भूमी पूजन ,आफिस एवं दुकान उदघाटन : भूमि पूजन एवं दुकान उदघाटन उस भूमि पर कार्य शुरू करने के पूर्व वहा का भूमि पूजन सम्पन्न किया जाता है | जिससे वहा किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न न हो और कार्य आसानी से सम्पन्न हो जाय|
About The Best Astrologer In Muzaffarnagar, India -Consultations by Astrologer Consultations by Astrologer - Pandit Ashu Bahuguna Skills : Vedic Astrology , Horoscope Analysis , Astrology Remedies , Prashna kundli IndiaMarriage Language: Hindi Experience : Exp: 35 Years Expertise: Astrology , Business AstrologyCareer Astrology ,Court/Legal Issues , Property Astrology, Health Astrology, Finance Astrology, Settlement , Education http://shriramjyotishsadan.in Mob +919760924411
शनिवार, 28 अगस्त 2021
श्री नवग्रह उपाय
१ : सूर्य : सूर्य की शांति के लिए सूर्य के ७००० मन्त्र संख्या का जप करना अनिवार्य है | साथ में गेहू या गुण दान करे लाल चन्दन लगाये तथा सूर्य को अर्घ्य दें | माणिक्य सोना या तम्बा में धारण करे लाभ प्राप्त होगा |
२ : चन्द्र शांति : चन्द्र ग्रह बहुत ही निर्मल है इसकी शांति के लिए ११००० मन्त्र जप करवाने से चन्द्र शांति होती है |
३ : मंगल शांति : मंगल शांति के लिए मंगल के १०००० मन्त्र का जप कराया जाता है |
४ : बुध शांति : बुध के ९००० मंत्रो के जप कराने से तथा दान करने से बुध ग्रह शांत होता है |
५ : गुरु शांति : गुरु की जप संख्या १९००० का जप करवाने से तथा पीले वस्त्रो का दान देने से गुरु की शांति होती है |
६ : शुक्र शांति : शुक्र की जप संख्या १६००० का जप ब्रह्मण द्वारा कराए तथा सफेद वस्तुओ का दान करे शुक्र प्रसन्न होगे |
७ : शनि शांति : २३००० शनि मंत्रो का जप कराए तथा काले वस्त्रो का दान करे तो शनि शीघ्र लाभकारी होगा |
८ : राहू शांति : राहू की शांति के लिए १८००० जप ब्राह्मण द्वरा कराए तथा यथोचित दान करे आप को लाभ प्राप्त होगा |
९ : केतु शांति : केतु शांति के लिए १७००० मंत्रो का जप कराए , और उचित दान देने पर विशेष लाभ प्राप्त होगा |
मंत्र किसे कहतें है।?
मंत्र किसे कहतें है।?
मंत्र एक ध्वनि उर्जा है जो अक्षर(शब्द) एवं अक्षर के समूह से बनता है। ब्रह्मांड में रूप रस, गंध इत्यादि गुण व्याप्त न होकर मात्र शब्द और प्रकाश ही विद्यमान होता है | ध्यान की अवस्था में ब्रह्माण्ड में व्याप्त अलोकिक प्रकाश की अनुभूति की जा सकती है | मंत्र जाप एवं ध्यान के समन्वय से मनुष्य का ब्रह्मांड में दोनों प्रकार की उपस्थित उर्जाओं से साक्षात्कार संभव हो सकता है | प्राचीनो ने इसी को शब्द-ब्रह्म के नाम से पुकारा था जिसमें शब्द उर्जा एवं प्रकाश उर्जा ,दोनों का सुनियोजित प्रकार से समन्वय करके इष्ट, इष्टफल एवं ज्ञान की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त किया जा सके |
जाप किसे कहतें है ?
जाप, दो अक्षरों से मिलकर बना है -ज और प - जिसका अर्थ है - जन्मो-जन्मो के पापों का नाश | मन्त्रों के जाप से मनुष्य का सीधा सम्बन्ध ब्रहमांड जगत से होने लगता है एवं अन्दर पलने वाले समस्त पाप, ताप एवं विकारों का शमन होने लगता है और धीरे - धीरे वह समस्त इच्छित प्रयोजनों को साधने योग्य हो जाता है |
तुलसीदास ने भी राम चरित में जप की के बारे में वर्णन किया है -
| मंत्रजाप मम दृढ बिस्वासा
पंचम भजन सो वेद प्रकासा ||
भगवान बुद्ध के प्रवचन के अनुसार भी -मंत्रजाप असीम मानवता के साथ हृदय को एकाकार कर देता है |
क्योंकि मंत्रो के समीकरण के प्रकार अनुसार मन्त्रों को तीन श्रेणियों में बाटां गया है -
ऋचः - छन्द बद्ध और पद्यात्मक एवं उच्च स्वर में उच्चारित |
सामाः - पद्यात्मक एवं गायन द्वारा उच्चारित |
यजुः - गद्यात्मक एवं मंद स्वर में उच्चारित |
इसलिए जप का सामान्य अर्थ किसी मंत्र का चक्रीय स्थिति एवं गति से सतत या निरंतर, चिंतन (यजुः), मनन (यजुः) या गायन (ऋचः एवं सामाः ) करना होता है | मंत्र के निरंतर, लयबद्ध जप से उत्पन्न धवनि तरंगो से शक्तियों का प्रस्फुटन होता है मनुष्य की अंतर चेतना विकसित होने लगती है | मंत्र में निहित ईश्वरीय शक्ति जाग्रत होने लगती है | साधक को नाक्षत्र जगत से एकीकार होने की अनुभूति होती है एवं वह अपने इच्छित वरदान प्राप्ति की और मार्ग प्रशस्त करता है |
श्रीमद भगवद गीता, रामायण एवं महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथों में मंत्र साधना एवं सिद्धि का उल्लेख मिलता है और यह विदित होता है की उस काल में ऋषि मुनि ही नहीं, वरन सामान्य मनुष्य भी मंत्र सिद्धि से सभी प्रकार के तापों एवं रोगों का नाश करके समस्त भौतिक एवं अध्यात्मिक सुखों के आलोकिक आनंद को प्राप्त कर लेता था | आज के भोतिक वादी युग में हर व्यक्ति को सुख साधनों एवं सुरक्षा की कामना रहती है | कुछ व्यक्तियों को अध्यात्मिक ज्ञान एवं शांति की खोज रहती है | इन सभी की प्राप्ति के लिए जो मनुष्य के प्रारब्ध या कर्मों के चक्र के कारण अति अवरुद्ध या असंभव प्रतीत होते हैं , मन्त्र जाप की सहायता से प्राप्त हो सकतें है | परन्तु यह तभी संभव हो सकता है जब साधक को मंत्र सिद्धि प्राप्त हो और इसके लिए आवयशक है की "जप" पूर्ण विधान के किया जाये |
आएये हम जप के -विधि विधान पर विमर्श करते है-
शास्त्रों में जप के तीन प्रकार बतलाएं गए हैं
मानसिक जप - बिना जिह्वा या होंठ हिलाए मन में किया जाता है
वाचिक जप - उच्च स्वर में उच्चारित किया जाता है
उपांशु जप - अत्यंत मंद स्वर जिह्वा या होंठ की सहायता से उच्चारित किया जाता है
मानसिक जप को सबसे श्रेष्ठ माना गया है फिर भी साधक अपनी क्षमता एवं गुरु से प्राप्त ज्ञान के अनुसार जप विधि का अनुसरण कर सकता है |
जप के लिए कुछ प्रारंभिक सावधानियां पर ध्यान देना आवयशक है-
१ ) इष्ट की पूजा से प्रारम्भ २ ) निश्चित भूमि एवं वस्त्रों का चयन ३ ) ब्रहमचर्य एवं देहिक व् मानसिक शुद्धता का पालन ४ ) नेमित्तिक पूजा एवं दान ५) मंत्र एवं गुरु में पूर्ण विश्वास ६ ) मन्त्र के दोषों का उन्मूलन ( शास्त्रों में मंत्र के ८ दोष बताये गएँ है - अभक्ति , अक्षर भ्रान्ति , दीर्घ ,ह्रस्व , छिन्न , लुप्त , कथन एवं स्वप्ना कथन ) हेतु संस्कार ७ ) जप संख्या में निरंतर वृद्धि |
किसी भी दोष निवारण के लिए हर मन्त्र का उच्चारण करते समय आनंद का अनुभव करना चाहिए क्योंकि इसी से उस मंत्र से सम्बंधित शक्ति प्रसन्न होती है एवं मन्त्र शीघ्र सिद्ध हो जाता | कोई भी मन में संशय होने पर अपने गुरु से पुनः मंत्र प्राप्त करें |
जप में माला का महत्त्व
जप करने के लिए माला का होना आवश्यक है | कुछ लोग अपने हाथ पर गिनकर भी जप कर लेते है परन्तु लम्बे चलने वाले जप या अधिक संख्या के मन्त्रों के जप के लिए हाथ पर जप करना अभीष्ट नहीं होता है | जप के लिए तीन प्रकार की माला का प्रयोग बताया गया है |
१ ) कर माला - उँगलियों के पोरों पर गिनकर जप किया जाता है पर गिनते समय पोरों के क्रम का ध्यान रखना पड़ता है | इसमें मध्यमा ऊँगली के नीचे या जड़ के दो पोरों को छोड़ना चाहिए , क्योंकि वह ऊँगली के मेरु कहलाते हैं |
२ ) वर्ण माला - इसमें शब्दों के अक्षरों द्वारा संख्या गिनने की प्रक्रिया होती है |
३ ) मणि माला- मणियों अर्थात मानकों में पिरोई हुई माला को कहते हैं | यहाँ पर हम इसीकी की चर्चा करेगे क्योकि यही बहुतायत में प्रयोग की जाती है एवं इसीका का विधान सर्वथा उचित माना गया है |
मनको की माला के प्रयोग हेतु विभिन्न बातोंका ध्यान रखना आवयशक है -
१ ) माला में सुमेरु के अलावा १ ० ८ मनके होने चाहिए एवं पिरोते समय मनकों के अग्र एवं पुच्छ भाग की दिशा का ध्यान रखना चाहिए
२) भिन्न - भिन्न देवता या ग्रह अथवा भिन्न प्रयोजन या कामनापूर्ति के लिए उनसे संभंधित पदार्थों की माला प्रयोग में लानी चाहिए जैसे बृहस्पति की शान्ति हेतु हल्दी की माला , हनुमान और शिव की प्रसनता हेतु रुद्राक्ष की माला और लक्ष्मी प्राप्ति के लिए स्फटिक की माला
३ ) प्रातः काल में माला को नाभि के पास रखकर, मध्यान काल में माला को हृदय के पास रखकर और सायंकाल में माला को मस्तक के पास रखकर जप करने चाहिए |
४ ) जप करते समय माला के सुमेरु को नहीं लांघना चाहिए | एक से अधिक बार माला फेरने की स्थिति में सुमेरु तक पहुँचाने के उपरांत माला उलटी फेरनी चाहिए |
५) प्रयोग में लेने से पूर्व , माला का विधिवत 'माला -संस्कार ' होना चाहिए |
अशुभ ग्रहो के दोष से बचाव के लिये स्नान
अशुभ ग्रहो के दोष से बचाव के लिये स्नान ।
वर्तमान युग मे रत्न धारण को ही ग्रहो की अनुकूलता का एक मात्र विकल्प मान लिया जो उचित नही है ।
ग्रहो की अनुकूलता अनिष्ट फल को शमन करने और शुभ फल प्राप्ति के लिए ओषधियो को जल मे भिगोकर अथवा उनके क्वाथ को जल मे मिलाकर स्नान करने का विधान अत्यन्त श्रेष्ठ रहता है ।
ज्योतिषीय प्रसिद्ध ग्रन्थ ज्योतिर्विदाभरण ग्रन्थ मे लिखा है। -
" खगेरिता साधुफलं जनेन
तदर्चया यत्तदितं वरेण्यम् ।
सदौषधिस्नान विधानहोमा
पवर्जनेभ्योऽभ्युदयाय वा स्यात्। ।
अर्थात ग्रहो के अनिष्ट फल की शान्ति ग्रह- पूजा , ओषधि स्नान, होम एवं दान करने से होती है और मनुष्य का अभ्युदय होता है ।
सभी ग्रहो की ओषधि स्नान वस्तुऐ निम्नवत प्रकार से है।
सूर्य -
सूर्य की अनिष्ट शान्ति के लिए देवदारू , जेठीमधु , कमल गट्टा ,इलायची , मनःशिल , खस से स्नान करने से लाभ प्राप्त होता है ।
चन्द्रमा -
चन्द्रमा की अनिष्ट शान्ति के लिये पंचगव्य , बिल्व , कमल ,मोती की सीप शंख से स्नान करना लाभदायक रहता है ।
मंगल -
मंगल की अनिष्ट शान्ति के लिए चन्दन , बिल्व , बैगनमूल , बरियारा के बीच ( खरेटी ) ,जटामासी , लाल पुष्प ,सुगंध वाला , नागकेशर और जपापुष्प से स्नान करना चाहिए।
बुध -
बुध अनिष्ट शान्ति के लिए नागकेशर, पोहकरमूल , अक्षत , मुक्ताफल , गोरोचन , मधु , मैनफल और पंचगव्य से स्नान करना श्रेष्ठ रहता है ।
बृहस्पति -
गुरु की अनिष्ट शान्ति के लिए पीली सरसो , जेठीमधु , मालती पुष्प , जुही के फूल और पत्ते से स्नान करना उचित रहता है ।
शुक्र-
शुक्र के अच्छे फल प्राप्ति के लिए श्वेत कमल , मनःशिल , सुगंधबाला , इलायची , पोहकरमूल , और केशर से नहाना सर्वाधिक हितकर रहता है ।
शनि -
शनि की अनिष्ट निवारक के लिए काला सुरमा , बरियारा के बीज ( खरेटी ) ,काले तिल , धान का लावा , लोध , मोथा और सौफ से स्नान करना उत्तम फलदायक रहता है ।
राहु -
राहु अनिष्ट निवारण के लिए बिल्व पत्र , लाल चंदन , लोध , कस्तूरी , गजमद , दूर्वा , मोथा से स्नान लाभप्रद रहता है ।
केतु -
केतु की अनिष्ट शान्ति के लिए रक्त चंदन , रतनजोत , कस्तूरी ,मोथा , गजमद , लोध , सुगंधबाला, दाडिम, गुडूची से स्नान करना श्रेष्ठ फलदायक रहता है ।
उपरोक्त ग्रहो के निमित्त ओषधि स्नान अनिष्ट निवारक एवं शुभ प्रभाव प्रदान करने वाले हैं शास्त्रोक्त एवं मालूमी व्यय वाले एवं अति शीघ्र फलदायक रहते है। जनोपयोगी एवं अत्यन्त श्रेष्ठ है। का उपयोग कर ग्रहो की अनुकूलता प्राप्त की जा सकती है। जन्म कुंडली के अनुसार अनिष्ट फल प्रदान करने वाला ग्रह दशा चक्र होने पर उपरोक्त ओषधि स्नान कर ग्रहो की कृपा आसानी से प्राप्त की जा सकती है ।
ॐ रां रामाय नमः
श्री राम ज्योतिष सदन
भारतीय ज्योतिष, अंक ज्योतिष
पर आधारित जन्मपत्रिका और वर्षफल बनवाने के लिए सम्पर्क करें।
अगर आप व्यक्तिगत रूप से या फोन पर एस्ट्रोलॉजर पंडित आशु बहुगुणा से अपनी समस्याओं को लेकर बात करना चाहते हैं।अपनी नई जन्मपत्रिका बनवाना चाहते हैं। या अपनी जन्मपत्रिका दिखाकर उचित सलाह चाहते हैं। मेरे द्वारा निर्धारित फीस/शुल्क अदा कर के आप बात कर सकते हैं।
मोबाइल नं-9760924411
फीस संबंधी जानकारी के लिए Facebook page के message box में message करें। आप Whatsapp भी कर सकते हैं।
नं-9760924411
कृपया निशुल्क: ज्योतिष-वास्तु परामर्श संबंधी फोन अथवा मैसेज ना करें।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ (Atom)
astroashupandit
Consultations by Astrologer - Pandit Ashu Bahuguna Skills : Vedic Astrology , Horoscope Analysis , Astrology Remedies , Prash...
-
ॐ श्री काल भैरव बटुक भैरव शाबर स्तोत्र मंत्र ॐ अस्य श्री बटुक भैरव शाबर स्तोत्र मन्त्रस्य सप्त ऋषिः ऋषयः , मातृका छंदः , श्री बटुक भैरव ...