Sunday 4 January 2015

ऋद्धि-सिद्धि बुद्धि के प्रदाता गणपति

सर्व विघ्नों के हर्ता और ऋद्धि-सिद्धि बुद्धि के प्रदाता गणपति का चाहे कोई अनुष्ठान हो या किसी देवता की आराधना का प्रारम्भ या किसी भी उत्कृष्ट या साधारण लौकिक कार्य सभी में सर्वप्रथम इन्हीं का स्मरण, विधिवत् अर्चन और वंदन किया जाता हैं। गणेश जी की इस गरिमा के लिए रामचरित मानस में संत तुलसीदास जी ने लिखा है।
‘महिमा जासु जान गनराऊ प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ’। कार्य के आरम्भ के समय कहा भी जाता है कि श्री गणेश करें। हठ योग में मूलाधार चक्र को गणेश जी का प्रतीक माना जाता हैं और स्वस्तिक की चार भुजाओं के कोण इनके ही प्रतीक हैं। गणेश में ‘गण’ का अर्थ है, ‘वर्ग समूह’ और ‘ईश’ का अर्थ है स्वामी अर्थात् जो समस्त जीव जगत के ‘ईश’ हैं वही गणेश है ।
‘गणानां जीवजातानां य: ईश-स्वामी स: गणेश:। स्कंदपुराण के अनुसार मां पार्वती ने अपने शरीर की उबटन की बत्तियों से एक शिशु बनाकर उसमें प्राणों का संचार कर गण के रुप में उन्हें द्वार पर बैठा दिया। भगवान शिव को द्वार में प्रवेश नहीं करने देने पर गण और शिव में युद्ध हुआ। शिवजी ने गण का सिर काट कर द्वार के अंदर प्रवेश किया। पार्वती जी ने गण को पुन: जीवित करने के लिए शिवजी से कहा। शिव जी ने एक हाथी के शिशु के सिर को गणेश जी के मस्तक पर जोड़कर पुन: जीवित कर पुत्र रुप में स्वीकार किया। इससे ये गजानन कहलाए। ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार शनि की गणेश जी पर दृष्टि पडऩे के कारण उनका सिर धड़ से अलग होने पर भगवान विष्णु ने पुष्पभद्रानदी के अरण्य से एक गजशिश का मस्तक काटकर गणेश जी के मस्तक पर जमा दिया। कहा जाता है कि चन्द्रवार, स्वाति नक्षत्र, सिंह लग्न में पांच शुभ ग्रहों के एकत्रित होने पर भाद्र शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्नï काल में पार्वती जी के शोडषोपचार से इनकी पूजा करने से त्रिनयन भगवान गणेश प्रकट हुए। तंत्रशास्त्र के मंत्रों से गणपति को रिझाएं तंत्र शास्त्र में निम्न गणेश मंत्रों का जप अभीष्ट फल प्राप्ति में सहायक होता है- उच्छिष्ट गणपति मंत्र
मंत्र महोदधि अनुसार मंत्र इस प्रकार है:- ‘हस्तिपिशाचिलिखे स्वाहा।’
विनियोग, ऋषियादिन्यास, करन्यास, ध्यान पश्चात् सोने-चांदी आदि से निर्मित गणपति यंत्र या सफेद आक या लाल चंदन से निर्मित अंगूठे के बराबर गणपति की आकृति बनाकर रात्रि को भोजन के बाद लाल वस्त्र धारण कर निवेदित मोदक, गुड़, खीर या पान आदि खाते हुए कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी से शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तक उपर्युक्त मंत्र के सोलह हजार जप करने से सम्पत्ति, यश, रोजगार की प्राप्ति होती है। इस मंत्र का पांच हजार हवन करने से श्रेष्ठ पत्नी की प्राप्ति, दस हजार हवन करने से उत्तम रोजगार एवं रूद्रयामल तंत्र के अनुसार प्रतिदिन एक हजार जप करने से कार्यों में विघ्न दूर हो कर कठिनतम कार्य भी पूर्ण होते हैं। शक्ति विनायक मंत्र मंत्र महोदधि अनुसार मंत्र इस प्रकार है : ऊँ ह्मीं ग्रीं ह्मीं उपयुक्त मंत्र का पुरश्चरण चार लाख जप है। चतुर्थी से आरम्भ कर इसका दशांश हवन, तर्पण, मार्जन और ब्राह्मण भोजन पश्चात् घी सहित अन्न की आहुति से हवन करने पर रोजगार प्राप्ति, गन्ने के हवन से लक्ष्मी प्राप्ति, केला और नारियल के हवन से घर में सुख शांति प्राप्त होती है। हरिद्रा गणेश मंत्र ऊँ हुं गं ग्लौं हरिद्रागणपतये वर वरद सर्वजनहृदयं स्तम्भय स्तम्भय स्वाहा’ यह 32 अक्षरों का मंत्र है। इसका पुरश्चरण चार लाख जप है। पिसी हल्दी का शरीर में लेप कर हल्दी मिले हुए घी और चावल से दशांश हवन, तर्पण, मार्जन ब्राह्मण भोजन के पश्चात् लाजा के हवन से मनोवांछित विवाह एवं संतान प्राप्त होती है। शत्रु, चोर, जल, अग्नि आदि से रक्षा होती है। वाणी स्तम्भन एवं शत्रु से रक्षा होती है। ऋणहर्ता गणेश मंत्र कृष्णयामल तंत्र के अनुसार मंत्र इस प्रकार है:- ऊँ गणेश ऋणं छिन्धि वरेण्यं हुं नम: फट् ।’ उपर्युक्त मंत्र का दस हजार पुरश्चरण या 1 लाख जप से ऋण से मुक्ति एवं धन प्राप्ति होती है, घर में खुशहाली व शांति आती है। वक्रतुण्डाय गणेश मंत्र मंत्र महोदधि अनुसार मंत्र इस प्रकार है:- वक्रतुंडाय हुं । छह अक्षरों के इस मंत्र का पुरश्चरण छ: लाख जप है। अष्टद्रव्यों से दशांश हवन-तर्पण आदि के बाद घी मिला कर अन्न की आहुति देने से दरिद्रता दूर होकर धन की प्राप्ति होती है। वीरभद्रो तंत्र के अनुसार ऊँ गं गणपतये नम:’ मंत्र का जाप एवं गणेश अर्थवशीर्ष का नित्य पाठ विद्या प्रदान करने वाला, विध्न का नाश एवं समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला है। इन मंत्रों के जाप से गणेश जी होंगे प्रसन्न लक्ष्मी प्राप्ति के लिए सिद्धि विनायक गणपति की पूजा के बाद ऊँ श्रीं गं सौभाग्य गणपतये वरवरद सर्वाजनं मे वशमानयस्वाहा’ मंत्र के नित्य एक माला के जप करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। संतान प्राप्ति के लिए श्री गणपति की मूर्ति पर संतान प्राप्ति की इच्छुक महिला प्रतिदिन स्नानादि से निवृत्त होकर एक माह तक बिल्व फल चढ़ाकर ऊँ पार्वती प्रियनंदनाय नम:’ मंत्र की 11 माला प्रतिदिन जपने से संतान प्राप्ति होती है। स्वास्थ्य लाभ के लिए एकदंताय की मूर्ति के आगे घी का दीपक जला कर ऊँ ह्रीं ग्रीं हीं’ मंत्र की प्रतिदिन 11 मालाओं के जप करने से व्यक्ति रोग मुक्त होकर शीघ्र ही आरोग्यता प्राप्त करता है। दांपत्य सुखद बनाने के लिए विनायकाय की प्रतिमा के आगे शुद्ध घृत का दीपक जलाकर नित्य ऊँ गणप्रीति विवर्धनाय नम:’ मंत्र की एक माला प्रतिदिन जप करने से पति-पत्नी का आपसी मतभेद शीघ्र दूर होकर मधुर संबंध स्थापित होते हैं। क्लेश दूर करने के लिए गजाननाय की मूर्ति पर जल व पुष्प चढ़ाकर ऊँ विघ्न विनाशिन्यै नम:’ मंत्र की प्रतिदिन 11 मालाओं के जप करने से शीघ्र क्लेश दूर होते हैं। समृद्धि-वैभव प्राप्ति के लिए भालचंद्राय को प्रतिदिन जल चढ़ाकर ऊँ ऐश्वर्यदाय नम:’ मंत्र की प्रतिदिन 11 मालाओं के जप करने से शीघ्र समृद्धि एवं वैभव की प्राप्ति होती है। साक्षात्कार में सफलता के लिए गणाध्यक्षाय की प्रतिमा पर दूब चढ़ाकर प्रतिदिन ऊँ गुणप्राज्ञाये नम:’ मंत्र की माला का जप करने से साक्षात्कार में प्राय: निश्चित ही सफलता मिलती है। व्यापार वृद्धि के लिए अपने प्रतिष्ठान पर विनायक प्रतिमा की स्थापना कर प्रतिदिन धूप-दीप के साथ हरे मूंग चढ़ाकर ऊँ विष्णुप्रियाय नम:’ मंत्र की एक माला जाप किया करें। व्यापार में आश्चर्यजनक प्रगति होती जाएगी। सौभाग्य वृद्धि के लिए गज कर्णकाय की प्रतिमा पर प्रतिदिन पुष्प माला चढ़ा कर ऊँ गजाननाय नम:’ मंत्र की एक माला जपने से सुख-सौभाग्य की वृद्धि होती है। कार्य सिद्धि हेतु गजानन की नियमित विधि-विधान से पूजा करके लड्डुओं के साथ ऊँ मोदक प्रियाय नम:’ मंत्र के जप करने से मनोवांछित कार्यों में सिद्धि प्राप्त होती है। गणेश चतुर्थी को चंद्रमा का दर्शन से बचाव गणेश चतुर्थी को चंद्रमा का दर्शन करने से झूठा कलंक लगता है। यदि अनजाने में चंद्रमा दिख जाए तो निम्न मंत्र का जाप करना चाहिए। यह दोष का शमनार्थ है : सिंह प्रसेनम् अवधी, सिंहो जाम्बवता हत:। सुकुमारक मा रोदिस्तव ह्येश स्वमन्ते:।। पूजन विधि गणेश जी का पूजन सर्वदा पूर्वमुखी या उत्तरमुखी होकर करें। सफेद आक, लाल चंदन, चांदी या मूंगे की स्वयं के अंगूठे के आकार जितनी निर्मित प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति शुभ होती है। साधारण पूजा के लिए पूजन सामग्री में गंध, कुंकुम, जल, दीपक, पुष्प, माला, दूर्वा, अक्षत, सिंदूर, मोदक, पान लें। ब्रह्यवैवर्तपुराण के अनुसार गणेशजी को तुलसी पत्र निषिद्व है। सिंदूर का चोला चढ़ा कर चांदी का वर्क लगाएं और गणेश जी का आह्वान करें। गजाननं भूतगणांदिसेवितं कपित्थजम्बूफल चारुभक्षणम्। उमासूतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम्। गणेश संकट स्तोत्र का पाठ कर मोदक का भोग लगाएं एवं आरती करें। घर के बाहरी द्वार के ऊध्र्वभाग में स्थित गणेश प्रतिमा की पूजा करने पर घर मंगलयुक्त हो जाता हैं। -

बगलामुखी साधना

किन कार्यों के लिए उपयोगी है बगलामुखी साधना  महाविद्याओं तथा उनकी उपासना पद्धतियों के बारे में संहिताओं, पुराणों तथा तंत्र ग्रंथों में बहुत कुछ दिया गया है। बगलामुखी देवी की गणना दस महाविद्याओं में है तथा संयम-नियमपूर्वक बगलामुखी के पाठ-पूजा, मंत्र जाप, अनुष्ठान करने से उपासक को सर्वाभीष्ट की सिद्धि प्राप्त होती है। शत्रु विनाश, मारण-मोहन, उच्चाटन, वशीकरण के लिए बगलामुखी से बढ़ कर कोई साधना नहीं है। मुकद्दमे में इच्छानुसार विजय प्राप्ति कराने में तो यह रामबाण है। बाहरी शत्रुओं की अपेक्षा आंतरिक शत्रु अधिक प्रबल एवं घातक होते हैं। अतः बगलामुखी साधना की, मानव कल्याण, सुख-समृद्धि हेतु, विशेष उपयोगिता दृष्टिगोचर होती है। यथेच्छ धन प्राप्ति, संतान प्राप्ति, रोग शांति, राजा को वश में करने हेतु कारागार (जेल) से मुक्ति, शत्रु पर विजय, अ ा क षर्् ा ण् ा , िव द्व े ष् ा ण् ा , मारण आदि प्रयोगों हेतु अ न ा िद काल से बगलामुखी स ा ध् ा न ा द्वारा लोगों की इच्छा पूर्ति होती रही है। बगलामुखी के मंदिर वाराणसी (उत्तरप्रदेश) हिमाचलप्रदेश तथा दतिया (मध्यप्रदेश) में हैं, जहां इच्छित मनोकामना हेतु जा कर लोग दर्शन करते हैं, साधना करते हैं। मंत्र महोदधि में बगलामुखी साधना के बारे में विस्तार से दिया हुआ है। इसके प्रयोजन, मंत्र जप, हवन विधि एवं उपयुक्त सामान की जानकारी, सर्वजन हिताय, इस प्रकार है: उद्देश्य: धन लाभ, मनचाहे व्यक्ति से मिलन, इच्छित संतान की प्राप्ति, अनिष्ट ग्रहों की शांति, मुकद्दमे में विजय, आकर्षण, वशीकरण के लिए मंदिर में, अथवा प्राण प्रतिष्ठित बगलामुखी यंत्र के सामने इसके स्तोत्र का पाठ, मंत्र जाप, शीघ्र फल प्रदान करते हंै। जप स्थान: बगलामुखी मंत्र जाप अनुष्ठान के लिए नदियों का संगम स्थान, पर्वत शिखर, जंगल, घर का कोई भी स्थान, जहां शुद्धता हो, उपयुक्त रहता है। परंतु खुले स्थान (आसमान के नीचे) पर यह साधना नहीं करनी चाहिए। खुला स्थान होने पर ऊपर कपड़ा, चंदोबा तानना चाहिए। वस्त्र: इस साधना के समय केवल एक वस्त्र पहनना निषेध है तथा वस्त्र पीले रंग के होने चाहिएं, जैसे पीली धोती, दुपट्टा, अंगोछा ले कर साधना करनी चाहिए। पुष्प एवं माला: बगलामुखी साधना में सभी वस्तु पीली होनी चाहिएं, यथा पीले पुष्प, जप हेतु हल्दी की गांठ की माला, पीला आसन। भोजन: दूध, फलाहार आदि, केसर की खीर, बेसन, केला, बूंदियां, पूरी-सब्जी आदि। मंत्र एवं जप विधान: साधक अपने कार्य के अनुसार ¬ ींीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्नां कीलय बुद्धिं विनाशय ींीं ¬ स्वाहा। मंत्रा के 1 लाख, अथवा 10 हजार जाप, 7, 9, 11, या 21 दिन के अंदर पूरे करें। किसी शु( स्थान पर चैकी पर, अथवा पाटे पर पीला कपड़ा बिछाएं। उसपर पीले चावल से अष्ट दल कमल बनाएं। उसपर मां बगलामुखी का चित्र, या यंत्र स्थापित कर, षोडशी का पूजन कर, जप आरंभ करना चाहिए। ध्यान रहे कि प्रथम दिन जितनी संख्या में जप करें, प्रतिदिन उतने ही जप करने चाहिएं; कम, या अधिक जप नहीं। हवन: जप संख्या का दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन तथा मार्जन का दशांश् ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए। इस प्रकार साधना करने से सिद्धि प्राप्त होती है। यथेच्छ धन प्राप्ति: चावल, तिल एवं दूध मिश्रित खीर से हवन करने पर इच्छा अनुसार धन लाभ होता है। संतान प्राप्ति: अशोक एवं करवीर के पत्रों द्वारा हवन से संतान सुख मिलता है। शत्रु पर विजय: सेमर के फलों के हवन से शत्रु पर विजय प्राप्त होती है। जेल से मुक्ति: गूगल के साथ तिल मिला कर हवन करने से कैदी जेल से छूट जाता है। रोग शांति हेतु: 4 अंगुल की रेडी़ की लकडियां, कुम्हार के चाक की मिट्टी तथा शहद, घी, बूरा (शक्कर) के साथ लाजा (खील) मिला कर हवन करने से सभी प्रकार के रोगों में शांति मिलती है। वशीकरण: सरसों के हवन से वशीकरण होता है। सब वश में हो जाते हैं। आकर्षण: शहद, घी, शक्कर के साथ नमक से हवन करने पर आकर्षण होता है। इस प्रकार, मनोकामना हेतु, श्रद्धा-विश्वास से जप द्वारा कार्य सिद्ध होते हैं।

श्री हनुमान साधना

श्री हनुमान साधना एवं मंत्रों के संदर्भ में 

मंत्र महार्णव, मंत्र महोदधि, हनुमदोपासना, श्री विद्यार्णव आदि ग्रंथों में कई प्रयोग वर्णित हैं। कलि युग में हनुमान साधना समस्त बाधाओं, कष्टों और अड़चनों को तुरंत मिटाने में पूर्णतः सहायक है। हनुमान शक्तिशाली, पराक्रमी, संकटों का नाश करने वाले और दुःखों को दूर करने वाले महावीर हैं। इनके नाम का स्मरण ही अपने आप में सहायता और शक्ति प्रदान करने वाला है। शास्त्रा भगवान श्री हनमुनजी से संबंधित अनेक साधनाएं वर्णित की गयी हैं, जो अलग-अलग परिस्थितियों को ध्यान में रख कर रची गयी हैं। यह उनकी विराटता और उनके वरदायक स्वरूप का ही उदाहरण है। शत्रु भय हो, या आकस्मिक राज्य बाधा, अथवा भूत-प्रेत आदि का प्रकोप, प्रत्येक स्थिति के लिए अलग-अलग ढंग से मंत्रों और होम की व्यवस्था बनायी गयी है। इन्हीं सैकड़ों प्रयोगों में से आयु, धन-वृद्धि एवं समस्त प्रकार के उपद्रवों को दूर करने के संबंध में एक अचूक मंत्र ‘‘अष्टादशाक्षर मंत्र’’ का उल्लेख मिलता है, जिसका उपयोग कर कोई भी व्यक्ति शीघ्र लाभ प्राप्त कर सकता है। इस अष्टादशाक्षर मंत्र के संदर्भ में मंत्र महोदधि में कहा गया है। यः कपी श् सदा गे ह पूजयेज्जपतत्परः। आयुर्लक्ष्म्यौ प्रवद्र्धेते तस्य नश्यन्त्युपद्रवा।। (त्रयोदशः तरंग: 97) अर्थात, जो व्यक्ति अपने घर में सदैव हनुमान जी का पूजन करता है और इस मंत्र का जप करता है, उसकी आयु तथा लक्ष्मी (संपत्ति) नित्य बढ़ती रहती है तथा उसके समस्त उप्रदव अपने आप नष्ट हो जाते हैं। वास्तव में हनुमान जी समस्त अभीष्ट फलों को प्रदान करने वाले श्रेष्ठ देवता हैं:- ‘‘हनुमान देवता प्रोक्तः सर्वाभीष्टफलप्रदः’’ (श्री विद्यार्णक 

अष्टादशाक्षर मंत्र: ‘नमो भगवते आजनेयाय महाबलाय स्वाहा’’। इस मंत्र के ईश्वर ऋषि हैं, अनुष्टुप छंद हैं, हनुमान देवता हैं, हुं बीज है तथा अग्निप्रिया (स्वाहा) शक्ति है। मंत्र संख्या: दस हजार पुरश्चरण: उक्त जप का तिलों से दशांश होम करना चाहिये। साधना विधि: सर्वप्रथम प्राण प्रतिष्ठित (चैतन्य) हनुमान यंत्र को प्राप्त कर, किसी मंगलवार (विशेष कर शुक्ल पक्ष) की रात्रि से इस साधना को दस दिन के लिए प्रारंभ करें। इसमें प्रतिदिन एक निश्चित समय पर ही पूजन एवं दस माला जप करें। इस साधना में स्नान कर, लाल वस्त्र धारण कर के, दक्षिणाभिमुख हो कर लाल रंग के ऊनी आसन पर बैठ कर पूजन एवं जप करना आवश्यक है। जप हेतु मंगे की माला, या लाल चंदन की माला, या रुद्राक्ष की माला आवश्यक है। सर्वप्रथम हनुमान यंत्र को लकड़ी की चैकी पर, लाल वस्त्र बिछा कर मध्य में ताम्र पात्र में स्थापित करें। गुरु का ध्यान कर घी का दीपक तथा धूप बत्ती जलाएं। अब दिये गये क्रमानुसार पूजन प्रारंभ करें: विनियोग: दायें हाथ में जल, पुष्प तथा चावल ले कर, निम्न मंत्र को बोल कर, किसी पात्र में हाथ की सामग्री छोड दें। ‘अस्य श्री हनुमन्मन्त्रस्य ईश्वर ऋषिरनुष्टुप् छन्दः हनुमान देवता हुं बीजं स्वाहा शक्तिरात्मानोऽभीष्टसिद्ध्यर्थं जपे विनियोगः।’’ षङ्गन्यास: अब निम्न क्रमानुसार न्यास विधि करें: Omआ जनेयाय हृदयाय नमः, Omरुद्रमूर्तये शिरसे स्वाहा, Omवायुपुत्राय शिखायै वषट्, Omअग्निगर्भाय कवचाय हुम्, Omरामदूताय नेत्रत्रयाय वौषट्, Omब्रह्मास्त्रविनिवारणाय अस्त्राय फट्।। ध्यान मंत्र: दाहिने हाथ में सिंदूर से रंगे चावल तथा लाल पुष्प ले कर, निम्न मंत्र बोल कर, ‘हनुमान यंत्र’ पर छोड़ देवें। साधक संस्कृत न बोल सके, तो हिंदी का भावार्थ बोलें। ‘‘दहनतप्तसुवर्णसमप्रभं भयहरं हृदये विहिता Ûजलिम्। श्रवणकुण्डलशोभिमुखाम्बुजं नमत वानरराजमिहाद्भुतम्।।’’ भावार्थ: मैं तपाये गये सुवर्ण के समान जगमगाते हुए, भय को दूर करने वाले, हृदय पर अंजलि बांधे हुए, कानों में लटकते कुंडलों से शोभायमान मुख कमल वाले, अद्भुत स्वरूप वाले वानर राज को प्रणाम करता हूं। अब हनुमान यंत्र को शुद्ध जल से स्नान करा कर यज्ञोपवीत अर्पित करें। इसके बाद यंत्र को तिल के तेल में मिश्रित सिंदूर का तिलक अर्पित करें तथा अंगुली पर बचे हुए सिंदुर को अपने मस्तिष्क पर तिलक के रूप में धारण करें। श्री हनुमान यंत्र पर लाल पुष्पों की माला अर्पित कर नैवेद्य रूप में गुड़, घी तथा आटे से बनी रोटी को मिला कर बनाये गये लड्डू अर्पित करें। श्री विग्रह (यंत्र) को फल अर्पित कर, मुखशुद्धि हेतु पान, सुपाड़ी, लौंग तथा इलायची अर्पित करें। अब उसी स्थान पर बैठ कर ही अष्टादशाक्षर मंत्र की 10 माला, यानी एक हजार जप कर, भगवान हनुमान जी को षाष्टांग प्रणाम करें। पूजन काल में भूलवश यदि त्रुटि रह गयी हो, तो क्षमा मांगें। यही क्रम 10 दिन करना है। दसवें दिन, किसी योग्य विद्वान के सान्निध्य में, तिलों से दशांश होम कर, ब्राह्मण को भोजन-दक्षिणा दे कर, संतुष्ट कर, विदा करें। विशेष: अर्पित नैवेद्य को अगले दिन हटा कर किसी पात्र में इकट्ठा करते रहें। साधना पूर्ण होने के अगले दिन एकत्रित नैवेद्य को किसी गरीब को दें। इस प्रकार उक्त दिव्य मंत्र सिद्ध हो जाता है। सिद्ध मंत्र से कामना पूर्ति प्रयोग: 1-धन एवं आयु वृद्धि के साथ-साथ समस्त प्रकार के उपद्रवों की शांति हेतु नित्य हनुमान जी की आराधना एवं एक माला जप आजीवन करते रहें। 2-अल्पकालिक रोगों से पीड़ित होने पर, इंद्रियों को वश में रख कर, केवल रात्रि में भोजन करें तथा तीन दिन 108 संख्या में इस मंत्र का जप करें, तो अल्पकालिक रोगों से छुटकारा मिल जाता है। 3-असाध्य एवं दीर्घकालीन रोगों से मुक्ति पाने के लिए प्रतिदिन एक हजार की संख्या में जप आवश्यक है। 4-‘‘महारोगनिवृत्त्यै तु सहस्रं प्रत्यहं जपेत्’’ हनुमान जी का ध्यान कर मंत्र का जप करता हुआ व्यक्ति अपना अभीष्ट कार्य पूर्ण कर शीघ्र ही घर लौट आता है। 5-‘‘प्रयाणसमये ध्यायन्हनुमन्तं मनुं जपन्।साधयित्वाग्रहं व्रजेत्।।’’ इस मंत्र के नित्य जपने से पराक्रम में वृद्धि होती है तथा सोते समय चोरों से रक्षा होती है एवं दुःस्वप्न भी दिखायी नहीं देते हैं। साथ ही उपद्रवी तत्वों से रक्षा होती है। साधना के आवश्यक नियम: 1-पूर्ण साधना काल में अखंड ब्रह्मचर्य का पालन अवश्य करें। 2-मंत्र जप करते समय दृष्टि सदैव यंत्र पर ही टिकी रहे। 3-शयन साधना स्थल पर ही धरती पर करें। 4-इस साधना में घी से एक या पांच बत्तियों वाला दीपक जलाएं। 5-भोजन सिर्फ एक बार ही करें। वास्तव में विपत्तियों से छुटकारा तथा सुख-समुद्धि में वृद्धि हेतु यह प्रयोग अपने आप में अचूक और अद्वितीय है। अ ज नीगभर्स म्भतू कपीन्दस्र चिवात्मम रामप्रियं नमस्तुभ्यं हनुमन् रक्ष सर्वदा।।

नीलकंठ अघोर मंत्र स्तोत्र

नीलकंठ अघोर मंत्र स्तोत्र
संकल्प:(विनियोग )
 ओम अस्य श्री नीलकंठ स्तोत्र-मन्त्रस्य ब्रह्म ऋषि अनुष्टुप छंद :नीलकंठो सदाशिवो देवता ब्रह्म्बीजम पार्वती शक्ति:शिव इति कीलकं मम काय जीव स्वरक्षनार्थे सर्वारिस्ट विनाशार्थेचतुर्विद्या पुरुषार्थ सिद्धिअर्थे भक्ति-मुक्ति
सिद्धिअर्थे श्री परमेश्वर प्रीत्यर्थे च जपे पाठे विनियोग:
>मंत्र प्रयोग<
ओम नमो नीलकंठाय श्वेत शरीराय नमःसर्पलिंकृत भुषनाय नमः भुजंग परिकराय नाग यग्नोपविताय नमः,अनेक
काल मृत्यु विनाशनाय नमः,युगयुगान्त काल प्रलय प्रचंडाय नमः ज्वलंमुखाय नमः दंष्ट्रा कराल घोर रुपाय नमः
हुं हुं फट स्वाहा,ज्वालामुख मंत्र करालाय नमः,प्रचंडार्क सह्स्त्रान्शु प्रचंडाय नमः कर्पुरामोद परिमलांग सुगंधीताय
नमः इन्द्रनील महानील वज्र वैदूर्यमणि माणिक्य मुकुट भूषणाय नमः श्री अघोरास्त्र मूल मन्त्रस्य नमः
ओम ह्रां स्फुर स्फुर ओम ह्रीं स्फुर स्फुर ओम ह्रूं स्फुर स्फुर अघोर घोरतरस्य नमः रथ रथ तत्र तत्र चट चट कह कह
मद मदन दहनाय नमः
श्री अघोरास्य मूल मन्त्राय नमः ज्वलन मरणभय क्षयं हूं फट स्वाहा अनंत घोर ज्वर मरण भय कुष्ठ व्याधि विनाशनाय नमः डाकिनी शाकिनी ब्रह्मराक्षस दैत्य दानव बन्धनाय नमः अपर पारभुत वेताल कुष्मांड सर्वग्रह विनाशनाय नमः यन्त्र कोष्ठ करालाय नमः सर्वापद विच्छेदाय नमः हूं हूं फट स्वाहा आत्म मंत्र सुरक्ष्नाय नमः
ओम ह्रां ह्रीं ह्रूं नमो भुत डामर ज्वाला वश भूतानां द्वादश भूतानां त्रयोदश भूतानां पंचदश डाकिनीना हन् हन् दह दह
नाशन नाशन एकाहिक द्याहिक चतुराहिक पंच्वाहिक व्यप्ताय नमः
आपादंत सन्निपात वातादि हिक्का कफादी कास्श्वासादिक दह दह छिन्दि छिन्दि श्री महादेव निर्मित स्तम्भन मोहन वश्यआकर्षणों उच्चाटन किलन उद्दासन इति षटकर्म विनाशनाय नमः
अनंत वासुकी तक्षक कर्कोटक शंखपाल विजय पद्म महापद्म एलापत्र नाना नागानां कुलकादी विषं छिन्धि छिन्धि भिन्धि भिन्धि प्रवेशाये शीघ्रं शीघ्रं हूं हूं फट स्वाहा
वातज्वर मरणभय छिन्दि छिन्दि हन् हन्:भुतज्वर प्रेतज्वर पिशाचाज्वर रात्रिज्वर शीतज्वर सन्निपातज्वर ग्रह
ज्वर विषमज्वर कुमारज्वर तापज्वर ब्रह्मज्वर विष्णुज्वर महेशज्वर आवश्यकज्वर कामाग्निविषय ज्वर मरीची- ज्वारादी प्रबल दंडधराय नमः परमेश्वराय नमः
आवेशय आवेशय शीघ्रं शीघ्रं हूं हूं फट स्वाहा चोर मृत्यु ग्रह व्यघ्रासर्पादी विषभय विनाशनाय नमः मोहन मन्त्राणा
पर विद्या छेदन मन्त्राणा, ओम ह्रां ह्रीं ह्रूं कुली लीं लीं हूं क्ष कूं कूं हूं हूं फट स्वाहा, नमो नीलकंठाय नमः दक्षाध्वरहराय
नमः श्री नीलकंठाय नमः ओम
>सूचना <
पाठ जब शुरू हो उन दिनों में एक कप गाय के दूध में एक चम्मच गाय के घी का सेवन करना ही चाहिए जिससे शारीर में बढ़ने वाली गर्मी पर काबू रख सके वर्ना गुदामार्ग से खून बहार आने की संभावना हो सकती हैं इस मंत्र को शिव मंदिर में जाकर शिव जी का पंचोपचार पूजन करके करना चाहिए,कमसे कम एक और ज्यादा से ज्यादा तीन पाठ करने चाहिए १०८ पाठ करने पर यह सिद्ध हो जाता हैं.

श्री त्रिपुर भैरवी कवचम्

श्री त्रिपुर भैरवी कवचम्
।। श्रीपार्वत्युवाच ।।
देव-देव महा-देव, सर्व-शास्त्र-विशारद ! कृपां कुरु जगन्नाथ ! धर्मज्ञोऽसि महा-मते ! ।
भैरवी या पुरा प्रोक्ता, विद्या त्रिपुर-पूर्विका । तस्यास्तु कवचं दिव्यं, मह्यं कफय तत्त्वतः ।
तस्यास्तु वचनं श्रुत्वा, जगाद् जगदीश्वरः । अद्भुतं कवचं देव्या, भैरव्या दिव्य-रुपि वै ।
।। ईश्वर उवाच ।।
कथयामि महा-विद्या-कवचं सर्व-दुर्लभम् । श्रृणुष्व त्वं च विधिना, श्रुत्वा गोप्यं तवापि तत् ।
यस्याः प्रसादात् सकलं, बिभर्मि भुवन-त्रयम् । यस्याः सर्वं समुत्पन्नं, यस्यामद्यादि तिष्ठति ।
माता-पिता जगद्-धन्या, जगद्-ब्रह्म-स्वरुपिणी । सिद्धिदात्री च सिद्धास्या, ह्यसिद्धा दुष्टजन्तुषु ।
सर्व-भूत-प्रियङ्करी, सर्व-भूत-स्वरुपिणी । ककारी पातु मां देवी, कामिनी काम-दायिनी ।
एकारी पातु मां देवी, मूलाधार-स्वरुपिणी । ईकारी पातु मां देवी, भूरि-सर्व-सुख-प्रदा ।
लकारी पातु मां देवी, इन्द्राणी-वर-वल्लभा । ह्रीं-कारी पातु मां देवी, सर्वदा शम्भु-सु्न्दरी ।
एतैर्वर्णैर्महा-माया, शाम्भवी पातु मस्तकम् । ककारे पातु मां देवी, शर्वाणी हर-गेहिनी ।
मकारे पातु मां देवी, सर्व-पाप-प्रणाशिनी । ककारे पातु मां देवी, काम-रुप-धरा सदा ।
ककारे पातु मां देवी, शम्बरारि-प्रिया सदा । पकारे पातु मां देवी, धरा-धरणि-रुप-धृक् ।
ह्रीं-कारी पातु मां देवी, अकारार्द्ध-शरीरिणी । एतैर्वर्णैर्महा-माया, काम-राहु-प्रियाऽवतु ।
मकारः पातु मां देवी ! सावित्री सर्व-दायिनी । ककारः पातु सर्वत्र, कलाम्बर-स्वरुपिणी ।
लकारः पातु मां देवी, लक्ष्मीः सर्व-सुलक्षणा । ह्रीं पातु मां तु सर्वत्र, देवी त्रि-भुवनेश्वरी ।
एतैर्वर्णैर्महा-माया, पातु शक्ति-स्वरुपिणी । वाग्-भवं मस्तकं पातु, वदनं काम-राजिका ।
शक्ति-स्वरुपिणी पातु, हृदयं यन्त्र-सिद्धिदा । सुन्दरी सर्वदा पातु, सुन्दरी परि-रक्षतु ।
रक्त-वर्णा सदा पातु, सुन्दरी सर्व-दायिनी । नानालङ्कार-संयुक्ता, सुन्दरी पातु सर्वदा ।
सर्वाङ्ग-सुन्दरी पातु, सर्वत्र शिव-दायिनी । जगदाह्लाद-जननी, शम्भु-रुपा च मां सदा ।
सर्व-मन्त्र-मयी पातु, सर्व-सौभाग्य-दायिनी । सर्व-लक्ष्मी-मयी देवी, परमानन्द-दायिनी ।
पातु मां सर्वदा देवी, नाना-शङ्ख-निधिः शिवा । पातु पद्म-निधिर्देवी, सर्वदा शिव-दायिनी ।
दक्षिणामूर्तिर्मां पातु, ऋषिः सर्वत्र मस्तके । पंक्तिशऽछन्दः-स्वरुपा तु, मुखे पातु सुरेश्वरी ।
गन्धाष्टकात्मिका पातु, हृदयं शाङ्करी सदा । सर्व-सम्मोहिनी पातु, पातु संक्षोभिणी सदा ।
सर्व-सिद्धि-प्रदा पातु, सर्वाकर्षण-कारिणी । क्षोभिणी सर्वदा पातु, वशिनी सर्वदाऽवतु ।
आकर्षणी सदा पातु, सम्मोहिनी सर्वदाऽवतु । रतिर्देवी सदा पातु, भगाङ्गा सर्वदाऽवतु ।
माहेश्वरी सदा पातु, कौमारी सदाऽवतु । सर्वाह्लादन-करी मां, पातु सर्व-वशङ्करी ।
क्षेमङ्करी सदा पातु, सर्वाङ्ग-सुन्दरी तथा । सर्वाङ्ग-युवतिः सर्वं, सर्व-सौभाग्य-दायिनी ।
वाग्-देवी सर्वदा पातु, वाणिनी सर्वदाऽवतु । वशिनी सर्वदा पातु, महा-सिद्धि-प्रदा सदा ।
सर्व-विद्राविणी पातु, गण-नाथः सदाऽवतु । दुर्गा देवी सदा पातु, वटुकः सर्वदाऽवतु ।
क्षेत्र-पालः सदा पातु, पातु चावीर-शान्तिका । अनन्तः सर्वदा पातु, वराहः सर्वदाऽवतु ।
पृथिवी सर्वदा पातु, स्वर्ण-सिंहासनं तथा । रक्तामृतं च सततं, पातु मां सर्व-कालतः ।
सुरार्णवः सदा पातु, कल्प-वृक्षः सदाऽवतु । श्वेतच्छत्रं सदा पातु, रक्त-दीपः सदाऽवतु ।
नन्दनोद्यानं सततं, पातु मां सर्व-सिद्धये । दिक्-पालाः सर्वदा पान्तु, द्वन्द्वौघाः सकलास्तथा ।
वाहनानि सदा पान्तु, अस्त्राणि पान्तु सर्वदा । शस्त्राणि सर्वदा पान्तु, योगिन्यः पान्तु सर्वदा ।
सिद्धा सदा देवी, सर्व-सिद्धि-प्रदाऽवतु । सर्वाङ्ग-सुन्दरी देवी, सर्वदा पातु मां तथा ।
आनन्द-रुपिणी देवी, चित्-स्वरुपां चिदात्मिका । सर्वदा सुन्दरी पातु, सुन्दरी भव-सुन्दरी ।
पृथग् देवालये घोरे, सङ्कटे दुर्गमे गिरौ । अरण्ये प्रान्तरे वाऽपि, पातु मां सुन्दरी सदा ।
।। फल-श्रुति ।।
इदं कवचमित्युक्तो, मन्त्रोद्धारश्च पार्वति ! य पठेत् प्रयतो भूत्वा, त्रि-सन्ध्यं नियतः शुचिः ।
तस्य सर्वार्थ-सिद्धिः स्याद्, यद्यन्मनसि वर्तते । गोरोचना-कुंकुमेन, रक्त-चन्दनेन वा ।
स्वयम्भू-कुसुमैः शुक्लैर्भूमि-पुत्रे शनौ सुरै । श्मशाने प्रान्तरे वाऽपि, शून्यागारे शिवालये ।
स्व-शक्त्या गुरुणा मन्त्रं, पूजयित्वा कुमारिकाः । तन्मनुं पूजयित्वा च, गुरु-पंक्तिं तथैव च ।
देव्यै बलिं निवेद्याथ, नर-मार्जार-शूकरैः । नकुलैर्महिषैर्मेषैः, पूजयित्वा विधानतः ।
धृत्वा सुवर्ण-मध्यस्थं, कण्ठे वा दक्षिणे भुजे । सु-तिथौ शुभ-नक्षत्रे, सूर्यस्योदयने तथा ।
धारयित्वा च कवचं, सर्व-सिद्धिं लभेन्नरः ।
कवचस्य च माहात्म्यं, नाहं वर्ष-शतैरपि । शक्नोमि तु महेशानि ! वक्तुं तस्य फलं तु यत् ।
न दुर्भिक्ष-फलं तत्र, न चापि पीडनं तथा । सर्व-विघ्न-प्रशमनं, सर्व-व्याधि-विनाशनम् ।
सर्व-रक्षा-करं जन्तोः, चतुर्वर्ग-फल-प्रदम्, मन्त्रं प्राप्य विधानेन, पूजयेत् सततः सुधीः ।
तत्रापि दुर्लभं मन्ये, कवचं देव-रुपिणम् ।
गुरोः प्रसादमासाद्य, विद्यां प्राप्य सुगोपिताम् । तत्रापि कवचं दिव्यं, दुर्लभं भुवन-त्रयेऽपि ।
श्लोकं वास्तवमेकं वा, यः पठेत् प्रयतः शुचिः । तस्य सर्वार्थ-सिद्धिः, स्याच्छङ्करेण प्रभाषितम् ।
गुरुर्देवो हरः साक्षात्, पत्नी तस्य च पार्वती । अभेदेन यजेद् यस्तु, तस्य सिद्धिरदूरतः ।
।। इति श्री रुद्र-यामले भैरव-भैरवी-सम्वादे-श्रीत्रिपुर-भैरवी-कवचं सम्पूर्णम् ।।

हनुमान जी के दिव्य मंत्र

हनुमान जी के दिव्य मंत्र
१- “ॐ नमो हनुमते पाहि पाहि एहि एहि सर्वभूतानां डाकिनी शाकिनीनां सर्वविषयान आकर्षय आकर्षय मर्दय मर्दय छेदय छेदय अपमृत्यु प्रभूतमृत्यु शोषय शोषय ज्वल प्रज्वल भूतमंडलपिशाचमंडल निरसनाय भूतज्वर प्रेतज्वर चातुर्थिकज्वर माहेशऽवरज्वर छिंधि छिंधि भिन्दि भिन्दि अक्षि शूल कक्षि शूल शिरोभ्यंतर शूल गुल्म शूल पित्त शूल ब्रह्मराक्षस शूल प्रबल नागकुलविषंनिर्विषं कुरु कुरु स्वाहा ।”
२- ” ॐ ह्रौं हस्फ्रें ख्फ्रें हस्त्रौं हस्ख्फें हसौं हनुमते नमः ।”
इस मंत्र को २१ दिनों तक बारह हजार जप प्रतिदिन करें फिर दही, दूध और घी मिलाते हुए धान का दशांश आहुति दें । यह मंत्र सिद्ध होकर पूर्ण सफलता देता है ।
३- “ॐ दक्षिणमुखाय पञ्चमुखहनुमते कराल वदनाय नरसिंहाय, ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रै ह्रौं ह्रः सकल भूत-प्रेतदमनाय स्वाहा ।”
(जप संख्या दस हजार, हवन अष्टगंध से)
४- “ॐ हरिमर्कट वामकरे परिमुञ्चति मुञ्चति श्रृंखलिकाम् ।”
इस मन्त्र को दाँये हाथ पर बाँये हाथ से लिखकर मिटा दे और १०८ बार इसका जप करें प्रतिदिन २१ दिन तक । लाभ – बन्धन-मुक्ति ।
५- “ॐ यो यो हनुमन्त फलफलित धग्धगिति आयुराष परुडाह ।”
प्रत्येक मंगलवार को व्रत रखकर इस मंत्र का २५ माला जप करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है । इस मंत्र के द्वारा पीलिया रोग को झाड़ा जा सकता है ।
६- “ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्त्रौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं ।”
यह ११ अक्षरों वाला मंत्र अति फलदायी है, इसे ११ हजार की संख्या में प्रतिदिन जपना चाहिए ।
७- ” ॐ ह्रां ह्रीं फट् देहि ॐ शिवं सिद्धि ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं स्वाहा ।”
८- ” ॐ सर्वदुष्ट ग्रह निवारणाय स्वाहा ।”
९- ” हं पवननन्दाय स्वाहा ।”
१०- “ॐ नमो भगवते आञ्जनेयाय महाबलाय स्वाहा ।” (१८ अक्षर)
११- “ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट् ।” (१२ अक्षर)
१२- “ॐ नमो हनुमते मदन क्षोभं संहर संहर आत्मतत्त्वं प्रकाशय प्रकाशय हुं फट् स्वाहा ।”
१३- “ॐ नमो भगवते आञ्जनेयाय अमुकस्य श्रृंखला त्रोटय त्रोटय बन्ध मोक्षं कुरु कुरु स्वाहा ।”
१४- “ॐ नमो भगवते आञ्जनेयाय महाबलाय स्वाहा ।”
१५- “ॐ हनुमते नमः । अंजनी गर्भ-सम्भूतः कपीन्द्र सचिवोत्तम् । राम-प्रिय नमस्तुभ्यं, हनुमन् रक्ष सर्वदा । ॐ हनुमते नमः ।”
१६- “ॐ हनुमते नमः । आपदाममपहर्तारं दातारं सर्व-सम्पदान् । लोकाभिरामः श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् । ॐ हनुमते नमः ।”
१७- “ॐ हनुमते नमः । मर्कटेश महोत्साह सर्वशोक विनाशन । शत्रून् संहर मां रक्ष, श्रियं दापय मे प्रभो । ॐ हनुमते नमः ।”
१८- ” ॐ हं पवननन्दाय स्वाहा ।”
१९- “ॐ पूर्व-कपि-मुखाय पञ्च-मुख-हनुमते टं टं टं टं टं सकल शत्रु संहरणाय स्वाहा ।”
२०- “ॐ पश्चिम-मुखाय-गरुडासनाय पंचमुखहनुमते नमः मं मं मं मं मं, सकल विषहराय स्वाहा ।”
इस मन्त्र की जप संख्या १० हजार है, इसकी साधना दीपावली की अर्द्ध-रात्रि पर करनी चाहिए । यह मन्त्र विष निवारण में अत्यधिक सहायक है ।
२१- “ॐ उत्तरमुखाय आदि वराहाय लं लं लं लं लं सी हं सी हं नील-कण्ठ-मूर्तये लक्ष्मणप्राणदात्रे वीरहनुमते लंकोपदहनाय सकल सम्पत्ति-कराय पुत्र-पौत्रद्यभीष्ट-कराय ॐ नमः स्वाहा ।”
इस मन्त्र का उपयोग महामारी, अमंगल एवं ग्रह-दोष निवारण के लिए है ।
२२- “ॐ नमो पंचवदनाय हनुमते ऊर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय रुं रुं रुं रुं रुं रुद्रमूर्तये सकललोक वशकराय वेदविद्या-स्वरुपिणे ॐ नमः स्वाहा ।”
यह वशीकरण के लिए उपयोगी मन्त्र है ।
२३- “ॐ ह्रां ह्रीं ह्रैं हनुमते नमः ।”
२४- “ॐ श्री महाञ्जनाय पवन-पुत्र-वेशयावेशय ॐ श्रीहनुमते फट् ।”
यह २५ अक्षरों का मन्त्र है इसके ऋषि ब्रह्मा, छन्द गायत्री, देवता हनुमानजी, बीज श्री और शक्ति फट् बताई गई है । छः दीर्घ स्वरों से युक्त बीज से षडङ्गन्यास करने का विधान है । इस मन्त्र का ध्यान इस प्रकार है -
आञ्जनेयं पाटलास्यं स्वर्णाद्रिसमविग्रहम् ।
परिजातद्रुमूलस्थं चिन्तयेत् साधकोत्तम् ।। (नारद पुराण ७५-१०२)

अन्नपूर्णा देवी

अन्नपूर्णा देवी हिन्दू धर्म में मान्य देवी-देवताओं में विशेष रूप से पूजनीय हैं। इन्हें माँ जगदम्बा का ही एक रूप माना गया है, जिनसे सम्पूर्ण विश्व का संचालन होता है। इन्हीं जगदम्बा के अन्नपूर्णा स्वरूप से संसार का भरण-पोषण होता है। अन्नपूर्णा का शाब्दिक अर्थ है- 'धान्य' (अन्न) की अधिष्ठात्री। सनातन धर्म की मान्यता है कि प्राणियों को भोजन माँ अन्नपूर्णा की कृपा से ही प्राप्त होता है।
शिव की अर्धांगनी
कलियुग में माता अन्नपूर्णा की पुरी काशी है, किंतु सम्पूर्ण जगत उनके नियंत्रण में है। बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी के अन्नपूर्णाजी के आधिपत्य में आने की कथा बडी रोचक है। भगवान शंकर जब पार्वती के संग विवाह करने के पश्चात उनके पिता के क्षेत्र हिमालय के अन्तर्गत कैलास पर रहने लगे, तब देवी ने अपने मायके में निवास करने के बजाय अपने पति की नगरी काशी में रहने की इच्छा व्यक्त की। महादेव उन्हें साथ लेकर अपने सनातन गृह अविमुक्त-क्षेत्र (काशी) आ गए। काशी उस समय केवल एक महाश्मशान नगरी थी। माता पार्वती को सामान्य गृहस्थ स्त्री के समान ही अपने घर का मात्र श्मशान होना नहीं भाया। इस पर यह व्यवस्था बनी कि सत्य, त्रेता, और द्वापर, इन तीन युगों में काशी श्मशान रहे और कलियुग में यह अन्नपूर्णा की पुरी होकर बसे। इसी कारण वर्तमान समय में अन्नपूर्णा का मंदिर काशी का प्रधान देवीपीठ हुआ।[1]
भक्त वत्सल
स्कन्दपुराण के 'काशीखण्ड' में लिखा है कि भगवान विश्वेश्वर गृहस्थ हैं और भवानी उनकी गृहस्थी चलाती हैं। अत: काशीवासियों के योग-क्षेम का भार इन्हीं पर है। 'ब्रह्मवैव‌र्त्तपुराण' के काशी-रहस्य के अनुसार भवानी ही अन्नपूर्णा हैं। परन्तु जनमानस आज भी अन्नपूर्णा को ही भवानी मानता है। श्रद्धालुओं की ऐसी धारणा है कि माँ अन्नपूर्णा की नगरी काशी में कभी कोई भूखा नहीं सोता है। अन्नपूर्णा माता की उपासना से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। ये अपने भक्त की सभी विपत्तियों से रक्षा करती हैं। इनके प्रसन्न हो जाने पर अनेक जन्मों से चली आ रही दरिद्रता का भी निवारण हो जाता है। ये अपने भक्त को सांसारिक सुख प्रदान करने के साथ मोक्ष भी प्रदान करती हैं। तभी तो ऋषि-मुनि इनकी स्तुति करते हुए कहते हैं-
शोषिणीसर्वपापानांमोचनी सकलापदाम्।दारिद्र्यदमनीनित्यंसुख-मोक्ष-प्रदायिनी॥
व्रत तथा जयंती
काशी की पारम्परिक 'नवगौरी यात्रा' में आठवीं भवानी गौरी तथा नवदुर्गा यात्रा में अष्टम महागौरी का दर्शन-पूजन अन्नपूर्णा मंदिर में ही होता है। अष्टसिद्धियों की स्वामिनी अन्नपूर्णाजी की चैत्र तथा आश्विन के नवरात्र में अष्टमी के दिन 108 परिक्रमा करने से अनन्त पुण्य फल प्राप्त होता है। सामान्य दिनों में अन्नपूर्णा माता की आठ परिक्रमा करनी चाहिए। प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन अन्नपूर्णा देवी के निमित्त व्रत रखते हुए उनकी उपासना करने से घर में कभी धन-धान्य की कमी नहीं होती है। भविष्यपुराण में मार्गशीर्ष मास के अन्नपूर्णा व्रत की कथा का विस्तार से वर्णन मिलता है। काशी के कुछ प्राचीन पंचांग मार्गशीर्ष की पूर्णिमा में अन्नपूर्णा जयंती का पर्व प्रकाशित करते हैं।[1]
वर्ण व स्वरूप
अन्नपूर्णा देवी का रंग जवापुष्प के समान है। इनके तीन नेत्र हैं, मस्तक पर अ‌र्द्धचन्द्र सुशोभित है। भगवती अन्नपूर्णा अनुपम लावण्य से युक्त नवयुवती के सदृश हैं। बन्धूक के फूलों के मध्य दिव्य आभूषणों से विभूषित होकर ये प्रसन्न मुद्रा में स्वर्ण-सिंहासन पर विराजमान हैं। देवी के बायें हाथ में अन्न से पूर्ण माणिक्य, रत्न से जडा पात्र तथा दाहिने हाथ में रत्नों से निर्मित कलछूल है। अन्नपूर्णा माता अन्न दान में सदा तल्लीन रहती हैं। देवीभागवत में राजा बृहद्रथ की कथा से अन्नपूर्णा माता और उनकी पुरी काशी की महिमा उजागर होती है। भगवती अन्नपूर्णा पृथ्वी पर साक्षात कल्पलता हैं, क्योंकि ये अपने भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करती हैं। स्वयं भगवान शंकर इनकी प्रशंसा में कहते हैं- "मैं अपने पांचों मुख से भी अन्नपूर्णा का पूरा गुण-गान कर सकने में समर्थ नहीं हूँ। यद्यपि बाबा विश्वनाथ काशी में शरीर त्यागने वाले को तारक-मंत्र देकर मुक्ति प्रदान करते हैं, तथापि इसकी याचना माँ अन्नपूर्णा से ही की जाती है। गृहस्थ धन-धान्य की तो योगी ज्ञान-वैराग्य की भिक्षा इनसे मांगते हैं-
अन्नपूर्णेसदा पूर्णेशङ्करप्राणवल्लभे।
ज्ञान-वैराग्य-सिद्धयर्थम् भिक्षाम्देहिचपार्वति॥
पूजन मंत्र
मंत्र-महोदधि, तन्त्रसार, पुरश्चर्यार्णव आदि ग्रन्थों में अन्नपूर्णा देवी के अनेक मंत्रों का उल्लेख तथा उनकी साधना-विधि का वर्णन मिलता है। मंत्रशास्त्र के सुप्रसिद्ध ग्रंथ 'शारदातिलक' में अन्नपूर्णा के सत्रह अक्षरों वाले निम्न मंत्र का विधान वर्णित है-
"ह्रीं नम: भगवतिमाहेश्वरिअन्नपूर्णेस्वाहा"
मंत्र को सिद्ध करने के लिए इसका सोलह हज़ार बार जप करके, उस संख्या का दशांश (1600 बार) घी से युक्त अन्न के द्वारा होम करना चाहिए। जप से पूर्व यह ध्यान करना होता है-
रक्ताम्विचित्रवसनाम्नवचन्द्रचूडामन्नप्रदाननिरताम्
स्तनभारनम्राम्।नृत्यन्तमिन्दुशकलाभरणंविलोक्यहृष्टांभजेद्भगवतीम्
भवदु:खहन्त्रीम्॥
अर्थात 'जिनका शरीर रक्त वर्ण का है, जो अनेक रंग के सूतों से बुना वस्त्र धारण करने वाली हैं, जिनके मस्तक पर बालचंद्र विराजमान हैं, जो तीनों लोकों के वासियों को सदैव अन्न प्रदान करने में व्यस्त रहती हैं, यौवन से सम्पन्न, भगवान शंकर को अपने सामने नाचते देख प्रसन्न रहने वाली, संसार के सब दु:खों को दूर करने वाली, भगवती अन्नपूर्णा का मैं स्मरण करता हूँ।'
प्रात:काल नित्य 108 बार अन्नपूर्णा मंत्र का जप करने से घर में कभी अन्न-धन का अभाव नहीं होता। शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन अन्नपूर्णा का पूजन-हवन करने से वे अति प्रसन्न होती हैं। करुणा मूर्ति ये देवी अपने भक्त को भोग के साथ मोक्ष प्रदान करती हैं। सम्पूर्ण विश्व के अधिपति विश्वनाथ की अर्धांगिनी अन्नपूर्णा सबका बिना किसी भेद-भाव के भरण-पोषण करती हैं। जो भी भक्ति-भाव से इन वात्सल्यमयी माता का अपने घर में आवाहन करता है, माँ अन्नपूर्णा उसके यहाँ सूक्ष्म रूप से अवश्य वास करती हैं।[1]

https://youtu.be/XfpY7YI9CHc

https://youtu.be/XfpY7YI9CHc