Sunday 10 March 2013

स्वप्न जो धन दिलाते हैं

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स्वप्न जो धन दिलाते हैं
1.
स्वप्न मेे कोई देवता दिखाई दे तो लाभ के साथ-साथ सफलता मिलती है।
2.
स्वप्न में कोई व्यक्ति गौमाता के दर्शन करता है यह अत्यन्त शुभ होता है। उस व्यक्ति को यश, वैभव एवं परिवार वृद्घि का लाभ मिलता
है।
3.
स्वप्न में गाय का दूध दोहना धन प्राçप्त का सूचक है।
4.
सफेद घोडे का दिखाई देना-सुन्दर भाग्य के साथ-साथ धन की प्राप्ति कराता है।
5.
स्वप्न में चूहों का दिखाई देना उत्तम भाग्य का प्रतीक माना जाता है जो धन प्रदायक है।
6.
स्वप्न में नीलकण्ठ या सारस दिखता है उसे राज सम्मान के साथ-साथ धन लाभ भी होता है।
7.
स्वप्न में क्रोंच पक्षी दिखने पर अनायास धन प्राçप्त होती है।
8.
यदि मरी हुई चिç़डया दिखाई दे तो अनायास ही धन लाभ होता है।
9.
स्वप्न में तोते को खाता हुआ देखना प्रचूर मात्रा में धनप्राçप्त माना जाता है।
10.
स्वप्न में यदि घोंघा दिखाई दे तो व्यक्ति के वेतन में वृद्घि तथा व्यापार में लाभ होता है।
11.
स्वप्न में सफेद चीटियाँ धन लाभ कराती हंै।
12.
स्वप्न में काले बिच्छू का दिखना धन दिलवाता है।
13.
स्वप्न में नेवले का दिखाई देना स्वर्णाभूषण की प्राçप्त करवाता है।
14.
मधुमक्खी का छत्ता देखना शुभ शकुन है जो धन प्रदायक है।
15.
सर्प को फन उठाये हुये स्वप्न में देखना धन प्राçप्त का सूचक होता है।
16.
सर्प यदि बिल में जाता या आता हुआ दिखाई दे तो यह अनायास धन प्राçप्त का सूचक होता है।
17.
स्वप्न में आम का बाग देखना या बाग में घूमना अनायास धन की प्राçप्त करवाता है।
18.
स्वप्न में कदम्ब के वृक्ष को देखना बहुत ही शुभ होता है जो व्यक्ति को धन-दौलत निरोगी काया मान सम्मान एवं राजसम्मान की प्राçप्त करवाता है।
19.
यदि हाथ की छोटी अंगुली में अंगूठी पहनें तो अनायास ही धन की प्राçप्त।
20.
स्वप्न में कानों में कुण्डल धारण करना शुभ शकुन होता है जो धन प्राçप्त कराता है।
21.
स्वप्न में नर्तकी नृत्य करती दिखाई दें तो यह धन प्रदायक है।
22.
सफेद चूडियां देखना धन आगमन का सूचक है।
23.
स्वप्न से कुमुद-कुमुदनी को देखना धनदायक होता है।
24.
स्वप्न में किसान को देखना धन लाभ कराता है।
25.
स्वप्न में गौ, हाथी, अश्व, महल, पर्वत और वृक्ष पर चढ़ना भोजन करना तथा रोना धन प्रदायक कहा गया है।
26.
स्वप्न में युद्घ में घायल शरीर दिखाई दें तो धनदायक।
27.
हाथी, राजा, वृषभ, धेनु, स्वर्ण अन्न, दीपक, फल, पुष्प, कन्या, छत्र, ध्वज और रथ के दर्शन धन और कीर्ति की प्राçप्त करवाते हैं भरा हुआ ƒ़ाडा, ब्राrाण, अग्नि, पान मंदिर, श्वेत धान्य नट गौ दुग्ध, घी, फल वाले वृक्ष और सर्प धन प्राçप्त के सूचक होते हैं।
28.
आंवला और कमल धन प्रदायक होते हैं।

श्री रामकृष्ण परमहंस

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श्री रामकृष्ण परमहंस
जन्म :- मानवीय मूल्यों के पोषक संत रामकृष्ण परमहंस का जन्म १८ फरवरी, १८३६ को बंगाल प्रांत स्थित कामारपुकुर ग्राम में हुआ था। इनके बचपन का नाम गदाधर था। पिताजी के नाम खुदिराम और माताजी के नाम चन्द्रमणीदेवी था ।इनकी बालसुलभ सरलता और मंत्रमुग्ध मुस्कान से हर कोई सम्मोहित हो जाता था।

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परिवार :- सात वर्ष की अल्पायु में ही गदाधर के सिर से पिता का साया उठ गया। ऐसी विपरीत परिस्थिति में पूरे परिवार का भरण-पोषण कठिन होता चला गया। आर्थिक कठिनाइयां आईं। बालक गदाधर का साहस कम नहीं हुआ। इनके बडे भाई रामकुमार चट्टोपाध्याय कलकत्ता(कोलकाता) में एक पाठशाला के संचालक थे। वे गदाधर को अपने साथ कोलकाता ले गए। रामकृष्ण का अन्तर्मन अत्यंत निश्छल, सहज और विनयशील था। संकीर्णताओं से वह बहुत दूर थे। अपने कार्यो में लगे रहते थे। दक्षिणेश्वर ============================================


आगमन :- दक्षिणेश्वर काली मंदिर सतत प्रयासों के बाद भी रामकृष्ण का मन अध्ययन-अध्यापन में नहीं लग पाया। कलकत्ता के पास दक्षिणेश्वर स्थित भवतारिणी काली माता के मन्दिर में अग्रज रामकुमार ने उन्हेँ पुरोहित का दायित्व सोँपा, रामकृष्ण इसमें नहीँ रम पाए।

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वैराग्य और साधना :- कालान्तर में बड़े भाई भी चल बसे। इस घटना से वे व्याथित हुए।संसार की अनित्यता को देखकर उनके मन मेँ वैराग्य का उदय हुआ। अन्दर से मन ना करते हुए भी श्रीरामकृष्ण मंदिर की पूजा एवं अर्चना करने लगे। दक्षिणेश्वर स्थित पंचवटी मेँ वे ध्यानमग्न रहने लगे।ईश्वर दर्शन के लिए वे व्याकुल हो गये। लोगोँ ने उन्हे पागल समझने लगे। चन्द्रमणी देवी ने अपने बेटे की उन्माद की अवस्था से चिन्तत होकर गदाधर का विवाह शारदा देवी से कर दी। इसके बाद भैरवी व्राह्मणी का दक्षिणेश्वर मेँ आगमन हुआ। वे उन्हेँ तंत्र की शिक्षा दी । मधुरभाव मेँ अवस्थान करते हुए ठाकुर ने श्रीकृष्ण का दर्शन किया। वे तोतापुरी महाराज से अद्वैत वेदान्त की ज्ञान लाभ किये और जीवन्मुक्त की अवस्था को प्राप्त किया । वे सन्यास ग्रहण करने के वाद उनका नया नाम हुआ श्रीरामकृष्ण परमहंस। इसके बाद वे ईस्लाम और क्रिश्चियन धर्म का भी साधना किये।

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भक्तोँ का आगमन :-- समय जैसे-ैसे व्यतीत होता गया, उनके कठोर आध्यात्मिक अभ्यासों और सिद्धियों के समाचार तेजी से फैलने लगे और दक्षिणेश्वर का मंदिर उद्यान शीघ्र ही भक्तों एवं भ्रमणशील संन्यासियों का प्रिय आश्रयस्थान हो गया। कुछ बड़े-बड़े विद्वान एवं प्रसिद्ध वैष्णव और तांत्रिक साधक जैसे- पं. नारायण शास्त्री, पं. पद्मलोचन तारकालकार, वैष्णवचरण और गौरीकांत तारकभूषण आदि उनसे आध्यात्मिक प्रेरणा प्राप्त करते रहे। वह शीघ्र ही तत्कालीनन सुविख्यात विचारकों के घनिष्ठ संपर्क में आए जो बंगाल में विचारों का नेतृत्व कर रहे थे। इनमें केशवचंद्र सेन, विजयकृष्ण गोस्वामी, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, बंकिमचंद्र चटर्जी, अश्विनीकुमार दत्त के नाम लिए जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त साधारण भक्तों का एक दूसरा वर्ग था जिसके सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति रामचंद्र दत्त, गिरीशचंद्र घोष, बलराम बोस, महेंद्रनाथ गुप्त (मास्टर महाशय) और दुर्गाचरण नाग थे। उनकी जगन्माता की निष्कपट प्रार्थना के फलस्वरूप ऐसे सैकड़ों गृहस्थ भक्त, जो बड़े ही सरल थे, उनके चारों ओर समूहों में एकत्रित हो जाते थे और उनके उपदेशामृत से अपनी आध्यात्मिक पिपासा शांत करते थे।

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बीमारी और अन्तिम जीवन :-रामकृष्ण परमहंस जीवन के अंतिम दिनों में समाधि की स्थिति में रहने लगे। अत: तन से शिथिल होने लगे। शिष्यों द्वारा स्वास्थ्य पर ध्यान देने की प्रार्थना पर अज्ञानता जानकर हँस देते थे। इनके शिष्य इन्हें ठाकुर नाम से पुकारते थे। रामकृष्ण के परमप्रिय शिष्य विवेकानन्द कुछ समय हिमालय के किसी एकान्त स्थान पर तपस्या करना चाहते थे। यही आज्ञा लेने जब वे गुरु के पास गये तो रामकृष्ण ने कहा-वत्स हमारे आसपास के क्षेत्र के लोग भूख से तडप रहे हैं। चारों ओर अज्ञान का अंधेरा छाया है। यहां लोग रोते-चिल्लाते रहें और तुम हिमालय की किसी गुफा में समाधि के आनन्द में निमग्न रहो क्या तुम्हारी आत्मा स्वीकारेगी। इससे विवेकानन्द दरिद्र नारायण की सेवा में लग गये। रामकृष्ण महान योगी, उच्चकोटि के साधक व विचारक थे। सेवा पथ को ईश्वरीय, प्रशस्त मानकर अनेकता में एकता का दर्शन करते थे। सेवा से समाज की सुरक्षा चाहते थे। गले में सूजन को जब डाक्टरों ने कैंसर बताकर समाधि लेने और वार्तालाप से मना किया तब भी वे मुस्कराये। चिकित्सा कराने से रोकने पर भी विवेकानन्द इलाज कराते रहे। चिकित्सा के वाबजुद उनका तवीयत बिगड़ता ही गया।

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मृत्यु :-- अंत मेँ वह दुख का दिन आ गया।1886 . 16 अगष्ट,सवेरा होने के लिए कुछ ही वक्त पहले आनन्दघन विग्रह श्रीरामकृष्ण इस नश्वर को त्याग कर महासमाधि द्वारा स्व-स्वरुप में लीन हो गये
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ऐसे सनातन परंपरा की साक्षात प्रतिमूर्ति कहे जाने वाले महात्मा रामकृष्ण परमहंस की जयंती पर उन्हें कोटिशः नमन।

https://youtu.be/XfpY7YI9CHc

https://youtu.be/XfpY7YI9CHc