साधक को किसी अपरिचित स्थान में रुकने का जब अवसर मिले और उसे ऐसा लगे कि ‘मैं यहां कैसे सुविधा प्राप्त करूँ? यहां मुझे तो कोई पहचानता भी नहीं !’ तब सरलता से सुविधा पाने के लिए निम्न ‘साबर-मन्त्न’ का उपयोग किया जाता है । मन्त्र को उज्जीवित करने के लिए होली या दीपावली की रात्नि में तथा चन्द्र-सूर्य-ग्रहण के समय इस मन्त्र का १०८ बार जप कर लेना चाहिए । इन पर्वो पर साधक को सदा प्रत्येक बार इतना ही जप करते रहना चाहिए, अन्यथा मन्त्र प्रसुप्त हो जाएगा और फल-प्रद नही होगा । मन्त्र :- “गच्छ गौतम ! शीघ्र त्वं, ग्रामेषु नगरेषु च । अशनं वसनं चैव, ताम्बूलं तत्र कल्पय ।।” जहां साधक को ठहरना है, उस स्थान की सीमा में पहुँच कर उक्त मन्त्र को सात (७) बार पड़े । मन्त्र पढ़ते समय सफेद दूर्वा के तीन छोटे टुकड़े हाथ में रखने चाहिए । सात बार मन्त्र पढ़कर दूर्वा के टुकड़ों को शिखा या बालों में उलझाए । ठहरने के स्थान पर सब सुविधा मिलने तक इन टुकड़ों को केशों में उलझा रहने दे । आपको यदि ऐसा लगे कि ठीक समय पर सफेद दूर्वा नहीं मिलेगी, तो उसे यात्रा और पर्यटन में अपने साथ ले जाए ।
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