Saturday 2 April 2022

नवरात्रि में प्रतिदिन दुर्गा के सिद्ध बीज मंत्रों का जप करने का विधान ।

नवरात्रि में प्रतिदिन दुर्गा के सिद्ध बीज मंत्रों का जप करने का विधान ।
ब्राह्म मुहूर्त में 4 बजे से लेकर प्रातः 7 बजे तक इन मंत्रों की जप साधना करने पर ये मंत्र पूर्ण सिद्ध हो जाते हैं। इन मंत्रों को प्रतिदिन 1100 बार रुद्राक्ष या लाल चंदन की माला से ही जप करना चाहिए । नौ दिनों कुल 9 हजार मंत्रों के जप का विधान है।
प्रतिदिन दसवां अंश या जो भी संभव हो,मंत्रों की आहुति का यज्ञ करने चाहिए । यज्ञ करने से जप का फल शीघ्र मिलने लगता हैं। और कुछ ही समय में माता रानी भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी भी कर देती हैं ।

1. शैलपुत्री : ह्रीं शिवायै नम:। 
स्तवन मंत्र-
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
ध्यान-मूलाधार चक्र। 
    शैलपुत्री देवी पार्वती का ही स्वरूप हैं। जो सहज भाव से पूजन करने से शीघ्र प्रसन्न हो जाती हैं। और भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करती हैं। कलश स्थापना के समय पीले वस्त्र पहनें और माँ को (आरोग्यता हेतु गाय के शुद्ध घी का भोग), सफ़ेद मिष्ठान व सफ़ेद पुष्प चढ़ाकर माँ की आरती करें।

2. ब्रह्मचारिणी :  ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:। 
 स्तवन मंत्र-
दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
ध्यान चक्र-स्वाधिष्ठान।
    देवी को पंचामृत से स्नान कराएं, फिर अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर, अर्पित करें। सफेद और सुगंधित फूल, इसके अलावा कमल या गुड़हल का फूल भी देवी मां को चढ़ाएं। (पूर्ण आयु प्राप्ति हेतु मिश्री), सफ़ेद मिठाई से मां का भोग लगाएं आरती करें एवं हाथों में एक फूल लेकर उनका ध्यान करें और प्रार्थना करते हुए मंत्र बोलें।

3. चन्द्रघण्टा :  ऐं श्रीं शक्तयै नम:। 
स्तवन मंत्र-
पिंडजप्रवरारूढा, चंडकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं, चंद्रघंटेति विश्रुता।।
ध्यान चक्र-मणिपुर।
   शुद्ध जल और पंचामृत से स्नान करायें। अलग-अलग तरह के फूल,अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर,अर्पित करें।(धन वैभव आनंद दुखनाश हेतु केसर-दूध से बनी मिठाइयों या खीर का भोग) लगाएं। मां को सफेद कमल,लाल गुडहल और गुलाब की माला अर्पण करें और प्रार्थना करते हुए मंत्र जप करें।

4. कूष्मांडा : ऐं ह्री देव्यै नम:। 
स्तवन मंत्र-
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
ध्यान चक्र-अनाहत।
    नवरात्र में चौथे दिन कलश की पूजा कर माता कूष्मांडा को प्रणाम करें। देवी को पूरी श्रद्धा से फल,फूल, धूप, गंध, भोग चढ़ाएं। पूजन के पश्चात (मनोबल व सद्बुद्धि,उचित निर्णय लेने की क्षमता को विकसित करने हेतु मां कुष्मांडा के दिव्य रूप को मालपुए का भोग) लगाकर किसी भी दुर्गा मंदिर में ब्राह्मणों को इसका प्रसाद देना चाहिए। पूजा के बाद अपने से बड़ों को प्रणाम कर प्रसाद वितरित करें और खुद भी प्रसाद ग्रहण करें।

5. स्कंदमाता : ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:। 
स्तवन मंत्र-
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
ध्यान चक्र-विशुद्ध
     श्रृंगार केस्तवन मंत्र-
चंद्र हासोज्जवलकरा शार्दूलवर वाहना|
कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानवघातिनि|| लिए खूबसूरत रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। स्कंदमाता और भगवान कार्तिकेय की पूजा विनम्रता के साथ करनी चाहिए। पूजा में कुमकुम,अक्षत,पुष्प,फल आदि से पूजा करें। चंदन लगाएं ,माता के सामने घी का दीपक जलाएं।आज के दिन (आरोग्यता एवं सद्बुद्धि हेतु भगवती दुर्गा को केले का भोग) लगाना चाहिए और यह प्रसाद ब्राह्मण को दे देना चाहिए।

6. कात्यायनी : क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:।
स्तवन मंत्र-
चंद्र हासोज्जवलकरा शार्दूलवर वाहना|
कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानवघातिनि||
ध्यान चक्र-आज्ञा।
पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में सुगन्धित पुष्प लेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र का ध्यान करना चाहिए ।माँ को श्रृंगार की सभी वस्तुएं अर्पित करें। (आकर्षण एवं सौंदर्य हेतु मां कात्यायनी को शहद  बहुत प्रिय है। इसलिए इस दिन मां को भोग में शहद अर्पित करें।)देवी की पूजा के साथ भगवान शिव की भी पूजा करनी चाहिए ।

7. कालरात्रि : क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:। 
स्तवन मंत्र-
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।
वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
ध्यान चक्र-ललाट।
   कलश पूजन करने के उपरांत माता के समक्ष  दीपक जलाकर रोली, अक्षत,फल,पुष्प आदि से पूजन करना चाहिए। देवी को लाल पुष्प बहुत प्रिय है। इसलिए पूजन में गुड़हल अथवा गुलाब का पुष्प अर्पित करने से माता अति प्रसन्न होती हैं। मां काली के ध्यान  मंत्र का उच्चारण करें,(संकट से रक्षा हेतु माता को  गुड़ का भोग) लगाएं तथा ब्राह्मण को गुड़ दान करना चाहिए।

8. महागौरी : श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:। 
स्तवन मंत्र-
श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।
ध्यान चक्र- सिर में चोटी के स्थान  पर है, 
     अष्टमी तिथि के दिन प्रात:काल स्नान-ध्यान के पश्चात् कलश पूजन के पश्चात् मां की विधि-विधान से पूजा करें। इस दिन मां को सफेद पुष्प अर्पित करें, मां की वंदना मंत्र का उच्चारण करें। आज के दिन (संतान के बाधा निवारण तता उनके सुख हेतु माँ को नारियल का भोग), हलुआ,पूरी,सब्जी,काले चने एवं नारियल का भोग लगाएं। माता रानी को चुनरी अर्पित करें।अगर आपके घर अष्टमी पूजी जाती है। तो आप पूजा के बाद कन्याओं को भोजन भी करा सकते हैं ये शुभ फल देने वाला माना गया है।

9. सिद्धिदात्री :  ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:। 
स्तवन मंत्र-
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि,
सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।
ध्यान चक्र-पिण्ड (शरीर) से बाहर सूक्ष्म शरीर में ।

     सर्वप्रथम कलश की पूजा करके व उसमें स्थापित सभी देवी-देवताओं का ध्यान करना चाहिए। रोली,मोली,कुमकुम,पुष्प चुनरी आदि से माँ की भक्ति भाव से पूजा करें। (मृत्युभय एवं दुर्घटना से रक्षा हेतु तिल से बनी मिठाई का भोग), हलुआ,पूरी, खीर, चने, नारियल से माता को भोग लगाएं। इसके पश्चात माता के मंत्रो का जाप करना चाहिए। इस दिन नौ कन्याओं को घर में भोजन करना चाहिए। कन्याओं की आयु दो वर्ष से ऊपर और 10 वर्ष तक होनी चाहिए और इनकी संख्या कम से कम 9 तो होनी ही चाहिए। नव-दुर्गाओं में सिद्धिदात्री अंतिम है। तथा इनकी पूजा से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। इस तरह से की गई पूजा से माता अपने भक्तों पर तुरंत प्रसन्न होती है। भक्तों को संसार में धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
विशेष नोट- मां के भोग हेतु जो भी भाग निकाला गया हो वह भाग दक्षिणा सहित मंदिर के पुजारी या किसी ब्राह्मण को अवश्य दीजिए।

 शरीर में कुल कितने कमल हैं और पूर्ण परमात्मा शरीर में कहाँ निवास करता है।
      शरीर में कुल कितने कमल हैं। और पूर्ण परमात्मा शरीर में कहाँ निवास करता है।
शरीर में 108 कमलदल याने कि चक्र माने गए है।

उनमें से 7 प्रमुख है। ऐसे तो 112 चक्र है परन्तु बाकी 4 शरीर के बहार है।

और पूर्ण परमात्मा ऐसे तो पूरे शरीर में है क्युकी वो हर कण में है। तो शरीर के भी हर कण में होंगे। बाकी शास्त्रों की माने तो अज्ञा चक्र से उसके अनुभूति शुरु होती है। और आप सहत्र दल चक्र पर उन्हें पूर्ण रूप से समझने लगते है। तो आप कह सकते है। कि पूर्ण परमात्मा का ज्ञान सहस्त्र दल से होता है। तो वहीं उनका निवास होना चाइए।

और यदि आप शरीर के बहार कहीं पूर्ण परमात्मा को ढूंढ़ रहे है। तो आपको साकार ब्रह्म की अवधारणा को देखना होगा, तो उसके हिसाब से हर त्रिदेव का अपना अपना लोक है। और वह तीनों परमात्मा कहे जा सकते है। वैसे ज्यादातर मनुष्य सदा शिव को परमात्मा मानते है तो वो शिवलोक में रहते है।

 पहले दिन पहनें पीले रंग के वस्त्र
नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है. माना जाता है। कि माता शैलपुत्री को पीला रंग बहुत प्रिय है। इसलिए इस दिन पीले रंग के कपड़े  पहनकर मां की पूजा करने से मां शैलपुत्री प्रसन्न होती हैं।
हरे रंग के वस्त्र धारण करें । दूसरे दिन
नवरात्रि के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना होती है। धार्मिक मान्यता है। कि माता ब्रह्मचारिणी को हरा रंग बेहद पसंद है। इसलिए उनकी चुनरी और श्रंगार भी हरे रंग से किया जाता है। भक्तों को उनकी पूजा हरे रंग के कपड़े पहनकर करनी चाहिए।
मां चंद्रघंटा को प्रिय है। भूरा रंग
नवरात्र के तीसरे दिन मां दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा की जाती है। उन्हें भूरा रंग बहुत भाता है। इसलिए उनका वस्त्र विन्यास भी भूरे रंग के कपड़ों से किया जाता है। भक्तों को नवरात्र के तीसरे दिन भूरे रंग के कपड़े  पहनकर मां की पूजा करनी चाहिए।
चौथे दिन पहनें नारंगी रंग के वस्त्र
चौथे दिन मां कुष्मांडा की आराधना की जाती है। मान्यता है। कि उन्हें नारंगी रंग बहुत प्रिय है। उनकी पूजा के दौरान सारा श्रंगार भी नारंगी रंग के कपड़ों से किया जाता है। इसलिए भक्तों को उनकी पूजा नारंगी रंग के कपड़े पहनकर करनी चाहिए इससे माता प्रसन्न होती हैं।

मां स्कंदमाता को सफेद रंग प्रिय
नवरात्रि के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की आराधना की जाती है। माना जाता है। कि मां स्कंदमाता को सफेद रंग से बेहद लगाव है। इसलिए उनकी पूजा करते हुए भक्तों को सफेद रंग के कपड़े जरूर पहनने चाहिएं. भक्तों को इस श्रद्धा का फल जरूर मिलता है।
छठे दिन धारण करें लाल रंग के कपड़े
नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा का माना जाता है। मान्यता है कि मां कात्यायनी को लाल रंग काफी प्रिय है। इसे देखते हुए उनका श्रंगार भी लाल रंग के कपडों से किया जाता है। भक्तों को भी मां को प्रसन्न करने के लिए छठे दिन लाल रंग के कपड़े पहनने चाहिए।
मां कालरात्रि को पसंद हैं। नीला रंग
सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। उन्हें नीला रंग बहुत प्रिय है। उनकी प्रतिमा के वस्त्रों और पूजा के दूसरे सामानों का रंग भी नीला ही रखा जाता है। भक्तों को उनकी आराधना करते हुए नीले रंग के कपड़े  धारण करने चाहिए।
आठवें दिन पहनें गुलाबी रंग के वस्त्र
नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है। उन्हें गुलाबी रंग से बेहद लगाव माना जाता है। इसलिए उन्हें प्रसन्न करने के लिए नवरात्र के आठवें दिन गुलाबी रंग के कपड़े पहनने चाहिए।
आखिरी दिन पहनें जामुनी रंग के कपड़े  
नवरात्रि के नौवें और आखिरी दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना की जाती है। माना जाता है। कि जामुनी रंग मां सिद्धिदात्री को बहुत भाता है। इसलिए उनकी पूजा करते समय जामुनी रंग के कपड़े  पहनने चाहिए।
9760924411

No comments:

दुर्गा सप्तशती पाठ विधि

  दुर्गा सप्तशती दुर्गा सप्तशती पाठ विधि पूजनकर्ता स्नान करके, आसन शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके, शुद्ध आसन पर बैठ जाएँ। माथे पर अपनी पसंद क...