Tuesday 17 August 2021

श्री गणपति देव प्रयोग


हिन्दू धर्मशास्त्रों में सुखी जीवन, दीर्घायु और धन सुख के लिए ही बुद्धिदाता श्री गणेश व मां लक्ष्मी की उपासना का महत्व है। इन खास पदार्थो की मूर्तियां अपार धनलाभ देने वाली मानी गई है।
हरिद्रा गणपति - हल्दी से बनी गणेश मूर्ति बहुत ही मंगलकारी मानी गई है। खासतौर पर इसे लक्ष्मी का रूप माना गया है। पुराणों के मुताबिक धनलक्ष्मी देने वाली सोने की गणेश प्रतिमा न होने पर उसकी जगह हल्दी से बनी गणेश प्रतिमा की पूजा का महत्व बताया गया है।
श्वेतार्क गणेश - सफेद आंकडे की जड़ में बनी गणेश की प्रतिमा अपार सुख-सौभाग्य देने वाली ही नहीं चमत्कारी रूप से मनचाहे फल देने वाली भी मानी गई है। रविवार या पुष्य नक्षत्र में मिली अंगूठे के आकार की इस गणेश मूर्ति की पूजा लक्ष्मी की प्रसन्नता के लिये बहुत ही शुभ है।
गोमय गणेश मूर्ति - हिन्दू धर्म परंपराओं में गो मातृशक्ति और पवित्र मानी गई है। यहां तक कि गाय के गोबर यानी गोमय में लक्ष्मी का वास माना गया है। यही कारण है कि गोमय से बनी गणेश मूर्ति की पूजा घर में अपार धन लाभ देने वाली मानी गई है।
काष्ठ या लकड़ी के गणेश - हिन्दू धर्म में अनेक पेड़-पौधे पूजनीय और पवित्र माने गए हैं। इसलिए प्राकृतिक रूप में लकड़ी धार्मिक दृष्टि से भी बहुत पवित्र मानी गई है। पवित्रता में ही लक्ष्मी का वास माना गया है। इसी कारण धार्मिक मान्यताओं में काष्ठ यानी लकड़ी से बने भगवान गणेश की मूर्ति को घर के बाहरी दरवाजे के ऊपरी हिस्से में स्थापित कर पूजने पर घर में मंगल होने के साथ ही श्री यानी लक्ष्मी का वास बना रहता है।

तंत्र मे छिन्नमस्ताद्वादशनामस्तोत्रम् प्रयोग

छिन्नमस्ताद्वादशनामस्तोत्रम् 
              ।। ॐ हूं ॐ ।।
छिन्नग्रीवा छिन्नमस्ता छिन्नमुण्डधराऽक्षता ।
क्षोदक्षेमकरी स्वक्षा क्षोणीशाच्छादनक्षमा ॥ १॥
वैरोचनी वरारोहा बलिदानप्रहर्षिता ।
बलिपूजितपादाब्जा वासुदेवप्रपूजिता ॥ २॥
इति द्वादशनामानि छिन्नमस्ताप्रियाणि यः ।
स्मरेत्प्रातः समुत्थाय तस्य नश्यन्ति शत्रवः ॥ ३॥
इति छिन्नमस्ताद्वादशनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
अर्थात् - 
१) छिन्नग्रीवा - जिन्होंने अपने भक्तों के लिए अपना कंठ काट लिया है।
२) छिन्नमस्ता - जिन्होंने अपने भक्तों के लिए अपना मस्तक काट लिया है, अर्थात् अपना जीवन ही भक्तों के निमित्त अर्पित कर दिया है।
३) छिन्नमुण्डधरा - जो अपना मस्तक काटकर अपने बाएं हाथ मे धारण करती हैं।
४) अक्षता - जो पूर्ण है, जिनका कभी पराभव नही होता, जो सम्पूर्ण हैं। 
५) क्षोदक्षेमकरी - उपद्रव शांत करने में प्रवीण ।
६) स्वक्षा - सुंदर नेत्रो वाली।
७) क्षोणीशाच्छादनक्षमा - राजाओं का पालन-रक्षण करने वाली । 
८) वैरोचनी - इंद्र की पत्नी ( भगवान शंकर को उपनिषद में इंद्र कहा गया है अतः शंकर पत्नी भावार्थ लगायें)
९) वरारोहा - अत्यंत सुंदर वपु वाली 
१०) बलिदान प्रहर्षिता - भक्तो द्वारा अर्पित विभिन्न पूजन सामग्रियों, फल, मिष्ठान्न, नारियल, फूल आदि से प्रसन्न होने वाली।
११) बलिपूजितपादाब्जा - जिनके चरण कमलों में विभिन्न पदार्थ अर्पित किए जाते हैं या इन उत्तम।पदार्थों से पूजित चरण कमल वाली (फल, फूल, मिष्ठान्न, मेवा, रत्न, स्वर्ण आदि आदि) 
१२) वासुदेवप्रपूजिता - श्रीकृष्ण द्वारा पूजित व उपसित।
 जो भी साधक इन १२ नामो को प्रातःकाल उठते ही स्मरण करता है। उसके सभी शत्रुओं का नाश होता है। इन १२ नामो का निरंतर चिंतन करने वाले के सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।
ॐ रां रामाय नमः
श्री राम ज्योतिष सदन 
पंडित आशु बहुगुणा 
आपकी जो भी समस्या है। उस समस्या का समाधान।
मैं केवल आपकी जन्मकुंडली देख कर ही आपकी समस्याओं का समाधान कर सकता हूं। यह मेरा व्हाट्सएप नंबर भी है।
मोबाइल नं-9760924411
मुजफ्फरनगर UP

तंत्र मे श्रीभैरवताण्डवस्तोत्रम्

श्रीभैरवताण्डवस्तोत्रम् 
श्रीगणेशाय नमः ।
श्रीउमामहेश्वराभ्यां नमः ।
श्रीगुरवे नमः ।
श्रीभैरवाय नमः ॥
अथ श्रीभैरवताण्डवस्तोत्रम् ।
ॐ चण्डं प्रतिचण्डं करधृतदण्डं कृतरिपुखण्डं सौख्यकरं
लोकं सुखयन्तं विलसितवन्तं प्रकटितदन्तं नृत्यकरम् ।
डमरुध्वनिशङ्खं तरलवतंसं मधुरहसन्तं लोकभरं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं भैरववेषं कष्टहरम् ॥ १॥
चर्चितसिन्दूरं रणभूविदूरं दुष्टविदूरं श्रीनिकरं
किङ्किणिगणरावं त्रिभुवनपावं खर्प्परसावं पुण्यभरम् ।
करुणामयवेशं सकलसुरेशं मुक्तसुकेशं पापहरं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं श्रीभैरववेषं कष्टहरम् ॥ २॥
कलिमलसंहारं मदनविहारं फणिपतिहारं शीघ्रकरं
कलुषं शमयन्तं परिभृतसन्तं मत्तदृगन्तं शुद्धतरम् ।
गतिनिन्दितकेशं नर्तनदेशं स्वच्छकशं सन्मुण्डकरं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं श्रीभैरववेशं कष्टहरम् ॥ ३॥
कठिनस्तनकुम्भं सुकृतं सुलभं कालीडिम्भं खड्गधरं
वृतभूतपिशाचं स्फुटमृदुवाचं स्निग्धसुकाचं भक्तभरम् ।
तनुभाजितशेषं विलमसुदेशं कष्टसुरेशं प्रीतिनरं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं श्रीभैरववेशं कष्टहरम् ॥ ४॥
ललिताननचन्द्रं सुमनवितन्द्रं बोधितमन्द्रं श्रेष्ठवरं
सुखिताखिललोकं परिगतशोकं शुद्धविलोकं पुष्टिकरम् ।
वरदाभयहारं तरलिततारं क्षुद्रविदारं तुष्टिकरं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं श्रीभैरववेषं कष्टहरम् ॥ ५॥
सकलायुधभारं विजनविहारं सुश्रविशारं भ्रष्टमलं
शरणागतपालं मृगमदभालं सञ्जितकालं स्वेष्टबलम् ।
पदनूपूरसिञ्जं त्रिनयनकञ्जं गुणिजनरञ्जन कुष्टहरं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं श्रीभैरववेषं कष्टहरम् ॥ ६॥
मर्दयितुसरावं प्रकटितभावं विश्वसुभावं ज्ञानपदं
रक्तांशुकजोषं परिकृततोषं नाशितदोषं सन्मतिदम् ।
कुटिलभ्रुकुटीकं ज्वरधननीकं विसरन्धीकं प्रेमभरं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं श्रीभैरववेषं कष्टहरम् ॥ ७॥
परिनिर्जितकामं विलसितवामं योगिजनाभं योगेशं
बहुमद्यपनाथं गीतसुगाथं कष्टसुनाथं वीरेशम् ।
कलयन्तमशेषं भृतजनदेशं नृत्यसुरेशं वीरेशं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं श्रीभैरववेषं कष्टहरम् ॥ ८॥
इति श्रीभैरवताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
ॐ रां रामाय नमः
श्री राम ज्योतिष सदन 
पंडित आशु बहुगुणा 
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मां काली प्रातः स्मरणस्तोत्रम्

मां काली प्रातः स्मरणस्तोत्रम् 
ॐ प्रातर्नमामि मनसा त्रिजगद्-विधात्रीं 
कल्याणदात्रीं कमलायताक्षीम् ।
कालीं कलानाथ-कलाभिरामां कादम्बिनी-मेचक-काय-कान्तिम् ॥ १॥
अर्थात् तीनों भुवनों की रचना करनेवाली, कल्याण की देनेवाली, कमल-सी सुन्दर आँखोंवाली, चन्द्रमा की कला से सुशोभित, सघन मेघ-सी साँवली काली को मैं प्रातःकाल मन से नमन करता हूँ ॥ १॥
जगत्प्रसूते द्रुहिणो यदर्च्चा-प्रसादतः 
पाति सुरारिहन्ता ।
अन्ते भवो हन्ति भव-प्रशान्त्यै 
तां कालिकां प्रातरहं भजामि ॥ २॥
संसार से शान्ति पाने के लिए प्रातःकाल मैं उस काली का भजन करता हूँ, जिसकी पूजा के बल से ब्रह्मा संसार की सृष्टि करते हैं, विष्णु उसका
पालन करते हैं और प्रलय-काल में रुद्र नाश करते हैं ॥ २॥
शुभाशुभैः कर्म-फलैरनेक-जन्मनि
 मे सञ्चरतो महेशि ।
माभूत् कदाचिदपि मे पशुभिश्च 
गोष्ठी दिवानिशं स्यात् कुल-मार्ग-सेवा ॥ ३॥
हे महेशि ! अच्छे-बुरे कर्मों के फल से अनेक जन्मों में घूमता हुआ मैं कभी भी पशुओं (अज्ञानियों) का संग न प्राप्त करूं और हमेशा मैं कुल-क्रम से ही तुम्हारी सेवा करता रहूँ ॥ ३॥
वामे प्रिया शाम्भव-मार्ग-निष्ठा
 पात्रं करे स्तोत्रमये मुखाब्जे ।
ध्यानं हृदब्जे गुरु-कौल-
सेवा स्युर्मे महाकालि ! तव प्रसादात् ॥ ४॥
हे महाकाली ! तुम्हारी कृपा से बायीं तरफ मनोनुकूला शक्ति, शिवजी के दिखलाये हुये मार्ग में श्रद्धा, हाथ में पात्र, मुखारविन्द में स्तुति, हृदय में ध्यान, गुरु और कौलों की सेवा, ये सब हों ॥ ४॥
श्रीकालि, मातः, परमेश्वरि !
 त्वां प्रातः समुत्थाय नमामि नित्यम् ।
दीनोऽस्म्यनाथोऽस्मि भवातुरोऽस्मि 
मां पाहि संसार-समुद्र-मग्नम् ॥ ५॥
हे काली ! हे मां ! हे परमेश्वरि ! नित्य मैं सबेरे उठ कर तुम्हें प्रणाम करता हूँ। मैं दीन हूँ, अनाथ हूँ, संसार से व्याकुल हूँ, संसार-रूपी सागर में डूबे हुए मेरी रक्षा करो ॥ ५॥
प्रातः-स्तवं यः पर-देवतायाः 
श्रीकालिकायाः शयनावसाने ।
नित्यं पठेत् तस्य 
मुखावलोकादानन्दकन्दाङ्कुरितं मनस्स्यात् ॥ ६॥
सोते से उठकर जो सबसे बडी देवता श्री कालिका के प्रातः-स्तव का पाठ करता है, उसका मुख देखने से मन में आनन्द जाग उठता है ॥ ६॥
इति श्रीकालीप्रातःस्मरणस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
ॐ रां रामाय नमः
श्री राम ज्योतिष सदन 
पंडित आशु बहुगुणा 
आपकी जो भी समस्या है। उस समस्या का समाधान।
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अथ श्रीमहाभैरवाष्टकम्

अथ श्रीमहाभैरवाष्टकम् 
श्रीगणेशाय नमः । श्रीउमामहेश्वराभ्यां नमः । श्रीगुरवे नमः । श्रीभैरवाय नमः ।
अस्य श्रीबटुकभैरवाष्टकस्तोत्रमन्त्रस्य ईश्वर ऋषिः । गायत्री छन्दः । बटुकभैरवो देवताः । ह्रीं बीजम् । बटुकायेतिशक्तिः । प्रणवः कीलकम् । धर्मार्म्मार्थकाममोक्षार्थे पाठे विनियोगः ॥ 
अथ करन्यासः । कं अङ्गुष्टाभ्यां नमः । हं तर्जनीभ्यां स्वाहा । खं मध्यमाभ्यां वषट् । सं अनामिकाभ्यां हूं ।गं कनिष्टिकाभ्यां वौषट् । क्षं करतलकरपृष्टाभ्यां फट् ॥ अथ हृदयादिन्यासः । कं हृदयाय नमः । हं शिरसे स्वाहा । खं शिखायै वषट् । सं कवचाय हूं । गं नेत्रत्रयाय वौषट् । क्षं अस्त्राय फट् ॥ अथाङ्ग न्यासः ।क्षं नमः हृदि । कं नमः नासिकयोः । हं नमः ललाटे । खं नमः मुखे । सं नमः जिह्वायाम् । रं नमः कण्ठे ।मं नमः स्तनयोः । नमः नमः सर्वाङ्गेषु । आज्ञा ।तीक्ष्णदंष्ट्र महाकाय कल्पान्त दहनोपम । भैरवाय नमस्तुभ्यमनु ज्ञान्दातुमर्हसि ॥ १॥ अथ ध्यानम् ।  करकलितकपालः कुण्डलीदण्डपाणि  स्तरुणतिमिरनीलोव्यालयज्ञोपवीती ।क्रतुसमयसपर्या विघ्नविच्छेदहेतु- र्जयतिबटुकनाथः सिद्धिदः साधकानाम् ॥ २॥ इति ध्यानम् ।पूर्वे आसिताङ्गभैरवाय नमः पूर्वदिशि मां रक्ष रक्ष कालकण्टकान् भक्ष भक्ष आवाहयाम्यहमत्रतिष्ट तिष्ट हूं फट् स्वाहा । आग्नेये रुरुभैरवाय नमः आग्नेये मां रक्ष रक्ष कालकण्टकान् भक्ष भक्ष आवाहयाम्यहमत्रतिष्ट तिष्ट हूं फट् स्वाहा । दक्षिणे चण्डभैरवाय नमः दक्षिणे मां रक्ष रक्ष कालकण्टकान् भक्ष भक्ष आवाहयाम्यहमत्रतिष्ट तिष्ट हूं फट् स्वाहा । नैऋत्ये क्रोधभैरवाय नमः नैऋत्यां मां रक्ष रक्ष
कालकण्टकान् भक्ष भक्ष आवाहयाम्यहमत्रतिष्ट तिष्ट हूं फट् स्वाहा । प्रतिच्यां उन्मत्तभैरवाय नमः प्रतिच्यां मां रक्ष रक्ष कालकण्टकान् भक्ष भक्ष आवाहयाम्यहमत्रतिष्ट तिष्ट हूं फट् स्वाहा । वायव्ये कपालभैरवाय नमः वायव्ये मां रक्ष रक्ष कालकण्टकान् भक्ष भक्ष आवाहयाम्यहमत्रतिष्ट तिष्ट हूं फट् स्वाहा ।  उदिच्यां भीषण भैरवाय नमःउदिच्यां मां रक्ष रक्ष कालकण्टकान् भक्ष भक्षआवाहयाम्यहमत्रतिष्ट तिष्ट हूं फट् स्वाहा । ईशान्यां संहारभैरवाय नमः ईशाने मां रक्ष रक्ष कालकण्टकान् भक्ष भक्ष आवाहयाम्यहमत्रतिष्ट तिष्ट हूं फट् स्वाहा । ॥ नमो भगवते भैरवाय नमः क्लीं क्लीं क्लीं ॥ इति मन्त्रमष्टोत्तर शतं जप्त्वा चतुर्विध पुरुषार्थसिद्धये महासिद्धिकरभैरवाष्टकस्तोत्र पाठे विनियोगः ॥ 
यं यं यं यक्षरूपं दिशिचकृतपदं भूमिकम्पायमानं सं सं संहारमूर्तिं शिरमुकुट्जटा भालदेशेऽर्धचन्द्रम् ।दं दं दं दीर्घकायं विकृतनख मुखं चोर्ध्वरोमं करालं पं पं पं पापनाशं नतिरिह सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ १॥रं रं रं रक्तवर्णं कटिनतनुमयं तीक्ष्णदंष्ट्रं च भीमं घं घं घं घोरघोषं घ घ घनघटितं घुर्घुरा घोरनादम् ।कं कं कं कालपाशं ध्रिकि ध्रिकि चकितं कालमेघावभासं तं तं तं दिव्यदेहं नतिरिह सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ २॥लं लं लं लम्बदन्तं ल ल ल लितल ल्लोलजिह्वा करालं धूं धूं धूं धूम्रवर्णं स्फुट विकृतनखमुखं भास्वरं भीमरूपम् ।
रुं रुं रुं रूण्डमालं रुधिरमयतनुं ताम्रनेत्रं सुभीमं नं नं नं नग्नरूपं नतिरिह सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ३॥वं वं वं वायुवेगं ग्रहगणनमितं ब्रह्मरुद्रैस्सुसेव्यं खं खं खं खड्गहस्तं त्रिभुवननिलयं घोररूपं महोग्रम् ।चं चं चं व्यालहस्तं चालित चल चला चालितं भूतचक्रं मं मं मं मातृरूपं नतिरिह सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ४॥शं शं शं शङ्खहस्तं शशिशकलयरं सर्पयज्ञोपवीतं मं मं मं मन्त्रवर्णं सकलजननुतं मन्त्र सूक्ष्मं सुनित्यम् ।भं भं भं भूतनाथं किलिकिलिकिलितं गेहगेहेरटन्तं अं अं अं मुख्यदेवं नतिरिह सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ५॥
खं खं खं खड्गभेदं विषममृतमयं कालकालं सुकालं क्षं क्षं क्षं क्षिप्रवेगं दहदहदहनं तप्तसन्तप्तमानम् ।हं हं हं कारनादं प्रकटितदपातं गर्जितां भोपिभूमिं बं बं बं बाललीलं नतिरिह सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ६॥सं सं सं सिद्धियोगं सकलगुणमयं रौद्ररूपं सुरौद्रं पं पं पं पद्मनाभं हरिहरनुतं चन्द्रसूर्याग्नि नेत्रम् ।ऐं ऐं ऐं ऐश्वर्यरूपं सततभयहरं सर्वदेवस्वरूपं रौं रौं रौं रौद्रनादं नतिरिह सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ७॥हं हं हं हंसहास्यं कलितकरतलेकालदण्डं करालं थं थं थं स्थैर्यरूपं शिरकपिलजटं मुक्तिदं दीर्घहास्यम् ।टं टं टंकारभीमं त्रिदशवरनुतं लटलटं कामिनां दर्पहारं भूं भूं भूं भूतनाथं नतिरिह सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ८॥
भैरवस्याष्टकं स्तोत्रं पवित्रं पापनाशनम् । महाभयहरं दिव्यं सिद्धिदं रोगनाशनम् ॥ 
। इति श्रीरुद्रयामलेतन्त्रे महाभैरवाष्टकं सम्पूर्णम् ।
ॐ रां रामाय नमः
श्री राम ज्योतिष सदन 
पंडित आशु बहुगुणा 
आपकी जो भी समस्या है। उस समस्या का समाधान।
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श्रीबगलामुखीशत्रुविनाशककवचम्

श्रीबगलामुखीशत्रुविनाशककवचम् 

श्रीगणेशाय नमः । श्रीपीताम्बरायै नमः ।

श्रीदेव्युवाच -
नमस्ते शम्भवे तुभ्यं नमस्ते शशिशेखर ।
त्वत्प्रसादाच्छ्रुतं सर्वमधुना कवचं वद ॥ १॥

श्रीशिव उवाच -
श‍ृणु देवि प्रवक्ष्यामि कवचं परमाद्भुतम् ।
यस्य स्मरणमात्रेण रिपोः स्तम्भो भवेत् क्षणात् ॥ २॥

कवचस्य च देवेशि महामायाप्रभावतः ।
पङ्क्तिः छन्दः समुद्दिष्टं देवता बगलामुखी ॥ ३॥

धर्मार्थकाममोक्षेषु विनियोगः प्रकीर्तितः ।

ॐकारो मे शिरः पातु ह्रीङ्कारो वदनेऽवतु ॥ ४॥

बगलामुखी दोर्युग्मं कण्ठे सर्वदाऽवतु ।
दुष्टानां पातु हृदयं वाचं मुखं ततः पदम् ॥ ५॥

उदरे सर्वदा पातु स्तम्भयेति सदा मम ।
जिह्वां कीलय मे मातर्बगला सर्वसदाऽवतु ॥ ६॥

बुद्धिं विनाशय पादौ तु ह्लीं ॐ मे दिग्विदिक्षु  च ।
स्वाहा मे सर्वदा पातु सर्वत्र सर्वसन्धिषु ॥ ७॥

इति ते कथितं देवि कवचं परमाद्भुतम् ।
यस्य स्मरणमात्रेण सर्वस्थम्भो भवेत् क्षणात् ॥ ८॥

यद् धृत्वा विविधा दैत्या वासवेन हताः पुरा ।
यस्य प्रसादात् सिद्धोऽहं हरिः सत्त्वगुणान्वितः ॥ ९॥

वेधा सृष्टिं वितनुते कामः सर्वजगज्जयी ।
लिखित्वा धारयेद्यस्तु कण्ठे वा दक्षिणे भुजे ॥ १०॥

षट्कर्मसिद्धीस्तस्याशु मम तुल्यो भवेद्ध्रुवम् ।
अज्ञात्वा कवचं देवि तस्य मन्त्रो न सिध्यति ॥ ११॥

इति श्रीबगलामुखीशत्रुविनाशकं कवचं समाप्तम् ।
ॐ रां रामाय नमः
श्री राम ज्योतिष सदन 
पंडित आशु बहुगुणा 
आपकी जो भी समस्या है। उस समस्या का समाधान।
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तंत्र में मांश्रीधूमावतीकवचम्

श्रीधूमावतीकवचम् 

श्रीगणेशाय नमः ।
अथ धूमावती कवचम् ।
श्रीपार्वत्युवाच -
धूमावत्यर्चनं शम्भो श्रुतं विस्तरतोमया ।
कवचं श्रोतुमिच्छामि तस्या देव वदस्व मे ॥ १॥

श्रीभैरव उवाच -
श‍ृणुदेवि परं गुह्यं न प्रकाश्यं कलौयुगे ।
कवचं श्रीधूमावत्याश्शत्रुनिग्रहकारकम् ॥ २॥

ब्रह्माद्यादेवि सततं यद्वशादरिघातिनः ।
योगिनोभवछत्रुघ्ना यस्याध्यान प्रभावतः ॥ ३॥

ॐ अस्य श्रीधूमावतीकवचस्य पिप्पलाद ऋषिः
अनुष्टुप्छन्दः श्रीधूमावती देवता धूं बीजम् स्वाहाशक्तिः
धूमावती कीलकम् शत्रुहनने पाठे विनियोगः ।

ॐ धूं बीजं मे शिरः पातु धूं ललाटं सदावतु ।
धूमानेत्रयुगं पातु वती कर्णौसदावतु ॥ ४॥

दीर्घातूदरमध्ये तु नाभिं मे मलिनाम्बरा ।
शूर्पहस्ता पातु गुह्यं रूक्षारक्षतु जानुनी ॥ ५॥

मुखं मे पातु भीमाख्या स्वाहा रक्षतु नासिकाम् ।
सर्वं विद्यावतु कष्टं विवर्णा बाहुयुग्मकम् ॥ ६॥

चञ्चला हृदयं पातु दुष्टा पार्श्वं सदावतु ।
धूतहस्ता सदा पातु पादौ पातु भयावहा ॥ ७॥

प्रवृद्धरोमा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा ।
क्षृत्पिपासार्दिता देवी भयदा कलहप्रिया ॥ ८॥

सर्वाङ्गं पातु मे देवी सर्वशत्रुविनाशिनी ।
इति ते कवचं पुण्यं कथितं भुवि दुर्लभम् ॥ ९॥

न प्रकाश्यं न प्रकाश्यं न प्रकाश्यं कलौ युगे ।
पठनीयं महादेवि त्रिसन्ध्यं ध्यानतत्परैः ।
दुष्टाभिचारो देवेशि तद्गात्रं नैव संस्पृशेत् ॥ १०॥

इति भैरवी भैरव संवादे धूमावती तत्त्वे धूमावती कवचं सम्पूर्णम्
ॐ रां रामाय नमः
श्री राम ज्योतिष सदन 
पंडित आशु बहुगुणा 
आपकी जो भी समस्या है। उस समस्या का समाधान।
मैं केवल आपकी जन्मकुंडली देख कर ही आपकी समस्याओं का समाधान कर सकता हूं। यह मेरा व्हाट्सएप नंबर भी है।
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तंत्र मे मां ताराकवचम्

ताराकवचम् 

श्रीगणेशाय नमः ।
ईश्वर उवाच ।
कोटितन्त्रेषु गोप्या हि विद्यातिभयमोचिनी ।
दिव्यं हि कवचं तस्याः श‍ृणुष्व सर्वकामदम् ॥ १॥

अस्य ताराकवचस्य अक्षोभ्य ऋषिः , त्रिष्टुप् छन्दः ,
भगवती तारा देवता , सर्वमन्त्रसिद्धिसमृद्धये जपे विनियोगः ।
प्रणवो मे शिरः पातु ब्रह्मरूपा महेश्वरी ।
ललाटे पातु ह्रींकारो बीजरूपा महेश्वरी ॥ २॥

स्त्रींकारो वदने नित्यं लज्जारूपा महेश्वरी ।
हूँकारः पातु हृदये भवानीरूपशक्तिधृक् ॥ ३॥

फट्कारः पातु सर्वाङ्गे सर्वसिद्धिफलप्रदा ।
खर्वा मां पातु देवेशी गण्डयुग्मे भयापहा ॥ ४॥

निम्नोदरी सदा स्कन्धयुग्मे पातु महेश्वरी ।
व्याघ्रचर्मावृता कट्यां पातु देवी शिवप्रिया ॥ ५॥

पीनोन्नतस्तनी पातु पार्श्वयुग्मे महेश्वरी ।
रक्तवर्तुलनेत्रा च कटिदेशे सदाऽवतु ॥ ६॥

ललजिह्वा सदा पातु नाभौ मां भुवनेश्वरी ।
करालास्या सदा पातु लिङ्गे देवी हरप्रिया ॥ ७॥

पिङ्गोग्रैकजटा पातु जङ्घायां विघ्ननाशिनी ।
प्रेतखर्परभृद्देवी जानुचक्रे महेश्वरी ॥ ८॥

नीलवर्णा सदा पातु जानुनी सर्वदा मम ।
नागकुण्डलधर्त्री च पातु पादयुगे ततः ॥ ९॥

नागहारधरा देवी सर्वाङ्गं पातु सर्वदा ।
नागकङ्कधरा देवी पातु प्रान्तरदेशतः ॥ १०॥

चतुर्भुजा सदा पातु गमने शत्रुनाशिनी ।
खड्गहस्ता महादेवी श्रवणे पातु सर्वदा ॥ ११॥

नीलाम्बरधरा देवी पातु मां विघ्ननाशिनी ।
कर्त्रिहस्ता सदा पातु विवादे शत्रुमध्यतः ॥ १२॥

ब्रह्मरूपधरा देवी सङ्ग्रामे पातु सर्वदा ।
नागकङ्कणधर्त्री च भोजने पातु सर्वदा ॥ १३॥

शवकर्णा महादेवी शयने पातु सर्वदा ।
वीरासनधरा देवी निद्रायां पातु सर्वदा ॥ १४॥

धनुर्बाणधरा देवी पातु मां विघ्नसङ्कुले ।
नागाञ्चितकटी पातु देवी मां सर्वकर्मसु ॥ १५॥

छिन्नमुण्डधरा देवी कानने पातु सर्वदा ।
चितामध्यस्थिता देवी मारणे पातु सर्वदा ॥ १६॥

द्वीपिचर्मधरा देवी पुत्रदारधनादिषु ।
अलङ्कारान्विता देवी पातु मां हरवल्लभा ॥ १७॥

रक्ष रक्ष नदीकुञ्जे हूं हूं फट् सुसमन्विते ।
बीजरूपा महादेवी पर्वते पातु सर्वदा ॥ १८॥

मणिभृद्वज्रिणी देवी महाप्रतिसरे तथा ।
रक्ष रक्ष सदा हूं हूं ॐ ह्रीं स्वाहा महेश्वरी ॥ १९॥

पुष्पकेतुरजार्हेति कानने पातु सर्वदा ।
ॐ ह्रीं वज्रपुष्पं हुं फट् प्रान्तरे सर्वकामदा ॥ २०॥

ॐ पुष्पे पुष्पे महापुष्पे पातु पुत्रान्महेश्वरी ।
हूं स्वाहा शक्तिसंयुक्ता दारान् रक्षतु सर्वदा ॥ २१॥

ॐ आं हूं स्वाहा महेशानी पातु द्यूते हरप्रिया ।
ॐ ह्रीं सर्वविघ्नोत्सारिणी देवी विघ्नान्मां सदाऽवतु ॥ २२॥

ॐ पवित्रवज्रभूमे हुंफट्स्वाहा समन्विता ।
पूरिका पातु मां देवी सर्वविघ्नविनाशिनी ॥ २३॥

ॐ आः सुरेखे वज्ररेखे हुंफट्स्वाहासमन्विता ।
पाताले पातु सा देवी लाकिनी नामसंज्ञिका ॥ २४॥

ह्रींकारी पातु मां पूर्वे शक्तिरूपा महेश्वरी ।
स्त्रींकारी पातु देवेशी वधूरूपा महेश्वरी ॥ २५॥

हूंस्वरूपा महादेवी पातु मां क्रोधरूपिणी ।
फट्स्वरूपा महामाया उत्तरे पातु सर्वदा ॥ २६॥

पश्चिमे पातु मां देवी फट्स्वरूपा हरप्रिया ।
मध्ये मां पातु देवेशी हूंस्वरूपा नगात्मजा ॥ २७॥

नीलवर्णा सदा पातु सर्वतो वाग्भवा सदा ।
भवानी पातु भवने सर्वैश्वर्यप्रदायिनी ॥ २८॥

विद्यादानरता देवी वक्त्रे नीलसरस्वती ।
शास्त्रे वादे च सङ्ग्रामे जले च विषमे गिरौ ॥ २९॥

भीमरूपा सदा पातु श्मशाने भयनाशिनी ।
भूतप्रेतालये घोरे दुर्गमा श्रीघनाऽवतु ॥ ३०॥

पातु नित्यं महेशानी सर्वत्र शिवदूतिका ।
कवचस्य माहात्म्यं नाहं वर्षशतैरपि ॥ ३१॥

शक्नोमि गदितुं देवि भवेत्तस्य फलं च यत् ।
पुत्रदारेषु बन्धूनां सर्वदेशे च सर्वदा ॥ ३२॥

न विद्यते भयं तस्य नृपपूज्यो भवेच्च सः ।
शुचिर्भूत्वाऽशुचिर्वापि कवचं सर्वकामदम् ॥ ३३॥

प्रपठन् वा स्मरन्मर्त्यो दुःखशोकविवर्जितः ।
सर्वशास्त्रे महेशानि कविराड् भवति ध्रुवम् ॥ ३४॥

सर्ववागीश्वरो मर्त्यो लोकवश्यो धनेश्वरः ।
रणे द्यूते विवादे च जयस्तत्र भवेद् ध्रुवम् ॥ ३५॥

पुत्रपौतान्वितो मर्त्यो विलासी सर्वयोषिताम् ।
शत्रवो दासतां यान्ति सर्वेषां वल्लभः सदा ॥ ३६॥

गर्वी खर्वी भवत्येव वादी स्खलति दर्शनात् ।
मृत्युश्च वश्यतां याति दासास्तस्यावनीभुजः ॥ ३७॥

प्रसङ्गात्कथितं सर्वं कवचं सर्वकामदम् ।
प्रपठन्वा स्मरन्मर्त्यः शापानुग्रहणे क्षमः ॥ ३८॥

आनन्दवृन्दसिन्धूनामधिपः कविराड् भवेत् ।
सर्ववागिश्वरो मर्त्यो लोकवश्यः सदा सुखी ॥ ३९॥

गुरोः प्रसादमासाद्य विद्यां प्राप्य सुगोपिताम् ।
तत्रापि कवचं देवि दुर्लभं भुवनत्रये ॥ ४०॥

गुरुर्देवो हरः साक्षात्तत्पत्नी तु हरप्रिया ।
अभेदेन भजेद्यस्तु तस्य सिद्धिदूरतः ॥ ४१॥

मन्त्राचारा महेशानि कथिताः पूर्ववत्प्रिये ।
नाभौ ज्योतिस्तथा रक्तं हृदयोपरि चिन्तयेत् ॥ ४२॥

ऐश्वर्यं सुकवित्वं च महावागिश्वरो नृपः ।
नित्यं तस्य महेशानि महिलासङ्गमं चरेत् ॥ ४३॥

पञ्चाचाररतो मर्त्यः सिद्धो भवति नान्यथा ।
शक्तियुक्तो भवेन्मर्त्यः सिद्धो भवति नान्यथा ॥ ४४॥

ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च ये देवासुरमानुषाः ।
तं दृष्ट्वा साधकं देवि लज्जायुक्ता भवन्ति ते ॥ ४५॥

स्वर्गे मर्त्ये च पाताले ये देवाः सिद्धिदायकाः ।
प्रशंसन्ति सदा देवि तं दृष्ट्वा साधकोत्तमम् ॥ ४६॥

विघ्नात्मकाश्च ये देवाः स्वर्गे मर्त्ये रसातले ।
प्रशंसन्ति सदा सर्वे तं दृष्ट्वा साधकोत्तमम् ॥ ४७॥

इति ते कथितं देवि मया सम्यक्प्रकीर्तितम् ।
भुक्तिमुक्तिकरं साक्षात्कल्पवृक्षस्वरूपकम् ॥ ४८॥

आसाद्याद्यगुरुं प्रसाद्य य इदं कल्पद्रुमालम्बनं
मोहेनापि मदेन चापि रहितो जाड्येन वा युज्यते ।
सिद्धोऽसौ भुवि सर्वदुःखविपदां पारं प्रयात्यन्तके
मित्रं तस्य नृपाश्च देवि विपदो नश्यन्ति तस्याशु च ॥ ४९॥

तद्गात्रं प्राप्य शस्त्राणि ब्रह्मास्त्रादीनि वै भुवि ।
तस्य गेहे स्थिरा लक्ष्मीर्वाणी वक्त्रे वसेद् ध्रुवम् ॥ ५०॥

इदं कवचमज्ञात्वा तारां यो भजते नरः ।
अल्पायुर्निर्द्धनो मूर्खो भवत्येव न संशयः ॥ ५१॥

लिखित्वा धारयेद्यस्तु कण्ठे वा मस्तके भुजे ।
तस्य सर्वार्थसिद्धिः स्याद्यद्यन्मनसि वर्तते ॥ ५२॥

गोरोचनाकुङ्कुमेन रक्तचन्दनकेन वा ।
यावकैर्वा महेशानि लिखेन्मन्त्रं समाहितः ॥ ५३॥

अष्टम्यां मङ्गलदिने चतुर्द्दश्यामथापि वा ।
सन्ध्यायां देवदेवेशि लिखेद्यन्त्रं समाहितः ॥ ५४॥

मघायां श्रवणे वापि रेवत्यां वा विशेषतः ।
सिंहराशौ गते चन्द्रे कर्कटस्थे दिवाकरे ॥ ५५॥

मीनराशौ गुरौ याते वृश्चिकस्थे शनैश्चरे ।
लिखित्वा धारयेद्यस्तु उत्तराभिमुखो भवेत् ॥ ५६॥

श्मशाने प्रान्तरे वापि शून्यागारे विशेषतः ।
निशायां वा लिखेन्मन्त्रं तस्य सिद्धिरचञ्चला ॥ ५७॥

भूर्जपत्रे लिखेन्मन्त्रं गुरुणा च महेश्वरि ।
ध्यानधारणयोगेन धारयेद्यस्तु भक्तितः ॥ ५८॥

अचिरात्तस्य सिद्धिः स्यान्नात्र कार्या विचारणा ॥ ५९॥

॥ इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे उग्रताराकवचं सम्पूर्णम् ॥
ॐ रां रामाय नमः
श्री राम ज्योतिष सदन 
पंडित आशु बहुगुणा 
आपकी जो भी समस्या है। उस समस्या का समाधान।
मैं केवल आपकी जन्मकुंडली देख कर ही आपकी समस्याओं का समाधान कर सकता हूं। यह मेरा व्हाट्सएप नंबर भी है।
मोबाइल नं-9760924411
मुजफ्फरनगर UP

दशमहाविद्यास्तोत्रम्

दशमहाविद्यास्तोत्रम् 

श्रीपार्वत्युवाच -

नमस्तुभ्यं महादेव! विश्वनाथ ! जगद्गुरो ! ।
श्रुतं ज्ञानं महादेव ! नानातन्त्र तवाननत् ॥

इदानीं ज्ञानं महादेव ! गुह्यस्तोत्रं वद प्रभो ! ।
कवचं ब्रूहि मे नाथ ! मन्त्रचैतन्यकारणम् ॥

मन्त्रसिद्धिकरं गुह्याद्गुह्यं मोक्षैधायकम् ।
श्रुत्वा मोक्षमवाप्नोति ज्ञात्वा विद्यां महेश्वर ! ॥

श्री शिव उवाच -
दुर्लभं तारिणीमार्गं दुर्लभं तारिणीपदम् ।
मन्त्रार्थं मन्त्रचैतन्यं दुर्लभं शवसाधनम् ॥

श्मशानसाधनं योनिसाधनं ब्रह्मसाधनम् ।
क्रियासाधनकं भक्तिसाधनं मुक्तिसाधनम् ॥

तव प्रसादाद्देवेशि! सर्वाः सिद्ध्यन्ति सिद्धयः ।

ॐ नमस्ते चण्डिके चण्डि चण्डमुण्डविनाशिनि ।
नमस्ते कालिके कालमहाभयविनाशिनि ॥ १॥

शिवे रक्ष जगद्धात्रि प्रसीद हरवल्लभे ।
प्रणमामि जगद्धात्रीं जगत्पालनकारिणीम् ॥ २॥

जगत् क्षोभकरीं विद्यां जगत्सृष्टिविधायिनीम् ।
करालां विकटां घोरां मुण्डमालाविभूषिताम् ॥ ३॥

हरार्चितां हराराध्यां नमामि हरवल्लभाम् ।
गौरीं गुरुप्रियां गौरवर्णालङ्कारभूषिताम् ॥ ४॥

हरिप्रियां महामायां नमामि ब्रह्मपूजिताम् ।
सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्धविद्याधरङ्गणैर्युताम् ॥ ५॥

मन्त्रसिद्धिप्रदां योनिसिद्धिदां लिङ्गशोभिताम् ।
प्रणमामि महामायां दुर्गां दुर्गतिनाशिनीम् ॥ ६॥

उग्रामुग्रमयीमुग्रतारामुग्रगणैर्युताम् ।
नीलां नीलघनश्यामां नमामि नीलसुन्दरीम् ॥ ७॥

श्यामाङ्गीं श्यामघटितां श्यामवर्णविभूषिताम् ।
प्रणमामि जगद्धात्रीं गौरीं सर्वार्थसाधिनीम् ॥ ८॥

विश्वेश्वरीं महाघोरां विकटां घोरनादिनीम् ।
आद्यामाद्यगुरोराद्यामाद्यनाथप्रपूजिताम् ॥ ९॥

श्रीं दुर्गां धनदामन्नपूर्णां पद्मां सुरेश्वरीम् ।
प्रणमामि जगद्धात्रीं चन्द्रशेखरवल्लभाम् ॥ १०॥

त्रिपुरां सुन्दरीं बालामबलागणभूषिताम् ।
शिवदूतीं शिवाराध्यां शिवध्येयां सनातनीम् ॥ ११॥

सुन्दरीं तारिणीं सर्वशिवागणविभूषिताम् ।
नारायणीं विष्णुपूज्यां ब्रह्मविष्णुहरप्रियाम् ॥ १२॥

सर्वसिद्धिप्रदां नित्यामनित्यां गुणवर्जिताम् ।
सगुणां निर्गुणां ध्येयामर्चितां सर्वसिद्धिदाम् ॥ १३॥

विद्यां सिद्धिप्रदां विद्यां महाविद्यां महेश्वरीम् ।
महेशभक्तां माहेशीं महाकालप्रपूजिताम् ॥ १४॥

प्रणमामि जगद्धात्रीं शुम्भासुरविमर्दिनीम् ।
रक्तप्रियां रक्तवर्णां रक्तबीजविमर्दिनीम् ॥ १५॥

भैरवीं भुवनां देवीं लोलजिह्वां सुरेश्वरीम् ।
चतुर्भुजां दशभुजामष्टादशभुजां शुभाम् ॥ १६॥

त्रिपुरेशीं विश्वनाथप्रियां विश्वेश्वरीं शिवाम् ।
अट्टहासामट्टहासप्रियां धूम्रविनाशिनीम् ॥ १७॥

कमलां छिन्नभालाञ्च मातङ्गीं सुरसुन्दरीम् ।
षोडशीं विजयां भीमां धूमाञ्च वगलामुखीम् ॥ १८॥

सर्वसिद्धिप्रदां सर्वविद्यामन्त्रविशोधिनीम् ।
प्रणमामि जगत्तारां साराञ्च मन्त्रसिद्धये ॥ १९॥

इत्येवञ्च वरारोहे स्तोत्रं सिद्धिकरं परम् ।
पठित्वा मोक्षमाप्नोति सत्यं वै गिरिनन्दिनि ॥ २०॥

कुजवारे चतुर्दश्याममायां जीववासरे ।
शुक्रे निशिगते स्तोत्रं पठित्वा मोक्षमाप्नुयात् ॥

त्रिपक्षे मन्त्रसिद्धि स्यात्स्तोत्रपाठाद्धि शंकरि ।
चतुर्दश्यां निशाभागे निशि भौमेऽष्टमीदिने ॥

निशामुखे पठेत्स्तोत्रं मन्त्र सिद्धिमवाप्नुयात् ।
केवलं स्तोत्रपाठाद्धि तन्त्रसिद्धिरनुत्तमा ।
जागर्ति सततं चण्डी स्तवपाठाद्भुजङ्गिनी ॥

इति मुण्डमालातन्त्रोक्त पञ्चदशपटलान्तर्गतं
                      दशमहाविद्यास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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नवग्रहों को शांत करने के लिए श्री नवग्रह शक्‍ति यंत्र चौकी अत्‍यंत प्रभावकारी है।


नवग्रहों को शांत करने के लिए श्री नवग्रह शक्‍ति यंत्र चौकी अत्‍यंत प्रभावकारी है। जीवन पर सौरमंडल के नौ ग्रहों का अनुकूल-प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

श्री नवग्रह शक्‍ति यंत्र चौकी नवग्रहों को प्रतिबिंबित करता है। इस यंत्र की पूजा से मनुष्‍य को जीवन के हर पड़ाव और पहलू पर सफलता मिलती है।

इस यंत्र से सभी ग्रह शांत रहते हैं और आपके जीवन में सुख-समृ‍द्धि प्रदान करते हैं। श्री नवग्रह शक्‍ति यंत्र चौकी नवग्रहों के अशुभ प्रभाव को कम करता है।

श्री नवग्रह शक्‍ति यंत्र चौकी के लाभ
श्री नवग्रह शक्‍ति यंत्र चौकी के पूजन से नवग्रहों का अशुभ प्रभाव कम होता है और आपको ग्रहों के शुभ प्रभाव मिलने लगते हैं। 
जिस व्‍यक्‍ति की कुंडली में कोई भी ग्रह अशुभ या नीच स्‍थान में बैठा हो तो श्री नवग्रह शक्‍ति यंत्र चौकी की स्‍थापना और पूजन अवश्‍य करना चाहिए। इस यंत्र के पूजन से आपके जीवन की सभी समस्‍याएं दूर होती हैं।
किसी भी ग्रह के प्रकोप से पीडित हैं तो आपको श्री नवग्रह शक्‍ति यंत्र चौकी की पूजा करनी चाहिए।
इस यंत्र की सहायता से जीवन में शांति, सुख और पॉजिटीविटी आती है।
कैसे करें पूजा
अपने घर के पूजन स्‍थल पर पूर्व दिशा में इस चौकी को स्‍थापित करें। इसके आगे धूप और दीप जलाएं।

अपने ईष्‍ट देव की आराधना करें और नवग्रहों से आप और आपके परिवार के ऊपर कृपा बरसाने की प्रार्थना करें। गंगाजल छिड़क कर घी का दीया जलाएं।
ॐ रां रामाय नमः
श्री राम ज्योतिष सदन 
पंडित आशु बहुगुणा 
अपनी समस्याओं के समाधान हेतु संपर्क करें। 
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अगर शत्रु पीछे पड़ा हो यह उपाय करे।

अगर शत्रु पीछे पड़ा हो, किसी को बिना किसी कारण से परेशान कर रहा हो तो हनुमान जी की शरण में जाएँ । नित्य हनुमान जी को गुड़ या बूंदी का भोग लगाएं, हनुमान जी को लाल गुलाब चढ़ाकर हनुमान चालीसा , बजरंग बाण का पाठ करें और प्रतिदिन कच्ची धानी के तेल के दीपक में लौंग डालकर हनुमान जी की आरती करें , और अपने उनसे शत्रु को नष्ट करने / परास्त करने की प्रार्थना करें। अपनी कमीज़ की सामने वाली जेब में लाल रंग की छोटी हनुमान चालीसा रखें ,इससे संकटमोचन की कृपा से सभी तरह के अनिष्ट दूर होते है, मनोबल बढ़ता है, जातक निर्भय हो जाता है, नए और शक्तिशाली मित्र बनते है। शत्रु कुछ भी नहीं बिगाड़ पाता है और शांत हो जाता है।
ॐ रां रामाय नमः
श्री राम ज्योतिष सदन 
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आपकी जो भी समस्या है। उस समस्या का समाधान।
मैं केवल आपकी जन्मकुंडली देख कर ही आपकी समस्याओं का समाधान कर सकता हूं।
यह फ्री सेवा नही है। यह मेरा व्हाट्सएप नंबर भी है।
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रुका फंसा हुआ धन वापस पाने के उपाए।

रुका फंसा हुआ धन वापस पाने के उपाए

1. किसी बुधवार के दिन, हो सके तो कृष्ण पक्ष के किसी बुधवार या बुधवार को पड़ने वाली अमावस्या पर शाम के समय मीठे तेल की पाँच पूड़ियाँ बना लें। सबसे ऊपर की पूड़ी पर रोली से एक स्वास्तिक का चिन्ह बनायें और उसपर गेहूं के आटे का एक दिया सरसों का तेल डाल कर रख लें। दिया जलाएं और फिर उसपर भी रोली से तिलक करें। पीले या लाल रंग का एक पुष्प अर्पित करें। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान भगवान श्री गणेश से उस व्यक्ति से अपना धन वापस दिलाने की प्रार्थना करते रहें। फिर बाएं हाथ में सरसों और उड़द के कुछ दाने लेकर निम्न मंत्र का जप करते जाएँ और पूड़ी तथा दिए पर छोड़ते जाएँ । ये मन्त्र 21 बार जपना है
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं ह्रैं ह्रूं ह्रः हेराम्बाय नमो नमः। मम धनं प्रतिगृहं कुरु कुरु स्वाहा। 
तत्पश्चात इस सामग्री को लेजाकर उस व्यक्ति के घर के पास यानि मुख्य द्वार के सामने या ऐसे स्थान पर रख दें जहाँ से उसका मुख्यद्वार या घर नज़र आता हो। मुख्यद्वार के सामने रखने का अर्थ ये है के सड़क के दूसरी ओर यदि वहां भी कोई घर हो और रखने का मौका न मिले तो एक निश्चित दुरी पर रख दें जहाँ से कम से कम उसका घर नज़र आता हो।ॐ रां रामाय नमः
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धनवान बनने के लिए सबसे अधिक आवश्यक है ।

धनवान बनने के लिए सबसे अधिक आवश्यक है कि धन की देवी यानी महालक्ष्मी आप पर प्रसन्न हो। क्योंकि जब तक महालक्ष्मी प्रसन्न नहीं होगी आप धनवान नहीं बन सकते। यदि आप महालक्ष्मी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो नीचे लिखे श्री महालक्ष्मी बीज मंत्र का विधि-विधान से जप करें। इस मंत्र का जप करने से महालक्ष्मी प्रसन्न होगी और साधक की धन-संपत्ति आदि सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाएंगी। मंत्र इस प्रकार है---
बीज मंत्र
ऊँ श्रीं महालक्ष्म्यै नम:
जप विधि :--
- शुक्रवार के दिन सुबह जल्दी उठकर नहाकर व साफ वस्त्र पहनकर सबसे पहले मां महालक्ष्मी की पूजा करें।
- मां महालक्ष्मी को कमल का फूल, चंदन, केसर, पीला वस्त्र, इत्र व मिठाई अर्पित करें।
- इसके बाद एकांत में कुश के आसन पर बैठकर कमल गट्टे की माला से इस मंत्र का जप 11 बार करें।
- अब प्रति शुक्रवार इस मंत्र की 11 माला जप करने से अति शीघ्र आपकी समस्या का समाधान हो जाएगा।

कभी-कभी उधार में बहुत-सा पैसा फंस जाता है।

कभी-कभी उधार में बहुत-सा पैसा फंस जाता है। ऐसी स्थिति में यह प्रयोग करे
किसी भी शुक्ल पक्ष की अष्टमी को रुई धुनने वाले से थोड़ी साफ रुई खरीदकर ले आएँ। उसकी चार बत्तियाँ बना लें। बत्तियों को जावित्री, नागकेसर तथा काले तिल (तीनों अल्प मात्रा में) थोड़ा-सा गीला करके सान लें। यह चारों बत्तियाँ किसी चौमुखे दिए में रख लें। रात्रि को सुविधानुसार किसी भी समय दिए में तिल का तेल डालकर चौराहे पर चुपके से रखकर जला दें। अपनी मध्यमा अंगुली का साफ पिन से एक बूँद खून निकाल कर दिए पर टपका दें। मन में सम्बन्धित व्यक्ति या व्यक्तियों के नाम, जिनसे कार्य है, तीन बार पुकारें। मन में विश्वास जमाएं कि परिश्रम से अर्जित आपकी धनराशि आपको अवश्य ही मिलेगी। इसके बाद बिना पीछे मुड़े चुपचाप घर लौट आएँ। अगले दिन सर्वप्रथम एक रोटी पर गुड़ रखकर गाय को खिला दें। यदि गाय न मिल सके तो उसके नाम से निकालकर घर की छत पर रख दें।

।। नवार्ण तांत्रिक महामंत्र ।।

।।  नवार्ण तांत्रिक महामंत्र  ।।
ओम ऐं ह्रीं क्लीं महादुर्गे नवाक्षरी नवदुर्गे नवात्मिके नवचन्डी महामाये महायोगनिंद्न्जये मधूकैटभ विद्राविणी महिषासुरमर्दिनी धूम्रल़ोचन संहंत्री चंड मुंड विनाशिनी रक्तबीजान्तके निशुम्भध्वंशिनी शुम्भ दर्पघ्नी देवी अष्टादशबाहुके  कपाल खट्वांग शूल खडग खेटकधारिणी छिन्नमस्तकधारिणी रूधिरमांसभोजिनी समस्त भूतप्रेतादियोगध्वंसिनी ब्रम्हा इन्दा्दिक स्तुते देवी माम रक्ष रक्ष मम शत्रून नाशय नाशय ह्रीं फट् हूं फट्।
ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुन्डायै विच्चे नमः

इस मंत्र का सिर्फ नित्य एक 108 बार जप करना चाहिये।
समस्त प्रकार की अभिलाषा को पूर्ण करता है।
अधिक जानकारी के लिए आप संपर्क कर सकते है।
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आपकी जो भी समस्या है। उस समस्या का समाधान।
मैं केवल आपकी जन्मकुंडली देख कर ही आपकी समस्याओं का समाधान कर सकता हूं। यह मेरा व्हाट्सएप नंबर भी है।
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मुजफ्फरनगर UP

https://youtu.be/XfpY7YI9CHc

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