अनिष्ट निवारक दक्षिणावृत्ति शंख
दक्षिणावृत्ति शंख कल्प में लिखा है-
- जिस घर में यह शंख रहता है वह कभी भी धन-धान्य से रिक्त नहीं रहता।
- भगवान विष्णु का आयुध होने के कारण यह अत्यंत मंगलकारी है।
- जिस परिवार में शास्त्रोक्त उपायों द्वारा इसकी स्थापना की जाती है, वहॉ भूत, प्रेत, पिशाच, ब्रह्मराक्षस द्वारा पहुचाये जा रहे दुर्भिक्षों का स्वतः ही समाधान होने लगता है।
- शत्रु पक्ष कितना भी बलशाली क्यों न हो इसके प्रभाव से हानि नहीं पहॅुचा पाता।
- इसके प्रभाव से दुर्घटना, मृत्यु भय, चोरी आदि से रक्षा होती है।
दक्षिणावृत्ति शंख की महिमा अनेक प्रमाणिक ग्रंथों में मिलती है।
महाभारत में सभी योद्धाओं ने युद्ध घोष के लिए अलग-अलग शंख बजाये थे। गीता में इस विषय में लिखा है -
श्री कृष्ण भगवान ने पांचजन्य नामक, अर्जुन ने देवदत्त, भीम सेन ने पौंड्र शंख बजाया था। युधिष्ठिर ने अनंत विजय शंख, नकुल ने सुघोष एवं सहदेव ने मणिपुष्पक नामक शंखनाद किया था। पुलस्त्य संहिता में वर्णित है-
लक्ष्मी को प्राप्त करना और उसे स्थाई रुप से निवास देने का एक मात्र प्रयोग दक्षिणावृत्ति शंख प्रयोग ही है, जो कि अपने में आश्चर्यजनक रुप से धन देने में समर्थ है। इसके प्रयोग से ऋण, दरिद्रता तथा रोग आदि मिट जाता है तथा हर प्रकार से संपन्नता आने लगती है।
विश्वामित्र संहिता में वर्णनन आता है-
दक्षिणावृत्ति शंख कल्प प्रयोग से जो सफलता मिलती है, वह आश्चर्यजनक रुप से अद्वितीय है। धन वर्षा करने और सुख समृद्धि प्रदान करने में इसकी तो कोई तुलना ही नहीं है।
गौरक्ष संहिता में लिखा है-
दक्षिणावृत्ति शंख कल्प प्रयोग एक श्रेष्ठ तांत्रिक प्रयोग है। इसका प्रभाव तुरंत तथा अचूक होता है।
मार्कन्डय पुराण के अनुसार -
भगवती लक्ष्मी के सभी प्रयोगों में दक्षिणावृत्ति शंख प्रयोग ही सर्वाधिक प्रमाणिक व धनवर्षा करने में समर्थ है। इसका प्रयोग उज्जवल रत्नों का सागर है।
लक्ष्मी संहिता में लिखा है-
सभी प्रकार से दरिद्रता, दुःख, अभाव, रोग आदि को मिटाने में दक्षिणावृत्ति कल्प प्रयोग आश्चर्यजनक रुप से सफलता प्रदान करता है।
विष्णुपुराण के अनुसार-
समुद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में शंख भी एक है। माता लक्ष्मी समुद्र राज की पुत्री तथा शंख उनका सहोदर भाई है। अतः जहां शंख है, वही लक्ष्मी का वास है। स्वर्ग लोक में अष्ट सिद्धियों एवं नवनिधियों में शंख का स्थान महत्वपूर्ण है।
कहने का तात्पर्य यह है कि शंख को विजय, समृद्धि, सुख, यश, कीर्ति तथा लक्ष्मी का साक्षात प्रतीक माना गया है। धार्मिक कृत्यों, अनुष्ठान-साधना, तांत्रिक क्रियाओं आदि में शंख का प्रयोग सर्वविदित है। परंतु विडम्बना है कि न तो हमें उचित शंख मिल पाते हैं और न ही हम उनका उचित प्रयोग कर पाते हैं। परिणाम स्वरुप हमें वांछित फल भी नहीं मिल पाते हैं। बाजार में आसानी से उपलब्ध किये जा रहे शंख वास्तव में 90 प्रतिशत तक खण्डित होते हैं। इसीलिए उनके सुप्रभाव हम अनुभूत नहीं कर पाते।
शंख अनेक नामों से मिलते हैं। जैसे लक्ष्मी शंख, गौमुखी शंख, कामधेनु शंख, विष्णु शंख, देव शंख, चक्र शंख, पौड्र शंख, शुघोष शंख, मणिपुष्पक शंख, राक्षस शंख, शेषनाग शंख, शनि, राहु, केतु आदि शंख।
आकृति के अनुसार इन्हें तीन श्रेणियों में रखा गया है-
दक्षिणावृत्ति शंख अर्थात् दायें हाथ से पकड़ा जाने वाला, वामावृत्ति अर्थात् वायें हाथ से पकड़ा जाने वाला तथा मध्यावृत्ति अर्थात् बीच में खुले मुह वाला शंख। अपने चमत्कारिक गुणों के कारण दक्षिणावृत्ति तथा मध्यावृत्ति शंख सरलता से नहीं मिल पाते। सौभाग्य से यदि आपको निर्दोष शंख मिल जाए तो उसे किसी शुभ मुहूर्त में गंगा जल, गौघृत, कच्चा दूध, मधु, गुड़ आदि से अभिषेक करके अपने पूजा स्थल में लाल कपड़े के आसन पर स्थापित कर लीजिए। इससे लक्ष्मी का चिर स्थाई निवास बना रहेगा। यदि लक्ष्मी जी की विशेष कृपा के आप अभिलाषी हैं तो दक्षिणावृत्ति शंख का जोड़ अर्थात् नर और मादा दो शंखों को देव प्रतिमा के सम्मुख स्थापित कर लें।
शंख की विभिन्न प्रजातियों के अनुरुप शास्त्रों में विभिन्न प्रयोजनों की व्याख्या मिलती है। यथा नाम अन्नपूर्णा शंख घर में धन-धान्य की वृद्धि करता है। मणिपुष्पक तथा पांचजन्य शंख से भवन के विभिन्न वास्तु दोषों का निवारण होता है। ऐसे शंख में जल भर कर भवन में छिड़कने से सौभाग्य का आगमन होता है। गणेश शंख में रखा हुआ जल सेवन करने से अनेक रोगों का शमन होता है। विष्णु नामक शंख से कार्य स्थल में छिड़काव करने से उन्नति के अवसर बनने लगते हैं।
जो साधक दक्षिणावृत्ति शंख कल्प करना चाहते हैं, वह सरल सा यह प्रयोग करके देखें, उनको आशातीत लाभ अवश्य ही मिलेगा।
पूजा सामग्री :
मुख्य सामग्री तो निर्दोष तथा पवित्र शंख ही है। इसके अतिरिक्त शुद्ध घी का दीपक, अगरबत्ती, कुमकुम, केसर, चावल, जल का पात्र, पुष्प, कच्चा दूध, चांदी का वर्क, इत्र, कपूर तथा नैवैध अर्थात् प्रसाद की व्यवस्था पूर्व में करके रख लें।
पूजन विधि :
शुभ मुहूर्त में प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें। एक पात्र में सामने शंख रख लें। उसे दूध तथा जल से स्नान कराएं। साफ कपड़े से उसे पोंछ कर उस पर चांदी का वर्क लगाएं। घी का दीपक जला कर अगरबत्ती जला लें। दूध तथा केसर मिश्रित घोल से शंख पर ‘श्रीं’ एकाक्षरी मंत्र लिख कर उसे तांबे अथवा चांदी के पात्र में स्थापित कर दें। अब निम्न मंत्र का जप करते हुए इस पर कुमकुम चावल तथा इत्र अर्पित करें। श्वेत पुष्प शंख पर चढ़ा कर प्रसाद भोग के रुप में अर्पित करें।
मंत्र-
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रीधर करस्थायपयोनिधि जाताय श्री। दक्षिणावृत्ति शंखाय ह्रीं श्रीं क्लीं श्रीकराय पूज्याय नमः।।
अब मन, क्रम तथा वचन से शंख का ध्यान करें।
ध्यान मंत्र-
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं दक्षिणावृतशंखाय भगवते विश्वरुपाय सर्वयोगीश्वराय त्रैलोक्यनाथाय सर्वकामप्रदाय सर्वऋद्धि समृद्धि वांछितार्थसिद्धिदाय नमः। ॐ सर्वाभरण भूषिताय प्रशस्यांगोपांगसंयुताय कल्पवृक्षाधः - स्थिताय कामधेनु - चिन्तामणि - नर्वानधिरुपाय चतुर्दशरत्नपरिवृताय महासिद्धि - संहिताय लक्ष्मीदेवतायुताय कृष्णदेवताकर ललिताय- श्री शंखमहानिधये नमः।
ध्यान मंत्र आवाहन मंत्र है अर्थात् स्तुति मंत्र है। इसके साथ 11 माला बीज मंत्र अथवा पांचजन्य गायत्री शंख मंत्र की जपना आवश्यक है।
बीज मंत्र-
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं दक्षिणमुखाय शंख निधये समुद्रप्रभावय नमः।
शंख गायत्री मंत्र-
ॐ पांचजन्याय विद्महे। पावमानाय धीमहि। तंनः शंखः प्रचोदयात्।
ऋद्धि-सिद्धि तथा सुख-समृद्धि के लिए एक बहुत ही सरल सा प्रयोग है। यदि आपके पास कोई दखिणावृत्ति शंख है तो उसका उपरोक्त ध्यान मंत्र से उसका पूजन कर लें। गायत्री अथवा बीज मंत्र अथवा दोनों मंत्र शंख के सामने बैठ कर जपते रहें। एक मंत्र पूरा होने पर शंख में ठीक अग्नि में सामग्री होम करने की तरह चावल तथा नाग केसर दांये हाथ के अंगूठे तथा मध्यमा तथा अनामिका उंगली से छोड़ते रहें। जब शंख भर जाए तो उसे घर में स्थापित कर लें। ध्यान रखें कि शंख की पूंछ उत्तर-पूर्व दिशा की ओर रहे। किसी शुभ मुहूर्त अथवा दीवाली से पूर्व धन त्रियोदशी के दिन पुराने चावल तथा नागकेसर उपरोक्त विधि से पुनः बदल लिया करें।
इस प्रकार सिद्ध किया हुआ शंख लाल कपड़े में लपेट कर धन, आभूषण आदि रखने के स्थान पर स्थापित करने से जीवन के हर क्षेत्र में निरंतर श्री की प्राप्ति होने लगती है
दक्षिणावृत्ति शंख कल्प में लिखा है-
- जिस घर में यह शंख रहता है वह कभी भी धन-धान्य से रिक्त नहीं रहता।
- भगवान विष्णु का आयुध होने के कारण यह अत्यंत मंगलकारी है।
- जिस परिवार में शास्त्रोक्त उपायों द्वारा इसकी स्थापना की जाती है, वहॉ भूत, प्रेत, पिशाच, ब्रह्मराक्षस द्वारा पहुचाये जा रहे दुर्भिक्षों का स्वतः ही समाधान होने लगता है।
- शत्रु पक्ष कितना भी बलशाली क्यों न हो इसके प्रभाव से हानि नहीं पहॅुचा पाता।
- इसके प्रभाव से दुर्घटना, मृत्यु भय, चोरी आदि से रक्षा होती है।
दक्षिणावृत्ति शंख की महिमा अनेक प्रमाणिक ग्रंथों में मिलती है।
महाभारत में सभी योद्धाओं ने युद्ध घोष के लिए अलग-अलग शंख बजाये थे। गीता में इस विषय में लिखा है -
श्री कृष्ण भगवान ने पांचजन्य नामक, अर्जुन ने देवदत्त, भीम सेन ने पौंड्र शंख बजाया था। युधिष्ठिर ने अनंत विजय शंख, नकुल ने सुघोष एवं सहदेव ने मणिपुष्पक नामक शंखनाद किया था। पुलस्त्य संहिता में वर्णित है-
लक्ष्मी को प्राप्त करना और उसे स्थाई रुप से निवास देने का एक मात्र प्रयोग दक्षिणावृत्ति शंख प्रयोग ही है, जो कि अपने में आश्चर्यजनक रुप से धन देने में समर्थ है। इसके प्रयोग से ऋण, दरिद्रता तथा रोग आदि मिट जाता है तथा हर प्रकार से संपन्नता आने लगती है।
विश्वामित्र संहिता में वर्णनन आता है-
दक्षिणावृत्ति शंख कल्प प्रयोग से जो सफलता मिलती है, वह आश्चर्यजनक रुप से अद्वितीय है। धन वर्षा करने और सुख समृद्धि प्रदान करने में इसकी तो कोई तुलना ही नहीं है।
गौरक्ष संहिता में लिखा है-
दक्षिणावृत्ति शंख कल्प प्रयोग एक श्रेष्ठ तांत्रिक प्रयोग है। इसका प्रभाव तुरंत तथा अचूक होता है।
मार्कन्डय पुराण के अनुसार -
भगवती लक्ष्मी के सभी प्रयोगों में दक्षिणावृत्ति शंख प्रयोग ही सर्वाधिक प्रमाणिक व धनवर्षा करने में समर्थ है। इसका प्रयोग उज्जवल रत्नों का सागर है।
लक्ष्मी संहिता में लिखा है-
सभी प्रकार से दरिद्रता, दुःख, अभाव, रोग आदि को मिटाने में दक्षिणावृत्ति कल्प प्रयोग आश्चर्यजनक रुप से सफलता प्रदान करता है।
विष्णुपुराण के अनुसार-
समुद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में शंख भी एक है। माता लक्ष्मी समुद्र राज की पुत्री तथा शंख उनका सहोदर भाई है। अतः जहां शंख है, वही लक्ष्मी का वास है। स्वर्ग लोक में अष्ट सिद्धियों एवं नवनिधियों में शंख का स्थान महत्वपूर्ण है।
कहने का तात्पर्य यह है कि शंख को विजय, समृद्धि, सुख, यश, कीर्ति तथा लक्ष्मी का साक्षात प्रतीक माना गया है। धार्मिक कृत्यों, अनुष्ठान-साधना, तांत्रिक क्रियाओं आदि में शंख का प्रयोग सर्वविदित है। परंतु विडम्बना है कि न तो हमें उचित शंख मिल पाते हैं और न ही हम उनका उचित प्रयोग कर पाते हैं। परिणाम स्वरुप हमें वांछित फल भी नहीं मिल पाते हैं। बाजार में आसानी से उपलब्ध किये जा रहे शंख वास्तव में 90 प्रतिशत तक खण्डित होते हैं। इसीलिए उनके सुप्रभाव हम अनुभूत नहीं कर पाते।
शंख अनेक नामों से मिलते हैं। जैसे लक्ष्मी शंख, गौमुखी शंख, कामधेनु शंख, विष्णु शंख, देव शंख, चक्र शंख, पौड्र शंख, शुघोष शंख, मणिपुष्पक शंख, राक्षस शंख, शेषनाग शंख, शनि, राहु, केतु आदि शंख।
आकृति के अनुसार इन्हें तीन श्रेणियों में रखा गया है-
दक्षिणावृत्ति शंख अर्थात् दायें हाथ से पकड़ा जाने वाला, वामावृत्ति अर्थात् वायें हाथ से पकड़ा जाने वाला तथा मध्यावृत्ति अर्थात् बीच में खुले मुह वाला शंख। अपने चमत्कारिक गुणों के कारण दक्षिणावृत्ति तथा मध्यावृत्ति शंख सरलता से नहीं मिल पाते। सौभाग्य से यदि आपको निर्दोष शंख मिल जाए तो उसे किसी शुभ मुहूर्त में गंगा जल, गौघृत, कच्चा दूध, मधु, गुड़ आदि से अभिषेक करके अपने पूजा स्थल में लाल कपड़े के आसन पर स्थापित कर लीजिए। इससे लक्ष्मी का चिर स्थाई निवास बना रहेगा। यदि लक्ष्मी जी की विशेष कृपा के आप अभिलाषी हैं तो दक्षिणावृत्ति शंख का जोड़ अर्थात् नर और मादा दो शंखों को देव प्रतिमा के सम्मुख स्थापित कर लें।
शंख की विभिन्न प्रजातियों के अनुरुप शास्त्रों में विभिन्न प्रयोजनों की व्याख्या मिलती है। यथा नाम अन्नपूर्णा शंख घर में धन-धान्य की वृद्धि करता है। मणिपुष्पक तथा पांचजन्य शंख से भवन के विभिन्न वास्तु दोषों का निवारण होता है। ऐसे शंख में जल भर कर भवन में छिड़कने से सौभाग्य का आगमन होता है। गणेश शंख में रखा हुआ जल सेवन करने से अनेक रोगों का शमन होता है। विष्णु नामक शंख से कार्य स्थल में छिड़काव करने से उन्नति के अवसर बनने लगते हैं।
जो साधक दक्षिणावृत्ति शंख कल्प करना चाहते हैं, वह सरल सा यह प्रयोग करके देखें, उनको आशातीत लाभ अवश्य ही मिलेगा।
पूजा सामग्री :
मुख्य सामग्री तो निर्दोष तथा पवित्र शंख ही है। इसके अतिरिक्त शुद्ध घी का दीपक, अगरबत्ती, कुमकुम, केसर, चावल, जल का पात्र, पुष्प, कच्चा दूध, चांदी का वर्क, इत्र, कपूर तथा नैवैध अर्थात् प्रसाद की व्यवस्था पूर्व में करके रख लें।
पूजन विधि :
शुभ मुहूर्त में प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें। एक पात्र में सामने शंख रख लें। उसे दूध तथा जल से स्नान कराएं। साफ कपड़े से उसे पोंछ कर उस पर चांदी का वर्क लगाएं। घी का दीपक जला कर अगरबत्ती जला लें। दूध तथा केसर मिश्रित घोल से शंख पर ‘श्रीं’ एकाक्षरी मंत्र लिख कर उसे तांबे अथवा चांदी के पात्र में स्थापित कर दें। अब निम्न मंत्र का जप करते हुए इस पर कुमकुम चावल तथा इत्र अर्पित करें। श्वेत पुष्प शंख पर चढ़ा कर प्रसाद भोग के रुप में अर्पित करें।
मंत्र-
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रीधर करस्थायपयोनिधि जाताय श्री। दक्षिणावृत्ति शंखाय ह्रीं श्रीं क्लीं श्रीकराय पूज्याय नमः।।
अब मन, क्रम तथा वचन से शंख का ध्यान करें।
ध्यान मंत्र-
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं दक्षिणावृतशंखाय भगवते विश्वरुपाय सर्वयोगीश्वराय त्रैलोक्यनाथाय सर्वकामप्रदाय सर्वऋद्धि समृद्धि वांछितार्थसिद्धिदाय नमः। ॐ सर्वाभरण भूषिताय प्रशस्यांगोपांगसंयुताय कल्पवृक्षाधः - स्थिताय कामधेनु - चिन्तामणि - नर्वानधिरुपाय चतुर्दशरत्नपरिवृताय महासिद्धि - संहिताय लक्ष्मीदेवतायुताय कृष्णदेवताकर ललिताय- श्री शंखमहानिधये नमः।
ध्यान मंत्र आवाहन मंत्र है अर्थात् स्तुति मंत्र है। इसके साथ 11 माला बीज मंत्र अथवा पांचजन्य गायत्री शंख मंत्र की जपना आवश्यक है।
बीज मंत्र-
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं दक्षिणमुखाय शंख निधये समुद्रप्रभावय नमः।
शंख गायत्री मंत्र-
ॐ पांचजन्याय विद्महे। पावमानाय धीमहि। तंनः शंखः प्रचोदयात्।
ऋद्धि-सिद्धि तथा सुख-समृद्धि के लिए एक बहुत ही सरल सा प्रयोग है। यदि आपके पास कोई दखिणावृत्ति शंख है तो उसका उपरोक्त ध्यान मंत्र से उसका पूजन कर लें। गायत्री अथवा बीज मंत्र अथवा दोनों मंत्र शंख के सामने बैठ कर जपते रहें। एक मंत्र पूरा होने पर शंख में ठीक अग्नि में सामग्री होम करने की तरह चावल तथा नाग केसर दांये हाथ के अंगूठे तथा मध्यमा तथा अनामिका उंगली से छोड़ते रहें। जब शंख भर जाए तो उसे घर में स्थापित कर लें। ध्यान रखें कि शंख की पूंछ उत्तर-पूर्व दिशा की ओर रहे। किसी शुभ मुहूर्त अथवा दीवाली से पूर्व धन त्रियोदशी के दिन पुराने चावल तथा नागकेसर उपरोक्त विधि से पुनः बदल लिया करें।
इस प्रकार सिद्ध किया हुआ शंख लाल कपड़े में लपेट कर धन, आभूषण आदि रखने के स्थान पर स्थापित करने से जीवन के हर क्षेत्र में निरंतर श्री की प्राप्ति होने लगती है
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