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Monday, 16 August 2021
छिन्नमस्ताद्वादशनामस्तोत्रम्
छिन्नमस्ताद्वादशनामस्तोत्रम्
।। ॐ हूं ॐ ।।
छिन्नग्रीवा छिन्नमस्ता छिन्नमुण्डधराऽक्षता ।
क्षोदक्षेमकरी स्वक्षा क्षोणीशाच्छादनक्षमा ॥ १॥
वैरोचनी वरारोहा बलिदानप्रहर्षिता ।
बलिपूजितपादाब्जा वासुदेवप्रपूजिता ॥ २॥
इति द्वादशनामानि छिन्नमस्ताप्रियाणि यः ।
स्मरेत्प्रातः समुत्थाय तस्य नश्यन्ति शत्रवः ॥ ३॥
इति छिन्नमस्ताद्वादशनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
अर्थात् -
१) छिन्नग्रीवा - जिन्होंने अपने भक्तों के लिए अपना कंठ काट लिया है।
२) छिन्नमस्ता - जिन्होंने अपने भक्तों के लिए अपना मस्तक काट लिया है, अर्थात् अपना जीवन ही भक्तों के निमित्त अर्पित कर दिया है।
३) छिन्नमुण्डधरा - जो अपना मस्तक काटकर अपने बाएं हाथ मे धारण करती हैं।.
४) अक्षता - जो पूर्ण है, जिनका कभी पराभव नही होता, जो सम्पूर्ण हैं।
५) क्षोदक्षेमकरी - उपद्रव शांत करने में प्रवीण ।
६) स्वक्षा - सुंदर नेत्रो वाली।
७) क्षोणीशाच्छादनक्षमा - राजाओं का पालन-रक्षण करने वाली ।
८) वैरोचनी - इंद्र की पत्नी ( भगवान शंकर को उपनिषद में इंद्र कहा गया है अतः शंकर पत्नी भावार्थ लगायें)
९) वरारोहा - अत्यंत सुंदर वपु वाली
१०) बलिदान प्रहर्षिता - भक्तो द्वारा अर्पित विभिन्न पूजन सामग्रियों, फल, मिष्ठान्न, नारियल, फूल आदि से प्रसन्न होने वाली।
११) बलिपूजितपादाब्जा - जिनके चरण कमलों में विभिन्न पदार्थ अर्पित किए जाते हैं या इन उत्तम।पदार्थों से पूजित चरण कमल वाली (फल, फूल, मिष्ठान्न, मेवा, रत्न, स्वर्ण आदि आदि)
१२) वासुदेवप्रपूजिता - श्रीकृष्ण द्वारा पूजित व उपसित।
जो इन १२ नामो को प्रातः उठते ही स्मरण करता है उसके सभी शत्रुओं का नाश होता है। इन १२ नामो का निरंतर चिंतन करने वाले के सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।
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