Wednesday 17 April 2019

यदि नजर लगी हो तो - यदि एक स्वस्थ्य व्यक्ति अचानक अस्वस्थ्य हो जायें और उस पर चिकित्सा का प्रभाव नहीं हो रहा है तो समझना चाहिए कि उक्त व्यक्ति नजरदोष से ग्रसित है। ऐसी स्थिति में एक साबूत नींबू के उपर काली स्याही से 307 लिख दें और उस व्यक्ति के उपर उल्टी तरफ से 7 बार उतारें। इसके पश्चात उसी नींबू को चार भागों में इस प्रकार से काटें कि वह नीचें से जुड़े रहें। और फिर उसी नींबू को घर से बाहर किसी निर्जन स्थान पा फेंक दें। यह उपाय करने से पीडि़त व्यक्ति शीघ्र ही स्वस्थ्य हो जायेगा।यदि नजर लगी हो तो - इसके अलावा नज़र उतारने के लिए एक रोटी बनाएं और इसे एक तरफ से ही सेकें, दूसरी तरफ से कच्ची छोड़ दें। इसके सेके हुए भाग पर तेल या घी लगाकर और उस पर लाल मिर्च और नमक की दो- तीन डली रखकर नजर लगे व्यक्ति के ऊपर से सात बार उतार कर किसी चौराहे पर रख आएं। यदि नजर लगी हो तो- जिन व्यक्तियों को नजर अधिक लगती है, इन्हें सम्भव हो सके तो प्रत्येक दिन अन्यथा मंगलवार और शनिवार को श्री हनुमान जी के मंदिर में जाकर उनके चरणों से थोड़ा सा सिन्दूर लेकर अपने मस्तक पर धारण करना चाहिए ऐसा करने से नजर दोष से बचाव हो जाता है. यदि नजर लगी हो तो - जब कभी किसी छोटे बच्चों को नजर लग जाती है तो, वह दूध उलटने लगता है और दूध पीना बन्द कर देता है, ऐसे में परिवार के लोग चिंतित और परेशान हो जाते है। ऐसी स्थिति में एक बेदाग नींबू लें और उसको बीच में आधा काट दें तथा कटे वाले भाग में थोड़े काले तिल के कुछ दाने दबा दें। और फिर उपर से काला धागा लपेट दें। अब उसी नींबू को बालक पर उल्टी तरफ से 7 बार उतारें। इसके पश्चात उसी नींबू को घर से दूर किसी निर्जन स्थान पर फेंक दें। इस उपाय से शीघ्र ही लाभ मिलेगा।यदि नजर लगी हो तो -एक साफ रुमाल पर हनुमानजी के पांव का सिंदूर लगाएं और इस रुमाल पर दस ग्राम काले तिल, दस ग्राम काले उड़द, एक लोहे की कील, तीन साबूत लाल मिर्च लेकर उसकी पोटली बना लें। जिस व्यक्ति को नजर लगी हो उसके सिरहाने यह पोटली रख दें। चौबीस घंटे के बाद यह पोटली किसी नदी या बहते हुए जल में बहा दें। ऐसा करने से जल्द ही बुरी नज़र से प्रभावित व्यक्ति ठीक हो जायेगा| यदि बच्चे को नजर लगी हो और वह दूध नहीं पी रहा हो तो थोड़ा दूध एक कटोरी में लेकर बच्चे के ऊपर से सात बार उतार कर काले कुत्ते को पिला दें। बच्चा दूध पीने लगेगा। यदि नजर लगी हो तो - नजर लगे व्यक्ति को लिटाकर फिटकरी का टुकड़ा सिर से पांव तक सात बार उतारें। ध्यान रखें हर बार सिर से पांव तक ले जाकर तलुवे छुआकर फिर सिर से घुमाना शुरु करें। इस फिटकरी के टुकड़े को कण्डे की आग पर डाल दें। जैसे- जैसे वह फिटकरी आग में जलती जायेगी वैसे- वैसे बुरी नजर उतरती जायेगी| यदि नजर लगी हो तो - राई के कुछ दाने, नमक की सात डली और सात साबुत डंठल वाली लाल सूखी मिर्च बाएं हाथ की मुट्ठी में लेकर नजर लगे व्यक्ति को लिटाकर सिर से पांव तक सात बार उतारा करें और जलते हुए चूल्हे में झोंक दें। यह टोटका अनटोका करें। ध्यान रहे यह कार्य सिर्फ मंगलवार और रविवार को ही करें क्योंकि इस दिन यह अचूक रहता है| यदि नजर लगी हो तो - मिर्च, राई व नमक को पीड़ित व्यक्ति के सिर से वार कर आग में जला दें। चंद्रमा जब राहु से पीड़ित होता है तब नजर लगती है। मिर्च मंगल का, राई शनि का और नमक राहु का प्रतीक है। इन तीनों को आग (मंगल का प्रतीक) में डालने से नजर दोष दूर हो जाता है। यदि इन तीनों को जलाने पर तीखी गंध न आए तो नजर दोष समझना चाहिए। यदि आए तो अन्य उपाय करने चाहिए। टोटका तीन-यदि आपके बच्चे को नजर लग गई है और हर वक्त परेशान व बीमार रहता है तो लाल साबुत मिर्च को बच्चे के ऊपर से तीन बार वार कर जलती आग में डालने से नजर उतर जाएगी और मिर्च का धचका भी नहीं लगेगा।

अभिचार या ऊपरी बाधा हो तो- यदि आपके ऊपर किसी ने अभिचार कर दिया है, अथवा भूत, प्रेत आदि उपरी बाधा से पीड़ित है, तो अपने क्षेत्र के प्रसिद्द श्री हनुमान मंदिर में सिन्दूर का चोला चढाना चाहिए ऐसा पांच बार करें. सारी बाधाए एकदम समाप्त होने लगेंगी. अभिचार या ऊपरी बाधा हो तो- यदि आपके ऊपर अभिचार कर्म किये जाने की आशंका हो, तो शनिवार को दोपहर में किसी एकांत चौराहे पर नींबू काटकर उसके चार फांक कर ले और उसमे सिन्दूर डाल कर उसे चारों दिशाओं में फेंक दे. ऐसा करने से आपके शत्रु द्वारा किया गया अभिचार कर्म पूर्ण रूप से समाप्त हो जायगा. अभिचार या ऊपरी बाधा हो तो- शनिवार के दिन एक जालदार जटा वाला नारियल ले और बहते जल में काले वस्त्र में लपेटकर 100 ग्राम काले तिल,जो,उरद की दाल एक कील के साथ शनिवार को प्रवाहित कर दें। शनि, राहु,केतु जनित या कोई और ऊपरी बाधा होगी तो उतर जाएगी। अभिचार या ऊपरी बाधा हो तो-मंगलवार को एक नारियल सवा मीटर लाल वस्त्र में लपेटकर अपने ऊपर से साथ बार उतार कर हनुमान जी के चरणों में रख दें। किसी भी प्रकार की बाधा, नज़र दोष,ज्वर होगा उतर जाएगा।

क्या है पीपल के 11 पत्तों का राज शास्त्रों के अनुसार हनुमानजी शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवी-देवताओं में से एक हैं। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस के अनुसार माता सीता द्वारा पवनपुत्र हनुमानजी को अमरता का वरदान दिया गया है। इसी वरदान के प्रभाव से पवनपुत्र अष्टचिरंजीवी में शामिल हैं। कलयुग में हनुमानजी भक्तों की सभी मनोकामनाएं तुरंत ही पूर्ण करते हैं।यहां जानिए पीपल के 11 पत्तों का 1 चमत्कारी उपाय, जो हनुमानजी की प्रतिमा के सामने करना है। इस उपाय से आपकी सभी समस्याएं खत्म हो जाएंगी और आप मालामाल हो सकते हैं… बजरंगबली को प्रसन्न करने के लिए कई प्रकार के उपाय बताए गए हैं। श्रीराम के अनन्य भक्त हनुमानजी की कृपा प्राप्त होते ही भक्तों के सभी दुख दूर हो जाते हैं। पैसों से जुड़ी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। कोई रोग हो तो वह भी नष्ट हो जाता है। इसके साथ ही यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में कोई ग्रह दोष हो तो पवनपुत्र की पूजा से वह भी दूर हो जाता है। यदि कोई व्यक्ति पैसों की तंगी का सामना करना रहा है तो उसे प्रति मंगलवार और शनिवार यह उपाय अपनाना चाहिए। निश्चित ही व्यक्ति की सभी समस्याएं धीरे-धीरे समाप्त हो जाती हैं और व्यक्ति मालामाल हो सकता है। उपाय इस प्रकार है- सप्ताह के प्रति मंगलवार और शनिवार को ब्रह्म मुहूर्त में उठें। इसके बाद नित्य कर्मों से निवृत्त होकर किसी पीपल के पेड़ से 11 पत्ते तोड़ लें। ध्यान रखें पत्ते पूरे होने चाहिए, कहीं से टूटे या खंडित नहीं होने चाहिए। इन 11 पत्तों पर स्वच्छ जल में कुमकुम या अष्टगंध या चंदन मिलाकर श्रीराम का नाम लिखें। नाम लिखते समय हनुमान चालिसा का पाठ करें। इसके बाद श्रीराम नाम लिखे हुए इन पत्तों की एक माला बनाएं। पीपल के पत्तों की माला को किसी भी हनुमानजी के मंदिर जाकर वहां बजरंगबली को अर्पित करें। इस प्रकार यह उपाय हर मंगलवार और शनिवार को करते रहें। कुछ समय में सकारात्मक परिणाम प्राप्त होने लगेंगे। ध्यान रखें उपाय करने वाला भक्त किसी भी प्रकार के अधार्मिक कार्य न करें। अन्यथा इस उपाय का प्रभाव समाप्त हो जाएगा और उचित लाभ प्राप्त नहीं हो सकेगा। साथ ही अपने कार्य और कर्तव्य के प्रति ईमानदार रहें।

सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र किसी भी देवता या देवी की प्रतिमा या यन्त्र के सामने बैठकर धूप दीपादि से पूजन कर इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिये। विशेष लाभ के लिये ‘स्वाहा’ और ‘नमः’ का उच्चारण करते हुए ‘घृत मिश्रित गुग्गुल’ से आहुतियाँ दे सकते हैं| ‘श्रीभृगु संहिता’ के सर्वारिष्ट निवारण खण्ड में इस अनुभूत स्तोत्र के 40 पाठ करने की विधि बताई गई है। इस पाठ से सभी बाधाओं का निवारण होता है :- ॐ गं गणपतये नमः। सर्व-विघ्न-विनाशनाय, सर्वारिष्ट निवारणाय, सर्व-सौख्य-प्रदाय, बालानां बुद्धि-प्रदाय, नाना-प्रकार-धन-वाहन-भूमि-प्रदाय, मनोवांछित-फल-प्रदाय रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।। ॐ गुरवे नमः, ॐ श्रीकृष्णाय नमः, ॐ बलभद्राय नमः, ॐ श्रीरामाय नमः, ॐ हनुमते नमः, ॐ शिवाय नमः, ॐ जगन्नाथाय नमः, ॐ बदरीनारायणाय नमः, ॐ श्री दुर्गा-देव्यै नमः।। ॐ सूर्याय नमः, ॐ चन्द्राय नमः, ॐ भौमाय नमः, ॐ बुधाय नमः, ॐ गुरवे नमः, ॐ भृगवे नमः, ॐ शनिश्चराय नमः, ॐ राहवे नमः, ॐ पुच्छानयकाय नमः, ॐ नव-ग्रह रक्षा कुरू कुरू नमः।। ॐ मन्येवरं हरिहरादय एव दृष्ट्वा द्रष्टेषु येषु हृदयस्थं त्वयं तोषमेति विविक्षते न भवता भुवि येन नान्य कश्विन्मनो हरति नाथ भवान्तरेऽपि। ॐ नमो मणिभद्रे। जय-विजय-पराजिते ! भद्रे ! लभ्यं कुरू कुरू स्वाहा।। ॐ भूर्भुवः स्वः तत्-सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।। सर्व विघ्नं शांन्तं कुरू कुरू स्वाहा।। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीबटुक-भैरवाय आपदुद्धारणाय महान्-श्याम-स्वरूपाय दिर्घारिष्ट-विनाशाय नाना प्रकार भोग प्रदाय मम (यजमानस्य वा) सर्वरिष्टं हन हन, पच पच, हर हर, कच कच, राज-द्वारे जयं कुरू कुरू, व्यवहारे लाभं वृद्धिं वृद्धिं, रणे शत्रुन् विनाशय विनाशय, पूर्णा आयुः कुरू कुरू, स्त्री-प्राप्तिं कुरू कुरू, हुम् फट् स्वाहा।। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः। ॐ नमो भगवते, विश्व-मूर्तये, नारायणाय, श्रीपुरूषोत्तमाय। रक्ष रक्ष, युग्मदधिकं प्रत्यक्षं परोक्षं वा अजीर्णं पच पच, विश्व-मूर्तिकान् हन हन, ऐकाह्निकं द्वाह्निकं त्राह्निकं चतुरह्निकं ज्वरं नाशय नाशय, चतुरग्नि वातान् अष्टादष-क्षयान् रांगान्, अष्टादश-कुष्ठान् हन हन, सर्व दोषं भंजय-भंजय, तत्-सर्वं नाशय-नाशय, शोषय-शोषय, आकर्षय-आकर्षय, मम शत्रुं मारय-मारय, उच्चाटय-उच्चाटय, विद्वेषय-विद्वेषय, स्तम्भय-स्तम्भय, निवारय-निवारय, विघ्नं हन हन, दह दह, पच पच, मथ मथ, विध्वंसय-विध्वंसय, विद्रावय-विद्रावय, चक्रं गृहीत्वा शीघ्रमागच्छागच्छ, चक्रेण हन हन, पा-विद्यां छेदय-छेदय, चौरासी-चेटकान् विस्फोटान् नाशय-नाशय, वात-शुष्क-दृष्टि-सर्प-सिंह-व्याघ्र-द्विपद-चतुष्पद अपरे बाह्यं ताराभिः भव्यन्तरिक्षं अन्यान्य-व्यापि-केचिद् देश-काल-स्थान सर्वान् हन हन, विद्युन्मेघ-नदी-पर्वत, अष्ट-व्याधि, सर्व-स्थानानि, रात्रि-दिनं, चौरान् वशय-वशय, सर्वोपद्रव-नाशनाय, पर-सैन्यं विदारय-विदारय, पर-चक्रं निवारय-निवारय, दह दह, रक्षां कुरू कुरू, ॐ नमो भगवते, ॐ नमो नारायणाय, हुं फट् स्वाहा।। ठः ठः ॐ ह्रीं ह्रीं। ॐ ह्रीं क्लीं भुवनेश्वर्याः श्रीं ॐ भैरवाय नमः। हरि ॐ उच्छिष्ट-देव्यै नमः। डाकिनी-सुमुखी-देव्यै, महा-पिशाचिनी ॐ ऐं ठः ठः। ॐ चक्रिण्या अहं रक्षां कुरू कुरू, सर्व-व्याधि-हरणी-देव्यै नमो नमः। सर्व प्रकार बाधा शमनमरिष्ट निवारणं कुरू कुरू फट्। श्रीं ॐ कुब्जिका देव्यै ह्रीं ठः स्वाहा।। शीघ्रमरिष्ट निवारणं कुरू कुरू शाम्बरी क्रीं ठः स्वाहा।। शारिका भेदा महामाया पूर्णं आयुः कुरू। हेमवती मूलं रक्षा कुरू। चामुण्डायै देव्यै शीघ्रं विध्नं सर्वं वायु कफ पित्त रक्षां कुरू। मन्त्र तन्त्र यन्त्र कवच ग्रह पीडा नडतर, पूर्व जन्म दोष नडतर, यस्य जन्म दोष नडतर, मातृदोष नडतर, पितृ दोष नडतर, मारण मोहन उच्चाटन वशीकरण स्तम्भन उन्मूलनं भूत प्रेत पिशाच जात जादू टोना शमनं कुरू। सन्ति सरस्वत्यै कण्ठिका देव्यै गल विस्फोटकायै विक्षिप्त शमनं महान् ज्वर क्षयं कुरू स्वाहा।। सर्व सामग्री भोगं सप्त दिवसं देहि देहि, रक्षां कुरू क्षण क्षण अरिष्ट निवारणं, दिवस प्रति दिवस दुःख हरणं मंगल करणं कार्य सिद्धिं कुरू कुरू। हरि ॐ श्रीरामचन्द्राय नमः। हरि ॐ भूर्भुवः स्वः चन्द्र तारा नव ग्रह शेषनाग पृथ्वी देव्यै आकाशस्य सर्वारिष्ट निवारणं कुरू कुरू स्वाहा।। ॐ ऐं ह्रीं श्रीं बटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय सर्व विघ्न निवारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीवासुदेवाय नमः, बटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीविष्णु भगवान् मम अपराध क्षमा कुरू कुरू, सर्व विघ्नं विनाशय, मम कामना पूर्णं कुरू कुरू स्वाहा।। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीबटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय सर्व विघ्न निवारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं ॐ श्रीदुर्गा देवी रूद्राणी सहिता, रूद्र देवता काल भैरव सह, बटुक भैरवाय, हनुमान सह मकर ध्वजाय, आपदुद्धारणाय मम सर्व दोषक्षमाय कुरू कुरू सकल विघ्न विनाशाय मम शुभ मांगलिक कार्य सिद्धिं कुरू कुरू स्वाहा।। एष विद्या माहात्म्यं च, पुरा मया प्रोक्तं ध्रुवं। शम क्रतो तु हन्त्येतान्, सर्वाश्च बलि दानवाः।। य पुमान् पठते नित्यं, एतत् स्तोत्रं नित्यात्मना। तस्य सर्वान् हि सन्ति, यत्र दृष्टि गतं विषं।। अन्य दृष्टि विषं चैव, न देयं संक्रमे ध्रुवम्। संग्रामे धारयेत्यम्बे, उत्पाता च विसंशयः।। सौभाग्यं जायते तस्य, परमं नात्र संशयः। द्रुतं सद्यं जयस्तस्य, विघ्नस्तस्य न जायते।। किमत्र बहुनोक्तेन, सर्व सौभाग्य सम्पदा। लभते नात्र सन्देहो, नान्यथा वचनं भवेत्।। ग्रहीतो यदि वा यत्नं, बालानां विविधैरपि। शीतं समुष्णतां याति, उष्णः शीत मयो भवेत्।। नान्यथा श्रुतये विद्या, पठति कथितं मया। भोज पत्रे लिखेद् यन्त्रं, गोरोचन मयेन च।। इमां विद्यां शिरो बध्वा, सर्व रक्षा करोतु मे। पुरूषस्याथवा नारी, हस्ते बध्वा विचक्षणः।। विद्रवन्ति प्रणश्यन्ति, धर्मस्तिष्ठति नित्यशः। सर्वशत्रुरधो यान्ति, शीघ्रं ते च पलायनम्।।

अचूक टोटके (शीघ्र विवाह के उपाय ,विवाह विलम्ब से होने के योग होने पर) समय पर अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने की इच्छा के कारण माता-पिता व भावी वर-वधू भी चाहते है कि अनुकुल समय पर ही विवाह हो जायें. कुण्डली में विवाह विलम्ब से होने के योग होने पर विवाह की बात बार-बार प्रयास करने पर भी कहीं बनती नहीं है. इस प्रकार की स्थिति होने पर शीघ्र विवाह के उपाय करने हितकारी रहते है. उपाय करने से शीघ्र विवाह के मार्ग बनते है. तथा विवाह के मार्ग की बाधाएं दूर होती है. उपाय करते समय ध्यान में रखने योग्य बातें :- 1. किसी भी उपाय को करते समय, व्यक्ति के मन में यही विचार होना चाहिए, कि वह जो भी उपाय कर रहा है, वह ईश्वरीय कृ्पा से अवश्य ही शुभ फल देगा. 2. सभी उपाय पूर्णत: सात्विक है तथा इनसे किसी के अहित करने का विचार नहीं है. 3. उपाय करते समय उपाय पर होने वाले व्ययों को लेकर चिन्तित नहीं होना चाहिए. 4. उपाय से संबन्धित गोपनीयता रखना हितकारी होता है. आईये शीघ्र विवाह के उपायों को समझने का प्रयास करें 1. हल्दी के प्रयोग से उपाय विवाह योग लोगों को शीघ्र विवाह के लिये प्रत्येक गुरुवार को नहाने वाले पानी में एक चुटकी हल्दी डालकर स्नान करना चाहिए. भोजन में केसर का सेवन करने से विवाह शीघ्र होने की संभावनाएं बनती है. 2. पीला वस्त्र धारण करना ऎसे व्यक्ति को सदैव शरीर पर कोई भी एक पीला वस्त्र धारण करके रखना चाहिए. 3. वृ्द्धो का सम्मान करना उपाय करने वाले व्यक्ति को कभी भी अपने से बडों व वृ्द्धों का अपमान नहीं करना चाहिए. 4. गाय को रोटी देना जिन व्यक्तियों को शीघ्र विवाह की कामना हों उन्हें गुरुवार को गाय को दो आटे के पेडे पर थोडी हल्दी लगाकर खिलाना चाहिए. तथा इसके साथ ही थोडा सा गुड व चने की पीली दाल का भोग गाय को लगाना शुभ होता है. 5. शीघ्र विवाह प्रयोग इसके अलावा शीघ्र विवाह के लिये एक प्रयोग भी किया जा सकता है. यह प्रयोग शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार को किया जाता है. इस प्रयोग में गुरुवार की शाम को पांच प्रकार की मिठाई, हरी ईलायची का जोडा तथा शुद्ध घी के दीपक के साथ जल अर्पित करना चाहिये. यह प्रयोग लगातार तीन गुरुवार को करना चाहिए. 6. केले के वृ्क्ष की पूजा गुरुवार को केले के वृ्क्ष के सामने गुरु के 108 नामों का उच्चारण करने के साथ शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए. अथा जल भी अर्पित करना चाहिए. 7. सूखे नारियल से उपाय एक अन्य उपाय के रुप में सोमवार की रात्रि के 12 बजे के बाद कुछ भी ग्रहण नहीं किया जाता, इस उपाय के लिये जल भी ग्रहण नहीं किया जाता. इस उपाय को करने के लिये अगले दिन मंगलवार को प्रात: सूर्योदय काल में एक सूखा नारियल लें, सूखे नारियल में चाकू की सहायता से एक इंच लम्बा छेद किया जाता है. अब इस छेद में 300 ग्राम बूरा (चीनी पाऊडर) तथा 11 रुपये का पंचमेवा मिलाकर नारियल को भर दिया जाता है. यह कार्य करने के बाद इस नारियल को पीपल के पेड के नीचे गड्डा करके दबा देना. इसके बाद गड्डे को मिट्टी से भर देना है. तथा कोई पत्थर भी उसके ऊपर रख देना चाहिए. यह क्रिया लगातार 7 मंगलवार करने से व्यक्ति को लाभ प्राप्त होता है. यह ध्यान रखना है कि सोमवार की रात 12 बजे के बाद कुछ भी ग्रहण नहीं करना है.

1-अगर किसी का विवाह कुण्डली के मांगलिक योग के कारण नहीं हो पा रहा है, तो ऎसे व्यक्ति को मंगल वार के दिन चण्डिका स्तोत्र का पाठ मंगलवार के दिन तथा शनिवार के दिन सुन्दर काण्ड का पाठ करना चाहिए. इससे भी विवाह के मार्ग की बाधाओं में कमी होती है. 2-जिन व्यक्तियों को मंगली दोष है, अथवा मंगल दोष के कारण विवाह में विलम्ब अथवा दाम्पत्य सुख में कमी का अनुभव हो रहा हो, तो उन्हें शुक्ल पक्ष के मंगलवार को श्री हनुमान जी पर सिन्दूर चढ़ाना चाहिए. यह प्रयोग नौ बार करे, तो निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी. 9. छुआरे सिरहाने रख कर सोना यह उपाय उन व्यक्तियों को करना चाहिए. जिन व्यक्तियों की विवाह की आयु हो चुकी है. परन्तु विवाह संपन्न होने में बाधा आ रही है. इस उपाय को करने के लिये शुक्रवार की रात्रि में आठ छुआरे जल में उबाल कर जल के साथ ही अपने सोने वाले स्थान पर सिरहाने रख कर सोयें तथा शनिवार को प्रात: स्नान करने के बाद किसी भी बहते जल में इन्हें प्रवाहित कर दें. चाहे कोई प्रयोग कितना भी छोटा या बड़ा हो पर यदि वह आपके जीवन को आरामदायक बनाने में सहयोगी सा होता हैं तो उसे निश्चय ही जीवन में स्थान देना चाहिए .

।। अथ श्रीपञ्चमुखी-हनुमत्कवचम् ।। ।। श्री गणेशाय नमः ।। ।। ईश्वर उवाच।। अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि श्रृणु सर्वाङ्ग-सुन्दरी । यत्कृतं देवदेवेशि ध्यानं हनुमतः परम् ।। १।। पञ्चवक्त्र महाभीमं त्रिपञ्चनयनैर्युतम् । बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकामार्थ सिद्धिदम् ।। २।। पूर्वं तु वानरं वक्त्र कोटिसूर्यसमप्रणम् । दंष्ट्राकरालवदनं भ्रकुटी कुटिलेक्षणम् ।। ३।। अस्यैव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंहं महाद्भुतम् । अत्युग्र तेजवपुषं भीषणं भयनाशनम् ।। ४।। पश्चिमं गारुडं वक्त्रं वज्रतुण्डं महाबलम् । सर्वनागप्रशमनं विषभुतादिकृतन्तनम् ।। ५।। उत्तरं सौकर वक्त्रं कृष्णं दीप्तं नभोपमम् । पातालसिद्धिवेतालज्वररोगादि कृन्तनम् ।। ६।। ऊर्ध्वं हयाननं घोरं दानवान्तकरं परम् । खङ्ग त्रिशूल खट्वाङ्गं पाशमंकुशपर्वतम् ।। ७।। मुष्टिद्रुमगदाभिन्दिपालज्ञानेनसंयुतम् । एतान्यायुधजालानि धारयन्तं यजामहे ।। ८।। प्रेतासनोपविष्टं त सर्वाभरणभूषितम् । दिव्यमालाम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम् ।। ९।। सर्वाश्चर्यमयं देवं हनुमद्विश्वतोमुखम् ।। १०।। पञ्चास्यमच्युतमनेक विचित्रवर्णं चक्रं सुशङ्खविधृतं कपिराजवर्यम् । पीताम्बरादिमुकुटैरुपशोभिताङ्गं पिङ्गाक्षमाद्यमनिशं मनसा स्मरामि ।। ११।। मर्कटेशं महोत्साहं सर्वशोक-विनाशनम् । शत्रुं संहर मां रक्ष श्रियं दापयमे हरिम् ।। १२।। हरिमर्कटमर्कटमन्त्रमिमं परिलिख्यति भूमितले । यदि नश्यति शत्रु-कुलं यदि मुञ्चति मुञ्चति वामकरः ।। १३।। ॐ हरिमर्कटमर्कटाय स्वाहा । नमो भगवते पञ्चवदनाय पूर्वकपिमुखे सकलशत्रुसंहारणाय स्वाहा । ॐ नमो भगवते पंचवदनाय दक्षिणमुखे करालवदनाय नर-सिंहाय सकल भूत-प्रेत-प्रमथनाय स्वाहा । ॐ नमो भगवते पंचवदनाय पश्चिममुखे गरुडाय सकलविषहराय स्वाहा । ॐ नमो भगवते पंचवदनाय उत्तरमुखे आदि-वराहाय सकलसम्पतकराय स्वाहा । ॐ नमो भगवते पंचवदनाय ऊर्ध्वमुखे हयग्रीवाय सकलजनवशीकरणाय स्वाहा । ।। अथ न्यासध्यानादिकम् । दशांश तर्पणं कुर्यात् ।। विनियोगः- ॐ अस्य श्रीपञ्चमुखी-हनुमत्-कवच-स्तोत्र-मंत्रस्य रामचन्द्र ऋषिः, अनुष्टुप छंदः, ममसकलभयविनाशार्थे जपे विनियोगः । ॐ हं हनुमानिति बीजम्, ॐ वायुदेवता इति शक्तिः, ॐ अञ्जनीसूनुरिति कीलकम्, श्रीरामचन्द्रप्रसादसिद्धयर्थं हनुमत्कवच मन्त्र जपे विनियोगः । कर-न्यासः- ॐ हं हनुमान् अङ्गुष्ठाभ्यां नमः, ॐ वायुदेवता तर्जनीभ्यां नमः, ॐ अञ्जनी-सुताय मध्यमाभ्यां नमः, ॐ रामदूताय अनामिकाभ्यां नमः, ॐ श्री हनुमते कनिष्ठिकाभ्यां नमः, ॐ रुद्र-मूर्तये करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः । हृदयादि-न्यासः- ॐ हं हनुमान् हृदयाय नमः, ॐ वायुदेवता शिरसे स्वाहा, ॐ अञ्जनी-सुताय शिखायै वषट्, ॐ रामदूताय कवचाय हुम्, ॐ श्री हनुमते नेत्र-त्रयाय विषट्, ॐ रुद्र-मूर्तये अस्त्राय फट् । ।। ध्यानम् ।। श्रीरामचन्द्र-दूताय आञ्जनेयाय वायु-सुताय महा-बलाय सीता-दुःख-निवारणाय लङ्कोपदहनाय महाबल-प्रचण्डाय फाल्गुन-सखाय कोलाहल-सकल-ब्रह्माण्ड-विश्वरुपाय सप्तसमुद्रनीरालङ्घिताय पिङ्लनयनामित-विक्रमाय सूर्य-बिम्ब-फल-सेवनाय दृष्टिनिरालङ्कृताय सञ्जीवनीनां निरालङ्कृताय अङ्गद-लक्ष्मण-महाकपि-सैन्य-प्राण-निर्वाहकाय दशकण्ठविध्वंसनाय रामेष्टाय महाफाल्गुन-सखाय सीता-समेत-श्रीरामचन्द्र-वर-प्रसादकाय षट्-प्रयोगागम-पञ्चमुखी-हनुमन्-मन्त्र-जपे विनियोगः । ॐ ह्रीं हरिमर्कटाय वं वं वं वं वं वषट् स्वाहा । ॐ ह्रीं हरिमर्कटमर्कटाय फं फं फं फं फं फट् स्वाहा । ॐ ह्रीं हरिमर्कटमर्कटाय हुं हुं हुं हुं हुं वषट् स्वाहा । ॐ ह्रीं हरिमर्कटमर्कटाय खें खें खें खें खें मारणाय स्वाहा । ॐ ह्रीं हरिमर्कटमर्कटाय ठं ठं ठं ठं ठं स्तम्भनाय स्वाहा । ॐ ह्रीं हरिमर्कटमर्कटाय लुं लुं लुं लुं लुं आकर्षितसकलसम्पत्कराय स्वाहा । ॐ ह्रीं ऊर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय रुं रुं रुं रुं रुं रुद्र-मूर्तये पञ्चमुखी हनुमन्ताय सकलजन-निरालङ्करणाय उच्चाटनं कुरु कुरु स्वाहा । ॐ ह्रीं ठं ठं ठं ठं ठं कूर्ममूर्तये पञ्चमुखीहनुमते परयंत्र-परतंत्र-परमंत्र-उच्चाटनाय स्वाहा । ॐ ह्रीं कं खं गं घं ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं ळं क्षं स्वाहा । इति दिग्बंध: ।। ॐ ह्रीं पूर्व-कपिमुखाय पंच-मुखी-हनुमते टं टं टं टं टं सकल-शत्रु-संहारणाय स्वाहा ।। ॐ ह्रीं दक्षिण-मुखे पंच-मुखी-हनुमते करालवदनाय नरसिंहाय ॐ हां हां हां हां हां सकल-भूत-प्रेत-दमनाय स्वाहा ।। ॐ ह्रीं पश्चि।ममुखे वीर-गरुडाय पंचमुखीहनुमते मं मं मं मं मं सकलविषहरणाय स्वाहा ।। ॐ ह्रीं उत्तरमुखे आदि-वराहाय लं लं लं लं लं सिंह-नील-कंठ-मूर्तये पंचमुखी-हनुमते अञ्जनीसुताय वायुपुत्राय महाबलाय रामेष्टाय फाल्गुन-सखाय सीताशोकदुःखनिवारणाय लक्ष्मणप्राणरक्षकाय दशग्रीवहरणाय रामचंद्रपादुकाय पञ्चमुखीवीरहनुमते नमः ।। भूतप्रेतपिशाच ब्रह्मराक्षसशाकिनीडाकिनीअन्तरिक्षग्रहपरयंत्रपरतंत्रपरमंत्रसर्वग्रहोच्चाटनाय सकलशत्रुसंहारणाय पञ्चमुखीहनुमन् सकलवशीकरणाय सकललोकोपकारणाय पञ्चमुखीहनुमान् वरप्रसादकाय महासर्वरक्षाय जं जं जं जं जं स्वाहा ।। एवं पठित्वा य इदं कवचं नित्यं प्रपठेत्प्रयतो नरः । एकवारं पठेत्स्त्रोतं सर्वशत्रुनिवारणम् ।।१५।। द्विवारं च पठेन्नित्यं पुत्रपौत्रप्रवर्द्धनम् । त्रिवारं तु पठेन्नित्यं सर्वसम्पत्करं प्रभुम् ।।१६।। चतुर्वारं पठेन्नित्यं सर्वरोगनिवारणम् ।। पञ्चवारं पठेन्नित्यं पञ्चाननवशीकरम् ।।१७।। षड्वारं च पठेन्नित्यं सर्वसौभाग्यदायकम् । सप्तवारं पठेन्नित्यमिष्टकामार्थसिद्धिदम् ।।१८।। अष्टवारं पठेन्नित्यं सर्वसौभाग्यदायकम् । नववारं पठेन्नित्यं राजभोगमवाप्नुयात् ।।१९।। दशवारं च प्रजपेत्रैलोक्यज्ञानदर्शनम् । त्रिसप्तनववारं च राजभोगं च संबवेत् ।।२०।। द्विसप्तदशवारं तु त्रैलोक्यज्ञानदर्शनम् । एकादशं जपित्वा तु सर्वसिद्धिकरं नृणाम् ।।२१।। ।। इति सुदर्शनसंहितायां श्रीरामचन्द्रसीताप्रोक्तं श्रीपञ्चमुखीहनुमत्कत्वचं सम्पूर्णम् ।।.

https://youtu.be/XfpY7YI9CHc

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