Tuesday 16 April 2019

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺सीताराम जय वीर हनुमान 1.सुंदर कांड पाठ : सुंदर कांड पाठ तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस से लिया गया है इस पाठ से हनुमान जी को प्रसन्न किया जाता है विशेषतः शनी के प्रकोप को शांत करणे के लिये सुंदरकांड का पाठ लाभदायक होता है , वैसे कम से कम १०८ पाठ ब्राह्मण के द्वारा करवाया जाता है | 2: हनुमान चालीसा : हनुमान चालीसा कलियुग मे मनुष्य के जीवन का आधार है इसका पाठ प्रायः प्रतिदिन किया जाता है | परंतु विशेष रूप से ४१ दिन मे प्रतिदिन १०० पाठ कराने से कोई भी महत्वपूर्ण कार्य के लिए किये गया सभी अनुष्ठान पूर्ण होता है | 3 : बजरंग बाण : बजरंग बाण के पाठ से मनुष्य स्वयं सुरक्षित रहता है | बजरंग बाण के पाठ से मनुष्य सुरक्षित राहता है इसका कम से कम ५२ पाठ करके हवन करने पर विशेष लाभ प्राप्त होता है | श्रीराम ज्योतिष सदन पंडित आशु बहुगुणा मोबाइल नं -9760924411 शुभप्रभात:---- 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

“ॐ ऐं ह्रीं श्रीं नमो भगवते हनुमते मम कार्येषु ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल असाध्यं साधय साधय मां रक्ष रक्ष सर्वदुष्टेभ्यो हुं फट् स्वाहा।” विधिः-मंगलवार से प्रारम्भ करके इस मन्त्र का प्रतिदिन १०८ बार जप करता रहे और कम-से-कम सात मंगलवार तक तो अवश्य करे। इससे इसके फलस्वरुप घर का पारस्परिक विग्रह मिटता है, दुष्टों का निवारण होता है और बड़ा कठिन कार्य भी आसानी से सफल हो जाता है। ४॰ “हनुमन् सर्वधर्मज्ञ सर्वकार्यविधायक। अकस्मादागतोत्पातं नाशयाशु नमोऽस्तु ते।।” या “हनूमन्नञ्जनीसूनो वायुपुत्र महाबल। अकस्मादागतोत्पातं नाशयाशु नमोऽस्तु ते।।” विधिः- प्रतिदिन तीन हजार के हिसाब से ११ दिनों में ३३ हजार जप जो, फिर ३३०० दशांश हवन या जप करके ३३ ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाये। इससे अकस्मात् आयी हुई विपत्ति सहज ही टल जाती है..............................

श्री हनुमान सिद्धि के लिए मन्त्रः- “ॐ नमो देव लोक कामाख्या देवी, जहाँ बसे इस्माईल योगी । छप्पन भैरों, हनुमन्त वीर, भूत-प्रेत दैत्य को मार, भगावें । पराई माया ल्यावें । लाडू पेड़ा बरफी सेव सिंघाड़ा पाक बताशा मिश्री घेवर बालूसाई लोंग डोडा इलायची दाना तेल देवी काली के ऊपर । हनुमन्त गाजै ।। एती वस्तु मैं चाहि लाव, न लावे तो तैंतीस कोट देवता लावें । मिरची जावित्री जायफल हरड़े जंगी-हरड़े बादाम छुहारा मुखरें । रामवीर तो बतावैं बस्ती । लक्ष्मण वीर पकड़ावे हाथ । भूत-प्रेत के चलावें हाथ । हनुमन्त वीर को सब कोउ गावै । सौ कोसां का बस्ता लावे, न लावें तो एक लाख अस्सी हजार पीर-पैगम्बर लावें । शब्द सांचा, फुरे मन्त्र ईश्वरो वाचा ।” विधिः- इस मन्त्र का जप किसी निर्जन स्थान में, कोई अन्धा कुंआ के ऊपर बैठकर करें, सर्व-प्रथम वहां से शुद्ध मिट्टी लेकर उसमें लाल रंग या सिंदूर मिला कर हनुमान जी की प्रतिमा बनावें, फिर उस पर सिन्दूर का चोला चढ़ा कर मन्त्र में कही सामग्री उस प्रतिमा के समक्ष रख कर इस मन्त्र का २१ दिन तक प्रतिदिन रात्रि में २ माला जप करें, तो हनुमान जी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष किसी भी रुप में दर्शन देकर उसकी समस्त अभिलाषाएं पूर्ण करते हैं ।..

Sunday 27 January 2019

कार्य सिद्धि प्रयोग

रूके हुए कार्यों की सिद्धि के लिए:व्यापार, विवाह या किसी

- सफेद पलाश के फूल, चांदी की गणेश प्रतिमा,

- बिल्ली की आंवल, सियार सिंगी, हथ्था जोड़ी और कामाख्या का वस्त्र इन तीनों को एक साथ सिंदूर में रखें। उपरोक्त सामग्री में से किसी को भी तिजोरी में

किसी के प्रत्येक शुभ का

- रूके हुए कार्यों की सिद्धि के लिए यह प्रयोग बहुत ही लाभदायक है। गणेश चतुर्थी को गणेश जी का ऐसा चित्र घर या दुकान पर लगाएं,

- सरकारी या निजी रोजगार क्षेत्र में परिश्रम के उपरांत भी सफलता नहीं मिल रही हो, तो नियमपूर्वक किये गये विष्णु यज्ञ की विभूति ले कर, अपने पितरों की क्वकुशां की मूर्ति बना कर, गंगाजल से स्नान करायें तथा यज्ञ विभूति लगा कर, कुछ भोग लगा दें और उनसे कार्य की सफलता हेतु कृपा करने की प्रार्थना करें। किसी धार्मिक ग्रंथ का एक अध्याय पढ़ कर, उस कुशा की मूर्ति को पवित्र नदी या सरोवर में प्रवाहित कर दें। सफलता अवश्य मिलेगी। सफलता के बाद किसी शुभ कार्य में दान दें।जिसमें उनकी सूंड दायीं ओर मुड़ी हुई हो। इसकी आराधना करें। इसके आगे लौंग तथा सुपारी रखें। जब भी कहीं काम पर जाना हो, तो एक लौंग तथा सुपारी को साथ ले कर जाएं, तो काम सिद्ध होगा। लौंग को चूसें तथा सुपारी को वापस ला कर गणेश जी के आगे रख दें तथा जाते हुए कहें श्री गणेश काटो कलेशं।र्य में बाधा आती हो या विलम्ब होता हो तो रविवार को भैरों जी के मंदिर में सिंदूर का चोला चढ़ा कर बटुक भैरव स्तोत्रं का एक पाठ कर के गाय, कौओं और काले कुत्तों को उनकी रूचि का पदार्थ खिलाना चाहिए। ऐसा वर्ष में 4-5 बार करने से कार्य बाधाएं नष्ट हो जाएंगी।रखने से पहले

इन टोटकों से बनने लगेंगे आपके सारे काम अगर आपका कोई भी काम आसानी से नहीं होता है हर काम चाहे वह नौकरी से जुड़ा हो, शादी से या अन्य किसी क्षेत्र से रूकावटें और असफलताएं आपका रास्ता रोक लेती हैं तो इसके लिए ये टोटके आपके लिए लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं। किसी विशेष मुर्हूत में ।।ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुंण्डाये विच्चे।। इस मंत्र के जप के साथ अभिमंत्रित करें। व चांदी में

- घर के मुख्य दरवाजे

- सुबह शुभ मुहूर्त में एकाक्षी नारियल का कामिया सिन्दूर कुमकुम व चावल से पूजन करें धन लाभ होने लगेगा। पर कुमकुम से स्वास्तिक बनाएं और बासमती चावल की ढेरी पर एक सुपारी में कलावा बांध कर रख दें। धन का आगमन होने लगेगा। मड़ा हुए एकाक्षी नारियल को अभिमंत्रिमत कर तिजोरी में रखें।भी कार्य के करने में बार-बार असफलता:शनिदोष मिटाएगें

- एकाक्षी नारियल को लाल कपड़े में बांधकर तिजोरी में रखें।

श्री हनुमान चालीसा के चमत्कार

हनुमान चालीसा की चौपाई से चमत्कार

वैसे तो हनुमान चालीसा की हर चौपाइ और दोहे चमत्कारी हैं लेकिन कुछ ऐसी चौपाइयां हैं जो बहुत जल्द असर दिखाती हैं। ये चौपाइयां सर्वाधिक प्रचलित भी हैं समय-समय में काफी लोग इनका जप करते हैं।

1) रामदूत अतुलित बलधामा।
अंजनिपुत्र पवनसुत नामा।

यदि कोई व्यक्ति इस चौपाई का जप करता है तो उसे शारीरिक कमजोरियों से मुक्ति मिलती है। इस पंक्ति का अर्थ यह है कि हनुमानजी श्रीराम के दूत हैं और अतुलित बल के धाम हैं। यानि हनुमानजी परम शक्तिशाली हैं। इनकी माता का नाम अंजनी है इसी वजह से इन्हें अंजनी पुत्र कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार हनुमानजी को पवन देव का पुत्र माना जाता है इसी वजह से इन्हें पवनसुत भी कहते हैं।

2) महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।

यदि कोई व्यक्ति हनुमान चालीसा की केवल इस पंक्ति का जप करता है तो उसे सुबुद्धि की प्राप्ति होती है। इस पंक्ति का जप करने वाले लोगों के कुविचार नष्ट होते हैं और सुविचार बनने लगते हैं। बुराई से ध्यान हटता है और अच्छाई की ओर मन लगता है।

इस पंक्ति का अर्थ यही है कि बजरंगबली महावीर हैं और हनुमानजी कुमति को निवारते हैं यानि कुमति को दूर करते हैं और सुमति यानि अच्छे विचारों को बढ़ाते हैं।

3) बिद्यबान गुनी अति चातुर।
रामकाज करीबे को आतुर।।

यदि किसी व्यक्ति को विद्या धन चाहिए तो उसे इस पंक्ति का जप करना चाहिए। इस पंक्ति के जप से हमें विद्या और चतुराई प्राप्त होती है। इसके साथ ही हमारे हृदय में श्रीराम की भक्ति भी बढ़ती है।

इस चौपाई का अर्थ है कि हनुमानजी विद्यावान हैं और गुणवान हैं। हनुमानजी चतुर भी हैं। वे सदैव ही श्रीराम के काम को करने के लिए तत्पर रहते हैं। जो भी व्यक्ति इस चौपाई का जप करता है उसे हनुमानजी की ही तरह विद्या, गुण, चतुराई के साथ ही श्रीराम की भक्ति प्राप्त होती है।

4) भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्रजी के काज संवारे।।

जब आप शत्रुओं से परेशान हो जाएं और कोई रास्ता दिखाई न दे तो हनुमान चालीसा का जप करें। यदि एकाग्रता और भक्ति के साथ हनुमान चालीसा की सिर्फ इस पंक्ति का भी जप किया जाए तो शत्रुओं पर विजय प्राप्ति होती है। श्रीराम की कृपा प्राप्त होती है।

इस पंक्ति का अर्थ यह है कि श्रीराम और रावण के बीच हुए युद्ध में हनुमानजी ने भीम रूप यानि विशाल रूप धारण करके असुरों-राक्षसों का संहार किया। श्रीराम के काम पूर्ण करने में हनुमानजी ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। जिससे श्रीराम के सभी काम संवर गए।

5) लाय संजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।

इस पंक्ति का जप करने से भयंकर बीमारियों से भी मुक्ति मिल सकती है। यदि कोई व्यक्ति किसी गंभीर बीमारी से पीडि़त है और दवाओं का भी असर नहीं हो रहा है तो उसे भक्ति के साथ हनुमान चालीसा या इस पंक्ति का जप करना चाहिए। दवाओं का असर होना शुरू हो जाएगा, बीमारी धीरे-धीरे ठीक होने लगेगी।

इस चौपाई का अर्थ यह है कि रावण के पुत्र मेघनाद ने लक्ष्मण को मुर्छित कर दिया था। तब सभी औषधियों के प्रभाव से भी लक्ष्मण की चेतना लौट नहीं रही थी। तब हनुमानजी संजीवनी औषधि लेकर आए और लक्ष्मण के प्राण बचाए। हनुमानजी के इस चमत्कार से श्रीराम अतिप्रसन्न हुए।

श्रीराम के परम भक्त हनुमानजी सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवताओं में से एक हैं। शास्त्रों के अनुसार माता सीता के वरदान के प्रभाव से बजरंग बली को अमर बताया गया है। ऐसा माना जाता है आज भी जहां रामचरित मानस या रामायण या सुंदरकांड का पाठ पूरी श्रद्धा एवं भक्ति से किया जाता है वहां हनुमानजी अवश्य प्रकट होते हैं। इन्हें प्रसन्न करने के लिए बड़ी संख्या श्रद्धालु हनुमान चालीसा का पाठ भी करते हैं।

यदि कोई व्यक्ति पूरी हनुमान चालीसा का पाठ करने में असमर्थ रहता है तो वह अपनी मनोकामना के अनुसार केवल कुछ पंक्तियों का भी जप कर सकता है।

शिव पंचाक्षर स्तोत्र

शिव को प्रसन्न करने की चाह तथा उनकी शरणागत पाने के लिए भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र बहुत महत्व रखता है. इस व्रत के साथ ही शिव भगवान का व्रत तथा पूजन अवश्य करना चाहिए. शिव व्रत करने वाले व्यक्ति सांसारिक भोगों को भोगने के पश्चात अंत में शिवलोक में जाते है. चतुर्दशी तिथि को इस पंचाक्षरी मंत्र का जाप अवश्य ही किया जाना चाहिए ऎसा करने से मनुष्य सभी तीर्थों के स्नान का फल प्राप्त करता है. जो व्यक्ति शिव की भक्ति से अछूते रहते हैं वह हमेशा जन्म-मरण के चक्र में घूमते रहते हैं.

भगवान शिव का पूजन कर भक्तगण उनका आशीर्वाद प्राप्त कर अपनी समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने का वर माँगते हैं. शिवलिंग पर बेल वृक्ष के पत्ते चढा़ने चाहिए. धतूरे के पुष्पों से शिवलिंग पर पूजन करना चाहिए. भगवान शिव को बिल्वपत्र तथा धतूरे के फूल बहुत प्रिय हैं. इसलिए शिव पूजन में इनका प्रयोग करना चाहिए. इस दिन "ऊँ नम: शिवाय" का जाप 108 बार करना चाहिए. महामृत्युंजय मंत्र का जाप शिव भगवान को प्रसन्न करने का तथा सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करने का महामंत्र है.

भगवान शिव पर जिस पर कृपा करते हैं उनका उद्धार हो जाता है. भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कई स्तुतियों की रचना प्राप्त होती है इन सभी के मध्य में शिव पंचाक्षर स्त्रोत एक महत्वपूर्ण मंत्र साधना है. इसका प्रतिदिन जाप करने से भगवान शंकर शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं तथ औनका आशिर्वाद एवं सानिध्य प्राप्त होता है.
शिव पंचाक्षर स्त्रोत |

नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय

नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे न काराय नम: शिवाय:॥

मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय

मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे म काराय नम: शिवाय:॥

शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय

श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नम: शिवाय:॥

वषिष्ठ कुभोदव गौतमाय मुनींद्र देवार्चित शेखराय

चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै व काराय नम: शिवाय:॥

यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय

दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै य काराय नम: शिवाय:॥

पंचाक्षरमिदं पुण्यं य: पठेत शिव सन्निधौ

शिवलोकं वाप्नोति शिवेन सह मोदते॥

नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय|
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे "न" काराय नमः शिवायः॥

इस मंत्र के अर्थ में हम इस बात को समक्ष सकते हैं जो इस प्रकार है कि हे प्रभु महेश्वर आप नागराज को गले हार रूप में धारण करते हैं आप तीन नेत्रों वाले भस्म को अलंकार के रुप में धारण करके अनादि एवं अनंत शुद्ध हैं. आप आकाश को वस्त्र सामान धारण करने वाले हैं. मै आपके ‘न’स्वरूप को नमस्कार करता हूँ आप चन्दन से लिप्त गंगा को अपने सर पर धारण करके नन्दी एवं अन्य गणों के स्वामी महेश्वर हैं आप सदा मन्दार एवं अन्य पुष्पों द्वारा पुजित हैं. हे भगवन मैं आपके ‘म्’ स्वरूप को नमस्कार करता हूं.

धर्म ध्वज को धारण करने वाले नीलकण्ठ प्रभु तथा ‘शि’ अक्षर वाले महाप्रभु, आपने ही दक्ष के अंहकार स्वरुप यज्ञ का नाश किया था. माता गौरी को सूर्य सामान तेज प्रदान करने वाले प्रभु शिव को मै नमन करता हूँ.

देवगणो एवं वषिष्ठ, अगस्त्य, गौतम आदि मुनियों द्वारा पूज्य महादेव जिनके लिए सूर्य, चन्द्रमा एवं अग्नि त्रिनेत्र सामन हैं. हे प्रभु मेरा आपके ‘व्’ अक्षर वाले स्वरूप को नमस्कार है. हे यज्ञस्वरूप, जटाधारी शिव आप आदि, मध्य एवं अंत से रहित हैं आप सनातन हैं, हे प्रभु आप दिव्य अम्बर धारी शिव हैं मैं आपके ‘शि’ स्वरुप को मैं नमस्कार करता हूं

इस प्रकार जो कोई भी शिव के इस पंचाक्षर मंत्र का नित्य चिंतन-मनन ध्यान करता है वह शिव लोक को प्राप्त करता है|

श्री नरसिंह विजय रक्षा कवच

त्रैलोक्य-विजय श्रीनृसिंह कवच
।। पूर्व-पीठिका : श्री नारद उवाच ।।
इन्द्रादि-देव-वृन्देश ! ईश्वर, जगत्-पते ! महा-विष्णोर्नृसिंहस्य, कवचं ब्रूहि मे प्रभो !
यस्य प्रपठनाद् विद्वांस्त्रैलोक्य-विजयी भवेत् ।।१
।। श्री प्रजापतिरुवाच ।।
श्रृणु नारद ! वक्ष्यामि, पुत्र-श्रेष्ठ, तपोधन ! कवचं नृसिंहस्य तु, त्रैलोक्य-विजयाभिधम् ।।
यस्य पठनाद् वाग्मी, त्रैलोक्य-विजयी भवेत् । स्रष्टाऽहं जगतां वत्स ! पठनाद् धारणाद् यतः ।।
लक्ष्मीर्जगत्-त्रयं पाति, संहर्ता च महेश्वरः । पठनाद् धारणाद् देवाः बभूवुश्च दिगीश्वराः ।।
ब्रह्म-मन्त्र-मयं वक्ष्ये, भ्रान्त्यादि-विनिवारकं । यस्य प्रसादाद् दुर्वासास्त्रैलोक्य-विजयी भवेत् ।।
पठनाद् धारणाद् यस्य, शास्ता च क्रोध-भैरवः ।।
त्रैलोक्य-विजयस्यास्य, कवचस्य प्रजापतिः । ऋषिश्छन्दश्च गायत्री, नृसिंहो देवता विभुः ।
क्ष्रौं वीजं, हुं शक्तिः, फट् कीलकं, ममाभीष्ट-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।।
।। मूल-पाठ ।।
विनियोगः- ॐ अस्य त्रैलोक्य-विजय-नाम श्रीनृसिंह-कवचस्य श्रीप्रजापतिः ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्रीनृसिंहः देवता, क्ष्रौं वीजं, हुं शक्तिः, फट् कीलकं ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यासः- श्रीप्रजापति-ऋषये नमः शिरसि, गायत्री-छन्दसे नमः मुखे, श्रीनृसिंह-देवतायै नमः हृदि, क्ष्रौं वीजाय नमः गुह्ये, हुं शक्तये नमः नाभौ, फट् कीलकाय नमः पादयोः ममाभीष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।
ॐ उग्र-वीरं महा-विष्णुं, ज्वलन्तं सर्वतोमुखम् । नृसिंहं भीषणं भद्रं, मृत्यु-मृत्युं नमाम्यहम् ।।१
क्ष्रौं वीजं मे शिरः पातु, चन्द्र-वर्णो महा-मनुः । कण्ठं पातु ध्रुवं क्ष्रौं हृद्, भगवते चक्षुषी मे ।
नरसिंहाय च ज्वाला-मालिने पातु कर्णकम् ।।२
दीप्त-दंष्ट्राय च तथाऽग्नि-नेत्राय च नासिकां । सर्व-रक्षोघ्नाय तथा, सर्व-भूत-हिताय च ।।३
सर्व-ज्वर-विनाशाय, दह-दह पद-द्वयम् । रक्ष-रक्ष वर्म-मन्त्रः, स्वाहा पातु मुखं मम ।।४
ॐ रामचन्द्राय नमः, पातु च हृदयं मम । क्लीं पायात् पार्श्व-युग्मं च, तारो नमः पदं ततः ।।५
नारायणाय नाभिं च, आं ह्रीं क्रों क्ष्रौं चैव हुं फट् । षडक्षरः कटिं पातु, ॐ नमो भगवतेऽयम् ।।६
वासुदेवाय च पृष्ठं, क्लीं कृष्णाय ऊरु-द्वयं । क्लीं कृष्णाय सदा पातु, जानुनी च मनूत्तमः ।।७
क्लीं ग्लौं क्लीं श्यामलाङ्गाय नमः पायात् पद-द्वयं । क्ष्रौं नृसिंहाय क्ष्रौं चैव, सर्वाङ्गे मे सदाऽवतु ।।८
।। फल-श्रुति ।।
इति ते कथितं वत्स ! सर्व-मन्त्रौघ-विग्रहं । तव स्नेहान्मया ख्यातं, प्रवक्तव्यं न कस्यचित् ।।
गुरु-पूजां विधायाथ, गृह्णीयात् कवचं ततः । सर्व-पुण्य-युतो भूत्वा, सर्व-सिद्धि-युतो भवेत् ।।
शतमष्टोत्तरं चास्य, पुरश्चर्या-विधिः स्मृता । हवनादीन् दशांशेन, कृत्वा साधक-सत्तमः ।।
ततस्तु सिद्ध-कवचः, पुण्यात्मा मदनोपमः । स्पर्द्धामूद्धूय भवने, लक्ष्मीर्वाणि वसेत ततः ।।
पुष्पाञ्जल्यष्टकं दत्त्वा, मूलेनैव पठेत् सकृत् । अपि वर्ष-सहस्राणां, पूजायां फलमाप्नुयात् ।।
भूर्जे विलिख्य गुटिकां, स्वर्णस्थां धारयेद् यदि । कण्ठे वा दक्षिणे बाहौ, नरसिंहो भवेत् स्वयम् ।।
योषिद्-वाम-भुजे चैव, पुरुषो दक्षिणे-करे । बिभृयात् कवचं पुण्यं, सर्व-सिद्धि-युतो भवेत् ।।
काक-वन्ध्या च या नारी, मृत-वत्सा च या भवेत् । जन्म-वन्ध्या नष्ट-पुत्रा, बहु-पुत्र-वती भवेत् ।।
कवचस्य प्रसादेन, जीवन्मुक्तो भवेन्नरः । त्रैलोक्यं क्षोभयेत् सदा, त्रैलोक्य-विजयी भवेत् ।।
भूत-प्रेत-पिशाचाश्च, राक्षसा दानवाश्च ये । तं दृष्ट्वा प्रपलायन्ते, देशाद् देशान्तरे ध्रुवम् ।।
यस्मिन् गृहे च कवचं, ग्रामे वा यदि तिष्ठति । तद्-देशं तु परित्यज्य, प्रयान्ति ह्यति-दूरतः ।।
।। इति ब्रह्म-संहितायां त्रैलोक्य-विजयं नाम नृसिंह-कवचम् ।।
‘पूर्व-पीठिका’ और ‘फल-श्रुति’ के अनुसार उक्त ‘श्रीनृसिंह कवच’ का १०८ पाठ करने से इसका ‘पुरश्चरण’ होता है । दशांश अर्थात् ११ पाठ द्वारा ‘हवन’ और एक-एक पाठ द्वारा ‘तर्पण’, ‘मार्जन’ कर एक ब्राह्मण को भोजन कराने से यह ‘कवच-स्तोत्र’ सिद्ध हो जाता है । तब इसका प्रयोग कर विविध प्रकार की कामनाओं की पूर्ति की जा सकती है । कामनाओं का उल्लेख ‘पूर्व-पीठिका’ और ‘फल-श्रुति’ में किया गया है । यहाँ दिये गये ‘यन्त्र’ को भोज-पत्र पर लिखकर ‘ताबीज’ के रुप में कण्ठ़ या भुजा में धारण करने से अनेक कामनाओं की पूर्ति होती है ।

https://youtu.be/XfpY7YI9CHc

https://youtu.be/XfpY7YI9CHc