Saturday 4 September 2021

बटुक भैरव उतारा

किसी बुरी आत्मा के प्रभाव अथवा किसी ग्रह के अशुभ प्रभाव के फलस्वरूप संतान सुख में बाधा से मुक्ति हेतु श्री बटुक का उतारा करना चाहिए। यह क्रिया निम्नलिखित विधि से रविवार, सोमवार, मंगलवार तीन दिन लगातार करें।
विधि : उतारे के स्थान पर एक पात्र में सरसों के तेल में बने उड़द के ११ बड़े, उड़द की दाल भरी ११ कचौड़ियां, ७ प्रकार की मिठाइयां, लाल फूल, सिंदूर, ४ बत्तियों का दीपक, 1 नींबू और 1 कुल्हर जल रखें। सिंदूर को चार बत्तियों वाले दीपक के तेल में डालें। फिर फूल, कचौड़ी, बड़े, मिठाइयां सभी सामग्री एक पत्तल पर रखें तथा मन ही मन यह कहें कि ''यह भोग हम श्री बटुक भैरव जी को दे रहे हैं, वे अपने भूत- प्रेतादिकों को खिला दें और संकट ग्रस्त व्यक्ति के ऊपर जो बुरी आत्मा या ग्रहों की कुदृष्टि है, उसका शमन कर दें।'' समस्त सामग्री को पीड़ित व्यक्ति के सिर के ऊपर ७ बार उतारा करके किसी चौराहे पर रखवा दें। सामग्री रखवाकर लौट आएं। ध्यान रहे, लौटते समय पीछे न देखें। उतारा परिवार के सदस्य करें। यह क्रिया यदि अपने लिए करनी हो, तो स्वयं करें।


Thursday 2 September 2021

श्री गणेशास्त्र महास्त्रोत्र

  श्री गणेशास्त्र महास्त्रोत्र  
इस स्त्रोत में भगवान गणपति के 32 रूपों की शक्ति समाहित है
इसके नित्य एक पाठ से गणेश जी के विभिन्न रूप जागृत होकर साधक को मनोवांछित लाभ देते हैं 
सर्व कार्य सिद्धि हेतु इसका पाठ किया जाता है

 गणेश मंत्र-- ओम श्रीं ह्लीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वर वरद सर्वजनम्मे वशमानय ठ: ठ:

1., ओम नमो बाल गणपतये सूर्य वर्णाय  चतुर्भुजाय बाल मुखाय शीघ्र प्रसन्नाय मम सर्वान  विघ्नान नाशय नाशय  गां गीं  गूं  गैं गौं ग: हूं फट स्वाहा
2.: ओम नमो तरुण गणपतये रक्त वर्णाय मध्यकालीन सूर्य स्वरूपाय षडहस्ताय प्रचंड सम्मोहनाय सदा माम रक्ष रक्ष मम ह्रदये सुस्थिरो भव ,वरप्रदो भव ,साक्षात्कार सिद्धि प्रदो भव ,,चर्म चक्षुष्क दर्शन प्रदो भव, चतु: षष्टि विद्याप्रवीणां   कुरु कुरु गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट स्वाहा
3.ओम नमो भक्ति गणपतये पूर्ण चंद्र स्वरूपाय चंद्र वर्णाय  चतुर्हस्ताय   दुग्ध प्रियाय मम शरीरे अमृत वर्षा कुरु कुरु गां गीं गूं गैं गौं ग:  हूं फट स्वाहा
4. ओम नमो ़वीर गणपतये रक्त बर्णाय कवच, टंक ,पाश,खड़ग, परशु ,शक्ति ,धनुष ,भालसर्प, बेताल ,बाण गदा, खेटक,उत्पल, चक्र ,ध्वजा धारणाय षोडश  हस्ताय मम्  समस्त शत्रून  मारय मारय काटय काटय छेदय  छेदय  पाशय पाशय  भंजय भंजय उन्मूलय उन्मूलय घातय  घातय कम्पय कम्पय भक्षय भक्षय  गां  गीं गूं गें  गौं ग:  हूं फट स्वाहा
:5. ओम नमो शक्ति गणपतये ,हरित वर्ण शक्ति सहिताय, अस्त सूर्य वर्णाय, अभय मुद्रा धारणाय, मम जन्मांगे स्थित समस्त क्रूर ग्रह बाधा उच्चाटय उच्चाटय  शांतय शांतय, गां, गीं  गूं गैं गौं ग: हूं फट स्वाहा
6.ओम नमो द्धिज गणपतये ब्रहम स्वरूपाय चतुर्मुखाय कमंडलु पुस्तक अक्षमाला दंड धारणाय,  चतुर्हस्ताय  स्वतंत्र स्वमंत्र स्वयंत्र स्वज्ञान प्रकाशय प्रकाशय  गुप्त ज्ञान उदघाटय उदघाटय  पर तंत्र, पर मंत्र ,पर यंत्र , नाशय नाशय गां  गीं  गूं गैं गौं ग:  हूं  फट स्वाहा
7.ओम नमो सिद्धि गणपतये स्वर्ण वर्णाय  चतुर्हस्ताय, शुण्डाग्रे दाडिम फल धारणाय, सर्व सिद्धिम कुरु कुरु गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट स्वाहा
8.ओम नमो उच्छिष्ट गणपतये शक्ति सहिताय षट हस्ताय नीलवर्णाय , दक्षिण शुण्ड युक्ताय,तंत्र क्षेत्राधिपतये मारण मोहन उच्चाटन आकर्षण वश्यं सम्मोहन विद्या सहित सर्व तंत्र सिद्धिम  कुरु कुरु गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट स्वाहा

:9. ओम नमो विघ्न गणपतये पिंगल  वर्णाय अष्टभुजाय विष्णु स्वरूपाय शंख चक्र पुष्प इच्छुपात्र, पुष्पवाण परशु पाश माला युक्ताय  रत्न आभूषण सुसज्जिताय मम शरीरे सर्वान रोगान  नाशय नाशय  गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट स्वाहा

10.ओम नमो क्षिप्र  गणपतये रक्त वर्णाय  चतुर्भुजाय भग्नदंत पाश, परशु  कल्पवृक्ष धारणाय शुण्डाग्रे  रत्न कलश सहिताय  सर्व शांति कुरु कुरु स्वस्तिम  कुरु कुरु पुष्टिम  कुरु कुरु श्रियम देहि देहि यशो देही देही आयुष्य देहि देहि आरोग्यं देहि देहि पुत्र पौत्रान  देहि देहि सर्व कामांश्च देही देही  गां  गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा
 11.ओम नमो हेरम्ब गणपतये सिंहवाहिने पंचमुखाय गौरवर्णाय दशभुजाय परराष्ट् गजाश्वम, रथसैन्य शस्त्रास्त्र बलम्   स्तम्भय स्तम्भय उच्चाटय उच्चाटय मारय मारय खादय खादय विदारय विदारय  भीषय भीषय कम्पय कम्पय भक्षय भक्षय त्वरित त्वरित बन्धय बन्धय  प्रमुख प्रमुख स्फुट स्फुट ठं ठं ठं ठं गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

12.ओम नमो लक्ष्मी गणपतये अष्टभुजाय सिद्धि बुद्धि सहिताय श्वैत वर्णाय मम सर्व दुखं हर हर दारिद्रम निवारय निवारय यशम देही यौवनम देही धनं देही राज्यम देही गां गीं गूं गैं गौं ग हूं फट् स्वाहा
13..ओम नमो महागणपतये पीत वर्णाय दक्षिण शुण्डयुक्ताय बामांगे  शक्ति सहिताय
अर्धचंद्र मुकुट धारणाय दशभुजाय मम जन्मांगे  स्थित देवग्रह  योनि ग्रह  योगिनी ग्रह,  दैत्यग्रह , दानव ग्रह, राक्षसग्रह,  ब्रह्मराक्षस ग्रह,सिद्धग्रह, यक्ष ग्रह,
विद्याधर ग्रह ,किन्नर ग्रह , गंधर्व ग्रह, अप्सरा ग्रह, भूत ग्रह पिशाच ग्रह, ,कुष्मांडग्रह, गजादि ग्रह,  पूतनाग्रह, बालग्रह  सूर्यादि  नवग्रह मुद्गगल ग्रह,  पितृग्रह बेताल ग्रह,  शत्रुग्रह राजग्रह चोरवैरी ग्रह,  नेतृगृह देवता ग्रह, आधिग्रह व्याधिग्रह  अपस्मरादि ग्रह,  गृह ग्रह , पुर ग्रह, उरग ग्रह  सरज ग्रह   उक्तग्रह ,डामर ग्रह , उदकग्रह ,अग्नि ग्रह ,आकाश ग्रह, भू : ग्रह,  वायु ग्रह , शालि ग्रह,  धान्यादि ग्रह बिषय ग्रह, ग्रहानाति ग्रह, घोर ग्रह, छायाग्रह, सर्प ग्रह, विषजीव ग्रह,   वृश्चिक ग्रह, काल ग्रह, शाल्य ग्रहादि सर्वान ग्रहान नाशय नाशय  कालाग्निरूद्र स्वरूपेण   दह दह अनुनय अनुनय   शोषय शोषय मूकय मूकय कम्पय कम्पय भक्षय भक्षय निमीलय निमीलय  मर्दय मर्दय विद्रावय विद्रावय निधन निधन स्तम्भय स्तम्भय उच्चाटय उच्चाटय उष्टन्धय उष्टन्धय मारय मारय चण्ड चण्ड प्रचण्ड प्रचण्ड क्रोध क्रोध ज्वल ज्वल  प्रज्वल प्रज्वल ज्वालादित्य वदने उग्र ग्रस उग्र ग्रस  विजृम्भय विजृम्भय घोषय घोषय मारय मारय हन हन गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

14..ओम नमो विजय गणपतये रक्तवर्णाय मूषकवाहिने  चतुर्भुजाय सर्व क्षेत्रे विजयं देही देही गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा
15..ओम नमो नृत्य गणपतये दक्षिण शुण्ड युक्ताय कल्पवृक्ष समीपे नृत्यमयाय  सर्वदिशो बंधनामि महेश्वर बंधनामि,  पितामह बंधनामि  महाविष्णु बंंधनामि,  कार्तिकेय बंधनामि, दशदिकपाल बंधनामि ,सर्वान असुरान बंधनामि, ब्रहमास्त्रान बंधनामि अघोरं बंधनामि , सर्वान सुरान बंधनामि सर्वान द्बिजान बंधनामि  केशरीम बंधनामि सत्वान बंधनामि व्याघा्न बंधनामि गजान बंधनामि  चौरान बंधनामि शत्रुन बंधनामि महामारीं बंधनामि,
सर्वा यक्षिणी बंधनामि, आब्रहं स्तम्भ पर्यंतं  सर्वान चराचार जीवान बंधनामि  माया ज्वालिनी स्तम्भय स्तम्भय सर्व वाणीम मूकय मूकय , कीलय कीलय गतिं स्तम्भय स्तम्भय, चौरादि सर्वान दुष्ट पुरूषान बंधय बंधय दिशा विदिशा रात्र्याकर्षण पाताल घा्ण  भ्रूचक्ष: शिर: श्रोत्रे हस्तौ पादौं गतिं मतिं मुखं जिव्हां वाचां शब्द पंचाशत कोटि योजन विस्तीर्णान, भू-ब्रहमांड देवान बंधनामि, मंडलं बंधनामि व्याधान  क्रमय क्रमय रक्ष रक्ष हुं फट स्वाहा
16..ओम नमो ऊर्ध्व गणपतये वामांगे हरित शक्ति सहिताय अष्टभुजाय कनकवर्णाय मम शरीरे कुंडलिनी शक्तिम प्रकाशय  प्रकाशय  गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा
17..: ओम नमो एकाक्षर गणपतये रक्तपुष्प माला धारिण्ये त्रिनेत्राय अर्ध चंद्र मुकुट धारणाय मूषकवाहिने पदमासन स्थिताय योग सिद्धिम  देही देही गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

18.. ओम नमो वर गणपतये वामांगे शक्ति सहिताय त्रिनेत्राय अर्ध चंद्र मुकुट धारणाय वरं देही देही अभयं देही देही गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा
19.ओम नमो त्रयक्षर गणपतये  ॐकार स्वरूपाय स्वर्णप्रकाश युक्ताय शूप कर्णाय मोक्षं कुरू कुरू  गां गीं गूं गैं गौं ग:  हूं फट् स्वाहा
20..ओम नमो क्षिप्र प्रसाद गणपतये रक्तचंदन अंकिताय षट्भुजाय कुशासन स्थिताय कल्पवृक्ष सहिताय त्वरित कार्य सिद्धि प्रदानाय गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

21..ओम नमो हरिद्रा गणपतये पीत वर्णाय चतुर्भुजाय शत्रु वाक् स्तम्भनाय आत्म विरोधिणाम शिरो ललाट मुख नेत्र कर्ण नासिकोरू पाद रेणु दंतोष्ठ  जिव्हाम तालु गुह्म गुदा कटि सर्वागेषुं केशादि पाद पर्यंतं स्तम्भय स्तम्भय मारय मारय गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

22.ओम नमो एकदंत गणपतये नीलवर्णाय चतुर्भुजाय भग्नदंत सहिताय गारूण वारूण  सर्प पर्वत वह्मि दैवत अघोर नारायण विष्णु ब्रह्मा रूद्र वजा्स्त्राणि भंजय भंजय निवारय निवारय तेषां मंत्र यंत्र तंत्राणि विध्वंसय विध्वंसय  गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

23.ओम नमो सृष्टि गणपतये रक्तवर्णाय मूषकवाहिने चतुर्भुजाय आम्रफल पाश अंकुश भग्नदंत युक्ताय आयुष्मन्तं कुरू कुरू सततं मम ह्रदय चिंतित मनोरथ सिद्धिम कुरू कुरू चिदानंदकांत कुरू वाक् सिद्धिम देही देही अकाल मृत्यु विनाशनम  कुरू कुरू,अपमृत्यु निर्दलनं कुरू कुरू अकालमृत्यु भय निवारय निवारय ममैव कर स्पर्शान नाना रोगान नाशय नाशय गां गीं गूं गैं गौं ग;  हूं फट्  स्वाहा

24. ओम नमो उद्दण्ड गणपतये वामांगे हरित वर्ण शक्ति युक्ताय दसभुजाय मम सर्व  दुष्टान मर्दय मर्दय मारय मारय शोषय शोषय चण्डय चण्डय प्रचण्डय प्रचण्डय  गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

25.ओम नमो ऋणमोचन गणपतये शुक्लवर्णाय चतुर्हस्तायै मम कर्म क्षेत्रे  स्थित पितृ ऋण , मातृऋण, स्त्रीऋण, पुत्र ऋण,मित्र ऋण,राज्य ऋण, देव ऋण, ग्रह ऋण, पंचभूत इत्यादि  समस्त ऋणान उन्मूलन उन्मूलन गां गीं गूं गैं गौं ग:हूं फट् स्वाहा

: 26.ओम नमो ढुण्डी गणपतये सिंदूरवर्णाय चतुर्भुजाय रत्नकुम्भ धारणाय मम सर्व दोष हारिणे सर्व विघ्न छेदिने सर्व पाप  निकृन्तिने सर्व श्रृंखला त्रोटिने, सर्व यंत्र स्फोटिने गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

27.ओम नमो द्बिमुख गणपतये चतुर्हस्ताय ,नील हरित वर्णाय, रत्न मुकुट सुशोभिताय सपरिवारम मां रक्ष रक्ष क्षमस्वापराधं क्षमस्वापराधं नमस्ते नमस्ते गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

 28.ओम नमो त्रिमुख गणपतये स्वर्ण कमलासन स्थिताय रक्तवर्णाय  अभयं कुरू कुरू कृपां कुरू कुरू सिद्धिम कुरू कुरू गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

29.ओम नमो सिंह गणपतये श्वेत वर्णाय सिंहवाहिने अष्टभुजाय मम शरीरे सर्वान बिषान्   शोकान् हर हर गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

30.ओम नमो योग गणपतये योगासन स्थिताय इन्द्र स्वरूपाय रस सिद्धिम देही देही गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

31.ओम नमो दुर्गा गणपतये स्वर्ण आभा युक्ताय, रक्तवर्ण वस्त्र  सुशोभिताय , मम समस्त प्रकट अप्रकट भयान् नाशय नाशय गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

32..ओम नमो संकष्ट हरण गणपतये उदित सूर्य स्वरूपाय वामांगे हरित वर्ण शक्ति सहिताय नीलवस्त्र सुशोभिताय शक्तिम देही देही गां गीं गूं गैं गौं ग: हूं फट् स्वाहा

ग्रहो से आजीविका का चुनाव लग्न कुन्डली

ग्रहो से आजीविका का चुनाव लग्न कुन्डली 

लग्न कुन्डली , चन्द्र कुंडली ओर सूर्य कुंडली मे जो सर्वाधिक बली हो उस कुंडली से जो ग्रह 10 भाव मे बेठा हो उस ग्रह से सम्बंधित कार्य का चुनाव करना चाईए . यदि कोई ग्रह ना हो तो उस राशी का राशी पती नवांश मे जिस राशी मे बेठा हो. उस राशी पती से सम्बंधित कार्य करना चाईए.

 
 
सूर्य से संबंधित व्यापार
सरकारी नौकरी, सरकारी सेवा, उच्च स्तरीय प्रशासनिक सेवा, मजिस्ट्रेट, राजनीति, सोने का काम करने वाले, जौहरी, फाइनेंस, प्रबंधक, राजदूत, चिकित्सक (फिजिशियन), दवाइयों से संबंधी मैनेजमेंट, उपदेशक, मंत्र कार्य, फल विक्रेता, वस्त्र, घास फूस ( नारियल रेशा, बांस तृण आदि) से निर्मित सामग्री, तांबा, स्वर्ण, माणिक, सींग या हड्डी के बने समान, खेती बाड़ी, धन विनियोग, बीमा एजेंट, गेहूं से संबंधी, विदेश सेवा, उड्डयन, औषधि, चिकित्सा, सभी प्रकार के अनाज, लाल रंग के पदार्थ, शहद, लकड़ी व प्लाई वुड का कार्य, इमारत बनाने में काम आने वाला लकड़ी, सर्राफा, वानिकी, ऊन व ऊनी वस्त्र, पदार्थ विज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान, फोटोग्राफी, नाटक, फिल्मों का निर्देशन इत्यादि

चंद्रमा से संबंधित व्यापार
जल से उपरत्न वस्तुएं, पेय पदार्थ, दूध, डेयरी प्रोडक्ट (दही, घी, मक्खन) खाद्य पदार्थ, आइसक्रीम, कोल्ड ड्रिंक्स, मिनरल वाटर, आइस क्रीम, श्वेत पदार्थ, चांदी, चावल, नमक,चीनी, पुष्प सज्जा, मोती, मूंगा, शंख, क्रॉकरी ( चीनी मिट्टी ), कोमल मिट्टी ( मुलतानी ), प्लास्टर ऑफ पेरिस, सब्जी, वस्त्र व्यवसाय, रेडीमेड वस्त्र, जादूगर, फोटोग्राफिक्स व वीडियो मिक्सिंग, विदेशी कार्य, आयुर्वेदिक दवाएं, मनोविनोद के कार्य, आचार -चटनी -मुरब्बे, जल आपूर्ति विभाग, नहरी एवं सिंचाई विभाग, पुष्प सज्जा, मशरूम, मत्स्य से संबंधित क्षेत्र, सब्जियां, लांड्री, आयात -निर्यात, शीशा, चश्मा, महिला कल्याण, नेवी ( नौ सेना ), जल आपूर्ति विभाग, नहरी एवं सिंचाई विभाग, आबकारी विभाग, नाविक, यात्रा से संबंधित कार्य, अस्पताल, नर्सिंग, परिवहन, जनसंपर्क अधिकारी,

 मंगल से संबंधित व्यापार

पुलिस व सेना की नौकरी, अग्नि कार्य, बिजली का कार्य, विद्युत् विभाग, साहसिक कार्य, धातु कार्य, जमीन का क्रय –विक्रय, भूमि के कार्य, भूमि विज्ञान, रक्षा विभाग, खनिज पदार्थ, इलेक्ट्रिक एवं इलेक्ट्रोनिक इंजीनियर, मकेनिक, वकालत, ब्लड बैंक, शल्य चिकित्सक, केमिस्ट, दवा विक्रेता, खून बेचना, सिविल इंजीनियरिंग, शस्त्र निर्माण, बॉडी बिल्डिंग, साहसिक खेल, कुश्ती, स्पोर्टस, खिलाड़ी, फायर ब्रिगेड, आतिशबाजी, रसायन शास्त्र, सर्कस, नौकरी दिलवाने के कार्य, शक्तिवर्धक कार्य, अग्नि बीमा, चूल्हा, ईंधन, पारा, पत्थर, मिट्टी का समान, तांबे से संबंधित कार्य, धातुओं से संबंधित कार्य क्षेत्र, लाल रंग के पदार्थ, बेकरी, कैटरिंग, हलवाई, रसोइया, इंटों का भट्ठा, बर्तनों का कार्य, होटल एवं रेस्तरां,फास्ट -फ़ूड, जूआ, मिटटी के बर्तन व खिलौने, नाई, औज़ार, भट्ठी इत्यादि ।

बुध ग्रह से संबंधित व्यापार
व्यापार कार्य, वेदों का अध्यापन, लेखन कार्य ( लेखक ), ज्योतिष कार्य, प्रकाशन का कार्य, चार्टड एकाउटेंट, मुनीम, शिक्षक, गणितज्ञ, कन्सलटैंसी, वकील, ब्याज, बट्टा, पूंजी निवेश, शेयर मार्केट, कम्प्यूटर जॉब, लेखन, वाणीप्रधान कार्य, एंकरिंग, शिल्पकला, काव्य रचना, पुरोहित का कार्य, कथा वाचक, गायन विद्या, वैद्य, गणित व कॉमर्स के अध्यापक, वनस्पति, बीजों व पौधों का कार्य, समाचार पत्र, दलाली के कार्य, वाणिज्य संबंधी, टेलीफोन विभाग, डाक, कोरियर, यातायात, पत्रकारिता, मीडिया, बीमा कंपनी, संचार क्षेत्र, दलाली, आढ़त, हरे पदार्थ, सब्जियां, लेखाकार, कम्प्यूटर,फोटोस्टेट, मुद्रण, डाक -तार, समाचार पत्र, दूत कर्म, टाइपिस्ट, कोरियर सेवा, बीमा, सेल्स टैक्स, आयकर विभाग, सेल्स मैन, हास्य व्यंग के चित्रकार या कलाकार इत्यादि।

बृहस्पति ग्रह से सम्बन्धित व्यापार
ब्राह्मण का कार्य, धर्मोपदेश का कार्य, धर्मार्थ संस्थान, धार्मिक व्यवसाय, कर्मकाण्ड, ज्योतिष, राजनीति, न्यायालय संबंधित कार्य, न्यायाधीश, कानून, वकील, बैंकिंग कार्य, कोषाध्यक्ष, राजनीति, अर्थशास्त्र, पुराण, मांगलिक कार्य, अध्यापन कार्य, शिक्षक, शिक्षण संस्थाएं, पुस्तकालय, प्रकाशन, प्रबंधन, पुरोहित, शिक्षण संस्थाएं, किताबों से संबंधित कार्य, परामर्श कार्य, पीले पदार्थ, स्वर्ण, पुरोहित, संपादन, छपाई, कागज से संबंधित कार्य, ब्याज कार्य, गृह निर्माण, उत्तम फर्नीचर, शयन उपकरण, गर्भ संबंधित कार्य, खाने पीने की वस्तुएं, स्वर्ण कार्य, वस्त्रों से संबंधित, लकड़ी से संबंधित कार्य, सभी प्रकार के फल, मिठाइयाँ, मोम, घी, किराना इत्यादि|

शुक्र ग्रह से संबंधित व्यापार
कलात्मक कार्य, संगीत (गायन , वादन , नृत्य), अभिनय, चलचित्र संबंधी डेकोरेशन, ड्रेस डिजायनिंग, मनोरंजन के साधन, फिल्म उद्योग, वीडियो पार्लर, मैरिज ब्यूरो, इंटीरियर डेकोरेशन, फैशन डिजाइनिंग, पेंटिंग, श्रृंगार के साधन, कॉस्मेटिक, इत्र, गिफ्ट हॉउस, चित्रकला तथा स्त्रियों के काम में आने वाले पदार्थ, विवाह से संबंधित कार्य, महिलाओं से संबंधित कार्य, विलासितापूर्ण वस्तु, गाड़ी, वाहन व्यापारी, ट्रांसपोर्ट, सजावटी वस्तुएं, मिठाई संबंधी, रेस्टोरेंट, होटल, खाद्य पदार्थ, श्वेत पदार्थ, दूध से बने पदार्थ, दूध उत्पादन ( दुग्धशाला ), दही, चावल, धान, गुड़, खाद्य पदार्थ, सोना, चांदी, हीरा, जौहरी, वस्त्र निर्माता, गारमेंट्स, पशु चिकित्सा, हाथी घोड़ा पालना, टूरिज्म, चाय – कॉफी, शुक्र + मंगल – रत्न व्यापारी, शुक्र + राहु या शनि – ब्यूटी पार्लर, शुक्र + चन्द्र – सोडावाटर फेक्ट्री, तेल, शर्बत, फल, तरल रंग आदि।

शनि ग्रह से संबंधित व्यापार
लोहा संबंधित कार्य, मशीनी के कार्य , केमिकल प्रोडक्ट , ज्वलनशील तेल ( पेट्रोल, डीजल आदि), कुकिंग गैस, प्राचीन वस्तुएं, पुरातत्व विभाग, अनुसंधान कार्य, ज्योतिष कार्य, लोहे से संबंधित कच्ची धातु, कोयला, चमड़े का काम, जूते, अधिक श्रम वाला कार्य, नौकरी, मजदूरी, ठेकेदारी, दस्तकारी, मरम्मत के कार्य, लकड़ी का कार्य, मोटा अनाज, प्लास्टिक एवं रबर उद्योग, काले पदार्थ, स्पेयर पार्ट्स, भवन निर्माण सामग्री, पत्थर एवं चिप्स, ईंट, शीशा, टाइल्स, राजमिस्त्री, बढ़ई, श्रम एवं समाज कल्याण विभाग, टायर उद्योग, पलम्बर, घड़ियों का काम, कबाड़ी का काम, जल्लाद, तेल निकालना, पीडब्लूडी, सड़क निर्माण, सीमेंट। शनि + गुरु + मंगल – इलेक्ट्रिक इंजीनियर । शनि + बुध + गुरु – मेकेनिकल इंजीनियर । शनि + शुक्र – पत्थर की मूर्ति इत्यादि

राहु से संबंधित व्यवसाय
कम्प्युटर, बिजली, अनुसंधान, आकस्मिक लाभ वाले कार्य, मशीनों से संबंधित, तामसिक पदार्थ, जासूसी गुप्त कार्य, विषय संबंधी, कीट नाशक, एण्टी बायोटिक दवाईयां, पहलवानी, जुआ, सट्टा, मुर्दाघर, सपेरा, पशु वधशाला, जहरीली दवा, चमड़ा व खाल आदि।

केतु से संबंधित व्यापार
केतु को यदि कुंडली में एकल अवस्था में गिना जाए तो के तो धर्म का कारक होता है ऐसी स्थिति में जातक धर्म से संबंधित कार्य भक्ति चिकित्सा आदि कार्य करता है।

यजुर्वेद में वर्णित है नवग्रहों के सुंदर मंत्र

 यजुर्वेद मे वर्णित है नवग्रहों के सुंदर मंत्र

वैदिक काल से ग्रहों की अनुकूलता के प्रयास किए जाते रहे हैं। यजुर्वेद में 9 ग्रहों की प्रसन्नता के लिए उनका आह्वान किया गया है। यह मंत्र चमत्कारी रूप से प्रभावशाली हैं। 

प्रस्तुत है नवग्रहों के लिए विलक्षण वैदिक मंत्र- 

* सूर्य- ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च। हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् (यजु. 33। 43, 34। 31) 

* चन्द्र- ॐ इमं देवा असपत्नं सुवध्यं महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय। इमममुष्य पुत्रममुष्ये पुत्रमस्यै विश एष वोऽमी राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणानां राजा।।
(यजु. 10। 18) 

* भौम- ॐ अग्निमूर्धा दिव: ककुत्पति: पृथिव्या अयम्। अपां रेतां सि जिन्वति।। (यजु. 3।12) 

* बुध- ॐ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते सं सृजेधामयं च। अस्मिन्त्सधस्‍थे अध्‍युत्तरस्मिन् विश्वे देवा यशमानश्च सीदत।। (यजु. 15।54) 

* गुरु- ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु। यद्दीदयच्छवस ऋतुप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्।। (यजु. 26।3) 

* शुक्र- ॐ अन्नात्परिस्त्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपित्क्षत्रं पय: सोमं प्रजापति:। ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानं शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु।। (यजु. 19।75) 

* शनि- ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्त्रवन्तु न:।। (यजु. 36।12) 

* राहु- ॐ कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृध: सखा। कया शचिष्ठया वृता।। (यजु. 36।4) 

* केतु- ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे। समुषद्भिरजायथा:।। (यजु. 29।37)

कनकधारा मंत्र यंत्र

कनकधारा मंत्र यंत्र
हम सभी जीवन में ‍आर्थिक तंगी को लेकर बेहद परेशान रहते हैं। धन प्राप्ति के लिए हरसंभव श्रेष्ठ उपाय करना चाहते हैं। धन प्राप्ति और धन संचय के लिए पुराणों में वर्णित कनकधारा यंत्र एवं स्तोत्र चमत्कारिक रूप से लाभ प्रदान करते हैं। इस यंत्र की विशेषता भी यही है कि यह किसी भी प्रकार की विशेष माला, जाप, पूजन, विधि-विधान की माँग नहीं करता बल्कि सिर्फ दिन में एक बार इसको पढ़ना पर्याप्त है।

साथ ही प्रतिदिन इसके सामने दीपक और अगरबत्ती लगाना आवश्यक है। अगर किसी दिन यह भी भूल जाएँ तो बाधा नहीं आती क्योंकि यह सिद्ध मंत्र होने के कारण चैतन्य माना जाता है। वेबदुनिया के यूजर्स के लिए हम दे रहे हैं कनकधारा स्तोत्र का संस्कृत पाठ एवं हिन्दी अनुवाद। आपको सिर्फ कनकधारा यंत्र कहीं से लाकर पूजाघर में रखना है।

यह किसी भी तंत्र-मंत्र संबंधी सामग्री की दुकान पर आसानी से उपलब्ध है। माँ लक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए जितने भी यंत्र हैं, उनमें कनकधारा यंत्र तथा स्तोत्र सबसे ज्यादा प्रभावशाली एवं अतिशीघ्र फलदायी है।हम सभी जीवन में ‍आर्थिक तंगी को लेकर बेहद परेशान रहते हैं। धन प्राप्ति के लिए हरसंभव श्रेष्ठ उपाय करना चाहते हैं। धन प्राप्ति और धन संचय के लिए पुराणों में वर्णित कनकधारा यंत्र एवं स्तोत्र चमत्कारिक रूप से लाभ प्रदान करते हैं।

।। श्री कनकधारा स्तोत्रम् ।।

अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम।
अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया:।।1।।

मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया:।।2।।

विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय:।।3।।

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्।
आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजंगरायांगनाया:।।4।।

बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरि‍नीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला कल्याण भावहतु मे कमलालयाया:।।5।।

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्।
मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्तिभद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया:।।6।।

प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्य भाजि: मधुमायनि मन्मथेन।
मध्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्द्ध मन्दालसं च मकरालयकन्यकाया:।।7।।

दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम स्मिभकिंचन विहंग शिशौ विषण्ण।
दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह:।।8।।

इष्टा विशिष्टमतयो पि यथा ययार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभंते।
दृष्टि: प्रहूष्टकमलोदर दीप्ति रिष्टां पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टराया:।।9।।

गीर्देवतैति गरुड़ध्वज भामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।
सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै तस्यै ‍नमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै ।।10।।

श्रुत्यै नमोस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै रत्यै नमोस्तु रमणीय गुणार्णवायै।
शक्तयै नमोस्तु शतपात्र निकेतानायै पुष्टयै नमोस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै।।11।।

नमोस्तु नालीक निभाननायै नमोस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै ।
नमोस्तु सोमामृत सोदरायै नमोस्तु नारायण वल्लभायै।।12।।

सम्पतकराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि।
त्व द्वंदनानि दुरिता हरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु नान्यम्।।13।।

यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य कलार्थ सम्पद:।
संतनोति वचनांगमानसंसत्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे।।14।।

सरसिजनिलये सरोज हस्ते धवलमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।।15।।

दग्धिस्तिमि: कनकुंभमुखा व सृष्टिस्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम्।।16।।

कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:।
अवलोकय माम किंचनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया : ।।17।।

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते बुधभाविताया:।।18।।

इति श्री कनकधारा स्तोत्रं सम्पूर्णम

कनकधारा स्तोत्रम् (हिन्दी पाठ)

* जैसे भ्रमरी अधखिले कुसुमों से अलंकृत तमाल-तरु का आश्रय लेती है, उसी प्रकार जो प्रकाश श्रीहरि के रोमांच से सुशोभित श्रीअंगों पर निरंतर पड़ता रहता है तथा जिसमें संपूर्ण ऐश्वर्य का निवास है, संपूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री देवी भगवती महालक्ष्मी का वह कटाक्ष मेरे लिए मंगलदायी हो।।1।।

* जैसे भ्रमरी महान कमल दल पर मँडराती रहती है, उसी प्रकार जो श्रीहरि के मुखारविंद की ओर बराबर प्रेमपूर्वक जाती है और लज्जा के कारण लौट आती है। समुद्र कन्या लक्ष्मी की वह मनोहर मुग्ध दृष्टिमाला मुझे धन संपत्ति प्रदान करे ।।2।।

* जो संपूर्ण देवताओं के अधिपति इंद्र के पद का वैभव-विलास देने में समर्थ है, मधुहन्ता श्रीहरि को भी अधिकाधिक आनंद प्रदान करने वाली है तथा जो नीलकमल के भीतरी भाग के समान मनोहर जान पड़ती है, उन लक्ष्मीजी के अधखुले नेत्रों की दृष्टि क्षण भर के लिए मुझ पर थोड़ी सी अवश्य पड़े।।3।।

* शेषशायी भगवान विष्णु की धर्मपत्नी श्री लक्ष्मीजी के नेत्र हमें ऐश्वर्य प्रदान करने वाले हों, जिनकी पु‍तली तथा बरौनियाँ अनंग के वशीभूत हो अधखुले, किंतु साथ ही निर्निमेष (अपलक) नयनों से देखने वाले आनंदकंद श्री मुकुन्द को अपने निकट पाकर कुछ तिरछी हो जाती हैं।।4।।

* जो भगवान मधुसूदन के कौस्तुभमणि-मंडित वक्षस्थल में इंद्रनीलमयी हारावली-सी सुशोभित होती है तथा उनके भी मन में प्रेम का संचार करने वाली है, वह कमल-कुंजवासिनी कमला की कटाक्षमाला मेरा कल्याण करे।।5।।

* जैसे मेघों की घटा में बिजली चमकती है, उसी प्रकार जो कैटभशत्रु श्रीविष्णु के काली मेघमाला के श्यामसुंदर वक्षस्थल पर प्रकाशित होती है, जिन्होंने अपने आविर्भाव से भृगुवंश को आनंदित किया है तथा जो समस्त लोकों की जननी है, उन भगवती लक्ष्मी की पूजनीय मूर्ति मुझे कल्याण प्रदान करे।।6।

* समुद्र कन्या कमला की वह मंद, अलस, मंथर और अर्धोन्मीलित दृष्टि, जिसके प्रभाव से कामदेव ने मंगलमय भगवान मधुसूदन के हृदय में प्रथम बार स्थान प्राप्त किया था, यहाँ मुझ पर पड़े।।7।।

* भगवान नारायण की प्रेयसी लक्ष्मी का नेत्र रूपी मेघ दयारूपी अनुकूल पवन से प्रेरित हो दुष्कर्म (धनागम विरोधी अशुभ प्रारब्ध) रूपी धाम को चिरकाल के लिए दूर हटाकर विषाद रूपी धर्मजन्य ताप से पीड़ित मुझ दीन रूपी चातक पर धनरूपी जलधारा की वृष्टि करे।।8।।

* विशिष्ट बुद्धि वाले मनुष्य जिनके प्रीति पात्र होकर जिस दया दृष्टि के प्रभाव से स्वर्ग पद को सहज ही प्राप्त कर लेते हैं, पद्मालसना पद्मार की वह विकसित कमल-गर्भ के समान कांतिमयी दृष्टि मुझे मनोवांछित पुष्टि प्रदान करे।।9।।

जो सृष्टि लीला के समय वाग्देवता (ब्रह्मशक्ति) के रूप में विराजमान होती है तथा प्रलय लीला के काल में शाकम्भरी (भगवती दुर्गा) अथवा चन्द्रशेखर वल्लभा पार्वती (रुद्रशक्ति) के रूप में अवस्थित होती है, त्रिभुवन के एकमात्र पिता भगवान नारायण की उन नित्य यौवना प्रेयसी श्रीलक्ष्मीजी को नमस्कार है।।10।।

* मात:। शुभ कर्मों का फल देने वाली श्रुति के रूप में आपको प्रणाम है। रमणीय गुणों की सिंधु रूपा रति के रूप में आपको नमस्कार है। कमल वन में निवास करने वाली शक्ति स्वरूपा लक्ष्मी को नमस्कार है तथा पुष्टि रूपा पुरुषोत्तम प्रिया को नमस्कार है।।11।।

* कमल वदना कमला को नमस्कार है। क्षीरसिंधु सभ्यता श्रीदेवी को नमस्कार है। चंद्रमा और सुधा की सगी बहन को नमस्कार है। भगवान नारायण की वल्लभा को नमस्कार है। (12)

* कमल सदृश नेत्रों वाली माननीय माँ! आपके चरणों में किए गए प्रणाम संपत्ति प्रदान करने वाले, संपूर्ण इंद्रियों को आनंद देने वाले, साम्राज्य देने में समर्थ और सारे पापों को हर लेने के लिए सर्वथा उद्यत हैं, वे सदा मुझे ही अवलम्बन दें। (मुझे ही आपकी चरण वंदना का शुभ अवसर सदा प्राप्त होता रहे)।।13।।

* जिनके कृपा कटाक्ष के लिए की गई उपासना उपासक के लिए संपूर्ण मनोरथों और संपत्तियों का विस्तार करती है, श्रीहरि की हृदयेश्वरी उन्हीं आप लक्ष्मी देवी का मैं मन, वाणी और शरीर से भजन करता हूँ।।14।।

* भगवती हरिप्रिया! तुम कमल वन में निवास करने वाली हो, तुम्हारे हाथों में नीला कमल सुशोभित है। तुम अत्यंत उज्ज्वल वस्त्र, गंध और माला आदि से सुशोभित हो। तुम्हारी झाँकी बड़ी मनोरम है। त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्रदान करने वाली देवी, मुझ पर प्रसन्न हो जाओ।।15।।

* दिग्गजों द्वारा सुवर्ण-कलश के मुख से गिराए गए आकाश गंगा के निर्मल एवं मनोहर जल से जिनके श्री अंगों का अभिषेक (स्नान) संपादित होता है, संपूर्ण लोकों के अधीश्वर भगवान विष्णु की गृहिणी और क्षीरसागर की पुत्री उन जगज्जननी लक्ष्मी को मैं प्रात:काल प्रणाम करता हूँ।।16।।

* कमल नयन केशव की कमनीय कामिनी कमले!
मैं अकिंचन (दीन-हीन) मनुष्यों में अग्रगण्य हूँ, अतएव तुम्हारी कृपा का स्वाभाविक पात्र हूँ। तुम उमड़ती हुई करुणा की बाढ़ की तरह तरंगों के समान कटाक्षों द्वारा मेरी ओर देखो।।17।।

* जो मनुष्य इन स्तु‍तियों द्वारा प्रतिदिन वेदत्रयी स्वरूपा त्रिभुवन-जननी भगवती लक्ष्मी की स्तुति करते हैं, वे इस भूतल पर महान गुणवान और अत्यंत सौभाग्यशाली होते हैं तथा विद्वान पुरुष भी उनके मनोभावों को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं।।18।।


Wednesday 1 September 2021

तीन प्रमुख स्थान

तीन प्रमुख स्थान 
1. तारापीठ का श्मशान : कोलकाता से 180 किलोमीटर दूर स्थित तारापीठ धाम की खासियत यहां का महाश्मशान है। वीरभूम की तारापीठ (शक्तिपीठ) अघोर तांत्रिकों का तीर्थ है। यहां आपको हजारों की संख्या में अघोर तांत्रिक मिल जाएंगे। तंत्र साधना के लिए जानी-मानी जगह है तारापीठ, जहां की आराधना पीठ के निकट स्थित श्मशान में हवन किए बगैर पूरी नहीं मानी जाती।
कालीघाट को तांत्रिकों का गढ़ माना जाता है
कालीघाट में होती हैं अघोर तांत्रिक सिद्धियां
2. कामाख्या पीठ के श्मशान : कामाख्या पीठ भारत का प्रसिद्ध शक्तिपीठ है, जो असम प्रदेश में है। कामाख्या देवी का मंदिर गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से 10 किलोमीटर दूर नीलांचल पर्वत पर स्थित है। प्राचीनकाल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र-सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है। कालिका पुराण तथा देवीपुराण में 'कामाख्या शक्तिपीठ' को सर्वोत्तम कहा गया है और यह भी तांत्रिकों का गढ़ है।
3. रजरप्पा का श्मशान : रजरप्पा में छिन्नमस्ता देवी का स्थान है। रजरप्पा की छिन्नमस्ता को 52 शक्तिपीठों में शुमार किया जाता है लेकिन जानकारों के अनुसार छिन्नमस्ता 10 महाविद्याओं में एक हैं। उनमें 5 तांत्रिक और 5 वैष्णवी हैं। तांत्रिक महाविद्याओं में कामरूप कामाख्या की षोडशी और तारापीठ की तारा के बाद इनका स्थान आता है।
4. चक्रतीर्थ का श्मशान : मध्यप्रदेश के उज्जैन में चक्रतीर्थ नामक स्थान और गढ़कालिका का स्थान तांत्रिकों का गढ़ माना जाता है। उज्जैन में काल भैरव और विक्रांत भैरव भी तांत्रिकों का मुख्य स्थान माना जाता है।
सभी 52 शक्तिपीठ तो तांत्रिकों की सिद्धभूमि हैं ही इसके अलावा कालिका के सभी स्थान, बगलामुखी देवी के सभी स्थान और दस महाविद्या माता के सभी स्थान को तांत्रिकों का गढ़ माना गया है। कुछ कहते हैं कि त्र्यम्बकेश्वर भी तांत्रिकों का तीर्थ है।

तंत्र समस्या समाधान

तंत्र समस्या समाधान
कई बार इंसान एसी परेसानियो और रोग व्याधियो से घिर जाता है जिसका उसे कोई समाधान नज़र नहीं आता है |परेशानी चाहे शारीरिक हो या मानसिक हो उसका कारण कुछ भी हो सकता है |कई बार हम उस कारन को समझ नहीं पाते और लाखो रुपया दवाओ में फूक देते है और कोई हल नहीं पाते है |कुछ परेसानिया जैसे शरीर में खाना पीना न लगना, मानसिक विचिलिता ,घर में अशांति, पति पत्नी का झगड़ा ,या किसी का कुछ करवा के घर परिवार को संकट में डाल देना, या कोई नज़र दोष बाधा, विवाह में आ रही परेशानी या विवाह का न होना ,इन सब परेसानियो का कारण कुछ भी हो सकता है |आपकी कोई भी परेशानी हो आप हमसे बात करके उस समस्या का समाधान पाए और अपना जीवन सुखी बनाये | धन्यवाद

कुमारीस्तवः(अति गोपनीय)

कुमारीस्तवः(अति गोपनीय)
आनन्दभैरव उवाच
देवेन्द्रादय इन्दुकोटिकिरणां वाराणसीवसिनीं 
विद्यां वाग्भवकामिनीं त्रिनयनां सूक्ष्मक्रियाज्वलिनीम् ।
चण्डोद्योगनिकृन्तिनीं त्रिजगतां धात्रीं कुमारी वरां
मूलाम्भोरुहवासिनीं शशिमुखीं सम्पूजयामि श्रिये ॥१५॥
भाव्यां देवगणैः शिवेन्द्रयतिभिर्मोक्षार्थिभिर्वलिकां
सन्ध्यां नित्यगुणोदया द्विजगणे श्रेष्ठोदयां सारुणाम् ।
शुक्लाभां परमेश्वरीं शुभकरी भद्राम विशालाननां 
गायत्रीं गनमातरं दिनगति कृष्णाञ्च वृध्दां भजे ॥१६॥
बालां बालकपूजितां गनभृतां विद्यावताम मोक्षदां
धात्रीम शुक्लसरस्वतीं नववरा वाग्वादिनीं चण्डिकाम् ।
स्वाधिष्ठाननहरिप्रियां प्रियकरीं वेदान्तविद्याप्रदां
नित्यं मोक्षाहिताय योगवपुषा चैतन्यरुपां भजे ॥१७॥
नानारत्नसमूहनिर्मितगृहे पूज्यां सूरैर्बालिकां 
वन्दे नन्दनकानने मनसिजे सिद्धान्तबीजानने ।
अर्थं देहि निरर्थकाय पुरुषे हित्वा कुमारीं कलाम् 
सत्यं पातु कुमारिके त्रिविधमूर्त्या च तेजोमयीम् ॥१८॥
वरानने सकलिका कुलपथोल्लासैकबीजोद्वहां
मांसामोदकरालिनीं हि भजतां कामातिरिक्तप्रदाम् ।
बालोऽहं वटुकेश्वरस्य चरनाम्भोजाश्रितोऽहं सदा
हित्वा बालकुमारिके शिरसि शुक्लम्भोरुहेशं भजे ॥१९॥
सूर्याहलाद्वलाकिनी कलिमहापापादितापापहा
तेजोऽङा भुवि सूर्यगां भयहरां तेजोमयीं बालिकाम् ।
वन्दे ह्रत्कमले सदा रविदले वालेन्द्रविद्याम सतीं 
साक्षात् सिद्धिकरीं कुमारि विमलेऽन्वासाद्यं रुपेश्वरीम् ॥२०॥
नित्यं श्रीकुलकामिनीं कुलवतीं कोलामुमामम्बिकां
ननायोगानिवसिनीं सुरमणीं नित्याम तपस्यान्विताम् ।
वेदान्तार्थविशेषदेशवसना भाषाविशेषस्थितां
वन्दे पर्वतराजराजतनयां कालप्रियो त्वामकम् ॥२१॥
कौमारीं कुलमामिनीं रिपुगणक्षोभाग्निसन्दोहिनीं
रक्ताभानयनां शुभाम परममार्गमुक्तिसंज्ञाप्रदाम् ।
भार्या भागवतीं मति भुवनमामोदपञ्चाननां
पञ्चास्यप्रियकामिनीं भयहरां सर्पदिहारां भजे ॥२२॥
चन्द्रास्यां चरणद्वयाम्बुजमहाशोभाविनोदीं नदीं
मोहादिक्षयकारिणीं वरकराम श्रीकुब्जिका सुन्दरीम् ।
ये नित्यं परिपूजयन्ति सह्सा राजेन्द्रचूडामणिं 
सम्पादं धनमायुषो जनयतो व्यांप्येश्चरत्वं जगुः ॥२३॥
योगीशं भुवनेश्वरं प्रियकरं श्रीकालसन्दर्भया
शोभासागरगामिनं हरभवं वाञ्छाफलोद्दीपनम् ।
लोकानामघनाशनाय शिवया श्रीसंज्ञया विद्यया
धर्मप्राणसदैवतां प्रणमतां कल्पद्रुमं भावये ॥२४॥
विद्यां तामराजितां मदन भावमोदमत्ताननां
ह्रत्पद्मस्थितपादुकां कुलकलां कात्यायनीं भैरवीम् ।
ये ये पुण्यधियो भजन्ति परमानन्दाब्धिमध्ये मुदा 
सर्व्वाच्छापितेजसा भयकरी मोक्षाय सङ्कीर्तये ॥२५॥
रुद्राणीं प्रणमामि पद्मवदनां कोट्यर्कतेजोमयीं
नानालङ्भूषणां कुलभुजामानन्दयिनीम् ।
श्री मायाकमलान्विता ह्रदिगतां सन्तानबीजक्रियां
आनन्दैकनिकेतनां ह्रदि भजे साक्षादलब्धामहम् ॥२६॥
नमामि वरभैरवीं क्षितितलाद्यकालानलां
मृणालसुकुमारारुणां भुवनदोषसंशोधिनीम्।
जगद्भयहराम हरां हरति या च योगेश्वरी
महापदसहस्त्रकम् सकलभोगदान्तामहम् ॥२७॥
साम्राज्यं प्रददाति याचितवती विद्या महालक्षणा
साक्षादष्टासमृद्धिदातरि महालक्ष्मीः कुलक्षोभहा ।
स्वाधिष्ठानसुपङ्कजे विवसितां विष्णोरनन्तप्रिये
वन्दे राजपदप्रदाम शुभकरीं कौलश्वरीं कौलिकीम् ॥२८॥
पीठानामधिपाधिपाम् असुवहां विद्यां शुभां नायिकां
सर्वालङ्करनान्विताम त्रिजगतां क्षोभापहां वारुणीं ।
वन्दे पीठनायिका त्रिभुवनच्छायाभिराच्छादितां 
सर्वेषां हितकारिणीं जयवतामन्दरुपेश्वरीम् ॥२९॥
क्षेत्रज्ञां मदविहवलां कुलवतीं सिद्धिप्रियां प्रेयसीम् ।
शम्भोः श्री वटुकेश्वरस्य महतामनन्दसञ्चारिणीम् ॥३०॥
साक्षादात्मपरोद्गमां कमलमध्यसंभाविनीं 
शिरो दशशते दलेऽमृतमहाब्धिधाराधराम् ।
निजमनः क्षोभापहां शाकिनीम्
बाह्यर्थ प्रकटामहं रजतभा वन्दे महाभैरवीम् ॥३१॥ 
प्रणामफलदायिनीं सकलबाह्यवश्यां गुणां
नमामि परमम्बिकां विषयदोषसंहारिणीम् ।
सम्पूर्णाविधुवन्मुखीं कमलमध्यसम्भाविनीं
शिरो दशशते दलेऽमृतमहाब्धिधाराधराम् ॥३२॥
साक्षादहं त्रिभुवनामृतपूर्णदेहां
सन्ध्यादि देवकमलां कुलपण्डितेन्द्राम् ।
नत्वा भजे दशशते दलमध्यमध्ये 
कौलेश्वरीं सकलदिव्यजनाश्रयां ताम् ॥३३॥
विश्वेश्वरीं स्वरकुले वरबालिके त्वां
सिद्धासने प्रतिदिनं प्रणमामि भक्त्या ।
भक्तिं धनं जयपदं यदि देहि दास्यं
तस्मिन् महाधुमतीं लघुनाहताः स्यात् ॥३४॥
एतत्स्तोत्रप्रसादेन कविता वाक्पतिर्भवेत् ।
महासिद्धीश्वरो दिव्यो वीरभावपरायणः ॥३५॥
सर्वत्र जयमाप्नोति स हि स्याद् देववल्लभः ।
वाचामीशो भवेत् क्षिप्रं कामरुपो भवेन्नरः ॥३६॥
पशुरेव महावीरो दिव्यो भवति निश्चितम् ।
सर्वविद्याः प्रसीदन्ति तुष्टाः सर्वे दिगीश्वराः ॥३७॥
वहिनः शीतलतां याति जलस्तम्भं स कारयेत् ।
धनवान् पुत्रवान राजा इह काले भवेन्नरः ॥३८॥
परे च याति वैकुण्ठे कैलासे शिवसन्निधौ ।
मुक्तिरेव महादेव यो नित्यं सर्वदा पठेत् ॥३९॥
महाविद्यापदाम्भोजं स हि पश्यति निश्चितम् ।

सुख-शान्ति-दायक महा-लक्ष्मी महा-मन्त्र प्रयोग

सुख-शान्ति-दायक महा-लक्ष्मी महा-मन्त्र प्रयोग

विनियोगः-

ॐ अस्य श्रीपञ्च-दश-ऋचस्य श्री-सूक्तस्य श्रीआनन्द-कर्दम-चिक्लीतेन्दिरा-सुता ऋषयः, अनुष्टुप्-वृहति-प्रस्तार-पंक्ति-छन्दांसि, श्रीमहालक्ष्मी देवताः, श्रीमहा-लक्ष्मी-प्रसाद-सिद्धयर्थे राज-वश्यार्थे सर्व-स्त्री-पुरुष-वश्यार्थे महा-मन्त्र-जपे विनियोगः।

ऋष्यादि-न्यासः-

श्रीआनन्द-कर्दम-चिक्लीतेन्दिरा-सुता ऋषिभ्यो नमः शिरसि। अनुष्टुप्-वृहति-प्रस्तार-पंक्ति-छन्दोभ्यो नमः मुखे। श्रीमहालक्ष्मी देवताय नमः हृदि। श्रीमहा-लक्ष्मी-प्रसाद-सिद्धयर्थे राज-वश्यार्थे सर्व-स्त्री-पुरुष-वश्यार्थे महा-मन्त्र-जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे।

कर-न्यासः-

ॐ हिरण्मय्यै अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ चन्द्रायै तर्जनीभ्यां स्वाहा। ॐ रजत-स्त्रजायै मध्यमाभ्यां वषट्। ॐ हिरण्य-स्त्रजायै अनामिकाभ्यां हुं। ॐ हिरण्य-स्त्रक्षायै कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्। ॐ हिरण्य-वर्णायै कर-तल-करपृष्ठाभ्यां फट्।

अंग-न्यासः-

ॐ हिरण्मय्यै नमः हृदयाय नमः। ॐ चन्द्रायै नमः शिरसे स्वाहा। ॐ रजत-स्त्रजायै नमः शिखायै वषट्। ॐ हिरण्य-स्त्रजायै नमः कवचाय हुं। ॐ हिरण्य-स्त्रक्षायै नमः नेत्र-त्रयाय वौषट्। ॐ हिरण्य-वर्णायै नमः अस्त्राय फट्।

ध्यानः-

ॐ अरुण-कमल-संस्था, तद्रजः पुञ्ज-वर्णा,
कर-कमल-धृतेष्टा, भीति-युग्माम्बुजा च।
मणि-मुकुट-विचित्रालंकृता कल्प-जालैर्भवतु-
भुवन-माता सततं श्रीः श्रियै नः।।

मानस-पूजनः-

ॐ लं पृथ्वी तत्त्वात्वकं गन्धं श्रीमहा-लक्ष्मी-प्रीतये समर्पयामि नमः।
ॐ हं आकाश तत्त्वात्वकं पुष्पं श्रीमहा-लक्ष्मी-प्रीतये समर्पयामि नमः।
ॐ यं वायु तत्त्वात्वकं धूपं श्रीमहा-लक्ष्मी-प्रीतये घ्रापयामि नमः।
ॐ रं अग्नि तत्त्वात्वकं दीपं श्रीमहा-लक्ष्मी-प्रीतये दर्शयामि नमः।
ॐ वं जल तत्त्वात्वकं नैवेद्यं श्रीमहा-लक्ष्मी-प्रीतये निवेदयामि नमः।
ॐ सं सर्व-तत्त्वात्वकं ताम्बूलं श्रीमहा-लक्ष्मी-प्रीतये समर्पयामि नमः।

।।महा-मन्त्र।।

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ हिरण्य-वर्णां हरिणीं, सुवर्ण-रजत-स्त्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आवह।।१
दारिद्रय-दुःख-भय हारिणि का त्वदन्या, सर्वोपकार-करणाय सदाऽऽर्द्र-चित्ता।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
तां म आवह जात-वेदो, लक्ष्मीमनप-गामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम्।।२
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
अश्वपूर्वां रथ-मध्यां, हस्ति-नाद-प्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुपह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम्।।३
दारिद्रय-दुःख-भय हारिणि का त्वदन्या, सर्वोपकार-करणाय सदाऽऽर्द्र-चित्ता।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महा-लक्ष्म्यै नमः।
ॐ दुर्गे, स्मृता हरसि भीतिमशेष-जन्तोः, स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव-शुभां ददासि।।
कांसोऽस्मि तां हिरण्य-प्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीं।
पद्मे स्थितां पद्म-वर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्।।४
दारिद्रय-दुःख-भय हारिणि का त्वदन्या, सर्वोपकार-करणाय सदाऽऽर्द्र-चित्ता।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महा-लक्ष्म्यै नमः।
ॐ दुर्गे, स्मृता हरसि भीतिमशेष-जन्तोः, स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव-शुभां ददासि।।
चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देव-जुष्टामुदाराम्।
तां पद्म-नेमिं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणोमि।।५
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
आदित्य-वर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽक्ष बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः।।६
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
उपैतु मां दैव-सखः, कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्, कीर्ति वृद्धिं ददातु मे।।७
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
क्षुत्-पिपासाऽमला ज्येष्ठा, अलक्ष्मीर्नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वान् निर्णुद मे गृहात्।।८
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
गन्ध-द्वारां दुराधर्षां, नित्य-पुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्व-भूतानां, तामिहोपह्वये श्रियम्।।९
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
मनसः काममाकूतिं, वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य, मयि श्रीः श्रयतां यशः।।१०
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
कर्दमेन प्रजा-भूता, मयि सम्भ्रम-कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले, मातरं पद्म-मालिनीम्।।११
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
आपः सृजन्तु स्निग्धानि, चिक्लीत वस मे गृहे।
निच-देवी मातरं श्रियं वासय मे कुले।।१२
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं, सुवर्णां हेम-मालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो ममावह।।१३
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं, पिंगलां पद्म-मालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो ममावह।।१४
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
तां म आवह जात-वेदो लक्ष्मीमनप-गामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरूषानहम्।।१५
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा, जुहुयादाज्यमन्वहम्।
श्रियः पंच-दशर्चं च, श्री-कामः सततं जपेत्।।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।

।।स्तुति-पाठ।।

।।ॐ नमो नमः।।

पद्मानने पद्मिनि पद्म-हस्ते पद्म-प्रिये पद्म-दलायताक्षि।
विश्वे-प्रिये विष्णु-मनोनुकूले, त्वत्-पाद-पद्मं मयि सन्निधत्स्व।।

पद्मानने पद्म-उरु, पद्माक्षी पद्म-सम्भवे।
त्वन्मा भजस्व पद्माक्षि, येन सौख्यं लभाम्यहम्।।

अश्व-दायि च गो-दायि, धनदायै महा-धने।
धनं मे जुषतां देवि, सर्व-कामांश्च देहि मे।।

पुत्र-पौत्र-धन-धान्यं, हस्त्यश्वादि-गवे रथम्।
प्रजानां भवति मातः, अयुष्मन्तं करोतु माम्।।

धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः।
धनमिन्द्रा वृहस्पतिर्वरुणो धनमश्नुते।।

वैनतेय सोमं पिब, सोमं पिबतु वृत्रहा।
सोमं धनस्य सोमिनो, मह्मं ददातु सोमिनि।।

न क्रोधो न च मात्सर्यं, न लोभो नाशुभा मतीः।
भवन्ती कृत-पुण्यानां, भक्तानां श्री-सूक्तं जपेत्।।

विधिः-

उक्त महा-मन्त्र के तीन पाठ नित्य करे। 'पाठ' के बाद कमल के श्वेत फूल, तिल, मधु, घी, शक्कर, बेल-गूदा मिलाकर बेल की लकड़ी से नित्य १०८ बार हवन करे। ऐसा ६८ दिन करे। इससे मन-वाञ्छित धन प्राप्त होता है।

हवन-मन्त्रः- 

"ॐ श्रीं ह्रीं महा-लक्ष्म्यै सर्वाभीष्ट सिद्धिदायै स्वाहा।"


सोलह कला

सोलह कला
श्रीराम बारह और भगवान कृष्ण सोलह कलाओं के स्वामी माने गए हैं …
भगवान श्रीकृष्ण के बारे में कहा जाता था कि वह संपूर्णावतार थे और मनुष्य में निहित सभी सोलह कलाओं के स्वामी थे। यहां पर कला शब्द का प्रयोग किसी ‘आर्ट’ के संबंध में नहीं किया गया है बल्कि मनुष्य में निहित संभावनाओं की अभिव्यक्ति के स्तर के बारे में किया गया है। श्रीराम बारह और भगवान कृष्ण सोलह कलाओं से युक्त थे। श्रीकृष्ण जी में ही ये सारी खूबियां समाविष्ट थीं। इन सोलह कलाओं और उन्हें धारण करने वाले का विवरण इस तरह का है -

1. श्री संपदा : श्री कला से संपन्न व्यक्ति के पास लक्ष्मी का स्थायी निवास होता है। ऐसा व्यक्ति आत्मिक रूप से धनवान होता है। ऐसे व्यक्ति के पास से कोई खाली हाथ वापस नहीं आता। इस कला से संपन्न व्यक्ति ऐश्वर्यपूर्ण जीवनयापन करता है।

2. भू संपदा : जिसके भीतर पृथ्वी पर राज करने की क्षमता हो तथा जो पृथ्वी के एक बड़े भू-भाग का स्वामी हो, वह भू कला से संपन्न माना जाता है।

3. कीर्ति संपदा : कीर्ति कला से संपन्न व्यक्ति का नाम पूरी दुनिया में आदर सम्मान के साथ लिया जाता है। ऐसे लोगों की विश्वसनीयता होती है और वह लोककल्याण के कार्यों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं।

4. वाणी सम्मोहन : वाणी में सम्मोहन भी एक कला है। इससे संपन्न व्यक्ति की वाणी सुनते ही सामने वाले का क्रोध शांत हो जाता है। मन में प्रेम और भक्ति की भावना भर उठती है।

5. लीला : पांचवीं कला का नाम है लीला। इससे संपन्न व्यक्ति के दर्शन मात्र से आनंद मिलता है और वह जीवन को ईश्वर के प्रसाद के रूप में ग्रहण करता है।

6. कांतिः जिसके रूप को देखकर मन अपने आप आकर्षित हो जाता हो, जिसके मुखमंडल को बार-बार निहारने का मन करता हो, वह कांति कला से संपन्न होता है।

7. विद्याः सातवीं कला का नाम विद्या है। इससे संपन्न व्यक्ति वेद, वेदांग के साथ ही युद्घ, संगीत कला, राजनीति एवं कूटनीति में भी सिद्घहस्त होते हैं।

8. विमलाः जिसके मन में किसी प्रकार का छल-कपट नहीं हो और जो सभी के प्रति समान व्यवहार रखता हो, वह विमला कला से संपन्न माना जाता है।

9. उत्कर्षिणि शक्तिः इस कला से संपन्न व्यक्ति में लोगों को कर्म करने के लिए प्रेरित करने की क्षमता होती है। ऐसे व्यक्ति में इतनी क्षमता होती है कि वह लोगों को किसी विशेष लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रेरित कर सकता है।

10. नीर-क्षीर विवेक : इससे संपन्न व्यक्ति में विवेकशीलता होती है। ऐसा व्यक्ति अपने विवेक से लोगों का मार्ग प्रशस्त कर सकने में सक्षम होता है।

11. कर्मण्यताः इस कला से संपन्न व्यक्ति में स्वयं कर्म करने की क्षमता तो होती है। वह लोगों को भी कर्म करने की प्रेरणा दे सकता है और उन्हें सफल बना सकता है।

12. योगशक्तिः इस कला से संपन्न व्यक्ति में मन को वश में करने की क्षमता होती है। वह मन और आत्मा का फर्क मिटा योग की उच्च सीमा पा लेता है।

13. विनयः इस कला से संपन्न व्यक्ति में नम्रता होती है। ऐसे व्यक्ति को अहंकार छू भी नहीं पाता। वह सारी विद्याओं में पारंगत होते हुए भी गर्वहीन होता है।

14. सत्य-धारणाः इस कला से संपन्न व्यक्ति में कोमल-कठोर सभी तरह के सत्यों को धारण करने की क्षमता होती है। ऐसा व्यक्ति सत्यवादी होता है और जनहित और धर्म की रक्षा के लिए कटु सत्य बोलने से भी परहेज नहीं करता।

15. आधिपत्य : इस कला से संपन्न व्यक्ति में लोगों पर अपना प्रभाव स्थापित करने का गुण होता है। जरूरत पड़ने पर वह लोगों को अपने प्रभाव की अनुभूति कराने में सफल होता है।

16. अनुग्रह क्षमताः इस कला से संपन्न व्यक्ति में किसी का कल्याण करने की प्रवृत्ति होती है। वह प्रत्युपकार की भावना से संचालित होता है। ऐसे व्यक्ति के पास जो भी आता है, वह अपनी क्षमता के अनुसार उसकी सहायता करता है।

हमारे ग्रंथों में अब तक हुए अवतारों का जो विवरण है उनमेंश्री राम ने बारह कलाओं के साथ अवतार लिया था।
भगवान श्रीकृष्ण ही सोलह कलाओं के स्वामी माने जाते हैं।

भूत-प्रेत ,वायव्य बाधा और तांत्रिक अभिचार से मुक्ति के उपाय

भूत-प्रेत ,वायव्य बाधा और तांत्रिक अभिचार से मुक्ति के उपाय और तांत्रिक अभिचार से मुक्ति के उपाय

भूत-प्रेत-चुड़ैल जैसी समस्याओं से व्यक्ति अथवा परिवार के सहयोग से मुक्ति पायी जा सकती है ,किन्तु उच्च स्तर की शक्तियां सक्षम व्यक्ति ही हटा सकता है ,कुछ शक्तियां ऐसी होती हैं की अच्छे अच्छे साधक के छक्के छुडा देती हैं और उनके तक के लिए जान के खतरे बन जाती है ,ऐसे में केवल श्मशान साधक अथवा बेहद उच्च स्तर का साधक ही उन्हें हटा या मना सकता है ,किन्तु यहाँ समस्या यह आती है की इस स्तर का साधक सब जगह मिलता नहीं ,उसे सांसारिक लोगों से मतलब नहीं होता या सांसारिक कार्यों में रूचि नहीं होती ,पैसे आदि का उसके लिए महत्व नहीं होता या यदि वह सात्विक है तो इन आत्माओं के चक्कर में पना नहीं चाहता ,क्योकि इसमें उसकी उस शक्ति का खर्च होता है जो वह अपनी मुक्ति के लिए अर्जन कर रहा होता है .

भूत-प्रेत चुड़ैल जैसी समस्याओं को कौवा तंत्र के प्रयोग से हटाया जा सकता है किन्तु यह जानकार साधक ही कर सकता है ,प्रेत अथवा पिशाच-पिशाचिनी साधक भी इन्हें हटा सकता है ,अच्छा तांत्रिक भी इन्हें हटा सकता है ,देवी साधक,हनुमान-भैरव साधक इन्हें हटा सकता है ,किन्तु उच्च शक्तिया केवल उच्च साधक ही हटा सकता है,इन्हें देवी[दुर्गा-काली-बगला आदि महाविद्या ]साधक ,भैरव-हनुमान साधक ,श्मशान साधक ,अघोर साधक ,रूद्र साधक हटा सकता है , .
कुछ क्रियाएं इन समस्याओं पर अंकुश लगाती हैं ,पर यहाँ भी योग्य का मार्गदर्शन आवश्यक होता है ,फिर भी प्रसंगवश कुछ क्रियाएं निम्न हैं

[१]भूत-प्रेत ग्रस्त व्यक्ति को हरसिंगार की जड़ के साथ घोड़े की नाल धारण कराने से लाभ होता है
.
[२]भूत ग्रस्त व्यक्ति के सामने उल्लू का मांस जलाने से उसे राहत मिलती है .

[३]नागदमन के पत्ते के साथ सियार के बाल को टोना टोटका ग्रस्त व्यक्ति के ऊपर से उतार कर अग्नि में डालने से उसे लाभ होता है .

[४]नागदमन और अपामार्ग की जड़ को धारण करने से बाधा में लाभ होता है .

[५]रविपुष्य में निकली और अभिमंत्रित श्वेतार्क की जड़ धारण करने से भूत-प्रेत बाधा दूर होती है .

[६]भूत-प्रेत ग्रस्त व्यक्ति के सामने गुडमार के सूखे पत्तों की धूनी जलाने से उसे लाभ होता है .

[७]कटहल की ज धारण करने से टोन से बचाव होता है .
[८]महानिम्ब की जड़ धारण करने से भूत-प्रेत से सुरक्षा होती है .

[९]गरुड़ वृक्ष के ९ इंच के बराबर की लकड़ी को ९ बराबर हिस्सों में काटकर ९ सूअर के दांत के साथ अलग अलग घर के चारो और जमीन में ठोंक देने से घर में भूतों का उपद्रव शांत हो जाता है .

[१०]मंत्र सिद्ध सूअर दांत को व्यक्ति के पुराने कपडे में लपेटकर बहते पानी में छोड़ देने से भूत-प्रेत की पीड़ा शांत होती है .

[११]भालू के बालों की धूनी देने से भूत-प्रेत दूर होते हैं .

[१२]टिटहरी के पंख को बढ़ा ग्रस्त व्यक्ति पर से उतारकर जलाने से भूत-प्रेत से राहत मिलती है .

[१३]दक्षिणमुखी हनुमान जी के दाहिने पैर पर लगे सिन्दूर के तिलक से भूत-प्रेत बाधा में राहत मिलती है .

[१४]तुलसी-कालीमिर्च-सहदेई की जड़ धारण करने से भूत बाधा में राहत मिलती है .

[१५]सफ़ेद घुंघुची की जड़ या काले धतूरे की जड़ धारण कराने से ऐसी पीड़ा दूर होती है .,,

उपरोक्त प्रयोगों को बिना उचित मार्गदर्शन के खुद करने से यथा संभव बचें ,क्योकि अगर आपके उपाय की शक्ति कम हुई और वायव्य बाधा की शक्ति अधिक हुई तो वह चिढ़कर अथवा कुपित होकर अधिक नुकसान कर सकती है अथवा कष्ट दे सकती है |इन प्रयोगों में शक्ति संतुलन का बहुत महत्व होता है |उपरोक्त प्रयोगों के अतिरिक्त अन्य कई प्रकार के प्रयोग और उतारे होते हैं जिनसे ऐसी समस्याओं से मुक्ति मिलती है ,साधक मंत्र और तंत्र प्रयोग से ऐसे समस्याओं से मुक्ति दिलाते है .

बजरंग बाण का पाठ ,सुदर्शन कवच ,दुर्गा कवच,काली सहस्त्रनाम ,बगला सहस्त्रनाम ,काली कवच, बगला कवच, आदि के पाठ से इनके प्रभाव पर अंकुश लगता है ,उग्र शक्तियों की आराधना इनके प्रभाव को रोकती है ,बगला अनुष्ठान ,शतचंडी यज्ञ ,काली अनुष्ठान ,बगला प्रत्यंगिरा ,काली प्रत्यंगिरा,गायत्री हवन ,महामृत्युंजय हवन से इनसे मुक्ति पायी जा सकती है ,सिद्ध साधक द्वारा बनाई यन्त्र -ताबीज आदि से इनके प्रभाव को रोका भी जा सकता है और मुक्ति भी पायी जा सकती है ,यद्यपि अनेक प्रकार के टोटके इन शक्तियों पर उपयोग किये जाते हैं पर यह कम शक्तिशाली प्रभावों पर ही अधिक प्रभावी होते हैं ,उच्च शक्तियों पर इनका बहुत प्रभाव नहीं पड़ता कुछ अंकुश अवश्य हो सकता है
,कभी-कभी कुछ छोटे टोटके जिनका इन पर बहुत प्रभाव न पड़े इन्हें और अधिक उग्र भी कर देते है अतः सावधानी और उपयुक्त मार्गदर्शन आवश्यक होता है ,

सबसे बेहतर तो यही होता है की यदि इस प्रकार की कोई समस्या हो तो किसी अच्छे जानकार व्यक्ति को दिखाया जाए ,किन्तु यदि कोई बेहतर जानकार न मिले या आसपास न हो अथवा आसपास के कम जानकारों से न लाभ मिल पा रहा हो तो ,किसी उच्च स्तर के साधक से संपर्क करना चाहिए ,यदि वह पीड़ित तक न जाए तो पीड़ित को वहां ले जाएँ ,यह भी न हो सके तो साधक से यन्त्र- ताबीज बनवाकर पीड़ित को धारण करवाए ,,यदि पीड़ित करने वाली शक्ति कम शक्तिशाली होगी तो तुरंत हट जायेगी नहीं तो उसके प्रभाव में कमी तो आ ही जायेगी ,उसे व्यक्ति को प्रभावित करने में तो दिक्कत आएगी ही ,,यंत्रो-ताबीजो से निकलने वाली तरंगे और सकारात्मक ऊर्जा से उस नकारात्मक शक्ति को कष्ट होता है ,कभी कभी यह ताबीज उतारने या हटवाने का भी प्रयास करते हैं

,,यह क्रिया उसी प्रकार की है की जैसे किसी व्यक्ति का भोजन बंद कर दिया जाए तो वह कितने दिन तक जीवित रहेगा ,उसी प्रकार अतृप्त आत्मा या अभिचार जिस उद्देश्य से आया है यदि उसमे रुकावट उत्पन्न कर दिया जाए तो वह कब तक रुका रहेगा ,इस प्रकार धीरे-धीरे व्यक्ति को राहत मिल जाती है ,साथ में अगर जानकार के बताये टोटके भी किये जाए और उपाय अपनाए जाए तो जल्दी राहत मिल सकती है ,इस प्रकार उच्च शक्तियों को भी रोका जा सकता है ,हां यन्त्र की शक्ति भी उसी अनुपात में होनी चाहिए की वह उसके प्रभाव को रोक सके ,,बगलामुखी यन्त्र ,काली यन्त्र ,छिन्नमस्ता यन्त्र ,धूमावती यन्त्र ,तारा यन्त्र ,हनुमान यन्त्र ,भैरव यन्त्र ,दुर्गा यन्त्र आदि इस श्रेणी में आते हैं की किसी भी शक्ति के प्रभाव को रोक सकते हैं बशर्ते की यह उनके सिद्ध साधक द्वारा निर्मित हों |


शत्रु नाशक बगला प्रयोग

शत्रु नाशक बगला प्रयोग

जिस साधक पर भगवती बगलामुखी की कृपा हो जाती है, उसके शत्रु कभी अपने षड़यंत्र मे सफल नही हो पाते है.क्युकी भगवती का मुद्गर उन शत्रुओ की समस्त क्रियाओ को निस्तेज कर देता है.

प्रस्तुत साधना उन साधको के लिये है,जो शत्रू के कारण समस्याओ से घिर जाते है.वैसे दरिद्रता,रोग,दुख ये भी माँ कि दृष्टि मे आपके शत्रू ही है.अतः सभी को यह साधना करनी करनी चाहिये.

यह साधना आपको २६ तारीख को करना है.किसी कारणवश ना कर पाये तो किसी भी रविवार को करे.समय रात्रि १० के बाद का रखे.आसन वस्त्र पिले हो.आपका मुख उत्तर की और होना चाहिये.सामने बाजोट रखकर उस पर पिला वस्त्र बिछा दे.और वस्त्र पर पिले सरसो कि एक ढ़ेरी बनाये.इस ढ़ेरी पर एक मिट्टि का दिपक सरसो का तेल डालकर प्रज्जवलित करे.ईसके अतिरिक्त किसी सामग्री की आवश्यक्ता नही है.दिपक की सामान्य पुजन कर गुड़ का भोग अर्पित करे.अब संकल्प ले .

हे माता बगलामुखी हर शत्रू से,रोगो से,दुखो से,दरिद्रता से तथा हर कष्ट प्रद स्थिती से रक्षा हेतु मै यह प्रयोग कर रहा हु.आप मेरी साधना को स्विकार कर.मुझे सफलता प्रदान करे.

अब निम्न मंत्र कि पिली हकीक माला,हल्दि माला,अथवा रूद्राक्ष माला से २१ माला करे.

क्रीं ह्लीं क्रीं सर्व शत्रू मर्दिनी क्रीं ह्लीं क्रीं फट्

यह मंत्र महाकाली समन्वित बगला मंत्र है.जो कि अत्यंत तिव्र है.ईसका जाप वाचिक कर पाये तो उत्तम होगा अन्यथा उपांशु करे.पंरतु मानसिक ना करे.जाप समाप्त होने के बाद.घृत मे सरसो मिलाकर १०८ आहुति प्रदान करे.इस प्रकार साधना पुर्ण होगी.साधना के बाद पुनः स्नान करना आवश्यक है.अगले दिन गुड़,सरसो पिला वस्त्र किसी वृक्ष के निचे रख आये.यह एक दिवसीय प्रयोग साधक को शत्रू से मुक्त कर देता है.साधक चाहे तो साधना को ३,७, या २१ दिवस के अनुष्ठान रूप मे भी कर सकता है।।।

दरिद्त्रता नाशक प्रचंड प्रयोग

दरिद्त्रता  नाशक प्रचंड प्रयोग
 प्रसिद्ध तांत्रिक ग्रन्थ  "" शारदा तिलक  """ में इस पवित्र मुद्रिका के विषय  और प्रयोग के बारे में विशद उल्लेख किया गया हैं . त्रिधातु   ( सोना २ रत्ती , चाँदी १२ रत्ती , और तांबा १६ रत्ती , ) से शास्त्रोक्त पद्धतिके अनुसार निर्मित तथा श्री यन्त्र जड़ित इस चमत्कारी मुद्रिका को धारण करने से दरिद्रता का समूल नाश हो जाता हैं . 
    
  सामग्री -     जल पात्र , घी का दीपक , अगरबत्ती , भोजपत्र , मंत्र सिद्धि पवित्री  मुद्रिका .

     माला -  पवित्री माला  ( मंत्र सिद्धि  चैतन्य  ) 
     समय -  दिन या रात में कोई भी समय 
     दिन  -  शुक्रवार . 
     धारणीय  -   वस्त्र -   पीले रंग की धोती 
     आसन  -  पीले रंग का 
     दिशा -  पूर्व 

     जप संख्या  -  ११००० हजार 

    अवधि -  ११ दिन 

    मंत्र -      ॐ  क्लीं  नमः   ( कनकधारा  स्त्रोत  )

    प्रयोग - 

 सर्व प्रथम भोजपत्र पर केशर से उपरोक्त यन्त्र को अंकित कर दे  और उसके ऊपर पवित्री मुद्रिका रख दे ,  ( जो की मंत्र सिद्धि  प्राण - प्रतिष्ठा युक्त हो )  इसके बाद सामने अगरबत्ती व दीपक लगा दे तथा कनक धरा स्त्रोत का जाप प्रारम्भ कर दे . उसके बाद निम्न मंत्र का ११०० मंत्र का जाप प्रतिदिन करे , ११ दिन . ११ वे दिन जाप पूरा कर के भोजपत्र को चांदी के ताबीज में बंद कर गले में धारण कर ले और मंत्र सिद्धि प्राण - प्रतिष्ठा युक्त पवित्री मुद्रिका दाहिने हाथ की किसी भी ऊँगली में धारण कर ले ,
   इस अगूंठी के प्रभाव से राज्य से सम्बंधित सभी बंधाये दूर हो जाती हैं . और उसे मान सम्मान प्राप्त होता हैं साथ ही यह  पवित्री मुद्रिका धारण करता की दरिद्रता का विनाश कर के उसके लिए लक्ष्मी प्राप्त में परम सहायक होती हैं ।।

आकर्षण साधना

तीव्र आकर्षण साधना –गुमशुदा व्यक्ति को बुलाने के लिए)

व्यक्तियों को वापिस बुलाने के लिए  इस साधना का प्रभाव बहुत अचरजकारी है. और अन्य मन्त्रों के बजाय इसे सिद्ध करने में कोई दिक्कत भी नहीं आती, नवरात्री में १०,००० की संख्या में इस मन्त्र को कर लेने से ये सिद्ध हो जाता है , सामने तीव्र आकर्षण यन्त्र या पारद शिवलिंग रख कर मूंगा माला से इस मंत्र को १४ माला नित्य करने से ९ दिन में ये साधना सिद्ध हो जाती है. मन्त्र सिद्ध हुआ या नहीं इसका परीक्षण करने के बिनोला,पीली सरसों,तथा चूहे के बिल की मिटटी को मिला निम्न मंत्र से १०८ बार अभिमंत्रित करे,और एक सरकंडे को बीच में से चीर कर दो अलग अलग लोगो को जोर से पकडे रहने के लिए दे दे , और मन्त्र पढ़ कर उस अभिमंत्रित मिश्रण को उस सरकंडे पर मारे .यदि सरकंडा आपस में जुड जाये तो समझ ले की सफलता मिल गयी है .

    फिर जब भी किसी खोये हुए व्यक्ति को वापिस बुलाना हो तो मध्य रात्रि में खोये हुए व्यक्ति का चित्र अथवा वस्त्र सामने रख उस पर अभिमंत्रित पिष्टी को ५४० बार मंत्र का उच्चारण करते हुए मारे. यदि व्यक्ति जीवित है तो निश्चय ही शीघ्र अतिशीघ्र वो वापिस आ जाता है.

मन्त्र- ॐ नमो भगवते रुद्राय ए दृष्टि लेखि नाहर : स्वाहा,
       दुहाई कंसासुर की जूट-जूट ,फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा ।

हनुमानजी के दर्शन

इस तरह पूजा करने से होते हैं हनुमानजी के दर्शन

हनुमानजी को रूद्रावतार भी कहा जाता है। वह भगवान शिव की तरह ही जल्दी ही प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्त की हर इच्छा पूरी करते हैं। यूं तो हनुमानजी को प्रसन्न करने के लिए कई तरीके हैं फिर भी कुछ विशेष तांत्रिक प्रयोगों के द्वारा उनके न केवल दर्शन किए जा सकते हैं वरन उनसे मनचाहा वरदान भी पाया जा सकता है।

हनुमान प्रत्यक्ष दर्शन साधना भी ऎसी ही एक तांत्रिक विधि है जिसके द्वारा हनुमानजी के दर्शन होते हैं। इस साधना को किसी मंदिर या गुप्त स्थान पर ही किया जाता है। यदि किसी नदी के कि नारे एकांत स्थान या पर्वत पर स्थित मंदिर में किया जाए तो ज्यादा बेहतर होता है। कुल मिलाकर साधना का स्थान पूर्णतया पवित्र, शांत और शुद्ध होना चाहिए।

पूजा के पहले करें ये तैयारियां

इस पूजा के लिए आपको सबसे पहले सफेद या लाल वस्त्र ले लेने चाहिए। बिना सिले वस्त्र जैसे धोती अधिक उपयुक्त है परन्तु अनिवार्य नहीं है। साथ ही आसन भी सफेद या लाल ही होना चाहिए। पूजा के लिए लड्डू, सिंदूर, केले, दीपक, धूप, गंगाजल, जल का लोटा दूध, माचिस तथा लाल या सफेद फूल ले लें।

मंगलवार को उपवास रखें। इसके साथ ही जल के लोटे में दूध मिला दें और उसे जाप करने के बाद पीपल के पेड़ में चढ़ा दे और हनुमानजी के मंदिर में घी का दीपक जला कर साधना के लिए आज्ञा दें। आपको जल्दी ही स्वप्न में या अन्य किसी संकेत द्वारा हनुमानजी की पूजा की आज्ञा मिल जाएगी। यदि नहीं मिलती है तो इस पूजा को न करें।

ऎसे करें पूजा

ऊपर बताए अनुसार किसी शांत, शुद्ध और एकान्त स्थान पर जाकर गंगा जल छिड़क कर जगह को पवित्र कर लें। वहां गाय के गोबर लीप कर एक चौका बनालें। उस पर स्वास्तिक का चिन्ह बना कर फूल बिछाएं और उस पर हनुमानजी की मूर्ति, चित्र या यंत्र रखें। इसके बाद आसन पर विराजमान होकर मन ही मन भगवान गणेश और अपने गुरू से पूजा आरंभ करने की आज्ञा लें। इसके बाद आप अपनी साधना आरंभ करें।

दीपक जलाकर, पुष्प अर्पण कर भगवान राम के नाम की एक माला का जाप कर भलीभांति हनुमानजी की पूजा-अर्चना कर नीचे दिए मंत्र का मूंगे की माला से 11 माला जाप करें और हनुमानजी को भोग अर्पण करें। भोग में तुलसी का पत्ता अवश्य होना चाहिए। ध्यान रहें प्रतिदिन फल और पुष्प ताजा ही लाने चाहिए। इसके साथ ही अपने आसन और हनुमानजी के चारों तरफ राम नाम का जाप करते हुए एक गोल घेरा बना लें। यह घेरा आपकी सभी विध्नों से रक्षा करेगा। जाप के लिए मंत्र इस प्रकार है

ओम नमो हनुमान बाराह वर्ष के जवान हाथ में लड्डू मुख में पान,
हो के मारू आवन मेरे बाबा हनुमान ये नम:।

पूजा में इन नियमों का पालन अवश्य करें

मंत्र प्रतिदिन शाम को 7 से 11 बजे के बीच ही करना है। भोग लगाकर प्रसाद स्वयं खाएं या छोटे लड़कों को बांट दें।

साधना 41 दिन चलती है और इसे मंगलवार या गुरूवार को ही शुरू करें।

पूरे 41 दिनों के दौरान किसी महिला के संपर्क में न आएं। स्वयं का खाना भी खुद ही बना कर खाएं।

मन-मस्तिष्क में किसी भी तरह का कोई विकार न आने दें और अपने आपको पूरी तरह से भगवान के चरणों में समर्पित कर दें।

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सिर्फ 14 दिन में ही हो सकते हैं आपको दर्शन

साधना का असर 14 दिन के अंदर ही दिखने लगता है। आपको शुरू में धरती हिलती हुई अनुभव होगी। आपको बड़े ही डरावने और भयावह अनुभव होने लगेंगे परन्तु किसी बात से डरना नहीं है। आप चुपचाप हनुमानजी में ध्यान एकाग्र कर अपने मंत्र जाप करते हैं। भगवान रोजाना आकर अपना प्रसाद लेंगे और खा लेंगे। 41वें दिन भगवान साक्षात प्रकट होकर आपको दर्शन देंगे और मनचाहा वरदान मांगने को कहेंगे। आप उस दौरान उनसे कुछ भी मांग कर अपनी इच्छा पूरी कर सकते हैं।

सावधानियां

यह एक अत्यन्त प्रचंड और विलक्षण सिद्धी है। इसे करते समय व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से मजबूत होना चाहिए। जरा सा भी डर या कमजोरी आदमी को पागल कर सकती है या उसे मार सकती है। इसीलिए यह प्रयोग हर किसी को नहीं करना चाहिए वरन अपने गुरू की आज्ञा और आर्शीवाद लेकर ही करना चाहिए।

https://youtu.be/XfpY7YI9CHc

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