Wednesday 1 September 2021

तीन प्रमुख स्थान

तीन प्रमुख स्थान 
1. तारापीठ का श्मशान : कोलकाता से 180 किलोमीटर दूर स्थित तारापीठ धाम की खासियत यहां का महाश्मशान है। वीरभूम की तारापीठ (शक्तिपीठ) अघोर तांत्रिकों का तीर्थ है। यहां आपको हजारों की संख्या में अघोर तांत्रिक मिल जाएंगे। तंत्र साधना के लिए जानी-मानी जगह है तारापीठ, जहां की आराधना पीठ के निकट स्थित श्मशान में हवन किए बगैर पूरी नहीं मानी जाती।
कालीघाट को तांत्रिकों का गढ़ माना जाता है
कालीघाट में होती हैं अघोर तांत्रिक सिद्धियां
2. कामाख्या पीठ के श्मशान : कामाख्या पीठ भारत का प्रसिद्ध शक्तिपीठ है, जो असम प्रदेश में है। कामाख्या देवी का मंदिर गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से 10 किलोमीटर दूर नीलांचल पर्वत पर स्थित है। प्राचीनकाल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र-सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है। कालिका पुराण तथा देवीपुराण में 'कामाख्या शक्तिपीठ' को सर्वोत्तम कहा गया है और यह भी तांत्रिकों का गढ़ है।
3. रजरप्पा का श्मशान : रजरप्पा में छिन्नमस्ता देवी का स्थान है। रजरप्पा की छिन्नमस्ता को 52 शक्तिपीठों में शुमार किया जाता है लेकिन जानकारों के अनुसार छिन्नमस्ता 10 महाविद्याओं में एक हैं। उनमें 5 तांत्रिक और 5 वैष्णवी हैं। तांत्रिक महाविद्याओं में कामरूप कामाख्या की षोडशी और तारापीठ की तारा के बाद इनका स्थान आता है।
4. चक्रतीर्थ का श्मशान : मध्यप्रदेश के उज्जैन में चक्रतीर्थ नामक स्थान और गढ़कालिका का स्थान तांत्रिकों का गढ़ माना जाता है। उज्जैन में काल भैरव और विक्रांत भैरव भी तांत्रिकों का मुख्य स्थान माना जाता है।
सभी 52 शक्तिपीठ तो तांत्रिकों की सिद्धभूमि हैं ही इसके अलावा कालिका के सभी स्थान, बगलामुखी देवी के सभी स्थान और दस महाविद्या माता के सभी स्थान को तांत्रिकों का गढ़ माना गया है। कुछ कहते हैं कि त्र्यम्बकेश्वर भी तांत्रिकों का तीर्थ है।

तंत्र समस्या समाधान

तंत्र समस्या समाधान
कई बार इंसान एसी परेसानियो और रोग व्याधियो से घिर जाता है जिसका उसे कोई समाधान नज़र नहीं आता है |परेशानी चाहे शारीरिक हो या मानसिक हो उसका कारण कुछ भी हो सकता है |कई बार हम उस कारन को समझ नहीं पाते और लाखो रुपया दवाओ में फूक देते है और कोई हल नहीं पाते है |कुछ परेसानिया जैसे शरीर में खाना पीना न लगना, मानसिक विचिलिता ,घर में अशांति, पति पत्नी का झगड़ा ,या किसी का कुछ करवा के घर परिवार को संकट में डाल देना, या कोई नज़र दोष बाधा, विवाह में आ रही परेशानी या विवाह का न होना ,इन सब परेसानियो का कारण कुछ भी हो सकता है |आपकी कोई भी परेशानी हो आप हमसे बात करके उस समस्या का समाधान पाए और अपना जीवन सुखी बनाये | धन्यवाद

कुमारीस्तवः(अति गोपनीय)

कुमारीस्तवः(अति गोपनीय)
आनन्दभैरव उवाच
देवेन्द्रादय इन्दुकोटिकिरणां वाराणसीवसिनीं 
विद्यां वाग्भवकामिनीं त्रिनयनां सूक्ष्मक्रियाज्वलिनीम् ।
चण्डोद्योगनिकृन्तिनीं त्रिजगतां धात्रीं कुमारी वरां
मूलाम्भोरुहवासिनीं शशिमुखीं सम्पूजयामि श्रिये ॥१५॥
भाव्यां देवगणैः शिवेन्द्रयतिभिर्मोक्षार्थिभिर्वलिकां
सन्ध्यां नित्यगुणोदया द्विजगणे श्रेष्ठोदयां सारुणाम् ।
शुक्लाभां परमेश्वरीं शुभकरी भद्राम विशालाननां 
गायत्रीं गनमातरं दिनगति कृष्णाञ्च वृध्दां भजे ॥१६॥
बालां बालकपूजितां गनभृतां विद्यावताम मोक्षदां
धात्रीम शुक्लसरस्वतीं नववरा वाग्वादिनीं चण्डिकाम् ।
स्वाधिष्ठाननहरिप्रियां प्रियकरीं वेदान्तविद्याप्रदां
नित्यं मोक्षाहिताय योगवपुषा चैतन्यरुपां भजे ॥१७॥
नानारत्नसमूहनिर्मितगृहे पूज्यां सूरैर्बालिकां 
वन्दे नन्दनकानने मनसिजे सिद्धान्तबीजानने ।
अर्थं देहि निरर्थकाय पुरुषे हित्वा कुमारीं कलाम् 
सत्यं पातु कुमारिके त्रिविधमूर्त्या च तेजोमयीम् ॥१८॥
वरानने सकलिका कुलपथोल्लासैकबीजोद्वहां
मांसामोदकरालिनीं हि भजतां कामातिरिक्तप्रदाम् ।
बालोऽहं वटुकेश्वरस्य चरनाम्भोजाश्रितोऽहं सदा
हित्वा बालकुमारिके शिरसि शुक्लम्भोरुहेशं भजे ॥१९॥
सूर्याहलाद्वलाकिनी कलिमहापापादितापापहा
तेजोऽङा भुवि सूर्यगां भयहरां तेजोमयीं बालिकाम् ।
वन्दे ह्रत्कमले सदा रविदले वालेन्द्रविद्याम सतीं 
साक्षात् सिद्धिकरीं कुमारि विमलेऽन्वासाद्यं रुपेश्वरीम् ॥२०॥
नित्यं श्रीकुलकामिनीं कुलवतीं कोलामुमामम्बिकां
ननायोगानिवसिनीं सुरमणीं नित्याम तपस्यान्विताम् ।
वेदान्तार्थविशेषदेशवसना भाषाविशेषस्थितां
वन्दे पर्वतराजराजतनयां कालप्रियो त्वामकम् ॥२१॥
कौमारीं कुलमामिनीं रिपुगणक्षोभाग्निसन्दोहिनीं
रक्ताभानयनां शुभाम परममार्गमुक्तिसंज्ञाप्रदाम् ।
भार्या भागवतीं मति भुवनमामोदपञ्चाननां
पञ्चास्यप्रियकामिनीं भयहरां सर्पदिहारां भजे ॥२२॥
चन्द्रास्यां चरणद्वयाम्बुजमहाशोभाविनोदीं नदीं
मोहादिक्षयकारिणीं वरकराम श्रीकुब्जिका सुन्दरीम् ।
ये नित्यं परिपूजयन्ति सह्सा राजेन्द्रचूडामणिं 
सम्पादं धनमायुषो जनयतो व्यांप्येश्चरत्वं जगुः ॥२३॥
योगीशं भुवनेश्वरं प्रियकरं श्रीकालसन्दर्भया
शोभासागरगामिनं हरभवं वाञ्छाफलोद्दीपनम् ।
लोकानामघनाशनाय शिवया श्रीसंज्ञया विद्यया
धर्मप्राणसदैवतां प्रणमतां कल्पद्रुमं भावये ॥२४॥
विद्यां तामराजितां मदन भावमोदमत्ताननां
ह्रत्पद्मस्थितपादुकां कुलकलां कात्यायनीं भैरवीम् ।
ये ये पुण्यधियो भजन्ति परमानन्दाब्धिमध्ये मुदा 
सर्व्वाच्छापितेजसा भयकरी मोक्षाय सङ्कीर्तये ॥२५॥
रुद्राणीं प्रणमामि पद्मवदनां कोट्यर्कतेजोमयीं
नानालङ्भूषणां कुलभुजामानन्दयिनीम् ।
श्री मायाकमलान्विता ह्रदिगतां सन्तानबीजक्रियां
आनन्दैकनिकेतनां ह्रदि भजे साक्षादलब्धामहम् ॥२६॥
नमामि वरभैरवीं क्षितितलाद्यकालानलां
मृणालसुकुमारारुणां भुवनदोषसंशोधिनीम्।
जगद्भयहराम हरां हरति या च योगेश्वरी
महापदसहस्त्रकम् सकलभोगदान्तामहम् ॥२७॥
साम्राज्यं प्रददाति याचितवती विद्या महालक्षणा
साक्षादष्टासमृद्धिदातरि महालक्ष्मीः कुलक्षोभहा ।
स्वाधिष्ठानसुपङ्कजे विवसितां विष्णोरनन्तप्रिये
वन्दे राजपदप्रदाम शुभकरीं कौलश्वरीं कौलिकीम् ॥२८॥
पीठानामधिपाधिपाम् असुवहां विद्यां शुभां नायिकां
सर्वालङ्करनान्विताम त्रिजगतां क्षोभापहां वारुणीं ।
वन्दे पीठनायिका त्रिभुवनच्छायाभिराच्छादितां 
सर्वेषां हितकारिणीं जयवतामन्दरुपेश्वरीम् ॥२९॥
क्षेत्रज्ञां मदविहवलां कुलवतीं सिद्धिप्रियां प्रेयसीम् ।
शम्भोः श्री वटुकेश्वरस्य महतामनन्दसञ्चारिणीम् ॥३०॥
साक्षादात्मपरोद्गमां कमलमध्यसंभाविनीं 
शिरो दशशते दलेऽमृतमहाब्धिधाराधराम् ।
निजमनः क्षोभापहां शाकिनीम्
बाह्यर्थ प्रकटामहं रजतभा वन्दे महाभैरवीम् ॥३१॥ 
प्रणामफलदायिनीं सकलबाह्यवश्यां गुणां
नमामि परमम्बिकां विषयदोषसंहारिणीम् ।
सम्पूर्णाविधुवन्मुखीं कमलमध्यसम्भाविनीं
शिरो दशशते दलेऽमृतमहाब्धिधाराधराम् ॥३२॥
साक्षादहं त्रिभुवनामृतपूर्णदेहां
सन्ध्यादि देवकमलां कुलपण्डितेन्द्राम् ।
नत्वा भजे दशशते दलमध्यमध्ये 
कौलेश्वरीं सकलदिव्यजनाश्रयां ताम् ॥३३॥
विश्वेश्वरीं स्वरकुले वरबालिके त्वां
सिद्धासने प्रतिदिनं प्रणमामि भक्त्या ।
भक्तिं धनं जयपदं यदि देहि दास्यं
तस्मिन् महाधुमतीं लघुनाहताः स्यात् ॥३४॥
एतत्स्तोत्रप्रसादेन कविता वाक्पतिर्भवेत् ।
महासिद्धीश्वरो दिव्यो वीरभावपरायणः ॥३५॥
सर्वत्र जयमाप्नोति स हि स्याद् देववल्लभः ।
वाचामीशो भवेत् क्षिप्रं कामरुपो भवेन्नरः ॥३६॥
पशुरेव महावीरो दिव्यो भवति निश्चितम् ।
सर्वविद्याः प्रसीदन्ति तुष्टाः सर्वे दिगीश्वराः ॥३७॥
वहिनः शीतलतां याति जलस्तम्भं स कारयेत् ।
धनवान् पुत्रवान राजा इह काले भवेन्नरः ॥३८॥
परे च याति वैकुण्ठे कैलासे शिवसन्निधौ ।
मुक्तिरेव महादेव यो नित्यं सर्वदा पठेत् ॥३९॥
महाविद्यापदाम्भोजं स हि पश्यति निश्चितम् ।

सुख-शान्ति-दायक महा-लक्ष्मी महा-मन्त्र प्रयोग

सुख-शान्ति-दायक महा-लक्ष्मी महा-मन्त्र प्रयोग

विनियोगः-

ॐ अस्य श्रीपञ्च-दश-ऋचस्य श्री-सूक्तस्य श्रीआनन्द-कर्दम-चिक्लीतेन्दिरा-सुता ऋषयः, अनुष्टुप्-वृहति-प्रस्तार-पंक्ति-छन्दांसि, श्रीमहालक्ष्मी देवताः, श्रीमहा-लक्ष्मी-प्रसाद-सिद्धयर्थे राज-वश्यार्थे सर्व-स्त्री-पुरुष-वश्यार्थे महा-मन्त्र-जपे विनियोगः।

ऋष्यादि-न्यासः-

श्रीआनन्द-कर्दम-चिक्लीतेन्दिरा-सुता ऋषिभ्यो नमः शिरसि। अनुष्टुप्-वृहति-प्रस्तार-पंक्ति-छन्दोभ्यो नमः मुखे। श्रीमहालक्ष्मी देवताय नमः हृदि। श्रीमहा-लक्ष्मी-प्रसाद-सिद्धयर्थे राज-वश्यार्थे सर्व-स्त्री-पुरुष-वश्यार्थे महा-मन्त्र-जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे।

कर-न्यासः-

ॐ हिरण्मय्यै अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ चन्द्रायै तर्जनीभ्यां स्वाहा। ॐ रजत-स्त्रजायै मध्यमाभ्यां वषट्। ॐ हिरण्य-स्त्रजायै अनामिकाभ्यां हुं। ॐ हिरण्य-स्त्रक्षायै कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्। ॐ हिरण्य-वर्णायै कर-तल-करपृष्ठाभ्यां फट्।

अंग-न्यासः-

ॐ हिरण्मय्यै नमः हृदयाय नमः। ॐ चन्द्रायै नमः शिरसे स्वाहा। ॐ रजत-स्त्रजायै नमः शिखायै वषट्। ॐ हिरण्य-स्त्रजायै नमः कवचाय हुं। ॐ हिरण्य-स्त्रक्षायै नमः नेत्र-त्रयाय वौषट्। ॐ हिरण्य-वर्णायै नमः अस्त्राय फट्।

ध्यानः-

ॐ अरुण-कमल-संस्था, तद्रजः पुञ्ज-वर्णा,
कर-कमल-धृतेष्टा, भीति-युग्माम्बुजा च।
मणि-मुकुट-विचित्रालंकृता कल्प-जालैर्भवतु-
भुवन-माता सततं श्रीः श्रियै नः।।

मानस-पूजनः-

ॐ लं पृथ्वी तत्त्वात्वकं गन्धं श्रीमहा-लक्ष्मी-प्रीतये समर्पयामि नमः।
ॐ हं आकाश तत्त्वात्वकं पुष्पं श्रीमहा-लक्ष्मी-प्रीतये समर्पयामि नमः।
ॐ यं वायु तत्त्वात्वकं धूपं श्रीमहा-लक्ष्मी-प्रीतये घ्रापयामि नमः।
ॐ रं अग्नि तत्त्वात्वकं दीपं श्रीमहा-लक्ष्मी-प्रीतये दर्शयामि नमः।
ॐ वं जल तत्त्वात्वकं नैवेद्यं श्रीमहा-लक्ष्मी-प्रीतये निवेदयामि नमः।
ॐ सं सर्व-तत्त्वात्वकं ताम्बूलं श्रीमहा-लक्ष्मी-प्रीतये समर्पयामि नमः।

।।महा-मन्त्र।।

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ हिरण्य-वर्णां हरिणीं, सुवर्ण-रजत-स्त्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आवह।।१
दारिद्रय-दुःख-भय हारिणि का त्वदन्या, सर्वोपकार-करणाय सदाऽऽर्द्र-चित्ता।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
तां म आवह जात-वेदो, लक्ष्मीमनप-गामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम्।।२
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
अश्वपूर्वां रथ-मध्यां, हस्ति-नाद-प्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुपह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम्।।३
दारिद्रय-दुःख-भय हारिणि का त्वदन्या, सर्वोपकार-करणाय सदाऽऽर्द्र-चित्ता।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महा-लक्ष्म्यै नमः।
ॐ दुर्गे, स्मृता हरसि भीतिमशेष-जन्तोः, स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव-शुभां ददासि।।
कांसोऽस्मि तां हिरण्य-प्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीं।
पद्मे स्थितां पद्म-वर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्।।४
दारिद्रय-दुःख-भय हारिणि का त्वदन्या, सर्वोपकार-करणाय सदाऽऽर्द्र-चित्ता।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महा-लक्ष्म्यै नमः।
ॐ दुर्गे, स्मृता हरसि भीतिमशेष-जन्तोः, स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव-शुभां ददासि।।
चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देव-जुष्टामुदाराम्।
तां पद्म-नेमिं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणोमि।।५
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
आदित्य-वर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽक्ष बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः।।६
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
उपैतु मां दैव-सखः, कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्, कीर्ति वृद्धिं ददातु मे।।७
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
क्षुत्-पिपासाऽमला ज्येष्ठा, अलक्ष्मीर्नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वान् निर्णुद मे गृहात्।।८
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
गन्ध-द्वारां दुराधर्षां, नित्य-पुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्व-भूतानां, तामिहोपह्वये श्रियम्।।९
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
मनसः काममाकूतिं, वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य, मयि श्रीः श्रयतां यशः।।१०
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
कर्दमेन प्रजा-भूता, मयि सम्भ्रम-कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले, मातरं पद्म-मालिनीम्।।११
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
आपः सृजन्तु स्निग्धानि, चिक्लीत वस मे गृहे।
निच-देवी मातरं श्रियं वासय मे कुले।।१२
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं, सुवर्णां हेम-मालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो ममावह।।१३
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं, पिंगलां पद्म-मालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो ममावह।।१४
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
तां म आवह जात-वेदो लक्ष्मीमनप-गामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरूषानहम्।।१५
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा, जुहुयादाज्यमन्वहम्।
श्रियः पंच-दशर्चं च, श्री-कामः सततं जपेत्।।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।

।।स्तुति-पाठ।।

।।ॐ नमो नमः।।

पद्मानने पद्मिनि पद्म-हस्ते पद्म-प्रिये पद्म-दलायताक्षि।
विश्वे-प्रिये विष्णु-मनोनुकूले, त्वत्-पाद-पद्मं मयि सन्निधत्स्व।।

पद्मानने पद्म-उरु, पद्माक्षी पद्म-सम्भवे।
त्वन्मा भजस्व पद्माक्षि, येन सौख्यं लभाम्यहम्।।

अश्व-दायि च गो-दायि, धनदायै महा-धने।
धनं मे जुषतां देवि, सर्व-कामांश्च देहि मे।।

पुत्र-पौत्र-धन-धान्यं, हस्त्यश्वादि-गवे रथम्।
प्रजानां भवति मातः, अयुष्मन्तं करोतु माम्।।

धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः।
धनमिन्द्रा वृहस्पतिर्वरुणो धनमश्नुते।।

वैनतेय सोमं पिब, सोमं पिबतु वृत्रहा।
सोमं धनस्य सोमिनो, मह्मं ददातु सोमिनि।।

न क्रोधो न च मात्सर्यं, न लोभो नाशुभा मतीः।
भवन्ती कृत-पुण्यानां, भक्तानां श्री-सूक्तं जपेत्।।

विधिः-

उक्त महा-मन्त्र के तीन पाठ नित्य करे। 'पाठ' के बाद कमल के श्वेत फूल, तिल, मधु, घी, शक्कर, बेल-गूदा मिलाकर बेल की लकड़ी से नित्य १०८ बार हवन करे। ऐसा ६८ दिन करे। इससे मन-वाञ्छित धन प्राप्त होता है।

हवन-मन्त्रः- 

"ॐ श्रीं ह्रीं महा-लक्ष्म्यै सर्वाभीष्ट सिद्धिदायै स्वाहा।"


सोलह कला

सोलह कला
श्रीराम बारह और भगवान कृष्ण सोलह कलाओं के स्वामी माने गए हैं …
भगवान श्रीकृष्ण के बारे में कहा जाता था कि वह संपूर्णावतार थे और मनुष्य में निहित सभी सोलह कलाओं के स्वामी थे। यहां पर कला शब्द का प्रयोग किसी ‘आर्ट’ के संबंध में नहीं किया गया है बल्कि मनुष्य में निहित संभावनाओं की अभिव्यक्ति के स्तर के बारे में किया गया है। श्रीराम बारह और भगवान कृष्ण सोलह कलाओं से युक्त थे। श्रीकृष्ण जी में ही ये सारी खूबियां समाविष्ट थीं। इन सोलह कलाओं और उन्हें धारण करने वाले का विवरण इस तरह का है -

1. श्री संपदा : श्री कला से संपन्न व्यक्ति के पास लक्ष्मी का स्थायी निवास होता है। ऐसा व्यक्ति आत्मिक रूप से धनवान होता है। ऐसे व्यक्ति के पास से कोई खाली हाथ वापस नहीं आता। इस कला से संपन्न व्यक्ति ऐश्वर्यपूर्ण जीवनयापन करता है।

2. भू संपदा : जिसके भीतर पृथ्वी पर राज करने की क्षमता हो तथा जो पृथ्वी के एक बड़े भू-भाग का स्वामी हो, वह भू कला से संपन्न माना जाता है।

3. कीर्ति संपदा : कीर्ति कला से संपन्न व्यक्ति का नाम पूरी दुनिया में आदर सम्मान के साथ लिया जाता है। ऐसे लोगों की विश्वसनीयता होती है और वह लोककल्याण के कार्यों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं।

4. वाणी सम्मोहन : वाणी में सम्मोहन भी एक कला है। इससे संपन्न व्यक्ति की वाणी सुनते ही सामने वाले का क्रोध शांत हो जाता है। मन में प्रेम और भक्ति की भावना भर उठती है।

5. लीला : पांचवीं कला का नाम है लीला। इससे संपन्न व्यक्ति के दर्शन मात्र से आनंद मिलता है और वह जीवन को ईश्वर के प्रसाद के रूप में ग्रहण करता है।

6. कांतिः जिसके रूप को देखकर मन अपने आप आकर्षित हो जाता हो, जिसके मुखमंडल को बार-बार निहारने का मन करता हो, वह कांति कला से संपन्न होता है।

7. विद्याः सातवीं कला का नाम विद्या है। इससे संपन्न व्यक्ति वेद, वेदांग के साथ ही युद्घ, संगीत कला, राजनीति एवं कूटनीति में भी सिद्घहस्त होते हैं।

8. विमलाः जिसके मन में किसी प्रकार का छल-कपट नहीं हो और जो सभी के प्रति समान व्यवहार रखता हो, वह विमला कला से संपन्न माना जाता है।

9. उत्कर्षिणि शक्तिः इस कला से संपन्न व्यक्ति में लोगों को कर्म करने के लिए प्रेरित करने की क्षमता होती है। ऐसे व्यक्ति में इतनी क्षमता होती है कि वह लोगों को किसी विशेष लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रेरित कर सकता है।

10. नीर-क्षीर विवेक : इससे संपन्न व्यक्ति में विवेकशीलता होती है। ऐसा व्यक्ति अपने विवेक से लोगों का मार्ग प्रशस्त कर सकने में सक्षम होता है।

11. कर्मण्यताः इस कला से संपन्न व्यक्ति में स्वयं कर्म करने की क्षमता तो होती है। वह लोगों को भी कर्म करने की प्रेरणा दे सकता है और उन्हें सफल बना सकता है।

12. योगशक्तिः इस कला से संपन्न व्यक्ति में मन को वश में करने की क्षमता होती है। वह मन और आत्मा का फर्क मिटा योग की उच्च सीमा पा लेता है।

13. विनयः इस कला से संपन्न व्यक्ति में नम्रता होती है। ऐसे व्यक्ति को अहंकार छू भी नहीं पाता। वह सारी विद्याओं में पारंगत होते हुए भी गर्वहीन होता है।

14. सत्य-धारणाः इस कला से संपन्न व्यक्ति में कोमल-कठोर सभी तरह के सत्यों को धारण करने की क्षमता होती है। ऐसा व्यक्ति सत्यवादी होता है और जनहित और धर्म की रक्षा के लिए कटु सत्य बोलने से भी परहेज नहीं करता।

15. आधिपत्य : इस कला से संपन्न व्यक्ति में लोगों पर अपना प्रभाव स्थापित करने का गुण होता है। जरूरत पड़ने पर वह लोगों को अपने प्रभाव की अनुभूति कराने में सफल होता है।

16. अनुग्रह क्षमताः इस कला से संपन्न व्यक्ति में किसी का कल्याण करने की प्रवृत्ति होती है। वह प्रत्युपकार की भावना से संचालित होता है। ऐसे व्यक्ति के पास जो भी आता है, वह अपनी क्षमता के अनुसार उसकी सहायता करता है।

हमारे ग्रंथों में अब तक हुए अवतारों का जो विवरण है उनमेंश्री राम ने बारह कलाओं के साथ अवतार लिया था।
भगवान श्रीकृष्ण ही सोलह कलाओं के स्वामी माने जाते हैं।

भूत-प्रेत ,वायव्य बाधा और तांत्रिक अभिचार से मुक्ति के उपाय

भूत-प्रेत ,वायव्य बाधा और तांत्रिक अभिचार से मुक्ति के उपाय और तांत्रिक अभिचार से मुक्ति के उपाय

भूत-प्रेत-चुड़ैल जैसी समस्याओं से व्यक्ति अथवा परिवार के सहयोग से मुक्ति पायी जा सकती है ,किन्तु उच्च स्तर की शक्तियां सक्षम व्यक्ति ही हटा सकता है ,कुछ शक्तियां ऐसी होती हैं की अच्छे अच्छे साधक के छक्के छुडा देती हैं और उनके तक के लिए जान के खतरे बन जाती है ,ऐसे में केवल श्मशान साधक अथवा बेहद उच्च स्तर का साधक ही उन्हें हटा या मना सकता है ,किन्तु यहाँ समस्या यह आती है की इस स्तर का साधक सब जगह मिलता नहीं ,उसे सांसारिक लोगों से मतलब नहीं होता या सांसारिक कार्यों में रूचि नहीं होती ,पैसे आदि का उसके लिए महत्व नहीं होता या यदि वह सात्विक है तो इन आत्माओं के चक्कर में पना नहीं चाहता ,क्योकि इसमें उसकी उस शक्ति का खर्च होता है जो वह अपनी मुक्ति के लिए अर्जन कर रहा होता है .

भूत-प्रेत चुड़ैल जैसी समस्याओं को कौवा तंत्र के प्रयोग से हटाया जा सकता है किन्तु यह जानकार साधक ही कर सकता है ,प्रेत अथवा पिशाच-पिशाचिनी साधक भी इन्हें हटा सकता है ,अच्छा तांत्रिक भी इन्हें हटा सकता है ,देवी साधक,हनुमान-भैरव साधक इन्हें हटा सकता है ,किन्तु उच्च शक्तिया केवल उच्च साधक ही हटा सकता है,इन्हें देवी[दुर्गा-काली-बगला आदि महाविद्या ]साधक ,भैरव-हनुमान साधक ,श्मशान साधक ,अघोर साधक ,रूद्र साधक हटा सकता है , .
कुछ क्रियाएं इन समस्याओं पर अंकुश लगाती हैं ,पर यहाँ भी योग्य का मार्गदर्शन आवश्यक होता है ,फिर भी प्रसंगवश कुछ क्रियाएं निम्न हैं

[१]भूत-प्रेत ग्रस्त व्यक्ति को हरसिंगार की जड़ के साथ घोड़े की नाल धारण कराने से लाभ होता है
.
[२]भूत ग्रस्त व्यक्ति के सामने उल्लू का मांस जलाने से उसे राहत मिलती है .

[३]नागदमन के पत्ते के साथ सियार के बाल को टोना टोटका ग्रस्त व्यक्ति के ऊपर से उतार कर अग्नि में डालने से उसे लाभ होता है .

[४]नागदमन और अपामार्ग की जड़ को धारण करने से बाधा में लाभ होता है .

[५]रविपुष्य में निकली और अभिमंत्रित श्वेतार्क की जड़ धारण करने से भूत-प्रेत बाधा दूर होती है .

[६]भूत-प्रेत ग्रस्त व्यक्ति के सामने गुडमार के सूखे पत्तों की धूनी जलाने से उसे लाभ होता है .

[७]कटहल की ज धारण करने से टोन से बचाव होता है .
[८]महानिम्ब की जड़ धारण करने से भूत-प्रेत से सुरक्षा होती है .

[९]गरुड़ वृक्ष के ९ इंच के बराबर की लकड़ी को ९ बराबर हिस्सों में काटकर ९ सूअर के दांत के साथ अलग अलग घर के चारो और जमीन में ठोंक देने से घर में भूतों का उपद्रव शांत हो जाता है .

[१०]मंत्र सिद्ध सूअर दांत को व्यक्ति के पुराने कपडे में लपेटकर बहते पानी में छोड़ देने से भूत-प्रेत की पीड़ा शांत होती है .

[११]भालू के बालों की धूनी देने से भूत-प्रेत दूर होते हैं .

[१२]टिटहरी के पंख को बढ़ा ग्रस्त व्यक्ति पर से उतारकर जलाने से भूत-प्रेत से राहत मिलती है .

[१३]दक्षिणमुखी हनुमान जी के दाहिने पैर पर लगे सिन्दूर के तिलक से भूत-प्रेत बाधा में राहत मिलती है .

[१४]तुलसी-कालीमिर्च-सहदेई की जड़ धारण करने से भूत बाधा में राहत मिलती है .

[१५]सफ़ेद घुंघुची की जड़ या काले धतूरे की जड़ धारण कराने से ऐसी पीड़ा दूर होती है .,,

उपरोक्त प्रयोगों को बिना उचित मार्गदर्शन के खुद करने से यथा संभव बचें ,क्योकि अगर आपके उपाय की शक्ति कम हुई और वायव्य बाधा की शक्ति अधिक हुई तो वह चिढ़कर अथवा कुपित होकर अधिक नुकसान कर सकती है अथवा कष्ट दे सकती है |इन प्रयोगों में शक्ति संतुलन का बहुत महत्व होता है |उपरोक्त प्रयोगों के अतिरिक्त अन्य कई प्रकार के प्रयोग और उतारे होते हैं जिनसे ऐसी समस्याओं से मुक्ति मिलती है ,साधक मंत्र और तंत्र प्रयोग से ऐसे समस्याओं से मुक्ति दिलाते है .

बजरंग बाण का पाठ ,सुदर्शन कवच ,दुर्गा कवच,काली सहस्त्रनाम ,बगला सहस्त्रनाम ,काली कवच, बगला कवच, आदि के पाठ से इनके प्रभाव पर अंकुश लगता है ,उग्र शक्तियों की आराधना इनके प्रभाव को रोकती है ,बगला अनुष्ठान ,शतचंडी यज्ञ ,काली अनुष्ठान ,बगला प्रत्यंगिरा ,काली प्रत्यंगिरा,गायत्री हवन ,महामृत्युंजय हवन से इनसे मुक्ति पायी जा सकती है ,सिद्ध साधक द्वारा बनाई यन्त्र -ताबीज आदि से इनके प्रभाव को रोका भी जा सकता है और मुक्ति भी पायी जा सकती है ,यद्यपि अनेक प्रकार के टोटके इन शक्तियों पर उपयोग किये जाते हैं पर यह कम शक्तिशाली प्रभावों पर ही अधिक प्रभावी होते हैं ,उच्च शक्तियों पर इनका बहुत प्रभाव नहीं पड़ता कुछ अंकुश अवश्य हो सकता है
,कभी-कभी कुछ छोटे टोटके जिनका इन पर बहुत प्रभाव न पड़े इन्हें और अधिक उग्र भी कर देते है अतः सावधानी और उपयुक्त मार्गदर्शन आवश्यक होता है ,

सबसे बेहतर तो यही होता है की यदि इस प्रकार की कोई समस्या हो तो किसी अच्छे जानकार व्यक्ति को दिखाया जाए ,किन्तु यदि कोई बेहतर जानकार न मिले या आसपास न हो अथवा आसपास के कम जानकारों से न लाभ मिल पा रहा हो तो ,किसी उच्च स्तर के साधक से संपर्क करना चाहिए ,यदि वह पीड़ित तक न जाए तो पीड़ित को वहां ले जाएँ ,यह भी न हो सके तो साधक से यन्त्र- ताबीज बनवाकर पीड़ित को धारण करवाए ,,यदि पीड़ित करने वाली शक्ति कम शक्तिशाली होगी तो तुरंत हट जायेगी नहीं तो उसके प्रभाव में कमी तो आ ही जायेगी ,उसे व्यक्ति को प्रभावित करने में तो दिक्कत आएगी ही ,,यंत्रो-ताबीजो से निकलने वाली तरंगे और सकारात्मक ऊर्जा से उस नकारात्मक शक्ति को कष्ट होता है ,कभी कभी यह ताबीज उतारने या हटवाने का भी प्रयास करते हैं

,,यह क्रिया उसी प्रकार की है की जैसे किसी व्यक्ति का भोजन बंद कर दिया जाए तो वह कितने दिन तक जीवित रहेगा ,उसी प्रकार अतृप्त आत्मा या अभिचार जिस उद्देश्य से आया है यदि उसमे रुकावट उत्पन्न कर दिया जाए तो वह कब तक रुका रहेगा ,इस प्रकार धीरे-धीरे व्यक्ति को राहत मिल जाती है ,साथ में अगर जानकार के बताये टोटके भी किये जाए और उपाय अपनाए जाए तो जल्दी राहत मिल सकती है ,इस प्रकार उच्च शक्तियों को भी रोका जा सकता है ,हां यन्त्र की शक्ति भी उसी अनुपात में होनी चाहिए की वह उसके प्रभाव को रोक सके ,,बगलामुखी यन्त्र ,काली यन्त्र ,छिन्नमस्ता यन्त्र ,धूमावती यन्त्र ,तारा यन्त्र ,हनुमान यन्त्र ,भैरव यन्त्र ,दुर्गा यन्त्र आदि इस श्रेणी में आते हैं की किसी भी शक्ति के प्रभाव को रोक सकते हैं बशर्ते की यह उनके सिद्ध साधक द्वारा निर्मित हों |


शत्रु नाशक बगला प्रयोग

शत्रु नाशक बगला प्रयोग

जिस साधक पर भगवती बगलामुखी की कृपा हो जाती है, उसके शत्रु कभी अपने षड़यंत्र मे सफल नही हो पाते है.क्युकी भगवती का मुद्गर उन शत्रुओ की समस्त क्रियाओ को निस्तेज कर देता है.

प्रस्तुत साधना उन साधको के लिये है,जो शत्रू के कारण समस्याओ से घिर जाते है.वैसे दरिद्रता,रोग,दुख ये भी माँ कि दृष्टि मे आपके शत्रू ही है.अतः सभी को यह साधना करनी करनी चाहिये.

यह साधना आपको २६ तारीख को करना है.किसी कारणवश ना कर पाये तो किसी भी रविवार को करे.समय रात्रि १० के बाद का रखे.आसन वस्त्र पिले हो.आपका मुख उत्तर की और होना चाहिये.सामने बाजोट रखकर उस पर पिला वस्त्र बिछा दे.और वस्त्र पर पिले सरसो कि एक ढ़ेरी बनाये.इस ढ़ेरी पर एक मिट्टि का दिपक सरसो का तेल डालकर प्रज्जवलित करे.ईसके अतिरिक्त किसी सामग्री की आवश्यक्ता नही है.दिपक की सामान्य पुजन कर गुड़ का भोग अर्पित करे.अब संकल्प ले .

हे माता बगलामुखी हर शत्रू से,रोगो से,दुखो से,दरिद्रता से तथा हर कष्ट प्रद स्थिती से रक्षा हेतु मै यह प्रयोग कर रहा हु.आप मेरी साधना को स्विकार कर.मुझे सफलता प्रदान करे.

अब निम्न मंत्र कि पिली हकीक माला,हल्दि माला,अथवा रूद्राक्ष माला से २१ माला करे.

क्रीं ह्लीं क्रीं सर्व शत्रू मर्दिनी क्रीं ह्लीं क्रीं फट्

यह मंत्र महाकाली समन्वित बगला मंत्र है.जो कि अत्यंत तिव्र है.ईसका जाप वाचिक कर पाये तो उत्तम होगा अन्यथा उपांशु करे.पंरतु मानसिक ना करे.जाप समाप्त होने के बाद.घृत मे सरसो मिलाकर १०८ आहुति प्रदान करे.इस प्रकार साधना पुर्ण होगी.साधना के बाद पुनः स्नान करना आवश्यक है.अगले दिन गुड़,सरसो पिला वस्त्र किसी वृक्ष के निचे रख आये.यह एक दिवसीय प्रयोग साधक को शत्रू से मुक्त कर देता है.साधक चाहे तो साधना को ३,७, या २१ दिवस के अनुष्ठान रूप मे भी कर सकता है।।।

दरिद्त्रता नाशक प्रचंड प्रयोग

दरिद्त्रता  नाशक प्रचंड प्रयोग
 प्रसिद्ध तांत्रिक ग्रन्थ  "" शारदा तिलक  """ में इस पवित्र मुद्रिका के विषय  और प्रयोग के बारे में विशद उल्लेख किया गया हैं . त्रिधातु   ( सोना २ रत्ती , चाँदी १२ रत्ती , और तांबा १६ रत्ती , ) से शास्त्रोक्त पद्धतिके अनुसार निर्मित तथा श्री यन्त्र जड़ित इस चमत्कारी मुद्रिका को धारण करने से दरिद्रता का समूल नाश हो जाता हैं . 
    
  सामग्री -     जल पात्र , घी का दीपक , अगरबत्ती , भोजपत्र , मंत्र सिद्धि पवित्री  मुद्रिका .

     माला -  पवित्री माला  ( मंत्र सिद्धि  चैतन्य  ) 
     समय -  दिन या रात में कोई भी समय 
     दिन  -  शुक्रवार . 
     धारणीय  -   वस्त्र -   पीले रंग की धोती 
     आसन  -  पीले रंग का 
     दिशा -  पूर्व 

     जप संख्या  -  ११००० हजार 

    अवधि -  ११ दिन 

    मंत्र -      ॐ  क्लीं  नमः   ( कनकधारा  स्त्रोत  )

    प्रयोग - 

 सर्व प्रथम भोजपत्र पर केशर से उपरोक्त यन्त्र को अंकित कर दे  और उसके ऊपर पवित्री मुद्रिका रख दे ,  ( जो की मंत्र सिद्धि  प्राण - प्रतिष्ठा युक्त हो )  इसके बाद सामने अगरबत्ती व दीपक लगा दे तथा कनक धरा स्त्रोत का जाप प्रारम्भ कर दे . उसके बाद निम्न मंत्र का ११०० मंत्र का जाप प्रतिदिन करे , ११ दिन . ११ वे दिन जाप पूरा कर के भोजपत्र को चांदी के ताबीज में बंद कर गले में धारण कर ले और मंत्र सिद्धि प्राण - प्रतिष्ठा युक्त पवित्री मुद्रिका दाहिने हाथ की किसी भी ऊँगली में धारण कर ले ,
   इस अगूंठी के प्रभाव से राज्य से सम्बंधित सभी बंधाये दूर हो जाती हैं . और उसे मान सम्मान प्राप्त होता हैं साथ ही यह  पवित्री मुद्रिका धारण करता की दरिद्रता का विनाश कर के उसके लिए लक्ष्मी प्राप्त में परम सहायक होती हैं ।।

आकर्षण साधना

तीव्र आकर्षण साधना –गुमशुदा व्यक्ति को बुलाने के लिए)

व्यक्तियों को वापिस बुलाने के लिए  इस साधना का प्रभाव बहुत अचरजकारी है. और अन्य मन्त्रों के बजाय इसे सिद्ध करने में कोई दिक्कत भी नहीं आती, नवरात्री में १०,००० की संख्या में इस मन्त्र को कर लेने से ये सिद्ध हो जाता है , सामने तीव्र आकर्षण यन्त्र या पारद शिवलिंग रख कर मूंगा माला से इस मंत्र को १४ माला नित्य करने से ९ दिन में ये साधना सिद्ध हो जाती है. मन्त्र सिद्ध हुआ या नहीं इसका परीक्षण करने के बिनोला,पीली सरसों,तथा चूहे के बिल की मिटटी को मिला निम्न मंत्र से १०८ बार अभिमंत्रित करे,और एक सरकंडे को बीच में से चीर कर दो अलग अलग लोगो को जोर से पकडे रहने के लिए दे दे , और मन्त्र पढ़ कर उस अभिमंत्रित मिश्रण को उस सरकंडे पर मारे .यदि सरकंडा आपस में जुड जाये तो समझ ले की सफलता मिल गयी है .

    फिर जब भी किसी खोये हुए व्यक्ति को वापिस बुलाना हो तो मध्य रात्रि में खोये हुए व्यक्ति का चित्र अथवा वस्त्र सामने रख उस पर अभिमंत्रित पिष्टी को ५४० बार मंत्र का उच्चारण करते हुए मारे. यदि व्यक्ति जीवित है तो निश्चय ही शीघ्र अतिशीघ्र वो वापिस आ जाता है.

मन्त्र- ॐ नमो भगवते रुद्राय ए दृष्टि लेखि नाहर : स्वाहा,
       दुहाई कंसासुर की जूट-जूट ,फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा ।

हनुमानजी के दर्शन

इस तरह पूजा करने से होते हैं हनुमानजी के दर्शन

हनुमानजी को रूद्रावतार भी कहा जाता है। वह भगवान शिव की तरह ही जल्दी ही प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्त की हर इच्छा पूरी करते हैं। यूं तो हनुमानजी को प्रसन्न करने के लिए कई तरीके हैं फिर भी कुछ विशेष तांत्रिक प्रयोगों के द्वारा उनके न केवल दर्शन किए जा सकते हैं वरन उनसे मनचाहा वरदान भी पाया जा सकता है।

हनुमान प्रत्यक्ष दर्शन साधना भी ऎसी ही एक तांत्रिक विधि है जिसके द्वारा हनुमानजी के दर्शन होते हैं। इस साधना को किसी मंदिर या गुप्त स्थान पर ही किया जाता है। यदि किसी नदी के कि नारे एकांत स्थान या पर्वत पर स्थित मंदिर में किया जाए तो ज्यादा बेहतर होता है। कुल मिलाकर साधना का स्थान पूर्णतया पवित्र, शांत और शुद्ध होना चाहिए।

पूजा के पहले करें ये तैयारियां

इस पूजा के लिए आपको सबसे पहले सफेद या लाल वस्त्र ले लेने चाहिए। बिना सिले वस्त्र जैसे धोती अधिक उपयुक्त है परन्तु अनिवार्य नहीं है। साथ ही आसन भी सफेद या लाल ही होना चाहिए। पूजा के लिए लड्डू, सिंदूर, केले, दीपक, धूप, गंगाजल, जल का लोटा दूध, माचिस तथा लाल या सफेद फूल ले लें।

मंगलवार को उपवास रखें। इसके साथ ही जल के लोटे में दूध मिला दें और उसे जाप करने के बाद पीपल के पेड़ में चढ़ा दे और हनुमानजी के मंदिर में घी का दीपक जला कर साधना के लिए आज्ञा दें। आपको जल्दी ही स्वप्न में या अन्य किसी संकेत द्वारा हनुमानजी की पूजा की आज्ञा मिल जाएगी। यदि नहीं मिलती है तो इस पूजा को न करें।

ऎसे करें पूजा

ऊपर बताए अनुसार किसी शांत, शुद्ध और एकान्त स्थान पर जाकर गंगा जल छिड़क कर जगह को पवित्र कर लें। वहां गाय के गोबर लीप कर एक चौका बनालें। उस पर स्वास्तिक का चिन्ह बना कर फूल बिछाएं और उस पर हनुमानजी की मूर्ति, चित्र या यंत्र रखें। इसके बाद आसन पर विराजमान होकर मन ही मन भगवान गणेश और अपने गुरू से पूजा आरंभ करने की आज्ञा लें। इसके बाद आप अपनी साधना आरंभ करें।

दीपक जलाकर, पुष्प अर्पण कर भगवान राम के नाम की एक माला का जाप कर भलीभांति हनुमानजी की पूजा-अर्चना कर नीचे दिए मंत्र का मूंगे की माला से 11 माला जाप करें और हनुमानजी को भोग अर्पण करें। भोग में तुलसी का पत्ता अवश्य होना चाहिए। ध्यान रहें प्रतिदिन फल और पुष्प ताजा ही लाने चाहिए। इसके साथ ही अपने आसन और हनुमानजी के चारों तरफ राम नाम का जाप करते हुए एक गोल घेरा बना लें। यह घेरा आपकी सभी विध्नों से रक्षा करेगा। जाप के लिए मंत्र इस प्रकार है

ओम नमो हनुमान बाराह वर्ष के जवान हाथ में लड्डू मुख में पान,
हो के मारू आवन मेरे बाबा हनुमान ये नम:।

पूजा में इन नियमों का पालन अवश्य करें

मंत्र प्रतिदिन शाम को 7 से 11 बजे के बीच ही करना है। भोग लगाकर प्रसाद स्वयं खाएं या छोटे लड़कों को बांट दें।

साधना 41 दिन चलती है और इसे मंगलवार या गुरूवार को ही शुरू करें।

पूरे 41 दिनों के दौरान किसी महिला के संपर्क में न आएं। स्वयं का खाना भी खुद ही बना कर खाएं।

मन-मस्तिष्क में किसी भी तरह का कोई विकार न आने दें और अपने आपको पूरी तरह से भगवान के चरणों में समर्पित कर दें।

ये भी पढ़ेः हनुमान जी के इन 5 मंत्रों के जाप से सभी अमंगल होंगे मंगल

सिर्फ 14 दिन में ही हो सकते हैं आपको दर्शन

साधना का असर 14 दिन के अंदर ही दिखने लगता है। आपको शुरू में धरती हिलती हुई अनुभव होगी। आपको बड़े ही डरावने और भयावह अनुभव होने लगेंगे परन्तु किसी बात से डरना नहीं है। आप चुपचाप हनुमानजी में ध्यान एकाग्र कर अपने मंत्र जाप करते हैं। भगवान रोजाना आकर अपना प्रसाद लेंगे और खा लेंगे। 41वें दिन भगवान साक्षात प्रकट होकर आपको दर्शन देंगे और मनचाहा वरदान मांगने को कहेंगे। आप उस दौरान उनसे कुछ भी मांग कर अपनी इच्छा पूरी कर सकते हैं।

सावधानियां

यह एक अत्यन्त प्रचंड और विलक्षण सिद्धी है। इसे करते समय व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से मजबूत होना चाहिए। जरा सा भी डर या कमजोरी आदमी को पागल कर सकती है या उसे मार सकती है। इसीलिए यह प्रयोग हर किसी को नहीं करना चाहिए वरन अपने गुरू की आज्ञा और आर्शीवाद लेकर ही करना चाहिए।

अदभूत प्रयोग

यदि कोई व्यक्ति शत्रुओं के कारण परेशानियां झेल रहा हो तो उसे प्रतिदिन या विशेषकर मंगलवार, अमावस्या अथवा रविवार को लाल वस्त्र पहनकर माता दुर्गा का ध्यान करते हुए गायत्री मंत्र के आगे एवं पीछे क्लीं बीज मंत्र का तीन बार सम्पुट लगाकार एक सौ आठ बार जाप करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। मित्रों में सद्भाव, परिवार में एकता होती है तथा न्यायालयों आदि कार्यों में भी विजय प्राप्त होती है।

विवाह कार्य में देरी हो रही हो तो...

यदि किसी भी जातक के विवाह में अनावश्यक देरी हो रही हो तो सोमवार को सुबह के समय पीले वस्त्र धारण कर माता पार्वती का ध्यान करते हुए ह्रीं बीज मंत्र का सम्पुट लगाकर एक सौ आठ बार जाप करने से विवाह कार्य में आने वाली समस्त बाधाएं दूर होती हैं। यह साधना स्त्री पुरुष दोनों कर सकते हैं

यदि किसी रोग के कारण परेशानियां हो तो...

यदि किसी रोग से परेशान है और रोग से मुक्ति जल्दी चाहते हैं तो किसी भी शुभ मुहूर्त में एक कांसे के पात्र में स्वच्छ जल भरकर रख लें एवं उसके सामने लाल आसन पर बैठकर गायत्री मंत्र के साथ ऐं ह्रीं क्लीं का संपुट लगाकर गायत्री मंत्र का जप करें। जप के पश्चात जल से भरे पात्र का सेवन करने से गंभीर से गंभीर रोग का नाश होता है। यही जल किसी अन्य रोगी को पीने देने से उसके भी रोग का नाश होता हैं।

जो भी व्यक्ति जीवन की समस्याओं से बहुत त्रस्त है यदि वह यह उपाय करें तो उसकी समस्याएं समाप्त हो जाएंगी। उपाय इस प्रकार है पीपल, शमी, वट, गूलर, पाकर की समिधाएं लेकर एक पात्र में कच्चा दूध भरकर रख लें एवं उस दूध के सामने एक हजार गायत्री मंत्र का जप करें। इसके बाद एक-एक समिधा को दूध में छुआकर गायत्री मंत्र का जप करते हुए अग्रि में होम करने से समस्त परेशानियों एवं दरिद्रता से मुक्ति मिल जाती है।

किसी भी शुभ मुहूर्त में दूध, दही, घी एवं शहद को मिलाकर एक हजार गायत्री मंत्रों के साथ हवन करने से चेचक, आंखों के रोग एवं पेट के रोग समाप्त हो जाते हैं। इसमें समिधाएं पीपल की होना चाहिए। गायत्री मंत्रों के साथ नारियल का बुरा एवं घी का हवन करने से शत्रुओं का नाश हो जाता है। नारियल के बुरे मे यदि शहद का प्रयोग किया जाए तो सौभाग्य में वृद्धि होती हैं।


काला जादू

ऎसे पहचाने आप पर तंत्र शक्ति (या काला जादू) प्रयोग की गई है

अक्सर हम अपनी जान-पहचान के लोगों द्वारा तांत्रिक शक्तियों के वशीकरण तथा मारण प्रयोगों के बारे में सुनते हैं। हालांकि हममें से यह कोई भी नहीं जानता कि आखिर तांत्रिक प्रयोग किस तरह से और कैसे कार्य करते हैं और अपने ऊपर किए तंत्र शक्ति के गलत प्रयोग को किस प्रकार से खत्म किया जाए।

तांत्रिकों तथा योगियों के अनुसार दुनिया की हर चीज चाहे वो सजीव हो या निर्जीव हो ब्रहमाण्ड की विशाल ऊर्जा का ही रूपांतरित रूप है। वे अक्सर शत्रुओं का बुरा करने के लिए नकारात्मक ऊर्जाओं को प्रयोग करते हैं जिसे पहचानना बेहद आसान होता है।

 

ऎसे पहचाने आप पर तंत्र शक्ति प्रयोग की गई है:

(1) नाड़ी की गति सामान्य से अधिक हो जाती है: जब भी शरीर पर किसी भी नकारात्मक ऊर्जा का हमला होता है तो हमारा शरीर उसका प्रतिरोध करता है जिसके फलस्वरूप हमारी धड़कन सामान्य से तेज हो जाती है। जितना घातक अटैक होगा, नाड़ी की गति उतनी ही ज्यादा तेज हो जाएगी।

(2) श्वास की गति बढ़ जाती है: तांत्रिक हमला होते ही सांस की गति भी बहुत तेज हो जाती है। घातक हमले की हालत में श्वास की गति इतनी अधिक हो सकती है जितनी की भागदौड़ के बाद भी नहीं होती।

(3) अचानक ही शारीरिक तथा मानसिक रूप से कमजोरी महसूस करना: तांत्रिक हमले या साईकिक अटैक में नकारात्मक शक्तियां व्यक्ति के मन-मस्तिष्क को काबू में करने का प्रयास करती है जिसके चलते व्यक्ति अपनी शक्ति काम नहीं ले पाता और वह अंदर ही अंदर शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोरी महसूस करने लगता है।

(4) रात को डरावने सपने आते हैं: तांत्रिक हमले के दौरान रात को सोते समय भयावह और डरावने सपने आने लगते हैं। कई बार ऎसा लगता है जैसे कि आप पर किसी जानवर ने हमला कर दिया या आप कहीं बहुत ऊंचाई से गिर गए हैं।

(5) पलंग के पास पानी रखने से भी पता चलता है: रात को सोते समय पलंग के पास पानी का एक गिलास रख दें और सोते समय मन में सोचे कि आपके अंदर की नकारात्मक ऊर्जा उस पानी में जा रही है। सुबह उस पानी को किसी छोटे पौधे में डाल दें। ऎसा लगातार आठ दिन तक करें। आठ दिन में वह पौधा मुरझा जाएगा। यदि हमला बहुत तेज हुआ तो पौधा 2-3 दिन में ही कुम्हला जाएगा।

(6) तकिए के नीचे नींबू रखें: फल तथा सब्जियां भी नकारात्मक ऊर्जा से अत्यधिक प्रभावित होते हैं। आप रात को सोते समय एक नींबू अपने तकिए के नीचे रख दें और अपने मन में सोचे कि आपके आस-पास कोई भी नकारात्मक ऊर्जा है तो वह इस नींबू में आ जाएं। तांत्रिक हमला होने की दशा में सुबह आप उस नींबू को मुरझा हुआ पाएंगे। उसका रंग भी काला पड़ जाएगा।

तंत्र-मंत्र तथा काले जादू की प्रक्रिया देखने में जितनी जटिल होती है, करने में उतनी ही सरल होती है। अक्सर लोग जिस पर भी तांत्रिक शक्तियों या कालू जादू का इस्तेमाल करना चाहते हैं, उसे फंसाने के लिए खाने की वस्तुओं का प्रयोग करते हैं। ये खाने की वस्तुएं आम तौर पर मीठी ही होती है। आइए जानते हैं कि किस तरह से तंत्र-मंत्र अथवा काले जादू का प्रयोग कर दूसरों को वशीकरण किया जा सकता है, या उनका कुछ अनिष्ट किया जा सकता है।

कभी न खाएं दूसरे की दी गए सफेद मिठाई

काले जादू का प्रयोग मावे की मिठाई (यदि रंग सफेद हो तो सबसे अच्छा) पर सबसे ज्यादा कारगर होता है। बस शर्त इतनी सी है कि आप इसे सही ढंग से करें। ऎसे लोग जिससे भी अपना काम निकलवाना चाहते हैं उसके निमित्त खाने की मिठाई लाते हैं। उस पर अपने मंत्रों का प्रयोग कर सामने वाले व्यक्ति को खिला देते हैं। इस चीज को भगवान का प्रसाद या जन्मदिन की मिठाई या ऎसा कुछ भी बहाना बनाकर खिलाया जाता है। कुछ लोग दूध के जरिए भी इस प्रयोग को करते हैं।

इस तरह के तांत्रिक प्रयोगों से बचने का सबसे अच्छी तरीका यही है कि आप कि सी अन्य की दी गई मिठाई को कभी भूलकर भी न खाएं। यदि सामने वाला व्यक्ति ऎसा है जिसे आप मना नहीं कर सकते तो बेहतर होगा कि मिठाई का का एक छोटा-सा पीस तोड़ कर पहले उसी व्यक्ति को खिला दें। यदि वह सहज ही इसे खा लेता है तो इसका अर्थ है कि वह तांत्रिक प्रयोग नहीं कर रहा है। परन्तु यदि सामने वाला व्यक्ति आप द्वारा दी गई मिठाई को खाने में हिचकिचाएं या ना नुकूर करें तो समझ जाएं कि दाल में कुछ काला है।

इन चीजों के द्वारा भी होता है काले जादू का प्रयोग

खाने की मिठाई के अतिरिक्त लोग अन्य चीजों के माध्यम से भी काला जादू करते हैं। इन चीजों में फूल (चमेली, गुलाब, मोगरा आदि), इत्र, पान, इलायची, लौंग, उड़द, लौबान (धूप) आदि के जरिए किया जाता है। कुछ लोग पहनने के कपड़ों पर भी इसका प्रयोग करते हैं। अगर कोई व्यक्ति अचानक ही ऎसी कोई भी चीज आपको दें तो आपको उससे बचना चाहिए। ये सभी चीजें ऎसी हैं तो प्रचंड वशीकरण और मारक प्रयोग करने में काम ली जाती है।

बिना कोई चीज खिलाए या दिए भी होता है काले जादू का प्रयोग

कुछ लोग तांत्रिक प्रयोग करने के लिए एक बिल्कुल ही अलग तरीके का इस्तेमाल करते हैं। इस तरीके में सामने वाले व्यक्ति को कुछ खिलाया या दिया नहीं जाता वरन उसके घर में अथवा उसके कमरे में अभिमांत्रित वस्तु को डाल दिया जाता है। यह वस्तु कुछ भी हो सकती है, यहां तक की श्मशान की मिट्टी या कोयला भी। अगर किसी भी दिन आपको अपने घर में ऎसी कोई भी चीज मिले जो आप या आपके परिवार में किसी ने नहीं रखी हो तो भी यह तंत्र प्रयोग होने का संकेत हो सकते है।

वशीकरण मंत्र

वशीकरण मंत्र

यह प्रयोग बड़ा ही आसान प्रयोग है और शीघ्र प्रभाव देने वाला भी,इसीलिए इस प्रयोग को दुर्लभ माना जाता है॰
वैसे भी यह प्रयोग कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को मंगलवार के दिन किया जाता है,परंतु हमारे कुछ भाई लोगो ने इस प्रयोग को मंगलवार , अष्टमी या कृष्ण पक्ष का कोई अच्छया तिथि हो सम्पन्न करके सफलता हासिल की है,और अब आप भी करके तो देखो॰

 इस प्रयोग मे एक पान का पत्ता लेना है,ज्यो किसी पान के दुकान मे आसानी से मिल जाता है,और इस पत्ते को कथ्था लगाकर खाया जाता है (नागरवेल),तो इस पत्ते पे जिसे वश करना है उस व्यक्ति का नाम लिखे और नाम को देखते हुये निम्न मंत्र का जाप 108 बार करे और पत्ते पे तीन बार फुक मारे॰

॥ क्लीं क्रीं हुं क्रों स्फ़्रों कामकलाकाली स्फ़्रों क्रों हुं क्रीं क्लीं स्वाहा ॥

अब इस अभिमंत्रित पत्ते को अपने मुह मे डालकर धीरे-धीरे चबाते हुये निम्न मंत्र जाप जब तक पूरा पत्ता चबाना खत्म ना हो जाये तब तक करना है,

॥ ॐ ह्रीं क्लीं अमुकी क्लेदय क्लेदय आकर्षय आकर्षय मथ मथ पच पच द्रावय द्रावय मम सन्निधि आनय आनय हुं हुं ऐं ऐं श्रीं श्रीं स्वाहा ॥

धन प्राप्ति का मंत्र

धन प्राप्ति का मंत्र

मित्रो ! मेरे पास जितनी भी समस्याओं के मेल या मेसेज आते है उनमे 70 % समस्याएं आर्थिक संकट की होती हैं। किसी का उधार वापस नहीं मिल पा रहा है या किसी की आमदनी उसकी ज़रूरतों से कहीं कम है।

चूँकि समय बदलता जा रहा है, सभी की जरूरतें बदल रही हैं, हमारी आदतें बदली है और इनकी पूर्ति के लिए पैसों की चाहत बढ़ती जा रही है। कोई भी व्यक्ति कितना भी धन कमाए परंतु वह उसे कम ही लगता है। जरूरतें इतनी बढ़ गई हैं कि पैसों की कमी महसूस होने लगती है। साथ ही मैं यह भी कहना चाहूंगा कि इच्छाओं का कोई अंत नहीं है इसलिए अपनी चादर के अनुसार ही हमें पैर फ़ैलाने चाहिए। सामान्यत: हमारे कर्मों के आधार पर ही हमें प्रतिफल स्वरूप धन प्राप्त होता है। परन्तु अथक प्रयासों के बाद भी अगर उतना धन प्राप्त नहीं हो रहा है इसका सीधा सा अर्थ है कि आपके ग्रह आपका साथ नहीं दे रहे है। तब आप ईश्वर भक्ति या शक्ति का प्रयोग कर सकते है।

मित्रो ! मंत्रो में अपार शक्ति होती है। अगर पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से इनका जप किया जाय तो यह आपके हाथों की लकीरें भी बदल सकते हैं।

यहाँ आप सभी के आग्रह पर मैं एक अति सरल मंत्र आप को बता रहा हूँ जो आपके जीवन से 'आर्थिक तंगी' को जड़ से समाप्त कर देगा -

ऊँ सरस्वती ईश्वरी भगवती माता क्रां क्लीं, श्रीं श्रीं मम धनं देहि फट् स्वाहा।

मंत्र सिद्ध करने की विधि -

किसी भी शुभ मुहूर्त में पूरे विधि-विधान के साथ इस मंत्र का जप करें। मंत्र का जप 40 दिनों तक प्रतिदिन 108 बार करें। मंत्र जप के समय लक्ष्मी और सरस्वती का चित्र अपने सामने रखें।

इस मंत्र के सिद्ध होने के बाद साधक का रुका हुआ पैसा वापस मिल जाएगा और मां सरस्वती की कृपा से बुद्धि और विवेक बढ़ेगा। यदि साधक की किसी व्यक्ति पर उधारी बाकी है और वह उसे प्राप्त नहीं हो रही है तो इस मंत्र के सिद्ध होने के बाद पैसा वापस आना शुरू हो जाएगा तथा जीवन में नये नये आय के स्रोत खुलते चले जायेंगे।

काला जादू और माँ बगलामुखी


काला जादू और माँ बगलामुखी
काला जादू और हिंदू धर्म का नाता पिछले कई युगों से चला आ रहा है। इन्‍हे करने वालों को तांत्रिक या अघोरी बाबा कहा जाता है जो रात के दौरान विशेष पूजा करते हैं। हिंदू धर्म में ये सबसे ज्‍यादा होता है।
काला जादू शरीर में नकारात्‍मक ऊर्जा उत्‍पन्‍न करता है। ये शक्तियां बाहरी व्‍यक्ति के द्वारा भेजी जाती हैं जो उस व्‍यक्ति पर आतंरिक प्रभाव डालती है।
तांत्रिक जिस प्रकार पूजा करते हैं, वह आज भी रहस्‍य बना हुआ है। वास्‍तव में तांत्रिक बुरी आत्‍माओं को बुलाते है और फिर उनसे अच्‍छी आत्‍माओं या किसी व्‍यक्ति को परेशान करने के लिए कहते हैं। जिस व्‍यक्ति को वह परेशान करना चाहते हैं, उसका कोई कपड़ा, बाल या कुछ भी निशानी चाहिए होती है। अगर एक बार भी बुरी आत्‍मा परेशान करना शुरू कर देती है तो अच्‍छा व्‍यक्ति भी बेहाल हो जाता है।
वैज्ञानिक कारण
काला जादू गैर वैज्ञानिक घटना नहीं है। वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुका है कि किसी बाहरी के द्वारा किसी के लिए ज्‍यादा नकारात्‍मक सोच, उस व्‍यक्ति पर बुरा प्रभाव आसानी से ड़ाल सकती है और मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य को भी प्रभावित कर सकती है।
दोस्तों की भीड़ में दुश्मनों को पहचानना मुश्किल हो जाता है. आप नहीं समझ सकते कि कब कौन आपके पीठ पीछे वार कर आपको धोखा देकर चला जाए. दोस्ती और प्यार के नाम पर दगा देने वाले भी बहुत लोग होते हैं. आपकी कोई बात किसी को कितनी बुरी लग गई और इसका बदला लेने के लिए वो किस हद तक पहुंच जाएगा आप इस बात का अंदाजा भी नहीं लगा सकते. 

बगलामुखी, एक ऐसी तंत्र साधना है जिसके जरिए लोग वशीकरण, मारण, उच्चाटन आदि जैसी क्रियाओं को अंजाम देते हैं. अपने दुश्मन को हर तरह की हानि पहुंचाने के लिए लोग इस तंत्र साधना का प्रयोग करते हैं और तंत्र-मंत्र पर विश्वास करने वाले लोगों की मानें तो इससे बेहतर और कोई विकल्प हो भी नहीं सकता. 

तांत्रिक साधना करने वाले लोगों का कहना है कि मुकद्दमा जीतना हो या फिर किए गए टोने के असर को शिथिल करना हो तो बगलामुखी इसका रामबाण इलाज है. जानकारों की मानें तो बाहरी शत्रु इतना नुकसान नहीं पहुंचा सकते जितना आपके अपने साथी और संबंधी पहुंचा सकते हैं. अगर परिवार का कोई सदस्य अपने ही परिवार के सदस्य के साथ कुछ गलत कर रहा है तो भी बगलामुखी के द्वारा उस टोने के असर को पलटा जा सकता है।।

हनुमान पताका

हनुमान पताका का रहस्य और इसका दुर्लभ प्रयोग

 हनुमान जी के किसी भी चित्र में देखें तो पाएंगे की उनके हाथ में सदा गद्दा और झण्डा रहता है। झण्डे पर लिखा होता है श्रीराम। महाभारत युद्ध के समय हनुमान जी अर्जुन के रथ के झण्डे पर विराजित थे। उन्होंने अजुर्न की पग-पग पर रक्षा करी और उसे विजय दिलवाने में उनका बहुत बड़ा योगदान था। आईए जानें कैसे।

शास्त्रनुसार कौरव-पांडव युद्ध के दौरान भगवान श्रीकृष्ण के आदेशानुसार अर्जुन के रथ पर स्वयं पवनपुत्र विराजित हुए। जैसे ही महाभारत युद्ध समाप्त हुआ तभी भीम और दुर्योधन के बीच गद्दा युद्ध प्रारंभ हुआ। गद्दा युद्ध में भीम ने दुर्योधन को हरा दिया। दुर्योधन को मृतवस्था में छोड़कर सभी पांडव के शिविर में लौट आए।
   तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को संबोधित करते हुए कहा। हे पार्थ! सर्वप्रथम तुम अपने गांडीव धनुष और अक्षय तरकस को लेकर रथ से उतर जाओ। अर्जुन ने श्रीकृष्ण के निर्देश का पालन किया। इसके बाद भगवान कृष्ण भी रथ से उतर गए।

भगवान कृष्ण के रथ से उतरते ही अर्जुन के रथ पर धव्ज पर विराजे हनुमानजी भी रथ को छोड़कर उड़ गए। तभी अर्जुन का रथ जल कर भस्म हो गया। इस दृश्य को देख अर्जुन ने भगवान कृष्ण से रथ के जलने का कारण पूछा।

तब भगवान कृष्ण ने अर्जुन को संबोधित करते हुए कहा। हे पार्थ। तुम्हारा रथ तो अनेक दिव्यास्त्रों के प्रहार से पहले ही जल चुका था, मात्र मेरे तथा पवनपुत्र हनुमानजी के तुम्हारे रथ पर विराजे रहने के कारण ही अब तक यह भस्म नहीं हुआ था। हे अर्जुन! जब तुम्हारा युद्ध का कर्तव्य पूरा हो गया, तभी मैंने व हनुमानजी से इस रथ को त्याग दिया। अतः तुम्हारा रथ अभी भस्म हुआ है।
आप भी लाल रंग के तिकोने झण्डे पर श्रीराम लिखकर घर की छत पर लगाएं। इस तरह हनुमान जी को अपने घर बुलाएं और फिर देखें होंगे कैसे अनोखे चमत्कार। जिस तरह हनुमान जी ने अर्जुन के रथ की रक्षा करी उसी तरह वह आपके भी घर की रक्षा करेंगे।

ज्योतिषीय दृष्टिकोण से ध्वजा अर्थात पताका अर्थात त्रिकोण झण्डा केतू ग्रह को संबोधित करता है। शास्त्रों में केतू ग्रह को मोक्ष का ग्रह बताया गया है। काल पुरुष सिधान्त के अनुसार केतू का स्थान आकाश में हवा में लहरते हुए स्थित होता है। केतू का स्वरूप त्रिकोण है। लाल रंग की त्रिकोण पताका व्यक्ति की देह की रक्षा करता है। लाल रंग की त्रिकोण पताका के कुछ विशेष उपाय इस प्रकार हैं।
 * कोर्ट-कचहरी के पचड़ों में फंसे हों तो घर की छत पर पश्चिम दिशा में लाल त्रिकोण पताका लगाएं।

* प्राणों पर किसी भी तरह का संकट मंडरा रहा हो तो हनुमान मंदिर के कलश पर लाल त्रिकोण पताका लगाएं।

* परीक्षा में अच्छे अंक पाने की कामना पूर्ण करना चाहते हो तो मंगलवार के दिन हनुमान जी को तिकोना झण्डा चढ़ाएं।

* अपना घर बनाने की इच्छा पूर्ण न हो पा रही हो या संपत्ति से संबंधित कोई भी कार्य हो तो मंगलवार को लाल रंग के तिकोने झण्डे पर श्रीराम लिखकर हनुमान मंदिर में चढ़ाएं।


मंत्र दीक्षा के लाभ

मंत्र दीक्षा के लाभ !

1) भगवान के नाम रस मे प्रीति बढ़ेगी.. चिंता, दुःख मिटते , पाप नाश होते तो भगवान मे आनंद आने लगता है , सुमिरन ध्यान मे आनंद आने लगता है..प्रीति  का रस प्रगट होता जायेगा |

2) मन की चंचलता मिटने लगेगी, मन्त्र जाप से अध्यात्मिक तरंगे उत्त्पन्न होती है..इससे चित्त में आनंद और शांती  व्याप जाती है..चित्त की चंचलता मिटती , मनोराज  मिटते, फालतू विचारो का  शमन
चित्त को शांती  मिलती, समाधान मिलता |

3) परमात्मा  की प्रेरणा  होने लगेगी, इष्ट देव सपने मे आकर दर्शन देंगे या और किसी प्रकार से आप को मार्गदर्शन मिलेगा.. …बुध्दी की प्रसादी मिलती, अच्छे  को अच्छा और बुरे को बुरा समझने की सूझ बुझ मिलती..सही गलत का  निर्णय करने में अंतर्यामी परमात्मा की प्रेरणा मिलती तो व्यावहारिक ज्ञान में सूझ बुझ आती… फिर तो राजे महाराजाओं  के सुख को भी तुच्छ माने |

4) नाम का, धन का अहंकार और घमंड नहीं होगा…अहंकार गलने लगता…धन, पद , अ-सत का प्रभाव गलने लगता है |

5) मन और बुध्दी निर्मल होती है ..बुध्दी मे शुध्द प्रकाश और प्रेरणा  होगी की  क्या करना है, कब और कैसे करना है… मन बुध्दी की पुष्टि होती जाती.. …गुरू  मन्त्र का जप करने से नीरसता दूर होगी और आस्था  बढ़ेगी..बुध्दी  में शुद्धि आती |

6) रोग बीमारी से क्षीण नहीं होंगे.. ‘रोग आया तो शरीर मे आया , मैं  तो अमर आत्मा हूँ’  ये समझ विकसित होगी..मन्त्र के उच्चारण  से हमारे  शरीर पर — 5 ज्ञानेन्द्रियां  और 5 कर्मेन्द्रियों  पर , लीवर और ह्रदय पर ऐसा प्रभाव पड़ता है की रोग कण नाश होते है और रक्त का प्रवाह शुध्द होता है….. .. रोग प्रतिकार की शक्ति बढती..रोगों के कणों  को भगाती है |

7) सुख मे बहोगे नहीं और दुःख से दबोगे  नहीं, उनका साधन बनाकर उन्नति करने की बुध्दी विकसित होगी..जप करनेवाला वाला दुखी खिन्न नहीं होता. ..दुःख मिटेंगे, दुःख को उखाड़ फेकने वाले परमानंद की प्राप्ति होगी .. भगवान के नाम मे रस आयेगा तो दुखो की जड़ उखाड़  के फेकनेवाला आनंद आएगा..दुःख नाशिनी शक्ति बढती… भविष्य में दुःख देने वाली परिस्थितियां  भी क्षीण होती.. .’सुख स्वपना दुःख बुलबुला , दोनों है मेहमान’ …सुख दुःख आने-जानेवाला है -उस को जाननेवाला ‘मैं’  नित्य हूँ..इस  प्रकार   सुख दुःख की थपेड़ो से बचकर हम परम आनंद के दाता ईश्वर के रास्ते पहुँचने में सफल हो जाते… ‘सुख दुःख मन को है , मैं उस को देखने वाला हूँ’  ये जान कर सुख दुःख का भी  उपयोग कर के सुख दुःख को स्टेप बना लेते है..ईश्वर के रास्ते  उन्नत होते जाती है | 

8 ) गुरु मन्त्र के जप से सभी जन्मो के पाप नाश होंगे..(ज+प =  ‘ज’ का मतलब जन्म मरण का नाश और  ‘प’ का मतलब पाप का नाश : इसी का नाम जप है.)
पाप मिटने से  पुण्यमय भाव  बनने लगता है…पाप क्षीण होने लगते…पाप मिटते, पुण्य  बढ़ते. .. सुनिश्चय करनेवाली पापनाशिनी शक्ति जागृत होती…पाप वासना मिटती, बेवकूफी मिटती , आप को बेवकुफ बनानेवाला बेवकुफ बनता और आप सजाग हो जाते |

9) घटाकाश और व्यापक परमात्मा के एकत्व का दैवी ज्ञान प्रगट होता है …दिव्य प्रेरणा  प्रगट होने लगती…
आत्मा ब्रह्म है , जैसे घड़े का आकाश महा आकाश से जुड़ा  है ,एक ही है ,भिन्न नहीं है …ऐसे ही आप का आत्मा उस परमात्मा से जुड़ा हुआ है ..यह ज्ञान होगा..आत्मा ब्रम्ह है ..बुध्दी में चैत्यन्य  चिन्मय वासुदेव का प्रसाद  है…तो   ‘सब में वासुदेव है’… इस प्रकार  की दिव्यता का अनुभव होने लगता …भगवान की कथा समझ में आने लगती… 
एक कौर चावल को देखा आप ने तो आप को चावल का डेगा  देखने की जरुरत नहीं.. चुल्लू भर पानी से सरोवर के पानी की खबर मिलती… एक सूर्य की किरण से सूर्य की खबर मिलती … ऐसे एक हमारे आत्मा की खबर मिलती तो पुरे ब्रम्ह की खबर मिलती |

10) आप का आत्म विश्वास बढेगा, चिंता –निश्चिन्तता मे बदलती है..विवेक विकसित होता, अ-विवेकी निर्णय दूर होते.
नाम जपने वाले के निर्णय और निगुरे के निर्णय देखो तो फरक पता चल जायेगा |

दुर्गा सप्तशती पाठ विधि

  दुर्गा सप्तशती दुर्गा सप्तशती पाठ विधि पूजनकर्ता स्नान करके, आसन शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके, शुद्ध आसन पर बैठ जाएँ। माथे पर अपनी पसंद क...