भैरव जी के प्रादुर्भाव की कथा -
एक बार भगवान शिव के क्रोधित होने पर काल भैरव की उत्पत्ति हुई। इसलिए भैरव भगवान शिव के स्वरूप हैं। मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को भगवान भैरव का प्रादुर्भाव हुआ। काल भैरव ने ब्रह्माजी के उस मस्तक को अपने नाखून से काट दिया जिससे उन्होंने महादेव शिव का आपमान व अनादर किया। तब ब्रह्म हत्या के पाप को को लेकर हुई आकाशवाणी के तहत ही भगवान काल भैरव काशी में स्थापित हो गए थे। मध्यप्रदेश के उज्जैन में भी कालभैरव के ऐतिहासिक मंदिर है, जो बहुत महत्व का है। पुरानी धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान कालभैरव को यह वरदान है कि भगवान शिव की पूजा से पहले उनकी पूजा होगी। इसलिए काशी अथवा उज्जैन दर्शन के समय कालभैरव के मंदिर जाना अनिवार्य है। तभी महाकाल की पूजा का लाभ आपको मिल पाता है। भगवान भैरव के तीन प्रमुख रूप हैं- बटुक भैरव, महाकाल भैरव और स्वर्णाकर्षण भैरव। इनमें से भक्तगण बटुक भैरव की ही सर्वाधिक पूजा करते हैं। तंत्रशास्त्र में अष्ट भैरव का उल्लेख भी मिलता है- असितांग भैरव, रूद्र भैरव, चंद्र भैरव, क्रोध भैरव, उन्मत भैरव, कपाल भैरव, भीषण भैरव और संहार भैरव। भगवान भैरव की साधना में ध्यान का अधिक महत्व है। इसी को ध्यान में रखकर सात्विक, राजसिक व तामसिक स्वरूपों का ध्यान किया जाता है।
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