Friday 23 November 2012

tantra.

1.
अभिचार का सामान्य अर्थ है - 'हनन' तंत्रों में प्राय: छह प्रकार के अभिचारों का वर्णन मिलता है -
1. मारण, 2. मोहन, 3. स्तंभन, 4. विद्वेषण, 5. उच्चाट्टन और 6. वशीकरण।
मारण से प्राणनाश करने, मोहन से किसी के मन को मुग्ध करने, स्तंभन से मंत्रादि द्वारा विभिन्न घातक वस्तुओं या व्यक्तियों का निरोध, स्थितिकरण या नाश करने, विद्वेषण से दो अभिन्न हृदय व्यक्तियों में भेद या द्वेष उत्पन्न करने, उच्चाटन से किसी के मन को चंचल, उन्मत्त या अस्थिर करने तथा वशीकरण से राज या किसी स्त्री अथवा अन्य व्यक्ति के मन को अपने वश में करने की क्रिया संपादित की जाती की जाती है।
इन विभिन्न प्रकार की क्रियाओं को करने के लिए अनेक प्रकार के तांत्रिक कर्मो के विधान मिलते हैं जिनमें सामान्य दृष्टि से कुछ घृणित कार्य भी विहित माने गए हैं। इन क्रियाओं में मंत्र, यंत्र, बलि, प्राणप्रतिष्ठा, हवन, औषधिप्रयोग आदि के विविध नियोजित स्वरूप मिलते हैं। उपर्युक्त अभिचार अथवा तांत्रिक षट्कर्म के प्रयोग के लिए विभिन्न तिथियों का का विधान मिलता है जैसे--मारण के लिए शतभिषा में अर्धरात्रि, स्तंभन के लिए शीतकाल, विद्वेषण के लिए ग्रीष्मकालीन पूर्णिमा की दोपहर, उच्चाटन के लिए शनिवारयुक्त कृष्णा चतुर्दशी अथवा अष्टमी आदि का निर्देश है।
2.. श्रीसुदर्शन-चक्र-विद्या
१॰ रोग, बाधा-निवारक प्रयोग
अपने सामने भगवान् विष्णु या भगवान् कृष्ण या भगवान् दत्तात्रेय की मूर्ति रखे। यथा-शक्ति मूर्ति का पूजन करे। पहले से तैयार व सिद्धश्रीसुदर्शन-चक्रका पूजन करे। पूजन में गो-घृत का दीपक, सुन्धित धूप, श्वेत पदार्थों का नैवेद्य (दूध-शक्कर, दूध-भात, दही-भात, खीर आदि) तथा पुष्प चढ़ाए।
पूजन के बाद प्रार्थना करे। बाधा, रोग-निवारण हेतु विधिवत् संकल्प कर जल छोड़े। फिर पहले से तैयार सिद्ध किए हुए श्रीसुदर्शन-चक्रको किसी विद्युत-पंखे के ब्लेड्स निकालकर रॉड में चक्र को स्क्रू द्वारा पक्का किया जा सकता है। अब इस चक्रलगे पंखे को चालू करके उसके सामने ताँबे या चाँदी के पात्र में गंगा-जल रखे। पात्र में रखे गंगा-जल के ऊपर हाथ रखकर श्रीसुदर्शन-चक्र-माला-मन्त्रको १ या ३ या ११ या १८ बार पढ़े। पढ़ने के बाद पंखे को बन्द करे और सुदर्शन-चक्र द्वारा अभिमन्त्रित जल को काँच की बोतल में भर-कर पवित्र स्थान में सुरक्षित रखे। इस जल को अभिचार-बाधा, पिशाच-बाधा या असाध्य बाधा से ग्रस्त व्यक्ति को तीन दिन आचमन-स्वरुप देने से बाधाएँ नष्ट होंगी। अधिक दिन प्रयोग करने पर पक्षाघात, धनुर्वात (टिटेनस) के रोग भी दूर हो सकते हैं। अभीमन्त्रित जल के मण्डल (वृत्त) में रोगी को रखने से भी बाधाएँ नष्ट होती है।
उक्त प्रकार से सुदर्शन-चक्र-माला-मन्त्र द्वारा औषधियों को भी अभिमन्त्रित किया जा सकता है। इससे रोगी को शीघ्र लाभ होता है। विभूति को अभिमन्त्रित कर बाधा-ग्रस्त व्यक्ति को अपने पास रखने हेतु दिया जा सकता है। इससे अभिचार-प्रयोगों का प्रभाव पूर्णतया नष्ट हो जाता है। अभिमन्त्रित जल का प्रोक्षण (मार्जन) अन्न, वस्त्र, खाद्य-पदार्थ आदि पर करने से उनके दोष भी दूर होते हैं। अभिचार-पीडित व्यक्ति को उक्त प्रकार से अभिमन्त्रित जल से क्रोध-पूर्वक प्रताडित करने से अभिचार तुरन्त दूर होता है।
२॰ रक्षा-प्रयोग
यदि कोई व्यक्ति अत्यधिक बीमार हो या बाह्य-बाधा, अभिचार-प्रयोग आदि द्वारा विशेषतया पीड़ित हो, तो उसके लिए निम्न प्रकार से रक्षा-प्रयोगकरना चाहिए। प्रयोगहेतु शुभ दिन, शुभ मुहूर्त आदि देखने की आवश्यकता नहीं है।
प्रयोग ब्राह्म-मुहूर्त में प्रारम्भ करे। स्नान आदि से पवित्र होकर पहलेविनियोगआदि सहितश्रीसुदर्शन-चक्र का पूजन करे। विनियोगमें, जिस व्यक्ति के लिए प्रयोग करना है, उसके नाम सहित रक्षा या संकट मुक्ति हेतु कहे।
पूजन के बाद श्रीसुदर्शन चक्रको दाहिने हाथ में लेकर अथवा उस पर दाहिना हाथ रखकर श्रीसुदर्शन-चक्र-माला-मन्त्र का १८ बार जप करे। प्रत्येक जप के बाद श्रीसुदर्शन-चक्र-मन्त्रः अमुकव्यक्ति-रक्षार्थे सम्पूर्णम्कहे। जप के बाद चक्र को पूजा-स्थान में ही भगवान् विष्णु, भगवान् कृष्ण या भगवान् दत्तात्रेय की मूर्ति या चित्र के नीचे रखे। चक्र तीन दिन तक वहीं रखे। यदि कुछ अनुभव-परिणाम पहले दिन से दिखने लगे, तो भी प्रयोग तीन दिन तक करे। संकट-मुक्ति के बाद व्यक्ति की शक्ति के अनुसार चक्रका पूजन करे। पूजन का प्रसाद सभी व्यक्ति ग्रहण कर सकते हैं।

3…माला

अन्य धर्मों की तरह सनातन (हिन्दू) धर्म में भी जप के लिए माला का प्रयोग होता है। क्योंकि किसी भी जप में संख्या का बहुत महत्त्व होता है। निश्चित संख्या में जप करने के लिए माला का प्रयोग करते हैं। माला फेरने से एकाग्रता भी बनी रहती है। वैसे तो माला के अन्य बहुत से प्रयोग हैं, लेकिन मैं यहां जप संबंधी बातें बताना चाहता हूँ।

किसी देवी-देवता के मंत्र का जप करने के लिए एक निश्चित संख्या होती है। उस संख्या का १० प्रतिशत हवन, हवन का १० प्रतिशत तर्पण, तर्पण का १० प्रतिशत मार्जन, मार्जन की १० प्रतिशत संख्या में ब्राह्मण भोजन करना होता है। इन सभी संख्यों का निर्धारण बिना माना के संभव नहीं।

माला में १०८ (+१ सुमेरु) दाने (मनके) होने चाहिए। ५४, २७ या ३० (इत्यादि) मनको की माला से भी जप किया जाता है। साधना विशेष के लिए मनकों की संख्या का विचार है। दो मनकों के बीच डोरी में गांठ होना जरूर है, आमतौर से ढाई गांठ की माला अच्छी होती है। अर्थात् डोरी में मनके पिरोते समय साधक हर मनके के बाद ढाई गांठ लगाए। मनके पिरोते समय अपने इष्टदेव का जप करते रहना चाहिए। सफेद डोरी शान्ति, सिद्धि आदि शुभ कार्यों के लिए प्रयाग करनी चाहिए। लाल धागे से वशीकरण आदि तथा काले धागे से पिरोई गई माला द्वारा मारण कर्म किये जाते हैं।

माला पिरोते समय मुख और पुछ का ध्यान रखना चाहिए। मनके के माटे वाले सिरे को मुख तथा पतले किनारे को पुछ कहते हैं। माला पिरोते समय मनकों के मुख से मुख तथा पुछ से पुछ मिलाकर पिरोने चाहिए।

मनके किसी भी चीज (प्लास्टिक इत्यादि छोड़कर) के हों मगर खंडित नहीं होने चाहिए।

रुद्राक्ष की माला भगवान् शंकर को प्रिय है और इसे एज़ ए डिफ़ाल्ट सभी देवी देवताओं की पूजा आराधना प्रयोग किया जा सकता है। रुद्राक्ष पर जप करने से अनन्त गुना (अन्य सभी मालाओं की तुलना में बहुत अधिक) फल मिलता है। इसे धारण करना भी स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है। जिस माला को धारण करते हैं उस पर जप नहीं करते लेकिन उसी जाति (किस्म) कि दूसरी माला पर जप कर सकते हैं।


जप करते समय माला गोमुखी या किसी वस्त्र से ढकी होनी चाहिए अन्यथा जप का फल चोरी हो जाता है। जप के बाद जप-स्थान की मिट्टी मस्तक पर लगा लेनी चाहिए अन्यथा जप का फल इन्द्र को चला जाता है।

प्रातःकाल जप के समय माला नाभी के समीप होनी चाहिए, दोपहर में हृदय और शाम को मस्तक के सामने।

जप में तर्जनी अंगुली का स्पर्श माला से नहीं होना चाहिए। इसलिए गोमुखी के बड़े छेद से हाथ अन्दर डाल कर छोटे छेद से तर्जनी को बाहर निकलकर जप करना चाहिए। अभिचार कर्म में तर्जनी का प्रयोग होता है।

जप में नाखून का स्पर्श माला से नहीं होना चाहिए।
सुमेरु के अगले दाने से जप आरम्भ करे, माला को मध्यमा अंगुली के मघ्य पोर पर रख कर दानों को अंगूठे की सहायता से अपनी ओर गिराए। सुमेरु को नहीं लांघना चाहिए। यदि एक माला से अधिक जप करना हो तो, सुमेरु तक पहुंच कर अंतिम दाने को पकड़ कर, माला पलटी कर के, माला की उल्टी दिशा में, लेकिन पहले की तरह ही जप करना चाहिए।

देवता विषेश के लिए माला का चयन करना चाहिए-
हाथी दांत की माला गणेशजी की साधना के लिए श्रेष्ठ मानी गई है।

लाल चंदन की माला गणेशजी व देवी साधना के लिए उत्तम है।

तुलसी की माला से वैष्णव मत की साधना होती है (विष्णु, राम व कृष्ण)।

मूंगे की माला से लक्ष्मी जी की आराधना होती है। पुष्टि कर्म के लिए भी मूंगे की माला श्रेष्ठ होती है।

मोती की माला वशीकरण के लिए श्रेष्ठ मानी गई है।

पुत्र जीवा की माला का प्रयोग संतान प्राप्ति के लिए करते हैं।

कमल गट्टे की माला की माला का प्रयोग अभिचार कर्म के लिए होता है।

कुश-मूल की माला का प्रयोग पाप-नाश व दोष-मुक्ति के लिये होता है।

हल्दी की माला से बगलामुखी की साधना होती है।

स्फटिक की माला शान्ति कर्म और ज्ञान प्राप्ति; माँ सरस्वती व भैरवी की आराधना के लिए श्रेष्ठ होती है।

चाँदी की माला राजसिक प्रयोजन तथा आपदा से मुक्ति में विशेष प्रभावकरी होती है।

जप से पूर्व निम्नलिखित मंत्र से माला की वन्दना करनी चाहिए
(साधना या देवता विशेष के लिए अलग-अलग माला-वन्दना होती है)
ॐ मां माले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणी।
चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव॥
ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं गृह्णामि दक्षिणे करे।
जपकाले च सिद्ध्यर्थं प्रसीद मम सिद्धये॥

4…  अथर्ववेद के प्रथम कांड  एक  मन्त्र में यह कहा  गया  है  की    
जिस प्रकार नदी  अपने प्रवाह से फेन को एक देश से दुसरे देश में पहुचा देती है ,जिस प्रकार अग्नि आदि देवताओ को दी  हुई धृत आदि रूप हवी ,राक्षसों को व पिशाचो को एक स्थान से दुसरे स्थान पर पहुचा दे   ।।
   तदन्तर  जिसमे  अभिचार कर्म किया है वः व्यक्ति अपने अभिचार कर्म के निष्फल होने से यह मेरे पास   आ कर स्तुति   करे अर्थात अग्नि की  शरण  में आकर अग्नि की  ही सेवा करे । और जिस व्यक्ति ने दुसरे के उपद्रव को दूर करने के लिए यह हवी दी है ,हे अग्ने आदि देव ! वः व्यक्ति उपद्र्व्रहित होकर आपकी स्तुति करे ।
                             सब कामनाओ को पाने के लिए आग्नेयी महा शांति  का वर्णन है । फिर नक्षत्र ,ग्रह अथवा उपग्रहो से उत्पन्न हुए भ्र्यार्थ अथवा रोग ग्रस्त पुरुष के भी और रोगों की शांति के लिए भार्गवी महा शांति का विधान है ।ब्रह्म तेजकी चाहने वलेके वस्त्र खट्वा आदि के अग्नि से जलने पर ब्राह्मी महा शांति का विधान है ।राज्य लक्ष्मी और ब्रह्म तेज पाने वलेकी बार्हस्पत्य महा शांति का वर्णन है ।फिर प्रजा ,पशु और अन्न्की प्राप्ति के लिए और संतंक्ष्य्की निवृति के लिए प्रजप्त्याका ,शुद्धि चाहनेवाले के लिए सावित्री का ,छन्द्शाश्त्र और ब्रह्म तेज को चाहनेवाले के लिए गायत्री का ,सम्पति को चाहनेवाले अभिचर करते हुए अथवा दुसरे के लिए अभिचार करते हुए के लिए आन्गिरसी महाशांति का विधान है ।फिर विजय बल और पुष्टि चाहनेवाले के लिए और शत्रुओ को उद्विग करना चाहनेवाले ले लिए एंड्री महा शांति का विधान है ,अद्रुत विकारो की निवृति चाहने वाले के लिए और राज्य चाहने वाले के लिए महेंद्री का .धन चाहने वाले और धन क्षय को दूर करना चाहने वाले के लिए कौबेरी महा शांति का विधान है ,विद्या ,तेज .धन और आयु चाहनेवाले के लिए आदित्या का अन्न चाहने वाले के लिए वैष्णवी का ,ऐश्वर्य चाहनेवाले के लिए और वास्तु संस्कार कर्म में वस्तोष्प्त्या का रोगार्ट और आप्द्र ग्रस्त लिए रौद्री महाशांति का वर्णन है ।फिर विज्यभिलाशिकी अपराजिता महाशांति का वर्णन है ,फिर महामारी यम भय अर्थात महामारी आदि के समय की जाने वाली याम्य महाशांति का जलमय अथ्न्त जल सावन के समय की जानेवाली वारुनी महाशांति और आंधी के भय से की जाने वाली वायव्य महाशांति का वर्णन है ।फिर कुल क्षय की निवृति के लिए संतति नामक महा शांति का वर्णन है ,बालक की व्याधियो  को दूर करने के लिए कुमारी महाशांति है ,पाप्ग्रस्त्के पापको शांत करने के लिए नैरुत्यी म्हाशामती है ,फिर बल चाहनेवालो के लिए मरुद्ग्नी महा शांति के लिए ,फिर भूमि के चाहनेवालो के लिए उपयोगिनी पार्थ्वी महाशांति है 

मूल मंत्रो को जानने के लिए प्रतीक्षा करे   । धन्यवाद    

Tuesday 20 November 2012

mantra0

1..
आपकी समस्याएं- 
- क्या आप अपने जीवन से तंग चुके हैं?
- क्या आप धन की कमी से परेशान हैं?
- क्या आप पारिवारिक कलह से झुंझलाहट क्रोध में रहते हैं।
- आप बच्चों की शादी से संकट में हैं?
- क्या आप कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाकर थक चुके हैं?
- क्या आपके ऊपर या परिजनों पर बुरी नजर लगी है?
- क्या आप हमेशा भाग्य को दोष देते रहते हैं?
- क्या आपका व्यापार-धंधा, उद्योग ठप है?
- क्या आपको नौकरी में प्रमोशन नहीं मिल रहा?
- क्या आप किसी को अपने वश में करना चाहते हैं?
- क्या आपकी जमीन, जायदाद जबरन हड़प ली है?
- क्या आप कोई नई नौकरी की तलाश में हैं?
- क्या आप एक अच्छा इंसान बनना चाहते हैं?
- क्या आपको मकान बनवाने में कई अड़चनें रही हैं?
- क्या आप अपनी धर्मपत्नी से परेशान हैं?
- क्या आप अपने पति की बुरी आदतें सुधारना चाहती हैं?
- क्या आपका बच्चा/बच्ची गुम हो गया है और सब प्रयासों
के बावजूद वह नहीं मिल रहा है।
- क्या आप लव-मैरिज करना चाहते हैं?
- क्या आप अपनी सास को सुधारना चाहती हैं?
- क्या आपका कहना आपके बच्चे नहीं मानते?
- क्या आप अपने बच्चों को परीक्षा में अच्छे नंबर दिलाना चाहते हैं?
- क्या आप बार-बार दुर्घटना के शिकार हो रहे हैं?
- क्या आपके घर में बार-बार दुर्घटनाएं घटित हो रही हैं? नोट - तंत्र (ताबीज) पहनकर किसी के निधन, उठावनी, क्रियाक्रम संस्कार में नहीं जाना है, ही शवयात्रा के पास से गुजरना है।.

Friday 16 November 2012

श्रीराम ज्योतिष सदन..

.1..
 
2 श्रीराम ज्योतिष सदन..
आपका पंडित आशु बहुगुणाआइये जाने,समझे एवं प्रयोग करें.हमारे ऋषि मुनियों द्वारा प्रदत्त उस ज्योतिषीय ज्ञान को.जिसका कोई विकल्प नहीं हें. इस ज्योतिष विद्या के द्वारा आप और हम सभी...
भविष्य में होने वाले अच्छे-बुरे घटना क्रम को जान सकते हें. उपाय. कर सकते हें..
पूजा पाठ,मन्त्र जाप जेसे उपायों द्वारा उस अशुभ घटना को टालने का प्रयास कर सकते हें.
हमारे जीवन में होने वाले ..हानि-लाभ,पढाई ,शादी- प्रेम विवाह,केरियर,रोग,मकान-जमीन-जायदाद,यात्रा,तलाक आदि के बारे में जानकारी लेने हेतु स्वागत हें.आप सभी का
कैसा होगा आपका जीवन साथी? घर कब तक बनेगा? नौकरी कब लगेगी? संतान प्राप्ति कब तक?, प्रेम विवाह होगा या नहीं,
ज्योतिष समबन्धी समस्या, PROVIDE YOUR DETAILS..
Name/Gender
Birth Date
Birth Time
Birth Place
Query........

.श्रीसूक्त के प्रयोग १

1..

ASHU..............श्रीसूक्त के प्रयोग १॰ “श्रीं ह्रीं क्लीं।।हिरण्य-वर्णा हरिणीं, सुवर्ण-रजत-स्रजाम्। चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आवह।। श्रीं ह्रीं क्लीं” सुवर्ण से लक्ष्मी की मूर्ति बनाकर उस मूर्ति का पूजन हल्दी और सुवर्ण-चाँदी के कमल-पुष्पों से करें। फिर सुवासिनी-सौभाग्यवती स्त्री और गाय का पूजन कर, पूर्णिमा के चन्द्र में अथवा पानी से भरे हुए कुम्भ में श्रीपरा-नारायणी का ध्यान कर, सोने की माला से कमल-प...त्र के आसन पर बैठकर, ‘श्रीसूक्त’ की उक्त ‘हिरण्य-वर्णा॰॰’ ऋचा में ‘श्रीं ह्रीं क्लीं’ बीज जोड़कर प्रातः, दोपहर और सांय एक-एक हजार (१० माला) जप करे। इस प्रकार सवा लाख जप होने पर मधु और कमल-पुष्प से दशांश हवन करे और तर्पण, मार्जन तथा ब्राह्मण-भोजन नियम से करे। इस प्रयोग का पुरश्चरण ३२ लाख जप का है। सवा लाख का जप, होम आदि हो जाने पर दूसरे सवा लाख का जप प्रारम्भ करे। ऐसे कुल २६ प्रयोग करने पर ३२ लाख का प्रयोग सम्पूर्ण होता है। इस प्रयोग का फल राज-वैभव, सुवर्ण, रत्न, वैभव, वाहन, स्त्री, सन्तान और सब प्रकार का सांसारिक सुख की प्राप्ति है। २॰ “ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महा-लक्ष्म्यै नमः।। दुर्गे! स्मृता हरसि भीतिमशेष-जन्तोः, स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव-शुभां ददासि। ॐ ऐं हिरण्य-वर्णां हरिणीं, सुवर्ण-रजत-स्रजाम्। चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आवह।। दारिद्रय-दुःख-भय-हारिणि का त्वदन्या, सर्वोपकार-करणाय सदाऽर्द्र-चित्ता।। ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महा-लक्ष्म्यै नमः।।” यह ‘श्रीसूक्त का एक मन्त्र सम्पुटित हुआ। इस प्रकार ‘तां म आवह′ से लेकर ‘यः शुचिः’ तक के १६ मन्त्रों को सम्पुटित कर पाठ करने से १ पाठ हुआ। ऐसे १२ हजार पाठ करे। चम्पा के फूल, शहद, घृत, गुड़ का दशांश हवन तद्दशांश तर्पण, मार्जन तथा ब्रह्म-भोजन करे। इस प्रयोग से धन-धान्य, ऐश्वर्य, समृद्धि, वचन-सिद्धि प्राप्त होती है। ३॰ “ॐ ऐं ॐ ह्रीं।। तां म आवह जात-वेदो लक्ष्मीमनप-गामिनीम्। यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरुषानहम्।। ॐ ऐं ॐ ह्रीं” सुवर्ण से लक्ष्मी की मूर्ति बनाकर उस मूर्ति का पूजन हल्दी और सुवर्ण-चाँदी के कमल-पुष्पों से करें। फिर सुवासिनी-सौभाग्यवती स्त्री और गाय का पूजन कर, पूर्णिमा के चन्द्र में अथवा पानी से भरे हुए कुम्भ में श्रीपरा-नारायणी का ध्यान कर, सोने की माला से कमल-पत्र के आसन पर बैठकर, नित्य सांय-काल एक हजार (१० माला) जप करे। कुल ३२ दिन का प्रयोग है। दशांश हवन, तर्पण, मार्जन तथा ब्रह्म-भोजन करे। माँ लक्ष्मी स्वप्न में आकर धन के स्थान या धन-प्राप्ति के जो साधन अपने चित्त में होंगे, उनकी सफलता का मार्ग बताएँगी। धन-समृद्धि स्थिर रहेगी। प्रत्येक तीन वर्ष के अन्तराल में यह प्रयोग करे। ४॰ “ॐ ह्रीं ॐ श्रीं।। अश्व-पूर्वां रथ-मध्यां, हस्ति-नाद-प्रबोधिनीम्। श्रियं देवीमुपह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम्।। ॐ ह्रीं ॐ श्रीं” उक्त मन्त्र का प्रातः, मध्याह्न और सांय प्रत्येक काल १०-१० माला जप करे। संकल्प, न्यास, ध्यान कर जप प्रारम्भ करे। इस प्रकार ४ वर्ष करने से मन्त्र सिद्ध होता है। प्रयोग का पुरश्चरण ३६ लाख मन्त्र-जप का है। स्वयं न कर सके, तो विद्वान ब्राह्मणों द्वारा कराया जा सकता है। खोया हुआ या शत्रुओं द्वारा छिना हुआ धन प्राप्त होता है। ५॰ “करोतु सा नः शुभ हेतुरीश्वरी, शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः। अश्व-पूर्वां रथ-मध्यां, हस्ति-नाद-प्रबोधिनीम्। श्रियं देवीमुपह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम्।। करोतु सा नः शुभ हेतुरीश्वरी, शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः।।” उक्त आधे मन्त्र का सम्पुट कर १२ हजार जप करे। दशांश हवन, तर्पण, मार्जन तथा ब्रह्म-भोजन करे। इससे धन, ऐश्वर्य, यश बढ़ता है। शत्रु वश में होते हैं। खोई हुई लक्ष्मी, सम्पत्ति पुनः प्राप्त होती है। ६॰ “ॐ श्रीं ॐ क्लीं।। कांसोऽस्मि तां हिरण्य-प्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्। पद्मे स्थितां पद्म-वर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्।। ॐ श्रीं ॐ क्लीं” उक्त मन्त्र का पुरश्चरण आठ लाख जप का है। जप पूर्ण होने पर पलाश, ढाक की समिधा, दूध और गाय के घी से हवन तद्दशांश तर्पण, मार्जन, ब्रह्म-भोज करे। इस प्रयोग से सभी प्रकार की समृद्धि और श्रेय मिलता है। शत्रुओं का क्षय होता है। ७॰ “सर्वा-बाधा-प्रशमनं, त्रैलोक्याखिलेश्वरि! एवमेव त्वया कार्यमस्मद्-वैरि-विनाशनम्।। कांसोऽस्मि तां हिरण्य-प्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्। पद्मे स्थितां पद्म-वर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्।। सर्वा-बाधा-प्रशमनं, त्रैलोक्याखिलेश्वरि! एवमेव त्वया कार्यमस्मद्-वैरि-विनाशनम्।।” उक्त सम्पुट मन्त्र का १२ लाख जप करे। ब्राह्मण द्वारा भी कराया जा सकता है। इससे गत वैभव पुनः प्राप्त होता है और धन-धान्य-समृद्धि और श्रेय मिलता है। शत्रुओं का क्षय होता है। ८॰ “ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं।।कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद महा-लक्ष्म्यै नमः।। दुर्गे! स्मृता हरसि भीतिमशेष-जन्तोः, स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव-शुभां ददासि। कांसोऽस्मि तां हिरण्य-प्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्। पद्मे स्थितां पद्म-वर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्।। दारिद्रय-दुःख-भय-हारिणि का त्वदन्या, सर्वोपकार-करणाय सदाऽर्द्र-चित्ता।। ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं।।कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद महा-लक्ष्म्यै नमः।।” उक्त प्रकार से सम्पुटित मन्त्र का १२ हजार जप करे। इस प्रयोग से वैभव, लक्ष्मी, सम्पत्ति, वाहन, घर, स्त्री, सन्तान का लाभ मिलता है। ९॰ “ॐ क्लीं ॐ वद-वद।। चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देव-जुष्टामुदाराम्। तां पद्म-नेमिं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे।। ॐ क्लीं ॐ वद-वद।।” उक्त मन्त्र का संकल्प, न्यास, ध्यान कर एक लाख पैंतीस हजार जप करना चाहिए। गाय के गोबर से लिपे हुए स्थान पर बैठकर नित्य १००० जप करना चाहिए। यदि शीघ्र सिद्धि प्राप्त करना हो, तो तीनों काल एक-एक हजार जप करे या ब्राह्मणों से करावे। ४५ हजार पूर्ण होने पर दशांश हवन तद्दशांश तर्पण, मार्जन तथा ब्रह्म-भोजन करे। ध्यान इस प्रकार है- “अक्षीण-भासां चन्द्राखयां, ज्वलन्तीं यशसा श्रियम्। देव-जुष्टामुदारां च, पद्मिनीमीं भजाम्यहम्।।” इस प्रयोग से मनुष्य धनवान होता है। १०॰ “ॐ वद वद वाग्वादिनि।। आदित्य-वर्णे! तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः। तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः।। ॐ वद वद वाग्वादिनि” देवी की स्वर्ण की प्रतिमा बनवाए। चन्दन, पुष्प, बिल्व-पत्र, हल्दी, कुमकुम से उसका पूजन कर एक से तीन हजार तक उक्त मन्त्र का जप करे। कुल ग्यारह लाख का प्रयोग है। जप पूर्ण होने पर बिल्व-पत्र, घी, खीर से दशांश होम, तर्पण, मार्जन, ब्रह्म-भोजन करे। यह प्रयोग ब्राह्मणों द्वारा भी कराया जा सकता है। ‘ऐं क्लीं सौः ऐं श्रीं’- इन बीजों से कर-न्यास और हृदयादि-न्यास करे। ध्यान इस प्रकार करे- “उदयादित्य-संकाशां, बिल्व-कानन-मध्यगाम्। तनु-मध्यां श्रियं ध्यायेदलक्ष्मी-परिहारिणीम्।।” प्रयोग-काल में फल और दूध का आहार करे। पकाया हुआ पदार्थ न खाए। पके हुए बिल्व-फल फलाहार में काए जा सकते हैं। यदि सम्भव हो तो बिल्व-वृक्ष के नीचे बैठकर जप करे। इस प्रयोग से वाक्-सिद्धि मिलती है और लक्ष्मी स्थिर रहती है। ११॰ “ज्ञानिनामपि चेतांसि, देवी भगवती हि सा। बलादाकृष्य मोहाय, महा-माया प्रयच्छति।। आदित्य-वर्णे तपसोऽधिजाते, वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः। तस्य फलानि तपसा नुदन्तु, मायान्तरा ताश्च बाह्या अलक्ष्मीः।। ज्ञानिनामपि चेतांसि, देवी भगवती हि सा। बलादाकृष्य मोहाय, महा-माया प्रयच्छति।।” उक्त मन्त्र का १२००० जप कर दशांश होम, तर्पण करे। इस प्रयोग से जिस वस्तु की या जिस मनुष्य की इच्छा हो, उसका आकर्षण होता है और वह अपने वश में रहता है। राजा या राज्य-कर्ताओं को वश करने के लिए ४८००० जप करना चाहिए। १२॰ “ॐ वाग्वादिनी ॐ ऐं। उपैतु मां देवसखः, कीर्तिश्च मणिना सह। प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्, कीर्ति वृद्धिं ददातु मे। ॐ वाग्वादिनी ॐ ऐं।।” उक्त मन्त्र का बत्तीस लाख बीस हजार जप करे। “ॐ अस्य श्रीसूक्तस्य ‘उपैतु मां॰’ मन्त्रस्य कुबेर ऋषिः, मणि-मालिनी लक्ष्मीः देवता, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीं ब्लूं क्लीं बीजानि ममाभीष्ट-कामना-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।’ इस प्रकार ‘विनियोग’, ऋष्यादि-न्यास’ कर ‘आं ह्रीं क्रों ऐं श्रीं आं ह्रं क्रौं ऐं’ इन ९ बीजों से कर-न्यास एवं ‘हृदयादि-न्यास’ करे। ध्यान- “राज-राजेश्वरीं लक्ष्मीं, वरदां मणि-मालिनीं। देवीं देव-प्रियां कीर्ति, वन्दे काम्यार्थ-सिद्धये।।” मणि-मालिनी लक्ष्मी देवी की स्वर्ण की मूर्ति बनाकर, बिल्व-पत्र, दूर्वा, हल्दी, अक्षत, मोती, केवड़ा, चन्दन, पुष्प आदि से पूजन करे। ‘श्री-ललिता-सहस्त्रनाम-स्तोत्र’ के प्रत्येक नाम के साथ ‘श्रीं’ बीज लगाकर पूजन करे। सन्ध्यादि नित्य कर्म कर प्रयोग का प्रारम्भ करे। घी का दीप और गूगल का धूप करे। द्राक्षा, खजूर, केले, ईख, शहद, घी, दाड़िम, केरी, नारियल आदि जो प्राप्त हो, नैवेद्य में दे। प्रातः और मध्याह्न में १००० और रात्रि में २००० नित्य जप करे। ढाई साल में एक व्यक्ति बत्तीस लाख बीस हजार का जप पूर्ण कर सकता है। जप करने के लिए प्रवाल की माला ले। जप पूर्ण होने पर अपामार्ग की समिधा, धृत, खीर से दशांश होम कर मार्जन और ब्रह्म-भोज करे। इस प्रयोग से कुबेर आदि देव साक्षात् या स्वप्न में दर्शन देते हैं और धन, सुवर्ण, रत्न, रसायन, औषधि, दिव्याञ्जन आदि देते हैं। १३॰ “ॐ ऐं ॐ सौः। क्षुत्-पिपासामला ज्येष्ठा, अलक्ष्मीर्नाशयाम्यहम्। अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वान् निर्णुद मे गृहात्। ॐ ऐं ॐ सौः” उक्त मन्त्र का ३२,००० जप करे। प्रतिदिन रात्रि में वीरासन में बैठकर ३००० जप करे। ‘अग्नि-होत्र-कुण्ड’ के सम्मुख बैठकर ‘जप’ करने से विशेष फल मिलता है। रुद्राक्ष की माला से जप करे। तिल, गुड़ और घी से दशांश होम तथा तर्पण, मार्जन, ब्रह्म-भोजन करावे। ध्यान- “खड्गं स-वात-चक्रं च, कमलं वरमेव च। करैश्चतुर्भिर्विभ्राणां, ध्याये चंद्राननां श्रियम्।।” एक अनुष्ठान दस दिन में पूर्ण होगा। इस प्रकार चार अनुष्ठान पूरे करें। इस प्रयोग से शत्रु का या बिना कारण हानि पहुँचानेवाले का नाश होगा और दरिद्रता, निर्धनता, रोग, भय आदि नष्ट होकर प्रयोग करने वाला अपने कुटुम्ब के साथ दीर्घायुषी और ऐश्वर्यवान् होता है। ग्रह-दोषों का अनिष्ट फल, कारण और क्षुद्र तत्वों की पीड़ा आदि नष्ट होकर भाग्योदय होता है। १४॰ “रोगानशेषानपहंसि तुष्टा, रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्। त्वामाश्रितानां न विपन्नराणाम्, त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।। क्षुत्-पिपासामला ज्येष्ठा, अलक्ष्मीर्नाशयाम्यहं। अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वान् निर्णुद मे गृहात्। रोगानशेषानपहंसि तुष्टा, रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्। त्वामाश्रितानां न विपन्नराणाम्, त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।” उक्त मन्त्र का १००० जप रात्रि में करे। २०००० जप होने पर दशांश होम-काले तिल, सुपाड़ी, राई से करे। दशांश तर्पण, मार्जन आदि करे। शत्रु के विनाश के लिए, रोगों की शान्ति के लिए और विपत्तियों के निवारण के लिए यह उत्तम प्रयोग है। शत्रु-नाश के लिए रीठे के बीज की माला से काले ऊन के आसन पर वीरासन-मुद्रा से बैठकर क्रोध-मुद्रा में जप करे। १५॰ “ॐ सौः ॐ हंसः। गन्ध-द्वारां दुराधर्षां, नित्य-पुष्टां करीषिणीम्। ईश्वरीं सर्व-भूतानां, तामिहोपह्वये श्रियम्। ॐ सौः ॐ हंसः।।” उक्त मन्त्र का एक लाख साठ हजार जप करे। कमल-गट्टे की माला से कमल के आसन पर या कौशेय वस्त्र के आसन पर बैठकर जप करे। ‘स्थण्डिल′ पर केसर, कस्तुरी, चन्दन, कपूर आदि सुगन्धित द्रव्य रखकर श्रीलक्ष्मी देवी की मूर्ति की पूजा करे। जप पूर्ण होने पर खीर, कमल-पुष्प और तील से दशांश होम कर तर्पण, मार्जन आदि करे। इस प्रयोग से धन-धान्य, समृद्धि, सोना-चाँदी, रत्न आदि मिलते हैं और सम्पन्न महानुभावों से बड़ा मान मिलता है। १६॰ “ॐ हंसः ॐ आं। मनसः काममाकूतिं, वाचः सत्यमशीमहि। पशूनां रुपममन्नस्य, मयि श्रीः श्रयतां यशः। ॐ हंसः ॐ आं।।” उक्त मन्त्र ८ लाख जपे। ‘ऐं-लं-वं-श्रीं’- को मन्त्र के साथ जोड़कर न्यास करे। यथा- कर-न्यासः- ऐं-लं-वं-श्रीं मनसः अंगुष्ठाभ्यां नमः। ऐं-लं-वं-श्रीं काममाकूतिं तर्जनीभ्यां स्वाहा। ऐं-लं-वं-श्रीं वाचः सत्यमशीमहि मध्यमाभ्यां वषट्। ऐं-लं-वं-श्रीं पशूनां अनामिकाभ्यां हुं। ऐं-लं-वं-श्रीं रुपममन्नस्य मयि कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्। ऐं-लं-वं-श्रीं श्रीः श्रयतां यशः करतल-कर-पृष्ठाभ्यां फट्। अंग-न्यासः- ऐं-लं-वं-श्रीं मनसः हृदयाय नमः। ऐं-लं-वं-श्रीं काममाकूतिं शिरसे स्वाहा। ऐं-लं-वं-श्रीं वाचः सत्यमशीमहि शिखायै वषट्। ऐं-लं-वं-श्रीं पशूनां कवचाय हुं। ऐं-लं-वं-श्रीं रुपममन्नस्य मयि नेत्र-त्रयाय वौषट्। ऐं-लं-वं-श्रीं श्रीः श्रयतां यशः अस्त्राय फट्। ध्यानः- तां ध्यायेत् सत्य-संकल्पां, लक्ष्मीं क्षीरोदन-प्रियाम्। ख्यातां सर्वेषु भूतेषु, तत्तद् ज्ञान-बल-प्रदाम्।। उक्त धऽयतान करे। बिल्व फल, बिल्व-काष्ठ, पलाश की समिधा, घृत, तिल, शक्कर आदि से दशांश हवन कर तर्पण, मार्जन आदि करे। इस प्रयोग से इच्छित वस्तु प्राप्त होती है और धन-धान्य, समृद्धि, वैभव-विलास बढ़ते हैं। १७॰ “ॐ आं ॐ ह्रीं। कर्दमेन प्रजा-भूता, मयि सम्भ्रम-कर्दम। श्रियं वासय मे कुले, मातरं पद्म-मालिनीम्।। ॐ आं ॐ ह्रीं।” उक्त मन्त्र का ३२ लाख जप करे। मन्त्र के साथ ‘वं श्रीं’ बीज जोड़कर न्यास करे। “स-वत्सा गौरिव प्रीता, कर्दमेन यथेन्दिरा। कल्याणी मद्-गृहे नित्यं, निवसेत् पद्म-मालिनी।।” उक्त ध्यान करे। जीवित बछड़ेवाली गाय का और पुत्रवती, सौभाग्यवती स्त्रियों का पूजन करे। गो-शाला में बैठकर कमल-गट्टे की माला से जप करे। प्रतिदिन छोटे बच्चों को दूध पिलाए। जप पूर्ण होने पर दशांश होम, मार्जन, ब्रह्म-भोजन आदि करे। इस प्रयोग से वन्ध्या स्त्री को भाग्य-शाली पुत्र होता है। वंश-वृद्धि होती है। होम शिव-लिंगी के बीज, खीर, श्वेत तिल, दूर्वा, घी से करे। तर्पण व मार्जन दूध से करे। १८॰ “ॐ क्रौं ॐ क्लीं। आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलाङ पद्म-मालिनीम्। चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आवहम्।। ॐ क्रौं ॐ क्लीं” उक्त मन्त्र प्रतिदिन ३००० जप करे। शुक्ल-पक्ष की पञ्चमी से प्रारम्भ कर पूर्णिमा तक जप करे। फिर दूसरे मास मं शुक्ल पञ्चमी से पूर्णिमा तक जप करे। सम्भव हो, तो चन्द्र-मण्डल के सामने दृष्टि स्थिर रखकर जप करे। अथवा चन्द्रमा का प्रकाश अपने शरीर पर पड़ सके इस प्रकार बैठकर जप करे। रुद्राक्ष, कमल-गट्टे की माला से कौशेय वस्त्र या कमल-पुष्प-गर्भित आसन पर बैठकर जप करे। प्रयोग सोलह मास का है। ध्यान इस प्रकार करे- “तां स्मरेदभिषेकार्द्रां, पुष्टिदां पुष्टि-रुपिणिम्। मैत्यादि-वृत्तिभिश्चार्द्रां, विराजत्-करुणा श्रियम्।। दयार्द्रां वेत्र-हस्तां च, व्रत-दण्ड-स्वरुपिणिम्। पिंगलाभां प्रसन्नास्यां पद्म-माला-धरां तथा।। चन्द्रास्यां चन्द्र-रुपां च, चन्द्रां चन्द्रधरां तथा। हिरन्मयीं महा-लक्ष्मीमृचभेतां जपेन्निशि।। मन्त्र के अक्षर से विनियोग, ऋष्यादि-न्यास कर चन्द्र-मण्डल में भगवती का उक्त ध्यान कर सोलह मास का प्रयोग करना हो, तो शुक्ल पञ्चमी से प्रारम्भ करे। होम खीर, समिधा, कमल पुष्प, सफेद तिल, घृत, शहद आदि से करे। दशांश तर्पण, मार्जन आदि करे। इस प्रयोग से वचन-सिद्धि, प्रतिष्ठा, वैभव की प्राप्ति होती है। १९॰ “ॐ क्लीं ॐ। श्रीं आर्द्रां यः करिणीं यष्टि-सुवर्णां हेम-मालिनीम्। सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो न आवह।। ॐ क्लीं ॐ” उक्त मन्त्र के अनुष्ठान में तीन लाख साठ हजार जप करना होता है। तालाब के किनारे अथवा कमल पुष्पों के आसन पर बैठकर, कमल-गट्टे या स्वर्ण की माला में प्रति-दिन तीन हजार जप है। १२० दिन में प्रयोग पूर्ण होगा। खीर, कमल-पुष्प या घी आदि से दशांश होम करे। १०० सुवासिनी स्त्रियों को भोजन कराए और वस्त्र-भूषण, दक्षिणा दे। ध्यान निम्न प्रकार करे- तां स्मरेदभिषेकार्द्रां, पुष्टिदां पुष्टि-रुपिणीं। रुक्माभां स्वप्न-धी-गम्यां, सुवर्णां स्वर्ण-मालिनी।। सूर्यामैश्वर्य-रुपां च, सावित्रीं सूर्य-रुपिणीम्। आत्म-संज्ञां च चिद्रुपां, ज्ञान-दृष्टि-स्वरुपिणीं। चक्षुः-प्राशदां चैव, हिरण्य-प्रचुरां तथा। स्वर्णात्मनाऽऽविर्भूतां च, जातवेदो म आवह।। इस प्रयोग से ग्रहों की पीड़ा, ग्रह-बाधा-निवृत्ति होकर भाग्य का उदय होता है। अपना और अपने कुटुम्बियों के शरीर नीरोगी, दीर्घायुषी और प्रभावशाली होते हैं। जिससे मिलने की इच्छा हो, वह मनुष्य आ मिलता है। २०॰ “ॐ श्रीं ॐ हूं। तां म आवह जातवेदो, लक्ष्मीमनपगामिनीम्। यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो, दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहं।। ॐ श्रीं ॐ हूं” ‘ॐ अस्य श्री-पञ्च-दश-मन्त्र ऋचः कुबेरो ऋषिः, भूत-धात्री लक्ष्मी देवता, प्रस्तार-पंक्तिश्छन्दः, ह्रीं श्रीं ह्रीं इति बीजानि, ममाभीष्ट-फल-प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगः।’ इस प्रकार विनियोग कर ऋष्यादि-न्यास करे। ‘ह्रीं श्रीं ह्रीं’ यर बीज लगाकर अंग-न्यास तथा हृदयादि-न्यास करे। ध्यान इस प्रकार करें- ध्याये लक्ष्मीं प्रहसित-मुखीं राज-सिंहासनस्थां। मुद्रा-शक्ति-सकल-विनुतां सर्व-संसेव्यनाम्। अग्नौ पूज्यामखिल-जननीं हेम-वर्णां हिरण्यां। भाग्योपेतां भुवन-सुखदां भार्गवीं भुत-धात्रीम्।। ज्वारी अथवा गेहूँ की राशि के ऊपर रतेशमी आसन बिछाकर, कमल-बीज की माला से नित्य तीन हजार जप करे। कुल सवा लाख जप करे। जप पूर्ण होने पर दूर्वा, खीर, मधु, घृत आदि से दशांश होम, तर्पण, मार्जन आदि करे। इस प्रयोग से लक्ष्मी स्थिर रहती है। 2… !! भजन !! इतना तो करना स्वामी, जब प्राण तन से निकले (२) गोविन्द नाम लेके, तब प्राण तन से निकले, श्री गंगाजी का तट हो, जमुना का वंशीवट हो, मेरा सावला निकट हो, जब प्राण तन से निकले पीताम्बरी कसी हो, छबी मान में यह बसी हो, होठो पे कुछ हसी हो, जब प्राण तन से निकले जब कंठ प्राण आये, कोई रोग ना सताये (२) यम् दरश ना दिखाए, जब प्राण तन से निकले उस वक्त जल्दी आना, नहीं श्याम भूल जाना,(२) राधे को साथ लाना, जब प्राण तन से निकले, एक भक्त की है अर्जी, खुद गरज की है गरजी आगे तुम्हारी मर्जी जब प्राण तन से निकले 3… काले तिल के प्रयोग चमका सकते हैं आपकी किस्मत, 1. प्रतिदिन शिवजी का विधि-विधान से पूजन करें। यदि विधिवत पूजन करने में असमर्थ हैं तो प्रतिदिन एक लौटे में शुद्ध जल भरें और उसमें थोड़े काले तिल डाल दें। अब इस जल को शिवलिंग पर ऊँ नम: शिवाय मंत्र जप के साथ चढ़ाएं। ध्यान रहे जल पतली धार से चढ़ाएं और मंत्र का जप करते रहें। इसके साथ ही महामृत्युंजय मंत्र का जप बेहद फायदेमंद रहता है। ऐसा प्रतिदिन करें। ब्रह्ममुहूर्त में उठकर नित्यकर्म से निवृत्त होकर पवित्र हो जाएं फिर किसी भी सिद्ध शिव मंदिर में जाएं। जल चढ़ाने के साथ पुष्प और बिल्व पत्र भी अवश्य चढ़ाएं। इस उपाय को अपनाने से कुछ ही दिनों में चमत्कारिक फल की प्राप्ति होने लगेगी। 2. यदि शनि की साढ़ेसाती या ढय्या का समय चल रहा हो तो किसी पवित्र नदी में प्रति शनिवार काले तिल प्रवाहित करना चाहिए। इससे शनि के दोषों की शांति होती है। 3. शिवलिंग पर काले तिल चढ़ाने चाहिए। इससे शनि के दोष शांत होते हैं। 4. काले तिल का दान करने से भी राहु-केतु और शनि संबंधी कई अशुभ योगों के बुरे प्रभाव समाप्त हो जाते हैं। 5. हर शनिवार को काले तिल, काली उड़द को काले कपड़े में बांधकर किसी गरीब व्यक्ति को दान करने से पैसों से जुड़ी समस्याएं समाप्त होने लगती हैं। 6. पीपल के पेड़ पर दूध में काले तिल मिलाकर चढ़ाने से भाग्यहीन व्यक्ति भी भाग्यशाली बन सकता है। ऐसा प्रतिदिन करना चाहिए। 4.. ॐ ऐंहींश्रीं प्रसीद परदेवते मम हृदि प्रभूतं भयं विदारये दर्रिद्रताम दलय देहि सर्वग्यताम् निधेहि करुणानिधे चरण पद्म युग्मं स्वकं निवाराये जरामृति त्रिपुरसुंदरी श्रीशिवे श्रींहींऐं ॐ भगवत्यै श्रीमद राजराजेश्वरयै त्रिपुरसुन्दरयै नमः श्रीविद्यायै नमः

https://youtu.be/XfpY7YI9CHc

https://youtu.be/XfpY7YI9CHc