Sunday 29 August 2021

व्यापार बढाने के चमत्कारी उपाय

व्यापार बढाने के चमत्कारी उपाय

  1. व्यापार स्थल पर श्री यंत्र, गणेश यंत्र व कुबेर यंत्र स्थापित करे। वह प्रतिदिन उन्हें धूप दीप दिखावें।
  2. रात्रि के समय एक पानी का कलश सिरहाने रख ले। और सुबहा अपने मेन गेट के दोनो कोलो को‌‌ सिचें।
  3. श्री लक्ष्मी माता के कनक धारा स्त्रोत का रोजाना 2-4 बार पाठ करें। कनक धारा स्त्रोत को‌ घर के सभी सदस्य एक-एक बार पढ़ सकते है।
  4. प्रात: स्नान करके, तुलसी के पेड़ को एक कलश जल चढावे। और धूप दीप व अगरबत्ती लगावें। 21 दिनो मे परिणाम दिखे।
  5. व्यापार स्थल के एक कोने मे वृहस्पतिवार को गंगा जल का छिड़काव करे। फिर हल्दी से स्वास्तिक बनाए।
  6. स्वास्तिक के ऊपत दिपक लगाकर, गुड़ व चनर के दाल चढावे। यह उपाय आपको 11 वृहस्पतिवार लगातार करना है।
  7. शुक्रवार के दिन गुड व चना बच्चों मे बांटे।
  8. गेहूँ व चावल की किनकी मे शक्कर मिलाकर। चींटियों  को डाले।
  9. वृहस्पतिवार को एक नींबू, दुकान खोलने से पहले शटर के बाहर काट दें। और दोनो‌ पीस को दाए-बाए फेंक‌‌ दे। फिर गंगा जल छिड़काव कर लोबान की धूनी दे।
  10. सफेद धतूसफेरे के बीज को किसी कपड़े मे बांधकर गल्ले मे रखे। और रोज धूप दें,
  11. शुक्ल पक्ष के रविवार को व्यापार स्थल मे सरसों के तेल का दिपक लगाकर। काले मां की दाल को सामने एक थाली मे रख ले। और इस मंत्र का 108 बार जाप करे। और काले मां की दाल पर फूंक मारते रहे। जाप पूर्ण होने के बाद काले मा को दुकान मे छिड़क दे। अगले दिल पानी मे परवाह कर दें। इसके अतिरिक्त इस मंत्र का रोजाना जाप भी कर सकते है।

व्यापार न चलने के कारण

व्यापार न चलने के कारण

आपका व्यापक मंदा पड़ गया है। दुकान पर कोई भी ग्राहक नही आता। इसके पीछे बहुत सारे कारण होते है। जैसे :-

  1. जब भी हम व्यापार व दुकान को आरम्भ करते है। अपने पित्तरो को याद नही करते।
  2. व्यापार आरम्भ करने से पहले हमे किसी पंडित या शास्त्री को अवश्य दिखाना चाहिए।
  3. दुकान व कोई भी‌ व्यापार आरम्भ करने से‌ पहले पूजा अवश्य करवाए।
  4. व्यापार शुरु करने से पहले अपने कुल देवी देवताओं से आज्ञा व आर्शीवाद प्राप्त करे।
  5. व्यापार शुभ दिनो मे आरम्भ करें।
  6. किसी के द्वारा हमारे व्यापार को तांत्रिक क्रिया से बांध देना।
  7. हमारे घर के प्रेत व किसी भी बुरी आत्माओं द्वारा रुकावट।
  8. अपनी पत्नी व माता पिता का अपमान करने से हमारा व्यापार मंदा पड़ सकता है।
  9. व्यापार स्थल पर देवी देवताओं का कोई चित्र न हो, और धूप बत्ती न होती हो।
  10. यदि आपकी कोई दुकान है। तो सटर उठाने से पहले मंदिर जाए। व अपने इष्ट देव का ध्यान करे। और उनसे व्यापार मे वृद्धि करने की प्रार्थना करें।

सिंदूर तिलक वशीकरण साधना मंत्र

सिंदूर तिलक वशीकरण साधना मंत्र

ॐ नमो आदेश गुरु का।
सिंदूर की माया।
सिंदूर नाम तेरी पत्ती।
कामाख्या सिर पर तेरी उत्पत्ति।
सिंदूर पढ़ि मैं लगाऊँ बिन्दी।
वश अमुख होके रहे निर्बुध्दी।
महादेव की शक्ति। गुरु की भक्ति।
न वशी हो तो कामरु कामाख्या को दुहाई।
आदेश हाड़ी दासी चण्डी का।
अमुक का मन लाओ निकाल।
नहीं तो महादेव पिता का वाम पढ़ जाये लाग।
आदेश आदेश आदेश

महत्वपूर्ण जानकारी

इस मंत्र मे जहां भी अमुख, या अमुक शब्द इस्तमाल किया गया है। उसके स्थान पर आप‌ जिस भी व्यक्ति को वश मे करना चाहते है। उनका नाम ले। पर जब यह मंत्र आप सिद्ध कर रहे है। तब आप को अमुख और अमुक ही बोलना है। जब आप इस मंत्र का‌ किसी व्यक्ति पर इस्तमाल करना चाहते है। तो अमुख और अमुक के‌ स्थान पर उस व्यक्ति का नाम लेना है।


रोगो से मुक्ति के मंत्र

रोगो से मुक्ति के मंत्र 

  1. सभी प्रकार के रोग नाशक मंत्र – ॐ सं सां सिं सीं सुं सूं सें सैं सौं सं स: वं वां विं वीं वुं वूं वें वैं वों वौं वं व: हंस: अमृत वर्चसे स्वाहा ( साधक अपना नाम ले )
  2. बवासीर नाशक मंत्र -ॐ काका कता क्रोरी कर्ता, ॐ करता से होय, यरसना दश हूंस प्रकटे, खूनी बादी बवासीर न होय, मंत्र जान के न बताये, द्वादश ब्रह्म हत्या का पाप होय, लाख जप करे तो उसके वंश में न होय, शब्द साँचा, पिण्ड काँचा, हनुमान का मंत्र साँचा फुरो मंत्र ईश्वरोवाचा (रोगी नाम ले )
  3. सर्व रोग नाशक मंत्र – ॐ नमो आदेश गुरु का, काली कमली वाला श्याम उसको कहते है।‌ घन श्याम रोग नाशे, शोक नाशे नही तो कृष्ण की आन, राधा मीरा मनावे, अमुक का रोग जावे। ( अमुक के स्थान पर रोगी का नाम‌ ले)
  4. हर प्रकार के रोग नाशक मंत्र – ॐ वन मे बैठी वानरी अजनी जायो हनुमन्त, बाल डमरू ब्याही बिलाई, आख की पीड़ा, मस्तक की पीड़ा चौरासी बाई, बलि-बलि भस्म हो जाय, पक्के न फुटे पीड़ा करे तो गोरखयति रक्षा करें। गुरु कि शक्ति मेरी भक्ति फुरे मंत्र ईश्वरो वाचा। (रोगी का नाम ले)

रोग मुक्ति के चमत्कारी टोटके

रोग मुक्ति के चमत्कारी टोटके

  1. शनिवार के दिन सूर्य अस्त होने के बाद 2 लड्डू रोगी के उपर से बारकर काले कुत्ते को जिला हें।
  2. एक नारियल के गुट को उपर से थोड़ा काटकर उसने सात चीजें डालकर, सतनाजा तैयार करले और जहां ढ़ेर सारी चींटियाँ हो बहा दबा दे।
  3. एक सूखा नारियल लेकर रोगी के उपर से 7 बार फिरा कर नदी मे परवाह कर दें।
  4. बीमार व्यक्ति के पास रोजाना हनुमान चालीसा का पाठ करें।
  5. बीमार व्यक्ति को प्रतिदिन महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना चाहिए।
  6. यदि आपके घर का कोई सदस्य सदैव बीमार रहता है। तो उसकी कुंडली दिखाए।क
  7. कुंडली मे यदि किसी भी ग्रह की बुरी दशा हो तो दान करें। या रत्न धारण करवाए।
  8. रात या दोपहर के 12 बजे 7 लौंग रोगी व्यक्ति के उपर से फिरा कर अग्नि मे डाले।
  9. हनुमान जी के बजरंग बाण या सुंदर कांड का पाठ करें।
  10. पित्तरो की सेवा करें।
  11. प्रतिदिन सुबहा मां दुर्गा के कवच का पाठ करें

भैरव साधना

एक अत्यंत गोपनीय मंत्र है इसे पूरी श्रद्धासे करे |ये एक शाबर मंत्र है और अत्यंत प्रभावी मंत्र है इसे जैसा दिया है वैसाही इसका उच्चारण करे।
मंत्र
ॐ गुरु जी सत नाम आदेश आदि पुरुष को ! काला भैरूं, गोरा भैरूं, भैरूं रंग बिरंगा !! शिव गौरां को जब जब ध्याऊं, भैरूं आवे पास पूरण होय मनसा वाचा पूरण होय आस लक्ष्मी ल्यावे घर आंगन में, जिव्हा विराजे सुर की देवी ,खोल घडा दे दड़ा !! काला भैरूं खप्पर राखे,गौरा झांझर पांव लाल भैरूं,पीला भैरूं,पगां लगावे गाँव दशों दिशाओं में पञ्च पञ्च भैरूं !! पहरा लगावे आप !दोनों भैरूं मेरे संग में चालें बम बम करते जाप !! बावन भैरव मेरे सहाय हो गुरु रूप से ,धर्म रूप से,सत्य रूप से, मर्यादा रूप से, देव रूप से, शंकर रूप से, माता पिता रूप से, लक्ष्मी रूप से,सम्मान सिद्धि रूप से, स्व कल्याण जन कल्याण हेतु सहाय हो, श्री शिव गौरां पुत्र भैरव !! शब्द सांचा पिंड कांचा चलो मंत्र ईश्वरो वाचा !!
प्रयोग   विधि :---
कार्य सिद्ध करने हेतु अत्यंत गुप्त एवम प्रभावी मन्त्र है . इसका उपयोग परोपकार करने के लिए करे .  सिद्धि मिलने के हेतु भैरव साधना मन्त्र अलग है , रोजाना ११ बार जप करना चाहिए . श्री शिव पुत्र भैरव आपकी सहायता करेगें . चार बुन्दी के लड्डू लेकर मन्त्र कहने के बाद काले रंग के कुत्ते को खिलादे
 शनिवार या रविवार से अनुष्ठान चालू करे ।किसी पत्थर तीन कोण वाला टुकड़ा लेकर उसे एकांत मैं स्थापन करे . उस पर तेल और सिंदूर लगाए . भोग मैं बेसन लड्डू चढाये।

रूद्र काल भैरव की उग्र साधना -

रूद्र  काल भैरव की उग्र साधना -

 आपने भैरवजी  के बारे में सुना होगा।  
मगर भैरवजी किन किन भागों में विभाजित हैं। ..
आज आपको  इस पोस्ट के माध्यम से बताते हैं। .. भैरवजी के   साथ भैरवी पूजन का भी विधान है...  |

हर शक्तिपीठ में  माँ के हर रूप के साथ कोई ना कोई भैरव विद्यमान जरूर होता  है |

आप जितने भी शक्तिपीठो में जायेंगे आपको हर शक्ति भैरवी  के साथ भैरव भी उस पीठ में दिखाई देंगे |

ये दोनों एक दुसरे के बिना अपूर्ण माने जाते  है |

महाकाल के बिना महाकाली अपूर्ण है इसी तरह शिव का अर्धनारीश्वर रूप भी यही बोध कराता है की स्त्री और पुरुष शक्ति दोनों का ही महत्त्व है |

भैरव की पूजा पूर्ण तभी होती है जब साथ में भैरवी की भी  पूजा  की जाये |

भैरवी भैरव भक्तो की साधना में मदद करके उनकी पूजा अर्चना को सफल बनाने में सहायक होती  है |
भैरव हिन्दुओं के प्रसिद्द देवता हैं जो शिव के रूप हैं। इनकी पूजा भारत और नेपाल में होती है। हिन्दू और जैन दोनों भैरव की पूजा करते हैं। भैरवों की संख्या ६४ है। ये ६४ भैरव भी ८ भागों में विभाजित  हैं।

शिवपुराण’ के अनुसार मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को मध्यान्ह में भगवान शंकर के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी, अतः इस तिथि को काल-भैरवाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है।

पौराणिक आख्यानों के अनुसार अंधकासुर नामक दैत्य अपने कृत्यों से अनीति व अत्याचार की सीमाएं पार कर रहा था, यहाँ तक कि एक बार घमंड में चूर होकर वह भगवान शिव तक के ऊपर आक्रमण करने का दुस्साहस कर बैठा. तब उसके संहार के लिए शिव के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई।

कुछ पुराणों के अनुसार शिव के अपमान-स्वरूप भैरव की उत्पत्ति हुई थी। यह सृष्टि के प्रारंभकाल की बात है। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने भगवान शंकर की वेशभूषा और उनके गणों की रूपसज्जा देख कर शिव को तिरस्कार युक्त वचन कहे। अपने इस अपमान पर स्वयं शिव ने तो कोई ध्यान नहीं दिया, किन्तु उनके शरीर से उसी समय क्रोध से कम्पायमान और विशाल दण्डधारी एक प्रचण्डकाय काया प्रकट हुई और वह ब्रह्मा का संहार करने के लिये आगे बढ़ आयी। स्रष्टा तो यह देख कर भय से चीख पड़े। शंकर द्वारा मध्यस्थता करने पर ही वह काया शांत हो सकी। रूद्र के शरीर से उत्पन्न उसी काया को महाभैरव का नाम मिला। बाद में शिव ने उसे अपनी पुरी, काशी का नगरपाल नियुक्त कर दिया। ऐसा कहा गया है कि भगवान शंकर ने इसी अष्टमी को ब्रह्मा के अहंकार को नष्ट किया था, इसलिए यह दिन भैरव अष्टमी व्रत के रूप में मनाया जाने लगा।

कालान्तर में भैरव-उपासना की दो शाखाएं- बटुक भैरव तथा काल भैरव के रूप में प्रसिद्ध हुईं। जहां बटुक भैरव अपने भक्तों को अभय देने वाले सौम्य स्वरूप में विख्यात हैं वहीं काल भैरव आपराधिक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करने वाले प्रचण्ड दंडनायक के रूप में प्रसिद्ध हुए।

पुराणों में भैरव का उल्लेख

तंत्रशास्त्र में अष्ट-भैरव का उल्लेख है –
असितांग-भैरव,
रुद्र-भैरव,
चंद्र-भैरव,
क्रोध-भैरव,
उन्मत्त-भैरव,
कपाली-भैरव,
भीषण-भैरव
तथा संहार-भैरव।

कालिका पुराण में भैरव को नंदी, भृंगी, महाकाल, वेताल की तरह भैरव को शिवजी का एक गण बताया गया है जिसका वाहन श्वान  है। 

ब्रह्मवैवर्तपुराण में भी १ . महाभैरव, २ . संहार भैरव, ३ . असितांग भैरव, ४ . रुद्र भैरव, ५ . कालभैरव, ६ . क्रोध भैरव, ७ . ताम्रचूड़ भैरव तथा ८ . चंद्रचूड़ भैरव नामक आठ पूज्य भैरवों का निर्देश है। इनकी पूजा करके मध्य में नवशक्तियों की पूजा करने का विधान बताया गया है। शिवमहापुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का ही पूर्णरूप बताया गया है -

भैरव के   आठ भैरवीयो के नाम - 

श्री भैरवी , महा भैरवी , सिंह भैरवी , धूम्र भैरवी, भीम भैरवी,  उन्मत्त भैरवी , वशीकरण भैरवी और   मोहन भैरवी

नमस्कार मंत्र-

ॐ श्री भैरव्यै , ॐ मं महाभैरव्यै , ॐ सिं सिंह भैरव्यै , ॐ धूं धूम्र भैरव्यै,  ॐ भीं भीम भैरव्यै , ॐ उं उन्मत्त भैरव्यै , ॐ वं वशीकरण भैरव्यै , ॐ मों मोहन भैरव्यै |

ॐ श्री भैरव्यै नमः श्री भैरव्यै पदुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
ॐ श्री भैरव्यै नमः महाभैरवी पदुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
ॐ सिं सिंह भैरव्यै नमः श्री सिंह भैरवी पदुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
ॐ धूं धूम्र भैरव्यै धूम्र भैरवी पदुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
ॐ भीं भीम भैरव्यै भीम भैरवी पदुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
ॐ उं उन्मत्त भैरव्यै उन्मत्त भैरवी पदुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
ॐ वं वशीकरण भैरव्यै वशीकरण भैरवी पदुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः
ॐ मों मोहन भैरव्यै मोहन भैरवी पदुकाम पूजयामि तर्पयामि नमः

भैरव रूद्र पाठ- 

भं भं भं भं भं विकट गंभीर नाद कर प्रकट भये भैरव
कल कल कल कल कल विकराल अग्नि नेत्र धरे विशाल भैरव
घम घम घम घम घम घुंघरू घमकावत नाचे भैरव
हूँ हूँ हूँ हूँ हूँ हुँकारे भूतनाथ भैरव
डम डम डम डम डम डमरू डमकावत प्रचंड भैरव
हर हर हर हर हर नाद उद्घोषित करते महाकाल भैरव
झम झम झम झम झमक झम झम मेघ बरसत प्रकट भैरव
तड़ तड़ तड़ तड़ तड़क तड़ तड़ तड़तड़ावत घनघोर बिजली
धम धम धम धम धम दंड धमकावत काल भैरव
जय हो भव भय हारक क्रोधेश महाकाल भैरव ।।।

ॐ भैरवाय नमः।

शत्रु से मुक्ति पाये

अगर आपका कोई शत्रु आपको बहुत ज्‍यादा परेशान कर रहा है तो आप उसे भैरव अष्‍टमी से कमजोर बना सकते हैं। ये टोटका भैरव मंदिर में ही करें। एक छोटे-से कागज़ पर भैरव देव के इस मंत्र ‘ओम क्षौं क्षौं भैरवाय स्वाहा!’ का जाप करते हुए अपने शत्रु का नाम लिखें। अब इस कागज़ को शहद की शीशी में डुबो दें और उसका ढक्‍कन बंद कर दें। इस उपाय के प्रभाव से आपका शत्रु शांत हो जाएगा
 अपनी जन्मकुण्डली के अनुकूल विशिष्ट मन्त्र यन्त्र तन्त्र -के माध्यम से कायॅ सिद्ध करने के लिये सम्पकॅ करे ।--- संपर्क सूत्र --- 9760924411.

भैरव साधना शाबर मंत्र

शाबर मंत्र :
ॐ गुरुजी काला भैरुँ कपिला केश, काना मदरा, भगवाँ भेस। 
मार-मार काली-पुत्र। बारह कोस की मार, भूताँ हात कलेजी खूँहा गेडिया। 
जहाँ जाऊँ भैरुँ साथ। बारह कोस की रिद्धि ल्यावो। चौबीस कोस की सिद्धि ल्यावो। 
सूती होय, तो जगाय ल्यावो। बैठा होय, तो उठाय ल्यावो। 
अनन्त केसर की भारी ल्यावो। गौरा-पार्वती की विछिया ल्यावो। 
गेल्याँ की रस्तान मोह, कुवे की पणिहारी मोह, बैठा बाणिया मोह, 
घर बैठी बणियानी मोह, राजा की रजवाड़ मोह, महिला बैठी रानी मोह। 
डाकिनी को, शाकिनी को, भूतनी को, पलीतनी को, ओपरी को, पराई को, 
लाग कूँ, लपट कूँ, धूम कूँ, धक्का कूँ, पलीया कूँ, चौड़ कूँ, चौगट कूँ, काचा कूँ, 
कलवा कूँ, भूत कूँ, पलीत कूँ, जिन कूँ, राक्षस कूँ, बरियों से बरी कर दे। 
नजराँ जड़ दे ताला, इत्ता भैरव नहीं करे, 
तो पिता महादेव की जटा तोड़ तागड़ी करे, माता पार्वती का चीर फाड़ लँगोट करे। 
चल डाकिनी, शाकिनी, चौडूँ मैला बाकरा, देस्यूँ मद की धार, भरी सभा में द्यूँ आने में कहाँ लगाई बार? 
खप्पर में खाय, मसान में लौटे, ऐसे काला भैरुँ की कूण पूजा मेटे। 
राजा मेटे राज से जाय, प्रजा मेटे दूध-पूत से जाय, जोगी मेटे ध्यान से जाय। 
शब्द साँचा, ब्रह्म वाचा, चलो मन्त्र ईश्वरो वाचा।
 
यह मंत्र की जप और साधना विधि:- किसी योग्य जानकार से ही जानकर इस मंत्र का जप करें। क्योंकि भैरवनाथ के शाबर मं‍त्र कई है।और सभी मंत्रों के कार्य अलग अलग है। आपके उद्येश्य के अनुसार ही मंत्र का चयन करना होता है।

शत्रु से मुक्ति पाये

अगर आपका कोई शत्रु आपको बहुत ज्‍यादा परेशान कर रहा है तो आप उसे भैरव अष्‍टमी से कमजोर बना सकते हैं। ये टोटका भैरव मंदिर में ही करें। एक छोटे-से कागज़ पर भैरव देव के इस मंत्र ‘ओम क्षौं क्षौं भैरवाय स्वाहा!’ का जाप करते हुए अपने शत्रु का नाम लिखें। अब इस कागज़ को शहद की शीशी में डुबो दें और उसका ढक्‍कन बंद कर दें। इस उपाय के प्रभाव से आपका शत्रु शांत हो जाएगा
 अपनी जन्मकुण्डली के अनुकूल विशिष्ट मन्त्र यन्त्र तन्त्र -के माध्यम से कायॅ सिद्ध करने के लिये सम्पकॅ करे ।--- संपर्क सूत्र --- 9760924411.

कारोबार मे वृद्धि हेतु प्रयोग

यदि आपके कारोबार में अनावश्यक अवरोध हो, कारोबार चल नहीं रहा हो, कभी घी घणा तो कभी मुट्ठी चना की दशा बनी रहती हो तो ऐसी अवस्था में शनि अमावस्या के इस पावन अवसर पर इस उपाय को शुरू करके देखें, और लगातार 43 दिन तक करें। अवश्य ही लाभ होगा।
एक काला कपडा लें। उडद के आटे में गुड मिले सात लड्डू, 11 बताशे, 11 नींबू, 11 साबुत सूखी लाल मिर्च, 11 साबुत नमक की डली, 11 लौंग, 11 काली मिर्च, 11 लोहे की कील और 11 चुटकी सिंदूर इन सबको कपडे में बांधकर पोटली बना दें। पोटली के ऊपर काजल की 11 बिंदी लगा दें। तत्पश्चात अपने सामने रख दें। ओम् आरती भंजनाय नम: मंत्र की 108 बार जाप करें इसके साथ ही पांच माला ओम् प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:। तत्पश्चात यह सामग्री लेकर मुख्य दरवाजे के चौखट के बीचोबीच खडे हो जाएं। इस पोटली को अपने ऊपर से 11 बार उसार करके किसी मंदिर या चौराहे पर रखकर आ जाएं। 

"वक्रतुण्ड महाकाय , सूर्यकोटि समप्रभ ! निर्विघ्नं कुरु मे देव , सर्व कार्येषु सर्वदा" !!
श्रीराम ज्योतिष सदन. भारतीय वैदिक ज्योतिष.और मंत्र विशेषज्ञ एवं रत्न परामँश दाता । आप जन्मकुंडली बनवाना ॰ जन्मकुंडली दिखवाना ॰ जन्मकुंडली मिलान करवाना॰ जन्मकुंडली के अनुसार नवग्रहो का उपाय जानना ॰ मंत्रो के माध्यम से उपाय जानना ॰ रत्नो के माध्यम से उपाय जानना और आपकी शादी नही हो रही है। व्यवसाय मे सफलता नही मिल रही है! नोकरी मे सफलता नही मिल रही है। और आप शत्रु से परेशान है। ओर आपके कामो मे अडचन आ रही है । और आपको धन सम्बंधी परेशानी है । और अन्य सभी प्रकार की समस्याओ के लिये संपर्क करें । आपका  पंडित आशु बहुगुणा । मै केवल जन्मकुण्डली देखकर ही आप की सम्सयाओ का समाधान कर सकता हुँ । अपनी जन्मकुण्डली के अनुकूल विशिष्ट मन्त्र यन्त्र के माध्यम से कायॅ सिद्ध करने के लिये सम्पकॅ करे ।

सन्तान को सुधारने का अनुभूत प्रयोग

सन्तान को सुधारने का अनुभूत प्रयोग 
यदि आपकी सन्तान आपका कहना नहीं मान रही है। वह आपके वश में नहीं है, समय-असमय घर पर आती है। संगत अच्छी नहीं है। आप चाहते हैं कि वह आपका कहना माने और आपके कहे अनुसार चले तो आपके लिए यह अनुभूत प्रयोग दे रहे हैं, इसे करके आप लाभ उठा सकते हैं।

प्रयोग इस प्रकार है।
शुक्ल पक्ष के शनिवार की रात्रि में इस प्रयोग को करना है।
शनिवार की रात्रि में सात फूल वाले लौंग ले आएं। 
शनिवार की रात्रि में पूजा स्थल में इष्ट को स्मरण करके सात लौंग को 21 बार फूंक लें और फूंकने से पूर्व यह बोले-मेरा पुत्र अमुक(पुत्र का नाम) मेरे वश में आए। मेरा कहना माने। बुरी संगत से छूट जाए। अमुक के स्थान पर पुत्र का नाम बोलें।

अगले दिन रविवार सात लौंग में से एक लौंग जलाकर भस्म बना दें। इस प्रकार सात रविवार को सातों लौंग जला दें और उसकी भस्म बहते पानी में बहा दें। 
इस प्रयोग से आप भी लाभ उठाएं और दूजों को भी बताकर लाभ पहुंचाएं।

रुका फंसा हुआ धन वापस पाने के उपाए

रुका फंसा हुआ धन वापस पाने के उपाए
1. किसी बुधवार के दिन, हो सके तो कृष्ण पक्ष के किसी बुधवार या बुधवार को पड़ने वाली अमावस्या पर शाम के समय मीठे तेल की पाँच पूड़ियाँ बना लें। सबसे ऊपर की पूड़ी पर रोली से एक स्वास्तिक का चिन्ह बनायें और उसपर गेहूं के आटे का एक दिया सरसों का तेल डाल कर रख लें। दिया जलाएं और फिर उसपर भी रोली से तिलक करें। पीले या लाल रंग का एक पुष्प अर्पित करें। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान भगवान श्री गणेश से उस व्यक्ति से अपना धन वापस दिलाने की प्रार्थना करते रहें। फिर बाएं हाथ में सरसों और उड़द के कुछ दाने लेकर निम्न मंत्र का जप करते जाएँ और पूड़ी तथा दिए पर छोड़ते जाएँ । ये मन्त्र 21 बार जपना है
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं ह्रैं ह्रूं ह्रः हेराम्बाय नमो नमः। मम धनं प्रतिगृहं कुरु कुरु स्वाहा। 
तत्पश्चात इस सामग्री को लेजाकर उस व्यक्ति के घर के पास यानि मुख्य द्वार के सामने या ऐसे स्थान पर रख दें जहाँ से उसका मुख्यद्वार या घर नज़र आता हो। मुख्यद्वार के सामने रखने का अर्थ ये है के सड़क के दूसरी ओर यदि वहां भी कोई घर हो और रखने का मौका न मिले तो एक निश्चित दुरी पर रख दें जहाँ से कम से कम उसका घर नज़र आता हो।

क्या आपकी दुकान बंधी है।

क्या आपकी दुकान बंधी है।
– यदि आपको लगता है कि आपकी दुकान किसी ने बांध दी है तो आप चालीस दाने उड़द के लेकर उनपर चालीस बार निम्नलिखित मन्त्र पढ़कर दुकान के चारों कौनों में रविवार को शाम के समय डाल दें दूसरे दिन सुबह देखें यदि उड़द के दाने फूटे, छिटके, या दो -तीन भाग में मिलते हैं तो समझें कि आपकी दुकान बंधी है अन्यथा नहीं बंधी है यदि उड़द के दाने साबुत मिलते हैं तो उनको उठाकर किसी चौराहे पर डाल दें तथा मुड़कर न देखें और यदि बंधी है तो सम्पर्क करें
मन्त्र – भंवर वीर तू चेला मेरा खोल दुकान कहा कर मेरा , उठे जो डंडी किके जो मॉल भंवर वीर सोखे नहिं जाय |

भूत प्रेत बाधा एवं निवारण

भूत प्रेत बाधा एवं निवारण 
भूत-प्रेतों की गति एवं शक्ति अपार होती है। इनकी विभिन्न जातियां होती हैं और उन्हें भूत, प्रेत, राक्षस, पिशाच, यम, शाकिनी, डाकिनी, चुड़ैल, गंधर्व आदि विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। ज्योतिष के अनुसार राहु की महादशा में चंद्र की अंतर्दशा हो और चंद्र दशापति राहु से भाव ६, ८ या १२ में बलहीन हो, तो व्यक्ति पिशाच दोष से ग्रस्त होता है। वास्तुशास्त्र में भी उल्लेख है कि पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद, ज्येष्ठा, अनुराधा, स्वाति या भरणी नक्षत्र में शनि के स्थित होने पर शनिवार को गृह-निर्माण आरंभ नहीं करना चाहिए, अन्यथा वह घर राक्षसों, भूतों और पिशाचों से ग्रस्त हो जाएगा। इस संदर्भ में संस्कृत का यह श्लोक द्रष्टव्य है : 
''अजैकपादहिर्बुध्न्यषक्रमित्रानिलान्तकैः।
समन्दैर्मन्दवारे स्याद् रक्षोभूतयुंतगद्यहम॥ 
भूतादि से पीड़ित व्यक्ति की पहचान उसके स्वभाव एवं क्रिया में आए बदलाव से की जा सकती है। इन विभिन्न आसुरी शक्तियों से पीड़ित होने पर लोगों के स्वभाव एवं कार्यकलापों में आए बदलावों का संक्षिप्त विवरण यहां प्रस्तुत है। 
भूत पीड़ा : भूत से पीड़ित व्यक्ति किसी विक्षिप्त की तरह बात करता है। मूर्ख होने पर भी उसकी बातों से लगता है कि वह कोई ज्ञानी पुरुष हो। उसमें गजब की शक्ति आ जाती है। क्रुद्ध होने पर वह कई व्यक्तियों को एक साथ पछाड़ सकता है। उसकी आंखें लाल हो जाती हैं और देह में कंपन होता है। 
यक्ष पीड़ा : यक्ष प्रभावित व्यक्ति लाल वस्त्र में रुचि लेने लगता है। उसकी आवाज धीमी और चाल तेज हो जाती है। इसकी आंखें तांबे जैसी दिखने लगती हैं। वह ज्यादातर आंखों से इशारा करता है। 
पिशाच पीड़ा : पिशाच प्रभावित व्यक्ति नग्न होने से भी हिचकता नहीं है। वह कमजोर हो जाता है और कटु शब्दों का प्रयोग करता है। वह गंदा रहता है और उसकी देह से दुर्गंध आती है। उसे भूख बहुत लगती है। वह एकांत चाहता है और कभी-कभी रोने भी लगता है। 
शाकिनी पीड़ा : शाकिनी से सामान्यतः महिलाएं पीड़ित होती हैं। शाकिनी से प्रभावित स्त्री को सारी देह में दर्द रहता है। उसकी आंखों में भी पीड़ा होती है। वह अक्सर बेहोश भी हो जाया करती है। वह रोती और चिल्लाती रहती है। वह कांपती रहती है। 
प्रेत पीड़ा : प्रेत से पीड़ित व्यक्ति चीखता-चिल्लाता है, रोता है और इधर-उधर भागता रहता है। वह किसी का कहा नहीं सुनता। उसकी वाणी कटु हो जाती है। वह खाता-पीता नही हैं और तीव्र स्वर के साथ सांसें लेता है। 
चुडै+ल पीड़ा : चुडै+ल प्रभावित व्यक्ति की देह पुष्ट हो जाती है। वह हमेशा मुस्कराता रहता है और मांस खाना चाहता है। 
इस तरह भूत-प्रेतादि प्रभावित व्यक्तियों की पहचान भिन्न-भिन्न होती है। इन आसुरी शक्तियों को वश में कर चुके लोगों की नजर अन्य लोगों को भी लग सकती है। इन शक्तियों की पीड़ा से मुक्ति हेतु निम्नलिखित उपाय करने चाहिए। 
यदि बच्चा बाहर से खेलकर, पढ़कर, घूमकर आए और थका, घबराया या परेशान सा लगे तो यह उसे नजर या हाय लगने की पहचान है। ऐसे में उसके सर से ७ लाल मिर्च और एक चम्मच राई के दाने ७ बार घूमाकर उतारा कर लें और फिर आग में जला दें। 
यदि बेवजह डर लगता हो, डरावने सपने आते हों, तो हनुमान चालीसा और गजेंद्र मोक्ष का पाठ करें और हनुमान मंदिर में हनुमान जी का श्रृंगार करें व चोला चढ़ाएं।

https://youtu.be/XfpY7YI9CHc

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