र से व्यापक कर त्रैलोक्यमोहिनी का ध्यान करना चाहिए । विनियोग – ‘अस्य श्रीत्रैलोक्यमोहनगौरीमन्त्रस्य अजऋषिर्निचृद्गायत्री छन्दः त्रैलोक्यमोहिनीगौरीदेवता ह्रीं बीजं स्वाहा शक्ति ममाऽभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।’ षडङ्गन्यास – ह्रां ह्रीं नमो ब्रह्मश्रीराजिते राजपूजिते हृदयाय नमः, ह्रीं जयविजये गौरिगान्धारि शिरसे स्वाहा, ह्रूं त्रिभुवनवशङ्करि शिखायै वषट्, ह्रैं सर्वलोक वशङ्करि कवचाय हुं, ह्रौं सर्वस्त्रीपुरुष नेत्रत्रयाय वशङ्कर वौषट्, ह्रः सु सु दु दु घे घे वा वा ह्रीं स्वाहा, अस्त्राय फट्, ह्रीं नमोः ब्रह्मश्रीराजिते राजपूजिते जयविजये गौरिगान्धारि त्रिभुवनवशङ्करि सर्वलोकवशङ्करि सर्वस्त्रीपुरुष वशङ्करि सु सु दु दु घे घे वा वा ह्रीं स्वाहा, सर्वाङ्गे । ॥ ध्यानम् ॥ गीर्वाणसङ्घार्चितपादपङ्कज अरुणप्रभाबालशशाङ्कशेखरा । रक्ताम्बरालेपनपुष्प मुदे सृणिं सपाशं दधती शिवास्तु नः ॥ ॥ आवरण पूजा ॥ केशरों पर षडङ्गपूजा कर अष्टदलों में ब्राह्मी आदि मातृकाओं की, भूपुर में लोकपालों की तथा बाहर उनके आयुधों की पूजा करनी चाहिए । पीठ देवताओं एवं पीठशक्तियों का पूजन कर पीठ पर मूलमन्त्र से देवी की मूर्ति की कल्पना कर आवाहनादि उपचारों से पुष्पाञ्जलि समर्पित कर उनकी आज्ञा से इस प्रकार आवरण पूजा करे । सर्वप्रथम केशरों में षड्ङ्ग मन्त्रों से षडङ्गपूजा करनी चाहिए । यथा – ह्रीं ह्रीं नमो ब्रह्मश्रीराजिते राजपूजिते हृदयाय नमः, ह्रीं जयविजये गौरि गान्धारि शिरसे स्वाहा, ह्रूँ त्रिभुवनवशङ्करि शिखायै वौषट्, ह्रैं सर्वलोकवशङ्करि कवचाय हुम्, ह्रौं सर्वस्त्रीपुरुषवशङ्करि नेत्रत्रयाय वौषट्, ह्रः सु सु दु दु घे घे वा वा ह्रीं स्वाहा अस्त्राय फट् । फिर अष्टदल में पूर्वादि दिशाओं के क्रम से ब्राह्मी आदि का पूजन करनी चाहिए । १. ॐ ब्राह्मयै नमः, पूर्वदले २. ॐ माहेश्वर्यै नमः,आग्नेये ३. ॐ कौमार्यै नमः, दक्षिणे ४. ॐ वैष्णव्यै नमः, नैर्ऋत्ये ५. ॐ वारायै नमः, पश्चिमे ६. ॐ इन्द्राण्यै नमः, वायव्ये ७. ॐ चामुण्डायै नमः, उत्तरे ८. ॐ महालक्ष्म्यै नमः, ऐशान्ये । तत्पश्चात् भूपुर के भीतर अपनी-अपनी दिशाओं में इन्द्रादि दश दिक्पालों की पूजा करनी चाहिए । इन्द्राय नमः पूर्वे, अग्नये नमः आग्नेये, यमाय नमः दक्षिणे, नैर्ऋत्याय नमः नैर्ऋत्ये, वरुणाय नमः पश्चिमे, वायवे नमः वायव्ये, सोमाय नमः उत्तरे, ईशानाय नमः ईशाने, पूर्व ईशान मध्ये ब्रह्मणे, अनंताय नमः पश्चिम नैर्ऋत्ययोर्मध्ये । पुनः भूपुर के बाहर वज्रादि आयुधों की पूजा करनी चाहिए । वज्राय नमः पूर्वे, शक्तये नमः आग्नेये, दण्डाय नमः दक्षिणे, खडगाय नमः नैर्ऋत्ये, पाशाय नमः पश्चिमे, अंकुशाय नमः वायव्ये, गदायै नमः उत्तरे, त्रिशूलाय नमः ऐशान्ये, पद्माय नमः पूर्वेशानयोर्मध्ये, चक्राय नमः पश्चिमनैर्ऋत्ययोर्मध्ये । ॥ काम्य प्रयोग ॥ इस प्रकार आराधना करने से देवी सुख एवं संपत्ति प्रदान करती हैं तिल मिश्रित तण्डुल (चावल), सुन्दर फल, त्रिमधु (घी, मधु, दूध) से मिश्रित लवण और मनोहर लालवर्ण के कमलों से जो व्यक्ति तीन दिन तक हवन करता है, उस व्यक्ति के ब्राह्मणादि सभी वर्ण एक महीने के भीतर वश में हो जाते हैं । सूर्यमण्डल में विराजमान देवी के उक्त स्वरूप का ध्यान करते हुये जो व्यक्ति जप करता है अथवा १०८ आहुतियाँ प्रदान करता है वह व्यक्ति सारे जगत् को अपने वश में कर लेता है । गौरी का अन्य मन्त्र – हंस (स्), अनल (र), ऐकारस्थ शशांकयुत् (ऐं) उससे युक्त नभ (ह्) इस प्रकार ही फिर वायु (य), अग्नि (र) एवं कर्णेन्दु (ऊ) सहित तोय (व्), अर्थात् ‘व्याँ ,’फिर ‘राजमुखि’, ‘राजाधिमुखिवश्य’ के बाद ‘मुखि’, फिर माया (ही) रमा (श्री), आत्मभूत (क्लीं), फिर “देवि देवि महादेवि देवाधिदेवि सर्वजनस्य मुखं” के बाद ‘मम वशं’ फिर दो बार ‘कुरु कुरु’ और इसके अन्त में वह्निप्रिया (स्वाहा) लगाने से अड़तालिस अक्षरों का मन्त्र निष्पन्न होता है ॥ ४२-४३ ॥ मन्त्र – “ह्स्त्रैं व्यरूँ राजमुखि राजाधिमुखि वश्यमुखि ह्रीं श्रीं क्लीं देवि देवि महादेवि देवाधिदेवि सर्वजनस्य मुखं मम वशं कुरु कुरु स्वाहा’ । विनियोग- ‘अस्य श्रीगौरीमन्त्रस्य अजऋषिर्निचृद्गायत्रीछन्दः गौरीदेवता, ह्रीं बीजं स्वाहा शक्तिः ममाखिलकामनासिद्धयर्थे जपे विनियोगः’ । षडङ्गन्यास- ह्रां ह्स्त्रैं व्यरूँ राजमुखिराजाधिमुखि हृदयाय नमः, ह्रीं वश्यमुखि ह्रीं श्रीं क्लीं शिरसे स्वाहा, ह्रूँ देवि देवि शिखायै वषट्, ह्रैं महादेवि कवचाय हुम्, ह्रौं देवाधिदेवि नेत्रत्रयाय वौषट्, ह्रः सर्वजनस्य मुखं मम वशं कुरु कुरु स्वाहा अस्त्राय फट् । ॥ पूजाविधि ॥ देवी के स्वरूप का ध्यान करे । अर्घ्य स्थापन, पीठशक्तिपूजन, देवी पूजन तथा आवरण देवताओं के पूजन का प्रकार पूर्वोक्त है । ॥ वशीकरण मन्त्राः ॥ वशीकरण मन्त्र के पूजन जप होम एवं तर्पण में मूल मन्त्र के ‘सर्वजनस्य’ पद के स्थान पर जिसे अपने वश में करना हो उस साध्य के षष्ठ्यन्त रूप को लगाना चाहिए। सात दिन तक सहस्र-सहस्र की संख्या में संपातपूर्वक (हुतावशेष स्रुवावस्थित घी का प्रोक्षणी में स्थापन) घी से होमकर उस संपात (संव) घृत को साध्य व्यक्ति को पिलाने से वह वश में हो जाता है। ॥ इति त्रैलोक्यमोहन गौरी प्रयोगः ॥
श्री राम ज्योतिष सदन भारतीय ज्योतिष, अंक ज्योतिष पर आधारित जन्मपत्रिका और वर्षफल बनवाने के लिए सम्पर्क करें। अगर आप व्यक्तिगत रूप से या फोन पर एस्ट्रोलॉजर पंडित आशु बहुगुणा से अपनी समस्याओं को लेकर बात करना चाहते हैं।अपनी नई जन्मपत्रिका बनवाना चाहते हैं। या अपनी जन्मपत्रिका दिखाकर उचित सलाह चाहते हैं। मेरे द्वारा निर्धारित फीस/शुल्क अदा कर के आप बात कर सकते हैं। http://shriramjyotishsadan.in/ मोबाइल नं-9760924411 फीस संबंधी जानकारी के लिए- आप--- Whatsapp - message भी कर सकते हैं।-9760924411
Showing posts with label त्रैलोक्यमोहन गौरी प्रयोग. Show all posts
Showing posts with label त्रैलोक्यमोहन गौरी प्रयोग. Show all posts
Friday, 10 September 2021
Subscribe to:
Posts (Atom)
दुर्गा सप्तशती पाठ विधि
दुर्गा सप्तशती दुर्गा सप्तशती पाठ विधि पूजनकर्ता स्नान करके, आसन शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके, शुद्ध आसन पर बैठ जाएँ। माथे पर अपनी पसंद क...
-
ॐ श्री काल भैरव बटुक भैरव शाबर स्तोत्र मंत्र ॐ अस्य श्री बटुक भैरव शाबर स्तोत्र मन्त्रस्य सप्त ऋषिः ऋषयः , मातृका छंदः , श्री बटुक भैरव ...