Sunday 10 March 2013

श्री रामकृष्ण परमहंस

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श्री रामकृष्ण परमहंस
जन्म :- मानवीय मूल्यों के पोषक संत रामकृष्ण परमहंस का जन्म १८ फरवरी, १८३६ को बंगाल प्रांत स्थित कामारपुकुर ग्राम में हुआ था। इनके बचपन का नाम गदाधर था। पिताजी के नाम खुदिराम और माताजी के नाम चन्द्रमणीदेवी था ।इनकी बालसुलभ सरलता और मंत्रमुग्ध मुस्कान से हर कोई सम्मोहित हो जाता था।

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परिवार :- सात वर्ष की अल्पायु में ही गदाधर के सिर से पिता का साया उठ गया। ऐसी विपरीत परिस्थिति में पूरे परिवार का भरण-पोषण कठिन होता चला गया। आर्थिक कठिनाइयां आईं। बालक गदाधर का साहस कम नहीं हुआ। इनके बडे भाई रामकुमार चट्टोपाध्याय कलकत्ता(कोलकाता) में एक पाठशाला के संचालक थे। वे गदाधर को अपने साथ कोलकाता ले गए। रामकृष्ण का अन्तर्मन अत्यंत निश्छल, सहज और विनयशील था। संकीर्णताओं से वह बहुत दूर थे। अपने कार्यो में लगे रहते थे। दक्षिणेश्वर ============================================


आगमन :- दक्षिणेश्वर काली मंदिर सतत प्रयासों के बाद भी रामकृष्ण का मन अध्ययन-अध्यापन में नहीं लग पाया। कलकत्ता के पास दक्षिणेश्वर स्थित भवतारिणी काली माता के मन्दिर में अग्रज रामकुमार ने उन्हेँ पुरोहित का दायित्व सोँपा, रामकृष्ण इसमें नहीँ रम पाए।

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वैराग्य और साधना :- कालान्तर में बड़े भाई भी चल बसे। इस घटना से वे व्याथित हुए।संसार की अनित्यता को देखकर उनके मन मेँ वैराग्य का उदय हुआ। अन्दर से मन ना करते हुए भी श्रीरामकृष्ण मंदिर की पूजा एवं अर्चना करने लगे। दक्षिणेश्वर स्थित पंचवटी मेँ वे ध्यानमग्न रहने लगे।ईश्वर दर्शन के लिए वे व्याकुल हो गये। लोगोँ ने उन्हे पागल समझने लगे। चन्द्रमणी देवी ने अपने बेटे की उन्माद की अवस्था से चिन्तत होकर गदाधर का विवाह शारदा देवी से कर दी। इसके बाद भैरवी व्राह्मणी का दक्षिणेश्वर मेँ आगमन हुआ। वे उन्हेँ तंत्र की शिक्षा दी । मधुरभाव मेँ अवस्थान करते हुए ठाकुर ने श्रीकृष्ण का दर्शन किया। वे तोतापुरी महाराज से अद्वैत वेदान्त की ज्ञान लाभ किये और जीवन्मुक्त की अवस्था को प्राप्त किया । वे सन्यास ग्रहण करने के वाद उनका नया नाम हुआ श्रीरामकृष्ण परमहंस। इसके बाद वे ईस्लाम और क्रिश्चियन धर्म का भी साधना किये।

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भक्तोँ का आगमन :-- समय जैसे-ैसे व्यतीत होता गया, उनके कठोर आध्यात्मिक अभ्यासों और सिद्धियों के समाचार तेजी से फैलने लगे और दक्षिणेश्वर का मंदिर उद्यान शीघ्र ही भक्तों एवं भ्रमणशील संन्यासियों का प्रिय आश्रयस्थान हो गया। कुछ बड़े-बड़े विद्वान एवं प्रसिद्ध वैष्णव और तांत्रिक साधक जैसे- पं. नारायण शास्त्री, पं. पद्मलोचन तारकालकार, वैष्णवचरण और गौरीकांत तारकभूषण आदि उनसे आध्यात्मिक प्रेरणा प्राप्त करते रहे। वह शीघ्र ही तत्कालीनन सुविख्यात विचारकों के घनिष्ठ संपर्क में आए जो बंगाल में विचारों का नेतृत्व कर रहे थे। इनमें केशवचंद्र सेन, विजयकृष्ण गोस्वामी, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, बंकिमचंद्र चटर्जी, अश्विनीकुमार दत्त के नाम लिए जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त साधारण भक्तों का एक दूसरा वर्ग था जिसके सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति रामचंद्र दत्त, गिरीशचंद्र घोष, बलराम बोस, महेंद्रनाथ गुप्त (मास्टर महाशय) और दुर्गाचरण नाग थे। उनकी जगन्माता की निष्कपट प्रार्थना के फलस्वरूप ऐसे सैकड़ों गृहस्थ भक्त, जो बड़े ही सरल थे, उनके चारों ओर समूहों में एकत्रित हो जाते थे और उनके उपदेशामृत से अपनी आध्यात्मिक पिपासा शांत करते थे।

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बीमारी और अन्तिम जीवन :-रामकृष्ण परमहंस जीवन के अंतिम दिनों में समाधि की स्थिति में रहने लगे। अत: तन से शिथिल होने लगे। शिष्यों द्वारा स्वास्थ्य पर ध्यान देने की प्रार्थना पर अज्ञानता जानकर हँस देते थे। इनके शिष्य इन्हें ठाकुर नाम से पुकारते थे। रामकृष्ण के परमप्रिय शिष्य विवेकानन्द कुछ समय हिमालय के किसी एकान्त स्थान पर तपस्या करना चाहते थे। यही आज्ञा लेने जब वे गुरु के पास गये तो रामकृष्ण ने कहा-वत्स हमारे आसपास के क्षेत्र के लोग भूख से तडप रहे हैं। चारों ओर अज्ञान का अंधेरा छाया है। यहां लोग रोते-चिल्लाते रहें और तुम हिमालय की किसी गुफा में समाधि के आनन्द में निमग्न रहो क्या तुम्हारी आत्मा स्वीकारेगी। इससे विवेकानन्द दरिद्र नारायण की सेवा में लग गये। रामकृष्ण महान योगी, उच्चकोटि के साधक व विचारक थे। सेवा पथ को ईश्वरीय, प्रशस्त मानकर अनेकता में एकता का दर्शन करते थे। सेवा से समाज की सुरक्षा चाहते थे। गले में सूजन को जब डाक्टरों ने कैंसर बताकर समाधि लेने और वार्तालाप से मना किया तब भी वे मुस्कराये। चिकित्सा कराने से रोकने पर भी विवेकानन्द इलाज कराते रहे। चिकित्सा के वाबजुद उनका तवीयत बिगड़ता ही गया।

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मृत्यु :-- अंत मेँ वह दुख का दिन आ गया।1886 . 16 अगष्ट,सवेरा होने के लिए कुछ ही वक्त पहले आनन्दघन विग्रह श्रीरामकृष्ण इस नश्वर को त्याग कर महासमाधि द्वारा स्व-स्वरुप में लीन हो गये
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ऐसे सनातन परंपरा की साक्षात प्रतिमूर्ति कहे जाने वाले महात्मा रामकृष्ण परमहंस की जयंती पर उन्हें कोटिशः नमन।

कैसे बनाये ग्रहों को अपने अनुकूल

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कैसे बनाये ग्रहों को अपने अनुकूल
कहा जाता हैं ’’ ग्रहा धिंन जगत सर्वम ’’ अर्थात प्रत्येक मनुष्य ग्रह के अधीन रहकर कार्य करता हैं और सांसारिक सुख एवं दुखः को भोगता हैं। किन्तु मनुष्य अपने सुख का समय तो आराम से बिता लेता हैं और जैसे ही कष्ट प्राप्त होते हैं उस समय उसे ईश्वर के शरणागत होना पड़ता हैं। अपने पूज्य श्रेष्ठ लोगों से राय मशवरा लेकर समय बिताना होता हैं। उसी परेशानी के हल हेतु जब वह किसी विज्ञ ज्योतिषी के पास जाता हैं तो ग्रहों के प्रतिकूल होने की जानकारी प्राप्त करता हैं। उन्हें अनुकूल बनाने हेतु उसे कई उपाय करना होते हैं इस हेतु आप निम्न उपाय कर ग्रहों का प्रतिकूल से अनुकूल बना सकते हैं। ये उपाय परिक्षती हैं और सहजता से कम खर्च में स्वंय के द्वारा अथवा सामान्य सहयोग लेकर किये जा सकते हैं।

सूर्य के प्रतिकूल होने पर: -
1. भगवान सूर्य नारायण को ताँबे के लौटे से सूर्योदय काल में जल चढ़ावें व 3ाोहम सूर्याय नमः का जाप करें।
2. भगवान सूर्य के पुराणोक्त, वेदोक्त अथवा बीच मंत्र से किसी एक का 28000 बार जाप करें अथवा योग्य ब्राह्मण से करवायें।
3. सूर्य यंत्र को अपने दाहिने हाथ बांधे।
4. रविवार को भोजन में नमक का सेवन न करें।
5. सूर्योदय पूर्व उठकर पवित्र हो सूर्य नमस्कार करें।

चन्द्र के प्रतिकूल होने पर: -
1. भगवान शिव की अराधना सूर्योदय काल में करें।
2. भगवान शिव के स्त्रोत पाठ करें।
3. चन्द्र के पुराणोक्त, वेदाक्त अथवा बीज मंत्र में से किसी एक का 44000 बार जाप करें अथवा जाप करवायें।
4. सोमवार का व्रत करें।
5. मोती, दूध, चांवल अथवा सफेद वस्तु का दान करें।

मंगल ग्रह के प्रतिकूल होने पर: -
1. मंगलवार का व्रत करें।
2. भगवान हनुमान जी की अराधना करें।
3. मंगल के पुराणोक्त, वेदोक्त, तंत्रोक्त अथवा बीज मंत्र का 40000 बार जाप करें।
4. मसूर की दाल, लाल वस्त्र, मूंगा आदि का दान करें।
5. हनुमान चालीसा अथवा सुन्दर काण्ड का पाठ प्रातः काल में करें।

बुध ग्रह के प्रतिकूल होने पर: -
1. भगवान गणेश जी की अराधना करें।
2. आप कोई भी बुध मंत्र 34000 बार जाप करें।
3. बुध स्त्रोत का पाठ करें।
4. मूंग की दाल, हरे वस्त्र, पन्ना आदि का दान करें।
5. विद्वानों को प्रणाम करें व सम्मान करें।

गुरू के प्रतिकूल होने पर: -
1. सूर्योदय पूर्व पीपल की पूजा करें।
2. भगवान नारायण (विष्णु) की आराधना करें व सन्तों का सम्मान करें।

शुक्र के प्रतिकूल होने पर: -
1. शुक्र स्त्रोत का पाठ करें।
2. नारीजाति का सम्मान करें।
3. सफेद चमकीले वस्त्र एवं सुगन्धित तेल आदि वस्तुओं का दान करें।
4. 3ाोम शुक्राय नमः या अन्य किसी शुक्र मंत्र का 64000 बार जाप करें।
5. औदुम्बर वृक्ष की जड़ को दाहिने हाथ पर सफेद डोरे में बाँधे।

शनि के प्रतिकूल होने पर: -
1. शनि स्त्रोत का पाठ करें एवं किसी भी शनि मंत्र का 92000 बार जाप करें।
2. जूते, चप्पल, लोहे, तेल आदि का दान करें।
3. शनिवार का व्रत करें एवं रात्रि में भोजन करें।
4. हनुमान चालीसा अथवा सुन्दर काण्ड का पाठ करें।
5. नित्य हनुमान जी के दर्शन कर कार्य प्रारम्भ करें।

राहू के प्रतिकूल होने पर: -
1. भगवान शिव की अराधना करें।
2. राहू के मंत्र का जाप करें।
3. गरीब व निम्न वर्ग के लोगों की मदद करें।
4. राहू स्त्रोत का पाठ करें।
5. सर्प का पूजन करें।

केतु के प्रतिकूल होने पर: -
1. भगवान गणेश जी की अराधना करें।
2. प्रतिदिन स्वास्तविक के दर्शन करें।
3. केतु के मंत्र का जाप करें।
4. गणेश चतुर्थी का व्रत करें।
5. लहसुनियां का दान करें।.............

लम्बोदर के प्रमुख चर्तुवर्ण

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लम्बोदर के प्रमुख चर्तुवर्ण हैं. सर्वत्र पूज्य सिंदूर वर्ण के हैं. इनका स्वरूप व फल सभी प्रकार के शुभ व मंगल भक्तों को प्रदान करने वाला है. नीलवर्ण उच्छिष्ट गणपति का रूप तांत्रिक क्रिया से संबंधित है. शांति और पुष्टि के लिए श्वेत वर्ण गणपति की आराधना करना चाहिए. शत्रु के नाश व विघ्नों को रोकने के लिए हरिद्रागणपति की आराधना की जाती है.

गणपतिजी का बीज मंत्र गंहै. इनसे युक्त मंत्र-

ॐ गं गणपतये नम:
का जप करने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है. षडाक्षर मंत्र का जप आर्थिक प्रगति व समृद्धि प्रदायक है.
ॐ वक्रतुंडाय हुम्
किसी के द्वारा नेष्ट के लिए की गई क्रिया को नष्ट करने के लिए, विविध कामनाओं की पूर्ति के लिए उच्छिष्ट गणपति की साधना करना चाहिए. इनका जप करते समय मुंह में गुड़, लौंग, इलायची, पताशा, ताम्बुल, सुपारी होना चाहिए. यह साधना अक्षय भंडार प्रदान करने वाली है. इसमें पवित्रता-अपवित्रता का विशेष बंधन नहीं है.
उच्छिष्ट गणपति का मंत्र

ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा
आलस्य, निराशा, कलह, विघ्न दूर करने के लिए विघ्नराज रूप की आराधना का यह मंत्र जपें -
गं क्षिप्रप्रसादनाय नम:

विघ्न को दूर करके धन व आत्मबल की प्राप्ति के लिए हेरम्ब गणपति का मंत्र जपें -
ॐ गूं नम:
रोजगार की प्राप्ति व आर्थिक वृद्धि के लिए लक्ष्मी विनायक मंत्र का जप करें-
ॐ श्रीं गं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा
विवाह में आने वाले दोषों को दूर करने वालों को त्रैलोक्य मोहन गणेश मंत्र का जप करने से शीघ्र विवाह व अनुकूल जीवनसाथी की प्राप्ति होती है-
ॐ वक्रतुण्डैक क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा.
इन मंत्रों के अतिरिक्त गणपति अथर्वशीर्ष, संकटनाशन गणेश स्तोत्र, गणेशकवच, संतान गणपति स्तोत्र, ऋणहर्ता गणपति स्तोत्र, मयूरेश स्तोत्र, गणेश चालीसा का पाठ करने से गणेशजी की कृपा प्राप्त होती है.

https://youtu.be/XfpY7YI9CHc

https://youtu.be/XfpY7YI9CHc