Wednesday 17 April 2019

श्री काली सहस्त्राक्षरी ॐ क्रीं क्रीँ क्रीँ ह्रीँ ह्रीँ हूं हूं दक्षिणे कालिके क्रीँ क्रीँ क्रीँ ह्रीँ ह्रीँ हूं हूं स्वाहा शुचिजाया महापिशाचिनी दुष्टचित्तनिवारिणी क्रीँ कामेश्वरी वीँ हं वाराहिके ह्रीँ महामाये खं खः क्रोघाघिपे श्रीमहालक्ष्यै सर्वहृदय रञ्जनी वाग्वादिनीविधे त्रिपुरे हंस्त्रिँ हसकहलह्रीँ हस्त्रैँ ॐ ह्रीँ क्लीँ मे स्वाहा ॐ ॐ ह्रीँ ईं स्वाहा दक्षिण कालिके क्रीँ हूं ह्रीँ स्वाहा खड्गमुण्डधरे कुरुकुल्ले तारे ॐ. ह्रीँ नमः भयोन्मादिनी भयं मम हन हन पच पच मथ मथ फ्रेँ विमोहिनी सर्वदुष्टान् मोहय मोहय हयग्रीवे सिँहवाहिनी सिँहस्थे अश्वारुढे अश्वमुरिप विद्राविणी विद्रावय मम शत्रून मां हिँसितुमुघतास्तान् ग्रस ग्रस महानीले वलाकिनी नीलपताके क्रेँ क्रीँ क्रेँ कामे संक्षोभिणी उच्छिष्टचाण्डालिके सर्वजगव्दशमानय वशमानय मातग्ङिनी उच्छिष्टचाण्डालिनी मातग्ङिनी सर्वशंकरी नमः स्वाहा विस्फारिणी कपालधरे घोरे घोरनादिनी भूर शत्रून् विनाशिनी उन्मादिनी रोँ रोँ रोँ रीँ ह्रीँ श्रीँ हसौः सौँ वद वद क्लीँ क्लीँ क्लीँ क्रीँ क्रीँ क्रीँ कति कति स्वाहा काहि काहि कालिके शम्वरघातिनी कामेश्वरी कामिके ह्रं ह्रं क्रीँ स्वाहा हृदयाहये ॐ ह्रीँ क्रीँ मे स्वाहा ठः ठः ठः क्रीँ ह्रं ह्रीँ चामुण्डे हृदयजनाभि असूनवग्रस ग्रस दुष्टजनान् अमून शंखिनी क्षतजचर्चितस्तने उन्नस्तने विष्टंभकारिणि विघाधिके श्मशानवासिनी कलय कलय विकलय विकलय कालग्राहिके सिँहे दक्षिणकालिके अनिरुद्दये ब्रूहि ब्रूहि जगच्चित्रिरे चमत्कारिणी हं कालिके करालिके घोरे कह कह तडागे तोये गहने कानने शत्रुपक्षे शरीरे मर्दिनि पाहि पाहि अम्बिके तुभ्यं कल विकलायै बलप्रमथनायै योगमार्ग गच्छ गच्छ निदर्शिके देहिनि दर्शनं देहि देहि मर्दिनि महिषमर्दिन्यै स्वाहा रिपुन्दर्शने दर्शय दर्शय सिँहपूरप्रवेशिनि वीरकारिणि क्रीँ क्रीँ क्रीँ हूं हूं ह्रीँ ह्रीँ फट् स्वाहा शक्तिरुपायै रोँ वा गणपायै रोँ रोँ रोँ व्यामोहिनि यन्त्रनिकेमहाकायायै प्रकटवदनायै लोलजिह्वायै मुण्डमालिनि महाकालरसिकायै नमो नमः ब्रम्हरन्ध्रमेदिन्यै नमो नमः शत्रुविग्रहकलहान् त्रिपुरभोगिन्यै विषज्वालामालिनी तन्त्रनिके मेधप्रभे शवावतंसे हंसिके कालि कपालिनि कुल्ले कुरुकुल्ले चैतन्यप्रभेप्रज्ञे तु साम्राज्ञि ज्ञान ह्रीँ ह्रीँ रक्ष रक्ष ज्वाला प्रचण्ड चण्डिकेयं शक्तिमार्तण्डभैरवि विप्रचित्तिके विरोधिनि आकर्णय आकर्णय पिशिते पिशितप्रिये नमो नमः खः खः खः मर्दय मर्दय शत्रून् ठः ठः ठः कालिकायै नमो नमः ब्राम्हयै नमो नमः माहेश्वर्यै नमो नमः कौमार्यै नमो नमः वैष्णव्यै नमो नमः वाराह्यै नमो नमः इन्द्राण्यै नमो नमः चामुण्डायै नमो नमः अपराजितायै नमो नमः नारसिँहिकायै नमो नमः कालि महाकालिके अनिरुध्दके सरस्वति फट् स्वाहा पाहि पाहि ललाटं भल्लाटनी अस्त्रीकले जीववहे वाचं रक्ष रक्ष परविधा क्षोभय क्षोभय आकृष्य आकृष्य कट कट महामोहिनिके चीरसिध्दके कृष्णरुपिणी अंजनसिद्धके स्तम्भिनि मोहिनि मोक्षमार्गानि दर्शय दर्शय स्वाहा ।। इस काली सहस्त्राक्षरी का नित्य पाठ करने से ऐश्वर्य,मोक्ष,सुख,समृद्धि,एवं शत्रुविजय प्राप्त होता है ।।

मंत्र आपका मित्र है साथ गुरू मंत्र तुम एक दोस्त देता है. एक मित्र प्रकाश और निर्वाह के लिए सूर्य के चारों ओर घूमने पृथ्वी की तरह होना चाहिए. प्रकाश अंधकार dispels और लोगों को शांति मिल जाए. तुम भी दुनिया पर ले सकते हैं लेकिन आप अपने खुद के बच्चों से हार रहे हैं. यह इसलिए होता है क्योंकि आप दोस्त बन गए हैं अपने बच्चों को. और अधिक ध्यान में एकाग्रता से ज्यादा महत्वपूर्ण अपने खुद के आचरण का अवलोकन है, यह सच पूजा है. एक मंत्र एक या शब्दों के शब्द श्रृंखला है. कौन फर्म के उद्देश्य से एक आदमी हो जाता है. तुम तुम मंदिरों में जाने के लिए देवताओं के सामने भीख माँगती हूँ. वह उन्हें दे, क्योंकि तुम अपने आप को खो दिया है सकते हैं शक्ति नहीं माद्दा वरशिप?. शक्ति है कि आप एक के लिए एक अच्छा इंसान होना स्थिति में डालता है पूजा. आपके आचरण में संतुलित रहें. असंतुलन तुम्हारे लिए अच्छा है कि नहीं, यह आपके परिवार के लिए. तुम एक और एक ग्यारह हो जाते हैं, दो नहीं के बराबर होती है एक से अधिक एक चाहिए. एक आध्यात्मिक आंदोलन संगठन और एक संगठन का संचालन करने के आकार का है. अच्छा समय और परिस्थितियों, सिद्धांतों क्या पालन करने के लिए और दूसरों के साथ सौदा कैसे सावधानी से विचार किया जाना चाहिए का मूल्यांकन. खुद वे गुमराह शास्त्रों करेगा के लिए अपने सिर के साथ भरने के लिए और तुम्हें एक बेकार जीवन जीने मत करो. एक हीन भावना का विकास करना. हम मंदिरों और तीर्थ स्थानों पर ऐसा करने से हम अलग भगवान के द्वारा बनाई गई करने के लिए देवता की पूजा के रूप में आदमी ने कल्पना पुरुषों धक्का में, पर जाएँ. इस दुरुपयोग लेकिन कुछ भी नहीं है. पत्थर का चिह्न आप बस तय की. और 'निष्क्रिय. जिस दिन तुम्हें पता है कि आप देवता हैं और उस आइकन अपने मन की धारणा है, आप और चिह्न एक भी बात बन जाएगी. दिन तुम परमेश्वर की सच्चाई का एहसास होगा, आप के लिए चिह्न पूजा संघर्ष और तुम अपने आप को करीब लाने में सफल हो जाएगा. तुम एक स्थिति में जहाँ आप बुरी बातें करने के लिए प्रेरित किया जाएगा में होगा. तुम परमात्मा होना चाहता हूँ. अंदर आप देख सकते हैं और भगवान के संतों और महात्मा साथ चैट करेंगे. आप को भगवान के पास रहते हैं, जबकि आप अपने काम में व्यस्त हो सकेंगे. तो फिर पैसे और सामग्री की पूजा आवश्यक नहीं होगा. जब से तुम अपने आप को अलग कर देना होगा, संतों और महात्मा चीजें है कि तुम कहना चाहिए बताओ कि तुम नहीं. वे तुम्हारा सबसे अच्छा प्रस्ताव नहीं लग रही है और करने की कोशिश करने के लिए आप का दोहन नहीं. जो लोग महलों और देशों में जो सामग्री अर्थ में ही कर रहे हैं का निर्माण करने के लिए, संतों और महात्मा नहीं कहना क्या किया जाना चाहिए. इन इमारतों को लूट लिया जाता है और अंततः इतिहास के कूड़ेदान में फेंक दिया. झोपड़ियों के रहने वालों को इस तरह से नष्ट नहीं कर रहे हैं. साधु हम जो झोपड़ियों में रहते हैं. हम स्मृति सदा भी जब हम मर चुका है और चले गए हैं. जो लोग हमें का पालन करें हमारे जीवन का रास्ता स्वेच्छा से नेतृत्व करेंगे. जब मैं जीविका का कोई साधन के बिना था मैं खाने के लिए भीख माँगती हूँ और एक झोपड़ी में रहते थे. मैं खुद के साथ अंतरंग महसूस करने के लिए और अन्य दृष्टिकोण नहीं सीखा. अरे हाँ, अगर दूसरों को भी एक साथ नहीं रखा है, उन्हें प्यार करती हूँ. और प्रेम में कोई नियम या सीमाओं को जानता है. भगवान के द्वारा बनाई गई पुरुषों की ओर हमारा रवैया निर्दोष होना चाहिए. हम, हमारे जीवन के हर पल में, बाहर चाहिए अकुलीन भावनाओं को ब्लॉक. हम के लिए सोचा और कार्रवाई की पवित्रता को विकसित करने, और खुद हमारे आचरण में प्रतिबिंबित की जरूरत है. बच्चे बाहर हमारे सांसारिक वस्तुओं डाल सकते हैं, लेकिन हम उन पर सही नहीं डालना आचरण कर सकते हैं. यह कुछ है कि वे खुद को विकसित किया है. और इस के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी. वे भुगतना होगा. हम माल कि अच्छा असीम भक्ति, विश्वास, ज्ञान हैं ही, गुरु, हमारी संस्कृति और हमारे राष्ट्र की समृद्धि की सेवा. कम प्रवृत्ति है कि हम है के कारण, हम हमारी मदद करने में हम इन वस्तुओं में लाए देने में असमर्थ थे. इन एकत्रित हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है. और 'हमारी विरासत. यदि हम अपने आप को दूसरों के लिए उपयोगी बनाने में असमर्थ रहे हैं, हमें कम से कम अपने आप के लिए उपयोगी हो. रहें सतर्क, देखो अगर तुम गलत दिशा में है या गलत कंपनियों ने भाग लिया अगर जा रहे हैं. यदि आप से परहेज किया है क्या आप अपने आप को एक एहसान किया है. पवित्रता यह है. मैं एक बार मेरे गुरू से पूछा क्या यह पवित्रता बनाया गया था. उन्होंने कहा कि यह किताबी ज्ञान की बात नहीं थी. पवित्रता अभ्यास ही है. किताबें अभ्यास करने के लिए स्वतंत्र हैं. व्यावहारिक बातें जीवन में होती हैं. यह संभव है कि आप में से कुछ पसंद नहीं आया कि मैंने क्या कहा. सब कुछ है कि मैंने कहा कि मैं अपने गुरू से उधार लिया है. उसने मुझे दी सलाह है कि मैं अब समझ शुरू कर दिया. मुझे आशा है कि आप सुझाव मैंने तुम्हें दिया था या मैं तुम्हारी मदद नहीं कर सकते समझा है.

अथर्वशीर्ष की परम्परा में ‘गणपति अथर्वशीर्ष’ का विशेष महत्त्व है। प्रायः प्रत्येक मांगलिक कार्यों में गणपति-पूजन के अनन्तर प्रार्थना रुप में इसके पाठ की परम्परा है। यह भगवान् गणपति का वैदिक-स्तवन है। इसका पाठ करने वाला किसी प्रकार के विघ्न से बाधित न होता हुआ महापातकों से मुक्त हो जाता है। ।। श्री गणपत्यथर्वशीर्ष ।। ।। शान्ति पाठ ।। ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः । भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।। स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिः । व्यशेम देवहितं यदायुः ।। ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।। स्वस्तिनस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ।। ॐ तन्मामवतु तद् वक्तारमवतु अवतु माम् अवतु वक्तारम् ॐ शांतिः । शांतिः ।। शांतिः।।। ।। उपनिषत् ।। ।।हरिः ॐ नमस्ते गणपतये ।। त्वमेव प्रत्यक्षं तत्त्वमसि। त्वमेव केवलं कर्ताऽसि। त्वमेव केवलं धर्ताऽसि। त्वमेव केवलं हर्ताऽसि। त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि। त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम् ।। १।। ऋतं वच्मि (वदिष्यामि)।। सत्यं वच्मि (वदिष्यामि)।। २।। अव त्वं माम् । अव वक्तारम् । अव श्रोतारम् । अव दातारम् । अव धातारम् । अवानूचानमव शिष्यम् । अव पश्चात्तात् । अव पुरस्तात् । अवोत्तरात्तात् । अव दक्षिणात्तात् । अव चोर्ध्वात्तात्। अवाधरात्तात्। सर्वतो मां पाहि पाहि समंतात् ।।३। ।त्वं वाङ्ग्मयस्त्वं चिन्मयः। त्वमानंदमयस्त्वं ब्रह्ममयः। त्वं सच्चिदानंदाद्वितीयोऽसि। त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि ।।४।। सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते। सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति। सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति। सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति। त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः। त्वं चत्वारि वाक्पदानि ।। ५।। त्वं गुणत्रयातीतः त्वमवस्थात्रयातीतः। त्वं देहत्रयातीतः। त्वं कालत्रयातीतः। त्वं मूलाधारः स्थिथोऽसि नित्यम्। त्वं शक्तित्रयात्मकः। त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यम्। त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वं इन्द्रस्त्वं अग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुवःस्वरोम् ।। ६।। गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरम्।अनुस्वारः परतरः। अर्धेन्दुलसितम्। तारेण ऋद्धम्। एतत्तव मनुस्वरूपम्। गकारः पूर्वरूपम्। अकारो मध्यमरूपम्। अनुस्वारश्चान्त्यरूपम्। बिन्दुरुत्तररूपम्। नादः संधानम्। संहितासंधिः। सैषा गणेशविद्या। गणकऋषिः। निचृद्गायत्रीच्छंदः। गणपतिर्देवता। ॐ गं गणपतये नमः ।। ७।। एकदंताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दंतिः प्रचोदयात् ।। ८।। एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणम् ।। रदं च वरदं हस्तैर्बिभ्राणं मूषकध्वजम् ।। रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम् ।। रक्तगंधानुलिप्तांगं रक्तपुष्पैः सुपूजितम् ।। भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम् ।। आविर्भूतं च सृष्ट्यादौ प्रकृतेः पुरुषात्परम् ।। एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वरः ।। ९।। नमो व्रातपतये । नमो गणपतये । नमः प्रमथपतये । नमस्तेऽस्तु लंबोदरायैकदंताय । विघ्ननाशिने शिवसुताय । श्रीवरदमूर्तये नमो नमः ।। १०।। एतदथर्वशीर्षं योऽधीते ।। स ब्रह्मभूयाय कल्पते ।। स सर्वतः सुखमेधते ।। स सर्व विघ्नैर्नबाध्यते ।। स पंचमहापापात्प्रमुच्यते ।। सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति ।। प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति ।। सायंप्रातः प्रयुंजानो अपापो भवति ।। सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति ।। धर्मार्थकाममोक्षं च विंदति ।। इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम् ।। यो यदि मोहाद्दास्यति स पापीयान् भवति सहस्रावर्तनात् यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत् ।। ११।। अनेन गणपतिमभिषिंचति स वाग्मी भवति ।। चतुर्थ्यामनश्नन् जपति स विद्यावान् भवति । स यशोवान् भवति ।। इत्यथर्वणवाक्यम् ।। ब्रह्माद्याचरणं विद्यात् न बिभेति कदाचनेति ।। १२ यो दूर्वांकुरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति ।। यो लाजैर्यजति स यशोवान् भवति ।। स मेधावान् भवति ।। यो मोदकसहस्रेण यजति स वाञ्छितफलमवाप्नोति ।। यः साज्यसमिद्भिर्यजति स सर्वं लभते स सर्वं लभते ।। १३।। अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा सूर्यवर्चस्वी भवति ।। सूर्यगृहे महानद्यां प्रतिमासंनिधौ वा जप्त्वा सिद्धमंत्रो भवति ।। महाविघ्नात्प्रमुच्यते ।। महादोषात्प्रमुच्यते ।। महापापात् प्रमुच्यते ।। स सर्वविद्भवति स सर्वविद्भवति ।। य एवं वेद इत्युपनिषत् ।। १४।। ॐ सहनाववतु ।। सहनौभुनक्तु ।। सह वीर्यं करवावहै ।। तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ।। ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः । भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।। स्थिरैरंगैस्तुष्टुवांसस्तनूभिः । व्यशेम देवहितं यदायुः ।। ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।। स्वस्तिनस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ।। ॐ शांतिः । शांतिः ।। शांतिः ।। ।। श्रीगणपत्यथर्वशीर्षं ।।...

|| राम लक्ष्मण सीता स्तुति || जय श्री हनुमान..! ======================== जय श्री राम ! शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम् | रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम् | सीता माता की जय ! नमामि चन्द्रनिलयां सीतां चन्द्रनिभाननां ॥ आल्हादरूपिणीम् सिद्धिं शिवाम् शिवकरीं सतीम् ॥ नमामि विश्वजननीम् रामचन्द्रेष्टवल्लभां ॥ सीतां सर्वानवद्यान्गीम् भजामि सततं हृदा ॥ जनकसुता जग जननि जानकी। अतिसय प्रिय करुना निधान की॥ ताके जुग पद कमल मनावउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ॥ जय श्री लक्ष्मण ! बंदउँ लछिमन पद जलजाता। सीतल सुभग भगत सुख दाता।। रघुपति कीरति बिमल पताका। दंड समान भयउ जस जाका।। सेष सहस्त्रसीस जग कारन। जो अवतरेउ भूमि भय टारन।। सदा सो सानुकूल रह मो पर। कृपासिंधु सौमित्रि गुनाकर।। सीता अनुज समेत प्रभु नील जलद तनु स्याम। मम हियँ बसहु निरंतर सगुनरुप श्रीराम।। जय श्री हनुमान..! अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् | सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि | संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा। दीनदयाल बिरिदु सम्भारी ! हरहु नाथ मम संकट भारी !! मंगल भवन अमंगल हारी| द्रबहु सुदसरथ अजिर बिहारी | दीनदयाल बिरिदु सम्भारी ! हरहु नाथ मम संकट भारी !! राम सिया राम सिया राम जय जय राम! राम सिया राम सिया राम जय जय राम! —

भगवती काली की कृपा-प्राप्ति का मन्त्र चमत्कारी महा-काली सिद्ध अनुभूत मन्त्र “ॐ सत् नाम गुरु का आदेश। काली-काली महा-काली, युग आद्य-काली, छाया काली, छूं मांस काली। चलाए चले, बुलाई आए, इति विनिआस। गुरु गोरखनाथ के मन भावे। काली सुमरुँ, काली जपूँ, काली डिगराऊ को मैं खाऊँ। जो माता काली कृपा करे, मेरे सब कष्टों का भञ्जन करे।” सामग्रीः लाल वस्त्र व आसन, घी, पीतल का दिया, जौ, काले तिल, शक्कर, चावल, सात छोटी हाँड़ी-चूड़ी, सिन्दूर, मेंहदी, पान, लौंग, सात मिठाइयाँ, बिन्दी, चार मुँह का दिया। विधिः उक्त मन्त्र का सवा लाख जप ४० या ४१ दिनों में करे। पहले उक्त मन्त्र को कण्ठस्थ कर ले। शुभ समय पर जप शुरु करे। गुरु-शुक्र अस्त न हों। दैनिक ‘सन्ध्या-वन्दन’ के अतिरिक्त अन्य किसी मन्त्र का जप ४० दिनों तक न करे। भोजन में दो रोटियाँ १० या ११ बजे दिन के समय ले। ३ बजे के पश्चात् खाना-पीना बन्द कर दे। रात्रि ९ बजे पूजा आरम्भ करे। पूजा का कमरा अलग हो और पूजा के सामान के अतिरिक्त कोई सामान वहाँ न हो। प्रथम दिन, कमरा कच्चा हो, तो गोबर का लेपन करे। पक्का है, तो पानी से धो लें। आसन पर बैठने से पूर्व स्नान नित्य करे। सिर में कंघी न करे। माँ की सुन्दर मूर्ति रखे और धूप-दीप जलाए। जहाँ पर बैठे, चाकू या जल से सुरक्षा-मन्त्र पढ़कर रेखा बनाए। पूजा का सब सामान ‘सुरक्षा-रेखा’ के अन्दर होना चाहिए। सर्वप्रथम गुरु-गणेश-वन्दना कर १ माला (१०८) मन्त्रों से हवन कर। हवन के पश्चात् जप शुरु करे। जप-समाप्ति पर जप से जो रेखा-बन्धन किया था, उसे खोल दे। रात्रि में थोड़ी मात्रा में दूध-चाय ले सकते हैं। जप के सात दिन बाद एक हाँड़ी लेकर पूर्व-लिखित सामान (सात मिठाई, चूड़ी इत्यादि) उसमें डाले। ऊपर ढक्कन रखकर, उसके ऊपर चार मुख का दिया जला कर, सांय समय जो आपके निकट हो नदी, नहर या चलता पानी में हँड़िया को नमस्कार कर बहा दे। लौटते समय पीछे मुड़कर नहीं देखें। ३१ दिनों तक धूप-दीप-जप करने के पश्चात् ७ दिनों तक एक बूँद रक्त जप के अन्त में पृथ्वी पर टपका दे और ३९वें दिन जिह्वा का रक्त दे। मन्त्र सिद्ध होने पर इच्छित वरदान प्राप्त करे। सावधानियाँ- प्रथम दिन जप से पूर्व हण्डी को जल में सायं समय छोड़े और एक-एक सपताह बाद उसी प्रकार उसी समय सायं उसी स्थान पर, यह हाँड़ी छोड़ी जाएगी। जप के एक दिन बाद दूसरी हाँड़ी छोड़ने के पश्चात् भूत-प्रेत साधक को हर समय घेरे रहेंगे। जप के समय कार के बाहर काली के साक्षात् दर्शन होंगे। साधक जप में लगा रहे, घबराए नहीं। वे सब कार के अन्दर प्रविष्ट नहीं होंगे। मकान में आग लगती भी दिखाई देगी, परन्तु आसन से न उठे। ४० से ४२वें दिन माँ वर देगी। भविष्य-दर्शन व होनहार घटनाएँ तो सात दिन जप के बाद ही ज्ञात होने लगेंगी। एक साथी या गुरु कमरे के बाहर नित्य रहना चाहिए। साधक निर्भीक व आत्म-बलवाला होना चाहिए।

संकट-निवारक काली-मन्त्र “काली काली, महा-काली। इन्द्र की पुत्री, ब्रह्मा की साली। चाबे पान, बजावे थाली। जा बैठी, पीपल की डाली। भूत-प्रेत, मढ़ी मसान। जिन्न को जन्नाद बाँध ले जानी। तेरा वार न जाय खाली। चले मन्त्र, फुरो वाचा। मेरे गुरु का शब्द साचा। देख रे महा-बली, तेरे मन्त्र का तमाशा। दुहाई गुरु गोरखनाथ की।” सामग्रीः माँ काली का फोटो, एक लोटा जल, एक चाकू, नीबू, सिन्दूर, बकरे की कलेजी, कपूर की ६ टिकियाँ, लगा हुआ पान, लाल चन्दन की माला, लाल रंग के पूल, ६ मिट्टी की सराई, मद्य। विधिः पहले स्थान-शुद्धि, भूत-शुद्धि कर गुरु-स्मरण करे। एक चौकी पर देवी की फोटो रखकर, धूप-दीप कर, पञ्चोपचार करे। एक लोटा जल अपने पास रखे। लोटे पर चाकू रखे। देवी को पान अर्पण कर, प्रार्थना करे- हे माँ! मैं अबोध बालक तेरी पूजा कर रहा हूँ। पूजा में जो त्रुटि हों, उन्हें क्षमा करें।’ यह प्रार्थना अन्त में और प्रयोग के समय भी करें। अब छः अङ्गारी रखे। एक देवी के सामने व पाँच उसके आगे। ११ माला प्रातः ११ माला रात्रि ९ बजे के पश्चात् जप करे। जप के बाद सराही में अङ्गारी करे व अङ्गारी पर कलेजी रखकर कपूर की टिक्की रखे। पहले माँ काली को बलि दे। फिर पाँच बली गणों को दे। माँ के लिए जो घी का दिया जलाए, उससे ही कपूर को जलाए और मद्य की धार निर्भय होकर दे। बलि केवल मंगलवार को करे। दूसरे दिनों में केवल जप करे। होली-दिवाली-ग्रहण में या अमावस्या को मन्त्र को जागृत करता रहे। कुल ४० दिन का प्रयोग है। भूत-प्रेत-पिशाच-जिन्न, नजर-टोना-टोटका झाड़ने के लिए धागा बनाकर दे। इस मन्त्र का प्रयोग करने वालों के शत्रु स्वयं नष्ट हो जाते हैं।

दर्शन हेतु श्री काली मन्त्र “डण्ड भुज-डण्ड, प्रचण्ड नो खण्ड। प्रगट देवि, तुहि झुण्डन के झुण्ड। खगर दिखा खप्पर लियां, खड़ी कालका। तागड़दे मस्तङ्ग, तिलक मागरदे मस्तङ्ग। चोला जरी का, फागड़ दीफू, गले फुल-माल, जय जय जयन्त। जय आदि-शक्ति। जय कालका खपर-धनी। जय मचकुट छन्दनी देव। जय-जय महिरा, जय मरदिनी। जय-जय चुण्ड-मुण्ड भण्डासुर-खण्डनी, जय रक्त-बीज बिडाल-बिहण्डनी। जय निशुम्भ को दलनी, जय शिव राजेश्वरी। अमृत-यज्ञ धागी-धृट, दृवड़ दृवड़नी। बड़ रवि डर-डरनी ॐ ॐ ॐ।।” विधि- नवरात्रों में प्रतिपदा से नवमी तक घृत का दीपक प्रज्वलित रखते हुए अगर-बत्ती जलाकर प्रातः-सायं उक्त मन्त्र का ४०-४० जप करे। कम या ज्यादा न करे। जगदम्बा के दर्शन होते हैं।

https://youtu.be/XfpY7YI9CHc

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