Saturday 11 September 2021

अपराजिता

तंत्रोक्त जड़ी बूटी दर्शन अपराजिता .......
    यह एक लता जातीय बूटी है जो की वन उपवनो में विभिन्न वृक्षों के या तारो के सहारे उर्ध्वगामी होकर सदा हरीभरी रहती है ! यह लता भारत के समस्त भागो में बहुलता से पाई जाती है और इसकी विशेष उपयोगिता बंगाल में दुर्गा देवी तथा श्री महाकाली जी की पूजन में स्पष्ट दर्शित होती है !
    भारत के विशेष पर्व नवरात्री के शुभ अवसर पर गोपनीय पूजा में ९ वृक्षों की टहनियों का भी पूजन होता है, इसमें से एक अपराजिता भी है, अपराजिता पुष्प भेद के कारन २ प्रकार की होती है १ नीले पुष्प वाली तथा २. श्वेत पुष्प वाली .... नीले वाली पुष्प लता को कृष्णकांता और श्वेत पुष्प वाली लता को विष्णु कांता कहा जाता है, मुख्यता दोनों को अपराजिता कहा जाता है....... इसके पत्ते बन्मूंग की भांति आकर में कुछ बड़े होते है, प्रत्येक शाखा से निकलने वाली प्रत्येक सींक पर ५ या ७ पत्ते दिखाई देते है! अपराजिता का पुष्प सीप की भांति आगे की तरफ गोलाकार होते हुए पीछे की तरफ संकुचित होता चला जाता है, पुष्प के मध्य में एक और पुष्प होता है जो की स्त्री की योनी की भांति होता है, संभवतः इसी कारन शास्त्रों में इसे भग्पुश्पी तथा योनी पुष्प का नाम दिया गया है ! नीले फूल वाली भग पुष्पा के भी २ भेद है जो की ऊपर वर्णित के अलावा केवल इकहरा पुष्प ही होता है....
    इसकी जड़ धारण करने से भूत प्रेतादी की समस्या का निवारण होकर समस्त ग्रहदोष समाप्त हो जाते है, इसके प्रयोग इस प्रकार है..............

    १. प्रसव के समय कष्ट से तड़पती या मरणासन्न हुई गर्भवती स्त्री की कटी में श्वेत अपराजिता की लता लाकर लपेट देने से कष्ट का निवारण हो जाता है और प्रसव में सुगमता हो जाती है...........

    २. जब बिच्छु काट ले तो दंशित स्थल पर ऊपर से निचे की तरफ श्वेत अपराजिता की जड़ को रगड़े और उसी तरफ वाले हाथ में इसकी जड़ दबा दे तो पांच मिनट में ही विष उतर जाता है........

    ३. कृष्णकांता की जड़ को नीले कपडे में लपेट कर शनिवार वाले दिन रोगी के कंठ में पहना दे तो लाभ होगा, इसके साथ इस इसके पत्ते और नीम के पत्तो की धूप दी जाये या इनका रस निकल कर एकसार करके नाक में टपका देने से आश्चर्यमयी लाभ प्राप्त होता है.........

    ४. प्राय किसी न किसी कारन से नवविवाहिता चाहते हुए भी गर्भ धारण नहीं कर पति जिस कारन उनकी मानहानि अत्यधिक होती है कभी कभी इन्हें बाँझ मानकर श्रीमानजी दूसरी शादी कर लेते है, ऐसी स्त्रिया नीली अपराजिता की जड़ को काली बकरी के शुद्ध दूध में पीस कर के मासिक स्त्राव की समाप्ति पर स्नान के पश्चात् पी जाये और सारे दिन भगवन कृष्ण की बाल रूप में पूजन करते हुए व्रत रखे फिर रात्रि में गर्भ धारण की इच्छा रखते हुए पति के साथ सहवास करे तो गर्भवती हो जाती है. अगर एक बार के प्रयोग से लाभ न हो तो अगले मासिक स्त्राव के स्नान पर लगातार तीन दिन तक ये प्रयोग करती रहे तो अवश्य लाभ होगा...........

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