Sunday 27 January 2019

श्री नरसिंह महा मंत्र प्रयोग

अष्टमुखगण्डभेरुण्ड नृसिंहमूलमहामन्त्रः
श्रीगणेशाय नमः । ॐ अस्य श्रीअष्टमुखगण्डभेरुण्ड नृसिंहमूलमहामन्त्रय । भगवान् ऋषिः ।
अनुष्टुभ् छन्दः । अष्टमुखगन्डभेरुण्डनृसिंह ब्रह्मविद्यादेवता क्ष्रां बीजाम् । क्ष्रौं शक्तिः फट् कीलकम् ।
मम इष्टाकांम्यार्थे जपे विनियोगः । क्ष्रां र्हां् अंगुष्ठाभ्या नमः । क्ष्रीं र्हींा तर्जनीभ्यां नमः ।
क्ष्रुं र्हुं् मध्यमाभ्यां नमः । क्ष्रैं र्हैःा करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । एवं ह्रदयादिभ्यां ध्यानम् ।
अष्टास्यो वह्रिहविभिः दुरवरणरवो विद्युदुज्वालजिव्हो मारीर्भीमाचपक्षौ ह्रदयजठरगाअष्टकालाग्नि उग्रः ॥
ऊरोद्वौ रुद्रकीलौ खगमृगनृहरिर्गंडभैरेण्डरुपो विध्वस्तात्युग्र दुहुछरभसरभसः स्फुरद्युग्मौरवाङगम् ॥
ध्यात्वा । मानसोपचारै सम्यूज्य ॥ अथ मन्यः । ॐ घ्रां क्ष्रां घौं अ सौः रें वं लं क्ष्रौं र्हींा अं फट् स्वाहा ॥१३॥
मंत्रः । अस्य श्री अष्टमुखगण्डभैरुडनृसिंहाय महाबलप्रराक्रमाय कोटिसूर्यप्रकाशाय वडवानलमुखाय अनंतबाहवे अनंतकोटिदिव्यायुधधराय कनकगिरिसमान – मणिकुण्डलधराय प्रलयकालसत्प्रमारुअतप्रचण्डवेगऊर्ध्वकेशाय ऊर्ध्वरेतसे गुणातीताय परात्पराय अनेककोटिशत्रुजन शिरोमालाधृताय प्रमथगणसेविताय सरभसालवेश्वरीप्राणापहाराय अष्टभैरवपरिसेविताय सर्वदैत्य प्रभंजनाय गजाननदिगण सेविताय वीरभद्रश्वरुप विध्वंसनाय महानन्दिकेश्वर समागमनाय सकलसुरासुरभयंकरगण्डभेरुण्डनृसिंहाय एहि एहि आगच्छ आगच्छ अवरफुर्ज अवरफुर्ज गर्ज गर्ज भीषय भीषय किलि किलि लिलि लिलि लल लल लुलु लुलु हल हल घट घट चट चट प्रचट प्रचट लुडु लुडु रिरि रिरि रुरु रुरु डुरु डुरु आक्रान्तय आक्रान्तय परिवेषय परिवेषय पूर्वपश्चिमदक्षिनोत्तर निऋतीशान्यअग्निवायव्यपातालोर्ध्वांन्तरिक्षसर्वदिग्बंधी सर्वदिशोज्वाला -सुदर्शनचक्रेण बन्धय बन्धय अस्मिन्भूतण्डलं प्रें प्रें प्रवेशय प्रवेशय क्रों क्रों अंकुशेनाकर्षयाकर्षय र्हांू र्हांं भूतानि अस्मिन् आवशेय आवेशय भुं भुं भूतानि आकम्पय आकम्पय ऑ ऑ यमपाशेन बन्धय बन्धय र्हींा र्हींा मोहय मोहय टं टं पादादि केशान् स्तम्भय स्तम्भय दं धं टं ष्टां कीलय कीलय जं भुं जिव्हांश्चालय चालय भूतग्रहान् आकर्षय प्रेतग्रहपिशाचगर्हयक्षग्रहब्रह्मराक्षसग्रहडाकिनी ग्रहशाकिनी ग्रहवेताल ग्रहगांधर्व ग्रहदानव ग्रहापस्मार ग्रहक्षुद्रग्रह ज्वरग्रह रोगग्रह रतिग्रह छायाग्रह अममृत्युग्रह यमदूतग्रह सर्वग्रह महामायाग्रह असाध्यग्रहाणां खँ खँ भेदय भेदय बां बां बाधय बाधय शोषय शोषय रं रं दाहय दाहय क्षां क्षां क्षोभय क्षोभय ख्रें ख्रें खादय खादय स्त्रां स्त्रां तापय तापय र्हौंम र्हौंग त्रोट त्रोय व्रां व्रां भ्रामय भ्रामय लृं लृं लोटय लोटय द्रां द्रां मोटय मोटय गं गं गुलुं गुलुं छ्रीं छ्रीं दिलु दिलु र्हुंो र्हुंं तुरु तुरु म्रीं म्रीं मुरु मुरु त्रां त्रां हेलि हेलि श्रौं श्रौं मिलि मिलि वं वं वज्रपक्षद्यातय घातय चूर्णय चूर्णय फ्रें फ्रें वज्रनखेन कृंतय कृंतय खं खं खड्‌गेन खण्डय खण्डय खें खें मारय मारय अष्टमुख गण्डभेरुण्डमहनृसिंह महाधीर महावीर महाशूर महामाय सं सं सर्वदुष्टग्रहाणा पीडां हन हन फट् फट् भूतानि फट् फट् पिशासान् फट् फट् सर्व ग्रहान फट् फट् महाद्योतं अघोरं दुरितापहम् ।
आयुष्करं मृत्युहरं अंगरोगादिनाशनम् ॥ एकवर्तमात्रेण आवेशं तस्य सिद्धयेत् ॥
भस्मस्पर्शमात्रेण सर्गग्रहभयं हरेत् ॥ इति श्री गण्डभेरुण्डनृसिंहस्तोत्रं समाप्तम् ॥ ……………

श्री नरसिंह मंत्र प्रयोग


जय गोरख़।
ॐ नृसिंह बाला  ॐ नृसिंह बाला ॐ नृसिंह बाला। घट पिंड का तुम रखवाला । तुमरे सुमेरि होवे उजियाला,खुले जब घट के कुंची ताला । द्रष्टि काल महा विकराल , चार खुंट के बोधान-हार। रुद्धि सिद्धि का श्री लक्ष्मीजी ! भरो भंडार । ॐ सत्य नृसिंह कमल , नृसिंह भक्त वत्सल । नृसिंह भक्त वत्सल , नृसिंह योग, ध्यानी ध्याय के । ढ़ोय के , चार खुंट की रुद्धि सिद्धि आसन पर आनी । उलट लाल ललाट सोहे ,चार खुंट पुथ्वी को नृसिंह मोहे । ॐ साहेब मेरा शब्द का सांचा ॐ साहेब मेरा वचन का गांटा । ॐ साहेब मेरा गहन  गंभीरा । ॐ राजा राणी को  किल । दैत्य- दानव को किल । नारी स्यारी को किल । डाकिनी दंक्क को किल । टोना  टामरा को किल । छल छिद्र को किल । भोदरा भोटी को किल । नौ नाड़ी बहोतेर कोठे को किल । चंडी चुडेल को किल । ताव तिजारी को किल । एक तारा बह तारा  किल । बारह जाती बाग़ किल । नो कोटि नाग किल । चोर चर्पट किल । आकाश के दैत्यों को किल । पाताल के दैत्यों को किल । नाके घाटे किल । मरे मसान किल । गुनी गुनियो को किल । नदी नाले को किल । कुआ बावड़ी को किल । दुष्ट मुष्ट को किल । ॐ किल,ॐ किल,ॐ किल । मेरा किला करे घात  छाती  फाट मरे ।  जो पिंड पर करे घात उलटी घात उसे परे । ॐ खं खं खं  फट स्वाहा इति । श्री पिंड प्राण की रक्षा नृसिंह करे । संकट में सुमिरु नृसिंह  हकार में हनुमान । धक्के धूम में खांसी खुरी में मिरगी या मसान में रक्तिया मसान में दुहाई नृसिंह की।
इस मंत्र को 21 दिन रोज एक माला जप करे। शनिवार से जप शरू करे। सिद्ध हो जायेगा।

अगर किसी को नजर लगी हो, प्रसूता स्त्री को उपरी हवा, छोटा बालक रात में रोता हो, बेचेनी, आदि में इस मन्त्र को लाल धागा पे 7 गांठ लगा के बंधने से आराम होगा। प्रत्येक गांठ पे एक बार मंत्र जप करे।

तांत्रिक प्रयोग निवारण

तांत्रिक प्रयोग निवारण प्रयोग
यदि किसी भी प्रकार के तांत्रिक प्रयोग किये जाने के कारन कोई ब्यक्ति बार बार बीमार पर जाता हो और लगातार परेशान रहता हो तो उसके निवारण हेतु प्रयोग  प्रस्तुत कर रहा हु जिसका प्रयोग कोई भी श्रधा के साथ कर सकता है :-
सामग्री :- 01 कैथा का फल ।
आसन- कोई भी
वस्त्र - कोई भी
समय - दोपहर या अर्द्ध रात्रि में
मन्त्र- न्री  नरसिंघा ये प्रचंड रुपाये सर्व बाधा नाशय नाशय !!
विधि :- कैथा के फल को सामने रखकर उपरोक्त मन्त्र का एक माला जप कर कैथा के फल पर एक बार फुक मारे । इस प्रकार कुल 08 माला उपरोक्त मन्त्र का जप कर 08 बार कैथा के फल पर फुक मरने के बाद उस फल से उसी समय पीड़ित व्यक्ति का 7 बार उतारा  करे और उस कैथा के फल को किसी चौराहे पर जाकर पटककर फोर दे तथा वापस घर चले आये । रास्ते में पीछे मुरकर नहीं देखे ।
यदि कैथा का फल उपलब्ध नहीं हो तो बेल का फल उपयोग में लाया जा सकता है।।

शक्तिशाली काली का मंत्र

शक्तिशाली सर्व कार्य साधक मंत्र

मां भगवती काली का मनोकामना पूर्ति मंत्र ! काली के भगतों की मनोकामना इस मंत्र के प्रभाव से आवश्य ही पूर्ण होती है बस कुछ ही दिन धर्य के साथ हर रोज शाम को 30 मिनट इस मंत्र का जाप करने से चमत्कारिक लाभ होगा और जीवन मे कोई भी अभाव नहीं रहेगा ये पक्की बात है। विश्वास ना हो तो आजमा के देखलो . इसके साथ यदि प्राण प्रतिष्ठित कलियंत्र भी धारण् कर लिया जाये तो बस फिर कहना ही क्या .

मंत्र

  ओम क्रीं काली काली कलकत्ते वाली !
 हरिद्वार मे आके डंका बजाओ ! धन के भंडार भरो मेरे सब काज करो       ना करो तो दुहाई !दुहाई राजा राम चन्द्र हनुमान वीर की !

आबिचार कर्म नाशक प्रयोग

अभिचार-कर्म नाशक :साबर साधना
साधना तो बेहद आसान है,साधना काल मे ब्रम्हचैर्यत्व आवश्यक है,माला रुद्राक्ष का हो,धोती और आसन भगवे एवं लाल रंग का हो,दीपक मे सिर्फ देशी घी होना चाहिये,लोबान का धूप जलाओ,साधना से पूर्व गणेश जी ,गुरुजी और दत्त-महाप्रभुजी का पूजन आवश्यक है॰
निम्न मंत्र का जाप किसि भी शनिवार से करे,यह साधना 11 दिन का है,साधना शाम के समय करना अनुकूल है,साधना मे नित्य 108 बार मंत्र जाप आवश्यक है,मंत्र का जब भी स्वयं के लिए प्रयोग करना हो तो 7 बार मंत्र बोलकर जल पे 3 बार फुक मारे और जल को ग्रहण करले दूसरे व्यक्ति के लिये भि यही विधान है,अगर प्रयोग आपके सामने किया जा रहा हो तो तुरंत ही ७ बार मंत्र बोलकर अपने सिने पे ३ फुक मारले...
तो तंत्र-मंत्र का असर नष्ट होता है और किया गया तंत्र-मंत्र करनेवाले पे वापस लौट जाता है......
मंत्र-
जल बाँधो,जलाजल बाँधो । जल के बाँधो कीरा,नौ नगर के राजा बाँधो,टोना के बाँधो जंजीरा । धरमदास कबीर, चकमक धुरी धर के काटे जाम के जूरी । काकर फूँके, मोर फूँके । मोर गुरु धरमदास के फूँके, जिहा से आय हस, वही चले जा, सत गुरु,सत कबीर ।

श्रीराम दुर्गम कवच

श्री राम दुर्गम

सभी प्रकार की किसी भी लौकिक अलौकिक बाधा को दूर करने में श्री राम दुर्गम का अचूक प्रभाव है सभी प्रकार की कामनाओ की भी पूर्ति करता है शत्रुओ से रक्षा होती है नित्य कम  से कम २१ पाठ करे ।

विनियोगः ॐ अस्य श्री राम दुर्गस्य् विश्वामित्र ऋषिः अनुष्टुप छन्दः श्री रामो देवता श्री राम प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।

श्री रामो रक्षतु प्राच्यां रक्षेदयाम्यां च लक्ष्मणः । प्रतीच्यां भरतो रक्षेद उदीच्यां शत्रु मर्दनः ॥१ ॥
ईशान्यां जानकी रक्षेद आग्नेयाम रविनन्दनः । विभीषणस्तु नैऋत्यां वायव्यां वायुनन्दनः ॥२ ॥
ऊर्ध्वं रक्षेन्महाविष्णुर्मध्यं रक्षेन्नृकेशरी । अधस्तु वामनः पातु सर्वतः पातु केशवः ॥ ३ ॥
सर्वतः कपिसेनाद्यैः सदा मर्कटनायकः । चतुर्द्वारं सदा रक्षेदच्चतुर्भिः कपिपुंगवैः ॥ ४॥
श्री रामाख्यं महादुर्गं विश्वामित्रकृतं शुभम । यः स्मरेद भय काले तु सर्व शत्रु विनाशनम ॥ ५ ॥
रामदुर्गं पठेद भक्त्या सर्वोपद्रवनाशनं । सर्वसम्पदप्रदम् नृणां च गच्छेद वैष्णव पदं ॥ ६ ॥

इति  श्री रामदुर्गं सम्पूर्णम ॥

नवग्रह शाबर मंत्र

श्री नवग्रह शाबर मंत्र
ॐ गुरु जी कहे, चेला सुने, सुन के मन में गुने, नव ग्रहों का मंत्र, जपते पाप काटेंते, जीव मोक्ष पावंते, रिद्धि सिद्धि भंडार भरन्ते, ॐ आं चं मं बुं गुं शुं शं रां कें चैतन्य नव्ग्रहेभ्यो नमः, इतना नव ग्रह शाबर मंत्र सम्पूरण हुआ, मेरी भगत गुरु की शकत, नव ग्रहों को गुरु जी का आदेश आदेश आदेश !
 मंत्र का १०० माला जप कर सिद्धि प्राप्त की जाती है. अगर नवरात्रों में दशमी तक १० माला रोज़ जप जाये तो भी सिद्धि होती है. दीपक घी का, आसन रंग बिरंगा कम्बल का, किसी भी समय, दिशा प्रात काल पूर्व, मध्यं में उत्तर, सायं काल में पश्चिम की होनी चाहिए. हवन किया जाये तो ठीक नहीं तो जप भी पर्याप्त है. रोज़ १०८ बार जपते रहने से किसी भी ग्रह की बाधा नहीं सताती है.

https://youtu.be/XfpY7YI9CHc

https://youtu.be/XfpY7YI9CHc