Friday, 10 September 2021

शरीर रक्षा शाबर

शरीर रक्षा शाबर मन्त्र ‘मन्त्र-विद्या’ का प्रयोग करने वाले को देहाती भाषा में ‘ओझा’ कहते हैं।
ओझा’ भी जब झाड़-फूँक ले लिए कहीं जाता है, तो घर से चलते समय या उस स्थान पर पहुँच कर सबसे पहले अपने शरीर की रक्षा के लिए शरीर-रक्षा का मन्त्र पढ़ लेता है, जिससे यदि उस स्थान पर भूत-प्रेतादि का उपद्रव हो, तो उसे हानि न पहुँचा सके । शरीर-रक्षा का ऐसा ही एक मन्त्र यहाँ उद्धृत है – ” उत्तर बाँधों, दक्खिन बाँधों, बाँधों मरी मसानी, डायन भूत के गुण बाँधों, बाँधों कुल परिवार, नाटक बाँधों, चाटक बाँधों, बाँधों भुइयाँ वैताल, नजर गुजर देह बाँधों, राम दुहाई फेरों ।” प्रयोग विधिः- उक्त मन्त्र को अधिक-से-अधिक संख्या में किसी पर्व-काल में जप लेने से वह सिद्ध हो जाता है । शरीर-रक्षा की आवश्यकता पड़े, तो सिद्ध मन्त्र का नौ बार उच्चारण करके हाथ की हथेली पर नौ बार फूँक मारे और हथेली को पूरे शरीर पर फिरा दें । इससे देह बँध जाएगी ।



शरीर रक्षा शाबर मन्त्र मन्त्रः- “ॐ नमः वज्र का कोठा, जिसमें पिण्ड हमारा बैठा । ईश्वर कुञ्जी, ब्रह्मा का ताला, मेरे आठों याम का यति हनुमन्त रखवाला ।” प्रयोग एवं विधिः- किसी मंगलवार से उक्त मन्त्र का जप करे । दस हजार जप द्वारा पुरश्चरण कर लें । श्री हनुमान् जी को सवाया रोट का चूरमा (गुड़, घी मिश्रित) अर्पित करें । कार्य के समय मन्त्र का तीन बार उच्चारण कर शरीर पर हाथ फिराएँ, तो शरीर रक्षित हो जाता है ।



सिद्ध शाबर मन्त्र-कल्पतरु आत्म-बल, स्व-शरीर-रक्षा का अनुभूत मन्त्र मन्त्र :- (१) “ॐ गुरू जी काल-भैरव ! काली लट हाथ, फरसी साथ, नगरी करहुँ प्रवेश । नगरी की करो बकरी । राजा को करो बिलाई । जो कोई मेरा जोग भङ्ग करै, बाबा कृष्णनाथ की दुहाई ।” विधि – किसी ग्राम या नगर में किसी विशिष्ट काम से जाएँ, तो उस नगर या गाँव में प्रवेश करते ही ७ बार उक्त मन्त्र को पढ़कर फूँक मार कर प्रवेश करें । सभी काम अवश्य पूर्ण होंगे । प्रयोग करने से पूर्व मन्त्र को होली, दीवाली, मङ्गल या अमावास्या को १००८ बार जप कर, हवन कर, सिद्ध कर लेना आवश्यक है ।



सिद्ध शाबर मन्त्र-कल्पतरु आत्म-बल, स्व-शरीर-रक्षा का अनुभूत मन्त्र मन्त्र :- “ॐ गुरू जी गनेपाइयाँ, रिद्धि-सिद्धि आइयाँ । रिद्धि-सिद्धि भरै भण्डार, कमी कछू की नाहीं । पीर-पैगम्बर औलिया- सबको राह बताई । हाथा तो हनुमन्त बसे, भैरो बसे कपाल । दो नैनन बिच, नाहर सिंह, मोह लीन संसार । बिन्द्रा लाव, सिन्दूर का सोहै माँग लिलार । बज्र लंगोटा, जङ्गल बासा, भूत – प्रेत नहीं आवे पासा । चार जोगी चौबीस पीर, रक्षा करै बावल्दा बीर । हाथन के हथेली बाँधो, नैनन के बाँधो जोत । बाँध-बाँधू कर करौ उ गुलाम, बैरी दुश्मन करै प्रणाम । राजा-प्रजा लागै पाँव, तहाँ बनै गनेश जी की तालियाँ ।” विधि-उक्त मन्त्र से लक्ष्मण-रेखा की भाँति अचूक रक्षा होती है । सिद्ध पर्व-काल में १००८ बार मन्त्र जप कर हवन करने से मन्त्र सिद्ध हो जाता है ।

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