Saturday 17 August 2019

शाबर बजरंग मंत्र कैंची प्रयोग



बजरंग की कैंची

“फजले बिस्मिल्ला रहमान, अटल खुरजी तेज खुरान । घड़ी-घड़ी में निकलै बान । लालो लाल कमान, राखवाले की जबान । खाक माता खाक पिता । त्रिलोकी की मिसैली । राजा – प्रजा पड़ैमोहिनी । जल देखै, थल कतरै । राजा इन्द्र की आसन कतरै । तलवार की धार कतरै । आकाश पाताल, वायु – मण्डल को कतरै । तेंतीस कोटि देवी- देवताओं को कतरै । शिव – शंकर को कतरै । भीमसेन की गदा कतरै । अर्जुन को बाण कतरै । कृष्ण को सुदर्शन कतरै । सोला हंसा को कतरै । पेट में के बावरे को कतरै । दौलतपुर के डोमा को कतरै । ब्राह्मण के ब्रहम-राक्षस को कतरै । धोबी के जिन को कतरै ।भंगी के जिन को कतरै । रमाने के जिन को कतरै । मसान के जिन को कतरै । मेरे नरसिंह से कतरै । गुरु के नरसिंह से कतरै । बौलातन चुड़ैल को कतरै । जहाँ खुरी नौ खण्ड, बारह बंगाले की विद्या जा पहुँचे । अञ्जनी के पूत हनुमान ! तोहे एक लाख अस्सी हजार पीर-पैगम्बरों की दुहाई, दुहाई, दुहाई ।”
यह भी एक चमत्कारी प्रयोग है जिससे मुसलमानी और तंत्र दोनों को आसानी से काट सकते हैं इसमें कोई खतरा नहींहै करना 21 दिन हैं अगर आप खुद नहीं कर सकते तो किसी योग्य पंडित से करा सकते हैं 

विधिः- हनुमान जी का पूजन कर नित्य १०८ बार जप करें । २१ दिन जप किया जाए । २१वें दिन हनुमान् जी को सिन्दूर, लंगोट, सवा सेर का रोट, नारियल अर्पित करे ।
लाभः- इस विद्या से अभिमन्त्रित नींबू जहाँ लटका दिया जाएगा, वहाँ किसी भी प्रकार काअभिचार, भूत-प्रेतादि नहीं ठहर सकते । दूकान में लटकाने से धन्धा अच्छा चलेगा । भूत-प्रेत लगे व्यक्ति को ३, ५ या ७ बार अभिमन्त्रित जल छिड़कने से व्यक्ति के नाम से मन्त्र पढ़कर लवंग अभिमन्त्रित कर उसे खिला दें, तो उसकी विद्या नष्ट हो जाती है।
मोबाइल नं है।-9760924411

ब्रह्मास्त्र महाविद्या श्रीबगला स्तोत्र

ब्रह्मास्त्र महा विद्या श्रीबगला स्तोत्र

विनियोगः- ॐ अस्य श्रीब्रह्मास्त्र-महा-विद्या-श्रीबगला-मुखी स्तोत्रस्य श्रीनारद ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्री बगला-मुखी देवता, ‘ह्ल्रीं’ बीजं, ‘स्वाहा’ शक्तिः, ‘बगला-मुखि’ कीलकं, मम सन्निहिता-नामसन्निहितानां विरोधिनां दुष्टानां वाङ्मुख-गतीनां स्तम्भनार्थं श्रीमहा-माया-बगला मुखी-वर-प्रसाद सिद्धयर्थं पाठे विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यासः- श्रीनारद ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे, श्री बगला-मुखी देवतायै नमः हृदि, ‘ह्ल्रीं’ बीजाय नमः गुह्ये, ‘स्वाहा’ शक्त्यै नमः नाभौ, ‘बगला-मुखि’ कीलकाय नमः पादयोः, मम सन्निहिता-नामसन्निहितानां विरोधिनां दुष्टानां वाङ्मुख-गतीनां स्तम्भनार्थं श्रीमहा-माया-बगला मुखी-वर-प्रसाद सिद्धयर्थं पाठे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
षडङ्ग-न्यास कर-न्यास अंग-न्यास
ह्ल्रां ॐ ह्ल्रीं अंगुष्ठाभ्यां नमः हृदयाय नमः
ह्ल्रीं बगलामुखि तर्जनीभ्यां नमः शिरसे स्वाहा
ह्ल्रूं सर्व-दुष्टानां मध्यमाभ्यां नमः शिखायै वषट्
ह्ल्रैं वाचं मुखं पदं स्तम्भय अनामिकाभ्यां नमः कवचाय हुं
ह्ल्रौं जिह्वां कीलय कनिष्ठिकाभ्यां नमः नेत्र-त्रयाय वौषट्
ह्ल्रः बुद्धिं विनाशय ह्ल्रीं ॐ स्वाहा करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः अस्त्राय फट्

ध्यानः- हाथ में पीले फूल, पीले अक्षत और जल लेकर ‘ध्यान’ करे -
मध्ये सुधाब्धि-मणि-मण्डप-रत्न-वेद्याम्,
सिंहासनोपरि-गतां परिपीत-वर्णाम् ।
पीताम्बराभरण-माल्य-विभूषितांगीम्,
देवीं नमामि धृत-मुद्-गर-वैरि-जिह्वाम् ।। १
अर्थात् अमृत का सागर । बीच में मणि-मण्डप की रत्न-वेदी । उस पर सिंहासन । उस पर पीले रंग की देवी ‘बगला’ आसीन हैं । उनके वस्त्र, आभूषण तथा पुष्प-माला- सब कुछ पीले रंग के ही हैं । बाँएँ हाथ में शत्रु की जीभ खींचकर, दाहिने हाथ से मुद्-गर लेकर, उस पर प्रहार करने जा रही है । उन्हीं माँ बगला को मेरा प्रणाम ।। १
जिह्वाग्रमादाय करेण देवीम्,
वामेन शत्रून् परि-पीडयन्तीम् ।
गदाऽभिघातेन च दक्षिणेन,
पीताम्बराढ्यां द्वि-भुजां नमामि ।। २
अर्थात् बाँएँ हाथ में शत्रु की जीभ को खींचकर, दाहिने हाथ में गदा लेकर प्रहार करती हुई, पीताम्बरा द्वि-भुजा बगला को मेरा प्रणाम ।।

तंत्र मे इन्द्रजाल का प्रयोग


इन्द्रजाल तंत्र
1. इन्द्रजाल को ताबीज़ में यत्न से भरकर बच्चों के गले में धारण करवा दें, बुरी नज़र से बच्चे की सदैव रक्षा होगी।
2. पढ़ाई करने वाले बच्चे बुकमार्क की तरह इसका उपयोग अपनी पुस्तकों में करें, उनकी पढ़ाई के
प्रति रूचि बढ़ने लगें।
3. गर्भवती महिला को यदि एक काले कपड़े में बन्द करके इन्द्रजाल धारण करवा दिया जाए तो यह सुरक्षित गर्भ के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगा।
4. मंगलवार के दिन माँ दूर्गा का ध्यान करके इन्द्रजाल को पीसकर पाउडर बना लें। यदि शत्रु के ऊपर किसी तरह अथवा उसके भवन में यह पाउडर छिड़क दिया जाएगा तो उसके शत्रुवत व्यवहार में आशातीत परिवर्तन होने लगेगा।
5. संतान सुख की इच्छा रखने वाले पती-पत्नी इन्द्रजाल को ताबीज़ की तरह धारण करके नित्य कम से कम तीन माला मंत्र, "ॐकृष्णाय दामोदराय धीमहि तन्नो विष्णु प्रयोदयात्" की जप किया करें।
6. भवन के वास्तु जनित कैसे भी दोष के लिए, बद्नज़र तथा दुष्टआत्माओं से रक्षा के लिए इन्द्रजाल को स्थापित कर लें।
7. शुक्रवार के दिन शुभ मुहूर्त में एक इन्द्रजाल भवन में किसी ऐसे स्थान पर स्थापित कर लें जहाँ से आते-जाते वह दिखाई दिया करे। शुक्रवार को अपनी नित्य की पूजा में मंत्र "ॐ दुं दुर्गायै नमः" जप कर लिया करें, आपदा-विपदा से घर की सदैव रक्षा होगी।
इन्द्रजाल नाम से अधिकांशतः भ्रम होता है एक वृहत्त ग्रंथ का जो अनेकों प्रकाशकों द्वारा भिन्न-भिन्न रंग-रूप में प्रकाशित होता आ रहा है। यह ग्रंथ और कुछ नहीं मंत्र, यंत्र तथा तंत्राहि, टोने-टोटके, शाबर मंत्र, स्वरशास्त्र आदि गुह्य विषयों का खिचड़ी रूपी संग्रह है। परन्तु इन्द्रजाल वस्तुतः एक वनस्पति है। यह कुछ-कुछ मोर पंख झाड़ी के पत्ते से मिलती-जुलती है। यह परस्पर उलझी हुई एक जाली सी प्रतीत होती है। भूत-प्रेत, जादू-टोने,दुषआत्माओं के दुष्प्रभाव को दूर करने आदि में इसका व्यापक प्रयोग किया जाता है। यदि इसको सिद्ध कर लिया जाए तो वाणी के प्रभाव से अनेक कार्यों में सफलता प्राप्त करने तथा भविष्य की घटनाओं की भविष्य वाणी करने की दिव्य शक्ति तक इसके प्रयोग से प्राप्त की जा सकती है। इन्द्रजाल की एक पूरी टहनी अपने कार्य अथवा निवास स्थल पर लगा लेने से वहाँ कोई भी अदृष्ट दुष्प्रभाव हानि नहीं पहुँचा पाता।
एक प्रकार से इन्द्रजाल एक सुरक्षा कवच का कार्य करता है। इसको अच्छा प्रभाव प्राप्त करने के साथ-साथ यदि सुन्दरता से अलंकरण कर लिया जाए तो सजावट के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है। इसकी स्थापना के लिए शुभ दिन मंगल और शनिवार है। यदि यह मंगल और शनि की होरा में उपयोग की जाए तो और भी शुभत्व का प्रतीक सिद्ध हो सकती है।

ताबीज से लाभ


ताबीज़ से  लाभ ले।


१-वशीकरण –
जो भी व्यक्ति शूकर-दंत की सिद्ध ताबीज अपने गले में धारण करता है वह किसी को भी अपने वश में कर सकता है पर इसका उपयोग आप किसी व्यक्ति के अनहित के लिए नहीं कर सकते।
२- कोर्ट कचहरी –
यदि आपका कोई मुकदमा फंसा हो और आपको कोई परिणाम नहीं मिल रहा हो जिस कारण आप काफी परेशान होते हो तो आपको इस ताबीज से निश्चित लाभ होगा और आपकी विजय होगी।
३-रोग निदान-
यदि आप किसी रोग से ग्रसित हो और आपको किसी डॉक्टर हकीम यह किसी भी प्रकार की दवाओं से आराम नहीं मिल रहा हो तो आप यह ताबीज धारण करें आप के सभी रोग नष्ट हो जाएंगे और आप को कभी स्वप्नदोष नहीं होगा एवं आप एक स्वस्थ सुंदर शरीर के मालिक हो जाएंगे ।
४-शत्रु नाश –
शूकर-दंत की ताबीज़ धारण करने वाले व्यक्ति की सभी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं उसको किसी चीज की चिंता नहीं रहती एवं उसके सभी शत्रु स्वयं ही नष्ट हो जाएंगे और आपको कभी परेशान नहीं कर पाएंगे।
५-व्यापार –
आपका व्यापार यदि मंदा चल रहा हो उसमें वृद्धि ना हो रही हो पैसा फसा हो या कोई अन्य समस्या हो तो इस शूकर दंत ताबीज को धारण करने से सभी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं और व्यापार में वृद्धि दिखने लगती है । यदि आप ताबीज नहीं धारण कर पा रहे हैं तो शूकर-दंत को अपने व्यापार स्थल या कार्यस्थल के बाहर लगाने से भी लाभ होगा।
६- घृह क्लेश –
आपके घर में यदि आए दिन झगड़ा होता हो या शांति की कमी हो जिस कारण आप परेशान हो रहे हो एवं इसी कारण आपको घर में वृद्धि ना दिख रही हो तो मात्र इस ताबीज को धारण करने से घर में शांति सुख एवं धन की वर्षा होने लगती है ।
७- प्रेत बाधा –
यदि आपके घर में भूत-प्रेत का साया हो या आपके घर में कोई व्यक्ति किसी आत्मा द्वारा पीड़ित हो तो उसके लिए आपको सिद्ध शूकर-दंत लेकर उस व्यक्ति के पुराने कपड़े पर लपेटकर बहते हुए जल में प्रवाहित करना चाहिए जिससे आपके घर की सभी प्रेत बाधाएं समाप्त हो जाएंगी।
८- शिक्षा –
यदि आप किसी परीक्षा की तैयारी कर रहे हो और बार-बार आपको उसमें नाकामी ही मिल रही हो जिस कारण आपका मन विचलित होने लगा हो तो आप इस शूकर-दंत ताबीज को धारण करने से लाभ होगा आपका मन एकाग्र होगा एवं सफलता प्राप्त होगी।
९- प्रेम सबन्ध-
यदि आप किसी से प्रेम करते हैं और उससे विवाह करना चाहते हैं पर समस्याएं आ रही हो तो इस शूकर-दंत को मंत्रो द्वारा सिद्ध करके पहने ।

मंत्र आपका मित्र है।

मंत्र आपका मित्र है।

साथ गुरू मंत्र तुम एक दोस्त देता है. एक मित्र प्रकाश और निर्वाह के लिए सूर्य के चारों ओर घूमने पृथ्वी की तरह होना चाहिए. प्रकाश अंधकार dispels और लोगों को शांति मिल जाए. तुम भी दुनिया पर ले सकते हैं लेकिन आप अपने खुद के बच्चों से हार रहे हैं. यह इसलिए होता है क्योंकि आप दोस्त बन गए हैं अपने बच्चों को. और अधिक ध्यान में एकाग्रता से ज्यादा महत्वपूर्ण अपने खुद के आचरण का अवलोकन है, यह सच पूजा है. एक मंत्र एक या शब्दों के शब्द श्रृंखला है. कौन फर्म के उद्देश्य से एक आदमी हो जाता है. तुम तुम मंदिरों में जाने के लिए देवताओं के सामने भीख माँगती हूँ. वह उन्हें दे, क्योंकि तुम अपने आप को खो दिया है सकते हैं शक्ति नहीं माद्दा वरशिप?. शक्ति है कि आप एक के लिए एक अच्छा इंसान होना स्थिति में डालता है पूजा. आपके आचरण में संतुलित रहें. असंतुलन तुम्हारे लिए अच्छा है कि नहीं, यह आपके परिवार के लिए. तुम एक और एक ग्यारह हो जाते हैं, दो नहीं के बराबर होती है एक से अधिक एक चाहिए.

एक आध्यात्मिक आंदोलन संगठन और एक संगठन का संचालन करने के आकार का है. अच्छा समय और परिस्थितियों, सिद्धांतों क्या पालन करने के लिए और दूसरों के साथ सौदा कैसे सावधानी से विचार किया जाना चाहिए का मूल्यांकन. खुद वे गुमराह शास्त्रों करेगा के लिए अपने सिर के साथ भरने के लिए और तुम्हें एक बेकार जीवन जीने मत करो. एक हीन भावना का विकास करना.

हम मंदिरों और तीर्थ स्थानों पर ऐसा करने से हम अलग भगवान के द्वारा बनाई गई करने के लिए देवता की पूजा के रूप में आदमी ने कल्पना पुरुषों धक्का में, पर जाएँ. इस दुरुपयोग लेकिन कुछ भी नहीं है. पत्थर का चिह्न आप बस तय की. और 'निष्क्रिय. जिस दिन तुम्हें पता है कि आप देवता हैं और उस आइकन अपने मन की धारणा है, आप और चिह्न एक भी बात बन जाएगी. दिन तुम परमेश्वर की सच्चाई का एहसास होगा, आप के लिए चिह्न पूजा संघर्ष और तुम अपने आप को करीब लाने में सफल हो जाएगा. तुम एक स्थिति में जहाँ आप बुरी बातें करने के लिए प्रेरित किया जाएगा में होगा. तुम परमात्मा होना चाहता हूँ. अंदर आप देख सकते हैं और भगवान के संतों और महात्मा साथ चैट करेंगे. आप को भगवान के पास रहते हैं, जबकि आप अपने काम में व्यस्त हो सकेंगे. तो फिर पैसे और सामग्री की पूजा आवश्यक नहीं होगा.

जब से तुम अपने आप को अलग कर देना होगा, संतों और महात्मा चीजें है कि तुम कहना चाहिए बताओ कि तुम नहीं. वे तुम्हारा सबसे अच्छा प्रस्ताव नहीं लग रही है और करने की कोशिश करने के लिए आप का दोहन नहीं. जो लोग महलों और देशों में जो सामग्री अर्थ में ही कर रहे हैं का निर्माण करने के लिए, संतों और महात्मा नहीं कहना क्या किया जाना चाहिए. इन इमारतों को लूट लिया जाता है और अंततः इतिहास के कूड़ेदान में फेंक दिया. झोपड़ियों के रहने वालों को इस तरह से नष्ट नहीं कर रहे हैं. साधु हम जो झोपड़ियों में रहते हैं. हम स्मृति सदा भी जब हम मर चुका है और चले गए हैं. जो लोग हमें का पालन करें हमारे जीवन का रास्ता स्वेच्छा से नेतृत्व करेंगे. जब मैं जीविका का कोई साधन के बिना था मैं खाने के लिए भीख माँगती हूँ और एक झोपड़ी में रहते थे. मैं खुद के साथ अंतरंग महसूस करने के लिए और अन्य दृष्टिकोण नहीं सीखा. अरे हाँ, अगर दूसरों को भी एक साथ नहीं रखा है, उन्हें प्यार करती हूँ. और प्रेम में कोई नियम या सीमाओं को जानता है. भगवान के द्वारा बनाई गई पुरुषों की ओर हमारा रवैया निर्दोष होना चाहिए. हम, हमारे जीवन के हर पल में, बाहर चाहिए अकुलीन भावनाओं को ब्लॉक. हम के लिए सोचा और कार्रवाई की पवित्रता को विकसित करने, और खुद हमारे आचरण में प्रतिबिंबित की जरूरत है.

बच्चे बाहर हमारे सांसारिक वस्तुओं डाल सकते हैं, लेकिन हम उन पर सही नहीं डालना आचरण कर सकते हैं. यह कुछ है कि वे खुद को विकसित किया है. और इस के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी. वे भुगतना होगा. हम माल कि अच्छा असीम भक्ति, विश्वास, ज्ञान हैं ही, गुरु, हमारी संस्कृति और हमारे राष्ट्र की समृद्धि की सेवा. कम प्रवृत्ति है कि हम है के कारण, हम हमारी मदद करने में हम इन वस्तुओं में लाए देने में असमर्थ थे. इन एकत्रित हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है ।और 'हमारी विरासत. यदि हम अपने आप को दूसरों के लिए उपयोगी बनाने में असमर्थ रहे हैं, हमें कम से कम अपने आप के लिए उपयोगी हो. रहें सतर्क, देखो अगर तुम गलत दिशा में है या गलत कंपनियों ने भाग लिया अगर जा रहे हैं. यदि आप से परहेज किया है क्या आप अपने आप को एक एहसान किया है. पवित्रता यह है. मैं एक बार मेरे गुरू से पूछा क्या यह पवित्रता बनाया गया था. उन्होंने कहा कि यह किताबी ज्ञान की बात नहीं थी. पवित्रता अभ्यास ही है. किताबें अभ्यास करने के लिए स्वतंत्र हैं. व्यावहारिक बातें जीवन में होती हैं।

यह संभव है कि आप में से कुछ पसंद नहीं आया कि मैंने क्या कहा. सब कुछ है कि मैंने कहा कि मैं अपने गुरू से उधार लिया है. उसने मुझे दी सलाह है कि मैं अब समझ शुरू कर दिया. मुझे आशा है कि आप सुझाव मैंने तुम्हें दिया था या मैं तुम्हारी मदद नहीं कर सकते समझा है।

लक्ष्मी स्तोत्र

लक्ष्मी स्तोत्र
त्रैलोक्यपूजिते देवि कमले विष्णुवल्लभे। यथा त्वमचला कृष्णे तथा भव मयि स्थिरा।।
कमला चंचला लक्ष्मीश्चला भूतिर्हरिप्रिया। पद्मा पद्मालया सम्यगुच्चौ: श्री पद्मधारिणी।।
द्वादशैतानि नाममि लक्ष्मी संपूज्य य: पठेत्। स्थिरा लक्ष्मीर्भवेत्तस्य पुत्रदारादिभि: सह।।
इस मंत्र का केवल एक जप ही पर्याप्त होता है, दीपावली की रात्रि को यदि दक्षिणावर्ती शंख के सामने इस स्तोत्र का 101 बार जप कर दिया जाय तो उसकी मनोवांछित कामना अवश्य ही पूरी हो जाती है। इस शंख में जल भर कर स्तोत्र का मात्र 11 बार जप कर उस जल को घर में छि़डकने पर घर में शांति और समृद्धि प्राप्त होती है। यदि दक्षिणावर्ती शंख पर इस स्तोत्र का नित्य 21 बार जप तथा यह प्रयोग 11 दिन तक करें तो व्यापार में विशेष अनुकूता प्राप्त होती है तथा उसे मनोवांछित फल प्राप्त होता है। यदि पांच दिन तक नित्य शंख में जल भर कर इस स्तोत्र के 11 पाठ करके उस जल को दुकान के दरवाजे के आगे छि़डक दिया जाये तो उस दुकान की बिक्री बढ़ जाती है।
प्रयोग समाप्त पर शंख को तिजोरी में स्थापित कर देना चाहिए। इस प्रयोग को प्रत्येक गृहस्थ व्यक्ति को अपनाना चाहिए। दीपावली की रात्रि में लाल वस्त्र धारण कर लाल रंग के ऊनी आसन पर दक्षिण मुख होकर बैठें, सामने लाल वस्त्र पर तांबे के पात्र में तांत्रोक्त ढंग से चैतन्य की गई बिल्ली की नाल (जेर) को पूरी तरह से तेल मिश्रित सिंदूर में रख दें तथा मूंगे की माला से निमA मंत्र का ग्यारह माला मंत्र जप करें-
मंत्र -  ह्रीं ह्रीं क्लीं नानोपलक्ष्मी श्रीं पद्मावती आगच्छ आगच्छ नम:।।
उपरोक्त मंत्र अत्यन्त तीव्र एवं पूर्णत: तांत्रोक्त मंत्र है और इतना अधिक तीव्र है कि प्राय: साधक को सुबह होते-होते अपनी समस्या का हल मिल जाता है। साधक इस साधना में दृढ़ता पूर्वक और बिना किसी भय के साधना रत रह सकता है। मंत्र जप के उपरान्त रात्रि-शयन उसी स्थान पर करें और स्वपन में अपने आकस्मिक संकट का कोई न कोई उपाय प्राप्त होता ही है। सम्पूर्ण पूजन काल में तेल का दीपक जलता रहे और वह सुबह तक प्रज्वलित रहे, इस बात का ध्यान रखें बिल्ली की नाल को किसी पात्र में बंद करके रखना है। भविष्य में जब-जब आकस्मिक धन की तीव्र आवश्यकता आ पडे़ तब-तब प्रयोग को दोहरायें। सफलता अवश्य आपके हाथ लगेगी।

शत्रु नाशक पर विद्या छेदन मंत्र

यह स्तोत्र शत्रुनाश एव परविद्या छेदन करने वाला एवं रक्षा कार्य हेतु प्रभावी है ।

साधारण साधकों को कुछ समय आवेश व आर्थिक दबाव रहता है, अतः पूजा उपरान्त नमस्तस्यादि शांति स्तोत्र पढ़ने चाहिये ।

विनियोगः- ॐ अस्य श्रीपीताम्बरा बगलामुखी खड्गमाला मन्त्रस्य नारायण ऋषिः, त्रिष्टुप् छन्दः, बगलामुखी देवता, ह्लीं बीजं, स्वाहा शक्तिः, ॐ कीलकं, ममाभीष्टसिद्धयर्थे सर्वशत्रु-क्षयार्थे जपे विनियोगः ।
हृदयादि-न्यासः-नारायण ऋषये नमः शिरसि, त्रिष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, बगलामुखी देवतायै नमः हृदि, ह्लीं बीजाय नमः गुह्ये, स्वाहा शक्तये नमः पादयो, ॐ कीलकाय नमः नाभौ, ममाभीष्टसिद्धयर्थे सर्वशत्रु-क्षयार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
षडङ्ग-न्यास - कर-न्यास – अंग-न्यास -
ॐ ह्लीं अंगुष्ठाभ्यां नमः हृदयाय नमः
बगलामुखी तर्जनीभ्यां नमः शिरसे स्वाहा
सर्वदुष्टानां मध्यमाभ्यां नमः शिखायै वषट्
वाचं मुखं पद स्तम्भय अनामिकाभ्यां नमः कवचाय हुम्
जिह्वां कीलय कनिष्ठिकाभ्यां नमः नेत्र-त्रयाय वौषट्
बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः अस्त्राय फट्

ध्यानः-
हाथ में पीले फूल, पीले अक्षत और जल लेकर ‘ध्यान’ करे -

मध्ये सुधाब्धि-मणि-मण्डप-रत्न-वेद्यां, सिंहासनोपरि-गतां परि-पीत-वर्णाम् ।
पीताम्बराभरण-माल्य-विभूषितांगीं, देवीं स्मरामि धृत-मुद्-गर-वैरि-जिह्वाम् ।।
जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं, वामेन शत्रून् परि-पीडयन्तीम् ।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन, पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि ।।

मानस-पूजनः- इस प्रकार ध्यान करके भगवती पीताम्बरा बगलामुखी का मानस पूजन करें -
ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (अधोमुख-कनिष्ठांगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (अधोमुख-तर्जनी-अंगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (ऊर्ध्व-मुख-तर्जनी-अंगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ रं वह्नयात्मकं दीपं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि । (ऊर्ध्व-मुख-मध्यमा-अंगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ वं जल-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (ऊर्ध्व-मुख-अनामिका-अंगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ शं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (ऊर्ध्व-मुख-सर्वांगुलि-मुद्रा) ।

खड्ग-माला-मन्त्रः-
ॐ ह्लीं सर्वनिन्दकानां सर्वदुष्टानां वाचं मुखं स्तम्भय-स्तम्भय बुद्धिं विनाशय-विनाशय अपरबुद्धिं कुरु-कुरु अपस्मारं कुरु-कुरु आत्मविरोधिनां शिरो ललाट मुख नेत्र कर्ण नासिका दन्तोष्ठ जिह्वा तालु-कण्ठ बाहूदर कुक्षि नाभि पार्श्वद्वय गुह्य गुदाण्ड त्रिक जानुपाद सर्वांगेषु पादादिकेश-पर्यन्तं केशादिपाद-पर्यन्तं स्तम्भय-स्तम्भय मारय-मारय परमन्त्र-परयन्त्र-परतन्त्राणि छेदय-छेदय आत्म-मन्त्र-यन्त्र-तन्त्राणि रक्ष-रक्ष, सर्व-ग्रहान् निवारय-निवारय सर्वम् अविधिं विनाशय-विनाशय दुःखं हन-हन दारिद्रयं निवारय निवारय, सर्व-मन्त्र-स्वरुपिणि सर्व-शल्य-योग-स्वरुपिणि दुष्ट-ग्रह-चण्ड-ग्रह भूतग्रहाऽऽकाशग्रह चौर-ग्रह पाषाण-ग्रह चाण्डाल-ग्रह यक्ष-गन्धर्व-किंनर-ग्रह ब्रह्म-राक्षस-ग्रह भूत-प्रेतपिशाचादीनां शाकिनी डाकिनी ग्रहाणां पूर्वदिशं बन्धय-बन्धय, वाराहि बगलामुखी मां रक्ष-रक्ष दक्षिणदिशं बन्धय-बन्धय, किरातवाराहि मां रक्ष-रक्ष पश्चिमदिशं बन्धय-बन्धय, स्वप्नवाराहि मां रक्ष-रक्ष उत्तरदिशं बन्धय-बन्धय, धूम्रवाराहि मां रक्ष-रक्ष सर्वदिशो बन्धय-बन्धय, कुक्कुटवाराहि मां रक्ष-रक्ष अधरदिशं बन्धय-बन्धय, परमेश्वरि मां रक्ष-रक्ष सर्वरोगान् विनाशय-विनाशय, सर्व-शत्रु-पलायनाय सर्व-शत्रु-कुलं मूलतो नाशय-नाशय, शत्रूणां राज्यवश्यं स्त्रीवश्यं जनवश्यं दह-दह पच-पच सकल-लोक-स्तम्भिनि शत्रून् स्तम्भय-स्तम्भय स्तम्भनमोहनाऽऽकर्षणाय सर्व-रिपूणाम् उच्चाटनं कुरु-कुरु ॐ ह्लीं क्लीं ऐं वाक्-प्रदानाय क्लीं जगत्त्रयवशीकरणाय सौः सर्वमनः क्षोभणाय श्रीं महा-सम्पत्-प्रदानाय ग्लौं सकल-भूमण्डलाधिपत्य-प्रदानाय दां चिरंजीवने । ह्रां ह्रीं ह्रूं क्लां क्लीं क्लूं सौः ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय राजस्तम्भिनि क्रों क्रों छ्रीं छ्रीं सर्वजन संमोहिनि सभास्तंभिनि स्त्रां स्त्रीं सर्व-मुख-रञ्जिनि मुखं बन्धय-बन्धय ज्वल-ज्वल हंस-हंस राजहंस प्रतिलोम इहलोक परलोक परद्वार राजद्वार क्लीं क्लूं घ्रीं रुं क्रों क्लीं खाणि खाणि , जिह्वां बन्धयामि सकलजन सर्वेन्द्रियाणि बन्धयामि नागाश्व मृग सर्प विहंगम वृश्चिकादि विषं निर्विषं कुरु-कुरु शैलकानन महीं मर्दय मर्दय शत्रूनोत्पाटयोत्पाटय पात्रं पूरय-पूरय महोग्रभूतजातं बन्धयामि बन्धयामि अतीतानागतं सत्यं कथय-कथय लक्ष्मीं प्रददामि-प्रददामि त्वम् इह आगच्छ आगच्छ अत्रैव निवासं कुरु-कुरु ॐ ह्लीं बगले परमेश्वरि हुं फट् स्वाहा ।

विशेषः- मूलमन्त्रवता कुर्याद् विद्यां न दर्शयेत् क्वचित् ।
विपत्तौ स्वप्नकाले च विद्यां स्तम्भिनीं दर्शयेत् ।
गोपनीयं गोपनीयं गोपनीयं प्रयत्नतः ।
प्रकाशनात् सिद्धहानिः स्याद् वश्यं मरणं भवेत् ।
दद्यात् शानताय सत्याय कौलाचारपरायणः ।
दुर्गाभक्ताय शैवाय मृत्युञ्जयरताय च ।
तस्मै दद्याद् इमं खड्गं स शिवो नात्र संशयः ।
अशाक्ताय च नो दद्याद् दीक्षाहीनाय वै तथा ।
न दर्शयेद् इमं खड्गम् इत्याज्ञा शंकरस्य च ।।
।। श्रीविष्णुयामले बगलाखड्गमालामन्त्रः ।।

आपदाउद्धारक बटुक भैरव यंत्र


आपदा उद्धारक बटुक भैरव यंत्र
किसी भी शुभ कार्य में, चाहे वह यज्ञ हो, विव्वः हो, शाक्त साधना हो, तंत्र साधना हो, गृह प्रवेश अथवा कोई मांगलिक कार्य हो, भैरव की स्थापना एवं पूजा अवश्य ही की जाती है, क्योंकि भैरव ऐसे समर्थ रक्षक देव है, जो कि सब प्रकार के विघ्नों को, बाधाओं को रोक सकते हैं, और कार्य सफलतापूर्वक पूर्ण हो जाता है| आपदा उद्वारक बटुक भैरव यंत्र स्थापित करने के निम्न लाभ हैं -
- व्यक्ति को मुकदमें में विजय प्राप्त होती है|
- समाज में उसके मां-सम्मान और पौरुष में वृद्धि होती है|
- किसी भी प्रकार की राज्य बाधा, जैसे प्रमोशन अथवा ट्रांसफर में आ रही बाधाओं से निवृत्ति प्राप्त होती है|
- आपके शत्रु द्वारा कराया गया तंत्र प्रयोग समाप्त हो जाता है|
यदि आपके जीवन में उपरोक्त प्रकार की बाधाएं लगातार आ रही हों, और आप कई प्रकार के उपाय कर चुके है, इसके बावजूद भी आपकी आपदा समाप्त नहीं हो रही है, तो आपको आपदा उद्वारक बटुक भैरव यंत्र अवश्य ही स्थापित करना चाहिए| इस यंत्र को स्थापित कर बताई गई लघु विधि द्वारा पुजन करने मात्र से ही आपकी आपदाएं स्वतः ही समाप्त हो जाती हैं| इस यंत्र के लिए किसी विशेष पूजन क्रम की आवश्यकता नहीं है क्योंकि इसे अमृत योग, शुभ मुहूर्त में सदगुरुदेव द्वारा बताई गई विशेष विधि द्वारा प्राण-प्रतिष्ठित किया गया है|
स्थापन विधि - बटुक भैरव यंत्र को किसी भी षष्ठी अथवा बुधवार को रात्रि में काले तिल की ढेरी पर स्थापित कर कुंकुम, अक्षत, धुप से संक्षिप्त पूजन कर लें| इसके पश्चात पूर्ण चैतन्य भाव से निम्न मंत्र का १ घंटे तक जप करें|
|| ॐ ह्रीं बटुकाय आपद उद्वारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ स्वाहा ||
उपरोक्त मंत्र का यंत्र के समक्ष ७ दिन तक लगातार जप करने के पश्चात यंत्र को किसी जल-सरोवर में विसर्जीत कर दें| कुछ ही दिनों में आपकी समस्त आपदाएं स्वतः ही समाप्त हो जायेगी|
श्रीराम ज्योतिष सदन. भारतीय वैदिक ज्योतिष.और मन्त्र  यन्त्र तन्त्र एवं रत्न परामँश दाता ।आपका दैवज्ञ पंडित आशु बहुगुणा ।  अपनी जन्मकुण्डली के अनुकूल विशिष्ट मन्त्र यन्त्र तन्त्र के माध्यम से कायॅ सिद्ध करने के लिये सम्पकॅ करे । --- संपर्क सूत्र---9760924411

अघोर साधना मे मुंड का महत्व

।। अघोर में मुंड (कपाल, खोपड़ी,महाशंख) का महत्व।।

आज कल आपने देखा ही होता फेसबुक और अन्य मीडिया और कई फ़ोटो में तंत्र से जुड़े लोग और अघोरी साधक हाथ में मुंड  लिए दिखाई देते हे ,तो लोगो जिज्ञासा होती हे ।पर असल में  में मुंड को लेकर कई नियम होते हे ,वो सब को पता नहीं होता ।हर अघोरी या तंत्र साधक मुंड धारण नहीं कर सकता।और नहीं कोई उसे लेकर एक स्थान से दुशरे स्थान जा सकता हे ।1
1 मूण्डधारण वो ही साधक या अघोरी कर सकता हे जिसका सहस्त्रार्थ जागृत हो चूका हो।
2   मुंड हर किसी इन्शान  का धारण नहीं कर सकते ,न वो जला हुवा हो नहीं कही से खंडित हो।

3 आपने देखा होगा की एक अघोरी या तंत्र में निपुर्ण साधू का दाह संसकार नहीं होता उसकी समाधी लगती हे ।ऐसे ही साधक का मुंड नियम  के हिसाब से निकाल कर उसे संशोधित कर उसका संस्कार किया जाता हे ।उसके बाद उसका उपयोग किया जा सकता हे ।

4जेसे मंदिर की मूर्ति को लेकर आप हर जगह गुम नहीं सकते ।उसका प्राणप्रतिष्ठा करके आशन दिया जाता हे वेसे ही कोई भी साधक या अघोरी मूण्ड का दिखावा करने के लिए उसे लेकर नहीं घूम सकता पर अपने साधना स्थान पर उसकी प्राणप्रतिष्ठा करके मूण्ड को साधा जाता हे ।

5 एक साधक या अघोरी का ही मूण्ड इसलिए काम आता हे की उसका सहस्त्रार्थ पहले ही जागृत हो चूका हिता हे .और उस साधक ने जो पूर्व  साधनाए की होती हे उसका भी फल नए साधक को मददरूप होता हे ।

6 एक अघोरी अपनी साधना ओ का और सिद्धि ओ का संचय मूण्ड में करता हे और समय पर उसका प्रयोग करता हे ।

7  कोई भी साधक ,साधू ,अघोरी ,तांत्रिक मूण्ड का उपयोग लोगो को भयभित करने या दिखावा करने के लिए नहीं ,पर अपनी साधनाओ में सहायता के लिए प्रयोग कर सकता हे और उसे गोपनीय ही रखा जाता हे

8 अघोरी के लिए एक सिद्ध मूण्ड ही उसका सब कुछ होता हे ।जिसकी प्राणप्रतिष्ठा करके उसकी पूजा करता हे ।

8 किस्मत वाले होते हे वो अघोरी जिसको अपने गुरूजी का चरणकमल महाप्रशाद और मुण्ड मिलता हे असल में वो ही शिष्य उस अघोरी गुरूजी का वारिश होता हे ।

(पर आज कल आपने देखा ही होता की हर कोई एरा गेरा नथहु खेरा अपने आप को सिद्ध अघोरी या बड़ा तांत्रिक दिखाने की लिए किसी खंडित या जले हुवे टूटे हुवे मूण्ड का दिखावा करता हे। जो लोगो में अंधश्रद्धा फेलता हे और भयभीत करता हे )

।।अघोर में श्रद्धा हे पर अंधश्रद्धा को कोई स्थान नहीं हे।अघोर सरल होता हे भयंकर नहीं ।।

बंगाल मे मां तारा पीठ

बंगाल के इतिहास में अघोर परम्परा का प्रसिद्ध स्थल तारापीठ
    बंगाल के इतिहास में वीरभूमि जिला एक विख्यात जिला है। हिन्दुओं के ५१ शक्तिपीठों में से पाँच शक्ति पीठ वीरभूमि में ही हैं। इसी कड़ी में उनीस्वी शताब्दी में वीरभूमिकी पवित्रता साधक वामा खेपा ने एक बार फ़िर बढाई।   राजा दशरथ के कुल पुरोहित वशिष्ठ मुनि ने भी वीरभूमि से जुड़ कर इतिहास में इस भूमि की शान बढाई। इसलिए वीरभूमि जिला हिंदू वाम मर्गियों का महा तीर्थ बना। यहाँ पर स्थापित वशिष्ठ मुनि के सिंघासन पर अनेको साधको ने अपनी सिद्धिया प्राप्त की। जिनमें से प्रमुख महाराज राजा राम कृष्ण परमहंस, आनंदनाथ, मोक्ष्दानंद , वामा खेपा के नाम आते है।
      इस स्थान पर दक्ष यज्ञ विध्वंश के पश्चात मोहाविष्ट शिव जी के कंधों से शिव भार्या दाक्षायणी, सती की आँखें भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र ने काट कर गिराया था। यह शक्तिपीठ बन गया और इसीलिये इसे तारापीठ कहते हैं । मातृ रुप माँ तारा का यह स्थल तांत्रिकों, मांत्रिकों, शाक्तों, शैवों, कापालिकों, औघड़ों आदि सब में समान रुप से श्रद्धास्पद, पूजनीय माना जाता है ।
       शताब्दियों से साधकों, सिद्धों में प्रसिद्ध यह स्थल पश्चिम बँगाल के बीरभूम अँचल में रामपुर हाट रेलस्टेशन के पास द्वारका नदी के किनारे स्थित है । कोलकाता से तारापीठ की दूरी लगभग २६५ किलोमीटर है । यह स्थल रेलमार्ग एवं सड़क मार्ग दोनो से जुड़ा है । इस जगह द्वारका नदी का बहाव दक्षिण से उत्तर की ओर है, जो कि भारत में सामान्यतः नहीं पाया जाता । नाम के अनुरुप यहाँ माँ तारा का एक मन्दिर है तथा पार्श्व में महाश्मशान है । द्वारका नदी इस महाश्मशान को चक्राकार घेरकर कच्छपपृष्ट बनाते हुए बहती है ।
    तारापीठ में देवी सती के नेत्र गिरे थे अत: इस स्थान को देवी तारा को नयन तारा भी कहा जाता है. तारापीठ का महात्म्य है कि यहां श्रद्धा-भक्ति के साथ देवी का ध्यान करके जो मुराद मांगा जाता है वह पूर्ण होता है. देवी तारा की सेवा आराधना से रोग से मुक्ति मिलती है. इस स्थान पर सकाम और निष्काम दोनों प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती है.

    यह स्थल तारा साधन के लिये जगत प्रसिद्ध रहा है । पुरातन काल में महर्षि वशिष्ठ जी इस तारापीठ में बहुत काल तक साधना किये थे और सिद्धि प्राप्त कर सफल काम हुए थे । उन्होने इस पीठ में माँ तारा का एक भव्य मन्दिर बनवाया था जो अब भूमिसात हो चुका है । कहते हैं वशिष्ठ जी कामाख्या धाम के निकट नीलाचल पर्वत पर दीर्घकाल तक संयम पूर्वक भगवती तारा की उपासना करते रहे थे , किन्तु भगवती तारा का अनुग्रह उन्हें प्राप्त न हो सका, कारण कि चीनाचार को छोड़कर अन्य साधना विधि से भगवती तारा प्रसन्न नहीं होतीं । एकमात्र बुद्ध ही भगवती तारा की उपासना और चीनाचार विधि जानते हैं । महर्षि वशिष्ठ , यह जानकर भगवान बुद्ध के समीप उपस्थित हुए और उनसे आराधना विधि एवं आचार का ज्ञान प्राप्तकर इस पीठ में आये थे । बौधों में बज्रयानी साधक इस विद्या के जानकार बतलाये जाते हैं । औघड़ों को भी इस विद्या की सटीक जानकारी है ।

       वर्तमान मन्दिर बनने की कथा
" जयब्रत नाम के एक व्यापारी थे । उनका इस अँचल में लम्बाचौड़ा व्यापार फैला हुआ था । श्मशान होने के कारण तारापीठ का यह क्षेत्र सुनसान हुआ करता था । भय से लोग इधर कम ही आते थे । विशेष दिनों में इक्का दुक्का साधक इस ओर आते जाते दिख जाया करते थे । व्यापार के सिलसिले में जयब्रत को प्रायः इस क्षेत्र से गुजरना पड़ता था । एक बार जयब्रत को पास के गाँव में रात्रि विश्राम हेतू रुकना पड़ा । ब्राह्म मुहुर्त में जयब्रत को स्वप्न में माँ तारा के दर्शन हुए । माँ ने आदेश दिया कि श्मशान की परिधि में धरती के नीचे ब्रह्मशिला गड़ा हुआ है । उसे उखाड़ो और वहीं पर विधिपूर्वक प्राण प्रतिष्ठित करो । स्वप्न में प्राप्त आदेश के अनुसार जयब्रत ब्रह्मशिला उखड़वाया और वर्तमान मन्दिर का निर्माण कराकर माँ तारा की भव्य मूर्ति स्थापित किया ।"

मातृरुपा माँ तारा की मूर्ति दिव्य भाव लिये हुए है । माता ने अपने वाम बाजु में शिशु रुप में शिव जी को लिया हुआ है । शिव जी माता के वाम स्तन से दुग्धामृत का पान कर रहे हैं और माता के स्नेहसिक्त नयन अपलक शिशु शिव जी को निहार रहे हैं । कहते हैं समुद्र मँथन से निकले विष का देवाधिदेव भगवान शिव जी ने पान कर संसार की रक्षा की थी । इस विषपान के प्रभाव से भगवान शँकर को उग्र जलन एवं पीड़ा होने लगी । कोई उपाय न था । माता ने तब शिव जी को इस प्रकार अपना स्तनपान कराकर उन्हें कष्ट से त्राण दिलाया था । इसीलिये माँ को तारिणी भी कहते हैं।

अप्सरा और यक्षिणी वशीकरण कवच

अप्सरा और यक्षिणी वशीकरण कवच
इस नायिका कवच को यक्षिणी पुजा से पहले 1,5 या 7 बार जप किया जाना चाहिए। इस कवच के जप से किसी भी प्रकार की सुन्दरी साधना में विपरीत परिणाम प्राप्त नहीं होते और साधना में जल्द ही सिद्धि प्राप्त होती हैं। हम आशा करते हैं कि जब भी आप कोई भी यक्षिणी साधना करोगें तो इस कवच का जप अवश्य करोगें। इस कवच के जप से समस्त प्रकार की सिद्धियाँ देने वाली यक्षिणी साधक के नियंत्रण मे आ जाती हैं और साधक के सभी मनोरथो को पूर्ण करती हैं। यक्षिणी साधना से जुडा यह कवच अपने आप मे दुर्लभ हैं। इस कवच के जपने से यक्षिणीयों का वशीकरण होता हैं। तो क्या सोच रहे हैं आप........................
।। श्री उन्मत्त-भैरव उवाच ।।
श्रृणु कल्याणि ! मद्-वाक्यं, कवचं देव-दुर्लभं।यक्षिणी-नायिकानां तु, संक्षेपात् सिद्धि-दायकं ।।
ज्ञान-मात्रेण देवशि ! सिद्धिमाप्नोति निश्चितं।यक्षिणि स्वयमायाति, कवच-ज्ञान-मात्रतः ।।
सर्वत्र दुर्लभं देवि ! डामरेषु प्रकाशितं।पठनात् धारणान्मर्त्यो, यक्षिणी-वशमानयेत् ।।
विनियोगः- ॐ अस्य श्रीयक्षिणी-कवचस्य श्री गर्ग ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्री अमुकी यक्षिणी देवता, साक्षात् सिद्धि-समृद्धयर्थे पाठे विनियोगः।
ऋष्यादिन्यासः- श्रीगर्ग ऋषये नमः शिरसि, गायत्री छन्दसे नमः मुखे, श्री रतिप्रिया यक्षिणी देवतायै नमः हृदि, साक्षात् सिद्धि-समृद्धयर्थे पाठे विनियोगाय नमः सर्वांगे।
।। मूल पाठ ।।
शिरो मे यक्षिणी पातु, ललाटं यक्ष-कन्यका।
मुखं श्री धनदा पातु, कर्णौ मे कुल-नायिका ।।
चक्षुषी वरदा पातु, नासिकां भक्त-वत्सला।
केशाग्रं पिंगला पातु, धनदा श्रीमहेश्वरी ।।
स्कन्धौ कुलालपा पातु, गलं मे कमलानना।
किरातिनी सदा पातु, भुज-युग्मं जटेश्वरी ।।
विकृतास्या सदा पातु, महा-वज्र-प्रिया मम।
अस्त्र-हस्ता पातु नित्यं, पृष्ठमुदर-देशकम् ।।
भेरुण्डा माकरी देवी, हृदयं पातु सर्वदा।
अलंकारान्विता पातु, नितम्ब-स्थलं दया ।।
धार्मिका गुह्यदेशं मे, पाद-युग्मं सुरांगना।
शून्यागारे सदा पातु, मन्त्र-माता-स्वरुपिणी ।।
निष्कलंका सदा पातु, चाम्बुवत्यखिलं तनुं।
प्रान्तरे धनदा पातु, निज-बीज-प्रकाशिनी ।।
लक्ष्मी-बीजात्मिका पातु, खड्ग-हस्ता श्मशानके।
शून्यागारे नदी-तीरे, महा-यक्षेश-कन्यका।।
पातु मां वरदाख्या मे, सर्वांगं पातु मोहिनी।
महा-संकट-मध्ये तु, संग्रामे रिपु-सञ्चये ।।
क्रोध-रुपा सदा पातु, महा-देव निषेविका।
सर्वत्र सर्वदा पातु, भवानी कुल-दायिका ।।
इत्येतत् कवचं देवि ! महा-यक्षिणी-प्रीतिवं।
अस्यापि स्मरणादेव, राजत्वं लभतेऽचिरात्।।
पञ्च-वर्ष-सहस्राणि, स्थिरो भवति भू-तले।
वेद-ज्ञानी सर्व-शास्त्र-वेत्ता भवति निश्चितम्।अरण्ये सिद्धिमाप्नोति, महा-कवच-पाठतः।
यक्षिणी कुल-विद्या च, समायाति सु-सिद्धदा।।
अणिमा-लघिमा-प्राप्तिः सुख-सिद्धि-फलं लभेत्।
पठित्वा धारयित्वा च, निर्जनेऽरण्यमन्तरे।।
स्थित्वा जपेल्लक्ष-मन्त्र मिष्ट-सिद्धिं लभेन्निशि।
भार्या भवति सा देवी, महा-कवच-पाठतः।।
ग्रहणादेव सिद्धिः स्यान्, नात्र कार्या विचारणा ।।
।। हरि ॐ तत्सत ।।

https://youtu.be/XfpY7YI9CHc

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